बुधवार, 29 अप्रैल 2015

Lenochka


लेनच्का

लेखक: डैनियल चार्म्स
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

 “सुन, लेनच्का,” आण्टी ने कहा, “मैं ज़रा बाहर जा रही हूँ, और तू घर पे रहना, अच्छे से रहना: बिल्ली को पूँछ पकड़ कर न खींचना, मेज़ वाली घड़ी पर आटा मत पोत देना, लैम्प पकड़ कर झूलना मत और स्याही मत पी जाना. ठीक है?”
 “ठीक है,” लेनच्का ने हाथों में बड़ी-भारी कैंची लेते हुए कहा.
 “तो,” आण्टी बोली, “मैं दो घण्टे बाद आऊँगी और तेरे लिए पेपरमिंट की गोलियाँ लाऊँगी. पेपरमिंट की गोलियाँ चाहिए?”
 “चाहिए,” लेनच्का ने एक हाथ में कैंची पकड़ते हुए और दूसरे हाथ से मेज़ से टेबल-नैपकिन लेते हुए कहा.
“अच्छा, बाय-बाय, लेनच्का,” आण्टी ने कहा और वह चली गई.

“बाय-बाय! बाय-बाय!” लेनच्का टेबल-नैपकिन को देखते हुए गाने लगी.
आण्टी चली गई, मगर लेनच्का गाती ही रही.
 “बाय-बाय! बाय-बाय!” लेनच्का गा रही थी. “बाय-बाय, आण्टी! बाय-बाय, चौकोर नैपकिन!”

ये गाते-गाते लेनच्का ने कैंची चलाना शुरू कर दिया.
 “और अब, और अब,” लेनच्का गाने लगी, “नैपकिन बन गया गोल! और अब - आधा-गोल! और 
अब – बन गया छोटा! था एक नैपकिन, और अब – बन गए कई सारे छोटे-छोटे नैपकिन!”
लेनच्का ने मेज़पोश की ओर देखा.

 “मेज़पोश भी है एक!” लेनच्का गा उठी.
 “बनेंगे अब इसके दो! अब बन गए दो मेज़पोश! और अब – तीन! एक बड़ा और दो छोटे! मगर मेज़ तो है अभी तक एक!"

लेनच्का किचन में भागी और कुल्हाड़ी ले आई.
 “अब हम बनाएँगे एक मेज़ की दो मेज़ें!” लेनच्का गा रही थी और मेज़ पर कुल्हाड़ी मार रही थी.

मगर चाहे लेनच्का ने कितनी ही मेहनत क्यों न की हो, वह मेज़ से सिर्फ कुछ छिपटियाँ ही निकाल सकी.

तो, ऐसी थी लेनच्का...

                                               *****