होशियार
वसिलीसा
(रूसी परीकथा)
अनुवाद: आ. चारुमति
रामदास
किसी देश के किसी राज्य में एक त्सार अपनी
त्सारित्सा के साथ रहता था; उनके कोई बच्चे नहीं थे. त्सार परदेस चला गया, दूर-दूर के अनजान मुल्कों में गया; लम्बे समय तक
घर नहीं लौटा. उसी दौरान त्सारित्सा ने त्सार के बेटे, राजकुमार इवान को
जन्म दिया, मगर त्सार को इस
बारे में मालूम नहीं था.
वह अपने राज्य की राह पर चल पडा, अपने देश के निकट
पहुँचा, दिन तो था भयानक
रूप से गरम, सूरज तो मानो जला
रहा था! और उसे लगी भयानक प्यास; पानी पीने के लिए वह कुछ भी देने को तैयार था!
चारों और नज़र दौडाई, और देखा कि नज़दीक ही एक बड़ा तालाब है; तालाब के पास
पहुँचा, घोड़े से उतरा, पेट
के बल लेटा और ठन्डे पानी के घूँट पीने लगा. पीता रहा और खतरे को महसूस नहीं किया;
मगर समुद्र के त्सार ने उसे दाढ़ी से पकड़ लिया.
“छोड़!” त्सार ने विनती की.
“नहीं छोडूंगा, मेरी जानकारी के बिना पीने की हिम्मत न करना!”
समुद्र के त्सार ने उसे दाढी से पकड़ लिया.
“जो चाहो, वो ले लो – सिर्फ मुझे छोड़ दो!”
“वो चीज़ दो, जिसे घर में नहीं जानते.”
त्सार ने सोचा-सोचा – घर में ऐसी कौन सी चीज़ है, जिसे वह नहीं
जानता? लगता है, सब कुछ जानता है.
उसे हर बात की जानकारी है, - और वह राजी हो गया. कोशिश की – दाढी को अब किसी
ने नहीं पकड़ा था, धरती से उठा, घोड़े पर सवार हुआ
और घर की ओर चल पडा.
घर पहुंचता है, त्सारीना राजकुमार के साथ उसका स्वागत करती है, इतनी खुश है वह, मगर जैसे ही त्सार
को अपने प्यारे बेटे के बारे में पता चलता है, वह जार-जार रोने लगा. त्सारीना को सब कुछ बताया
कि उसके साथ क्या और कैसे हुआ था, दोनों रोने लगे, मगर कुछ नहीं किया जा सकता था, आंसुओं से काम
थोड़े ही सुधरते हैं.
‘कितना ही अपने पास पकड़ कर क्यों न रखूँ,’ - त्सार ने सोचा, ‘मगर एक न एक दिन
तो देना ही पडेगा. इससे बच नहीं सकता!’
उसने राजकुमार इवान का हाथ पकड़ा और उसे सीधे तालाब
के पास लाया. बोला:
“यहाँ मेरी अंगूठी ढूंढ. मैंने गलती से कल यहाँ
गिरा दी थी.”
राजकुमार को अकेला छोड़कर वह खुद घर लौट गया.
राजकुमार अंगूठी ढूँढने लगा, तालाब के किनारे
गया, और वहाँ एक बूढ़ी
उसके पास आई.
“कहाँ जा रहे हो, राजकुमार इवान?”
“भाग जा, तंग न कर, बूढ़ी चुड़ैल! तेरे बगैर भी मैं परेशान हूँ.”
“अच्छा, खुदा तेरी हिफाज़त करे!”
और बुढ़िया एक ओर को चली गई. और राजकुमार इवान
सोचने लगा, ‘मैं बुढ़िया पर गुस्सा
क्यों हुआ? चल, उसे वापस लाता हूँ; बूढे लोग चालाक
होते हैं और भांपने वाले होते हैं! हो सकता है, कोई अच्छी बात बता दे.’
और वह बुढ़िया को मनाने लगा:
“वापस आ जा, दादी, और मेरी बेवकूफ़ी को माफ़ कर दे! मैंने तो गुस्से
में कह दिया था : बाप ने अंगूठी ढूँढने के लिए मजबूर कर दिया, देख रहा हूँ, ढूंढ रहा हूँ, मगर अंगूठी तो मिल
ही नहीं रही...!”
“तुझे अंगूठी के लिए यहाँ नहीं छोड़ा, बाप ने तुझे
समुद्री-त्सार को दे दिया है : समुद्री-त्सार बाहर निकलेगा और तुझे अपने साथ पानी
के भीतर वाले राज्य में ले जाएगा.”
राजकुमार जोर-जोर से रोने लगा.
“दुखी न हो, राजकुमार इवान! तुम्हारे घर भी त्यौहार मनेगा; सिर्फ मुझ बुढ़िया
की बात ध्यान से सुनो. यहाँ, इस रसभरी की झाडी के पीछे छुप जाओ, चुपचाप छुपे रहना.
थोड़ी देर में बारह कबूतर यहाँ उड़कर आयेंगे – सब ख़ूबसूरत लड़कियां, उनके पीछे
तेरहवां भी आयेगा; वे तालाब में
नहायेंगी; और इस बीच तुम आख़िरी
वाली की कमीज़ उठा लेना और तब तक वापस न करना जब तक वह अपनी अंगूठी तुम्हें नहीं
देती. अगर ऐसा न कर सके, तो समझो, कि तुम हमेशा के लिए मर गए: समुद्री त्सार के महल के चारों ओर ऊंची-ऊंची
नुकीली छड़ों की बागड़ है – पूरे दस मील तक, और हर छड पर एक-एक सिर टंका हुआ है; सिर्फ एक खाली है, उसे न छूना!”
राजकुमार इवान ने बुढ़िया को धन्यवाद दिया, रसभरी की झाडी के
पीछे छुप गया और इंतज़ार करने लगा.
अचानक बारह कबूतर उड़कर आते हैं; वे धरती से टकराए
और ख़ूबसूरत लड़कियों में बदल गए, सब की सब बेहद ख़ूबसूरत थीं: ऐसी ख़ूबसूरत जिनके
बारे में सोचा भी नहीं जा सकता, अंदाज़ भी नहीं लगाया जा सकता था, न ही उनका वर्णन
किया जा सकता था! उन्होंने अपनी पोशाकें उतारीं और तालाब में घुस गईं : खेल रही
हैं, तैर रही हैं, खिलखिला रही हैं, गाने गा रही हैं.
उनके पीछे तेरहवां कबूतर भी उड़कर आया; धरती से टकराया, ख़ूबसूरत लड़की में बदल गया, गोरे बदन से अपनी
कमीज़ उतार फेंकी और तैरने के लिए गई: वह सबसे ज़्यादा ख़ूबसूरत थी, सबसे ज़्यादा
लुभावनी थी! बड़ी देर तक राजकुमार इवान उससे नज़र न हटा सका, देर तक उसे देखता
रहा, मगर तभी उसे
बुढ़िया की बात याद आई, उसने चुपचाप जाकर कमीज़ उठा ली.
ख़ूबसूरत लड़की पानी से बाहर आई, परेशान हो गई –
कमीज़ नहीं है! कोई उठाकर ले गया; सारी लड़कियां ढूँढने लगीं. ढूँढती रहीं, ढूँढती रहीं –
कमीज़ कहीं भी दिखाई नहीं दी.
“मत ढूंढो, प्यारी बहनों! उड़कर घर वापस जाओ, मेरा ही कुसूर है –
मैंने कुछ सोचा ही नहीं, मैं खुद ही जवाब दूंगी. बहनें – सुन्दर लड़कियां धरती से टकराईं, कबूतरों
में बदल गईं, उन्होंने पंख फड़फड़ाए
और उड़ गईं.
लड़की अकेली रह गई. उसने चारों और देखा और विनती
की:
“जिसके पास मेरी कमीज़ है, वह चाहे कोई भी हो, बाहर निकल कर यहाँ
आओ; अगर बूढ़े आदमी हो, तो मेरे अपने बाप
जैसे रहोगे, अगर माध्यम आयु के हो, तो – प्यारे भाई होगे, अगर मेरे हम उम्र हुए तो –
मेरे प्यारे दोस्त होगे!”
जैसे ही उसने आख़िरी शब्द कहा, राजकुमार इवान
प्रकट हुआ. उसने उसे सोने की अंगूठी दी और कहा:
“आह, राजकुमार इवान! अब तक क्यों नहीं आये? समुद्र का त्सार
तुम पर खफ़ा है. ये रहा रास्ता, जो पानी के नीचे वाले राज्य को जाता है; बहादुरी
से उस पर जाओ! वहीं पर मुझे पाओगे; मैं समुद्र के त्सार की बेटी हूँ, होशियार
वसिलीसा. होशियार वसिलीसा कबूतर में बदल गई और उड़ गई.
राजकुमार इवान पानी के नीचे वाले राज्य की ओर गया; देखता क्या है:
वहाँ पर उजाला वैसा ही है, जैसे हमारे यहाँ होता है, और वहाँ खेत हैं, और चरागाहें हैं, और क्यारियाँ
हरी-हरी, और सूरज गर्मी दे
रहा है. वह समुद्र के त्सार के पास आता है. समुद्र का त्सार उस पर चिल्लाया:
“इतनी देर क्यों लगाई? इस कुसूर के लिए
तुम्हें काम देता हूँ : मेरे पास एक बंजर भूमि है तीस मील लंबी और तीस मील चौड़ी –
सिर्फ गड्ढे, खाईयां और नुकीले
पत्थर! कल तक वह हथेली जैसी समतल होना चाहिए, उसमें रई बोई जाए, जो सुबह तक इतनी ऊँची होनी चाहिए कि उसमें चिड़िया
छुप सके. अगर तुम ये नहीं करोगे – तो तुम्हारा सिर धड़ से अलग हो जाएगा!”
राजकुमार इवान समुद्री-त्सार के पास से निकला, पूरा आंसुओं में
नहाया हुआ. होशियार वसिलीसा ने अपने ऊंचे महल की खिड़की से देखा और पूछा:
“नमस्ते, राजकुमार इवान! आंसू क्यों बहा रहे हो?”
“कैसे न रोऊँ?” राजकुमार इवान ने जवाब दिया. “समुद्री-त्सार ने
मुझे एक रात में खाईयों, गड्ढों और नुकीले पत्थरों को समतल करके उनमें रई बोने के लिए कहा है, ताकि सुबह तक वह
बढ़ जाए और चिड़िया उसमें छुप सके.”
“ये कोई मुसीबत नहीं है, मुसीबत तो आगे आने
वाली है. खुदा का नाम लेकर सो जाओ; सुबह शाम से ज़्यादा अक्लमंद होती है, सब कुछ तैयार
रहेगा!”
राजकुमार इवान लेट गया, और होशियार
वसिलीसा ने बाहर पोर्च में आकर जोर से पुकारा:
“ऐ, तुम कहाँ हो, मेरी भरोसेमंद सेविकाओं! गहरी खाईयों को समतल करो, नुकीले पत्थरों को
हटाओ. बालियों वाली रई लगा दो, ताकि सुबह तक पक जाए.”
पौ फटते ही राजकुमार इवान उठा, देखता क्या है –
सब तैयार है; न खाईयां हैं, न पत्थर, खेत हथेली की तरह
चिकना है, और उसमें रई फूल
रही है – इतनी ऊँची, कि चिड़िया आराम से छुप जाए. समुद्री-त्सार के पास बताने के लिए गया.
“शुक्रिया, तेरा,” समुद्री त्सार ने कहा, “कि काम कर दिया.
अब तेरे लिए दूसरा काम – मेरे पास तीन सौ अनाज के गोदाम हैं, हर गोदाम में तीन-तीन
सौ पूलियां हैं – सब सफ़ेद गेहूँ, कल तक पूरा गेंहूं साफ़ कर दे, एक-एक दाना. मगर न
तो गोदाम टूटे और न ही पूलियां बिखरें. अगर नहीं करेगा – तो तेरा सिर धड़ से अलग कर
दूँगा!”
“सुन रहा हूँ, महामहिम!” इवान ने कहा. फिर से वह आँगन में गया
और आंसुओं से नहा गया.
“क्यों इतना फूट-फूट कर रो रहे हो?” होशियार वसिलीसा
ने उससे पूछा.
“कैसे न रोता? समुद्री-त्सार ने मुझे एक रात में सारे गोदामों
की पूलियां गाहने के लिए कहा है, ऐसे कि एक भी दाना न बिखरे, और गोदाम न टूटे, और पूलियां न
बिखरें.”
“ये कोई मुसीबत नहीं है, मुसीबत तो आगे है!
सो जाओ; सुबह शाम से
ज़्यादा अक्लमंद होती है.”
राजकुमार सो गया, और होशियार वसिलीसा बाहर पोर्च में आकर ऊँची आवाज़
में चिल्लाई:
“ऐ, तुम, रेंगने वाली मुर्गियों! दुनिया में तुम जितनी भी
हो – रेंगते हुए यहाँ आओ और अब्बू के गोदामों में साफ़-एकदम साफ़ गेंहू चुन कर अलग
करो.”
सुबह समुद्री-त्सार ने राजकुमार इवान को बुलाया:
“काम पूरा किया?”
“पूरा कर दिया, महाराज!”
“चलो, देखेंगे.”
गाहने की जगह पर गए – पुलियों के गट्ठे अनछुए हैं, खलिहान में आये, सभी डिब्बे अनाज
से पूरे भरे हैं.
“शुक्रिया, भाई!” समुद्री-त्सार ने कहा, “अब तुम मेरे लिए खालिस
मोम का चर्च भी बनाकर दो, सुबह तक बनकर तैयार होना चाहिए: यह तुम्हारा आख़िरी काम
होगा.”
राजकुमार इवान फिर से आँगन में जाकर फूट-फूट कर
रोने लगा.
“इतना फूट-फूट कर क्यों रो रहे हो?” होशियार वसिलीसा
ने ऊंचे बुर्ज़ से पूछा.
“मैं, अच्छा नौजवान, क्यों न रोऊँ? समुद्री-त्सार ने
एक रात में खालिस मोम से चर्च बनाने को कहा है.”
“अरे, ये तो कोई मुसीबत नहीं, मुसीबत तो आगे
आयेगी. सो जाओ; सुबह शाम से ज़्यादा
अक्लमंद होती है.”
राजकुमार सो गया, और होशियार वसिलीसा बाहर पोर्च में निकल कर ऊँची
आवाज़ में चिल्लाई:
“ऐ तुम, व्यस्त मधुमक्खियों! दुनिया में जितनी भी
हो – सब उड़कर यहाँ आ जाओ और खालिस मोम से खुदा का चर्च बनाओ, सुबह तक तैयार हो
जाए.”
सुबह राजकुमार इवान उठा, देखा, - खालिस मोम का
चर्च बनकर तैयार है. पहुँचा समुद्री-त्सार के पास सूचना देने.
“शुक्रिया, तेरा, राजकुमार इवान! मेरे काम चाहे कितने भी कठिन
क्यों न थे, कोई भी उन्हें इस
तरह पूरा न कर सका, जैसा तुमने किया है. इसके लिए मेरे वारिस बन जाओ, पूरे साम्राज्य के
रक्षक, मेरी तेरह लड़कियों
में से जिसे भी चाहो अपनी बीबी चुन लो.”
राजकुमार इवान ने होशियार वसिलीसा को चुना, फ़ौरन उनकी शादी कर
दी गई, और इस खुशी में
तीन दिनों तक उत्सव मनाते रहे.
कुछ समय बीता, राजकुमार इवान को अपने माता-पिता की याद सताने
लगी, उसका दिल पवित्र रूस जाने के लिए तड़पने लगा.
“इतने उदास क्यों हो, राजकुमार इवान?”
“आह, होशियार वसिलीसा, अब्बा की याद आ रही है, अम्मी की याद आ
रही है, पवित्र रूस जाने
की ख्वाहिश हो रही है.”
“ये आई है मुसीबत! अगर हम जायेंगे, तो हमारा भारी
पीछा किया जाएगा; समुद्री-त्सार
गुस्सा हो जाएगा और हमें सजाए-मौत देगा, चालाकी से काम लेना होगा!”
होशियार वसिलीसा ने तीन कोनों में थूका, अपने बुर्ज़ के दरवाज़े
बंद किये और राजकुमार इवान के साथ पवित्र रूस की ओर भाग निकली.
अगले दिन सुबह-सुबह समुद्री-त्सार के दूत आये –
नौजवानों को उठाने के लिए, महल में त्सार के पास बुलाने के लिए. दरवाज़े पर
खटखटाते हैं:
“जागो, उठो! आपको अब्बा बुला रहे हैं.”
“अभी बहुत जल्दी है, हमारी नींद पूरी नहीं हुई है, बाद में आना!” थूक
की एक बूँद ने जवाब दिया.
गए, घंटा- दो घंटा इंतज़ार किया और दुबारा खटखटाते हैं:
“ये कोई सोने का वक्त नहीं, उठने का वक्त हो
गया है!”
“थोड़ा रुक जाओ; उठेंगे, कपडे पहनेंगे!” थूक की दूसरी बूँद ने जवाब दिया.
तीसरी बार दूत आये : “समुद्री-त्सार गुस्सा हो रहे
हैं, वे इतनी देर क्यों
आराम कर रहे हैं.”
“अभी आते हैं!” थूक की तीसरी बूँद ने जवाब दिया.
दूत इंतज़ार करते रहे, करते रहे और फिर
से खटखटाने लगे – कोई जवाब नहीं, कोई प्रतिक्रिया नहीं!
उन्होंने दरवाज़े तोड दिए, मगर बुर्ज़ तो खाली था.
त्सार को सूचित किया कि नौजवान भाग गए; वह गुस्से में आ
गया और उसने बहुत सारे पीछा करने वालों को उनके पीछे भेजा.
मगर होशियार वसिलीसा और राजकुमार इवान बहुत
दूर-दूर निकल गए! फुर्तीले घोड़ों पर, बिना रुके, बिना विश्राम किये.
“राजकुमार इवान, ज़मीन से कान लगाकर सुनो, समुद्री-त्सार के
लोग हमारा पीछा तो नहीं कर रहे हैं?”
राजकुमार इवान घोड़े से कूदा, ज़मीन से कान लगाकर
सुनता रहा और बोला:
“लोगों की चिल्लाहट और घोड़ों के टापों की आवाजें
सुन रहा हूँ!”
“ये हमारे पीछे आ रहे हैं!” होशियार वसिलीसा ने
कहा और उसने फ़ौरन घोड़ों को हरे चारागाह में. राजकुमार इवान को चरवाहे में बदल दिया
और खुद खामोश भेड़ बन गई.
पीछा करने वाले आ धमके:
“ऐ, बूढ़े! क्या तुमने देखा – कहीं इस ओर से घोड़े
पर भला नौजवान और ख़ूबसूरत लड़की तो नहीं गए?”
“नहीं, भले लोगों. नहीं देखा,” राजकुमार इवान ने जवाब
दिया – “चालीस सालों से इस चरागाह पर भेड़ें चरा रहा हूँ – एक भी पंछी करीब से नहीं
उड़ा, एक भी जंगली जानवर
यहाँ से भागते हुए नहीं गया!”
पीछा करने वाले वापस लौट गए.
“महाराज! रास्ते में हमें कोई भी नहीं मिला, सिर्फ एक चरवाहे
को भेड चराते हुए देखा.”
“उन्हें पकड़ा क्यों नहीं? ये वो ही तो थे!”
समुद्री-त्सार चिल्लाया और उसने नए दस्ते को पीछा करने के लिए भेजा. मगर राजकुमार
इवान और होशियार वसिलीसा अपने फुर्तीले घोड़ों पर बहुत दूर निकल गए हैं.
“राजकुमार इवान, धरती से कान लगा कर सुनो, समुद्री त्सार का
दस्ता पीछा तो नहीं कर रहा है?”
राजकुमार इवान घोड़े से उतरा और ज़मीन से कान लगाकर
सुनते हुए बोला:
“सुन रहा हूँ लोगों की चिल्लाहट और घोड़ों की टापों
की आवाज़.”
“ये हमारे पीछे आ रहे हैं!” होशियार वसिलीसा ने
कहा: वह खुद चर्च में बदल गई, राजकुमार इवान को बूढ़े पादरी में बदल दिया, घोड़ों को
पेड़ों में बदल दिया.
पीछा करने वाले आ धमके.
“ऐ, फादर! आपने देखा तो नहीं – कहीं यहाँ से
चरवाहा और भेड तो नहीं गुज़रे?”
“नहीं, भले आदमियों, नहीं देखा, चालीस साल से इस चर्च में काम कर रहा हूँ - एक भी
पंछी करीब से नहीं उड़ा, एक भी जंगली जानवर यहाँ से भागते हुए नहीं गया!”
पीछा करने वाले वापस लौट गए.
“महाराज! चरवाहा और भेड कहीं नहीं मिले, सिर्फ रास्ते
में एक चर्च और उसके बूढ़े पादरी को देखा.”
“तुमने चर्च क्यों नहीं तोड़ा? फादर को क्यों
नहीं पकड़ा? ये वो ही तो थे!”
समुद्री त्सार चिल्लाया और खुद ही राजकुमार इवान और होशियार वसिलीसा के पीछे निकल
पडा. मगर वे तो दूर निकल गए थे.
होशियार वसिलीसा ने फिर कहा,
“राजकुमार इवान, ज़मीन से कान लगाकर सुनो, कहीं पीछा करने
वालों की आवाज़ तो नहीं सुनाई दे रही है?”
राजकुमार घोड़े से उतरा, ज़मीन से कान लगाकर
सुना और बोला:
“मैं लोगों की चिल्लाहट और घोड़े के टापों की आवाज़
सुन रहा हूँ, पहले से कम तेज़.”
“ये खुद त्सार आ रहा है.”
होशियार वसिलीसा ने घोड़ों को तालाब में बदल दिया, राजकुमार इवान को
नर-बत्तख में बदल दिया और खुद बत्तख बन गई. समुद्री त्सार तालाब के पास आया, वह फ़ौरन समझ गया
कि ये नर और मादा बत्तख कौन हैं, वह धरती से टकराया और बाज़ में परिवर्तित हो गया.
बाज़ उन्हें जान से मारना चाहता है, मगर ऐसा हो नहीं रहा था: चाहे जितनी ही बार वह
ऊपर से झपटता...ऐसा लगता कि अभी नर बत्तख पर वार करेगा, बत्तख पानी में डुबकी
लगा लेता. जैसे ही मादा बत्तख पर झपटता, वह पानी में डुबकी लगा लेती! झपटता रहा, झपटता रहा, मगर कुछ भी न कर
सका.
समुद्री त्सार अपने पानी के नीचे वाले राज्य में
लौट गया, और राजकुमार इवान
तथा होशियार वसिलीसा कुछ समय इंतज़ार करके पवित्र रूस की ओर चल पड़े.
एक दिन वे रूस पहुँच गए.
“इस जंगल में मेरा इंतज़ार करो,” राजकुमार ने
होशियार वसिलीसा से कहा, “मैं पहले जाकर माँ को , पिता को खबर करता हूँ.”
“तुम मुझे भूल जाओगे, राजकुमार इवान.”
“नहीं, नहीं भूलूंगा.”
“नहीं, राजकुमार इवान, कुछ न कहो, भूल जाओगे! मुझे तुम उस समय याद करोगे, जब दो कबूतर खिड़कियों
पर चोंच मारेंगे!”
राजकुमार इवान महल में आया; माँ-बाप ने उसे
देखा, उसके गले से लिपट
गए और चूमने लगे, प्यार करने लगे;
खुशी के मारे राजकुमार इवान होशियार वसिलीसा के बारे में भूल गया. एक-दो दिन माँ
के साथ, पिता के साथ रहा, तीसरे दिन किसी
राजकुमारी से शादी करने के बारे में सोचने लगा.
होशियार वसिलीसा शहर में गई और चर्च में प्रस्विरा
(विशेष आकार की ब्रेड) बनाने वाली के यहाँ काम करने लगी. प्रस्विरा बनाने लगीं.
उसने आटे के दो गोले लिए, उनसे कबूतरों का जोड़ा बनाया और भट्टी में रख
दिया. “बूझो तो, मालकिन, इन कबूतरों का
क्या होगा?”
“क्या होना है? उन्हें खा जायेंगे – और बस!”
“नहीं, नहीं बूझा! होशियार वसिलीसा ने भट्टी खोली, खिड़की खोली – उसी पल
कबूतरों ने अपने पंख फड़फडाये, और सीधे राजमहल में पहुंचे और खिड़कियों पर चोंच
मारने लगे. त्सार के सेवक कितनी ही कोशिशों के बाद भी उन्हें नहीं भगा सके.
तभी राजकुमार इवान को होशियार वसिलीसा की याद आई, उसने उसकी तलाश
में चारों और आदमी भेजे और उसे प्रस्विरा बनाने वाली के यहाँ पाया; उसने उसके गोरे-गोरे
हाथ पकडे, शक्कर जैसे मीठे
होठों को चूमा, माँ-बाप के पास
लाया, और इसके बाद सब
लोग सुख-चैन से रहने लगे.
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