नदी के किनारे
लेखक: विक्टर
द्रागून्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति
रामदास
हमारी क्लास, 1 –C के सभी लड़कों के पास पिस्तौलें थीं.
हमने ये तय किया था कि हमेशा हथियार साथ में रखेंगे. हममें से हर बच्चे की जेब में हमेशा एक बढ़िया छोटी सी पिस्तौल रहती थी और उसके साथ पटाखों की एक टेप भी होती थी. हमें ये अच्छा लगता था, मगर ऐसा कुछ ही दिन चला. सब फ़िल्म की वजह से...
एक दिन रईसा इवानोव्ना ने कहा:
“बच्चों, कल इतवार है. हम सब मिलकर इसे मनाएँगे.
कल हमारी क्लास, और 1-A और 1-B, तीनों क्लासें मिलकर फ़िल्म “लाल सितारे”
देखने “आर्ट” थियेटर जाएँगे. ये बहुत दिलचस्प फ़िल्म है न्यायपूर्ण उद्देश्य के लिए
हमारे संघर्ष के बारे में... कल अपने साथ दस-दस कोपेक लाना. सब बच्चे सुबह दस बजे
स्कूल के पास इकट्ठे होंगे!
मैंने शाम को मम्मा को ये सब बताया, और
मम्मा ने मेरी बाईं जेब में टिकट के लिए दस कोपेक रख दिए और दाईं जेब में कुछ और
सिक्के रख दिए शरबत के लिए. उसने मेरी साफ़ कमीज़ पर इस्त्री भी कर दी. मैं जल्दी
सोने चला गया, जिससे कि जल्दी से सुबह हो जाए, और जब मैं उठा तो मम्मा अभी तक सो
रही थी. तब मैं तैयार होने लगा. मम्मा ने आँख़ें खोलीं और कहा:
“सो जा, अभी रात है!”
कहाँ की रात – दिन जैसा उजाला हो रहा है!
मैंने कहा:
“कहीं देर न हो जाए!”
मगर मम्मा ने फुसफुसाकर कहा:
“सिर्फ छह बजे हैं. तू पापा को न जगा, सो जा,
प्लीज़!”
मैं फिर से लेट गया और बड़ी देर तक लेटा
रहा, पंछी भी गाने लगे, और स्वीपर्स कम्पाऊण्ड में झाडू लगाने लगे, खिड़की के बाहर
मशीन की घूँ-घूँ
सुनाई देने लगी. अब तो शायद उठ ही जाना चाहिए. और मैं फिर से तैयार होने लगा. मामा
कसमसाई और उसने सिर ऊपर उठाया:
“अरे, परेशान इन्सान, तू कर क्या रहा है?”
मैंने कहा:
“देर हो रही है! कितने बजे हैं?”
“
छह बजकर पाँच मिनट हुए हैं,” मम्मा ने कहा, “तू सो जा, परेशान न हो, जब टाइम हो
जाएगा, मैं तुझे जगा दूँगी.”
और सचमुच में, उसने बाद में मुझे जगा दिया. मैंने
कपड़े पहने, हाथ-मुँह धोया, ब्रेकफास्ट किया और स्कूल की तरफ़ चला. मैंने और मीशा ने
जोड़ी बना ली, और जल्दी ही हम सब सिनेमा के लिए निकल पड़े. रईसा इवानोव्ना आगे-आगे
थीं, और एलेना स्तेपानोव्ना हमारे पीछे-पीछे.
हॉल में हमारी क्लास ने पहली लाईन की
बढ़िया सीटों पर कब्ज़ा जमा लिया, फिर हॉल में अंधेरा हो गया और फ़िल्म शुरू हुई.
हमने देखा कि कैसे लम्बी-चौड़ी स्तेपी में, जो जंगल से कुछ ही दूर थी, रेड-आर्मी के
सैनिक बैठे थे, कैसे वो एकॉर्डियन की धुन पर गा रहे थे और नाच रहे थे. एक सैनिक
धूप में सो रहा था, और उससे थोड़ी ही दूरी पर ख़ूबसूरत घोड़े घास चर रहे थे, वो अपने
नरम-नरम होठों से घास, डेज़ी और घण्टी के फूल चबा रहे थे. हल्की-हल्की हवा चल रही
थी, नदी का साफ़ पानी बह रहा था, और एक दाढ़ी वाला सैनिक छोटे से अलाव के पास बैठकर
फ़ायर-बर्ड (ऐसा पंछी जिसके पंख आग जैसे लाल होते हैं – अनु.) की कहानी सुना
रहा था.
इसी समय, न जाने कहाँ से व्हाईट-आर्मी के
ऑफ़िसर्स प्रकट हो गए, वे काफ़ी सारे थे, और उन्होंने गोलियाँ चलाना शुरू कर दिया. रेड-आर्मी
वाले गिरने लगे और ख़ुद को बचाने लगे, मगर व्हाईट वाले बहुत ज़्यादा थे...
एक रेड-गनमैन ने दनादन गोलियाँ चलाना शुरू
कर दिया, मगर उसने देखा कि उसके पास बेहद कम गोलियाँ हैं; और उसने अपने दाँत भींचे
और रोने लगा.
अब हमारे सारे लड़के भयानक शोर मचाने लगे,
पैर पटकने लगे और सीटियाँ बजाने लगे, कोई दो ऊँगलियाँ मुँह में डालकर और कोई वैसे
ही. मेरे दिल में दर्द होने लगा, मैं बर्दाश्त न कर पाया, अपनी पिस्तौल निकाल ली
और पूरी ताक़त से चिल्लाया:
“क्लास 1-‘C’! फ़ायर!!!”
और हमने एक साथ कई पिस्तौलों से गोलियाँ
दागना शुरू कर दिया. चाहे जो हो जाए, हम रेड-सैनिकों की मदद करना चाहते थे. मैं
पूरे समय एक मोटे फ़ासिस्ट पर गोलियाँ चला रहा था, वो सबसे आगे था, उसने काले-काले
क्रॉस और कई सारे स्टार्स लगाए हुए थे; मैंने उस पर, शायद, सौ गोलियाँ चला दीं,
मगर उसने मेरी ओर देखा तक नहीं.
चारों ओर भयानक भगदड़ मची थी. वाल्का
कुहनियों से मार रहा था, अन्द्र्यूश्का रुक-रुक कर फ़ायर कर रहा था, जबकि मीश्का,
शायद स्नाइपर था, क्योंकि हर बार फ़ायर करने के बाद चिल्ला रहा था:
“रेडी!”
मगर व्हाईट- सैनिक हमारी ओर ध्यान ही नहीं
दे रहे थे, और आगे-आगे बढ़ते जा रहे थे. तब मैंने चारों ओर देखा और चिल्लाया:
“मदद करो! अपनों को बचाओ!”
अब 1-A और 1- B के सारे बच्चों ने पटाखों वाली
स्टन-गन्स निकाल लीं और वोSS बूम्-बूम् करने लगे कि छत दहल गई और धुँए
की, बारूद की, गंधक की बू फैल गई.
हॉल के अन्दर ख़तरनाक भागदौड़ होने लगी.
रईसा इवानोव्ना और एलेना स्तेपानोव्ना क़तारों में भाग रही थीं और चिल्ला रही थीं:
“बदतमीज़ी बन्द करो! स्टॉप!”
और उनके पीछे सफ़ेद बालों वाली डोर-कीपर्स भाग रही थीं और पूरे
समय ठोकर खा रही थीं...और तभी एलेना स्तेपानोव्ना का हाथ ग़लती से एक नागरिक की
कोहनी पर पड़ा, जो एक्स्ट्रा कुर्सी में बैठी थी. और, उस नागरिक के हाथ में थी
‘एस्किमो’ आईस्क्रीम. वो किसी स्क्रू की तरह उड़ कर एक अंकल के गंजे सिर पर लगी. वो उछला और पतली आवाज़ में चीख़ा:
“अपने इस पागलखाने को शांत कीजिए!!!”
मगर हम
अटैक करते ही रहे, क्योंकि रेड-गनमैन क़रीब-क़रीब शांत हो गया था, वह ज़ख़्मी हो गया
था, और उसके सफ़ेद-झक् चेहरे पर लाल खून बह रहा था...अब हमारी बारूद भी ख़तम हो गई
थी, और पता नहीं, आगे क्या होता, मगर तभी जंगल के पीछे से लाल-घुड़सवार उछलते हुए
आए, और उनके हाथों में तलवारें चमक उठीं, वे दुश्मन के बीच में घुस गए!
और दुश्मन
जहाँ सींग समाए, वहाँ भागने लगे, धरती के उस छोर पर, और रेड-सैनिक चिल्लाए
‘हुर्रे!” और हम सब भी एक आवाज़ में चिल्लाए” “हुर्रे!”
और जब
व्हाईट-गार्ड ओझल हो गए, तो मैं चिल्लाया:
“फ़ायरिंग बन्द!”
सबने
फ़ौरन फ़ायरिंग रोक दी, और परदे पर म्यूज़िक बजने लगा, और एक लड़का मेज़ पर बैठकर पॉरिज
खाने लगा.
तभी मैं
भी समझ गया कि बहुत थक गया हूँ और मुझे भूख भी लगी है.
फिर फिल्म
बहुत अच्छी तरह से ख़तम हुई और हम अपने अपने घर चल दिए.
मगर सोमवार
को, जब हम स्कूल पहुँचे, तो हम सब लड़कों को, जो फिल्म देखने गए थे, बड़े हॉल में इकट्ठा
किया गया.
वहाँ एक
मेज़ रखी थी. मेज़ के पीछे हमारा डाइरेक्टर फ़्योदोर निकोलायेविच बैठा था. वह उठा और कहने
लगा:
“अपने अपने हथियार दे दो!”
हम सबने
बारी बारी से मेज़ पर अपने हथियार रख दिए. मेज़ पर, पिस्तौलों के अलावा दो गुलेलें और
मटर के दाने मारने वाला पाईप भी था.
फ़्योदोर
निकोलायेविच ने कहा:
“हमने सुबह विचार-विमर्श किया, कि आपके साथ क्या
किया जाए. अलग-अलग प्रस्ताव आए...मगर मैं मनोरंजन केन्द्र की बिल्डिंग में आचरण संबंधी
कानून तोड़ने के लिए तुम सब की मौखिक रूप से निंदा करता हूँ! इसके अलावा, तुम लोगों
की ‘आचरण’ वाली ग्रेड भी कम की जाएगी. और अब जाओ – ध्यान से पढ़ाई करो!”
हम क्लास में गए, मगर मैं बैठा रहा और पढ़ाई
में ध्यान न लगा सका. मैं सोच रहा था कि निन्दा करना – बहुत बुरी सज़ा है और मम्मा,
शायद, ग़ुस्सा हो जाएगी....
मगर शॉर्ट इंटरवल में मीश्का स्लोनोव ने
कहा:
“फिर
भी, अच्छा हुआ कि हमने रेड-आर्मी के सैनिकों की डटे रहने में मदद की, जब तक उनके लोग
नहीं आ गए!
और मैंने कहा:
“बेशक!!!
हालाँकि ये फ़िल्म थी, मगर, हो सकता है, हमारे
बिना वो डटे नहीं रहते!”
“किसे
पता...”
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