शुक्रवार, 18 मार्च 2016

Chiki Brik


चिकी-ब्रीक

लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
            अनुवाद: आ. चारुमति रामदास 
                                    
      
हाल ही की बात है, मैं बस जैसे मर ही गया था. हँसते-हँसते. और सब इस मीशा की वजह से.

एक बार पापा ने कहा:
”कल, डेनिस्का, हम घास चरने जाएँगे. कल मम्मा की भी छुट्टी है और मेरी भी. अपने साथ किसे ले जाएँगे?”
 “ज़ाहिर है, किसे – मीश्का को.”
मम्मा ने पूछा:
 “क्या उसे जाने देंगे?”
 “अगर हमारे साथ जा रहा है, तो जाने देंगे. उसमें क्या है?” मैंने कहा. “चलो, मैं उसे इन्वाइट करके आता हूँ.”

और मैं मीश्का के यहाँ भागा. जब उनके घर में घुसा तो कहा, “नमस्ते!” उसकी मम्मा ने मुझे जवाब नहीं दिया, बल्कि उसके पापा से कहा:
 “देखो, कैसा अच्छा बच्चा है, नहीं तो हमारा...”

मैंने उन्हें सारी बात समझाई, कि हम मीश्का को कल शहर से बाहर, गाँव में, घूमने के लिए इन्वाइट कर रहे हैं, और उन्होंने फ़ौरन इजाज़त दे दी, और अगली सुबह हम निकल पड़े.
बहुत मज़ा आ रहा था इलेक्ट्रिक ट्रेन में जाने में, बहुत ज़्यादा!

पहली बात, बेंचों के हत्थे चमक रहे थे. दूसरी बात, अलार्म चेन्स – लाल-लाल, बिल्कुल आँखों के सामने लटक रही हैं. और चाहे कितनी ही बार क्यों न जाओ, हमेशा उस चेन को खींचने का या कम से कम हाथ से सहलाने का मन करता है. और सबसे ख़ास बात – खिड़की से बाहर देख सकते हो, वहाँ एक ख़ास छोटी सी सीढ़ी थी. अगर कोई बहुत छोटा है, तो इस सीढ़ी पे खड़े होकर सिर बाहर निकाल सकता है. मैंने और मीश्का ने फ़ौरन एक खिड़की पे कब्ज़ा कर लिया, दोनों एक ही खिड़की से बाहर देख रहे थे, बहुत बढ़िया लग रहा था ये देखना कि चारों ओर एकदम नई घास बिखरी है और फ़ेन्सिंग्स पर रंग बिरंगी चादरें टंगी हैं, ख़ूबसूरत, जैसे जहाज़ों पर फ़हराते हुए झण्डे.

मगर पापा और मम्मा हमें चैन से देखने नहीं दे रहे थे. वे हर मिनट पीछे से पतलून पकड़ कर हमें पीछे खींचते और चिल्लाते:
 “बाहर सिर मत निकालो, कह रहे हैं तुमसे! वर्ना बाहर लुढ़क जाओगे!”
मगर हम बाहर झाँकते ही रहे. तब पापा ने चालाकी से काम लिया. उन्होंने सोच लिया था कि चाहे जो हो जाए, हमें खिड़की से हटा ही देंगे. इसलिए उन्होंने मज़ाकिया चेहरा बनाया और जानबूझ कर सर्कस वालों जैसी आवाज़ में कहा:
 “ऐ, बच्चा लोग! अपनी-अपनी जगह पे बैठ जाओ! ‘शो’ शुरू होने जा रहा है!”
मैं और मीश्का फ़ौरन खिड़की से दूर उछले और बगल में ही बेंच पे बैठ गए, क्योंकि मेरे पापा       मशहूर मसख़रे हैं, और हम समझ गए कि अब कोई मज़ेदार चीज़ होगी. कम्पार्टमेंट के सारे पेसेंजर्स ने भी अपने सिर घुमाए और वो पापा की तरफ़ देखने लगे. और वो, जैसे कुछ हुआ ही न हो, अपनी बात कहते रहे:
 “सम्माननीय दर्शकों! अब आपके सामने प्रोग्राम पेश करेगा काले जादू का, नींद में चलने का, और सम्मोहन का मास्टर, जिसे आज तक कोई हरा नहीं सका!!! पूरी दुनिया में जाने-माने जादूगर ऑस्ट्रेलिया और मलाखोव्का के चहेते, तलवारें, खाने के बन्द डिब्बे और जलते हुए इलेक्ट्रिक बल्ब्स निगलने वाले, प्रोफेसर एडवर्ड कन्द्रात्येविच किओ-सिओ! ऑर्केस्ट्रा – म्यूज़िक! त्रा-बी-बो-बूम-ल्या-ल्या! त्रा-बी-बो-बूम-ल्या-ल्या!”
सबकी नज़रें पापा पे जम गईं, और वो मेरे और मीश्का के सामने खड़े होकर बोले:
 “मौत की रिस्क वाला आइटम! ज़िन्दा तर्जनी को पब्लिक के सामने उखाड़ना! कमज़ोर दिल वालों से निवेदन है कि बेहोश होकर फर्श पे न गिर जाएँ, बल्कि हॉल से बाहर चले जाएँ. अटेन्शन, प्लीज़!”

 अब पापा ने अपने हाथ इस तरह से रखे कि मुझे और मीश्का को लगा, जैसे वो अपने दाएँ हाथ से बाईं तर्जनी को पकड़ रहे हैं. फिर पापा पूरे तन गए, लाल हो गए, उन्होंने चेहरा भयंकर बना लिया, मानो वो दर्द से मर रहे हैं, और फिर अचानक वो गुस्से में आ गए, अपनी हिम्मत बटोरी और...अपनी ऊँगली उखाड़ दी! हाँ, सही में!... हमने ख़ुद देखा...ख़ून नहीं था. मगर ऊँगली भी नहीं थी! वहाँ एकदम चिकनी जगह थी. ग्यारंटी से कहता हूँ!
पापा ने कहा:
 “वॉयला!”

मुझे ये भी नहीं मालूम कि इसका मतलब क्या होता है. मगर फिर भी मैंने तालियाँ बजाईं, और मीश्का ने कहा ‘वन्स मोर’.
तब पापा ने दोनों हाथ झटके, कॉलर के पीछे ले गए, और बोले:
 “आले-ओप्! चिकी-ब्रिक!”
और ऊँगली वापस लगा दी! हाँ-हाँ! न जाने कहाँ से पुरानी जगह पे नई ऊँगली आ गई! बिल्कुल वैसी ही, पहली वाली से ज़रा भी फ़रक नहीं, स्याही का धब्बा भी, वो भी वैसा ही था! मैं तो, बेशक समझ गया कि ये कोई जादू है और मैं हर हाल में पापा से जान लूँगा, कि इसे कैसे किया जाता है, मगर मीश्का तो बिल्कुल भी नहीं समझ पाया. उसने कहा:
 “ऐसा कैसे हो गया?”
पापा सिर्फ मुस्कुरा दिए:
 “जब बड़े हो जाओगे, तो काफ़ी कुछ जान जाओगे!”
तब मीश्का ने दयनीयता से कहा:
”प्लीज़, एक बार और दुहराइए! चिकी-ब्रिक!”

पापा ने सब कुछ फिर से दुहराया, ऊँगली उखाड़ी और वापस बिठा दी, और फिर से सॉलिड सरप्राइज़. इसके बाद पापा ने झुककर अभिवादन किया, और हम समझे कि ‘शो’ ख़तम हो गया, मगर, पता चला कि ऐसा कुछ भी नहीं था. पापा ने कहा:
”काफ़ी सारी फ़रमाइशों को देखते हुए, ‘शो’ जारी रहता है! अब आप देखेंग़े फ़कीर की कुहनी पर घिसटता हुआ सिक्का! माएस्ट्रो, त्रिबो-बि-बुम-ल्या-ल्या!”
और पापा ने सिक्का निकाला, उसे अपनी कुहनी पे रखा और इस सिक्के को सरकाते हुए अपने कोट में गिराने की कोशिश करने लगे. मगर वो कहीं भी नहीं सरका, बल्कि पूरे समय गिरता ही रहा, तब मैं पापा के ऊपर ख़ूब हँसने लगा. मैंने कहा:
”ऐख़, ऐख! ये फ़कीर है! सिर्फ मुसीबत, न कि फ़कीर!”
सब लोग ठहाका लगाने लगे, पापा ख़ूब लाल हो गए और चिल्लाए:
 “ऐ, तू, सिक्के! फ़ौरन घिसट! वर्ना मैं तुझे उस अंकल को दे दूँगा आइस्क्रीम ख़रीदने के लिए! तू भी क्या याद रखेगा!”   
और सिक्का मानो पापा से डर गया और फ़ौरन कुहनी पर घिसटने लगा. और ग़ायब हो गया.
 “क्या, डेनिस्का, हार गया?” पापा ने कहा. “कौन चिल्ला रहा था कि मैं मुसीबत-फ़कीर हूँ? और अब देखिए: तमाशा-मूकाभिनय! खोए हुए सिक्के का बेहतरीन बच्चे मीश्का की नाक से निकलना! चिकी-ब्रिक!”
और पापा ने मीश्का की नाक से सिक्का खींच कर बाहर निकाला. ओह, दोस्तों, मैं नहीं जानता था कि मेरे पापा इत्ते सुपर हैं! मीश्का तो गर्व से दमक रहा था. वो अचरज से चमक रहा था और उसने फिर से ज़ोर से चिल्लाकर पापा से कहा;
 “प्लीज़, एक बार और चिकी-ब्रिक दुहराइए!”

पापा ने फिर से सब कुछ दुहराया, और इसके बाद मम्मा ने कहा:
 “इंटरवल! अब हम रेस्टारेंट में जाएँगे.”
और उसने हमें एक-एक सॉसेज वाला सैण्डविच दिया. मैं और मीशा इन सैण्डविचेस पे झपट पड़े, हम खा रहे थे, पैर हिला रहे थे, और इधर-उधर देख रहे थे. अचानक मीश्का बिना बात के बोल पड़ा:
 “मुझे मालूम है कि आपकी हैट किसके जैसी है.”
मम्मा ने पूछा:
 “अच्छा, बता – किसके जैसी है?”
 “कास्मोनॉट के हेल्मेट जैसी.”
पापा ने कहा:
 “करेक्ट. वाह, मीश्का, बिल्कुल सही निरीक्षण किया! और सच में, ये हैट कास्मोनॉट के हेल्मेट जैसी ही है. कुछ नहीं कर सकते, फ़ैशन कोशिश करती है कि मॉडर्न ज़माने से पिछड़ न जाए. अच्छा, मीश्का, इधर आ!”
और पापा ने हैट लेकर मीश्का के सिर पे रख दी.
 “बिल्कुल पोपोविच!” मम्मा ने कहा.

मीश्का वाक़ई में किसी छोटे कास्मोनॉट जैसा था. वो इतनी शान से बैठा था, और इतना मज़ेदार दिख रहा था, कि वहाँ से गुज़रने वाले सब लोग उसकी तरफ़ देखते और मुस्कुराने लगते.

और पापा भी मुस्कुरा रहे थे, और मम्मा भी, और मैं भी मुस्कुरा रहा था कि मीश्का इतना प्यारा है.
फिर हमारे लिए एक-एक आइस्क्रीम ख़रीदी गई, और हम उसे खाने लगे और चाटने लगे, मगर मीश्का ने मुझसे पहले ख़तम कर ली और फिर से खिड़की की तरफ़ गया. उसने चौखट पकड़ ली, छोटी वाली सीढ़ी पर चढ़ा और बाहर की ओर झुका.

हमारी इलेक्ट्रिक ट्रेन तेज़ और एक समान गति से भागी जा रही थी, खिड़की से बाहर नज़ारे मानो उड़ रहे थे, और ऐसा लग रहा था कि मीश्का को कास्मोनॉट वाली हेल्मेट पहन कर खिड़की से बाहर सिर निकालने में मज़ा आ रहा था, वो इतना ख़ुश था कि उसे दुनिया में किसी और चीज़ की ज़रूरत नहीं थी. मैं उसकी बगल में खड़ा होना चाह रहा था, मगर तभी मम्मा ने मुझे कुहनी मारी और आँखों से पापा की तरफ़ इशारा किया.

पापा हौले से उठे और पंजों के बल चलते हुए कम्पार्टमेण्ट के दूसरे हिस्से में गए, वहाँ भी खिड़की खुली थी, और उसमें से कोई भी नहीं देख रहा था. पापा बड़े रहस्यमय लग रहे थे, चारों ओर सब लोग शांत हो गए और पापा की तरफ़ ध्यान देने लगे. वो दबे पाँव इस दूसरी वाली खिड़की के पास आए, सिर बाहर निकाला और सामने देखने लगे, ट्रेन की दिशा में, उसी तरफ़, जिधर मीश्का देख रहा था. फिर पापा ने धीरे-धीरे अपना दाहिना हाथ बाहर निकाला, सावधानी से मीश्का की ओर बढ़ाया और अचानक बिजली की तेज़ी से उसके सिर से मम्मा की हैट खींच ली! पापा फ़ौरन खिड़की से दूर उछले और हैट को पीठ के पीछे छुपा लिया, वहीं उसे बेल्ट से लटका दिया. मैंने बड़ी अच्छी तरह ये सब देखा. मगर मीश्का ने तो नहीं देखा! उसने सिर पकड़ लिया, वहाँ मम्मा की हैट न पाकर डर गया, खिड़की से पीछे उछला और डरते हुए मम्मा के सामने खड़ा हो गया. मम्मा चहकी:
 “क्या बात है? क्या हुआ, मीश्का? मेरी नई हैट कहाँ है? कहीं हवा में तो नहीं उड़ गई? मैंने तुझसे कहा था: बाहर सिर न निकाल. मेरा दिल मुझसे कह रहा था, कि मैं बिना हैट के रह जाऊँगी! अब मैं क्या करूँ?”

मम्मा ने दोनों हाथों में अपना चेहरा छुपा लिया और कंधे हिलाने लगी, जैसे वो ज़ोर ज़ोर से रो रही हो. बेचारे मीश्का की ओर देखकर बड़ी दया आ रही थी, वो धीमी आवाज़ में बुदबुदा रहा था:
 “रोइए नहीं...प्लीज़. मैं आपको नई हैट ख़रीद दूँगा...मेरे पास पैसे हैं...सैंतालीस कोपेक. मैंने डाक टिकटों के लिए इकट्ठा किए थे...”
उसके होंठ थरथरा रहे थे, और पापा, बेशक, ये बर्दाश्त न कर सके. उन्होंने फ़ौरन अपना चेहरा मज़ाकिया बना लिया और सर्कस वालों जैसी आवाज़ में चिल्लाए:
 “नागरिकों, अटेन्शन प्लीज़! रोइए नहीं और शांत हो जाइए! आप ख़ुशनसीब हैं कि महान जादूगर एडवर्ड कन्द्रात्येविच किओ-सिओ को जानते हैं! अभी एक शानदार ट्रिक दिखाई जाएगी: “हैट की वापसी, जो नीली एक्स्प्रेस से बाहर गिर गई थी”. होशियार! अटेन्शन! चिकी-ब्रिक!”

और पापा के हाथों में मम्मा की हैट दिखाई दी. मैं भी नहीं देख पाया था, कि कितनी चालाकी से पापा ने उसे पीठ के पीछे से निकाला था. सब लोग ‘आह-आह!’ करने लगे. मीश्का का चेहरा ख़ुशी से चमकने लगा. अचरज के मारे उसकी आँख़ें माथे तक चढ़ गईं. वो इतना उत्तेजित था, कि बस उड़ने ही वाला था. वो जल्दी से पापा के पास गया, उनसे हैट ली, भागकर वापस आया और पूरी ताक़त से उसे सचमुच में खिड़की से बाहर फेंक दिया.
फिर वो मुड़ा और मेरे पापा से बोला;
 “प्लीज़, एक बार और दुहराइए...चिकी-ब्रिक!”

तभी तो ये हुआ कि हँसी के मारे मैं बस मर ही नहीं गया.


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