नीले आसमान में लाल गुब्बारा
लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
अचानक हमारा
दरवाज़ा खुल गया और कॉरीडोर से ही अल्योन्का चिल्लाई:
”बड़ी दुकान में
बसंत का बज़ार!”
वह ख़ौफ़नाक ढंग
से चिल्ला रही थी, और उसकी आँख़ें बटन जैसी गोल-गोल और बदहवास हो रही थीं. पहले
मैंने सोचा कि किसी का खून हो गया है. मगर उसने फिर से गहरी साँस ली और लगी
चिल्लाने:
“चल, भागें, डेनिस्का! जल्दी! वहाँ फ़ेन वाला
‘क्वास’ (क्वास – खट्टा फ़ेन वाला पेय- अनु.) है! म्यूज़िक बज रहा है, और तरह
तरह की गुड़िया है! चल, भागें!”
वो ऐसे चिल्ला
रही है, जैसे कहीं आग लग गई हो. इससे मैं भी कुछ परेशान हो गया, और मेरे पेट में
गुड़गुड़ी होने लगी, मैं फ़ौरन कमरे से बाहर उछला.
मैंने
अल्योन्का का हाथ पकड़ा और हम पागलों की तरह बड़ी दुकान में भागे. वहाँ लोगों की येSS भीड़ लगी थी और
उसके बिल्कुल बीचोंबीच न जाने किस चीज़ से बनाए हुए बेहद चमकदार औरत और आदमी खड़े
थे, खूब बड़े, छत तक पहुँच रहे थे, और, हालाँकि वो नकली थे, मगर आँखें फ़ड़फ़ड़ा रहे थे
और निचले होंठ हिला रहे थे, मानो बोल रहे हों. आदमी चिल्लाया:
“बसंSSत–बज़ाSSर! बसंSSत–बज़ाSSर!”
और, औरत:
“आपका स्वागत है! आपका स्वागत है!”
हम बड़ी देर तक
उनकी तरफ़ देखते रहे, और फिर अल्योन्का ने कहा:
“ये चिल्लाते कैसे हैं? ये तो असली नहीं हैं
ना!”
“समझ में नहीं आ रहा,” मैंने कहा.
तब अल्योन्का बोली:
“मुझे मालूम है. वो ख़ुद नहीं चिल्ला रहे हैं!
उनके अन्दर ज़िन्दा आर्टिस्ट बैठे हैं, वो पूरे दिन चिल्लाते रहते हैं. और ख़ुद
रस्सियाँ खींचते हैं, इस वजह से गुड़ियों के होंठ हिलते हैं.”
मैं ठहाका मार
कर हँस पड़ा:
“साफ़ पता चल रहा है, कि तू छोटी है. जभी तुझे लगता
है कि इन गुड़ियों के पेट में पूरे-पूरे दिन आर्टिस्ट्स बैठे रहते हैं. क्या तू सोच
सकती है? पूरे दिन गुड़ी-मुड़ी होकर – थक जाएगी! और खाना-पीना तो पड़ेगा ना? और, और
भी बहुत कुछ...ऐह, तू, ठस दिमाग़! ये उनके भीतर रेडिओ चीख़ रहा है.”
अल्योन्का ने
कहा;
“बात को इतना भी न बढ़ा!”
और हम आगे चले.
चारों ओर भीड़ ही भीड़ थी, सभी बिना गरम कपड़ों के थे, सभी ख़ुश थे; और म्यूज़िक बज रहा
था, और एक अंकल लॉटरी का टिकट घुमा घुमा कर चिल्ला रहा था:
जल्दी जल्दी
आईये,
चीज़ों की लॉटरी
के टिकट पाईये!
हर कोई जीतेगा
जल्दी
’वोल्गा’ कार
हल्की!
और कुछ जोशीले
’मस्क्विच’ भी
जीतेंगे!
उसके पास भी हम
हँस रहे थे, कैसे ज़ोर से चिल्ला रहा है, और अल्योन्का ने कहा:
“फिर भी, जब कोई ज़िन्दा चीज़ चिल्लाती है, तो
रेडिओ के मुक़ाबले में ज़्यादा अच्छा लगता है.
हम काफ़ी देर तक
बड़े लोगों की भीड़ में दौड़ते रहे और बहुत ख़ुश होते रहे, किसी फ़ौजी अंकल ने
अल्योन्का को बगल से पकड़ कर उठा लिया, और उसके दोस्त ने दीवार में लगा हुआ स्विच
दबा दिया, वहाँ से फ़ौरन यूडीकोलोन का फ़व्वारा निकला, और जब उसने अल्योन्का को ज़मीन
पे रखा तो उससे कैण्डी की ख़ुशबू आ रही थी, और अंकल बोले:
“कितनी
सुन्दर बच्ची है, कह नहीं सकता!”
मगर अल्योका
उनसे दूर भाग गई, और मैं – उसके पीछे, और आख़िरकार हम ‘क्वास’ वाले स्टाल के पास
पहुँचे. मेरे पास ब्रेकफ़ास्ट के लिए पैसे थे, और इसलिए मैंने और अल्योन्का ने दो–दो
बड़े ग्लास ‘क्वास’ पिया, अल्योन्का का पेट फुटबॉल की गेंद जैसा हो गया, और मेरे
नाक से गैस निकल रही थी और नाक में सुईयाँ चुभ रही थीं. बढ़िया, एकदम ताज़ा था
‘क्वास’, नंबर 1, और इसके बाद जब हम दुबारा भागने लगे, तो मुझे अपने पेट में
‘क्वास’ की गुड़गुड़ सुनाई दे रही थी. हम घर जाने की सोचने लगे और भाग कर रास्ते पर
आ गए. वहाँ और भी ख़ुशनुमा था, और बड़ी दुकान के प्रवेश द्वार के पास ही एक औरत खड़ी
होकर हवाई गुब्बारे बेच रही थी.
अल्योन्का ने
जैसे ही उस औरत को देखा, रुक गई, जैसे ज़मीन से चिपक गई हो. उसने कहा:
“ओय! मुझे ग़ुब्बारा चाहिए!”
मगर मैंने कहा;
“ठीक है, मगर पैसे नहीं हैं.”
अल्योन्का
बोली:
“मेरे पास एक सिक्का है.”
”दिखा.”
उसने जेब से
सिक्का निकाला.
मैंने कहा:
“ओहो! दस कोपेक. आण्टी, इसे गुब्बारा दीजिए!”
वो आण्टी
मुस्कुराई:
“कौन सा चाहिए? लाल, नीला, आसमानी?”
अल्योन्का ने
लाल गुब्बारा लिया, और हम चल पड़े. अचानक अल्योन्का बोली:
“पकड़ना चाहता है?”
और उसने मेरी
तरफ़ डोर बढ़ा दी. मैंने उसे पकड़ लिया. और जैसे ही पकड़ा, मैंने महसूस किया कि
गुब्बारा हौले-हौले डोरी से खिंचा जा रहा है! शायद वो उड़ना चाहता था. तब मैने डोरी
को थोड़ा ढीला किया और फिर से महसूस किया कि कैसे वो ज़िद्दीपन से हाथों से खिंचा जा
रहा है, जैसे उड़ने की विनती कर रहा हो. मुझे अचानक उस पे दया आई, कि वो उड़ सकता
है, मगर मैं हूँ कि उसे डोरी से पकड़े बैठा हूँ, और मैंने उसे छोड़ दिया. और
ग़ुब्बारा, पहले तो मुझसे दूर नहीं उड़ा, जैसे उसे यक़ीन ही न हो रहा हो, मगर फिर
उसने महसूस कर ही लिया, कि ये सच है, और फ़ौरन छिटक कर लैम्प-पोस्ट से ऊपर उड़ गया.
अल्योन्का ने
अपना सिर पकड़ लिया:
“ओय, किसलिए, पकड़!..”
और वो उछलने
लगी, जैसे उछल कर गुब्बारे तक पहुँच जाएगी, मगर जब देखा कि नहीं जा सकती, तो रोने
लगी:
“तूने उसे
क्यों छोड़ दिया?...”
मगर मैंने उसे
कोई जवाब नहीं दिया. मैं ऊपर गुब्बारे की ओर देख रहा था. वह ऊपर की ओर उड़ता जा रहा
था, हौले से, शांति से, जैसे पूरी ज़िन्दगी यही करना चाहता हो.
मैं सिर ऊपर
उठाए खड़ा था, और देख रहा था, और अल्योन्का भी, और कई सारे बड़े लोग भी रुक गए और
उन्होंने भी अपने सिर ऊपर उठाए – ये देखने के लिए कि ग़ुब्बारा कैसे उड़ रहा है, और
वो उड़ रहा था और छोटा-छोटा होता जा रहा था.
वो बड़ी
बिल्डिंग की आख़िरी मंज़िल पार कर गया, किसी ने खिड़की से बाहर सिर निकाला और उसे देखकर
पीछे से हाथ हिलाया, और, वो ऊपर और ऊपर, और कुछ तिरछे, अन्टेना से ऊपर, कबूतरों से
भी ऊपर, और एकदम छोटा हो गया...जब वो उड़ रहा था, तो मेरे कानों में कुछ सनसना रहा
था, और अब वो क़रीब-क़रीब ग़ायब हो गया. वो बादल के पीछे चला गया, बादल छोटा सा, और
फूला-फूला था, ख़रगोश के नन्हे पिल्ले जैसा, फिर वह बाहर आया, ग़ायब हो गया और पूरी
तरह नज़रों से ओझल हो गया और अब, शायद चाँद के पास पहुँच गया हो, हम सब ऊपर देखे जा
रहे थे, और मेरी आँखों के सामने कुछ पूँछ वाले बिन्दुओं का पैटर्न बन रहा था. गुब्बारा
अब कहीं नहीं था. अल्योन्का ने मुश्किल से सुनाई दे रही साँस ली, और सब अपने-अपने काम
पे चल दिए.
हम भी चल पड़े, हम
चुप थे, और पूरे रास्ते मैं सोच रहा था कि जब कम्पाऊण्ड में बसंत आया हुआ हो, तो कितना
सुन्दर लगता है, सब लोग सजे-धजे और ख़ुश रहते हैं, और कारें यहाँ-वहाँ घूमती हैं, और
मिलिशियामैन सफ़ेद हाथ-मोज़े पहने रहता है, और साफ़ नीले-नीले आसमान में हमसे दूर उड़ता
है लाल गुब्बारा. मुझे इस बात का अफ़सोस भी हो रहा था, कि मैं ये सब अल्योन्का से नहीं
कह सकता. मुझे शब्दों में ये सब कहना नहीं आता, और अगर आता भी तो भी अल्योन्का को समझ
में नहीं आता, क्योंकि वो छोटी है. वो मेरे साथ-साथ चल रही है, एकदम शांत, उसके
गालों पे आँसू अभी तक सूखे नहीं हैं. उसे शायद अपने गुब्बारे का अफ़सोस है.
इस तरह हम अपनी
बिल्डिंग तक पहुँच गए और ख़ामोश ही रहे, हमारे गेट के पास, जब एक दूसरे से बिदा ले रहे
थे, तो अल्योन्का ने कहा:
“अगर मेरे पास पैसे होते, तो मैं एक और गुब्बारा
ख़रीदती...जिससे तू उसे आसमान में छोड़ सकता.”
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