हरे तेंदुए
लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
मैं, मीश्का और
अल्योन्का हाऊसिंग कमिटी के ऑफ़िस के पास रेत पर बैठे थे और स्पेस शिप लाँच करने के
लिए प्लेटफॉर्म बना रहे थे. हमने गढ़ा खोद कर उसमें ईंटें और काँच के टुकड़े भर दिए
थे, और बीचोंबीच रॉकेट के लिए थोड़ी ख़ाली
जगह भी छोड़ी थी. मैं बकेट लाया और सारे औज़ार उसमें रख दिए.
मीश्का ने कहा:
“रॉकेट के नीचे
साइड में एक छेद रखना चाहिए, जिससे कि जब वो ऊपर उड़ेगा, तो गैस इस रास्ते से बाहर
निकले.”
और हम फिर से
खुरचने और खोदने लगे और जल्दी ही थक गए, क्योंकि वहाँ बहुत पत्थर थे.
अल्योन्का ने
कहा:
“मैं थक गई
हूँ! स्मोकिंग ब्रेक!”
और हम आराम
करने लगे.
इसी समय दूसरे
प्रवेश द्वार से कोस्तिक अन्दर आया. वो इतना दुबला हो रहा था, कि उसे पहचानना
मुश्किल हो रहा था. उसका रंग फ़ीका पड़ गया था, धूप में भी रंग गहराया नहीं था. वो
हमारे पास आया और बोला:
“हैलोS, साथियों!”
हम सबने कहा:
“हैलोS, कोस्तिक!”
वो चुपचाप
हमारे पास आकर बैठ गया.
मैंने कहा:
”क्या रे,
कोस्तिक, तू इतना दुबला क्यों हो गया है? बिल्कुल कोश्ची (रूसी लोककथाओं का एक
पात्र, जो बेहद दुबला और बूढ़ा है – अनु.) जैसा...
उसने कहा;
“हूँ, मुझे मीज़ल्स हो गए थे.”
“क्या अब तू अच्छा हो गया?”
“हाँ,” कोस्तिक ने कहा, “अब मैं पूरा अच्छा हो
गया हूँ.”
मीश्का कोस्तिक
से दूर सरक गया और बोला:
“मेरा ख़याल है कि ये ‘इन्फ़ेक्शस’ है?”
मगर कोस्तिक
मुस्कुराकर बोला: “नहीं, क्या कह रहा है तू, घबरा मत. मुझे इन्फ़ेक्शन नहीं है. कल
डॉक्टर ने कहा कि मैं बच्चों के ग्रुप में घूम फिर सकता हूँ.”
मीश्का वापस
कोस्तिक की ओर सरक गया, और मैंने पूछा:
“जब तू बीमार था, तो क्या दर्द होता था?”
“नहीं”, कोस्तिक ने जवाब दिया, “दर्द नहीं होता
था. मगर ‘बोरिंग़’ बहुत था. वैसे और कोई बात नहीं थी. मुझे खूब सारी स्टिकर्स वाली
तस्वीरें प्रेज़ेंट में मिलीं, मैं पूरे समय उन्हें बनाता रहा, इत्ता बोर हो
गया...”
अल्योन्का
बोली:
“हाँ, बीमार पड़ना अच्छा है! जब बीमार होते हो तो
हमेशा कुछ न कुछ प्रेज़ेंट देते हैं.”
मीश्का ने कहा:
“वो तो जब तुम अच्छे होते हो, तब भी देते हैं.
बर्थ-डे पर या क्रिसमस पे.”
मैंने कहा:
“जब ‘ए’ ग्रेड लेकर अगली क्लास में जाते हो, तब
भी देते हैं.”
मीश्का ने कहा:
“मुझे नहीं देते. मेरी तो हमेशा ‘सी’ ग्रेड ही
आती है! मगर जब मीज़ल्स होते हैं, तो कोई ख़ास चीज़ नहीं देते, क्योंकि बाद में सारे
खिलौने जला देने पड़ते हैं. बुरी बीमारी है मीज़ल्स, किसी काम की नहीं.”
कोस्तिक ने
पूछा:
“और, क्या अच्छी बीमारियाँ भी होती हैं?”
“ओहो,” मैंने कहा, “जित्ती चाहो! मिसाल के तौर
पे, चिकन-पॉक्स. बहुत अच्छी, मज़ेदार बीमारी है. जब मैं बीमार पड़ा था, तो हर दाने
के ऊपर एक-एक करके हरा ऑइन्टमेंट पोता गया था. मैं हरे तेंदुए की तरह हो गया था.
क्या ये बुरी बात है?”
“बेशक, अच्छी बात है,” कोस्तिक ने कहा.
अल्योन्का ने
मेरी तरफ़ देखा और कहा:
“जब हर्पीज़ हो जाती है, तो वो भी बड़ी ख़ूबसूरत
बीमारी है.”
मगर मीश्का
सिर्फ हँसा:
“लो, सुन लो – ‘ख़ूबसूरत’! बस दो तीन धब्बे लगा
देते हैं, और बस, यही सारी ख़ूबसूरती है. नहीं हर्पीज़ – छोटी-मोटी चीज़ है. मुझे तो
सबसे ज़्यादा ‘फ्लू’ पसन्द है. जब ‘फ्लू’ होता है, तो रास्पबेरी-जैम के साथ चाय
देते हैं. जितना चाहो, उतना खाओ, यक़ीन ही नहीं होता. एक बार जब मैं बीमार पड़ा था,
तो जैम का पूरा डिब्बा खा गया था. मम्मा को भी बड़ा अचरज हुआ: “देखिए, वो बोली,
बच्चे को ‘फ्लू’ हुआ है, टेम्परेचर 380 है, और भूख कितनी लगी है”. और
दादी ने कहा: “फ्लू भी अलग-अलग तरह का होता है, ये कोई नई तरह का फ्लू है, उसे और
दो, उसका शरीर मांग कर रहा है”. और, मुझे और जैम दिया गया, मगर मैं ज़्यादा नहीं खा
सका, कितनी अफ़सोस की बात थी...इस फ्लू का मुझ पर शायद इतना बुरा असर हुआ है”.
अब मीश्का हाथ
पर चेहरा टिकाकर बैठ गया और सोचने लगा, मैंने कहा:
“फ्लू, बेशक, अच्छी बीमारी है, मगर टॉन्सिल्स से
उसका कोई मुक़ाबला ही नहीं है, वो बात ही और है!”
“ वो क्या?”
“वो ये कि”, मैंने
कहा, “जब टॉन्सिल्स काटकर निकाल देते हैं, तो बाद में आईस्क्रीम देते हैं, जमा देने
के लिए. ये तुम्हारे जैम से ज़्यादा अच्छा है!”
अल्योन्का ने कहा:
”टॉन्सिल्स क्यों
हो जाते हैं?”
मैंने कहा:
“सर्दी-ज़ुकाम से. वो नाक में पनपते हैं, जैसे मशरूम्स,
क्योंकि वहाँ नमी होती है.”
मीश्का ने गहरी
साँस लेकर कहा:
“ज़ुकाम, बहुत बकवास बीमारी है. नाक में कुछ डालते
हैं, नाक और भी तेज़ बहने लगती है.”
मैंने कहा:
“मगर केरोसिन पी सकते हैं. ज़रा भी बू नहीं होती.”
”और केरोसिन क्यों
पीना चाहिए?”
मैंने कहा:
“मतलब, पीना नहीं, मुँह में रखना. जैसे कि जादूगर
पूरा मुँह भर लेता है, और फिर हाथ में जलती हुई दियासलाई लेकर... और मुँह से ऐसी आग
निकलती है! बिल्कुल आग का ख़ूबसूरत फ़व्वारा दिखाई देता है. बेशक, जादूगर इसके पीछे का
सीक्रेट जानता है. बिना सीक्रेट जाने ये मत करना, कुछ भी हासिल नहीं होगा.”
“सर्कस में तो मेंढ़क भी निगल जाते हैं,” अल्योन्का
ने कहा.
“और मगरमच्छ भी!” मीश्का ने पुश्ती जोड़ी.
मैं हँसते-हँसते
लोट-पोट हो गया. क्या ऐसी गप भी मारी जा सकती है. सबको मालूम है, कि मगरमच्छ ‘शेल्स’
से बना होता है, उसे कैसे खा सकते हैं?
मैंने कहा:
“मीश्का, साफ़ पता चल रहा है, कि तेरा दिमाग़ चल गया
है! तू मगरमच्छ को कैसे खा सकता है, जब वो इतना कड़ा होता है. उसे किसी भी तरह से चबा
नहीं सकता.”
“अगर वो बॉइल्ड हो तो!” मीश्का ने कहा.
“क्या कह रहा है! अब तू मगरमच्छ उबालेगा!” मैं मीशा
पे चिल्लाया.
“उसके तो नुकीले दाँत होते हैं,” अल्योन्का ने कहा,
और ज़ाहिर था कि वो डर गई थी.
और कोस्तिक ने आगे
जोड़ा:
“वो ख़ुद ही हर रोज़ अपने ट्रेनर्स को खा जाता है.”
अल्योन्का ने कहा:
“ऐसा?” और उसकी आँखें सफ़ेद बटन्स जैसी हो गईं.
कोस्तिक ने एक ओर
थूक दिया.
अल्योन्का ने होंठ
टेढ़े किए:
“अच्छी-अच्छी बातों के बारे में बात कर रहे थे –
मशरूम्स के बारे में और हर्पीज़ के बारे में, और अब मगरमच्छों के बारे में. मुझे उनसे
डर लगता है...”
मीश्का ने कहा;
“बीमारियों के बारे में खूब बातें कर लीं.
खाँसी, मिसाल के तौर पे. उसमें क्या दम है? जब तक स्कूल की छुट्टी न करनी पड़े...”
“चलो, ये
भी ठीक है.” कोस्तिक ने कहा, “और, वैसे आपने सही कहा कि जब बीमार पड़ते हो, तो सब लोग
तुमसे ज़्यादा प्यार करते हैं.”
“ प्यार करते हैं,” मीश्का ने कहा, “सहलाते हैं...मैंने
‘नोट’ किया है: जब बीमार पड़ते हो, तो हर चीज़ की फ़रमाइश कर सकते हो. जो ‘गेम’ चाहो,
या हथियार, या सोल्डरिंग मशीन.”
मैंने कहा:
“बेशक. बस, ये ज़रूरी है कि बीमारी ज़्यादा ख़तरनाक
किस्म की हो. जैसे, अगर टाँग या गर्दन तुड़वा बैठो, तब तो जो चाहो, ख़रीद देंगे.”
अल्योन्का ने कहा:
“और साइकल?”
कोस्तिक हिनहिनाया:
“अगर पैर
टूटा है, तो साइकल किसलिए?”
“मगर वो तो जुड़ जाएगा ना!” मैंने कहा.
कोस्तिक ने कहा:
“सही है!”
मैंने कहा:
“और वो जाएगा कहाँ! हाँ, मीश्का?”
मीश्का ने सिर हिलाया,
और तभी अल्योन्का ने अपनी ड्रेस घुटनों तक खींची और पूछा:
“और ऐसा क्यों होता है, कि, जैसे थोड़ा सा जल जाओ,
या घूमड़ निकल आए, या कोई नील पड़ जाए, तो उल्टे, ऊपर से धुलाई ही होती है. ऐसा
क्यों होता है?”
“ये तो अन्याय है!” मैंने कहा और पैर से बकेट को
ठोकर मारी, जिसमें हमारे औज़ार रखे थे.
कोस्तिक ने पूछा:
“और, ये आपने क्या बनाया है?”
मैंने कहा:
“स्पेस-शिप की लॉन्चिंग के लिए प्लेटफॉर्म!”
कोस्तिक चीख़ पड़ा:
“तो, तुम लोग चुप क्यों हो! धारियों वाले शैतानों!
बातें बन्द करो. चलो, जल्दी से बनाएँगे!!!”
और हमने बातचीत
बन्द करके बनाना शुरू कर दिया.
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