गेंद वाली लड़की
लेखक: विक्टर
द्रागून्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति
रामदास
एक बार मैं अपनी पूरी क्लास के साथ सर्कस
गया. सर्कस जाते हुए मैं बहुत ख़ुश था, क्योंकि जल्दी ही मैं आठ साल का होने वाला
हूँ, मगर सर्कस मैं सिर्फ एक बार गया हूँ, और वो भी काफ़ी पहले. ख़ास बात, अल्योन्का
सिर्फ छह साल की है, मगर वह पूरे तीन बार सर्कस जा चुकी है. इससे मुझे बहुत
इन्सल्ट लगती है. और अब, हमारी पूरी क्लास सर्कस के लिए निकली, और मैं सोच रहा था,
कि मैं बड़ा हो गया हूँ और अब, इस समय सब कुछ अच्छी तरह देखूँगा. पिछली बार मैं
छोटा था, मुझे समझ में ही नहीं आता था, कि सर्कस क्या होती है. उस समय, जब सर्कस
के अरेना में कलाबाज़ निकले और एक के सिर पे दूसरा चढ़ गया, तो मैं ठहाके मारते हुए
हँस रहा था, क्योंकि मैंने सोचा कि ये सब वो लोग जानबूझकर कर रहे हैं, हँसाने के
लिए, क्योंकि घर में तो मैंने बड़े अंकल्स को एक दूसरे के ऊपर चढ़ते हुए कभी नहीं
देखा था. रास्ते पर भी ऐसा कभी नहीं हुआ था. इसलिए मैं ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगा रहा
था. तब तक मुझे नहीं मालूम था कि ये आर्टिस्ट्स अपना हुनर दिखा रहे हैं. उस बार
मैं ज़्यादातर ऑर्केस्ट्रा की तरफ़ ही देख रहा था, कि वे कैसे बजाते हैं – कोई ड्रम
बजा रहा था, कोई पाईप – डाइरेक्टर डंडी हिलाता है, मगर उसकी तरफ़ कोई नहीं देखता,
बल्कि सब अपनी मर्ज़ी से बजा रहे हैं. ये मुझे बहुत अच्छा लगा था, मगर जब मैं इन
संगीतकारों की तरफ़ देख रहा था, तो अरेना के बीच में आर्टिस्ट्स अपना कमाल दिखा रहे
थे. मैंने उनकी ओर नहीं देखा और सबसे मज़ेदार चीज़ छोड़ दी. बेशक, उस समय मैं बिल्कुल
बेवकूफ़ ही तो था.
तो, हमारी पूरी क्लास सर्कस पहँची. मुझे
एकदम पसन्द आ गया कि यहाँ कोई ख़ास तरह की ख़ुशबू है, दीवारों पर चमकदार तस्वीरें
लगी हैं, छत खूब ऊँची है, और वहाँ अलग-अलग तरह के चमचमाते झूले टंगे हैं. इसी समय
म्यूज़िक शुरू हो गया और सब लोग अपनी अपनी कुर्सी पर बैठने के लिए लपके, फिर
‘एस्किमो’ ख़रीदी और खाने लगे. अचानक लाल परदे के पीछे से लोगों की एक पूरी क़तार
निकली, उन्होंने बेहद ख़ूबसूरत कपड़े पहने थे – पीली धारियों वाली लाल ड्रेस. वे
परदे के किनारों पर खड़े हो गए, और उनके बीच से काले सूट में उनका डाइरेक्टर निकला.
उसने ज़ोर से कुछ कहा, जो मुझे समझ में नहीं आया, और म्यूज़िक तेज़-तेज़ और ज़ोर से
बजने लगा, और अरेना में आया कलाकार-बाज़ीगर, और मनोरंजन शुरू हो गया. वह गेंदें
उछाल रहा था, दस या सौ एक साथ ऊपर की ओर, और उन्हें वापस पकड़ रहा था. फिर उसने
धारियों वाली गेंद पकड़ी और उससे खेलने लगा...वह सिर से भी उसे मार रहा था, मुँह से
भी, माथे से भी, और पीठ पर भी घुमा रहा था, और एड़ी से दबा रहा था, गेंद उसके पूरे
जिस्म पर इस तरह घूम रही थी जैसे उसमे चुम्बक चिपका हो. ये बहुत बढ़िया था. और फिर
अचानक बाज़ीगर ने गेंद पब्लिक की ओर उछाल दी, और वहाँ सचमुच की गड़बड़ होने लगी,
क्योंकि उस गेंद को मैंने पकड़कर वालेर्का की ओर फेंक दिया, और वालेर्का ने मीश्का
की ओर, और मीश्का ने बगैर किसी बात के, अचानक निशाना साध कर म्यूज़िक-डाइरेक्टर की
ओर उसे फेंका, गेंद उसे नहीं लगी, बल्कि ड्रम पर जा गिरी! बाम्! ड्रम बजाने वाले
को गुस्सा आ गया और उसने गेंद को वापस
बाज़ीगर की तरफ़ उछाल दिया, मगर गेंद वहाँ तक नहीं पहुँची, वो एक ख़ूबसूरत आण्टी के
जूड़े पे बैठ गई, और पता चला कि उसने विग लगाया था, जो गिर गया. हम सब इतनी ज़ोर-ज़ोर
से ठहाके लगाने लगे कि बस दम ही निकलते-निकलते बचा.
और, जब बाज़ीगर
परदे के पीछे भाग गया, तो हम बड़ी देर तक शांत न हो सके. मगर फिर अरेना में एक
बड़ी-भारी नीली गेंद लाई गई, और अनाऊन्सर अंकल बीचोंबीच आकर कुछ चिल्लाया. कुछ भी
समझ में नहीं आ रहा था, और ऑर्केस्ट्रा ने भी फिर से बढ़िया धुन बजाना शुरू कर
दिया, बस इस बार वो इतनी जल्दी-जल्दी नहीं बज रहा था, जितना पहले बज रहा था.
अचानक एक छोटी
सी लड़की भागते हुए अरेना में आई. मैंने इतनी छोटी और इतनी सुन्दर लड़कियों को पहले
कभी नहीं देखा था. उसकी आँखें नीली-नीली थीं, और उनके चारों ओर लम्बी पलकें थीं.
उसने चांदी जैसी चमचमाती ड्रेस और एक हवाई ‘केप’ पहना था, उसके हाथ लम्बे थे; उसने
पंछी की तरह हाथ हिलाए, और उछल कर इस ख़ूब बड़ी गेंद पर चढ़ गई, जिसे उसीके लिए लाए
थे. वह गेंद पर खड़ी हो गई. और फिर अचानक उस पर दौड़ने लगी, जैसे गेंद से कूदना
चाहती हो, मगर गेंद उसके पैरों के नीचे घूम रही थी, और वह उसके ऊपर ऐसे कर रही थी,
मानो दौड़ रही हो, मगर असल में अरेना का गोल-गोल चक्कर लगा रही थी. मैंने ऐसी लड़कियों
को पहले कभी नहीं देखा था. वे सब साधारण थीं, मगर, ये कोई ख़ास तरह की लड़की थी. वह
अपने नन्हे-नन्हे पैरों से गेंदपर इस तरह दौड़ रही थी, जैसे समतल ग्राऊण्ड पे दौड़
रही हो, और नीली गेंद उसे अपने ऊपर उठाए-उठाए ले जा रही थी : वह उस पर सीधे, आगे,
पीछे, दाएँ, बाएँ, जहाँ चाहे वहाँ जा सकती थी! जब इस तरह से दौड़ रही थी, मानो तैर
रही हो, तो वह प्रसन्नता से मुस्कुरा रही थी, और मैंने सोचा कि, शायद, ये ही
थम्बेलिना है, इत्ती छोटी, प्यारी और असाधारण थी वो. इस समय वह रुक गई और किसी ने
उसे घुंघरुओं वाले ब्रेसलेट्स दिए, उसने अपने जूतों पर, और हाथों में उन्हें पहन
लिया और फिर से धीरे-धीरे गेंद पर घूमने लगी, जैसे डान्स कर रही हो. ऑर्केस्ट्रा
शांत किस्म का म्यूज़िक बजाने लगा, और लड़की के लम्बे हाथों के सुनहरे घुंघरू कितनी
महीन आवाज़ कर रहे थे. ये सब किसी परी-कथा के समान था. अब लाइट भी बन्द कर दी गई,
और ऐसा लगा कि लड़की अंधेरे में प्रकाशित होना भी जानती है, और वो हौले-हौले गोल
चक्कर लगा रही थी, चमक रही थी, और घुंघरुओं की नाज़ुक आवाज़ कर रही थी, और ये सब
आश्चर्यजनक था, - मैंने अपनी ज़िन्दगी में इस तरह की कोई चीज़ नहीं देखी थी.
और जब लाइट
जलाई गई, तो सब लोग तालियाँ बजाने लगे, और ‘शाबाश’ चिल्लाने लगे, मैं भी ‘शाबाश’
चिल्लाया. लड़की अपनी गेंद से नीचे उछली और सामने की ओर भागने लगी, हमारी तरफ़, और
भागते-भागते बिजली की तरह सिर के बल कुलाँटे लेने लगी, और बार-बार कुलाँटे लेते
हुए सामने आने लगी. मुझे ऐसा लगा कि अभ्भी वह रेलिंग से टकरा जाएगी, और मैं डर
गया, उछल कर खड़ा हो गया और उसकी तरफ़ भागने को तैयार हो गया, जिससे उसे पकड़ कर बचा
सकूँ, मगर लड़की अचानक रुक गई, जैसे ज़मीन में गड़ गई हो, उसने अपने दोनों हाथ फ़ैलाए,
ऑर्केस्ट्रा ख़ामोश हो गया, और वह खड़ी होकर मुस्कुराने लगी. सब लोग पूरी ताक़त से
तालियाँ बजाने लगे और पैरों से भी खटखटाने लगे. इसी पल लड़की ने मेरी तरफ़ देखा, और
मैंने देखा, कि उसने देख लिया है कि मैं उसे देख रहा हूँ और मैं ये भी देख रहा हूँ,
कि वो मुझे देख रही है, और उसने मेरी ओर देखते हुए हाथ हिलाया और मुस्कुरा दी.
उसने अकेले मेरी तरफ़ ही देखकर हाथ हिलाया था और मुस्कुराई थी. मेरा दिल फिर से भाग
कर उसके पास जाने को करने लगा, और मैंने उसकी तरफ़ हाथ बढ़ा दिए. उसने अचानक सबको एक
फ्लाइंग किस दिया और लाल परदे के पीछे भाग गई, जहाँ सारे आर्टिस्ट्स भाग कर चले गए
थे. फिर अरेना में आया एक जोकर अपने मुर्गे को लेकर और छींकने लगा, गिरने लगा, मगर
मुझे उससे कोई मतलब नहीं था. मैं बस, पूरे समय गेंद वाली लड़की के बारे में ही
सोचता रहा, कि वो कितनी वन्डरफुल है, कैसे उसने मेरी तरफ़ देखकर हाथ हिलाया था और
मुस्कुराई थी, मैं कुछ और नहीं देखना चाहता था. बल्कि, मैंने अपनी आँखें कस के
बन्द कर लीं, जिससे लाल नाक वाले इस बेवकूफ़ जोकर को न देखना पड़े, क्योंकि उसने मेरी वाली लड़की का मज़ा किरकिरा कर
दिया था: मेरे ख़यालों में अभी तक नीली गेंद पे खड़ी हुई वही लड़की थी.
इसके बाद
इंटरवल हुआ, और सब लड़के सिट्रो पीने के लिए बुफ़े की ओर भागे, मगर मैं हौले से नीचे
उतरा और परदे की तरफ़ गया, जहाँ से सारे आर्टिस्ट्स बाहर निकलते थे.
मैं और एक बार
उस लड़की को देखना चाहता था, और इसलिए परदे के पास खड़े होकर देखता रहा – क्या पता
अचानक वो बाहर आ जाए? मगर वो नहीं आई.
इंटरवल के बाद
शेरों वाला प्रोग्राम हुआ, मुझे अच्छा नहीं लग रहा था कि रिंग-मास्टर उनकी पूँछें
पकड़कर उन्हें घसीट रहा था, जैसे वो शेर नहीं, बल्कि मरी हुई बिल्लियाँ हों. वह
उन्हें एक जगह से दूसरी जगह पे बैठने के लिए मजबूर कर रहा था, या उन्हें फ़र्श पर
लिटा कर उनके ऊपर से चल रहा था, जैसे कालीन पर चल रहा हो, शेरों को देखकर ऐसा लग
रहा था, जैसे उन्हें इस बात की शिकायत हो कि उन्हें चैन से लेटने भी नहीं देते
हैं. ये बिल्कुल मज़ेदार नहीं था, क्योंकि शेर को तो असीमित जंगलों में शिकार करना
चाहिए, जंगली भैंसों का पीछा करना चाहिए, अपनी भयंकर दहाड़ से आस-पास के इलाके को
बहरा करना चाहिए, जो लोगों को काँपने पर मजबूर कर दे. और, ये तो शेर नहीं, बल्कि
पता नहीं कौन लग रहा था.
जब ‘शो’ ख़तम
हुआ और हम घर जाने लगे, मैं पूरे समय गेंद वाली लड़की के बारे में ही सोच रहा था.
शाम को पापा ने
पूछा:
“तो? अच्छी लगी सर्कस?”
मैंने कहा:
“पापा! सर्कस में एक छोटी लड़की है. वो नीली
गेंद पर डान्स करती है. इतनी प्यारी, सबसे बढ़िया! उसने मेरी तरफ़ देखकर हाथ हिलाया
और मुस्कुराई! क़सम से, सिर्फ मेरी तरफ़! समझ रहे हो, पापा? अगले इतवार को सर्कस
जाएँगे! मैं तुमको दिखाऊँगा!”
पापा ने
कहा:
“ज़रूर जाएँगे. मुझे सर्कस बहुत अच्छी लगती है!”
मम्मा
ने हम दोनों की ओर ऐसे देखा, जैसे पहली बार देख रही हो.
...और,
एक लम्बा हफ़्ता शुरू हुआ, मैं खा रहा था, पढ़ाई कर रहा था, उठ रहा था, सो रहा था,
खेल रहा था, और झगड़ा भी कर रहा था, मगर फिर भी हर रोज़ सोच रहा था कि न जाने इतवार
कब आएगा, और मैं पापा के साथ कब सर्कस जाऊँगा, और फिर से गेंद वाली लड़की को
देखूँगा, और पापा को दिखाऊँगा, और, हो सकता है, पापा उसे हमारे घर बुला लें, तब
मैं उसे अपनी ब्राऊनिंग-पिस्तौल दूँग़ा और पालों वाले जहाज़ की तस्वीर बनाऊँगा.
मगर
इतवार को पापा नहीं जा सके. उनके पास दोस्त लोग आ गए, वे कुछ चार्ट्स देख रहे थे,
और चिल्ला रहे थे, और सिगरेट पी रहे थे, और चाय पी रहे थे और काफ़ी देर तक बैठे
रहे, और उनके जाने के बाद मम्मा का सिर दर्द करने लगा, और पापा ने मुझसे कहा:
“अगले इतवार को...प्रॉमिस करता हूँ, पक्का
प्रॉमिस.”
मैं फिर
से अगले इतवार का इंतज़ार करने लगा, ये भी याद नहीं है कि वह हफ़्ता मैने कैसे
गुज़ारा. पापा ने अपना वादा पूरा किया: वे मेरे साथ सर्कस आए और दूसरी कतार की
टिकट्स ख़रीदीं, मैं ख़ुश हो गया कि हम इतने क़रीब बैठे हैं, शो शुरू हुआ, और मैं
इंतज़ार करने लगा कि कब गेंद वाली लड़की आती है. मगर अनाऊन्समेंट करने वाला आदमी,
अलग-अलग आर्टिस्टों के नाम लेता रहा, वे बाहर आते और हर तरह के खेल दिखाते, मगर
लड़की आ ही नहीं रही थी. मैं बेचैनी के मारे थरथराने लगा, मेरा दिल बेहद चाह रहा था
कि पापा उसे देखें, कि अपनी चमचमाती ड्रेस और हवाई ‘केप’ में वह कैसी असाधारण लगती
है और कितनी सफ़ाई से वो नीली गेंद पर दौड़ती है. हर बार जब कोई आर्टिस्ट बाहर
निकलता, मैं पापा से फ़ुसफुसा कर कहता:
“अब उसके बारे में अनाऊन्समेंट होगा!”
मगर,
वह, जैसे जानबूझकर किसी और ही का नाम लेता, और मेरे मन में उसके प्रति नफ़रत जागने
लगी, मैं पूरे समय पापा से कहता रहा:
“ये भी क्या! ये तो बकवास है! ये वो नहीं है!”
पापा मेरी तरफ़ देखे बिना कहते:
“डिस्टर्ब
न कर, प्लीज़! ये बहुत मज़ेदार है! सबसे मज़ेदार!”
मैंने
सोचा कि अगर पापा को ये बहुत मज़ेदार लग रहा है, तो इसका मतलब ये हुआ कि उन्हें
सर्कस अच्छी तरह से समझ में नहीं आता है. देखते हैं, कि जब वो गेंद वाली लड़की को
देखेंग़े, तो क्या कहेंगे. शायद अपनी सीट पे ही दो मीटर ऊँचे उछल पड़ेंगे...
मगर तभी
अनाऊन्सर निकला और उसने अपनी गूँगी-बहरी आवाज़ में घोषणा की:
“इं-ट-र-वल!”
मुझे
अपने कानों पर यक़ीन ही नहीं हुआ! इंटरवल? क्यों? दूसरे सेक्शन में तो सिर्फ शेर ही
होंगे! और, मेरी गेंद वाली लड़की कहाँ है? कहाँ है वो? वो क्यों नहीं आ रही है? हो
सकता है, कि बीमार हो? हो सकता है, कि वह गिर गई हो और उसके दिमाग़ पे चोट लगी हो?
मैंने
कहा:
“पापा, जल्दी से जाकर पता लगाते हैं कि गेंद
वाली लड़की कहाँ है!”
पापा ने
जवाब दिया:
“हाँ, हाँ! हाँ, वो तेरी बैलेन्सर कहाँ है? दिखाई
नहीं दी! चल, जाकर प्रोग्राम-शीट ख़रीदते हैं!...”
पापा ख़ुश और संतुष्ट थे. उन्होंने चारों ओर नज़र दौड़ाई, मुस्कुराए और बोले:
“ आह, कितनी अच्छी लगती है सर्कस! ये
ख़ुशबू...दिमाग़ चकराने लगता है...”
हम कॉरीडोर में
आए. वहाँ लोगों की बेहद भीड़ थी, और चॉकलेट्स, वेफ़र्स बेचे जा रहे थे, दीवारों पर
कई तरह के शेरों के थोबड़े लटक रहे थे, हम कुछ देर घूमे और आख़िर में प्रोग्राम-शीट्स
बेचने वाली कंट्रोलर हमें मिल ही गई. पापा ने उससे एक प्रोग्राम-शीट ख़रीदी और
देखने लगे. मुझसे रहा न गया और मैंने कंट्रोलर से पूछा:
“प्लीज़, बताइए कि गेंद वाली लड़की का प्रोग्राम
कब है?”
“कौन सी लड़की का ?”
पापा ने कहा:
”प्रोग्राम में
गेंद पर दिखाई गई है बैलेन्सर टी. वोरोन्त्सोवा. वो कहाँ है?”
मैं चुपचाप खड़ा
था. कंट्रोलर ने कहा:
“आह, आप तानेच्का वोरोन्त्सोवा के बारे में पूछ
रहे हैं? वो चली गई. चली गई. आपने बड़ी देर कर दी?”
मैं चुपचाप खड़ा
था.
पापा ने कहा:
“हमें दो हफ़्तों से चैन नहीं है. बैलेन्सर तानेच्का
वोरोन्त्सोवा को देखना चाहते हैं, और वो नहीं है.”
कंट्रोलर बोली:
हाँ, वो चली
गई...अपने माँ-बाप के साथ...उसके माँ-बाप हैं “कॉपरमैन – दि टू-एवर्स” (एवर्स
इन कलाकारों का उपनाम है. दि टू एवर्स से तात्पर्य है एवर्स अण्ड एवर्स. ये लोग बदन
पर तांबे के रंग का पेंट पोत लिया करते थे, इस कारण उन्हें ‘कॉपरमैन’ कहा जाता था –
अनु.)
. शायद आपने सुना हो? बेहद अफ़सोस हुआ. कल ही गए हैं.”
. शायद आपने सुना हो? बेहद अफ़सोस हुआ. कल ही गए हैं.”
मैंने कहा:
“देखो, पापा...”
“मुझे नहीं मालूम था, कि वो चली जाएगी. कितने अफ़सोस
की बात है...ओह, तू, माय गॉड!...फिर, क्या...कुछ नहीं कर सकते...”
मैंने कंट्रोलर
से पूछा:
“मतलब, पक्का, चली गई?
उसने कहा:
“पक्का.”
“पता है, कि कहाँ गई?”
उसने कहा:
“व्लादीवोस्तोक.”
ओह, कित्ती दूर.
व्लादीवोस्तोक. मुझे मालूम है कि व्लादीवोस्तोक नक्शे के बिल्कुल आख़िरी छोर पे है,
मॉस्को से दाईं ओर.
मैंने कहा:
“कित्ती दूर!”
कंट्रोलर अचानक
जल्दी करने लगी:
“जाइए, जाइए, अपनी जगह पे जाइए, लाइट बुझा रहे हैं!
पापा ने कहा:
“चल, डेनिस्का! अब आएँगे शेर! झबरे, दहाडेंगे – भयानक!
चल, भागें!”
मैंने कहा:
“पापा घर जाएँगे.”
उन्होंने कहा:
“एक बार...”
कंट्रोलर मुस्कुराने
लगी. मगर हम क्लोक-रूम की ओर चल पड़े, मैंने नंबर निकाला, और हमने अपने कोट पहने और
सर्कस से निकल गए. हम ‘बुलवार’ पे चल रहे थे और बड़ी देर तक चलते रहे, फिर मैंने कहा:
“व्लादीवोस्तोक – नक्शे के बिल्कुल आख़िर में है.
अगर रेल से जाओ, तो वहाँ पहुँचने में पूरा महीना लग जाएगा...”
पापा चुप रहे. उन्हें,
ज़ाहिर है, मुझसे कोई मतलब नहीं था. हम कुछ देर और चले, और मुझे अचानक हवाई जहाज़ों की
याद आई और मैंने कहा:
“मगर TU-104 से तीन घंटे में
पहुँच जाएँगे!”
मगर पापा ने अभी
भी कोई जवाब नहीं दिया. उन्होंने मेरा हाथ कसके पकड़ा था. जब हम गोर्की स्ट्रीट पर आए
तो उन्होंने कहा:
“कॅफ़े-आईस्क्रीम में जाएँगे. दो स्कूप्स खाएँगे,
हाँ?”
मैंने कहा:
“न जाने क्यों, दिल नहीं चाह रहा, पापा.”
“वहाँ पानी भी मिलता है, उसे कहते हैं “काख़ेतिन्स्काया”.
दुनिया भर में इससे अच्छा पानी नहीं पिया.”
मैंने कहा:
“दिल नहीं चाहता, पापा.”
उन्होंने मुझे मनाया नहीं. उन्होंने रफ़्तार तेज़ कर दी
और मेरा हाथ कसके पकड़ लिया. मेरा हाथ दर्द भी करने लगा. वो बेहद तेज़ चल रहे थे, और
मैं मुश्किल से उनके साथ चल पा रहा था. वो इतनी तेज़ क्यों चल रहे थे? वो मुझसे बात
क्यों नहीं कर रहे थे? मैं उनका चेहरा देखना चाहता था. मैंने सिर उठाया. उनका चेहरा
बहुत गंभीर और दुखी था.
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