नीले
चेहरे वाला आदमी
लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
हम वोलोद्या
अंकल की समर-कॉटेज के पास लट्ठों पर बैठे थे. पापा अखरोट के पेड़ की एक बड़ी टहनी को
मेरे धनुष के लिए चिकना कर रहे थे, और मैं धनुष की प्रत्यंचा के लिए रस्सी को मोम
लगा रहा था.
हर तरफ़ सुकून
और ख़ामोशी थी, सिर्फ गली में रोड-रोलर शोर मचा रहा था. इस मशीन में पहियों के बदले
दो रोलर्स थे – मशीन हमारी बस्ती में डामर का रोड बना रही थी.
इस गाड़ी में
बैठने की सीट्स बेहद ऊँची थी, और जब वो हमारे पास से गुज़रती, तो हमारी फ़ॆन्सिंग के
ऊपर सड़क पर काम करने वाले एक ‘वर्कर’ का सिर तैर जाता. उसका चेहरा पूरा नीला था,
क्योंकि उसकी दाढ़ी बहुत जल्दी बढ़ती थी. वह हर रोज़ ‘शेव’ करता था, और इससे उसका
चेहरा हमेशा नीला रहता था. इस नीले चेहरे की बगल में एक गुलाबी लड़की का चेहरा भी
तैरता, ये उसकी सहायक थी, उसकी ख़ूबसूरत काली-काली आँखें और लम्बी-लम्बी पलकें थीं.
मुझे मालूम था
कि ये ‘वर्कर्स’ सोसेन्की में अपनी ‘बेस’ पे लंच के लिए गए हैं, क्योंकि वो रात ही
से काम करना शुरू कर देते थे, जब सब लोग सो रहे होते और धूप तेज़ न हुई होती.
इस नीले चेहरे
वाले अंकल ने एक बार मुझे एक टहनी से पैरों पर ज़ोर से मारा था, क्योंकि जब वो चला
गया था, तो मैंने उसकी मशीन चलाई थी. उसने जमके मेरी धुलाई की थी, और मैं उसे
पसन्द नहीं करता था. मैं डरता भी था कि कहीं अब पापा से मेरी शिकायत न कर दे, कि
मैं बहुत शरारत करता हूँ, मगर उसने, थैंक्स गॉड, मुझे देखा नहीं और सीधे निकल गया.
तो, मैं और
पापा एक दूसरे के पास लट्ठों पर बैठे थे, मैं सीटी बजा रहा था, और पापा ख़ामोश थे,
और हम एक दूसरे की ओर देखकर सिर्फ मुस्कुरा देते थे, क्योंकि हमें इस बस्ती में
रहना बहुत अच्छा लगता था. हमें यहाँ आये छह दिन हो गए थे, मेरी पड़ोस के लड़कों से
दोस्ती हो गई थी, अपने कुत्तों से फिर से मुलाक़ात हो गई थी, और मैं उनमें से हरेक
को उसके नाम और उपनाम से जानता था. हम बोटिंग करते, अलाव जलाते और मशरूम्स चुनने
जंगल में जाते और देखते कि कैसे गाय और बछड़ा दूर खेत में भाग रहे हैं.
आज मैं और पापा
पहले तीरंदाज़ी करने वाले हैं, और उसके बाद पतंग उड़ाने वाले हैं – ऊँची, ख़ूब ऊँची,
सूरज के ठीक नीचे तक.
जब मैं ये सब
सोच रहा था, तभी अचानक गेट बजा, और हमारे पड़ोसी अलेक्सान्द्र सिम्योनिच आँगन में आए.
उनके पास अपनी गाड़ी है – ‘वोल्गा’. वो पापा के दोस्त हैं.
वो हमारे पास
बैठ गए और बोले:
“मुसीबत!”
“क्या हुआ?”
अलेक्सान्द्र
सिम्योनिच ने कहा:
“उसकी, पता है, शादी है! तो, मुझे क्या लेना
देना है? आज शादी है - आज शादी, कल बाप्तिज़्मा, परसों नामकरण!...तो मुझे क्या करना
चाहिए!...बिना ड्राइवर के बैठा रहूँ?” उन्होंने मुट्ठी से किसी को धमकाया. “मेरे
पास तुम्हारी शादी से ज़्यादा ज़रूरी काम है!”
पापा ने कहा:
“संक्षेप में बताइए.”
और
अलेक्सान्द्र सिम्योनिच ने बताया, कि उनके ड्राइवर लेशा ने अपनी पहचान की एक लड़की
से शादी का फ़ैसला किया है और आज उसकी शादी है.
“करने दो शादी,” पापा ने कहा, “आपको क्या
प्रॉब्लेम है?”
मगर
अलेक्सान्द्र सिम्योनिच गरम हो गए.
“मुझे शहर जाना
है,” उन्होंने कहा, “ये बात है! समझ में आया?”
और उन्होंने
अपनी हथेली को गले पर फेरा. जैसे, ज़िन्दगी और मौत का सवाल हो. मगर पापा ख़ामोश रहे.
“आहा,” अलेक्सान्द्र सिम्योनिच ने व्यंग्य से
कहा, “ख़ामोश बैठे हैं? डंड़ियाँ बना रहे हैं? और कॉम्रेडशिप की भावना कहाँ है?”
”भाई, छुट्टी
है,” पापा ने कहा, “बेटे के साथ भी तो वक़्त गुज़ारना चाहिए.”
“वो कहीं नहीं
जाएगा,” अलेक्सान्द्र सिम्योनोविच ने ज़ाहिर किया और मेरी पीठ थपथपाई. “हम उसे भी
अपने साथ ले जाएँगे! लड़के को थोड़ी सी ख़ुशी भी देना चाहिए. घूम आएगा!”
आख़िर मै समझ ही
गया कि वो क्या कहना चाहते हैं. ये मैं फ़ौरन ही क्यों नहीं समझा? वो तो गाड़ी में
जा नहीं सकते. अपनी ख़ुद की ‘वोल्गा’ चलाना उन्हें नहीं आता. मगर पापा को आता है.
‘वोल्गा’ भी, ‘पबेदा’ भी, ‘गाज़-51’ भी, और जो भी चाहो. क्योंकि पापा के पास
ड्राइविंग लाइसेन्स है, वो मॉस्को-खबारोव्स्क ऑटो-रेस में भी गए थे, बस अपनी ख़ुद
की कार उनके पास नहीं है, मगर ड्राइविंग वो बढ़िया करते हैं! और अलेक्सान्द्र
सिम्योनिच हमारे पास इसलिए आए हैं कि पापा उन्हें शहर ले जाएँ और वापस ले आएँ.
हालाँकि मैं
देख रहा था कि पापा का जाने का मन नहीं है, क्योंकि वो धूप ताप रहे थे, और उन्हें
पुरानी पतलून पहनकर गोदाम के पास बैठना और चुपचाप टहनी छीलना अच्छा लगता है, और
उन्हें कहीं भी जाना अच्छा नहीं लगता, मगर मैं तो बहुत ख़ुश हो गया, कि गाड़ी में
‘ज़ूम’ से जाने को मिलेगा, और इसलिए मैं फ़ौरन चीखा:
“चलो, जाएँगे! कोई बहस ही नहीं!”
अलेक्सान्द्र
सिम्योनिच भी ऐसे उछले, जैसे किसी ने काटा हो, और ज़ोर से गरजे:
“राईट! हुर्रे! चलो!...”
अब पापा भी मान
गए और उन्होंने सिर्फ इतना कहा:
“सिर्फ जाएँगे-और-आएँगे. जल्दी से! जिससे तीन
बजे तक वापस!”
अलेक्सान्द्र
सिम्योनिच ने ठहाका लगाया और सीने पे हाथ रखा:
“दो बजे तक!” और क़सम खाई, “नहीं तो मैं इसी जगह
धरती में समा जाऊँ! दो बजते-बजते हम यहाँ होंगे. बिल्कुल घड़ी की नोंक पर!”
मैं और पापा
कपड़े बदलने चले गए, फिर हमने गाड़ी को अलेक्सान्द्र सिम्योनिच के आँगन से बाहर
निकाला, और वो लोग सामने बैठे, पापा स्टीयरिंग पे. मुझे पीछे वाली सीट पर भेज दिया
और दोनों दरवाज़ों को लॉक कर दिया. मैं फ़ौरन पापा की पीठ के पीछे खड़ा हो गया, जिससे
कि सामने की ओर देख सकूँ, रास्ते पर, स्पीडोमीटर पर, जंगल को, सामने से आने वाली
गाड़ियों को, और ये कल्पना कर सकूँ कि गाड़ी मैं चला रहा हूँ, मैं, न कि पापा, और
ये, कि ये गाड़ी नहीं, बल्कि स्पेस-शिप है, और आकाश में उड़ने वाला, ठण्डे सितारों
पर जाने वाला – मैं पहला इन्सान हूँ.
मुझे गाड़ी में
जाने में बहुत मज़ा आ रहा था, बेहद ख़ुशी हो रही थी! चारों ओर ख़ूब हरियाली थी. घास,
और बड़े-बड़े पेड़, और पतले-पतले बर्च के पेड़ – चारों ओर ख़ूब हरियाली थी. हवा इतनी
तेज़ और गर्माहट भरी थी, और वो भी हरियाली की सुगंध से सराबोर थी.
मैं पापा के
पीछे खड़ा था और सीटी बजा रहा था, सामने रास्ते की ओर देख रहा था; रास्ता चाँदी की
तरह चमक रहा था, और, अगर सिर नीचा करूं, तो दिखाई दे रहा था कि कैसे गर्म हवा उसके
ऊपर गोल-गोल चक्कर लगा रही है.
कहीं रास्ते
में एक बोर्ड गिरा पड़ा है – ज़ाहिर है, कि किसी ट्रक ने गिरा दिया है, या घास की
छोटी सी पूली, साफ़ समझ में आ रहा था कि वो रास्ते पे कैसे आई, या ड्राइवर का हाथ
पोंछने का कपड़ा. ऐसा लग रहा था, कि रास्ता बता रहा है कि मेरे, पापा के और
अलेक्सान्द्र सिम्योनिच के जाने से पहले उसके ऊपर से कौन गुज़रा था.
अब हम काफ़ी
स्पीड से जा रहे थे, स्पीडोमीटर 70 दिखा रहा था, और अंत में मैं स्पेस-शिप का खेल
खेलने ही लगा. मैंने उपकरणों को चालू किया, पैडल्स दबाए, लीवर्स खटखटाए, और उड़ने
लगा और ‘मार्स’ और ‘मून’ के क़रीब से, और भी ज़्यादा-ज़्यादा दूर, और जल्दी ही मैंने
फ़ैसला कर लिया कि भारहीनता की स्थिति आ गई है, और मैं उछलने–कूदने लगा, जिससे कि
जाँच कर सकूँ कि मैं भार वाला हूँ या भारहीन.
मगर पापा ने
बिना मुड़े कहा:
“चुपचाप खड़ा रह!”
मैं फिर से
रास्ते की ओर देखने लगा. जैसे ही मैंने सामने की ओर नज़र डाली, मैंने अचानक देखा कि
एक छोटी लड़की रास्ते से गुज़र रही है! मतलब, वो ठीक हमारे कार के सामने ही भाग रही
है. भाग रही है- बस भागती जा रही है. ये आई कहाँ से, अब तक तो नहीं थी. जैसे ज़मीन
के नीचे से बाहर उछली हो! हमारी कार तेज़ी से दाईं ओर मुड़ी, और भयानक ज़ोर से हॉर्न
बजा...मैंने बस इतना देखा, कि लड़की भी दाईं ओर मुड़ी, फिर से कार के नीचे, और तभी
एक चिंघाड़ती सी आवाज़, खड़खड़ाहट और चीत्कार सुनाई दी, ऐसा लगा जैसे कार को किसी ने
पूँछ पकड़ कर खींच लिया हो, इसके आगे कुछ भी समझ में नहीं आया. मुझे लगा कि मेरे
भीतर से इलेक्ट्रिक शॉक गुज़र गया, और कोई चीज़ बड़ी दयनीयता से झनझना रही है, और फिर
जैसे चूर चूर हो गई है, हॉर्न लगातार बजे जा रहा था, और मैं पूरा सामने की सीट से
चिपक गया, मैंने उसे हाथों से, कुहनियों से, सीने से कस के पकड़ा था, और अचानक
मैंने देखा कि खिड़की से बाहर बर्च के पेड एक साथ बाईं ओर गिर गए हैं, जैसे उन्हें
काट दिया हो, वे फ़ौरन फिर से दिखाई दिए और फिर से बाईं ओर गिर गए...इसके बाद सब
कुछ जैसे ठहर गया. मैं चारों – हाथों-पैरों पर खड़ा था. मेरे ऊपर थी खुली खिड़की,
जैसे मैं पनबुब्बी में था या किसी कुँए के अन्दर. फिर अचानक, न जाने क्यों, मैं
बिल्ली की तरह घिसटने लगा, और जो हाथ आया उसी को पकड़ लिया – चाहे कवर हो या कोई
हैंडिल हो, जो भी मिला उसीको – और, एक पल में कूदकर बाहर आ गया.
हमारी कार ढलान
पे जैसे एक करवट पड़ी थी. उसमें कोई काँच नहीं थे. इंजिन के नीचे से थोड़ा सा धुँआ
निकल रहा था. छत पुरानी हैट की तरह चपटी हो गई थी. कार लगातार हॉर्न बजाए जा रही
थी. उसके पहिए ऐसे घूम रहे थे, जैसे उल्टे पड़े भौंरे के पंजे चलते रहते हैं.
दूसरी खिड़की से
एक आदमी बाहर आया. ये अलेक्सान्द्र सिम्योनिच थे. वो बाहर निकल कर फ़ौरन मेरे पास
आए.
उन्होंने कहा;
“क्या तुझे मालूम है कि मेरा बायाँ जूता कहाँ
है?”
सही में, उनके
एक पैर में जूता नहीं था...उन्होंने कार की तरफ़ देखा, अपना सिर पकड़ लिया और फिर से
कहा;
“समझ में नहीं आता कि जूता कहाँ चला गया...ढूँढ़
तो.”
मैं घास में
ढूँढ़ने लगा.
जूता कहीं भी
नहीं था, और कार पूरे समय दुख भरी आवाज़ में हॉर्न बजाए जा रही थी. मैं ये सुन न
सका, मेरे दिमाग़ में चीटियाँ रेंगने लगीं, और मैं उससे दूर हट गया.
रास्ते के
किनारे पे एक लॉरी रुकी, उसमें से सिपाही कूदे और नीचे की ओर, हमारे पास, दौड़े. एक
सिपाही ने कार में झाँक़ा और हाथ हिला-हिलाकर औरों से कहने लगा:
“यहाँ एक आदमी
है! जल्दी!...”
सिपाहियों ने
कार को पकड़ा और उठाकर वापस पहियों पर रख दिया, वो हॉर्न बजाए ही जा रही थी, जैसे
पुकार रही हो. तभी मुझे याद आया, कि वहाँ, स्टीयरिंग पे, मेरे पापा बैठे हैं!
मैं इस बारे
में भूल कैसे गया! मुझे बहुत डर लगा...मैं कार के पास भागा.
पापा बैठे थे,
बुरी तरह से गुड़ीमुड़ी हुए, पूरा शरीर पीछे की ओर मुड़ गया था, जैसे वह पीछे वाली
खिड़की से देख रहे हों. उनका हाथ स्टीयरिंग पर था, वो हॉर्न दबा रहा था. कलाई के
पास वाली हाथ की हड्डी स्टीयरिंग व्हील में फँस गई थी. हाथ नीला पड़ गया था, फूल
गया था, और उसमें से ख़ून बह रहा था.
सिपाहियों ने
स्टीयरिंग व्हील को उखाड़ा. उन्होंने दरवाज़े खोले, और पापा बाहर आए. उनका चेहरा सफ़ेद
हो गया था, और आँखें सफ़ॆद थीं, हाथ लटक रहा था, जैसे वो किसी और आदमी का हाथ हो.
मैं पापा के पास भागा और उनके सामने खड़ा हो गया, मगर वो मुझे देख नहीं पाए,
क्योंकि इसी समय मोटरसाइकल पर मिलिशियामैन आ गए थे.
उनमें से एक ने
कहा:
“लाइसेन्स दिखाइए!”
पापा साइड से
खड़े थे, और इस मिलिशियामैन ने उनका हाथ नहीं देखा था, मगर पापा धीरे-धीरे, फ़ूहड़पन
से अपनी दाईं जेब में अपना बायाँ हाथ डालने लगे मगर हाथ अन्दर डाल ही नहीं सके. तब
मैं उनके बिल्कुल पास सरका और लाइसेन्स निकाला. पापा ने मेरी ओर देखा. ज़ाहिर था कि
उन्हें, सिर्फ अभी याद आया कि मैं पूरे समय उनके साथ था. उन्होंने बाएँ हाथ से
मेरे कंधे को पकड़ा और मेरे बिल्कुल ऊपर झुके. उन्होंने, जैसे बहुत दूर से, पूछा:
“ये तू है?” और
वो मुझे झकझोरने लगे, और चिल्लाए, “कहाँ दर्द है? बोल...”
मैंने कहा:
“कहीं भी दर्द नहीं है. मैं एकदम सही-सलामत
हूँ...”
पापा नीचे बैठ
गए और पहिए पर लुढ़क गए. उनका चेहरा गीला हो रहा था. उनके माथे से पसीने की
मोटी-मोटी बूँदें बह रही थीं. वो अचानक एक साईड पे फिसलने लगे, जैसे लेटना चाहते
हों. मैंने फ़ौरन उनकी कमीज़ पकड़ ली, जिससे वो ज़मीन पे न लेटॆं. मगर तभी उनके पास सफ़ेद
एप्रन पहने एक आदमी बढ़ा. वो पापा के सामने घुटनों पर बैठा और उसने अचानक उनका
दायाँ हाथ पकड़ लिया.
पापा बोले:
“भाड़ में जाओ...”
डॉक्टर उठ कर
खड़ा हो गया, वो बोला:
“फ्रेक्चर. डबल.”
और उसने पापा
को उठाया और उन्हें बड़ी गाड़ी के पास लाया. चारों ओर बहुत सारे लोग इकट्ठे हो गए
थे, और रास्ते के किनारे पर बसें, और ‘मस्क्विच’ और ‘गाज़िक’ गाड़ियाँ खड़ी थीं.
मैंने देखा कि हमारे रास्ते वाला रोड-रोलर भी वहाँ था. मैं डॉक्टर के और पापा के
पीछे गया, मगर भीड़ ने मुझे दूर धकेल दिया और मैं बड़ी मुश्किल से पीछे से आगे सरकने
की कोशिश कर रहा था. जब पापा ढलान के ऊपर चढ़े, तो मैंने देखा कि उनके पास नीले
चेहरे वाला ‘वर्कर’ भागा, वो ही जिसने बहुत पहले मेरे पैरों पर टहनी से मारा था.
उसने चलते-चलते पापा से कुछ कहा, और पापा ने सिर हिलाया. फिर पापा ‘एम्बुलेन्स’
में बैठने लगे, और मैं समझ गया कि वो फिर से मेरे बारे में एकदम भूल गए हैं. मगर,
मैंने फ़ैसला कर लिया कि मैं पापा के पीछे और गाड़ी के पीछे भागूँगा, जब तक उन्हें
पकड़ नहीं लेता. तभी पापा मुड़े और उन्होंने चिल्लाकर मुझसे कुछ कहा. मैं सुन नहीं
पाया था कि उन्होंने क्या कहा था. गाड़ी आगे बढ़ी और चल पड़ी , मैं उसके पीछे भागा,
मगर चढ़ाव पे नहीं भाग सका – बहुत ऊँचा था, और मैं रुक गया, क्योंकि दिल बुरी तरह
से धड़क रहा था.
ऊपर से हमारी
‘वोल्गा’ दिखाई दे रही थी. वो नष्ट हुए टैंक की तरह खड़ी थी. उसके पीछे से
अलेक्सान्द्र सिम्योनिच निकले और बोले:
“ज़रा सोच, जूता डिक्की में पड़ा था. फ़न्टास्टिक!”
मिलिशियामैन
उनके पास आया.
“तो,” उसने कहा
और अपनी नोटबुक में कुछ लिखने लगा, “अब अपनी बात जारी रखते हैं...और ये लड़का, शायद
कवच पहने पैदा हुआ था. एक भी खरोंच नहीं! ये, शायद, आपकी कार है?”
मैं उससे पूछना
चाहता था कि पापा को कब वापस लाएँगे, मगर तभी ऊपर से कोई चिल्लाया:
“कॉम्रेड चीफ़! हम बच्चे को अपने साथ ले जा रहे
हैं, यहाँ धूप में क्यों तपता रहे!...हम उसकी वाली सड़क पर ही डामर बिछा रहे हैं.
ठीक उनके घर के पास. बच्चे, इधर आओ!”
ये नीले चेहरे वाला आदमी अपनी गाड़ी से चिल्ला
रहा था.
मिलिशियामैन ने
पूछा:
“जाएगा?”
मुझे मालूम
नहीं था कि क्या जवाब देना है, क्योंकि मुझे अलेक्सान्द्र सिम्योनिच को अकेला छोड़
कर जाना अच्छा नहीं लग रहा था. वो समझ गए, कि मैं क्या सोच रहा हूँ, और बोले:
“कोई बात नहीं, चला जा...”
मगर मैं अपनी
जगह से नहीं हिला.
तब ऊपर से वो
सुन्दर लड़की कूदी, जो नीले चेहरे वाले के पास बैठी थी. उसने मेरा हाथ पकड़ा और कहा:
“और हम उसे स्टीयरिंग पकड़ने देंगे. हाँ, वान्या?
कॉम्रेड चीफ़, आप प्लीज़ उसे स्टीयरिंग पकड़ने की इजाज़त दीजिए. वो ख़ुद हमारी गाड़ी
चलाएगा, पक्का प्रॉमिस! वो, अगर चाहे, तो हॉर्न भी बजाएगा, सब लोग उससे जलेंगे, और
आप, कॉम्रेड चीफ़, शायद, आप भी जलेंगे. हाँ? आ जा यहाँ, बच्चे, मेरे सोना, ले,
स्टीयरिंग पकड़, तू तन्दुरुस्त रहे!”
वो मेरे ऊपर इस
तरह गा रही थी, जैसे बिल्कुल छोटॆ बच्चे के लिए गाते हैं, और उसने मुझे नीले आदमी
के सामने बिठा दिया. उससे पेट्रोल की तेज़ गंध आ रही थी. उसने मेरे हाथों को
स्टीयरिंग पे रख दिया, और बगल में अपने हाथ रखे, और मैंने देखा कि उसकी कैसी
मोटी-मोटी ऊँगलियाँ हैं, काली किनार वाले चौड़े-चौड़े नाखूनों वाली.
उसने पैडल
दबाया, लीवर्स को खटखट किया, और हम तीनों उस डरावनी जगह से दूर चल पड़े.
चारों ओर
हरियाली थी – घास, और पतले-पतले बर्च के पेड़, - और हवा से हरियाली की ख़ुशबू आ रही
थी, जैसे कि कुछ हुआ ही न हो. हम चुपचाप जा रहे थे, और, हालाँकि मैं हाथों से
स्टीयरिंग पकड़े था, मैं कुछ भी नहीं खेल रहा था. मेरा दिल ही नहीं चाह रहा था. और
नीले चेहरे वाले अंकल ने अचानक अपनी असिस्टेंट से कहा;
‘तू देख, फ़ीर्का, कैसे पापा हैं इस शैतान के! हर
कोई ऐसी रिस्क नहीं लेगा...मतलब, अनजान बच्ची की ज़िन्दगी नहीं छीनना चाहते थे.
गाड़ी तोड़ दी! हालाँकि, गाड़ी तो लोहे की है, उसका तो ये होता ही रहता है, वो
दुरुस्त हो जाएगी. मगर बच्ची को कुचलना नहीं चाहते थे, ये सबसे महत्वपूर्ण बात
है...नहीं चाहते थे, बिल्कुल नहीं. अपने ख़ुद के बेटे को ख़तरे में डाल दिया. मतलब,
आदमी की रूह बहादुर है, दमकती हुई है....मतलब, महान रूह है. ऐसे लोगों की तो,
फीर्का, युद्ध के मोर्चे पर बेहद इज़्ज़त करते थे...
उसने मेरी नाक
पकड़ कर दबाई, जैसे होर्न हो....
“ज़्ज़्ज़्ज़ीन्....”
मेरे पापा के
लिए उसने इतनी अच्छी बातें कही थीं, कि मैंने उसकी मोटी ऊँगली पकड़ ली और रो पड़ा.
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