चुराए हुए खाने से पेट नहीं भरता
(बेलारूसी परीकथा)
अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
एक आदमी के दो बेटे थे. जब वे बड़े हो गये, तो बाप ने उनसे कहा:
“मेरे बेटों, अब सचमुच का काम करने का समय आ गया है. तुममें से कौन क्या करना चाहता है?”
बेटे ख़ामोश रहे, उन्हें पता नहीं है कि कौनसा काम चुनें.
“ठीक है, चलो,” बाप
ने कहा, “दुनिया
घूमेंगे और देखेंगे कि लोग क्या-क्या काम करते हैं.”
उन्होंने तैयारी की और निकल पड़े. चल रहे थे, बेटे हर चीज़ को ग़ौर से देखते, सोचते, कि उन्हें अपने लिये कौनसा काम चुनना चाहिये.
वे एक गाँव के पास पहुँचे. देखते हैं – चरागाह के पास एक लुहार की दुकान है.
वे लुहार की दुकान में गये. लुहार से दुआ-सलाम की, उससे बातें कीं. बड़े
बेटे ने हाथों में हथौड़ा भी लिया – लुहार को हल की नोक बनाने में मदद की. फ़िर आगे
बढ़े.
दूसरे गाँव के पास पहुँचे. बड़े बेटे ने इधर-उधर नज़र दौड़ाई: इस गाँव में कहीं
लुहार की दुकान नहीं दिखाई दे रही है. वह बाप से बोला:
“यहाँ भी लुहार की दुकान क्यों न लगाई जाये? मैं लुहार बन जाता. मुझे यह काम अच्छा लग रहा है.”
बाप ख़ुश हो गया : सोचा, बड़े बेटे ने रोज़गार ढूँढ़ लिया है!”
“ठीक है,” उसने कहा, “इस गाँव में लुहार का काम कर ले.”
उसने बेटे के लिये लुहार की दुकान खोल दी, वह लुहारगिरी के काम करने लगा. लोग उसके काम की तारीफ़ करते, और वह ख़ुद भी अपने काम
से ख़ुश था.
मगर छोटा बेटा काफ़ी भटकने के बाद भी मनचाहा काम नहीं ढूँढ़ सका.
एक बार वह बाप के साथ चरागाह की बगल से गुज़र रहा था. देखा – चरागाह में एक
बैल चर रहा है. और गाँव दूर है, और चरवाहा भी नज़र नहीं आ रहा है.
“अब्बू, क्या मैं बैलों को चुराने लगूँ?” बेटे ने कहा, “यह काम तो बहुत आसान है, और हर रोज़ माँस भी मिलता रहेगा. मैं ख़ुद भी बैल की तरह मोटा हो जाऊँगा.”
“चुरा ले,” बाप ने कहा. “इसके बाद मैं तुम्हें ले जाऊँगा ताकि तू कोई पक्का काम चुन
ले.”
बेटे ने बैल चुरा लिया और उसे घर की ओर हाँकने लगा. मगर बाप ने कहा:
“जंगल के पास मेरा इंतज़ार कर,” मुझे अभी इस गाँव में झाँकना है : यहाँ मेरा एक परिचित रहता है...”
बेटा बैल को हाँकते हुए ले जा रहा था, मगर पूरे समय भेड़िये की तरह कनखियों से देख लेता, कि कोई उसके पीछे तो नहीं आ रहा है. जब तक जंगल तक आया, पूरी तरह डरा हुआ था. डर
के मारे जी मिचलाने लगा.
वह जंगल के किनारे बाप के लौटने का इंयज़ार करने लगा, और फ़िर वे मिलकर बैल को
घर ले गये.
घर में बैल को काटा, उसकी खाल उतारी और माँस पकाने लगे. पका लिया, और बाप बेटे से बोला:
“चल, बेटा, पहले नाप लेते हैं और
देखेंगे कि इस बैल से कौन कितना मोटा हुआ है.”
उसने जूते की लेस ली, अपनी और बेटे की नाप लेकर गाँठें लगा दीं.
मेज़ पर बैठे. बाप तो शांति से खा रहा था, मगर बेटा पूरे समय दरवाज़े की ओर देख रहा था : कहीं बैल को ढूँढ़ने के लिये कोई
आ तो नहीं रहा है. कुत्ता भौंकता, झोंपड़ी के पास से कोई गुज़रता – बेटा माँस लेकर अलमारी में छुप जाता. और उसके
हाथ-पैर हमेशा थरथराते रहते...इस तरह से दिन गुज़रते रहे.
आख़िरकार उन्होंने पूरा बैल खा लिया. बाप ने बेटे से कहा:
“चल, अब
गर्दन की नाप लेंगे : हममें से कौन मोटा हुआ है?”
नाप ली गई – बाप की गर्दन दुगुनी मोटी हो गई थी, मगर बेटे की आधी रह गई थी.
बेटे को बड़ा अचरज हुआ:
“ऐसा कैसे हुआ?”
“इसलिये, कि तूने चुराए हुए बैल को खाया है,” बाप ने जवाब दिया.
“मगर तुमने भी तो चुराया हुआ ही खाया था!”
“नहीं, मैंने मालिक को बैल के लिये पैसे दिये और तभी उसे खाया, अपने माल की तरह. इसीलिये
मैं मोटा हो गया. मगर तू मेज़ पर बैठता है – तुझे डर दबोच लेता है और तेरा गला घोंटने
लगता है! इसीलिये वह दुबला हो रहा है. भाई मेरे, चुराये हुए खाने से संतोष नहीं होगा, पेट नहीं भरेगा!
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