चिड़िया और चूहा
(बेलारूसी परीकथा)
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
चिड़िया और चूहा
अड़ोस-पड़ोस में रहते थे : चिड़िया एक बड़े घर की कंगनी के नीचे, और चूहा
तहख़ाने में एक बिल में. मालिकों से जो भी मिलता उसीसे गुज़ारा करते. गर्मियों में
तो किसी तरह काम चला लेते, खेत में या बाग में जाकर कुछ न
कुछ चुन लेते. मगर सर्दियों में अगर तुम रोने भी लगो तब भी कुछ नहीं हो सकता था :
चिड़िया के लिये मालिक पिंजरा लगा देता, और चूहे के लिये – चूहेदानी.
इस तरह की ज़िंदगी
से वे बेज़ार हो गये,
और उन्होंने सोचा कि एक क्यारी खोदकर गेंहू बोयेंगे.
बगल में ही एक क्यारी
खोदी.
“तो, क्या
बोयेंगे?” चिड़िया ने पूछा.
“वही, जो लोग
बोते हैं,” चूहे ने जवाब दिया. उन्होंने
दाने इकट्ठा किये और गेंहू बोये.
“तू क्या लेगी,” चूहे ने
चिड़िया से पूछा, “जड़ या पौधा?”
“मैं ख़ुद ही नहीं
जानती.”
“जड़ ले ले,” चूहे ने सलाह
दी.
“ठीक है, चल,
जड़ ही ले लूँगी.”
गर्मियाँ आईं.
गेंहू पक गया. चूहे ने बालियाँ दबोच लीं, और चिड़िया के लिये डंडियाँ छोड़
दीं.
चूहा बालियों को
अपने बिल में ले गया,
उसे कूटा, कूटा, रोटियाँ
बनाईं और सर्दियों में खाने लगा. बढ़िया चल रही थी ज़िंदगी, किसी
चीज़ की ज़रूरत नहीं थी.
और चिड़िया ने भूसा
खाने की कोशिश की – बिल्क्ल बेस्वाद था.
बेचारी को कूड़े के
गढ़े में, भूखे रहकर सर्दियाँ गुज़ारनी पड़ीं.
बसंत का मौसम आया.
चूहा बिल से बाहर आया,
उसने चिड़िया को देखा और पूछा:
“कैसी बीतीं
सर्दियाँ, प्यारी पड़ोसन?”
“बुरी,” चिड़िया
ने कहा, “मुश्किल से ज़िंदा हूँ, हमारा
गेंहू बिल्कुल बेस्वाद था.”
“चल, तो इन
सर्दियों में गाजर बोयेंगे, वो मीठा होता है. सारे ख़रगोश उसे
पसंद करते हैं.”
“चल, अगर झूठ
नहीं कह रहा है, तो!” चिड़िया ख़ुशी से उछली.
उन्होंने नई
क्यारी खोदी,
गाजर बोया.
“तू क्या लेगी? जड़ या
पौधा?”
“पौधा,” चिड़िया
ने कहा, “जड़ लेने में डर लगता है : एक बार मैं गेहूँ के बारे
में धोखा खा चुकी हूँ.”
“ठीक है, पौधा ले
ले.”
गाजर का पौधा बड़ा
हुआ. चिड़िया ने ऊपर की पत्तियाँ लीं, और चूहे ने – जड़ें. वह अपनी जड़ें
बिल में ले गया और थोड़ा-थोड़ा करके खाने लगा.
और चिड़िया ने पौधा
खाया, मगर वह तो गेहूँ के भूसे से ज़्यादा अच्छा नहीं था...
चिड़िया बुरा मान
गई, पंख फ़ुलाकर बैठी और रोने-रोने को हो गई. इतने में एक कौआ उड़कर आया. उसने
चिड़िया को देखा.
“मुँह फ़ुलाए क्यों
बैठी है, चिड़िया?” उसने पूछा.
चिड़िया ने उसे
बताया कि कैसे उसने और चूहे ने मिलकर गेहूँ और गाजर बोया था.
कौए ने उसकी बात
सुनी और ठहाका लगाया:
“बेवकूफ़ है तू, चिड़िया!
चूहे ने तुझे धोखा दिया...गेहूँ में सबसे स्वादिष्ट होती हैं ऊपर वाली बालियाँ,
और गाजर में – जड़ें.”
चिड़िया को गुस्सा
आ गया, फ़ुदकती हुई चूहे के पास आई.
“आह, तू,
कमीने, आह, तू धोखेबाज़!
मैं तुझसे लड़ाई करूँगी.”
“ठीक है,” चूहे ने
कहा, “चल लड़ाई करते हैं!”
चिड़िया ने अपनी
मदद के लिये ब्लैकबर्ड्स और मैंना को बुलाया, और चूहे ने – घूस और छछूंदरों को.
उन्होंने लड़ना
शुरू किया. बड़ी देर तक लड़ते रहे, मगर कोई भी किसी को न हरा पाया.
चिड़िया को अपनी
फ़ौज के साथ कूड़े के गढ़े की ओर पीछे हटना पड़ा.
कौए ने यह देखा:
“हा-हा, चिड़िया,
तूने कमज़ोर मददगारों को चुना! तू समुद्री-बाज़ को बुलाती, वह फ़ौरन सारे चूहों और घूसों और छछूंदरों को निगल जाता.”
समुद्री-बाज़ आया
और चूहे की पूरी फ़ौज को निगल गया. सिर्फ एक वही चूहा बचा, जिसने
चिड़िया को धोखा दिया था, बच गया : वह अपने बिल में छुप गया
था.
शाम हो गई. बाज़
सोने के लिये राई के खेत पर गया. वह एक पत्थर पर बैठा और गहरी नींद सो गया. और
चिड़िया ख़ुशी से चहचहाती रही और कंगनी पर चढ़ गई.
इस बीच चालाक चूहा
खेत पर चरवाहों के पास भागा, मशाल उठाई और राई के खेत में आग लगा दी,
जहाँ बाज़ सो रहा था. लपटें सरसराईं, शोर मचाने
लगीं – आग भड़क गई और उसने बाज़ के पंखों को जला दिया.
बाज़ जागा, मगर उसके
पास तो अब पंख ही नहीं हैं...वह बहुत दुखी हुआ और पैदल ही समुंदर की ओर घिसटने
लगा. रास्ते में एक शिकारी ने उसे देखा, और उसने बाज़ पर गोली
चलाना चाहा, मगर बाज़ ने उससे कहा:
“ऐ भले आदमी, मुझे मत
मार. बेहतर है कि तू मुझे अपने साथ ले चल: जब मेरे पंख फ़िर से आ जायेंगे, तो मैं इस एहसान का बदला ज़रूर चुकाऊँगा.”
शिकारी ने बाज़ को
अपने साथ ले लिया. पूरा साल उसे खिलाता-पिलाता रहा, उसकी देखभाल करता रहा.
बाज़ कें पंख फ़िर
से उग आये, वह शिकारी से बोला:
“और अब मुझे अपने
साथ शिकार पर ले चल. मैं तेरे लिये पंछियों और ख़रगोशों को पकडूंगा.
तब से बाज़ हमेशा
शिकारी की मदद करता है.
*****
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.