घर
में
लेखक:
अंतोन चेखव
अनुवाद:
आ. चारुमति रामदास
“ग्रिगोरेवों के यहाँ से किसी किताब के लिए आए
थे, मगर मैंने कह दिया कि आप घर में नहीं हैं. पोस्टमैन अख़बार और दो चिट्ठियाँ दे
गया है. वो, येव्गेनी पेत्रोविच, मैं आपसे कहना चाह रही थी कि कृपया सिर्योझा पर
ध्यान दें. तीन दिनों से मैं देख रही हूँ कि वो सिगरेट पीता है. जब मैंने उसे
समझाने कि कोशिश की तो उसने, हमेशा की तरह, कान बन्द कर लिए और ज़ोर-ज़ोर से गाने
लगा, जिससे मेरी आवाज़ दबा दे.”
येव्गेनी पेत्रोविच
बीकोव्स्की, जिला अदालत का वकील, अभी अभी एक मीटिंग से लौटा था, और अपने
अध्ययन-कक्ष में हाथ-मोज़े उतारकर, उसने इस बात की रिपोर्ट करती हुई गवर्नेस की ओर
देखा और मुस्कुराने लगा.
“सिर्योझा सिगरेट पीता है...” उसने कंधे उचकाए.
“मैं मुँह में सिगरेट दबाए इस छुटके की कल्पना कर सकता हूँ! हाँ, वो कितने साल का
है?”
“सात साल. आपको लगता है कि ये कोई गंभीर बात
नहीं है, मगर उसकी उमर में सिगरेट पीना एक ख़तरनाक और बेवकूफ़ीभरी आदत है, और
बेवकूफ़ीभरी हरकतों को शुरू में ही जड़ से काट देना चाहिए.”
“बिल्कुल ठीक. और वो तम्बाकू कहाँ से लेता है?”
“आपकी मेज़ की दराज़ से.”
“अच्छा? तो उसे मेरे पास भेजिए.”
गवर्नेस के जाने के
बाद बीकोव्स्की लिखने की मेज़ के सामने आराम कुर्सी में बैठ गया, उसने आँखें बन्द
कर लीं और सोचने लगा. उसने कल्पना में न जाने क्यों गज भर लम्बी सिगरेट मुँह में
दबाए, तम्बाकू के धुएँ से घिरे, अपने सिर्योझा का चित्र बनाया,और इस कार्टून ने
उसे मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया; साथ ही गवर्नेस के गंभीर, चिंतामग्न चेहरे ने
उसे काफ़ी पहले गुज़र चुके, अर्ध-विस्मृत भूतकाल की याद दिला दी, जब स्कूल में और
बच्चों के कमरे में सिगरेट पीना विद्यार्थियों और माता-पिता के मन में अजीब-सा ख़ौफ़
पैदा कर देता था. ये वाक़ई में ख़ौफ़ था. लड़कों को बेरहमी से मार पड़ती थी, स्कूल से
निकाल दिया जाता था, उनकी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी जाती थी, हालाँकि कोई भी
विद्यार्थी या पिता यह नहीं जानता था कि आख़िर सिगरेट पीने में ख़तरनाक और गुनाह
जैसी बात क्या है. अत्यंत बुद्धिमान लोग भी इस समझ में ना आने वाले पाप से लड़ने का
कष्ट नहीं उठाते थे. येव्गेनी पेत्रोविच को अपने स्कूल के बूढ़े डाइरेक्टर की याद
आई, जो बेहद पढ़ा-लिखा और भला इन्सान था, जो किसी विद्यार्थी के मुँह में सिगरेट
देखकर इतना डर जाता था कि पीला पड़ जाता, फ़ौरन टीचर्स-कौन्सिल की इमर्जेन्सी मीटिंग
बुला लेता और गुनहगार को स्कूल से निकलवा देता. शायद, सामाजिक जीवन का यही नियम है
: बुराई जितनी दुरूह होती है, उतनी ही क्रूरता से और बर्बरता से उससे संघर्ष किया
जाता है.
वकील साहब को
दो-तीन ऐसे बच्चों की याद आई जिन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था, और उनकी भावी
ज़िन्दगी भी उनकी आँखों के आगे तैर गई, और वह इस बात से इनकार न कर सके कि सज़ा देने
से अक्सर मूल अपराध से भी ज़्यादा नुक्सान होता है.
रात के आठ बज चुके
थे. दो कमरे छोड़कर, बच्चों के कमरे में, गवर्नेस और सिर्योझा बातें कर रहे थे.
“पा-पा आ गए!” बच्चा गाने लगा. “पापा आ-ग-ए!!
पा! पा! पा!”
“आपके पापा आपको बुला रहे हैं, फ़ौरन उनके पास
जाईये!” भयभीत पंछी की तरह चीं-चीं करती हुई गवर्नेस चिल्लाई. “आपसे कह रहे हैं,
जाईये!”
‘मगर, मैं उससे कहूँगा क्या?’ येव्गेनी
पेत्रोविच ने सोचा.
मगर इससे पहले कि
वह कुछ तय कर पाता, कमरे में उसका सात साल का बेटा, सिर्योझा, आ गया था. ये एक ऐसा
इन्सान था जिसके लड़का होने का अंदाज़ सिर्फ उसकी ड्रेस देखकर ही किया जा सकता था:
कमज़ोर, सफ़ेद चेहरे वाला, बेहद नाज़ुक...उसका जिस्म मरियल था, जैसे किसी ग्रीन हाऊस
में रखी सब्जी हो, और उसकी हर चीज़ असाधारण रूप से नर्म और नाज़ुक थी: चाल ढाल,
घुंघराले बाल, नज़रें, मखमल का जैकेट.
“नमस्ते, पापा!” पापा के घुटनों पर चढ़कर उसकी
गर्दन की पप्पी लेते हुए उसने कहा. “तुमने मुझे बुलाया?”
“प्लीज़, प्लीज़, सेर्गेइ येव्गेनिच,” वकील साहब
ने उसे अपने से दूर हटाते हुए कहा. “पप्पी लेने से पहले, हमें बात करनी होगी, और
गंभीरता से बात करनी होगी...मैं तुम पर गुस्सा हूँ और अब तुमसे प्यार नहीं करता
हूँ. ये बात तुम समझ लो, भाई; मैं तुमसे प्यार नहीं करता, तुम मेरे बेटे नहीं
हो...हाँ.”
सिर्योझा ने एकटक
पिता की ओर देखा, फिर अपनी नज़रें मेज़ पर टिकाकर कंधे उचका दिए.
“मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?” उसने अविश्वास
से, पलकें झपकाते हुए पूछा. “मैं आज तुम्हारे कमरे में एक भी बार नहीं आया, और
मैंने किसी चीज़ को हाथ भी नहीं लगाया.”
“अभी-अभी नतालिया सिम्योनोव्ना ने मुझसे शिकायत
की है कि तुम सिगरेट पीते हो...क्या ये सच है? तुम सिगरेट पीते हो?”
“हाँ, मैंने एक बार सिगरेट पी थी...ये सही है!”
“देखो, तुम ऊपर से झूठ भी बोल रहे हो,” वकील
साहब ने नाक-भौंह चढ़ाकर, उसकी आड में अपनी मुस्कुराहट छिपाते हुए कहा. “नतालिया
सिम्योनोव्ना ने तुझे दो बार सिगरेट पीते हुए देखा था. मतलब, तुम्हें तीन बुरे काम
करते हुए पकड़ा गया है: सिगरेट पीते हो, मेज़ की दराज़ से दूसरों की तम्बाकू लेते हो,
और झूठ बोलते हो. तीन-तीन गुनाह!”
“आह, हाँ!” सिर्योझा को याद आया और उसकी आँखें
मुस्कुराने लगीं. “ये सही है, बिल्कुल सही है! मैंने दो बार सिगरेट पी थी: आज और
इससे पहले.”
“देखा, मतलब, एक नहीं, बल्कि दो बार...मैं तुमसे
बहुत नाख़ुश हूँ! पहले तुम अच्छे बच्चे हुआ करते थे, मगर अब, मैं देख रहा हूँ कि
बिगड़ गए हो, और बुरे बन गए हो.”
येव्गेनी पेत्रोविच
ने सिर्योझा की कॉलर ठीक की और सोचने लगा:
‘इससे और क्या कहना चाहिए?’
“तो, बुरी बात है,” उसने आगे कहा, “मुझे तुमसे
ऐसी उम्मीद नहीं थी. पहली बात, तुझे वो तम्बाखू लेने का कोई हक़ नहीं है, जो तेरी
नहीं है. हर इन्सान को सिर्फ अपनी ही चीज़ इस्तेमाल करने का हक़ होता है, अगर वो
दूसरे की चीज़ लेता है, तो...वो अच्छा आदमी नहीं है! (‘मैं उससे मतलब की बात नहीं
कह रहा हूँ!’ – येव्गेनी पेत्रोविच ने सोचा.) मिसाल के तौर पर, नतालिया
सिम्योनोव्ना के पास अपनी ड्रेसों वाली सन्दूक है. ये उसका सन्दूक है, और हमें,
याने ना मुझे, ना तुझे, उसे छूने का कोई हक़ नहीं है, क्योंकि वो हमारा नहीं है.
ठीक है ना? तेरे पास घोड़े और तस्वीरें हैं...क्या मैं उन्हें लेता हूँ? हो सकता
है, मेरा दिल उन्हें लेना चाहता भी हो, मगर...क्योंकि वे चीज़ें मेरी नहीं बल्कि
तेरी हैं!”
“ले लो, अगर दिल चाहता है तो!” सिर्योझा ने
भौंहे चढ़ाकर कहा. “तुम, पापा, शर्माना नहीं, ले लो! ये पीला कुत्ता, जो तुम्हारी
मेज़ पे रखा है, मेरा है, मगर मैं बुरा नहीं मानता...रहने दो उसे यहाँ पे!”
“तुम मेरी बात समझ
नहीं रहे हो,” बीकोव्स्की ने कहा. “कुत्ता तुमने मुझे गिफ्ट में दिया था, अब वो
मेरा है, और मैं उसके साथ जो चाहे वो कर सकता हूँ: मगर तम्बाकू तो मैंने तुम्हें
गिफ्ट में नहीं दी! तम्बाकू मेरी है! (‘मैं उसे ठीक तरह से समझा नहीं पा रहा हूँ!’
वकील साहब ने सोचा, ‘सही तरह से नहीं!’) अगर दूसरे की तम्बाकू के कश लेने को मेरा जी
चाहता है, तो मुझे पहले इजाज़त लेनी चाहिए...”
बड़े मरियल ढंग से
एक के पीछे दूसरा वाक्य जोड़ते, और उसे बच्चों की ज़ुबान में कहते हुए, बीकोव्स्की
बेटे को समझाने लगा कि अपनी चीज़ का मतलब क्या होता है. सिर्योझा उसके सीने की ओर
देखते हुए ध्यान से सुन रहा था (उसे शाम को पिता से बातें करना अच्छा लगता था),
फिर वह मेज़ के कोने पर झुक गया और अपनी मन्द-दृष्टि से पीड़ित आँखें सिकोड़कर कागज़
और स्याही की दवात की ओर देखने लगा. उसकी नज़र मेज़ पर दौड़ती रही और गोंद की कुप्पी
पर रुक गईं.
“पापा, गोंद किस चीज़ से बनाते हैं?” अचानक उसने
कुप्पी को आँखों के पास लाते हुए पूछा.
बीकोव्स्की ने उसके
हाथों से कुप्पी ले ली और उसे वापस रख कर कहा:
“दूसरी बात, तुम सिगरेट पीते हो...ये बहुत बुरी
बात है! अगर मैं पीता हूँ, तो इसका ये मतलब नहीं है कि सिगरेट पीना चाहिए. मैं
सिगरेट पीता हूँ और जानता हूँ कि ये समझदारी का काम नहीं है, अपने आप को गाली देता
हूँ और इसके लिए अपने आप से नफ़रत करता हूँ...(मैं एक चालाक शिक्षाविद् हूँ!’ वकील
साहब ने सोचा.) तम्बाकू सेहत के लिए बड़ी ख़तरनाक है, और जो सिगरेट पीता है, समय से
पहले ही मर जाता है. ख़ासकर तुम्हारे जैसे छोटे बच्चों के लिए तो सिगरेट पीना और भी
ज़्यादा ख़तरनाक है. तेरा सीना कमज़ोर है, तू अभी मज़बूत नहीं हुआ है, और कमज़ोर लोगों
को तम्बाकू के धुएँ से टी.बी. और दूसरी बीमारियाँ हो जाती हैं. जैसे, इग्नाती चाचा
टी.बी. से मर गया. अगर वो सिगरेट नहीं पीता, तो हो सकता है कि अब तक ज़िन्दा रहता.”
सिर्योझा ने सोच
में पड़कर लैम्प की ओर देखा, ऊँगली से उसका शेड छुआ और गहरी साँस ली.
“इग्नाती चाचा
अच्छा वायलिन बजाते थे!” उसने कहा. “उनकी वायलिन अब ग्रिगोरेवों के पास है!”
सिर्योझा ने फिर से
मेज़ के किनारे पर कुहनियाँ टिका दीं और सोचने लगा. उसके विवर्ण मुख पर ऐसा भाव छा
गया, मानो वह अपने विचारों को सुन रहा हो: दुख और भय जैसी कोई चीज़ उसकी बड़ी-बड़ी,
पलकें न झपकाती हुई आँखों में दिखाई दी. शायद, वो अब मृत्यु के बारे में सोच रहा
था, जिसने उसकी मम्मा और इग्नाती चाचा को हाल ही में अपने पास बुला लिया था.
मृत्यु मम्मियों को और चाचाओं को दूसरी दुनिया में ले जाती है, और उनके बच्चे और
वायलिनें धरती पर रह जाते हैं. क्या वे जुदाई बर्दाश्त कर पाते हैं?
’मैं इससे क्या
कहूँगा?’ येव्गेनी पेत्रोविच सोच रहा था. ‘वो मेरी बात सुन ही नहीं रहा है. ज़ाहिर
है वो अपनी करतूतों को और मेरे निष्कर्षों को महत्त्वपूर्ण नहीं समझता. उसके दिमाग़
में ये बात कैसे डाली जाए?’
वकील साहब उठ गए और
कमरे में चहलक़दमी करने लगे.
‘पहले, हमारे ज़माने
में, ये सवाल बड़ी आसानी से सुलझा लिए जाते थे,’ वह मनन कर रहा था. ‘हर उस बच्चे
की, जिसे सिगरेट पीने के कारण स्कूल से निकाल दिया जाता था, पिटाई की जाती थी.
कमज़ोर दिल वाले और डरपोक, वाक़ई में सिगरेट पीना छोड़ देते थे, और जो कुछ ज़्यादा
बहादुर किस्म के और ज़्यादा अकलमन्द होते थे, वो पिटाई के बाद सिगरेट अपने जूतों
में छुपा लेते और गोदाम में जाकर पीते. जब वे गोदाम में पकड़े जाते और उनकी फिर से
पिटाई होती, तो वो सिगरेट पीने नदी पे चले जाते...और इस तरह से चलता रहता, जब तक
कि बच्चा बड़ा न हो जाता. मैं सिगरेट ना पिऊँ, इसलिए मेरी मम्मी मुझे पैसे और
चॉकलेट्स दिया करती थी. अब तो ये चीज़ें बड़ी छोटी और अनैतिक समझी जाती हैं. आधुनिक
शिक्षाशास्त्री ये कोशिश करते हैं कि बच्चा अच्छी आदतें डर के कारण, औरों से अच्छा
बनने की ख़्वाहिश के कारण या फिर इनाम पाने की ख़ातिर नहीं, बल्कि अपने मन से सीखे.’
जब वह कमरे में
चहलक़दमी कर रहा था, तो सिर्योझा मेज़ के पास पड़ी कुर्सी पर पैर उठाकर चढ़ गया और
ड्राईंग बनाने लगा. वो काम के कागज़ों को ख़राब न कर दे और स्याही को हाथ न लगाए,
इसलिए मेज़ पर छोटे-छोटे चौकोर कागज़ों का एक गट्ठा और नीली पेन्सिल ख़ास तौर से उसके
लिए रखी गई थी.
“आज रसोईन ने गोभी काटते हुए अपनी ऊँगली काट
ली,” वह घर की ड्राईंग बनाते बनाते अपनी भौंहे नचाते हुए बोला. “वो इतनी ज़ोर से
चीख़ी, कि हम सब डर गए और किचन में भागे. ऐसी बेवकूफ़ है! नतालिया सिम्योनोव्ना ने
उसे ठण्डे पानी में ऊँगली डुबाने को कहा, मगर वो उसे चूसने लगी...वो गन्दी ऊँगली
मुँह में कैसे डाल सकती है! पापा, ये तो बदतमीज़ी है!”
आगे उसने बताया कि
खाने के समय आँगन में एक ऑर्गन बजाने वाला छोटी बच्ची के साथ आया, जो म्यूज़िक के
साथ-साथ नाच और गा रही थी.
‘ये अपनी ही धुन
में मगन है!’ वकील साहब ने सोचा. ‘उसके दिमाग़ में अपने ही ख़यालों की दुनिया है, और
वह अपने तरीक़े से जानता है कि क्या ज़रूरी है और क्या ग़ैरज़रूरी. उसका ध्यान आकर्षित
करने के लिए सिर्फ उसकी ज़ुबान में बोलना ही काफ़ी नहीं है, बल्कि उसीकी तरह सोचना
भी चाहिए. मेरी बात वो अच्छी तरह समझता, अगर मुझे तम्बाकू के लिए अफ़सोस होता, अगर
मैं बुरा मान जाता, रोने लगता...इसीलिए तो बच्चों का लालन-पालन करने में मम्मी की
जगह कोई नहीं ले सकता, वो बच्चे के साथ उसी जैसा महसूस कर सकती है, रो सकती है,
ठहाके लगा सकती है...तर्क और नैतिकता से कुछ भी हासिल नहीं होगा. तो फिर, मैं इससे
और क्या कहूँ? क्या?’
और येव्गेनी
पेत्रोविच को बड़ा अजीब और हास्यास्पद लगा कि उसके जैसा अनुभवी वकील एक बच्चे के
सामने टिक नहीं पा रहा है, समझ नहीं पा रहा है कि बच्चे से क्या कहे.
“सुन, तू मुझसे प्रॉमिस कर कि तू कभी सिगरेट नहीं
पिएगा,” उसने कहा.
“प्रॉ-मिस!” पेन्सिल को ज़ोर से दबाते हुए चित्र के
ऊपर झुकते हुए सिर्योझा गा उठा. “प्रॉ-मि-स! स! स!”
’क्या उसे मालूम भी
है कि प्रॉमिस का मतलब क्या होता है?’ बीकोव्स्की ने स्वयँ से पूछा. ‘नहीं, मैं
बुरा टीचर हूँ!...स्कूल में ये सारी समस्याएँ घर के मुक़ाबले बड़ी आसानी से सुलझा ली
जाती हैं; यहाँ तुम्हारा पाला ऐसे लोगों से पड़ता है, जिन्हें तुम दीवानगी की हद तक
प्यार करते हो, मगर प्यार माँग करता है और चीज़ों को उलझा देता है. अगर ये बच्चा
मेरा बेटा न होता, तो मेरे ख़याल इस तरह तितर-बितर न हो जाते!...’
येव्गेनी पेत्रोविच
मेज़ के पास बैठ गया और उसने सिर्योझा का एक चित्र अपनी ओर खींचा. इस चित्र में एक
घर बना था, तिरछी छत और धुँए वाला, जो, बिजली की तरह, पाईप से टेढ़ी-मेढ़ी लकीर
बनाता हुआ कागज़ के ऊपरी सिरे तक चला गया था; घर के पास खड़ा था एक सिपाही, जिसकी आँखों
की जगह पर सिर्फ दो बिन्दु बने थे, उसके हाथ में 4 के आकार की संगीन भी थी.
“आदमी घर से ऊँचा नहीं हो सकता,” वकील साहब ने
कहा. “देख: तेरी छत तो सिपाही के कंधे तक ही आ रही है.”
सिर्योझा उसके
घुटनों पर चढ़ गया और बड़ी देर तक चुलबुलाता रहा जिससे आराम से बैठ सके.
“नहीं, पापा!” उसने अपने चित्र की ओर देखकर कहा.
“अगर तुम छोटा सिपाही बनाओगे तो उसकी आँखें नज़र नहीं आएँगी.”
क्या इससे बहस कर
सकते हो? बेटे के हर रोज़ के निरीक्षण से वकील साहब को इस बात का यक़ीन हो गया था,
कि बच्चों की आर्ट के बारे में अपनी ही धारणाएँ होती हैं, जिसे बड़े नहीं समझ सकते.
ग़ौर से देखने से बड़ों को सिर्योझा असामान्य प्रतीत होगा. वो घरों से ऊँचे लोग बना
सकता था, पेन्सिल से चीज़ों के अलावा अपने भाव भी प्रदर्शित कर सकता था. जैसे कि
ऑर्केस्ट्रा की आवाज़ को वो गोल-गोल, धुएँ जैसे धब्बों से दिखा सकता था, सीटी की
आवाज़ को – स्प्रिंग जैसी लकीर से...उसकी समझ में आवाज़ का आकार और रंग से गहरा
सम्बन्ध है, इसलिए, अक्षरों में रंग भरते समय वो हर बार ‘ल’ अक्षर को पीले रंग से
रंगता, ‘म’ को –लाल से, ‘ए’ को – काले रंग से वगैरह.
चित्र फेंककर
सिर्योझा फिर से कुलबुलाया, आरामदेह पोज़ीशन में बैठ गया और पिता की दाढ़ी से खेलने
लगा. पहले उसने बड़ी देर तक उसे सहलाया, फिर उसे दो हिस्सों में बाँट दिया और
कल्लों की तरह उनमें कंघी करने लगा.
“अब तुम इवान स्तेपानोविच जैसे लग रहे हो,” वो
बड़बड़ाया, “और, अब लगोगे किसके जैसे...हमारे दरबान जैसे. पापा, ये दरबान दरवाज़ों के
पास क्यों खड़े रहते हैं? जिससे कि चोर अन्दर न जा सकें?”
वकील चेहरे पर उसकी
साँसों को महसूस कर रहा था, वह बार-बार अपने गाल से उसके बाल छू लेता, और उसके दिल
में गर्माहट और नर्मी का एहसास होता, जैसे कि न सिर्फ उसके हाथ, बल्कि पूरी आत्मा
ही सिर्योझा के जैकेट के मखमल पर लेटी हो. उसने बच्चे की काली, बड़ी-बड़ी आँखों की
ओर देखा और उसे महसूस हुआ कि चौड़ी पुतलियों से उसकी ओर झाँक रही है माँ और पत्नी,
और हर वो चीज़, जिसे वह कभी प्यार करता था.
’लो, अब कर लो इसकी
पिटाई,’ उसने सोचा. ‘सोचो तो ज़रा सज़ा के बारे में! नहीं, हम कहाँ कर सकते हैं
बच्चों का लालन-पालन! पहले लोग सीधे-सादे होते थे, कम सोचते थे, इसीलिए समस्याएँ
भी बहादुरी से सुलझा लेते थे. और हम बहुत ज़्यादा सोचते हैं, तर्क-कुतर्क खा गया है
हमको...’
दस के घण्टे बजे.
“चल, बेटा, सोने का टाईम हो गया,” वकील साह्ब ने
कहा. “गुड नाईट, अब जाओ.”
“नहीं, पापा,” सिर्योझा ने त्यौरियाँ चढ़ाईं, “मैं
कुछ देर और बैठूँगा. मुझे कुछ सुनाओ! कहानी सुनाओ!”
“ठीक है, मगर कहानी के बाद – एकदम सोना होगा.”
“सुन,” उसने छत की
ओर देखते हुए कहा. “किसी राज्य में, किसी शहर में एक बूढ़ा, खूब बूढ़ा राजा रहता था.
उसकी बहुत लम्बी दाढ़ी थी और...और ऐसी लम्बी मूँछें... तो, वो रहता था काँच के महल
में, जो सूरज की रोशनी में ऐसे चमचमाता था जैसे ख़ालिस बर्फ का बड़ा टुकड़ा हो. महल
तो, भाई मेरे, ये ब्बड़े बाग़ में था, जहाँ, मालूम है, संतरे लगा करते थे..., बड़े-बड़े
नींबू...चेरीज़,....घण्टे के फूल... गुलाब, लिली, तरह-तरह के पंछी गाते
थे...हाँ...पेड़ों पे काँच की घण्टियाँ लटकतीं, जो, जब हवा चलती, तो इतनी नज़ाकत से
बजतीं कि बस सुनते ही रहो. काँच की आवाज़ धातु से ज़्यादा नाज़ुक होती है... और,
क्या? बाग़ में फ़व्वारे थे...याद है, तूने सोन्या आण्टी की समर कॉटेज में फ़व्वारा
देखा था? बिल्कुल वैसे ही फ़व्वारे थे राजा के बाग में, मगर वे काफ़ी बड़े थे और पानी
की धार सबसे ऊँचे पीपल के सिरे तक पहुँचती थी.
येव्गेनी पेत्रोविच
ने कुछ देर सोचने के बाद आगे कहा:
“बूढ़े राजा का
इकलौता बेटा और राज्य का वारिस – उतना ही छोटा था, जितने तुम हो. वो अच्छा बच्चा
था. वो कभी भी ज़िद नहीं करता था, जल्दी सो जाता था, मेज़ की किसी चीज़ को हाथ नहीं
लगाता और...और वाक़ई में होशियार था. बस, एक ही कमी थी उसमें – वो सिगरेट पीता था.”
सिर्योझा बड़े तनाव
में सुन रहा था और, पलकें झपकाए बिना पिता की आँखों में देख रहा था. वकील साहब कह रहे
थे और सोच रहे थे : ‘आगे क्या?’ वह बड़ी देर तक इधर-उधर की बातें कहते रहे और कहानी
को उन्होंने इस तरह ख़त्म किया:
“सिगरेट पीने के कारण राजकुमार को टी.बी. हो गई
और वह मर गया, जब उसकी उमर सिर्फ बीस साल थी. बीमार, जर्जर बूढ़ा बिना किसी सहारे
के रह गया. राज चलाने वाला और महल की रक्षा करने वाला कोई न रहा. दुश्मनों ने हमला
कर दिया, बूढ़े को मार डाला, महल को बर्बाद कर दिया, और अब बाग में न तो कोई चेरीज़
थीं, ना ही कोई पंछी, ना घण्टियाँ....तो, मेरे भाई...”
ऐसा अंत तो ख़ुद
येगेनी पेत्रोविच को भी बहुत मासूम और हास्यास्पद प्रतीत हुआ, मगर सिर्योझा पर इस
पूरी कहानी ने बड़ा गहरा प्रभाव डाला. उसकी आँखों में डर और दर्द तैर गए; वो एक मिनट
सोच में डूबकर अंधेरी खिड़की की ओर देखता रहा, कँपकँपाया और मरी-सी आवाज़ में बोला:
“मैं अब कभी सिगरेट नहीं पिऊँगा...”
जब वह बिदा लेकर
सोने चला गया, तो पिता कमरे के एक कोने से दूसरे कोने तक ख़ामोशी से घूमते रहे और
मुस्कुराते रहे.
’यहाँ साहित्य ने
अपना प्रभाव डाला है,’ वो सोच रहे थे. ‘चलो, ये भी ठीक है. मगर ये असली तरीका नहीं
है...नैतिकता और सत्य को ख़ूबसूरत जामा पहनाना ही क्यों ज़रूरी है? दवा मीठी ही होनी
चाहिए, सत्य ख़ूबसूरत होना चाहिए...ये आदम के ज़माने से चला आ रहा है...शायद यही सही
है, और ऐसा ही होना चाहिए...’
वह अपना काम करने
लगे, और अलसाए हुए, घरेलू विचार काफ़ी देर तक उनके दिमाग़ में तैरते रहे.
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