गुरुवार, 17 मार्च 2016

Doorbeen

दूरबीन

लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास



मैं कमीज़ को घुटनों तक खींच कर खिड़की की सिल पे बैठा था, क्योंकि मेरी पतलून मम्मा के हाथ में थी.

 “नहीं,” मम्मा ने कहा और सुई धागा एक ओर सरका दिया. “मैं इस बच्चे की हरकतें और ज़्यादा बरदाश्त नहीं कर सकती!”
 “हाँ,” पापा ने कहा और अख़बार रख दिया. “ उस पर जैसे शैतान सवार हो जाते हैं, वो फ़ेन्सिंग्स पे चढ़ जाता है, पेड़ों पे कूदता है और छतों पे भागता है. इसका दिल भी नहीं भरता!”
पापा कुछ देर चुप रहे, गुस्से से मेरी ओर देखा और आख़िर में फ़ैसला सुनाया:
”आख़िरकार मैंने एक तरीका ढूँढ़ निकाला है, जो एक ही बार में हमेशा के लिए हमें मुसीबत से छुटकारा दिला देगा.”
 “मैं जानबूझ कर नहीं करता,” मैंने कहा. “क्या मैं जानबूझ कर करता हूँ, हाँ? वो अपने आप हो जाता है.”
 “बेशक, वो अपने आप ही होता है,” मम्मा ने व्यंग्य से कहा. “तेरी पतलूनें इतने अजीब स्वभाव की हैं कि वो दिन-दिन भर, जानबूझ के हर कील से टकराती हैं, उससे उलझ जाती हैं और फिर फट जाती हैं, ख़ास तौर से इसलिए कि तेरी मम्मा को गुस्सा दिलाएँ. ऐसी शैतान हैं पतलूनें! वो अपने आप! वो अपने आप!”

मम्मा ‘वो अपने आप’ सुबह तक भी चिल्लाती रहती, क्योंकि उसकी नसें तन गई थीं, ये बिना चश्मे के भी साफ़ दिखाई दे रहा था. इसलिए मैंने पापा से पूछा:
 “तो, तुमने क्या सोचा है?”
पापा ने चेहरे पर गंभीरता लाते हुए मम्मा से कहा:
 “तुम्हें अपनी सभी योग्यताओं का उपयोग करके एक उपकरण का आविष्कार करना होगा, जो तुम्हें अपने बेटे पर नज़र रखने में मदद करे. जब वो तुम्हारे सामने न हो, तब भी. मेरे पास तो आज ज़रा भी टाइम नहीं हैं, आज ‘स्पार्ताक’ – ‘टोर्पीडो’ के बीच मैच है, और तुम, तुम मेज़ के पास बैठो, और बिना समय खोए, फ़ौरन एक दूरबीन बनाओ. तुम ये बहुत अच्छी तरह से कर सकती हो, मुझे मालूम है, कि इस लिहाज़ से तुम एक बेहद क़ाबिल इन्सान हो.”

पापा उठे, उन्होंने अपनी मेज़ की दराज़ से कुछ सामान निकाल कर मम्मा के सामने रख दिया – टूटे कोने वाला एक छोटा सा आईना, काफ़ी बड़ा मैग्नेट और अलग-अलग तरह की कुछ कीलें, एक बटन और कुछ और.
 “ये रहा ज़रूरी सामान,” उन्होंने कहा, “जुट जाओ, बहादुरों और जिज्ञासुओं!”

मम्मा उन्हें दरवाज़े तक छोड़ने गई, फिर वापस लौटी और मुझे भी घूमने के लिए कम्पाऊण्ड में जाने दिया. शाम को जब हम सब डिनर के लिए मेज़ पे बैठे, तो मम्मा की ऊँगलियाँ गोंद से सनी थीं, और मेज़ पर एक प्यारी सी नीली, मोटी ट्यूब पड़ी थी. मम्मा ने उसे उसे उठाया, दूर से मुझे दिखाया और बोली:
 “तो, डेनिस, ध्यान से देख!”
 “ये क्या है?” मैंने पूछा.
 “ये दूरबीन है! मेरा आविष्कार!” मम्मा ने जवाब दिया.
मैंने पूछा:
 “क्या आस-पास की चीज़ें देखने के लिए?”
वो मुस्कुराई:
 “कोई आसपास की चीज़ें नहीं! तुम पर नज़र रखने के लिए.”
मैंने पूछा:
 “वो कैसे?”
 “बिल्कुल आसान है!” मम्मा ने कहा. “मैंने इस दूरबीन का आविष्कार करके इसे पेरेन्ट्स के लिए बनाया है, नाविकों के टेलिस्कोप की तरह, मगर उससे कहीं ज़्यादा बेहतर.”
पापा ने कहा:
 “तुम, प्लीज़, सीधी-सादी भाषा में समझाओ कि ये क्या चीज़ है, किस सिद्धांत पर बनाई गई है, किन समस्याओं को हल करती है, और...वगैरह. प्लीज़!”

मम्मा मेज़ के पास खड़ी हो गई, जैसा ब्लैक बोर्ड के पास टीचर खड़ी रहती है, और फिर उसने भाषण देने के अंदाज़ में कहना शुरू किया:
 “ डेनिस, अब, जब मैं घर से बाहर जाया करूँगी, तो हमेशा तुझे देखती रहूँगी. चाहे मैं घर से पाँच से आठ किलोमीटर्स की दूरी पर क्यों न रहूँ, मगर जैसे ही मुझे महसूस होगा, कि बड़ी देर से तुझे देखा नहीं है और मैं देखना चाहूँगी कि तू अभी क्या गुल खिला रहा है, तो मैं फ़ौरन – चिक्! हमारे घर की दिशा में अपनी ट्यूब घुमाऊँगी – और रेडी! – तुझे देख लूँगी.”
 “एक्सेलेंट! श्नीत्सेल-तुत्सेर इफ़ेक्ट!”
मैं थोड़ा चौंक गया. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मम्मा ऐसी चीज़ का आविष्कार कर सकती है. देखने में तो इत्ती दुबली-पतली, मगर देखो तो! श्नीत्सेल-तुत्सेर इफ़ेक्ट!
मैंने पूछा:
 “मगर मम्मा, तुम जानोगी कैसे कि हमारा घर कहाँ है?”
उसने फ़ौरन जवाब दिया:
 “मेरी ट्यूब में मैग्नेटिक-कम्पास लगा है. वो हमेशा हमारे घर की दिशा में है.”
 “बाब्किन-न्यान्स्की रिएक्शन,” पापा ने कहा.
 “बिल्कुल सही,” मम्मा ने आगे कहा. “इस तरह, डॆनिस, अगर तू फ़ेन्सिंग पर या कहीं और चढ़ता है, तो मुझे फ़ौरन दिखाई देगा.”
मैंने कहा:
 “वहाँ, अन्दर, क्या है? कोई स्क्रीन है क्या?”
उसने जवाब दिया:
 “बेशक. आईने की याद है? वो तेरी तस्वीर को सीधे मेरे दिमाग़ के अन्दर परावर्तित करता है. मैं फ़ौरन देख लेती हूँ कि क्या तू गुलेल चला रहा है या सिर्फ गेंद घुमा रहा है, बगैर किसी मतलब के.”
 “क्रान्त्स- निचिखान्त्स का साधारण नियम. इसमें कोई ख़ास बात नहीं है,” पापा बुदबुदाए और उन्होंने अचानक जोश में आकर पूछा: “एक्सक्यूज़ मी, एक्सक्यूज़ मी, प्लीज़, मैं तुम्हारी बात काट रहा हूँ. क्या एक छोटा सा सवाल पूछ सकता हूँ?”
 “हाँ, पूछो,” मम्मा ने कहा.
 “क्या तुम्हारी दूरबीन बिजली पे चलती है या सेमीकण्डक्टर्स पे?”
 “बिजली पे,” मम्मा ने कहा.
 “ओह, तब मैं तुम्हें आगाह करता हूँ,” पापा ने कहा, “तुम शॉर्ट सर्किट से सावधान रहना. वर्ना, अगर कहीं शॉर्ट सर्किट हो गया तो तुम्हारे दिमाग़ में विस्फ़ोट हो जाएगा.”
 “नहीं होगा,” मम्मा ने कहा. “और फ्यूज़ किसलिए है?”
 “ओह, तब दूसरी बात है,” पापा ने कहा. “मगर फिर भी तुम होशियार रहना, वर्ना, तुम्हें मालूम है, कि मैं परेशान होता रहूँगा.”
मैंने कहा:
 “क्या तुम ऐसी चीज़ मेरे लिए भी बना सकती हो? जिससे कि मैं भी तुम पर नज़र रख सकूँ?”
 “वो किसलिए?” मम्मा फिर मुस्कुराई. “मैं कोई फ़ेन्सिंग पे थोड़े ही चढ़ती हूँ!”
 “ये अभी तक पता नहीं चला है,” मैंने कहा, “हो सकता है, कि फ़ेन्सिंग पे तुम, शायद नहीं चढ़ोगी, मगर, हो सकता है कि तुम कारों के बीच फँस गई हो? या उनके सामने बकरी की तरह उछल रही हो?”
 “या सफ़ाई वालों से झगड़ा कर रही हो? या मिलिशिया से बहस कर रही हो?” पापा ने मेरा समर्थन करते हुए कहा और गहरी साँस ली: “ हाँ, अफ़सोस, हमारे पास ऐसी मशीन नहीं है, ताकि हम तुम पर नज़र रख सकें...”
मगर मम्मा ने हमें ज़ुबान चिढ़ाई:
 “सिर्फ एक ही अदद मशीन का आविष्कार और निर्माण किया गया है, क्या लगा रखा है?” वो मेरी ओर मुड़ी: “तो, अब तुम जान लो, अब मैं तुम्हें हमेशा अपने कन्ट्रोल में रखूँगी!”

मैंने सोचा कि ऐसे आविष्कार से तो ज़िन्दगी बेहद बेमज़ा हो जाएगी. मगर मैंने कुछ नहीं कहा, बल्कि सिर हिला दिया और फिर सोने चला गया. मगर जब उठा और रोज़मर्रा की ज़िन्दगी जीने लगा, तो मैं समझ गया कि अब मेरे बेहद काले दिन आ गए हैं. मम्मा के आविष्कार के कारण मेरी ज़िन्दगी बेहद दर्दभरी हो गई. जैसे, मिसाल के तौर पे, सोचो कि कोस्तिक पिछले कुछ दिनों से बेहद बदमाशी कर रहा है और उसकी गर्दन पकड़ के झापड़ जमाने का टाइम आ गया है, मगर तुम कुछ कर नहीं पाते, क्योंकि ऐसा लगता है कि मम्मा की दूरबीन तुम्हारी पीठ की ओर ही फ़िक्स की गई है. ऐसे हालात में कोस्तिक को झापड़ लगाना नामुमकिन है. मैं ये नहीं कह रहा हूँ, कि मैंने ‘चिस्तिये प्रूदी’ तालाब पे जाना एकदम बन्द कर दिया, जिससे वहाँ अपने लिए पूरी जेबें भर-भरके मेंढ़क पकड़ सकूँ. और मेरी पहले वाली सुखी, ख़ुशनुमा ज़िन्दगी अब मेरे लिए ख़त्म हो गई है. मेरे दिन इतने दुख में बीत रहे थे, कि मैं किसी मोमबती की तरह पिघल रहा था, मुझे कोई रास्ता नहीं सूझता था. इस सब का अंत शायद बड़ा दर्दनाक होता, मगर अचानक, एक बार जब मम्मा चली गई, और मैं अपनी फुटबॉल की पुरानी जाली ढूँढ़ रहा था, तो दराज़ में, जहाँ मैं सब अटर-फ़टर रखता हूँ, मुझे अचानक दिखाई दी...मम्मा की दूरबीन! हाँ, वो रद्दी सामान के बीच पड़ी थी, जैसे कोई अनाथ हो, ऊपर का कवर उखड़ा हुआ, एकदम भद्दी. उसे देखने से साफ़ पता चल रहा था कि मम्मा ने कई दिनों से उसका इस्तेमाल नहीं किया है, उसके बारे में अब वो सोचती भी नहीं है. मैंने उसे उठा लिया और उसका कवर नोच लिया, ये देखने के लिए कि उसके भीतर क्या है, वो कैसे बनाई गई है, मगर, क़सम से, वो खाली थी, उसके भीतर कुछ भी नहीं था. एकदम ख़ाली, गेंद की तरह गोल गोल घुमा लो!

अब मैं समझ गया कि इन लोगों ने मुझे धोखा दिया है और मम्मा ने कोई आविष्कार-वाविष्कार नहीं किया है, बल्कि वो मुझे अपनी नकली दूरबीन से डरा रही थी, और मैं, किसी बेवकूफ़ की तरह, उस पर भरोसा कर रहा था और डर रहा था, और बेहद अच्छे बच्चे की तरह बर्ताव कर रहा था. इस सबसे मैं पूरी दुनिया पे, और मम्मा पे, और पापा पे और इन सब हरकतों पे इतना गुस्सा हो गया, कि मैं पागल की तरह कम्पाऊण्ड में भागा और वहाँ कोस्तिक, अन्द्र्यूशा और अल्योन्का के साथ अर्जेन्ट लड़ाई शुरू कर दी. हालाँकि उन तीनों ने मिलकर मेरी फन्टास्टिक धुलाई कर दी, मगर मेरा मूड एकदम एक्सेलेंट हो गया, और लड़ाई के बाद हम चारों गोदाम में घुस गए, और छत पर चढ़ गए, और फिर पेड़ों पर चढ़ गए, फिर नीचे सेलार में, सीधे बॉयलर-रूम में घुस गए, कोयले के ढेर पे, और थक के चूर होने तक उछलते-कूदते रहे. इस दौरान मुझे लग रहा था, जैसे मेरे दिल से कोई बोझ हट गया है. अच्छा लग रहा था, रूह को आज़ादी महसूस हो रही थी, हल्का लग रहा था और इतनी ख़ुशी हो रही थी, जैसी पहली मई को होती है.


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