एक आश्चर्यजनक दिन
लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
कुछ दिन पहले हमने स्पेस-शिप को छोड़ने के
लिए प्लेटफॉर्म बनाना शुरू किया था और अभी तक उसे पूरा नहीं कर पाए हैं, और पहले
मैं सोचता था कि दो-तीन बार में ही सब तैयार हो जाएगा. मगर बात बन ही नहीं रही थी,
सिर्फ इसलिए कि हम जानते ही नहीं थे कि ये प्लेटफॉर्म कैसा होना चाहिए.
हमारे पास कोई प्लान नहीं था.
तब मैं घर गया. एक कागज़ लिया और उस पर
ड्राईंग बनाने लगा, कि कहाँ क्या होना चाहिए: कहाँ प्रवेश द्वार, कहाँ बाहर निकलने
का रास्ता, कहाँ ड्रेसिंग रूम, कहाँ अंतरिक्ष यात्री को बिदा करेंगे और कहाँ बटन
दबाना है. कागज़ पर तो ये सब बहुत अच्छी तरह बन गया, ख़ासकर बटन. मगर जब मैं
प्लेटफॉर्म बना रहा था, तो मैंने उसके साथ ही रॉकेट भी बना दिया. पहली स्टेज, और
दूसरी स्टेज, और अंतरिक्ष यात्री की कैबिन, जहाँ वो वैज्ञानिक अवलोकन करता रहेगा,
और एक अलग कोना, जहाँ वह खाना खाएगा, और मैंने ये भी सोच लिया कि वह हाथ-मुँह कहाँ
धोएगा, और इसके लिए स्वयंचालित बकेट्स भी बना दीं, जिनमें वो बरसात का पानी जमा कर
सके.
जब मैंने ये प्लान अल्योन्का, मीश्का और
कोस्तिक को दिखाया, तो उन्हें बहुत पसन्द आया. सिर्फ बकेट्स पे मीश्का ने क्रॉस
लगा दिया.
उसने कहा:
“वो स्पीड़ कम कर देंगी.”
और कोस्तिक ने कहा:
“बेशक, बेशक! ये बकेट्स हटा दे.”
और अल्योन्का ने कहा:
“बिल्कुल हटा दे!”
मैंने उनसे बहस नहीं की, और हम सारी बेकार
की बातें करना बन्द करके काम पे लग गए. हम एक भारी धम्मस ढूँढ़ लाए. मैं और मीश्का
ज़मीन पर उसे मारने लगे. हमारे पीछे-पीछे अल्योन्का चल रही थी और बिल्कुल हमारे
नज़दीक अपनी सैण्डल्स ला रही थी. उसके सैण्डल्स नए थे, बहुत ख़ूबसूरत थे, मगर पाँच
ही मिनटों में वे मटमैले हो गए. उन पर धूल का रंग चढ़ गया.
हमने बहुत अच्छे से ज़मीन को समतल किया और
हम मिलजुल कर काम कर रहे थे. एक और लड़का, अन्द्र्यूश्का हमारे साथ हो लिया, वो छह
साल का है. हालाँकि उसके बाल थोड़े लाल-लाल हैं, मगर वह काफ़ी स्मार्ट है. जब काम
पूरे ज़ोरों पर था, तभी चौथी मंज़िल की खिड़की खुली, और अल्योन्का की मम्मा चिल्लाई:
“अल्योन्का, फ़ौरन घर आ! ब्रेकफ़ास्ट!”
जब अल्योन्का भाग गई, तो कोस्तिक ने कहा:
“अच्छा ही हुआ, जो चली गई!”
और मीश्का ने कहा:
“अफ़सोस है. कुछ भी हो, वर्किंग हैण्ड तो
है...”
मैंने कहा:
“चलो, दबाते हैं!”
और हमने ज़ोर ज़ोर से ज़मीन को दबाना शुरू
किया, और बहुत जल्दी प्लेटफॉर्म तैयार हो गया. मीश्का ने उसे घूम-घूमकर देखा, ख़ुशी
से मुस्कुराया और कहने लगा:
“अब, ख़ास बात तय करना है: अन्तरिक्ष यात्री कौन
बनेगा.”
अन्द्र्यूश्का फ़ौरन चहका:
“मैं बनूँगा अन्तरिक्ष यात्री, क्योंकि मैं सबसे
छोटा हूँ, मेरा वज़न सबसे कम है!”
और कोस्तिक बोला:
“ये अभी पता नहीं है. मैं बीमार हो गया था, और
पता है, कितना दुबला हो गया था? तीन किलो!
अन्तरिक्ष यात्री मैं बनूँगा.”
मैंने और मीश्का ने एक दूसरे की तरफ़ देखा.
इन छुटकों ने पहले ही तय कर लिया, कि वे अन्तरिक्ष यात्री बनेंगे, और हमारे बारे
में तो जैसे भूल ही गए.
वैसे, ये सारा खेल तो मैंने ही सोचा था.
और, इसलिए, साफ़ है, कि अन्तरिक्ष यात्री मैं ही बनूँगा!
मैंने इतना सोचा ही था, कि अचानक मीश्का
ने ऐलान कर दिया:
“और, इस सब काम के दौरान कमाण्ड्स कौन दे रहा
था? मैं कमाण्ड दे रहा था! मतलब, मैं ही अन्तरिक्ष यात्री बनूँगा!”
ये सब मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा. मैंने
कहा:
“चलो, पहले रॉकेट बनाते हैं. फिर अन्तरिक्ष
यात्री का इम्तिहान लेंगे. इसके बाद ही लॉन्च के बारे में फ़ैसला करेंगे.”
वे फ़ौरन ख़ुश हो गए, कि अभी काफ़ी खेल बाकी
है, और अन्द्र्यूश्का ने कहा:
“क्या मुझे रॉकेट बनाने दोगे?”
कोस्तिक ने कहा:
“ठीक है!”
और मीश्का ने कहा:
“उसमें
क्या है, मुझे मंज़ूर है.”
हम सीधे अपने लॉन्चिंग प्लेटफॉर्म पर ही
रॉकेट बनाने लगे. वहाँ एक मोटे पेट वाली खाली बैरेल पड़ी थी. पहले उसमें चूना था,
मगर अब वह खाली पड़ी थी. वो लकड़ी की थी और बिल्कुल सही सलामत थी, और मैंने फ़ौरन हर
चीज़ की कल्पना कर ली और कहा:
“ये होगी कैबिन. यहाँ कोई भी अन्तरिक्ष यात्री
समा सकता है, असली वाला भी, ये नहीं कि सिर्फ मैं या मीश्का ही समा सकते हैं.”
हमने इस बैरेल को बीचोंबीच रख दिया, और
कोस्तिक फ़ौरन गुप्त दरवाज़े से न जाने किसका पुराना समोवार उठा लाया. उसने उसे
बैरेल से जोड़ दिया, जिससे उसमें ईंधन डाल सके. ये बड़ी आसानी से हो गया. मैंने और
मीश्का ने अन्दर की चीज़ें बनाईं और किनारों पर दो छोटी-छोटी खिड़कियाँ बनाईं: ये
निरीक्षण के लिए इल्यूमिनेटर्स थे. अन्द्र्यूश्का एक काफ़ी बड़ा, ढक्कन वाला डिब्बा
उठा लाया और उसे आधा बैरेल में घुसा दिया. पहले मुझे समझ में नहीं आया, कि ये क्या
है, और मैंने अन्द्र्यूश्का से पूछा:
“ये
किसलिए?”
उसने जवाब दिया:
“क्या- किसलिए? ये सेकण्ड स्टेज है!”
मीश्का ने कहा:
“शाबाश!”
हमारा काम खूब तेज़ी से चल रहा था. हमने कई
तरह के रंग, और कुछ टीन के टुकड़े, और कीलें, और रस्सियाँ इकट्ठी कीं और इन
रस्सियों को रॉकेट के इर्द गिर्द लपेट दिया, और टीन के टुकड़ों को पूँछ वाले हिस्से
में फ़िट कर दिया, और पूरी बैरेल पर रंगों की लम्बी-लम्बी पट्टियाँ बना दीं, और भी
बहुत कुछ किया, सब कुछ तो बता नहीं सकता. और, जब हमने देखा कि सब कुछ तैयार है, तो
मीश्का ने अचानक समोवार का नल खोल दिया, मगर वहाँ से कुछ भी नहीं निकला. मीश्का को
ख़ूब ग़ुस्सा आ गया, मगर उसने ऊँगली से नल का निचला हिस्सा छुआ, उसे अन्द्र्यूश्का
की ओर मोड़ा, जो हमारा प्रमुख इंजीनियर समझा जाता था, और दहाड़ा:
“ये क्या है? तुमने क्या कर दिया है?”
अन्द्र्यूश्का ने कहा:
“क्या हुआ?”
तब मीश्का को बेहद गुस्सा आ गया और वो और
भी ज़ोर से गरजा:
“ख़ामोश! तुम प्रमुख इंजीनियर हो, या घास काटने
वाले?”
अन्द्र्यूश्का ने कहा:
“मैं प्रमुख इंजीनियर हूँ. तू चिल्ला क्यों रहा
है?”
और मीश्का बोला:
“मशीन में ईंधन कहाँ है? समोवार में...मतलब,
टैंक में ईंधन की एक भी बून्द नहीं है.”
और
अन्द्र्यूश्का:
“तो फिर क्या?”
मीश्का ने उससे कहा:
“एक झापड़ दूँगा, तब पता चलेगा ‘तो फिर क्या?’ !”
अब मैं बीच में पड़ा और चिल्लाया:
“टैंक भरो! मेकैनिक, जल्दी!”
मैंने कड़ी नज़र से कोस्तिक की तरफ़ देखा. वो
फ़ौरन समझ गया कि वही मेकैनिक है, उसने छोटी बकेट उठाई और बॉयलर रूम में पानी के
लिए भागा. वहाँ उसने आधी बकेट गरम पानी लिया, भागकर वापस आया, एक ईंट पर चढ़ा और
पानी डालने लगा.
उसने समोवार में पानी डाला और चिल्लाया:
“ईंधन है! सब ठीक है!”
मीश्का समोवार के ऊपर खड़ा होकर
अन्द्र्यूशा को अनाप-शनाप डाँट रहा था.
मगर, तभी मीश्का के ऊपर पानी गिरने लगा.
वो ख़ूब गरम तो नहीं था, मगर ठीक ही था, गुनगुना था, और, जब पानी मीश्का की कॉलर पे
और सिर पे गिरा, तो वह खूब डर गया और झुलसी हुई बिल्ली की तरह उछलकर दूर हट गया.
ज़ाहिर था, कि समोवार में छेद थे. उसने मीश्का को लगभग पूरा भिगो दिया और प्रमुख
इंजीनियर दुष्टता से ठहाके लगाने लगा:
“तेरे साथ ऐसा ही होना चाहिए!”
मीश्का की आँखें चमकने लगीं.
मैंने देखा कि मीश्का अभ्भी इस बदमाश
इंजीनियर का गिरेबान पकड़ने वाला है, इसलिए मैं फ़ौरन उन दोनों के बीच में खड़ा हो
गया और बोला:
”सुनो, लड़कों, हम अपने स्पेस-शिप का नाम
क्या रखेंगे?”
“टॉर्पीडो”... कोस्तिक ने कहा.
“या ‘स्पार्ताक’ ”, अन्द्र्यूश्का ने उसकी बात
काटी, “या फिर ‘दिनामो’ ”.
मीश्का फिर से ताव खा गया और बोला:
“नहीं, तब, सिस्का!”
मैंने उनसे कहा:
”ये कोई फुटबॉल नहीं है! आप तो हमारे
रॉकेट को “पाख़्ताकोर” भी कहेंगे! उसका नाम ‘वोस्तोक-2’ होना चाहिए! क्योंकि
गागारिन वाले शिप का नाम था सिर्फ ‘वोस्तोक’, और हमारा होगा ‘वोस्तोक-2’! ...चल
मीश्का, रंग ले और लिख!”
उसने फ़ौरन ब्रश लिया और नाक सुड़सुड़ाते हुए
रंग पोतने लगा. उसने जीभ भी बाहर निकाली. हम उसकी ओर देखने लगे, मगर उसने कहा:
“डिस्टर्ब मत करो! मेरी तरफ़ मत देखो!”
और हम उससे दूर हट गए.
अब मैंने थर्मामीटर लिया, जो मैंने बाथरूम
से पार किया था, और अन्द्र्यूश्का का टेम्प्रेचर नापने लगा. उसका टेम्प्रेचर निकला
48.600 . मैंने अपना सिर पकड़ लिया: ऐसा तो मैंने कभी नहीं देखा था कि
एक साधारण बच्चे का टेम्प्रेचर इत्ता ज़्यादा हो. मैंने कहा:
”ये कैसी भयानक बात है! शायद तुझे र्यूमेटिज़्म
है या टाइफ़ाइड हो गया है. टेम्प्रेचर 48.600
है. अलग हट.”
वो हट गया, मगर तभी कोस्तिक बीच में बोल
पड़ा:
“अब मुझे ‘चेक’ कर! मैं भी अंतरिक्ष यात्री बनना
चाहता हूँ!”
देखिए, कैसी मुसीबत हो जाती है: सभी चाहते
हैं! उनसे छुटकारा ही नहीं है. सारे छुटके एक जैसे ही हैं!
मैंने कोस्तिक से कहा:
“पहली बात, तू अभी अभी खसरे से उठा है. कोई भी मम्मा
तुझे अंतरिक्ष यात्री नहीं बनने देगी. दूसरी बात, अपनी ज़ुबान दिखा. उसकी ज़ुबान
गीली और गुलाबी थी, मगर थोड़ी ही दिखाई दे रही थी.
मैंने कहा:
“ये तू क्या छोटा सा सिरा दिखा रहा है! पूरी जीभ
बाहर निकाल!”
उसने फ़ौरन अपनी पूरी जीभ बाहर निकाली,
इतनी कि बिल्कुल कॉलर तक पहुँचने ही वाली थी. उसकी ओर देखने से बड़ी घिन लग रही थी,
और मैंने उससे कहा:
”बस, बस, बस है! बहुत हो गया! अपनी जीभ
हटा ले. बेहद लम्बी है तेरी जीभ, ख़तरनाक हद तक लम्बी. मुझे तो आश्चर्य हो रहा है
कि वो तेरे मुँह में कैसे समाती है.”
कोस्तिक पूरी तरह गड़बड़ा गया, मगर फिर उसने
अपने आप को संभाला, आँखें फ़ड़फ़ड़ाईं और धमकाने वाले अंदाज़ में बोला:
“तू चिर-चिर मत कर! सीधे-सीधे बता: मैं अंतरिक्ष
यात्री बनने लायक हूँ या नहीं?”
तब मैंने कहा:
“ऐसी जीभ के साथ? बेशक, नहीं! क्या तू समझता
नहीं है कि अगर अंतरिक्ष यात्री की ज़ुबान लम्बी हो तो वह किसी काम के लायक़ नहीं
है? आख़िर वो पूरी दुनिया को सारे सीक्रेट्स बताता है: कहाँ कौन सा तारा घूमता है,
और ऐसा ही बहुत कुछ...नहीं, तू, कोस्तिक, बेहतर है, कि शांत हो जा! तेरे जैसी जीभ
के साथ धरती पर बैठना ही बेहतर है.”
अब कोस्तिक बिना बात के लाल हो गया, टमाटर
जैसा. वह मुझसे एक क़दम दूर हटा, उसने अपनी मुट्ठियाँ भींचीं, और मैं समझ गया, कि
अब मेरी उसके साथ सचमुच की लड़ाई होने वाली है. इसलिए मैंने भी अपनी मुट्ठियाँ भींच
लीं और पैर आगे किया, जिससे कि असली बॉक़्सर की पोज़ में आ जाऊँ, जैसे कि लाइट-वेट चैम्पियन
की फ़ोटो में होता है.
कोस्तिक ने कहा:
“अभ्भी एक घूँसा दूँगा!”
और मैंने कहा:
“ख़ुद दो खाएगा!”
उसने कहा:
“ज़मीन पे गिर पड़ेगा!”
और मैंने उससे कहा:
“समझ ले, कि तू मर गया है!”
तब उसने सोचा और कहा:
“तेरे साथ जुड़ने को दिल ही नहीं चाहता...”
और मैंने कहा:
“तो, ख़ामोश हो जा!”
तभी मीश्का ने रॉकेट से चिल्लाकर कहा:
“ऐ, कोस्तिक, डेनिस्का, अन्द्र्यूश्का! जल्दी आओ
ये नाम पढ़ने के लिए.”
हम मीश्का के पास भागे और देखने लगे. ठीक
ही था लिखा हुआ नाम, सिर्फ तिरछा था, और आख़िर में नीचे की ओर झुक रहा था.
अन्द्र्यूश्का ने कहा:
“वॉव, बढ़िया है!”
और कोस्तिक ने कहा:
“शानदार!”
मगर मैंने कुछ नहीं कहा. क्योंकि वहाँ
लिखा था: ‘वास्तोक-2’.
मैंने इस बात को लेकर मीश्का को छेड़ा
नहीं, मगर क़रीब जाकर दो गलतियाँ सुधार दीं. मैंने लिखा : ‘वोस्तोग-2’.
और बस, मीश्का लाल हो गया और चुप रहा. फिर
वो मेरे पास आया, सैल्यूट मारा.
“लॉन्चिंग कब है?” मीश्का ने पूछा.
मैंने कहा:
“एक घण्टे बाद!”
मीश्का ने कहा:
“ज़ीरो-ज़ीरो?”
और मैंने जवाब दिया:
“ज़ीरो-ज़ीरो!”
***
सबसे पहले हमें विस्फोटकों की ज़रूरत थी. ये
कोई आसान काम नहीं था, मगर किसी तरह सब कुछ इकट्ठा हो गया. पहले, अन्द्र्यूश्का
क्रिसमस वाली दस फुलझडियाँ लाया. फिर मीश्का एक पैकेट लाया, मैं उसका नाम भूल गया,
शायद बोरिक एसिड था. मीश्का ने कहा, कि ये एसिड बहुत बढ़िया जलता है. और मैं दो
पटाखे लाया, जो मेरे पास पिछले साल से संदूक में पड़े थे. अब हमने अपने समोवार-टैंक
का पाईप लिया, उसे एक तरफ़ से पुराने कपड़े से बन्द किया और उसमें अपने सारे
विस्फ़ोटक भर दिए और उसे सही तरीक़े से रख दिया. इसके बाद कोस्तिक अपनी मम्मा के
गाऊन से कोई बेल्ट लाया, और हमने उसका फ़्यूज़ बना दिया. अपने पूरे पाईप को हमने
रॉकेट की दूसरी स्टेज पे रखा और उसे रस्सी से बांध दिया, फ्यूज़ को बाहर खींचा, और
वह हमारे रॉकेट के पीछे ज़मीन पर बिछ गया, जैसे साँप की पूँछ हो.
अब सब कुछ तैयार था.
“अब”, मीश्का ने कहा, “वक़्त आ गया है ये फ़ैसला
करने का कि कौन उड़ेगा. तू या मैं, क्योंकि अन्द्र्यूश्का और कोस्तिक अभी इसके लिए
योग्य नहीं हैं.”
“हाँ,” मैंने कहा, “वे स्वास्थ्यगत कारणों से
योग्य नहीं हैं.”
जैसे ही मैंने ये कहा, अन्द्र्यूश्का की
आँखों से फ़ौरन आँसू बहने लगे, और कोस्तिक दीवार की ओर मुड़ गया, क्योंकि, शायद,
उसके भी आँसू टपक रहे थे, मगर वो शरमा रहा था, कि जल्दी ही सात साल का होने वाला
है, फिर भी रोता है. तब मैंने कहा:
“कोस्तिक को प्रमुख इग्निशन ऑफ़िसर बनाया जाता
है!”
मीश्का ने जोड़ा:
“और अन्द्र्यूश्का को बनाया जाता है प्रमुख
लॉन्चिंग ऑफ़िसर!”
वे दोनों हमारी ओर मुड़े और उनके चेहरे पर
थोड़ी ख़ुशी की झलक दिखाई दी, आँसू ग़ायब हो गए, वंडरफुल!
तब मैंने कहा:
“सिर्फ, देख, मैं गिनता हूँ!”
और हम गिनने लगे:
”ख़रगोश-सफ़ेद-कहाँ-भागा-जंगल–में-चीड़-के-क्या-किया-पत्ते-नोंचे-कहाँ-रखे-ठूँठ-के-नीचे-कौन-चुराया-स्पिरिदोन-मोर-देल-वो-तिन्तिल-विन्तिल-भाग-यहाँ-से!”
मीश्का पे “भाग यहाँ से” आया. वो, बेशक,
कोस्तिक और अन्द्र्यूश्का से तो बड़ा है, मगर इस ख़याल से कि उसे नहीं उड़ना है, उसकी
आँखें इतनी दयनीय हो गईं, कि बस, भयानक!
मैंने कहा:
“मीश्का, तू अगली फ्लाइट में जाएगा बिना किसी
गिनती-विनती के, ठीक है?”
और उसने कहा:
“चल, बैठ!”
क्या करें, कुछ भी नहीं किया जा सकता था,
मेरी टर्न तो ईमानदारी से ही आई थी. हम दोनों ने गिना था, और उसने ख़ुद भी गिना, और
बारी मेरी आई, यहाँ कुछ नहीं कर सकते. मैं फ़ौरन बैरेल में घुस गया. वहाँ अंधेरा
था, जगह तंग थी, ख़ासकर दूसरी स्टेज मुझे बहुत परेशान कर रही थी. उसके कारण आराम से
लेटा नहीं जा सकता था, वो कमर में चुभ रही थी. मैं पलट कर पेट के बल लेटना चाह रहा
था: मगर तभी मेरा सिर टैंक से टकरा गया, वो सामने की ओर निकल रहा था. मैंने सोचा
कि अंतरिक्ष यात्री को कैबिन में बैठने में मुश्किल होती है, क्योंकि उपकरण बहुत
ज़्यादा होते हैं, बेहद ज़्यादा! मगर फिर भी मैं किसी तरह बैठ गया, और गुड़ी-मुड़ी
बनकर लेट गया, और लॉन्च का इंतज़ार करने लगा.
मैंने सुना – मीश्का चिल्ला रहा था;
“रेडी! अटेन्शन! लॉन्चिंग ऑफ़िसर, नाक मत खुजाओ!
चलो, इंजन की ओर जाओ.”
और, अचानक अन्द्र्यूश्का की आवाज़:
“इंजन के पास!”
मैं समझ गया कि अब जल्दी ही लॉन्चिंग़ है,
और लेटा रहा.
सुन रहा हूँ – मीश्का फिर से कमाण्ड देता
है:
“प्रमुख इग्नीशन ऑफ़िसर! रेडी! जला....”
और अचानक मैंने सुना, कि कैसे कोस्तिक
अपनी माचिस की डिबिया खड़खड़ा रहा है और, लगता है, कि परेशानी के मारे दियासलाई नहीं
निकाल पा रहा है, और मीश्का, बेशक, कमाण्ड को लम्बा किए जा रहा है, जिससे कि दोनों
चीज़ें एक साथ हो जाएँ – कोस्तिक की दियासलाई और उसकी कमाण्ड. वो खींचे जा रहा है:
“जल्ल्ल्ल....”
और मैंने सोचा: बस, अभी! मेरा दिल भी ज़ोर
ज़ोर से धड़कने लगा! मगर कोस्तिक है कि अभी तक दियासलाई जलाए जा रहा है. मुझे साफ़
समझ में आ रहा था कि उसके हाथ थरथरा रहे हैं और वह दियासलाई पकड़ नहीं पा रहा है.
मीश्का अपना ही राग अलापे जा रहा था:
“जल्ल्ल्ल्लल...चल भी, दुखदाई! जल्ल्ल...”
और अचानक मैंने साफ़ साफ़ सुना: छक्!
और मीश्का की प्रसन्न आवाज़:
”...ल्ल्ल्ल्ला! जला!”
मैंने आँखें सिकोड़ लीं, सिकुड़ गया और उड़ने
के लिए तैयार हो गया. कितना अच्छा होता, अगर ये सचमुच में हो जाता, सब लोग पगला
जाते, और मैंने आँखें और ज़्यादा सिकोड़ लीं. मगर कुछ भी नहीं हुआ: न तो विस्फोट, न
धक्का, न आग, न धुँआ – कुछ भी नहीं. अब मैं उकता गया, और मैं बैरेल के भीतर से
दहाड़ा:
“क्या जल्दी होने वाला है? मेरी पूरी कमर अकड़ गई
है – दुख रही है!”
और मीश्का मेरे पास आया रॉकेट के अन्दर.
उसने कहा:
“ख़तम. फ्यूज़ बेकार हो गया.”
मैंने गुस्से के मारे बस उसे लात ही नहीं
मारी:
“ऐह, तुम लोग, इंजीनियर कहलाते हो! एक छोटा सा
रॉकेट भी नहीं लॉन्च कर सकते! अब देख, मैं करता हूँ!”
और मैं रॉकेट से बाहर आ गया. अन्द्र्यूश्का
और कोस्तिक फ्यूज़ ठीक कर रहे थे, और उनसे कुछ भी नहीं हो रहा था. मैंने कहा:
“कॉम्रेड मीश्का! इन बेवकूफ़ों को काम से हटा दो!
मैं ख़ुद ही कर लूँगा!”
और मैं समोवार के पाईप के पास गया और सबसे
पहले उनकी मम्मा का फ्यूज़ वाला बेल्ट हटा दिया. मैंने उनसे चिल्लाकर कहा:
“अरे, दूर हटो! जल्दी!”
और वे इधर-उधर भागने लगे. मैंने पाईप में
हाथ डाला, और फिर से भीतर का सब कुछ उलट-पलट किया, फुलझड़ियों को सबसे ऊपर रखा. फिर
मैंने दियासलाई जलाई और उसे पाईप में घुसा दिया. मैं चिल्लाया:
“होशियार!”
और मैं एक किनारे को भागा. मैंने सोचा भी
नहीं था कि कोई ख़ास बात होगी, क्योंकि वहाँ, पाईप में, ऐसी कोई चीज़ थी ही नहीं.
मैं ज़ोर से चीख़ना चाहता था: “बुख, त्राआआख़!” – जैसे विस्फोट हो रहा हो, जिससे खेल
आगे बढ़े. मैंने गहरी साँस ली और ज़ोर से चिल्लाने ही वाला था कि तभी पाईप में कोई
चीज़ ऐSSसी सीटी बजाने लगी
और ऐSSसी फूटी! और पाईप
दूसरी स्टेज से दूर उड़ गया, और कुछ दूर उड़ने लगा, और नीचे गिरने लगा, और धुँआ!
...फिर कैसी भयानक आवाज़ ! ओहो! ये शायद पटाखे जल रहे थे, पता नहीं, या फिर मीश्का
की पाउडर थी! बाख! बाख! बाख! इस बाख! से मैं कुछ घबरा गया, क्योंकि मैंने अपने
सामने दरवाज़ा देखा, और उसमें घुसने का फ़ैसला कर लिया, और खोला, और दरवाज़े में घुस
गया, मगर ये दरवाज़ा नहीं था, बल्कि खिड़की थी, और मैं सीधे उसके भीतर भागा, कैसे
गिरा, और सीधे हाऊसिंग कमिटी में जा गिरा. वहाँ मेज़ के पीछे ज़िनाइदा इवानोव्ना बैठी
थी और मशीन पर हिसाब लगा रही थी कि क्वार्टर के लिए किसको कितने पैसे देने हैं. जब
उसने मुझे देखा, तो, शायद, फ़ौरन पहचान नहीं पाई, क्योंकि मैं तो गन्दी बैरल से
निकला था, मुझ पर पूरी कालिख पुती थी, घायल और बदहाल. जब मैं खिड़की से छिटककर उसके
पास गिरा, तो उसकी, बस, बोलती बन्द हो गई, और वो दोनों हाथों से मुझे दूर धकेलने
लगी. वह चिल्ला रही थी:
“क्या है? कौन है?”
शायद मैं किसी शैतान या किसी
अण्डरग्राऊण्ड नमूने की तरह लग रहा था, क्योंकि वह पूरी तरह से अपना आपा खो बैठी और मुझ पर ऐसे चिल्लाने लगी,
जैसे मैं कोई नपुंसकलिंग वाली संज्ञा होऊँ.
“चल भाग जा! भाग यहाँ से! भाग!”
मगर मैं अपने पैरों पर खड़ा हो गया, हाथ
अटेन्शन वाली ‘पोज़’ में रखे और बड़े प्यार से उससे बोला:
“नमस्ते, ज़िनाइदा इवान्ना! परेशान न हों, ये मैं
हूँ!”
और चुपचाप दरवाज़े की तरफ़ जाने लगा.
ज़िनाइदा इवानोव्ना ने पीछे से चिल्लाकर मुझसे कहा:
“आह, ये डेनिस है! अच्छी बात है!...रुक जा!...तू
भी मुझे क्या याद रखेगा!...अलेक्सै अकीमिच को सब कुछ बता दूँगी!”
इन चीखों से मेरा मूड बहुत बिगड़ गया.
क्योंकि अलेक्सै अकीमिच – हमारी हाऊसिंग सोसाइटी का डाइरेक्टर है. वो मुझे मम्मा
के पास ले जाएगा और पापा से शिकायत करेगा, और ये मेरे लिए बुरा होगा. मैंने सोचा,
कितना अच्छा होता कि वो हाऊसिंग कमिटी के ऑफ़िस में न हो, और मैं दो-तीन दिनों तक
उसके सामने न पडूँ, जब तक सब ठीक नहीं हो जाता. ये सोचकर मेरा मूड अच्छा हो गया,
और मैं ख़ुश-ख़ुश हाऊसिंग कमिटी के ऑफ़िस से निकला. जैसे ही मैं कम्पाऊण्ड में
पहुँचा, मैंने अपने लड़कों का पूरा झुण्ड देखा. वे भाग रहे थे और बातें कर रहे थे,
और उनके आगे-आगे काफ़ी फुर्ती से अलेक्सै अकीमिच भाग रहा था. मैं बेहद डर गया.
मैंने सोचा कि उसने हमारा रॉकेट देख लिया है, ये भी देखा है कि वो कैसा टूटा-फूटा
पड़ा है और, हो सकता है, कि उस नासपीटॆ पाईप ने खिड़की और कोई और चीज़ फोड़ दी हो, और
अब वह अपराधी को ढूँढ़ने के लिए भाग रहा है, और उससे किसीने कह दिया है, कि मुख्य
अपराधी मैं हूँ, कि उसने मुझे देख लिया है, मैं सीधे उसके सामने पड़ गया, और अब वह
पूरी ताक़त से मेरे पीछे भाग रहा है, और मुझे अभी पकड़ लेगा! ये सब मैंने एक सेकण्ड
में सोच लिया, और, जब मैं ये सब सोच रहा था, तो मैं अलेक्सै अकीमिच से दूर भाग भी
रहा था, मैं पार्क के पास से गुज़रा, क्यारियों का चक्कर लगाया, मगर अलेक्सै अकीमिच
मेरी ओर लपका और पतलून में ही फ़व्वारा पार करके मेरे पास आया और मेरी कमीज़ पकड़ ली,
मैंने सोचा: सब ख़तम. मगर उसने दोनों हाथ मेरी बगल में डाल कर मुझे पकड़ा और ऊपर की
ओर उछाला! अगर कोई मुझे बगल में हाथ डालकर उठाए, तो मैं बर्दाश्त नहीं कर: मुझे
गुदगुदी होती है, और मैं कसमसाता हूँ, समझ में नहीं आता कि कैसे छूटूँ. तो, मैं
ऊपर से उसकी ओर देख रहा था और कसमसा रहा था, और वह मुझे देखते हुए अचानक बोल पड़ा:
“चिल्ला ‘हुर्रे! अरे! फ़ौरन चिल्ला ‘हुर्रे!”
अब तो मैं और भी डर गया: मैंने समझा कि उसका
दिमाग चल गया है. और, अगर वह पागल हो गया है, तो उसके साथ बहस करना ठीक नहीं
है. और मैं ज़ोर से चिल्लाया:
“हुर्रे!... मगर बात क्या है?”
अब अलेक्सै अकीमिच ने मुझे ज़मीन पर उतारा
और कहा:
“बात ये है कि आज दूसरे अंतरिक्ष यात्री को
स्पेस में भेजा गया! कॉम्रेड गेर्मन तीतोव को! तो, क्या ये हुर्रे वाली बात नहीं
है?”
अब मैं भी चिल्लाया:
“बेशक, हुर्रे! और, वो भी कैसा हुर्रे!”
मैं इतनी ज़ोर से चिल्लाया कि ऊपर कबूतर
फड़फड़ाने लगे. और अलेक्सै अकीमिच मुस्कुराया और अपने हाऊसिंग कमिटी वाले ऑफ़िस में चला गया.
हमारा पूरा झुण्ड लाऊडस्पीकर की ओर भागा
और पूरे घण्टे भर हम सुनते रहे कि कॉम्रेड तीतोव के बारे में, उसकी फ्लाइट के बारे
में क्या क्या बताया जा रहा है, कि वह क्या खाता है, वगैरह, वगैरह, वगैरह.
और जब रेडिओ पर इंटरवल हुआ तो मैंने कहा;
“और मीश्का कहाँ है?”
और अचानक मैंने सुना:
“ये रहा मैं!”
सच था, वो मेरे पास ही था. मैं इतना
उत्तेजित था कि उसे देखा ही नहीं. मैंने कहा:
“तू कहाँ था?”
“मैं यहीं था. पूरे समय यहीं था.”
मैंने पूछा:
“और हमारे रॉकेट का क्या हुआ? क्या विस्फ़ोट में
उसके टुकड़े-टुकड़े हो गए?”
और मीश्का बोला;
“तू भी क्या! सही सलामत है! बस, सिर्फ पाईप ही
टूट गया था. मगर रॉकेट, उसे क्या होना था? ऐसे खड़ा है, जैसे कुछ हुआ ही न हो!”
“चल, भागकर देख आएँ?”
जब हम भागते हुए वहाँ आए, तो मैंने देखा
कि सब कुछ ठीक है, सब सही सलामत है और उसके साथ चाहे जितना खेल सकते हो. मैंने
कहा:
“मीश्का, मतलब, अब दो अंतरिक्ष यात्री हो गए?”
उसने कहा:
“हाँ. गागारिन और तीतोव.”
और मैंने कहा:
“शायद, वे दोस्त हैं?”
“बेशक,” मीश्का ने कहा, “वो भी कैसे दोस्त!”
तब मैंने मीश्का के कंधे पे हाथ रखा. उसका
कंधा छोटा और पतला है. और हम ख़ामोशी से खड़े रहे, फिर मैंने कहा:
“मैं और तू भी दोस्त हैं, मीश्का. और अगली
फ्लाइट में हम दोनों साथ साथ उडेंगे.”
इसके बाद मैं रॉकेट के पास गया, और रंग
ढूँढ़कर उसे मीश्का को दिया, जिससे वह पकड़े. वो मेरे पास खड़ा था, और उसने हाथ में
रंग पकड़ा था और वह देख रहा था कि मैं कैसे चित्र बनाता हूँ, वो सूँ-सूँ करने लगा,
मानो हम दोनों ही चित्र बना रहे थे. मैंने एक और गलती देखी और उसे सुधार दिया, जब
मैंने ख़तम किया, तो हम दो क़दम पीछे हटे और देखा, कि हमारे वण्डरफुल स्पेस शिप पर कितनी
ख़ूबसूरती से लिखा है “वोस्तोक-3”.
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