सोमवार, 17 अगस्त 2015

Wonderful Idea

वंडरफुल आइडिया

                                                                             लेखक: विक्टर द्रागून्स्की 
                                                                                        अनुवाद: आ. चारुमति रामदास


क्लासेज़ ख़त्म होने के बाद मैंने और मीश्का ने अपना-अपना बैग उठाया और घर जाने लगे. सड़क गीली, कीचड़ से भरी, मगर ख़ुशनुमा थी. अभी-अभी भारी बारिश हुई थी, और डामर ऐसे चमक रहा था जैसे नया हो, हवा ताज़गी भरी और साफ़-सुथरी थी, पानी के डबरों में घरों की और आसमान की परछाई पड़ रही थी, और अगर कोई पहाड़ी की तरफ़ से उतरे, तो किनारे पे, फुटपाथ के पास, गरजते हुए पानी की बड़ी भारी धार बह रही थी, मानो पहाड़ी नदी हो. ख़ूबसूरत धार - भूरी, उसमें बवण्डर थे, भँवर थे, तेज़ लहरें थीं. सड़क के कोने पे, ज़मीन में एक जाली बनाई गई थी, और यहाँ पानी पूरी तरह से बेक़ाबू हो रहा था, वह नाच रहा था और फ़ेन उगल रहा था, कलकल कर रहा था, जैसे सर्कस का म्यूज़िक हो, या, फिर इस तरह बुदबुदा रहा था जैसे फ़्रायपैन में तला जा रहा हो. आह, कितना ख़ूबसूरत...

मीश्का ने जैसे ही ये सब देखा, फ़ौरन जेब से माचिस की डिबिया निकाल ली. मैंने पाल बनाने के लिए उसे डिबिया से दियासलाई निकाल कर दी, कागज़ का टुकड़ा दिया, हमने पाल बनाया और ये सब माचिस की डिबिया में घुसा दिया. फ़ौरन एक छोटा सा जहाज़ बन गया. हमने उसे पानी में छोड़ा, और वह फ़ौरन तूफ़ानी गति से चल पड़ा. वह इधर उधर हिचकोले खा रहा था, लहरें उसे थपेड़े लगा रही थीं, वह उछलता और आगे चल पड़ता, कभी कुछ देर ठहर जाता और कभी एकदम सौ नॉटिकल माईल्स की गति से भागने लगता. हमने फ़ौरन कमाण्ड्स देना शुरू कर दिया, क्योंकि अचानक ही हम कैप्टन और नेवीगेटर बन गए थे – मैं और मीश्का. जब जहाज़ उथली जगह पर ठहर जाता तो हम चिल्लाते:

 -पीछे चल – चुख़-चुख़-चुख़!                
 - पूरी तरह पीछे – चुख़-चुख़-चुख़!
 - एकदम पूरी तरह पीछे – चुख़-चुख़-चुख़-चाख़-चाख़-चाख़!
और मैं ऊँगली से जहाज़ को जिधर चाहे उधर मोड़ता, और मीश्का गरजता : 
 - स्टार्ट! ऊह – दब रहा है! ये ठीक है! पूरा आगे! चुख़-चुख़-चुख़!

इस तरह बदहवास चीख़ें निकालते हुए हम पागलों की तरह जहाज़ के पीछे-पीछे भाग रहे थे और भागते-भागते हम कोने तक पहुँचे, जहाँ जाली लगी थी, और अचानक हमारा जहाज़ पलट गया, भँवर में गोते लगाने लगा, और देखते-देखते नाक के बल उलट गया, टकराया और जाली में गिर गया.
मीश्का ने कहा:
 “अफ़सोस की बात है. डूब गया...”
और मैंने कहा:
 “हाँ, उफ़नता सैलाब उसे निगल गया. चल, नया जहाज़ छोडेंगे?”
मगर मीश्का ने सिर हिलाते हुए कहा:
 “संभव नहीं है. आज मुझे देर से घर पहुँचना मना है. आज पापा की ड्यूटी है.”
मैंने कहा:
 “किस बात की?”
 “उनकी बारी है,” मीश्का ने जवाब दिया.
 “नहीं,” मैंने कहा, “तू समझा नहीं. मैं पूछ रहा हूँ, कि तेरे पापा की किस काम की ड्यूटी है? किस काम की? सफ़ाई करने की? या मेज़ सजाने की?”
 “मेरे हिसाब से,” मीश्का ने कहा, “पापा की ड्यूटी मेरे साथ लगी है. उन्होंने और मम्मा ने इस तरह से अपनी-अपनी बारी लगाई है: एक दिन मम्मा, दूसरे दिन पापा. आज पापा की बारी है. कहीं मुझे खाना खिलाने के लिए ऑफ़िस से न आ गए हों, और ख़ुद जल्दी मचाते हैं, उन्हें वापस भी तो जाना होता है ना!”
”मीश्का, तू भी ना, इन्सान नहीं है!” तुझे ख़ुद अपने पापा को खाना खिलाना चाहिए, और यहाँ तो एक ‘बिज़ी’ आदमी काम से आता है ऐसे ठस दिमाग़ को खाना खिलाने! तू आठ साल का हो गया है! दूल्हे मियाँ!”
 “मम्मा को मुझ पर विश्वास ही नहीं होता. तू ऐसा मत सोच,” मीश्का ने कहा. “मैं घर में मदद तो करता हूँ, अभी पिछले ही हफ़्ते मैं उनके लिए ब्रेड लाया था...”
 “उनके लिए!” मैंने कहा. “उनके लिए! ज़रा देखिए, वो खाते हैं, और हमारा मीशेन्का सिर्फ हवा खाकर ही ज़िन्दा रहता है! ऐह, तू भी ना!”
मीश्का लाल हो गया और बोला:
 “चल, अपने-अपने घर जाएँगे!”

हमने अपनी चाल तेज़ कर दी. जब हम अपने-अपने घर की तरफ़ आने लगे तो मीश्का ने कहा:
 “हर रोज़ मैं अपना फ्लैट नहीं पहचान पाता. सभी बिल्डिंगें बिल्कुल एक जैसी हैं, बहुत उलझन होती है. क्या तू पहचान जाता है?”
 “नहीं, मैं भी नहीं पहचान पाता,” मैंने कहा, “अपनी बिल्डिंग का एंट्रेन्स ही नहीं पहचान पाता. ये हरा है, वो भी हरा है, सब हरे हैं...सब एक जैसे हैं, सब नये-नये हैं, और बालकनियाँ भी बिल्कुल एक जैसी हैं. सिर्फ मुसीबत.”
 “तो फिर तू क्या करता है?” मीश्का ने पूछा.
 “इंतज़ार करता हूँ, जब तक मम्मा बालकनी में नहीं आ जाती.”
 “वो तो कोई और मम्मा भी बालकनी में आ सकती है! तू दूसरी के यहाँ भी जा सकता है...”
 “क्या कह रहा है तू,” मैंने कहा, “मैं तो हज़ारों अनजान मम्माओं में से अपनी मम्मा को पहचान लूँगा.”
 “कैसे” मीश्का ने पूछा.
 “चेहरे से,” मैंने जवाब दिया.
 “पिछली पेरेन्ट्स मीटिंग में सारे पेरेंट्स आए थे, और कोस्तिकोव की दादी मेरे पापा के साथ जा रही थी,” मीश्का ने कहा, “तो, कोस्तिकोव की दादी ने कहा कि क्लास में तेरी मम्मा सबसे ज़्यादा ख़ूबसूरत है.”
 “बकवास,” मैंने कहा, “तेरी मम्मा भी ख़ूबसूरत है!”
 “बेशक,” मीश्का ने कहा, “मगर कोस्तिकोव की दादी ने कहा कि तेरी मम्मा सबसे ज़्यादा ख़ूबसूरत है.”

 अब हम बिल्कुल अपनी बिल्डिंग्स तक पहुँच गए. मीश्का परेशानी से इधर-उधर देखने लगा और घबराने लगा, मगर तभी कोई एक दादी-माँ हमारे पास आई और बोली:
 “ओह, ये तुम हो, मीशेन्का? क्या हुआ? मालूम नहीं है कि कहाँ रहते हो, हाँ? हमेशा की प्रॉब्लेम. ठीक है, चल, मैं तेरी पड़ोसन हूँ, घर तक ले जाऊँगी. उसने मीश्का का हाथ पकड़ा, और मुझसे बोली:
 “हम एक ही फ्लोर पे रहते हैं.”

और वो लोग चले गए. मीश्का ख़ुशी-ख़ुशी उसके साथ जा रहा था. मगर मैं अकेला रह गया बेनाम की इन एक जैसी गलियों में, बिना नंबरों वाली बिल्डिंग्स के बीच में और बिल्कुल भी सोच नहीं पा रहा था कि जाऊँ तो किधर जाऊँ, मगर मैंने तय कर लिया कि हिम्मत नहीं हारूँगा और मैं पहली ही बिल्डिंग की सीढ़ियाँ चढ़कर चौथी मंज़िल पर पहुँच गया. ये बिल्डिंगें तो कुल अठारह ही हैं, तो, अगर मैं सभी बिल्डिंगों की चौथी मंज़िल पर गया, तो घण्टे-दो घण्टे में अपने घर ज़रूर पहुँच जाऊँगा, ये पक्की बात है.

हमारी सभी बिल्डिंग्स में, हर दरवाज़े पर, बाईं ओर लाल बटन वाली घंटी लगी है. तो, मैं चौथी मंज़िल पर पहुँचा और मैंने घण्टी का बटन दबाया. दरवाज़ा खुला, उसमें से लम्बी, मुड़ी हुई नाक बाहर निकली और दरवाज़े की दरार से चीख़ी: “रद्दी पेपर नहीं हैं! कितनी बार बताऊँ!”

मैंने कहा, “सॉरी” और नीचे उतरा. हो गई गलती, क्या कर सकते हैं. फिर मैं अगली बिल्डिंग में घुसा. मैं घण्टी बजा भी नहीं पाया था कि दरवाज़े के पीछे से कोई कुत्ता इतनी भयानक, भर्राई हुई आवाज़ में भौंका कि मैं उस शिकारी कुत्ते के झपटने का इंतज़ार किए बगैर फ़ौरन भाग कर नीचे आ गया. अगली बिल्डिंग में, चौथी मंज़िल पर, एक लम्बी लड़की ने दरवाज़ा खोला और मुझे देखकर ख़ुशी से तालियाँ बजाते हुए चिल्लाने लगी:

 “वोलोद्या! पापा! मारिया सेम्योनोव्ना! साशा! सब लोग यहाँ आओ! छठवाँ!” कमरों से लोगों का एक झुण्ड बाहर आ गया, वो सब मेरी तरफ़ देख रहे थे, और ठहाके लगा रहे थे, तालियाँ बजा रहे थे, और गा रहे थे:
 “छठवाँ! ओय-ओय! छठवाँ! छठवाँ!...”
मैं आँखें फ़ाड़कर उनकी ओर देख रहा था. क्या पागल हैं? मैं बुरा मान गया:
यहाँ तो भूख लगी है, और पैर दर्द कर रहे हैं, और घर के बदले अनजान लोगों के बीच पहुँच गया, और वो मुझ पर हंस रहे हैं...
 मगर वह लड़की, ज़ाहिर था कि, समझ गई थी, कि मुझे अच्छा नहीं लग रहा है.
 “तुम्हारा नाम क्या है?” उसने पूछा और मेरे सामने पालथी मारकर बैठ गई, वह अपनी नीली-नीली आँखों से मेरी आँखों में देख रही थी.
 “डेनिस,” मैंने जवाब दिया.
उसने कहा: “तू बुरा न मान, डेनिस! सिर्फ, आज तू छठवाँ बच्चा है जो हमारे यहाँ आ गया. वो सब भी भटक गए थे. ये ले, तेरे लिए, एपल, खा ले, तेरी ताक़त वापस आ जाएगी.”
मैं एपल नहीं ले रहा था.
 “ले ले, प्लीज़,” उसने कहा, “मेरी ख़ातिर. मुझ पर मेहरबानी कर.”
 “सुन,” लड़की ने कहा, “मुझे ऐसा लगता है कि मैंने तुझे हमारे सामने वाली बिल्डिंग से निकलते हुए देखा है. तू एक बेहद ख़ूबसूरत औरत के साथ निकला था. वो तेरी मम्मा है?”
 “बेशक,” मैंने कहा, “मेरी मम्मा क्लास में सबसे ज़्यादा ख़ूबसूरत है.”
अब सब लोग फिर से हँस पड़े. बिना किसी वजह के. मगर लड़की ने कहा: “चल, तू भाग. अगर चाहे, तो हमारे यहाँ आया करना.”

मैंने ‘थैंक्यू’ कहा और उस लम्बी लड़की ने जिधर इशारा किया था, उस तरफ़ भागा. मैं घण्टी का बटन दबा भी नहीं पाया था कि दरवाज़ा खुल गया, और देहलीज़ पर खड़ी थी – मेरी मम्मा! उसने कहा:
 “हमेशा तेरा इंतज़ार करना पड़ता है!”
मैंने कहा: “भयानक स्टोरी है! मेरे पैर दुख रहे हैं, क्योंकि मैं अपनी बिल्डिंग नहीं ढूँढ़ पा रहा था. मुझे मालूम ही नहीं है कि हमारी बिल्डिंग कौन सी है, सारी बिल्डिंगें बिल्कुल एक जैसी जो हैं. मीश्का के साथ भी ऐसा ही हुआ! कोई भी अपनी बिल्डिंग नहीं ढूँढ पाता है! मैं आज का छठवाँ बच्चा था...और, मुझे भूख लगी है!”

और मैंने मम्मा को रद्दी पेपर वाली टेढ़ी नाक के बारे में, गुर्राते हुए खूँखार कुत्ते के बारे में और लम्बी लड़की और एपल के बारे में बताया.
 “तेरे लिए कोई निशान बनाना चाहिए,” पापा ने कहा, “जिससे की तू अपनी बिल्डिंग पहचान ले.
मैं बहुत ख़ुश हो गया:
 “पापा! मैंने सोच लिया! प्लीज़, हमारी बिल्डिंग पे मम्मा की तस्वीर लगा दो! मुझे दूर से ही पता चल जाएगा कि मैं कहाँ रहता हूँ!”
मम्मा हँसने लगी और बोली:
 “चल, बेकार की बात न सोच!”
मगर  पापा ने कहा:
 “आख़िर क्यों नहीं? एकदम वण्डरफुल आइडिया है!”


*****