राजकुमार इवान और भूरा भेड़िया
(रूसी परीकथा)
अनुवाद: आ.
चारुमति रामदास
किसी
ज़माने में त्सार बिरिन्देय रहता था, उसके तीन बेटे थे, सबसे छोटे का नाम था इवान.
त्सार का एक बेहद शानदार बाग़ था, उसमें एक सेब का पेड़ था जिस पर सुनहरे
सेब थे.
कोई त्सार के बाग़ में आने लगा, सुनहरे सेब चुराने लगा. त्सार को अपने बाग़
को देखकर बहुत दुःख होता. उसने वहाँ चौकीदार भेजे. कोई भी चौकीदार चोर को पकड़ नहीं
पाया.
त्सार ने खाना-पीना छोड़ दिया और दुखी रहने लगा.
बेटे पिता को धीरज देने लगे:
“हमारे प्यारे अब्बा, अफसोस न करो, हम खुद ही बाग़ की निगरानी करेंगे.”
बड़ा बेटा बोला:
“आज मेरी
बारी है, बाग़ को चोर से बचाने जाता हूँ.”
बड़ा बेटा चल पडा. शाम से घूमता रहा, घूमता रहा, किसी को भी नहीं देख पाया, नरम घास पर लुढ़क गया और सो गया.
सुबह त्सार ने उससे पूछा:
“तो, क्या तुम मुझे खुशखबरी दोगे - चोर को देखा क्या?”
“नहीं, अब्बा, पूरी रात नहीं
सोया, पलक भी नहीं झपकाई, मगर किसी को भी नहीं देखा.”
अगली रात मझला बेटा गया चौकीदारी करने और वह भी
पूरी रात सोता रहा, और सुबह उसने कह
दिया कि चोर को नहीं देखा.
अब आई छोटे भाई की बारी. राजकुमार इवान निकल पडा
अब्बा के खेत की रखवाली करने और वह बैठने से भी डर रहा था, लेटने की तो बात ही
क्या. जैसे ही नींद उस पर हावी होती, वह घास से ओस की बूँदें लेकर मुँह धो लेता, नींद आंखों से उड़ जाती.
आधी रात बीत गई, उसे ऐसा लगा : बाग़ में रोशनी तेज़, तेज़ होती जा रही है. पूरा बाग़ रोशन हो
गया. उसने देखा – सेब के पेड़ पर एक अग्नि-पक्षी बैठा है और सुनहरे सेबों पर चोंच
मार रहा है.
राजकुमार इवान हौले से रेंग कर सेब के पेड़ तक
पहुँचा और उसने पंछी की पूंछ पकड़ ली. अग्नि-पक्षी फड़फड़ाया और उड़ गया, इवान के हाथ में उसकी पूंछ का सिर्फ एक
पंख रह गया.
सुबह राजकुमार इवान अब्बा के पास आया.
“तो, मेरे प्यारे वान्या, तुमने चोर को देखा क्या?”
“प्यारे अब्बा, पकड़ तो नहीं पाया, मगर टोह में रहा कि कौन हमारा बाग़ बर्बाद कर रहा है. चोर की एक निशानी
आपके लिए लाया हूँ. अब्बा, ये रही निशानी. अग्नि-पक्षी.
त्सार ने वह पंख ले लिया और तब वह खाने लगा, पीने लगा और अपने ग़म को भूल गया. एक
ख़ूबसूरत सुबह उसे इस अग्नि-पक्षी की याद आई.
उसने बेटों को बुलाया और उनसे कहा:
“मेरे प्यारे बच्चों, तुम लोग बढ़िया घोड़ों पर सवार होकर दुनिया
घूम आओ, सारी जगहें देखो,
शायद कहीं अग्नि-पक्षी मिल जाए.”
बेटों ने अब्बा को झुककर सलाम किया, बढ़िया घोड़ों पर ज़ीन चढ़ाई और निकल पड़े:
बड़ा एक ओर को गया, मझला दूसरी ओर और
राजकुमार इवान तीसरी दिशा में.
राजकुमार इवान थोड़ा-बहुत चला, दिन गरम था.
राजकुमार इवान कुछ थक गया, वह घोड़े से उतरा, उसे छोड़ दिया और खुद लुढ़क कर सो गया.
थोड़ा-बहुत समय बीता, राजकुमार इवान जाग गया, देखता क्या है ....
कि घोड़ा नहीं है. उसे ढूँढने निकला, चलता रहा, चलता रहा और अपने घोड़े को ढूंढ लिया – सिर्फ
कुतरी हुई हड्डियां बची थीं.
राजकुमार इवान को बेहद अफ़सोस हुआ: बिना घोड़े के
इतनी दूर कैसे जाएगा?
‘क्या किया जाए, उसने सोचा, जब काम लिया है तो कुछ नहीं किया जा सकता.’
और वह पैदल चल पडा. चलता रहा, चलता रहा, थक कर गिरने-गिरने को हो गया. नरम घास पर बैठ गया
और रोने लगा, बैठा रहा. इतने
में न जाने कहाँ से उसके पास एक भूरा भेड़िया भागता हुआ आया:
“क्या बात है, राजकुमार इवान, सिर लटकाए बैठे हो
और रो रहे हो?”
“दुखी कैसे न होऊँ, भूरे भेड़िये? मैं बिना बढ़िया
घोड़े के जो रह गया.”
“ये, मैंने तुम्हारे घोड़े को खा लिया...मुझे तुम
पर अफसोस हो रहा है! बताओ, दूर की यात्रा पर
क्यों निकले थे, कहाँ जा रहे हो?”
“अब्बा ने मुझे भेजा है, पूरी दुनिया घूम कर अग्नि-पक्षी को ढूँढने
के लिए.”
“छि:, छि:, तुम तो अपने बढ़िया घोड़े पर तीन साल में
भी अग्नि-पक्षी तक नहीं पहुँच सकते. सिर्फ मैं ही जानता हूँ कि वह कहाँ रहता है. चलो, ऐसा करते हैं – तुम्हारे घोड़े को मैनें
खाया है, पूरी ईमानदारी-सच्चाई
से तुम्हारी खिदमत करूंगा. मेरी पीठ पर बैठो, मगर मुझे खूब कसकर पकड़ना.”
राजकुमार उसकी पीठ पर बैठ गया, भूरा भेड़िया सरपट भागा – नीले, नीले जंगलों पर नज़र भी न डालता, तालाबों को पूंछ से दूर हटा देता. भागते-भागते
वे एक ऊंचे बुर्ज़ तक पहुंचे.
भूरे भेड़िये ने कहा:
“मेरी बात सुन, राजकुमार इवान और याद रख: दीवार फांद कर जाना, घबराओ नहीं – वक्त बहुत अच्छा है, सारे चौकीदार सो रहे हैं. बुर्ज़ में
देखोगे एक खिड़की, खिड़की में सोने का पिंजरा है, और पिंजरे में बैठा है अग्नि-पक्षी.
तू पक्षी को उठा ले, बगल में दबा ले, मगर देख, पिंजरे को न छूना!”
राजकुमार दीवार फांद कर गया, उसने बुर्ज़ देखा – खिड़की में रखा है सोने
का पिंजरा, पिंजरे में बैठा
है अग्नि-पक्षी. उसने पक्षी को उठाया, बगल में दबाया, और पिंजरे को
देखता रहा. उसका दिल ललचा गया : ‘आह, कितना सुनहरा, कितना बेशकीमती! इसे कैसे छोड़ सकता हूँ!’ और भूल
गया कि भेड़िये ने उसे क्या हुक्म दिया था. जैसे ही उसने पिंजरे को छुआ, बुर्ज़ में हल्ला-गुल्ला होने लगा :
तुरहियाँ बजने लगीं, ढोल बजने लगे, चौकीदार जाग गए, उन्होंने राजकुमार इवान को पकड़ लिया और
त्सार अफ़्रोन के पास लाये.
त्सार अफ़्रोन गुस्से में आ गया और उसने पूछा:
“कौन हो तुम, कहाँ से आये हो?”
“मैं त्सार बिरिन्देय का बेटा हूँ, राजकुमार इवान.”
“आय, कैसी शर्म की बात है! त्सार का बेटा और चोरी करने चला.”
“क्या करें, जब आपका पक्षी उड़ता था, और हमारे बाग़ को बर्बाद कर रहा था?”
“तुम्हें मेरे पास आना चाहिए, ईमानदारी से पूछना चाहिए था, मैं उसे तुम्हें यूँ ही दे देता, तुम्हारे अब्बा, त्सार बिरेन्देय का लिहाज़ करते हुए. मगर
अब तो मैं सारे शहरों में तुम्हारी बेइज्ज़ती करूंगा... खैर, ठीक है, मेरा एक काम करो, मैं तुम्हें माफ़ कर दूँगा.
फलां-फलां सल्तनत में त्सार कूस्मान के पास सुनहरी अयाल का घोड़ा है. उसे मेरे पास
ले आओ, तब मैं पिंजरे
समेत अग्नि-पक्षी तुम्हें दे दूँगा.”
अफसोस करने लगा राजकुमार इवान, अपने भूरे भेड़िये के पास आया, भेड़िये ने कहा:
“मैंने तो तुमसे कहा था कि पिंजरे को न छूना! मेरी
बात क्यों नहीं मानी?”
“ओह, माफ़ करो मुझे, माफ़ भी करो, भूरे भेड़िये.”
“बस, माफ़ करो, माफ़ करो... ठीक है, मुझ पर बैठ जाओ. ओखली में सिर दिया, तो मूसल से क्या डरना.”
फिर से भूरा भेड़िया राजकुमार इवान के साथ सरपट
भागा. भागते-भागते वे उस किले तक पहुंचे, जहाँ सुनहरी अयाल वाला घोड़ा था.
“दीवार फांद कर घुस जाओ, राजकुमार इवान, चौकीदार सो रहे हैं, घुड़साल में जाना, घोड़ा लेना, मगर देख लगाम को न छूना!”
राजकुमार इवान दीवार फांद कर किले में घुसा, वहाँ सारे चौकीदार सो रहे थे, वह घुड़साल,में घुसा, सुनहरी अयाल वाले घोड़े को पकड़ा, मगर लगाम पर उसकी निगाह ठहर गई – वह सोने
से, कीमती जवाहरातों से सजी थी; इसी लगाम में सुनहरे अयाल वाले घोड़े को
घूमना है.
राजकुमार इवान ने लगाम को हाथ लगाया ही था कि पूरे
किले में शोर होने लगा: तुरहियाँ बजने लगीं, ढोल बजने लगे, चौकीदार जाग गए और
राजकुमार इवान को त्सार कूस्मान के पास ले गए.
“कौन हो तुम? कहाँ से आये हो?”
“मैं राजकुमार इवान हूँ.”
“वाह, कैसी बेवकूफी कर रहे हो – घोड़ा चुराने चले! इसके लिए तो मामूली किसान भी
तैयार नहीं होगा. चलो, ठीक है, राजकुमार इवान, मैं तुम्हें माफ़ कर दूँगा, अगर तुम मेरा एक काम कर दो. त्सार दल्मात
की एक बेटी है – सुन्दरी एलेना. उसे उठा ले, मेरे पास ले आ, लगाम समेत सुनहरी
अयाल वाला घोड़ा तुम्हें इनाम में दे दूँगा.”
राजकुमार और भी ज़्यादा दुखी हो गया, भूरे भेड़िये के
पास गया.
“मैंने तुमसे कहा था राजकुमार इवान कि लगाम को न
छूना! तुमने मेरी हिदायत नहीं मानी.”
“ओह, माफ़ करो, मुझे, माफ़ करो, भूरे भेड़िये.”
“बार-बार माफ़ करो...चलो, ठीक है, मेरी पीठ पर बैठ जाओ.”
भूरा भेड़िया फिर से छलांगें मारता हुआ राजकुमार इवान
के साथ जाने लगा, वे त्सार दल्मात
के किले तक पहुंचे. उसके किले के बाग़ में सुन्दरी एलेना दासियों के साथ टहल रही
थी. भूरे भेड़िये ने कहा, “इस बार मैं
तुम्हें नहीं जाने दूँगा, खुद ही जाऊंगा. तू
पैदल वापस जा, मैं फ़ौरन तुम्हारे
पास आता हूँ.”
राजकुमार इवान वापसी के रास्ते पर पैदल चल पडा, और भूरे भेड़िये ने दीवार फांदी और पहुँचा
बाग़ में. झाडी के पीछे छुप कर बैठ गया और देखने लगा: सुन्दरी एलेना अपनी दासियों
के साथ निकली. घूमती रही, घूमती रही, और जैसे ही वह उनसे कुछ पीछे रह गई, भूरे भेड़िये ने उसे पकड़ लिया, अपनी पीठ पर डाल दिया - और भाग गया.
राजकुमार पैदल जा रहा था, अचानक भूरे भेड़िये ने उसे पकड़ लिया, उसकी पीठ पर बैठी थी सुन्दरी एलेना. खुश
हो गया राजकुमार इवान और भूरे भेड़िये ने उससे कहा,
“फ़ौरन मेरी पीठ पर बैठ जा, नहीं तो हमारा पीछा शुरू हो जाएगा.”
भूरा भेड़िया राजकुमार इवान और सुन्दरी एलेना के
साथ उछलते हुए वापसी के रास्ते पर गया – नीले-नीले जंगलों को नज़र नहीं डालता, नदियाँ, तालाब, पूंछ से हटाता रहा. कुछ ही देर में वे त्सार कूस्मान के पास पहुंचा गए.
भूरे भेड़िये ने पूछा,
“क्या राजकुमार इवान, खामोश क्यों हो गए, क्या अफसोस हो रहा है?”
“अफसोस क्यों न होगा, भूरे भेड़िये? ऐसी सुन्दरी से कैसे बिदा
लूँगा? सुन्दरी एलेना के
बदले घोड़ा कैसे लूँगा?”
भूरे भेड़िये ने जवाब दिया, “मैं तुम्हें ऐसी सुन्दरी से जुदा नहीं
करूंगा – इसे कहीं छुपा देते हैं, और मैं सुन्दरी एलेना में बदल जाता हूँ, तुम मुझे त्सार के पास ले चलो.”
उन्होंने सुन्दरी एलेना को जंगल की एक झोंपड़ी में
छुपा दिया. भूरे भेड़िये ने अपना सिर घुमाया और बिलकुल सुन्दरी एलेना में बदल गया. राजकुमार
इवान उसे त्सार कूस्मान के पास ले गया. त्सार बहुत खुश हुआ, उसका शुक्रिया अदा करने लगा:
“शुक्रिया, राजकुमार इवान, जो तुम मेरे लिए दुल्हन ले आये. अब लगाम
के साथ सुनहरी अयाल वाला घोड़ा ले लो.”
राजकुमार इवान इस घोड़े पर बैठ गया और सुन्दरी
एलेना को लेने के लिए निकल पडा. उसे साथ में लिया, घोड़े पर बिठाया और वे रास्ते पर निकल पड़े.
इधर त्सार कूस्मान ने ब्याह रचाया, सुबह से लेकर शाम तक जश्न मनाता रहा, और जब सोने का समय हुआ, तो वह सुन्दरी एलेना को शयन गृह में ले
गया, मगर जैसे ही उसके
साथ पलंग पर लेटा, देखता क्या है –
नौजवान बीबी के बदले भेड़िये का थोबड़ा? डर के मारे त्सार पलंग से नीचे गिर गया, और भेड़िया भाग गया.
भूरे भेड़िये ने इवान को पकड़ लिया और पूछा:
“क्या सोच रहा है, राजकुमार इवान?”
“कैसे न सोचूंगा? ऐसी दौलत से जुदा होते हुए दुःख न होगा – सुनहरे अयाल
वाले घोड़े से, उसे अग्नि-पक्षी
से बदलना.”
“दुखी न हो, मैं तुम्हारी मदद करूंगा.”
“इस घोड़े को और सुन्दरी एलेना को तुम छुपा दो, और मैं सुनहरी अयाल के घोड़े में बदल जाता
हूँ, तुम मुझे ही त्सार
अफ़्रोन के पास ले चलो.”
उन्होंनें सुन्दरी एलेना और सुनहरी अयाल वाले घोड़े
को जंगल में छुपा दिया. भूरा भेड़िया पीठ के बल कूदा, और सुनहरी अयाल वाले घोड़े में बदल गया. राजकुमार
इवान उसे त्सार अफ्रोन के पास ले गया. त्सार खुश हो गया और उसने राजकुमार इवान को
सोने के पिंजरे समेत अग्नि-पक्षी दे दिया.
राजकुमार इवान पैदल चलकर जंगल में आया, उसने सुन्दरी एलेना को सुनहरी अयाल वाले घोड़े
पर बिठाया अग्नि-पक्षी वाला पिंजरा हाथ में लिया और अपने देस की और निकल पडा.
त्सार अफ़्रोन ने घोड़े को अपने सामने लाने का हुक्म
दिया और जैसे ही उस पर बैठने लगा – घोड़ा भूरे भेड़िये में बदल गया. डर के मारे त्सार
वहीं पर गिर गया, और भूरा भेड़िया तेज़ी
से लपका और जल्दी ही राजकुमार इवान के पास पहुँच गया.
“अब जाओ, खुदा हाफ़िज़, मैं आगे नहीं आ
सकता.”
राजकुमार इवान घोड़े से उतारा और तीन बार धरती तक
झुका, इज्ज़त के साथ भूरे
भेड़िये का शुक्रिया अदा किया. मगर वह बोला:
“मुझसे हमेशा के लिए बिदा न लो, तुम्हें अभी और मेरी ज़रुरत पड़ेगी.”
राजकुमार इवान ने सोचा, ‘अब कहाँ इसकी और ज़रुरत पड़ेगी? मेरी सारी
ख्वाहिशें पूरी हो गई हैं.’ सुनहरी अयाल वाले घोड़े पर बैठा, और सुन्दरी एलेना को
और अग्नि-पक्षी को लेकर आगे चला. वह अपने राज्य की सीमा तक पहुँचा, उसका जी चाहा कि दोपहर में थोड़ा सुस्ता
ले. उसके पास थोड़ी सी रोटी थी. तो, उन्होंने रोटी खाई, झरने का पानी पिया और सुस्ताने के लिए लेट गए.
जैसे ही राजकुमार इवान की आँख लगी, उसके भाई उससे टकराए. वे दूसरे देशों को
गए थे, अग्नि-पक्षी को
ढूँढते रहे, खाली हाथ वापस लौट
रहे थे. पास में आये और देखा – राजकुमार इवान ने सब कुछ पा लिया है. उन्होंने
षडयंत्र रचा:
“चल, भाई को मार डालें, सब कुछ हमारा हो जाएगा.”
फैसला किया और राजकुमार इवान को मार डाला. सुनहरी अयाल
वाले घोड़े पर बैठे, अग्नि-पक्षी को
लिया, सुन्दरी एलेना को
घोड़े पर बिठाया और उसे धमकाया:
“घर में कुछ भी न बताना!”
राजकुमार इवान मरा हुआ पडा था, उस पर कौए उड़ने लगे. न जाने कहाँ से भूरा
भेड़िया भागता हुआ आया, और उसने कौए को और
उसके पिल्ले को पकड़ा.
“भाग कौए, ज़िंदा और मुर्दा पानी ले आ. जब ज़िंदा और मुर्दा पानी लेकर आयेगा, तभी तेरे पिल्ले को छोडूंगा.”
कौए के पास कोई और चारा न था, वह उड़ कर गया, और भूरा भेड़िया उसके पिल्ले को पकडे रहा.
कुछ देर उड़ने के बाद कौआ ज़िंदा और मुर्दा पानी लाया. भूरे भेड़िये ने मुर्दा पानी
राजकुमार इवान के घावों पर छिड़का, घाव भर गए; फिर उसने ज़िंदा पानी छिड़का, राजकुमार इवान ज़िंदा हो गया.
“ओह, कैसी गहरी नींद सोया!...”
“गहरी नींद तू सोया,” भूरे भेड़िये ने कहा, “अगर मैं न होता, तो कभी भी न उठाता. सगे भाइयों ने तुझे
मार डाला और तेरी सारी चीज़ें ले गए. फ़ौरन मुझ पर सवार हो जा.”
वे पीछा करने लगे और दोनों भाइयों को पकड़ लिया. अब
भूरे भेड़िये ने उन्हें चीर दिया और टुकडे-टुकडे करके खेतों में फेंक दिया.
राजकुमार इवान भूरे भेड़िये के सामने झुका और उसने
हमेशा के लिए उससे बिदा ली.
राजकुमार इवान सुनहरी अयाल वाले घोड़े पर बैठकर घर
आया, अपने अब्बा के लिए
अग्नि-पक्षी लाया, और अपने लिए –
दुल्हन, सुन्दरी एलेना.
त्सार बिरिन्देय खुश हो गया, बेटे से पूरी बात पूछने लगा. राजकुमार
इवान बताने लगा कि कैसे भूरे भेड़िये ने यह सब कुछ हासिल करने में उसकी मदद की, और कैसे भाइयों ने उसे नींद में मार डाला
था, और कैसे भूरे भेड़िये ने उनके टुकड़े-टुकड़े
कर दिए.
त्सार बिरेन्देय थोड़ा दुखी हुआ, मगर जल्दी ही शांत हो गया. और राजकुमार
इवान ने सुन्दरी एलेना से शादी कर ली और वे सुख से रहने लगे.
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