शनिवार, 12 दिसंबर 2015

My sister - Ksenia


क्सेनिया - मेरी बहना

लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास


एक बार, एक आम तरह का ही दिन था. मैं स्कूल से आया, थोड़ा सा खाया और खिड़की की सिल पर चढ़ गया. बहुत दिनों से मेरा दिल खिड़की के पास बैठने, आने जाने वालों को देखने और ख़ुद कुछ भी न करने को चाह रहा था. इस समय इस बात के लिए एकदम सही मौक़ा था. और, मैं खिड़की की सिल पर बैठ गया, और ख़ुद निठल्लापन करने लगा. इसी समय पापा उड़ते हुए कमरे में आए.
उन्होंने कहा:
 “ ‘बोर’ हो रहा है?”
मैंने जवाब दिया:
 “ओह, नहीं...बस यूँ ही...और, मम्मा आख़िर कब आएगी? पूरे दस दिनों से घर पे नहीं है!”
पापा ने कहा:
 “खिड़की पकड़! कस के पकड़, वर्ना सिर के बल उड़ने लगेगा.”
मैंने सावधानी के लिए खिड़की की फ्रेम कस के पकड़ ली और कहा:
 “क्या बात है?”
वो एक कदम पीछे हटे, जेब से कोई कागज़ निकाला, उसे दूर से ही दिखाया और बोले:
 “एक घण्टे बाद मम्मा आ रही है! ये रहा टेलिग्राम! तुझे बताने के लिए मैं सीधा काम से भागा भागा आया! खाना नहीं खाएँगे, सब एक साथ ही खाएँगे, मैं उसे रिसीव करने जा रहा हूँ, और तू कमरा ठीक ठाक करके हमारा इंतज़ार कर! डन?”
मैं फ़ौरन खिड़की से कूदा:
 “अफ़कोर्स, डन! हुर्रे! भागो, पापा, बुलेट की स्पीड़ से भागो, और मैं ये कर लेता हूँ! बस एक मिनट – और सब तैयार! चकाचक कर देता हूँ! भागो, टाइम मत वेस्ट करो, मम्मा को जल्दी ले आओ!”
पापा दरवाज़े की तरफ़ लपके. और, मैं काम पे लग गया. मेरा इमर्जेन्सी-जॉब शुरू हो गया, जैसे समन्दर में जा रहे जहाज़ पर होता है. इमर्जेन्सी-जॉब – ये डेक को चकाचक करने का काम होता है, और यहाँ तो मौसम शांत है, लहरों पर ख़ामोशी है – इसे निर्वात समय कहते हैं, और हम, नाविक, अपना काम करते रहते हैं.
“वन,टू! शिर्क-शार्क! कुर्सियाँ अपनी अपनी जगह पे! चुपचाप खड़े रहो! झाडू-वाडू! झाडू लगाएगा – फ़ौरन! कॉम्रेड फ़र्श, ये कैसे दिखाई दे रहे हो? चमको! अभ्भी! ऐसे! खाना! मेरी कमाण्ड सुनो! गैस पर, “प्लेटून” दाईं ओर से एक-एक, कड़ाही के पीछे भगौना – खड़े रहो! वन-टू! गाना गाएगा:

पापा सिर्फ तीली से करेंगे
चिर्क!
और आग फ़ौरन जलेगी
फ़िर्क!
गरम होते रहो! ऐसे. देखा, मैंने कैसा बढ़िया काम किया! असिस्टेंट! ऐसे बच्चे पर गर्व होना चाहिए! जब मैं बड़ा हो जाऊँगा, तब पता है मैं क्या बनूंगा? मैं बनूंगा – ओहो! मैं ओहो-हो भी बनूंगा! ओहोहूहाहो! वो बनूंगा मैं!
 मैं खूब देर तक खेलता रहा और जम कर अपनी तारीफ़ करता रहा, जिससे कि मम्मा और पापा का इंतज़ार ‘बोरिंग’ न लगे. आख़िर में दरवाज़ा धड़ाम से खुला, और उसमें फिर से पापा उड़ते हुए अन्दर आए! वो आ गए थे और बेहद उत्तेजित थे, सिर की हैट पीछे खिसक गई थी! वो अकेले ही पूरे ब्रास-बैण्ड ऑर्केस्ट्रा जैसे हो रहे थे, और साथ ही ऑर्केस्ट्रा के डाइरेक्टर भी! पापा हाथ हिला रहे थे.
“ज़ूम-ज़ूम!” पापा चिल्लाए, और मैं समझ गया कि मम्मा के आने की ख़ुशी में ये बड़े बड़े बिगुल बज रहे हैं. “पीख़-पीख़! तांबे की तश्तरियाँ झनझना रही थीं.                      
 इसके बाद कोई बिल्लियों जैसा म्यूज़िक शुरू हो गया. सौ आदमियों का कोरस चिल्लाने लगा. इन सौ आदमियों के लिए पापा अकेले गा रहे थे, मगर चूँकि पापा के पीछे दरवाज़ा खुला था, मैं बाहर कॉरीडोर में भागा, जिससे कि मम्मा से मिल सकूँ.
वह हाथों में एक बण्डल लिए हैंगर के पास खड़ी थी. जब उसने मुझे देखा, तो वह प्यार से मुस्कुराई और हौले से बोली:
 “हैलो, मेरे बच्चे! मेरे बिना तुम कैसे रहे?”
मैंने कहा:
 “मैंने तुम्हें बहुत ‘मिस’ किया.”
मम्मा ने कहा:
 “और, मैं तुम्हारे लिए एक सरप्राइज़ लाई हूँ!”
मैंने कहा:
 “एरोप्लेन?”
मम्मा ने कहा:
”देखो तो सही!”
हम बहुत धीमे से बात कर रहे थे. मम्मा ने बण्डल मेरी तरफ़ बढ़ाया. मैंने उसे ले लिया.
 “ये क्या है, मम्मा?” मैंने पूछा.
 “ये तेरी बहन क्सेनिया है,” उसी तरह धीमे से मम्मा ने कहा.
मैं चुप रहा.
तब मम्मा ने लेस वाला रूमाल हटाया, और मैंने अपनी बहन का चेहरा देखा. 
ये छोsssटा सा चेहरा था, और उसके ऊपर कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था. मैंने उसे पूरी ताक़त से हाथों में पकड़ा.
 “ज़ूम-बूम-त्रूम,” अचानक कमरे से मेरी बगल में पापा प्रकट हुए. उनका ऑर्केस्ट्रा अभी भी गरज रहा था.
 “अटेन्शन,” पापा ने अनाऊन्सर की आवाज़ में कहा, “छोटे बच्चे डेनिस्का को छोटी-सी बहना क्सेनिया इनाम में दी जाती है. पंजों से सिर तक की लम्बाई पचास सेंटीमीटर्स, सिर से एड़ियों तक – पचपन! वज़न तीन किलो दो सौ पचास ग्राम्स, पैकेजिंग को छोड़कर.
वो मेरे सामने पालथी मार के बैठ गए और मेरे हाथों के नीचे अपने हाथ लगा दिए, शायद, डर रहे थे, कि मैं क्सेनिया को गिरा दूँगा. उन्होंने मम्मा से अपनी नॉर्मल आवाज़ में पूछा:
 “और, ये किसके जैसी है?”
 “तुम्हारे जैसी,” मम्मा ने कहा.
 “ओह, नो!” पापा चहके. “अपने स्कार्फ़ में ये हमारी रिपब्लिक की ख़ूबसूरत फ़ोक-आर्टिस्ट कोर्चागिना-अलेक्सान्द्रोव्स्काया जैसी लग रही है, जिसे अपनी जवानी में मैं बहुत पसन्द करता था. अक्सर मैंने देखा है, कि अपनी ज़िन्दगी के आरंभ के कुछ दिनों में सभी छोटे बच्चे प्रसिद्ध आर्टिस्ट कोर्चागिना-अलेक्सान्द्रोव्स्काया जैसे लगते हैं. ख़ासकर नाक तो बेहद मिलती-जुलती है.
नाक तो एकदम निगाहों में भर जाती है.”
मैं अपनी बहन क्सेनिया को हाथों में लिए खड़ा ही रहा, जैसे बेवकूफ़ लिखे हुए झोले को लटकाए चलता है, और मुस्कुरा रहा था.
मम्मा उत्तेजना से बोली:
 “होशियारी से, प्लीज़, डेनिस, गिरा न देना.”
मैंने कहा:
 “क्या कहती हो, मम्मा? परेशान न हो! मैं बच्चों की पूरी साइकिल एक, बाएँ, हाथ में पकड़ लेता हूँ, क्या मैं इत्ती छोटी सी चीज़ को गिरा दूँगा?”
पापा ने कहा:
 “शाम को इसे नहलाएँगे! तैयार रहना!”
उन्होंने मेरे हाथों से बण्डल ले लिया, जिसमें क्सेनिया लिपटी थी, और चल पड़े. मैं भी उनके पीछे-पीछे चलने लगा, और मेरे पीछे – मम्मा. हमने क्सेनिया को अलमारी की बाहर निकली हुई दराज़ में सुला दिया, और वह आराम से वहाँ पड़ी रही.
पापा ने कहा:
 “ये सिर्फ अभी के लिए, एक रात के लिए है. कल मैं इसके लिए छोटा सा पलंग ख़रीदूँगा, और वह पलंग पे सोया करेगी. और तू, डेनिस, चाभियों पर नज़र रख, जिससे कोई तेरी छोटी सी बहना को अलमारी में बन्द न कर दे. वर्ना बाद में ढूँढ़ते रहेंगे कि वो कहाँ चली गई...”
और, हम खाना खाने बैठे. मैं हर एक मिनट बाद उछल कर क्सेनिया को देख लेता. वह पूरे समय सोती रही. मुझे अचरज हुआ, और मैंने ऊँगली से उसका गाल छू लिया. गाल नरम-नरम था, बिल्कुल मक्खन  जैसा. अब, जब मैंने ध्यान से उसे देखा, तो पाया कि उसकी लम्बी-लम्बी काली पलकें हैं....
शाम को हम उसे नहलाने लगे. हमने पापा की मेज़ पर छोटा सा पाइप वाला टब रखा और वहाँ कई सारे गरम और ठण्डे पानी से भरे बर्तन ले आए. क्सेनिया अपने ड्रावर में लेटी रही और नहाने का इंतज़ार करती रही. वो, ज़ाहिर है, परेशान हो रही थी, क्योंकि ड्रावर चरमरा रहा था, दरवाज़े की तरह, और पापा, उल्टे, पूरे समय उसका मूड ठीक रखने की कोशिश कर रहे थे, जिससे कि वह ज़्यादा डरे नहीं. पापा इधर उधर पानी और तौलिए लिए घूम रहे थे, उन्होंने अपनी जैकेट उतारी, आस्तीनें चढ़ा लीं और ख़ुशामद करते हुए ज़ोर से चिल्लाए:
 “हमारे घर में सबसे बढ़िया कौन तैरता है? कौन सबसे बढ़िया गोते लगाता है? कौन सबसे बढ़िया बबल्स बनाता है?”


और, क्सेनिया का चेहरा ऐसा था, कि वही सबसे बढ़िया गोते लगाती है – पापा की ख़ुशामद काम कर गई. मगर जब उसे नहलाने लगे, तो उसके चेहरे पर इतना डर छा गया, कि देखो, भले आदमियों: सगे माँ-बाप अपनी बेटी को डुबा रहे हैं, और उसने एडी से टटोलते हुए टब की तली पा ली, उस पर एड़ी टिका ली और तभी कुछ शांत हुई, चेहरा कुछ सामान्य हुआ, अब वो इतना दुखी नहीं लग रहा था, और उसने अपने ऊपर पानी डालने दिया, मगर फिर भी उसके मन में शक ही था, अचानक पापा ने उसे थोड़ा सा पानी में डुबाया, उसका दम घुटने लगा...मैं फ़ौरन मम्मा की कुहनी के नीचे से निकला और क्सेनिया को अपनी ऊँगली थमा दी, और, ज़ाहिर है, मैं समझ गया था और मैंने वही किया जो करना चाहिए था, उसने मेरी ऊँगली पकड ली और पूरी तरह शांत हो गई. बच्ची ने इतनी बदहवासी से, इतनी कस कर मेरी ऊँगली पकड़ ली, जैसे डूबता हुआ इन्सान तिनके को पकड़ता है. और, मुझे उस पर दया आई, कि वह मेरा ही सहारा ले रही है, अपनी चिड़ियों जैसी ऊँगलियों की पूरी ताक़त से मुझे पकड़े हुए है, और इन ऊँगलियों से साफ़ महसूस हो रहा है कि अपनी बेशकीमती ज़िन्दगी के लिए वह अकेले मुझ पर ही भरोसा कर रही है और यह, कि ईमानदारी से कहूँ तो, ये सब नहाना-वहाना उसके लिए दुखदायी है, डरावना है, और ख़तरनाक है, और धमकीभरा है, और उसे ख़ुद को बचाना चाहिए: अपने ताक़तवर और बहादुर, बड़े भाई की ऊँगली थाम लेना चाहिए. और जब मैं ये सारी बात समझ गया, जब मैं समझ गया कि उस बेचारी को कितनी मुश्किल हो रही है, कितना डर लग रहा है, तो मैं फ़ौरन उससे प्यार करने लगा.

सोमवार, 17 अगस्त 2015

Wonderful Idea

वंडरफुल आइडिया

                                                                             लेखक: विक्टर द्रागून्स्की 
                                                                                        अनुवाद: आ. चारुमति रामदास


क्लासेज़ ख़त्म होने के बाद मैंने और मीश्का ने अपना-अपना बैग उठाया और घर जाने लगे. सड़क गीली, कीचड़ से भरी, मगर ख़ुशनुमा थी. अभी-अभी भारी बारिश हुई थी, और डामर ऐसे चमक रहा था जैसे नया हो, हवा ताज़गी भरी और साफ़-सुथरी थी, पानी के डबरों में घरों की और आसमान की परछाई पड़ रही थी, और अगर कोई पहाड़ी की तरफ़ से उतरे, तो किनारे पे, फुटपाथ के पास, गरजते हुए पानी की बड़ी भारी धार बह रही थी, मानो पहाड़ी नदी हो. ख़ूबसूरत धार - भूरी, उसमें बवण्डर थे, भँवर थे, तेज़ लहरें थीं. सड़क के कोने पे, ज़मीन में एक जाली बनाई गई थी, और यहाँ पानी पूरी तरह से बेक़ाबू हो रहा था, वह नाच रहा था और फ़ेन उगल रहा था, कलकल कर रहा था, जैसे सर्कस का म्यूज़िक हो, या, फिर इस तरह बुदबुदा रहा था जैसे फ़्रायपैन में तला जा रहा हो. आह, कितना ख़ूबसूरत...

मीश्का ने जैसे ही ये सब देखा, फ़ौरन जेब से माचिस की डिबिया निकाल ली. मैंने पाल बनाने के लिए उसे डिबिया से दियासलाई निकाल कर दी, कागज़ का टुकड़ा दिया, हमने पाल बनाया और ये सब माचिस की डिबिया में घुसा दिया. फ़ौरन एक छोटा सा जहाज़ बन गया. हमने उसे पानी में छोड़ा, और वह फ़ौरन तूफ़ानी गति से चल पड़ा. वह इधर उधर हिचकोले खा रहा था, लहरें उसे थपेड़े लगा रही थीं, वह उछलता और आगे चल पड़ता, कभी कुछ देर ठहर जाता और कभी एकदम सौ नॉटिकल माईल्स की गति से भागने लगता. हमने फ़ौरन कमाण्ड्स देना शुरू कर दिया, क्योंकि अचानक ही हम कैप्टन और नेवीगेटर बन गए थे – मैं और मीश्का. जब जहाज़ उथली जगह पर ठहर जाता तो हम चिल्लाते:

 -पीछे चल – चुख़-चुख़-चुख़!                
 - पूरी तरह पीछे – चुख़-चुख़-चुख़!
 - एकदम पूरी तरह पीछे – चुख़-चुख़-चुख़-चाख़-चाख़-चाख़!
और मैं ऊँगली से जहाज़ को जिधर चाहे उधर मोड़ता, और मीश्का गरजता : 
 - स्टार्ट! ऊह – दब रहा है! ये ठीक है! पूरा आगे! चुख़-चुख़-चुख़!

इस तरह बदहवास चीख़ें निकालते हुए हम पागलों की तरह जहाज़ के पीछे-पीछे भाग रहे थे और भागते-भागते हम कोने तक पहुँचे, जहाँ जाली लगी थी, और अचानक हमारा जहाज़ पलट गया, भँवर में गोते लगाने लगा, और देखते-देखते नाक के बल उलट गया, टकराया और जाली में गिर गया.
मीश्का ने कहा:
 “अफ़सोस की बात है. डूब गया...”
और मैंने कहा:
 “हाँ, उफ़नता सैलाब उसे निगल गया. चल, नया जहाज़ छोडेंगे?”
मगर मीश्का ने सिर हिलाते हुए कहा:
 “संभव नहीं है. आज मुझे देर से घर पहुँचना मना है. आज पापा की ड्यूटी है.”
मैंने कहा:
 “किस बात की?”
 “उनकी बारी है,” मीश्का ने जवाब दिया.
 “नहीं,” मैंने कहा, “तू समझा नहीं. मैं पूछ रहा हूँ, कि तेरे पापा की किस काम की ड्यूटी है? किस काम की? सफ़ाई करने की? या मेज़ सजाने की?”
 “मेरे हिसाब से,” मीश्का ने कहा, “पापा की ड्यूटी मेरे साथ लगी है. उन्होंने और मम्मा ने इस तरह से अपनी-अपनी बारी लगाई है: एक दिन मम्मा, दूसरे दिन पापा. आज पापा की बारी है. कहीं मुझे खाना खिलाने के लिए ऑफ़िस से न आ गए हों, और ख़ुद जल्दी मचाते हैं, उन्हें वापस भी तो जाना होता है ना!”
”मीश्का, तू भी ना, इन्सान नहीं है!” तुझे ख़ुद अपने पापा को खाना खिलाना चाहिए, और यहाँ तो एक ‘बिज़ी’ आदमी काम से आता है ऐसे ठस दिमाग़ को खाना खिलाने! तू आठ साल का हो गया है! दूल्हे मियाँ!”
 “मम्मा को मुझ पर विश्वास ही नहीं होता. तू ऐसा मत सोच,” मीश्का ने कहा. “मैं घर में मदद तो करता हूँ, अभी पिछले ही हफ़्ते मैं उनके लिए ब्रेड लाया था...”
 “उनके लिए!” मैंने कहा. “उनके लिए! ज़रा देखिए, वो खाते हैं, और हमारा मीशेन्का सिर्फ हवा खाकर ही ज़िन्दा रहता है! ऐह, तू भी ना!”
मीश्का लाल हो गया और बोला:
 “चल, अपने-अपने घर जाएँगे!”

हमने अपनी चाल तेज़ कर दी. जब हम अपने-अपने घर की तरफ़ आने लगे तो मीश्का ने कहा:
 “हर रोज़ मैं अपना फ्लैट नहीं पहचान पाता. सभी बिल्डिंगें बिल्कुल एक जैसी हैं, बहुत उलझन होती है. क्या तू पहचान जाता है?”
 “नहीं, मैं भी नहीं पहचान पाता,” मैंने कहा, “अपनी बिल्डिंग का एंट्रेन्स ही नहीं पहचान पाता. ये हरा है, वो भी हरा है, सब हरे हैं...सब एक जैसे हैं, सब नये-नये हैं, और बालकनियाँ भी बिल्कुल एक जैसी हैं. सिर्फ मुसीबत.”
 “तो फिर तू क्या करता है?” मीश्का ने पूछा.
 “इंतज़ार करता हूँ, जब तक मम्मा बालकनी में नहीं आ जाती.”
 “वो तो कोई और मम्मा भी बालकनी में आ सकती है! तू दूसरी के यहाँ भी जा सकता है...”
 “क्या कह रहा है तू,” मैंने कहा, “मैं तो हज़ारों अनजान मम्माओं में से अपनी मम्मा को पहचान लूँगा.”
 “कैसे” मीश्का ने पूछा.
 “चेहरे से,” मैंने जवाब दिया.
 “पिछली पेरेन्ट्स मीटिंग में सारे पेरेंट्स आए थे, और कोस्तिकोव की दादी मेरे पापा के साथ जा रही थी,” मीश्का ने कहा, “तो, कोस्तिकोव की दादी ने कहा कि क्लास में तेरी मम्मा सबसे ज़्यादा ख़ूबसूरत है.”
 “बकवास,” मैंने कहा, “तेरी मम्मा भी ख़ूबसूरत है!”
 “बेशक,” मीश्का ने कहा, “मगर कोस्तिकोव की दादी ने कहा कि तेरी मम्मा सबसे ज़्यादा ख़ूबसूरत है.”

 अब हम बिल्कुल अपनी बिल्डिंग्स तक पहुँच गए. मीश्का परेशानी से इधर-उधर देखने लगा और घबराने लगा, मगर तभी कोई एक दादी-माँ हमारे पास आई और बोली:
 “ओह, ये तुम हो, मीशेन्का? क्या हुआ? मालूम नहीं है कि कहाँ रहते हो, हाँ? हमेशा की प्रॉब्लेम. ठीक है, चल, मैं तेरी पड़ोसन हूँ, घर तक ले जाऊँगी. उसने मीश्का का हाथ पकड़ा, और मुझसे बोली:
 “हम एक ही फ्लोर पे रहते हैं.”

और वो लोग चले गए. मीश्का ख़ुशी-ख़ुशी उसके साथ जा रहा था. मगर मैं अकेला रह गया बेनाम की इन एक जैसी गलियों में, बिना नंबरों वाली बिल्डिंग्स के बीच में और बिल्कुल भी सोच नहीं पा रहा था कि जाऊँ तो किधर जाऊँ, मगर मैंने तय कर लिया कि हिम्मत नहीं हारूँगा और मैं पहली ही बिल्डिंग की सीढ़ियाँ चढ़कर चौथी मंज़िल पर पहुँच गया. ये बिल्डिंगें तो कुल अठारह ही हैं, तो, अगर मैं सभी बिल्डिंगों की चौथी मंज़िल पर गया, तो घण्टे-दो घण्टे में अपने घर ज़रूर पहुँच जाऊँगा, ये पक्की बात है.

हमारी सभी बिल्डिंग्स में, हर दरवाज़े पर, बाईं ओर लाल बटन वाली घंटी लगी है. तो, मैं चौथी मंज़िल पर पहुँचा और मैंने घण्टी का बटन दबाया. दरवाज़ा खुला, उसमें से लम्बी, मुड़ी हुई नाक बाहर निकली और दरवाज़े की दरार से चीख़ी: “रद्दी पेपर नहीं हैं! कितनी बार बताऊँ!”

मैंने कहा, “सॉरी” और नीचे उतरा. हो गई गलती, क्या कर सकते हैं. फिर मैं अगली बिल्डिंग में घुसा. मैं घण्टी बजा भी नहीं पाया था कि दरवाज़े के पीछे से कोई कुत्ता इतनी भयानक, भर्राई हुई आवाज़ में भौंका कि मैं उस शिकारी कुत्ते के झपटने का इंतज़ार किए बगैर फ़ौरन भाग कर नीचे आ गया. अगली बिल्डिंग में, चौथी मंज़िल पर, एक लम्बी लड़की ने दरवाज़ा खोला और मुझे देखकर ख़ुशी से तालियाँ बजाते हुए चिल्लाने लगी:

 “वोलोद्या! पापा! मारिया सेम्योनोव्ना! साशा! सब लोग यहाँ आओ! छठवाँ!” कमरों से लोगों का एक झुण्ड बाहर आ गया, वो सब मेरी तरफ़ देख रहे थे, और ठहाके लगा रहे थे, तालियाँ बजा रहे थे, और गा रहे थे:
 “छठवाँ! ओय-ओय! छठवाँ! छठवाँ!...”
मैं आँखें फ़ाड़कर उनकी ओर देख रहा था. क्या पागल हैं? मैं बुरा मान गया:
यहाँ तो भूख लगी है, और पैर दर्द कर रहे हैं, और घर के बदले अनजान लोगों के बीच पहुँच गया, और वो मुझ पर हंस रहे हैं...
 मगर वह लड़की, ज़ाहिर था कि, समझ गई थी, कि मुझे अच्छा नहीं लग रहा है.
 “तुम्हारा नाम क्या है?” उसने पूछा और मेरे सामने पालथी मारकर बैठ गई, वह अपनी नीली-नीली आँखों से मेरी आँखों में देख रही थी.
 “डेनिस,” मैंने जवाब दिया.
उसने कहा: “तू बुरा न मान, डेनिस! सिर्फ, आज तू छठवाँ बच्चा है जो हमारे यहाँ आ गया. वो सब भी भटक गए थे. ये ले, तेरे लिए, एपल, खा ले, तेरी ताक़त वापस आ जाएगी.”
मैं एपल नहीं ले रहा था.
 “ले ले, प्लीज़,” उसने कहा, “मेरी ख़ातिर. मुझ पर मेहरबानी कर.”
 “सुन,” लड़की ने कहा, “मुझे ऐसा लगता है कि मैंने तुझे हमारे सामने वाली बिल्डिंग से निकलते हुए देखा है. तू एक बेहद ख़ूबसूरत औरत के साथ निकला था. वो तेरी मम्मा है?”
 “बेशक,” मैंने कहा, “मेरी मम्मा क्लास में सबसे ज़्यादा ख़ूबसूरत है.”
अब सब लोग फिर से हँस पड़े. बिना किसी वजह के. मगर लड़की ने कहा: “चल, तू भाग. अगर चाहे, तो हमारे यहाँ आया करना.”

मैंने ‘थैंक्यू’ कहा और उस लम्बी लड़की ने जिधर इशारा किया था, उस तरफ़ भागा. मैं घण्टी का बटन दबा भी नहीं पाया था कि दरवाज़ा खुल गया, और देहलीज़ पर खड़ी थी – मेरी मम्मा! उसने कहा:
 “हमेशा तेरा इंतज़ार करना पड़ता है!”
मैंने कहा: “भयानक स्टोरी है! मेरे पैर दुख रहे हैं, क्योंकि मैं अपनी बिल्डिंग नहीं ढूँढ़ पा रहा था. मुझे मालूम ही नहीं है कि हमारी बिल्डिंग कौन सी है, सारी बिल्डिंगें बिल्कुल एक जैसी जो हैं. मीश्का के साथ भी ऐसा ही हुआ! कोई भी अपनी बिल्डिंग नहीं ढूँढ पाता है! मैं आज का छठवाँ बच्चा था...और, मुझे भूख लगी है!”

और मैंने मम्मा को रद्दी पेपर वाली टेढ़ी नाक के बारे में, गुर्राते हुए खूँखार कुत्ते के बारे में और लम्बी लड़की और एपल के बारे में बताया.
 “तेरे लिए कोई निशान बनाना चाहिए,” पापा ने कहा, “जिससे की तू अपनी बिल्डिंग पहचान ले.
मैं बहुत ख़ुश हो गया:
 “पापा! मैंने सोच लिया! प्लीज़, हमारी बिल्डिंग पे मम्मा की तस्वीर लगा दो! मुझे दूर से ही पता चल जाएगा कि मैं कहाँ रहता हूँ!”
मम्मा हँसने लगी और बोली:
 “चल, बेकार की बात न सोच!”
मगर  पापा ने कहा:
 “आख़िर क्यों नहीं? एकदम वण्डरफुल आइडिया है!”


*****

मंगलवार, 19 मई 2015

Jaadui Obi

जादुई ‘ओबी’

लेखिका: लीदिया चार्स्काया
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास


एक प्रसिद्ध और अमीर समुराई की (प्राचीन काल में जापान में नाइट्स को, कुलीनों को समुराई कहते थे) की एक बेटी थी. उसका नाम था हाना. मुसुमे (जापानी भाषा में ‘मुसुमे’ का मतलब है – लड़की. जापानी भाषा में किसी अविवाहित लड़की को संबोधित करते समय ‘मुसुमे’ कहा जाता है, ठीक उसी तरह जैसे फ्रांसीसी में माद्मुवाज़ल या जर्मन में फ्रैलेन कहते हैं.) हाना की सुन्दर काली आँखें थीं, चमकते बाल थे और पतली, मीठी आवाज़ थी.

मुसुमे हाना दिल की बहुत अच्छी थी, और उसके बारे में जापान में एक अद्भुत कहानी प्रचलित है.

मैंने यह कहानी बूढ़े, भूरे उकाब से सुनी, जो जापान के एक बड़े शहर के निकट स्थित पवित्र पर्वत फुजियामा के पास एक चट्टान पर उड़कर आ गया था.  

बूढ़ा भूरा उकाब अक्सर उड़कर समन्दर के किनारे वाली इस नंगी चट्टान पर आ जाता था और कहानियाँ सुनाता.

पिछली बार उसने समुराई की बेटी हाना की कहानी सुनाई.

मुझे बूढ़े भूरे उकाब की कहानी याद है, और उसका एक-एक शब्द मैं आपको सुना रही हूँ.

मुसुमे हाना पन्द्रह साल की थी. सिर्फ पन्द्रह साल की. जब वह सोलह की हो जाएगी तो उसके पिता, जो प्रसिद्ध समुराई हैं, उसके ज़ारा में (जापानी में कमरे को ज़ारा कहते हैं), बड़े, आरामदेह ज़ारा में आएँगे और जापानी रिवाज के अनुसार उसके लिए ‘ओबी’ लाएँगे. जानते हो, ‘ओबी’ क्या होता है?
 ये एक कमरबन्द होता है, चौड़ा, रेशमी कमरबन्द, जो बेहद ख़ूबसूरत और नाज़ुक चटख़ या गुलाबी रंग के कपड़े से बनाया जाता है, जैसे पूरब की सुबह होती है, या उनींदी धरती पर छाया गुलाबी शाम का धुंधलका. कमरबन्द के दोनों सिरों पर सोने की घण्टियाँ होती हैं.

जापानी लड़कियाँ ‘ओबी’ को बहुत महत्व देती हैं. जितने प्रसिद्ध वंश की कोई मुसुमे होती है, उतना ही शानदार उसका ‘ओबी’ होता है. ख़ूबसूरत, शानदार - उस पर कढ़े होते हैं फूल, पंछी, और पंखे. ऐसा शानदार ‘ओबी’ किसी साधारण घर की लड़की का नहीं हो सकता; वे बेहद साधारण कमरबन्द का इस्तेमाल करती हैं. अमीर समुराई, सामंतों की और अफ़सरों की बेटियाँ अपने महंगे, रेशमी ‘ओबी’ की शान बघारा करती हैं.

जितनी प्रसिद्ध, जितनी महत्वपूर्ण जापानी लड़की होगी, उतना ही महंगा और शानदार उसका ‘ओबी’ होता है. ‘ओबी’ प्रदर्शित करता है प्रसिद्धी को, पुरखों के सम्मानित ओहदे को और ख़ुद ‘मिकादो’ – जापानी सम्राट - से उनकी घनिष्ठता को.

मुसुमे हाना कब से ऐसे ‘ओबी’ का इंतज़ार कर रही थी. वह चाहती थी कि उसका ‘ओबी’ नाज़ुक-गुलाबी हो, जैसे नीले समुन्दर की सतह पर उगते सूरज की चमक, वह कमल के निःश्वास जैसा बेहद हल्का हो, और नर्म - इतना नर्म जैसे गुलदाऊदी – जापान के अत्यंत लोकप्रिय फूल - की पंखुड़ी हो.

मुसुमे हाना को उम्मीद थी कि उसका ‘ओबी’ ऐसा ही होगा. उसके पिता बहुत प्रसिद्ध और बेहद अमीर थे, और उनकी बेटी का ‘ओबी’ बेहद शानदार और क़ीमती ही होगा.

हर बार, जब ‘ओबी’ के बारे में बात होती तो हाना पिता को याद दिलाती कि उसकी ख़्वाहिश सबसे बढ़िया, सम्राज्ञी जैसा ‘ओबी’ पाने की है.

एक साल बीत गया.                 

समुन्दर में ज्वार आया और वह काला नज़र आने लगा, फिर वह शांत हो गया और बसंत के आते-आते फिर से शांत, शालीन और ख़ूबसूरत हो गया.

वादियों में कमल के फूल खिल गए, सफ़ेद और पारदर्शी – नाज़ुक, सुन्दरियों के गालों की तरह.

मुसुमे हाना सोलह साल की हो गई.

सुबह की पहली किरण के साथ उसके पिता ज़ारा में आए और उन्होंने उसके हाथों में गुलाबी कागज़ में सफ़ाई से लिपटी हुई कोई चीज़ रख दी.
 “ओबी! ओबी!” हाना चीख़ पड़ी और फ़ौरन उस उपहार को खोलने लगी.
उसे पूरा यक़ीन था कि उसके पिता का लाया हुआ ‘ओबी’ बेहद शानदार, ख़ूबसूरत होगा. वह उन सभी ‘ओबी’ से ज़्यादा क़ीमती होगा जैसे उसने अपनी सहेलियों के पास देखे थे.

मगर, ये क्या?

ख़ूबसूरत ‘ओबी’ के बदले, जिसकी वह इतनी शिद्दत से राह देख रही थी, उसके हाथ में था बिल्कुल साधारण काला कमरबन्द; जो ग़रीब लड़कियाँ अपनी साधारण पोषाकों पर बांधती हैं. ऊपर से यह कमरबन्द पुराने ऊन से बनाया गया था, वह इतना पुराना था कि कई जगहों पर ऊन अपनी जगह से खिसक गया था और वह किसी गंदे चीथड़े की तरह लग रहा था, जिसे अत्यंत ग़रीब जापानी लड़कियाँ अपने रोज़मर्रा के किरिमोनो (जापानी औरतों की गाऊन जैसी पोषाक. आधुनिक रूसी भाषा में – किमोनो) पर बांधती हैं.
 “ये क्या है? आप मेरा मज़ाक उड़ा रहे हैं, पिताजी?” वह चिल्लाई. उसकी आँखें आँसुओं से डबडबा गईं.

मगर प्रसिद्ध समुराई अपनी मूंछों में हौले से मुस्कुराया, उसने अपने हाथ में ‘ओबी’ लेकर बेटी के शानदार रेशमी किरिमोनो पर बांध दिया और कहा:
 “ये मत देख, मेरी बच्ची, कि मेरा उपहार सीधा-साधा और सस्ता है. इस ‘ओबी’ के पास अद्भुत, चमत्कारिक शक्ति है. जब तक तुम इसके भद्देपन से बिना शरमाए इसे पहनती रहोगी, तब तक ये तुम्हारा वफ़ादार सेवक बना रहेगा. तुझे बस इस साधारण ‘ओबी’ का सिरा अपनी बड़ी ऊँगली पर लपेटना होगा, तो पल भर में तुम्हारी हर इच्छा पूरी हो जाएगी. ये ‘ओबी’ तेरी माँ को जादूगरनी सुआतो से मिला था, जो उसकी आया और संरक्षक थी. मगर याद रखना: जैसे ही तुम्हें अपने इस साधारण ‘ओबी’ पर शरम आएगी और तुम इसके बदले कोई दमकता और सजा-धजा ‘ओबी’ पाना चाहोगी, इसकी जादुई शक्ति समाप्त हो जाएगी और वह एक भद्दे चीथड़े में बदल जाएगा. मेरी बात समझ गईं न, बिटिया?”

हाना अपने पिता की हर बात समझ गई. हाना होशियार और समझदार लड़की थी. अब उसे कोई अफ़सोस नहीं था. उसके हाथों में कभी न ख़त्म होने वाली दौलत थी, और, वह पूरी तरह ख़ुश थी.

**********

कुछ दिनों बाद हँसती-खेलती, तरोताज़ा मुसुमों का झुण्ड समुन्दर के किनारे पर पहुँचा. वे सुन्दर-सुन्दर सीपियाँ इकट्ठा कर रही थीं और पानी की हरी बेलों से अपने काले बालों को सजा रही थीं. उन्होंने रंगबिरंगे फूलों वाले चटख रंग के किरिमोनो पहने थे और उन पर बेहद शानदार ‘ओबी’ बांधे थे. इतने शानदार ‘ओबी’ सिर्फ जापान में ही देखने को मिलते हैं, क्योंकि ये सब गुलाब जैसी लड़कियाँ ‘दाय-निलोन’ (जैसा कि जापानी देश का नाम है) के अत्यंत प्रसिद्ध दरबारियों की बेटियाँ थीं.
सिर्फ मुसुमे हाना का कमरबन्द बेहद साधारण, जर्जर, फटीचर था, जो उसके शानदार किरिमोनो पर बंधा था.

 “सुन, हाना!” एक महत्वपूर्ण अधिकारी की सुन्दर बेटी हाना से बोली. “इस पुराने, गंदे, जर्जर कमरबन्द में तू बिल्कुल भिखारिन लग रही हो, इसे उतार कर पानी में फेंक दे.
 “तूने ये घटिया चीथड़ा क्यों पहना है?” श्वेत-गुलदाऊदी नामक सुन्दरी, एक प्रसिद्ध कमाण्डर की भतीजी चिल्लाई.
 “मुसुमे हाना ग़रीब हो गई है! इसने ‘ओबी’ के बदले कोई चीथड़ा पहना है! मुसुमे हाना भूल गई है कि उसे, सम्राट के दरबारी की बेटी को, ऐसा कमरबन्द नहीं पहनना चाहिए. अगर वह इतना भी नहीं जानती तो मुसुमे हाना बहुत बड़ी बेवकूफ़ है,” मिकादो की दूर की रिश्तेदार गुलाब-कमल ने तैश में आकर कहा.
ओह, ये बहुत ही ज़्यादा हो रहा था! हर जापानी लड़की की तरह हाना को भी अपने परिवार पर गर्व था. इस तरह के ताने वह बर्दाश्त नहीं कर पाई. उसने धिक्कारपूर्वक अपनी सहेलियों की ओर देखा उन्हें अधिकारयुक्त वाणी से आज्ञा दी:
 “तुमने जितनी भी सींपियाँ इकट्ठी की हैं, उन्हें किनारे पर रख दो, और देखो कि उनके साथ क्या होता है.”

गुलाबी मुसुमों ने अविश्वास से अपने ख़ूबसूरत सिर हिलाए, मगर उन्होंने उसकी बात मानकर अपनी सारी रेत की सीपियाँ इकट्ठा करके किनारे पर रख दीं और खुसफुसाते हुए दूर हट गईं.

हाना ने सफ़ाई से अपने कमरबन्द का सिरा बाएँ हाथ की ऊँगली पर लपेट लिया और....ओह, आश्चर्य!

छोटी-छोटी रंगबिरंगी सीपियाँ पलक झपकते ही सूरज की किरणों में जलते हुए सोने के सिक्कों में बदल गईं.
 “ये सिक्के ले लो और आपस में बांट लो!” धृष्ठता से हाना ने कहा और किसी सम्राज्ञी के ठठ से 

वह अपनी सहेलियों से दूर चली गई.

गुलाबी मुसुमे सिक्के उठाने लगीं, वे जलन भरी नज़रों से जाती हुई हाना को देखती रहीं. वे इस निष्कर्ष पर पहुँचीं कि उनके सामने कोई सीधी-सादी जापानी मुसुमे नहीं, बल्कि कोई ताक़तवर जादूगरनी है.

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सुबह का समय था, पूरब की सुनहरी सुबह का. नीले समुन्दर के पारदर्शी पानी में किसी लापरवाह बच्चे की तरह सूरज ख़ुशी से तैर रहा था.

मुसुमे हाना चावल के खेतों के बीच पगडंडी पर जा रही थी. उसके पीछे उसकी सहेलियों का बड़ा झुण्ड चल रहा था. जबसे उन्हें हाना की ताक़त का पता चला था, वे उससे एक क़दम भी दूर नहीं हटती थीं. हाना बहुत अमीर थी. हाना बुद्धिमान थी. हाना के पास चमत्कारी ताक़त थी. लोग अमीरी और बुद्धिमानी को बहुत महत्व देते हैं, और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि अब मुसुमे हाना के पीछे उसकी हमउम्र लड़कियों के झुण्ड के झुण्ड चला करते थे.

वे चौड़े खेतों से होकर जा रही थीं, जिन्हें धूप ने जला दिया था. ये खेत बंजर हो चुके थे, उन पर अब कोई भी फसल नहीं होती थी. देश में अकाल तांडव कर रहा था, और पीले, धूप से झुलसे खेतों में अनाज का एक भी दाना पैदा नहीं हो रहा था.

मुस्कुराती, गुलाबी-गुलाबी मुसुमे के रास्ते में भूखे, फटेहाल, ग़रीबी से बदमिजाज़ हो गए लोग आ रहे थे; वे कर्कश आवाज़ में चिल्लाते:
 “ऐ तुम, अमीरों के बच्चों! हमें रोटी के लिए कुछ पैसा दो! हम भूख से मर रहे हैं.”
हाना का दिल बहुत भला था और उसकी आत्मा बहुत संवेदनशील थी. संवेदनशील आत्मा थी मुसुमे हाना की.

उसने अपने सारे पैसे भूखे, गुस्साए लोगों में बांट दिए, और जब उसके पास एक भी येन (येन – जापानी सिक्का) नहीं बचा, तो उसने चुपके से अपने काले ‘ओबी’ का सिरा ऊँगली पर लपेट लिया, और पलक झपकते ही पीले खेतों में पके हुए चावल की बालियाँ लहराने लगीं, जो जापानियों का प्रमुख अनाज है. चावल इत्ते सारे थे कि उससे बड़े से बड़े देश को भी भरपेट खिलाया जा सकता था.
भूखे लोग फसल इकट्ठा करने भागे, मगर उनकी ताक़त ने जवाब दे दिया, भूख से बेहाल सूखे बदन किसी तरह की हलचल ही नहीं कर सके, कमज़ोर हाथ काम करने के लिए उठ ही नहीं पाए.

तब वे मुट्ठियाँ ताने, धमकाते हुए हाना पर टूट पड़े.

 “तू, जादूगरनी!” वे चीख़े. “तू, पापी जादूगरनी! तूने हमें सिर्फ चिढ़ाने के लिए खाना दिया, मगर हम उसे इकट्ठा ही नहीं कर पा रहे हैं, इसके लिए हमारे पास ताक़त ही नहीं है! हम तुझे मार डालेंगे!”
उनके चेहरे पर इतनी क्रूरता थी, उनकी आँखों से ऐसी नफ़रत और कटुता फूट रही थी कि गुलाबी मुसुमे डर के मारे भाग गईं, और हाना अकेली रह गई.

वह बिल्कुल भी नहीं घबराई, और उसने फिर से ‘ओबी’ का सिरा अपनी गुलाबी ऊँगली पर लपेट लिया, और चमत्कार हो गया.

चावल के खेत में मज़दूरों का एक पूरा झुण्ड प्रकट हो गया. उन्होंने पल भर में फसल काट ली और उसका ढेर बना कर खेत से ले गए. अब भूखे लोग हाना को गालियाँ नहीं दे रहे थे, उसे धमकियाँ नहीं दे रहे थे.

 “पवित्र देवी क्वान-नान!” वे चिल्लाए. “इस बच्ची पर दया करो! ऐ, भली आत्माओं, हर काम में इसकी मदद करो!”

और वे अनाज ले जाते हुए मज़दूरों के पीछे भागे.
हाना अकेली रह गई.

अचानक हाना के कानों में कोई गीत गूंजा, जो सपने जैसा मीठा था. नौजवान मुसुमे अपनी जगह पर जैसे जम गई. उसकी आत्मा जोश से भर गई, उसका समूचा अस्तित्व जैसे गीत की आवाज़ बन गया.

आवाज़ बगल वाली फुलवारी से आ रही थी, जो उस जगह से कुछ ही दूर था, जहाँ वह खड़ी थी.
इस स्वर्गीय संगीत से मुग्ध होकर हाना बड़ी देर तक ठगी सी खड़ी रही. गीत से कभी लहर की शांत, दुलार सुनाई देती, कभी कमल के खेतों की फुसफुसाहट, या कभी जापानियों के प्रिय वाद्य “शे” की आवाज़ सुनाई पड़ती.

नौजवान मुसुमे फुलवारी की ओर बढ़ी और सौ साल पुराने भव्य वृक्ष के सामने भौंचक्की सी खड़ी रह गई, जिसके तने के पास साधारण कपडों में एक ख़ूबसूरत नौजवान बैठा था. वो ही तो इतना मीठा गीत गा रहा था कि इन्सान अनचाहे ही उसके गीतों में खो जाता था.
 “नमस्ते, नौजवान!” हाना ने गायक की ओर ग़ौर से देखते हुए कहा.
  “नमस्ते, सुन्दरी मुसुमे!” उसने प्यार से जवाब दिया.      
”ये यहाँ, अकेले बैठकर तुम क्या गा रहे हो?” हाना ने  दुबारा पूछा.
 “मैं वह गीत बना रहा हूँ, जो मैं मिकादो के महल में उत्सव वाले दिन गाने वाला हूँ,” उसने जवाब दिया. “तुम्हें तो मालूम है, ऐ हसीन मुसुमे, कि हमारे महान सम्राट और शासक अपने बेटे, सिंहासन के उत्तराधिकारी का विवाह करवाना चाहते हैं. अगली दूज के चांद को मिकादो के राजमहल में दाय-निलोन की सभी प्रसिद्ध सुन्दरियाँ इकट्ठा होने वाली हैं, उन्हींमें से एक को राजकुमार अपनी पत्नी के रूप में चुनेगा. इस सौभाग्यशाली मुसुमे के लिए मुझे प्रशंसा गीत गाना होगा.
 “ओह, गायक, तेरा बहुत-बहुत धन्यवाद!” हाना चिल्लाई. “पहले से ही तुझे धन्यवाद देती हू! मिकादो तो बेटे की पत्नी के रूप में सिर्फ मुझे ही चुनने वाले हैं.”

गायक की नीली आँखों में व्यंग्य का भाव तैर गया. वह दिल खोलकर हँसा और चीख़ा:

 “इसमें कोई शक नहीं है कि तू बेहद ख़ूबसूरत मुसुमे है, मगर मिकादो के राजमहल में सिर्फ वही लड़कियाँ प्रवेश कर सकेंगी, जिनके पास बेहद शानदार ‘ओबी’ होंगे, मतलब, सबसे प्रसिद्ध मुसुमे.”
 “और, उनके बीच मैं भी रहूँगी, तू देख लेना!” हाना चिल्लाई.
मगर गायक ने केवल अविश्वास से सिर हिला दिया. उसे पहली नज़र में ही मुसुमे हाना पसन्द आ गई थी, मगर उसे ज़रा भी शक नहीं हुआ कि उसके सामने अत्यंत प्रसिद्ध घराने की लड़की खड़ी है, जिसके पास अद्भुत शक्ति भी है.
वह लगातार सिर हिलाता रहा और अपने लाल होठों से हल्के-हल्के मुस्कुराता रहा.
मगर हाना ने कहा:
 “मैं अभी पीली गुलदाऊदी का फूल तोड़कर तुझे दूँगी. जैसे ही मैं मिकादो के राजमहल में प्रवेश करूंगी, पीला गुलदाऊदी खून जैसे लाल रंग में बदल जाएगा. इस गुलदाऊदी की मदद से तुम मुझे पहचान सकोगे. और, अब बताओ, गायक, तुम्हारा नाम क्या है?”
  “मेरा नाम येरो है!” प्यार भरी नज़र से उसकी ओर देखते हुए उसने कहा.
 “अलबिदा, येरो!” हाना ने कहा. “मिकादो के राजमहल में मुलाक़ात होगी.”
 “अलबिदा, सुन्दरी मुसुमे!”

वह चली गई, मगर येरो उसी ओर देखता रहा, जहाँ वह छुप गई थी. उसे वह सूरज की किरण जैसी प्रतीत हुई, इसके बाद गाने में उसका दिल नहीं लगा.

********

दूज की शाम को मिकादो के राजमहल में सुप्रसिद्ध सुन्दरियों को एक बड़ा हुजूम इकट्ठा हो गया.

महल के पास खड़ी हाना देख रही थी कि कैसे फुर्तीले जेनेरिक्शी (जापानी कहार-गाड़ीवान, जो अमीर लोगों को ख़ास तरह की डोलियों में इधर-उधर ले जाते हैं, जो जापान में कुर्सी वाली गाड़ियों के बदले इस्तेमाल की जाती हैं.) सजी-धजी, मखमल की, पहियों वाली डोलियाँ ला रहे थे, जिनमें से पंछियों जैसी प्रसन्न, सजी-धजी सुन्दरियाँ बाहर निकल रही थीं.

सन्तरी उन्हें राजमहल के भीतर ले जाए. वहाँ जानेमाने दरबारी उनसे मिलते और उन्हें सिंहासन वाले कक्ष में ले जाते. इस कक्ष में ख़ुद मिकादो और उनका पुत्र सुन्दरियों का स्वागत कर रहे थे.

हाना भी राजमहल के अन्दर जाना चाहती थी, मगर कठोर संतरियों ने लड़की को अन्दर नहीं जाने दिया.

 मुसुमे हाना ने साधारण, पुराना ‘ओबी’ बांधा था, और साधारण ‘ओबी’ सिर्फ साधारण लड़कियाँ ही पहनती हैं.

तब हाना ने सावधानीपूर्वक अपने साधारण ‘ओबी’ को अपनी ऊँगली पर लपेटा, और तब आश्चर्यचकित संतरियों के सामने दर्जनों सुनहरे बालों वाले सेवकों, दसियों बिगुल बजाने वालों, तलवारधारियों और नौकरों की पूरी फ़ौज प्रकट हो गई.

वे सब हाना को घेरकर खड़े हो गए, जिसके बदन पर पलभर में बेहद शानदार, हीरे-मोती जड़ी अद्भुत पोषाक आ गई. कीमती मुकुट उसके मस्तक को सुशोभित कर रहा था. सिर्फ, साधारण, काला ‘ओबी’ ही पहले ही की तरह उसकी कमर पर विराजमान रहा, जो इस सारी सज-धज को बिगाड़े दे रहा था.
मगर जब शानदार सेवकों से घिरी एक प्रसिद्ध, अमीर सुन्दरी महल के अन्दर जाने की मांग कर रही थी, तो साधारण ‘ओबी’ की तरफ़ किसी का भी ध्यान नहीं गया.

संतरियों ने सिर झुकाकर हाना को भीतर जाने दिया, और एक मिनट बाद वह मिकादो और उनके पुत्र के सम्मुख खड़ी थी.

गायक येरो पहले से ही वहाँ मौजूद था, मगर हाना ने बेचारे ग़रीब गायक की ओर नज़र तक नहीं डाली. उसके प्रकट होने पर जो उत्तेजना भरी खुसफुसाहट हो रही थी, उसने उसे बिल्कुल बहरा कर दिया था. और, येरो भी इस शानदार राजकुमारी के रूप में उस भली मुसुमे को कैसे पहचानता, जिससे वह हाल ही में मिला था. अगर उसके सीने पर लगा पीला गुलदाऊदी का फूल अचानक लाल रंग में न बदल गया होता, तो वह कभी भी हाना को न पहचानता.

 “ये अद्भुत सुन्दरी कहाँ से आई है?” मिकादो के पुत्र ने पूछा. “ये, शायद, कोई बहुत मशहूर राजकुमारी है. मैं पत्नी के रूप में इसीको चुनना चाहता हूँ.”

मिकादो ने बेटे की ओर देखकर सहमति में सिर हिलाया.

ख़ुशी और जोश भरी किलकारियों के बीच राजकुमार हाना का हाथ पकड़कर अपने साथ ले गया और उसे अपनी बगल में बिठा दिया. मिकादो ने गायक को इशारा किया कि वह राजकुमार द्वारा चुनी गई युवती के सम्मान में अपना प्रशंसा-गीत गाए, और बेचारे येरो ने ग़म से आहें भरते हुए अपना प्रशंसा-गीत शुरू किया, क्योंकि वह हाना से प्यार कर बैठा था और उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता था. वह हाना की ख़ूबसूरती की, उसकी अलौकिक सज-धज की और शानदार नौकर-चाकरों की प्रशंसा कर रहा था; उसकी आँखों की सितारों से , उसकी नर्म त्वचा की - कमल की पंखुड़ी से, होठों की – लाल गुलदाऊदी से, उसके छोटे-छोटे पैरों की – गुलाबी सींपों से, और चमकते, काजल जैसे बालों की – पूरब की अंधेरी रातों से.

बस, येरो ने सिर्फ साधारण काले ‘ओबी’ की तारीफ़ नहीं की. येरो अपनी भावी महारानी को उसके ऊँचे ओहदे के अनुरूप भड़कीले, शानदार ‘ओबी’ में देखना चाहता था. और उसने इस काल्पनिक, परीकथाओं में वर्णित शानदार ‘ओबी’ की प्रशंसा में कोई कसर न छोड़ी, जिसे सुन्दरी की लचीली काया पर बंधे होना था.

गीत के बोल लहरों की तरह तैर रहे थे, और तारों की तरह झंकार कर रहे थे, और हवा की तरह सांस ले रहे थे, और मुसुमे के दिल की गहराई में जाकर पिघल रहे थे. इन बोलों के असर से मुसुमे का दिल ऐसे ‘ओबी’ को शिद्दत से पाने की चाह कर बैठा. उसने अनजाने में ही अपने कमरबन्द को छुआ. और अचानक.....ओह, भयानक!

शानदार नौकर-चाकर ग़ायब हो गए, बिगुलधारी गायब हो गए, बैण्ड-बाजा गायब हो गया, सुनहरे बालों वाले सेवक गायब हो गए और उसकी शानदार पोषाक और गहने भी ग़ायब हो गए. शानदार राजकुमारी के स्थान पर अब मिकादो और राजकुमार के सामने खड़ी थी साधारण कपड़े पहनी हुई मुसुमे हाना. मगर, अब पुराने, काले ‘ओबी’ के स्थान पर उसकी काया से लिपटा था सबसे शोख़ रंगों का शानदार ‘ओबी’.

इस अजीब परिवर्तन से मिकादो और राजकुमार बेहद परेशान हो गए.

 “तेरे नौकर-चाकर कहाँ हैं, राजकुमारी? तेरी शानदार पोषाक कहाँ है? तेरा मुकुट कहाँ है?” वे एक साथ चीख़े.

मुसुमे हाना ने जल्दी से ‘ओबी’ का सिरा पकड़ा जिससे एक ही हरकत से पुरानी शानो-शौकत को वापस ले आए, मगर, हाय! इस शानदार ‘ओबी’ के पास जादुई ताक़त नहीं थी, जो पहले वाले साधारण कमरबन्द में थी.

अब हाना को अपने पिता के शब्द याद आये, जो उन्होंने जादुई ‘ओबी’ देते हुए उससे कहे थे. उन शब्दों को याद करते ही हाना फूटफूटकर रोने लगी.
 “धोखेबाज़! झूठी! तूने हमें धोखा देने की कोशिश की! नीच साधारण लड़की, राजकुमारी का ढोंग रचाया!” गुस्से से आगबबूला होते हुए राजकुमार चिल्लाया. “दूर हट, घिनौनी झूठी!”
हाना और ज़ोर से रोने लगी. वह समझ गई कि राजकुमार को उससे नहीं, बल्कि उस अमीरी और दिखावे से प्यार था, जो उसे घेरे हुए था. दुष्ट मेहमानों के ज़हरीले ठहाकों के बीच, हाथों में अपना चेहरा छुपाए, तेज़-तेज़ क़दमों से वह दरवाज़े की ओर बढ़ी. अचानक उसे महसूस हुआ कि किसी ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया है.

सिर उठाया – उसके सामने येरो था.

 “ठहरो! यहाँ से हम साथ-साथ जाएँगे, मेरी अच्छी मुसुमे!” उसकी काली आँखों में प्यार से देखते हुए उसने कहा. “साथ में जाएँगे. मैं तुम्हें अपने ज़ारा में ले जाऊँगा, और तुम मेरी पत्नी बनोगी, क्योंकि तुम्हारी आँखों में मैं एक नेक रूह देख रहा हूँ, और तुम्हारी मुस्कुराहट में – एक नाज़ुक दिल! मुझे क़ीमती गहने नहीं चाहिए. जैसी तुम हो, वैसी ही मुझे पसन्द हो. ऐ सुन्दरी, क्या मेरी पत्नी बनना चाहोगी?

हाना ने ख़ामोशी से, कृतज्ञता भरी नज़रों से येरो की ओर देखा और उसके हाथ में अपना हाथ दे दिया. वह सोचना भी नहीं चाहती थी कि एक प्रसिद्ध समुराई की बेटी किसी भटकते हुए गायक की पत्नी कैसे बन सकती है. येरो की नेक आत्मा ने उसे जीत लिया था...

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ये कहानी मैंने बूढ़े, भूरे उकाब से सुनी थी, जो फुजियामा के निकट चट्टान पर बैठा था. उसने कहानी ख़त्म की और हौले से बोला:

 “कैसे अजीब होते हैं लोग! कितने बेवकूफ़ होते हैं लोग! उनसे ज़्यादा अक्लमन्द तो भूरा बूढ़ा उक़ाब है. मगर बूढ़ा भूरा उक़ाब उनके सुख की कामना करता है.

बूढ़ा भूरा उक़ाब उनके लिए शाश्वत सुख की कामना करता है!


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