चिकन सूप
लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
मम्मा दुकान से
एक मुर्गी लाई, खूब बड़ी, नीली-नीली, लम्बे हड़ीले पैरों वाली. मुर्गी के सिर पर एक
बड़ी लाल कलगी थी. मम्मा ने उसे खिड़की के बाहर लटकाया और कहा:
“अगर पापा मुझसे पहले आएँ, तो उबालने को कहना.
कह देगा?”
मैंने कहा:
“ज़रूर!”
और मम्मा
इन्स्टिट्यूट चली गई. मैंने अपने वाटर-कलर्स निकाले और ड्राइंग बनाने लगा. मैं
गिलहरी बनाना चाहता था, कि कैसे वो जंगल में पेड़ों पर फ़ुदकती है. पहले तो बढ़िया हो
रहा था, मगर बाद में मैंने देखा कि ये तो गिलहरी नहीं बनी, बल्कि कोई अंकलजी बन गए
हैं, मोयददीर जैसे (कर्नेइ चुकोव्स्की की रूसी बालकथा का एक पात्र, जो बच्चों
को साफ़-सुथरा रहने पर ज़ोर देता है. इसका चित्र वाश-बेसिन्स पर लगा होता है. –
अनु.). गिलहरी की पूँछ जैसे मोयददीर की नाक बन गई थी, और पेड़ों की टहनियाँ –
उसके बाल, कान और हैट...मुझे बहुत अचरज हुआ, ऐसा कैसे हो गया, और, जब पापा आए, तो
मैंने कहा:
“बताओ, पापा, मैंने क्या बनाया है?”
उन्होंने देखा
और सोच में पड़ गए:
“आग?”
“तुम भी ना, पापा? तुम अच्छे से देखो!”
तब पापा ने
अच्छी तरह देखा और बोले:
“आह, सॉरी, ये, शायद, फुटबॉल है...”
मैंने कहा:
“तुम बिल्कुल ध्यान नहीं देते! तुम, शायद थक गए
हो?”
और वो बोले::
“अरे, नहीं,
बस, भूख लगी है. मालूम है, कि आज लंच में क्या है?”
मैंने कहा:
“वो, खिड़की के बाहर मुर्गी टंगी है. उबाल लो और
खा लो!”
पापा ने
रोशनदान से मुर्गी को निकाला और मेज़ पर रखा.
”कहना आसान है,
उबाल लो! उबाला जा सकता है. उबालना – बकवास है. सवाल ये है कि हम इसका क्या बनाकर
खाएँगे? मुर्गी से कम से कम सौ तरह के बढ़िया पकवान बनाए जा सकते हैं. जैसे कि,
मुर्गी के कटलेट्स बना सकते हैं, चिकन श्नीज़ेल बनाया जा सकता है – अंगूर के साथ!
मैंने इसके बारे में पढ़ा था! हड्डी के ऊपर ऐसा कटलेट बनाया जा सकता है – उसे कहते
हैं ‘कीएव्स्काया’ – ऊँगलियाँ चाटते रह जाओगे. मुर्गी को नूडल्स के साथ पका सकते
हैं, और उसे इस्त्री से दबा कर, लहसुन मिलाते हैं और जोर्जिया का ‘तम्बाकू-चूज़ा’
बनता है. और फिर...”
मगर मैंने
उन्हें रोक दिया. मैंने कहा:
“पापा, तुम कुछ आसान सा बना लो, बिना इस्त्री
के. कोई, सबसे फ़टाफ़ट बनने वाली चीज़!”
पापा फ़ौरन राज़ी
हो गए:
“सही कह रहे हो, बेटा! हमारे लिए क्या
महत्वपूर्ण है? जल्दी से खाना! तूने असली बात पकड़ ली है. जल्दी से क्या बन सकता
है? जवाब सीधा-सादा और स्पष्ट है: सूप!”
पापा ने हाथ भी
मले.
मैंने पूछा:
“क्या तुम्हें सूप बनाना आता है?”
मगर पापा सिर्फ
मुस्कुरा दिए.
“उसमें ‘आने’ की बात क्या है?” उनकी आँखें चमकने
लगीं. “सूप – स्टीम्ड चुकन्दर से भी ज़्यादा आसान है: पानी में डालो और पकने तक
इंतज़ार करते रहो, बस, इतनी सी बात है. तो, फ़ैसला कर लिया! हम सूप उबालेंगे, और
बहुत जल्दी हमारे पास लंच में दो डिशेस होंगी: सूप और ब्रेड, और बॉइल्ड चिकन,
गरम-गरम, भाप निकालता हुआ. तो, अब तू अपना ब्रश फेंक और मदद कर!”
मैंने पूछा:
“मुझे क्या करना होगा?”
“देख! देख रहा है, मुर्गी के बदन पे कैसे बाल
हैं. तू उन्हें काट दे, क्योंकि मुझे बालों वाला सूप पसन्द नहीं है. तू इन बालों
को काट, तब तक मैं किचन में जाकर पानी उबलने के लिए रख देता हूँ!”
और वो किचन में
चले गए. मैंने मम्मा की कैंची उठाई और एक-एक करके मुर्गी के बाल काटने लगा. पहले
मैंने सोचा कि ज़्यादा बाल नहीं होंगे, मगर फिर ध्यान से देखा, तो पता चला कि खूब
सारे बाल हैं, बल्कि अनगिनत बाल हैं. मैं उन्हें कतरने लगा, और दनादन काटने की
कोशिश करने लगा, जैसे कि हेयर सलून में करते हैं, और एक बाल से दूसरे पर जाते हुए
कैंची से हवा में कच्-कच् कर रहा था.
पापा कमरे में
आए, मेरी तरफ़ देखा और बोले:
”किनारों से
ज़्यादा काट, वर्ना ‘ज़ीरो-कट’ जैसा हो जाएगा!”
मैंने कहा:
“जल्दी-जल्दी नहीं कट रहा है...”
मगर पापा ने
अपने माथे पर हाथ मारा:
“माय गॉड! डेनिस्का, हम दोनों बेवकूफ़ हैं! मैं
ये बात कैसे भूल गया! ये काटना-वाटना बन्द कर! उसे आग में भूनना पड़ता है! समझ रहा
है? सब ऐसा ही करते हैं. हम इसे आग में भूनेंगे, और तब सारे बाल जल जाएँगे, तब
उन्हें न तो कटिंग की और न ही शेविंग की ज़रूरत पड़ेगी. आ जा मेरे पीछे!”
और उन्होंने
मुर्गी को पकड़ा और किचन में भागे. मैं उनके पीछे भागा. हमने नया बर्नर जलाया,
क्योंकि एक पर तो पानी वाला बर्तन रखा था, और हम चारों तरफ़ से मुर्गी को आग पर
भूनने लगे. वो बढ़िया जल रही थी और पूरे क्वार्टर में जले हुए रोओं की गंध बिखेर
रही थी. पापा उसे एक साइड से दूसरी साइड पे पलट रहे थे और कहते जा रहे थे:
“अभ्भी, अभ्भी! ओह, बढ़िया मुर्गी है! अब वो पूरी
तरह झुलस जाएगी और साफ़-सुथरी, सफ़ेद-सफ़ेद हो जाएगी...”
मगर मुर्गी तो
इसके विपरीत कैसी काली-काली तो होने लगी, कुछ कोयले जैसी दिखने लगी, और पापा ने
आख़िरकार गैस बन्द कर दी.
उन्होंने कहा:
“मेरे ख़याल से ये अचानक धुआँ छोड़ने लगी है. तुझे
धुएँदार मुर्गी पसन्द है?”
मैंने कहा;
“नहीं. ये धुँआ नहीं छोड़ रही है, ये बस कालिख से
पुत गई है. लाओ, पापा, मैं इसे धो देता हूँ.”
वो एकदम ख़ुश हो
गए.
“शाबाश!” उन्होंने कहा. “तू स्मार्ट है. ये
अच्छे गुण तुझे विरासत में मिले हैं. तू पूरा मुझ पे गया है. तो, दोस्त, इस चिमनी
जैसी कालिख लगी मुर्गी को उठा और उसे नल के नीचे अच्छे से धो ले, मैं तो इस
भाग-दौड़ से थक गया हूँ.”
और वो स्टूल पे
बैठ गए.
मैंने कहा:
“अभ्भी, एक मिनट में!”
मैं सिंक के
पास गया और नल खोला, पानी की धार के नीचे हमारी मुर्गी को रखा और पूरी ताक़त से दाएँ
हाथ से उसे मल-मल के धोने लगा. मुर्गी बेहद गरम थी और बेतहाशा गंदी थी, मेरे हाथ
कुहनियों तक गंदे हो गए. पापा स्टूल पे बैठे-बैठे हिल रहे थे.
“ओह, पापा,” मैंने कहा, “तुमने उसे क्या कर दिया
है. साफ़ ही नहीं हो रही है. बहुत कालिख है.”
“बकवास,” पापा ने कहा, “कालिख सिर्फ ऊपर-ऊपर है.
वो पूरी की पूरी तो कालिख से नहीं ना बनी है? रुक!”
और, पापा
बाथरूम में गए और वहाँ से स्ट्राबेरी-सोप लेकर आए.
“ले,” उन्होंने कहा, “ठीक से धोना! खूब साबुन
लगा.”
और मैं इस
बदनसीब मुर्गी को साबुन लगाने लगा. अब तो वो एकदम मरियल लगने लगी. मैंने उसे खूब
साबुन लगाया, मगर वो साफ़ ही नहीं हो रही थी, उसके बदन से गंदगी बह रही थी, क़रीब
आधे घण्टे से बह रही थी, मगर वह साफ़ हुई ही नहीं.
मैंने कहा:
“ये भयानक मुर्गी सिर्फ साबुन में पुती ही जा
रही है.”
तब पापा बोले:
“ये रहा ब्रश! ले, उसे अच्छे ब्रश से साफ़ कर!
पहले पीठ, और बाद में बाकी का हिस्सा.”
“मैं ब्रश से साफ़ करने लगा. मैं पूरी ताकत से
ब्रश कर रहा था, कहीं कहीं पर तो चमड़ी भी छील दी. मगर, फिर भी मुझे बहुत मुश्किल
हो रही थी, क्योंकि मुर्गी तो जैसे अचानक ज़िन्दा हो गई और मेरे हाथों में गोल-गोल
घूमने लगी, फ़िसलने लगी और हर पल उछलने की कोशिश करने लगी. और पापा थे कि अपने
स्टूल से उतर ही नहीं रहे थे और बस हुक्म दिए जा रहे थे:
“कस के घिस! हौले से! परों से पकड़! ऐह, तू भी
ना! मैं देख रहा हूँ कि तुझे मुर्गी धोना ज़रा भी नहीं आता है.”
तब मैंने कहा:
“पापा, तुम ख़ुद ही कोशिश कर लो!”
और मैंने
मुर्गी उनकी तरफ़ बढ़ा दी. मगर वो उसे ले भी नहीं पाए थे, कि अचानक वह मेरे हाथों से
कूदी और सबसे दूर वाली शेल्फ़ के नीचे घुस गई. मगर पापा परेशान नहीं हुए. उन्होंने
कहा:
“ ‘मॉप’ ला!”
मैं ‘मॉप’
लाया, पापा ने डंडे से मुर्गी को शेल्फ के नीचे से बाहर खींचने की कोशिश की. पहले
वहाँ से पुरानी चूहेदानी बाहर आई, फिर मेरा पिछले साल वाला टीन का सोल्जर, मैं ख़ूब
ख़ुश हो गया, क्योंकि मैं सोचता था कि वो गुम गया है, मगर वो वहाँ था, मेरा प्यारा
सोल्जर.
इसके बाद,
आख़िरकार, पापा ने मुर्गी बाहर निकाल ही ली. वो पूरी तरह धूल में सन गई थी. और पापा
हो गए थे लाल-लाल. मगर उन्होंने उसका पंजा पकड़ा और फिर से सिंक में घुसा दिया.
उन्होंने कहा:
“चल, अब, पकड़. ब्लू बर्ड.”
उन्होंने उसे
काफ़ी साफ़ धोया और पानी से भरे बर्तन में रख दिया. तभी मम्मा आई. उसने कहा:
“ये क्या गड़बड़ चल रही थी?”
पापा ने गहरी साँस
लेकर कहा:
“मुर्गी पका रहे हैं.”
मम्मा ने पूछा:
“बहुत देर से?”
“अभी-अभी रखी है,”
पापा ने कहा.
मम्मा ने बर्तन
का ढक्कन हटाया.
“नमक डाला?”
“बाद में,” पापा ने कहा, “जब पक जाएगी.”
मगर मम्मा ने बर्तन
को सूँघा.
“इसे अन्दर से साफ़ किया?” उसने पूछा.
“बाद में,” पापा ने जवाब दिया, “जब पक जाएगी.”
मम्मा ने गहरी साँस
ली और मुर्गी को बर्तन से बाहर निकाल दिया. उसने कहा:
“डेनिस्का, मेरा एप्रन ला, प्लीज़. तुम लोगों के लिए
पूरी तैयारी करनी पड़ेगी, ग्रेट-कुक्स.”
मैं कमरे में भागा,
एप्रन लिया और मेज़ से अपनी बनाई हुई तस्वीर उठाई. मैंने मम्मा को एप्रन दिया और उससे
पूछा:
“देखो, मैंने क्या बनाया है? पहचानो, मम्मा!”
मम्मा ने देखा और
बोली:
“सिलाई मशीन? हाँ?”
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