गुरुवार, 28 नवंबर 2013

Bahadur Balak







‘और अगर कोई ऐसा न करता तो?’

इस बच्चे का नाम है साशा. वह तोम्स्क प्रांत के तोगूर गाँव में रहता है. और वो अब सचमुच का ‘हीरो’ बन गया है!

5 नवम्बर 2013 को स्कूल से लौटते समय, दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले साशा किर्साकोव ने तालाब की ओर से आती हुई बच्चों की चीख़ें सुनीं. जब वह दौड़कर तालाब के पास पहुँचा तो उसने दो छोटे बच्चों को देखा. वे तालाब की सतह पर जमी हुई हिम-सतह के नीचे गिर गए थे, और बाहर निकलने की कोशिश में थक कर पस्त हो चुके थे, और मदद के लिए पुकार रहे थे.

 - “पास ही में एक लकड़ी का लम्बा फट्टा पड़ा था,” साशा ने बताया, “मैंने उसे ही बच्चों के पास फेंक दिया.”

 ये एक छह मीटर का भारी भरकम बोर्ड था, और बड़े लोग बाद में बड़ी देर तक अचरज करते रहे कि साशा ने उसे उठाया कैसे! साशा ने एक एक करने दोनों बच्चों को पानी से बाहर खींचा, और फिर इन दोनों ‘बहादुरों’ को उन्हीं की स्लेज में बिठाकर घरों तक छोड़ आया.
यह सब करने में उसे डेढ़ घंटा लग गया .

बाद में पता चला कि बचाए गए दोनों बच्चे जो पांच-पांच साल के थे, मौसम की पहली गिरी हुई बर्फ पर घूमने निकले अपनी अपनी स्लेज गाड़ियों में और फिसलते हुए तालाब में गिर पड़े.
साशा के कारण डरे हुए बच्चे सही-सलामत बाहर निकल आए.

बच्चों को बचाने के लिए प्रशासन ने साशा को पुरस्कार स्वरूप एक नोटबुक और स्की प्रदान की, और साशा के माता-पिता को धन्यवाद ज्ञापन भेजा गया कि उन्होंने अपने बच्चे को साहसी और बहादुर बनाया.

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