सोमवार, 15 जुलाई 2019

Petrushka


पित्रूश्का
बेलारूसी लोककथा
अनुवाद : आ. चारुमति रामदास

एक ज़मीन्दार था. उसके पास बहुत बड़ी जागीर थी, और दौलत तो इतनी जिसकी कोई गिनती ही नहीं थी. मगर अपनी कीमती चीज़ों में से सबसे ज़्यादा प्यार उसे अपने शिकारी कुत्ते से था. ये कुत्ता बड़ा चालाक था – बिल्कुल, किसी आदमी जैसा. ज़मीन्दार उसे जो भी हुक्म देता वह पूरा करता. ज़मीन्दार ने उसका नाम भी यूँ ही कुछ नहीं रखा था, बल्कि उसे दिया था इन्सान का नाम : पित्रूश्का.
ये बताना ज़रूरी है, कि ये ज़मीन्दार बड़ा दुष्ट- अति दुष्ट था. उसके यहाँ कोई भी मज़दूर एक हफ़्ते से ज़्यादा नहीं टिकता था.
नतीजा ये हुआ कि ज़मीन्दार एकदम बिना सेवकों के रह गया : सब भाग गए. उसने ख़ुद ही काम करने की कोशिश की. मगर कहाँ से : उसे तो कुछ करना आता ही नहीं था, आलसी भी बहुत था. ज़ाहिर है, किये-कराये पर जीने की आदत जो पड़ गई थी. तब ज़मीन्दार ने घोड़ा जोता और मज़दूरों की तलाश में निकल पड़ा. चलता रहा, चलता रहा, मगर कोई भी उसके पास आने को तैयार न था : सब जानते थे, कि ये ज़मीन्दार बहुत दुष्ट है!
ज़मीन्दार गुस्से से भरा घर लौट रहा था. देखता क्या है – सामने से एक छोकरा आ रहा है और गाना गा रहा है. मगर था तो चीथड़ों में, और नंग़े पाँव.
“अच्छा”, ज़मीन्दार ने सोचा, “पूछता हूँ, हो सकता है, कम से कम, ये फ़टेहाल छोकरा मेरे पास काम करने के लिए आ जाए”.
उसने घोड़े को रोका.
“ऐ, नंगेपैर छोकरे,” चिल्लाया, “मेरे पास काम करने आयेगा?” छोकरा रुक गया.
“क्यों नहीं करूँगा”, छोकरा बोला, “अगर अच्छा ज़मीन्दार मिल जाए तो. चल, रख ले मुझे.”
ज़मीन्दार मुस्कुराया और सोचने लगा : “ओह, लगता है, ये आ जायेगा, क्योंकि मुझे अच्छा आदमी समझ रहा है”.
“ठीक है, तो गाड़ी में बैठ जा,” उसने कहा. यान्का (उस छोकरे का यही नाम था) ज़मीन्दार की गाड़ी में बैठ गया और वे जागीर की ओर चले.
घर पहूँचे, ज़मीन्दार ने यान्का से कहा :
“दूसरा घोड़ा ले, जंगल में जा और लकड़ियाँ ले आ. यान्का सकुचाया.
“हुज़ूर, पहले खाना खा लूँ...मुझे, देख रहे हैं न, कि सफ़र से भूख लग आई है.”
“मैंने तुझे काम करने के लिए रखा है, या खाने के लिए?” ज़मीन्दार चीख़ा. “कैसा चालाक है!” यान्का ने सिर खुजाया और बोला:
“अरे, मुझे क्या पता कि ज़मीन्दार का जंगल कहाँ है और वहाँ पर कौन-से पेड़ काटना हैं.”
“अच्छा,” ज़मीन्दार ने जवाब दिया, “मैं काम में फँसा हूँ, और तुझे समझा नहीं सकता. ये काम मेरा कुत्ता पित्रूश्का कर देगा. मैं उसे बुलाता हूँ, और वो तुझे, जहाँ चाहे, ले जाएगा.
यान्का ने घोड़ा जोता और कुत्ते के पीछे-पीछे चल पड़ा.
कुत्ता ख़ुश था,कि उसे आज़ादी मिली थी, और वह जहाँ मन चाहा उछलते हुए, कूदते हुए भागा. और यान्का था उसके पीछे-पीछे.
कुत्ता पानी के डबरे में – तो मज़दूर भी गाड़ी में उसके पीछे-पीछे, कुत्ता झाड़ियों में – और यान्का भी वहीं जाता.
इस तरह वे जंगल में पहुँच गए.
यान्का ने सिर्फ एक ही पेड़ काटा था, कि कुत्ता मुड़कर घर की ओर भागा. यान्का भी आपना काम छोड़कर गाड़ी में बैठ गया और कुत्ते के पीछे चला. जहाँ कुत्ता – वहीं यान्का.
ज़मीन्दार ने देखा कि मज़दूर बिना लकड़ियों के लौटा है, वह उस पर झपटा और लगा मारने. मारता रहा-मारता रहा, मार-मार कर अधमरा कर दिया.
सबेरे ज़मीन्दार ने यान्का को उठाया और हुक्म दिया :
“चल, आलसी, एक भेड़ काट दे : आज मेरे यहाँ मेहमान आ रहे हैं.”
“कौन-सी भेड़ को काटूँ, मालिक?” यान्का ने पूछा.
ज़मीन्दार ने हाथ हिलाया:
“तुझे बताने का मुझे कोई शौक नहीं है. पित्रूश्का को आवाज़ दे – वो जिसके पास भागेगा, उसी को काट दे.”
यान्का ने एक बड़ा चाकू उठाया, कुत्ते को पुकारा और मवेशीखाने चला. ज़मीन्दार का मवेशीखाना बहुत बड़ा था – उसमें बहुत सारी भेड़ें थीं. कुत्ता मवेशीख़ाने में भागने लगा : कभी एक भेड़ के पास जाता, तो कभी दूसरी के पास. और यान्का उसके पीछे – उस भेड़ का गला पकड़ता, जिसके पास पित्रूश्का भागता, और उसके गले पर चाकू का वार कर देता. इस तरह से उसने सभी भेड़ों को काट दिया.
ज़मीन्दार ये देखने के लिए आया, कि यान्का ने मेहमानों के लिए अच्छी भेड़ काटी है या नहीं. जैसे ही उसने मवेशीखाना देखा, अपना सिर पकड़ लिया : उसकी सारी भेड़ें कट चुकी थीं!...ज़मीन्दार फिर से यान्का को मारने लगा. मारता रहा – मारता रहा, मार-मार कर अधमरा कर दिया.
यान्का मुश्किल से होश में आया ही था, कि ज़मीन्दार ने उससे कहा:
“बेवकूफ़, अब भेड़ों को पका! देख, बहुत लजीज़ होना चाहिए : काली मिर्च छिड़क और पित्रूश्का (पित्रूश्का का मतलब होता है – कोथमीर – अनु.) से सजा दे.
यान्का सोचता रहा-सोचता रहा, ये पित्रूश्का क्या बला है, और फिर उसे याद आया कि ये तो ज़मीन्दार के कुत्ते का नाम है! उसने कुत्ते को काट दिया, उसकी खाल निकाल दी, और माँस को बारीक-बारीक काट लिया और – हाँडी में डाल दिया, जैसा ज़मीन्दार ने कहा था.
ज़मीन्दार के यहाँ मेहमान आये. यान्का उन्हें भेड़ का पकवान खिलाने लगा. ज़मीन्दार कुत्ते का माँस खाने लगे, आह, कानों में झनझनाहट होने लगी. इतना ज़्यादा खा लिया कि साँस लेने की भी ताकत न रही.
“और अब, प्यारे मेहमानों,” ज़मीन्दार ने कहा, “मैं आपको अपना होशियार कुत्ता दिखाऊँगा. ऐ, यान्का, पित्रूश्का को बुला.”
“कौन से पित्रूस्ग्का को, मालिक?” यान्का ने अचरज से पूछा. “तूने तो उसे पीस कर भेड़ का पकवान सजाने को कहा था.”
इतना सुनते ही ज़मीन्दार गुस्से से हरा हो गया. और उसके सामने ऐसा धुँधलापन छा गया, कि सारी आँतें बाहर निकलने को हो गईं. और, ज़मीन्दार की रूह बाहर निकल गई.
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सोमवार, 8 जुलाई 2019

Merchant Of Wisdom



अक्ल का सौदागर
      कज़ाक लोककथा
अनुवाद : आ. चारुमति रामदास

पुराने ज़माने में एक बादशाह रहता था. हर रोज़ वह खिड़की के पास बैठकर देखता कि उसकी प्रजा क्या कर रही है. और एक बार उसने देखा, कि लोग एक जगह पर झुण्ड बनाकर खड़े हैं, और थोड़ी देर बाद वे बिखर गए. त्सार ने अपने वज़ीर से पूछा:
“ये, उस जगह पर इतने सारे लोग क्यों जमा हुए हैं?”
वज़ीर ने जवाब दिया:
“वहाँ हर रोज़ एक आदमी आता है और अकल बेचता है, और ये जमा हुए लोग उससे अकल ख़रीदते हैं.”
बादशाह सोच में पड़ गया. “अगर ख़ुदा ने अकल न दी हो”, उसने सोचा, “तो उसे ख़रीदोगे कैसे?” और वह अकल के सौदागर के पास आया और बोला :
क्या तुम्हारे पास मेरे लिए मुनासिब अकल है?”
“आप कौन हैं?” सौदागर ने पूछा.
“मैं बादशाह हूँ!” पूछने वाले ने जवाब दिया. तब सौदागर बोला :
“अगर आप बादशाह हैं, तो मेरे पास आपके लिए एक सीख देने वाला शब्द है, मगर पहले आपको मुझे एक हज़ार मुहरें देना होंगी.”
बादशाह ने उसे एक हज़ार मुहरें दे दीं. तब सौदागर बोला :
“कोई भी काम सोच-समझकर करो; अगर सोचोगे नहीं – तो पछताओगे.”
बादशाह ने इन शब्दों को अपने महल की सारी दीवारों पर लिखवाने का हुक्म दिया, ताकि हर कोई उन्हें पढ़ सके.
एक बार बादशाह ने नाई को बुलवाया. जब नाई बादशाह के पास जा रहा था, तो उसे रास्ते में वज़ीर मिला और पूछने लगा:
“तू किस उस्तरे से बादशाह की हजामत बनाता है?”
नाई ने उसे लकड़ी की मूठ वाला अपना उस्तरा दिखाया.
“ये, इससे,” उसने जवाब दिया.
“बादशाह के बालों के लिए ऐसा उस्तरा होना चाहिए,” वज़ीर ने कहा और नाई को सोने का उस्तरा दिया.
नाई ने अपना वाला उस्तरा कमरबंद में खोंस लिया और हाथ में सोने का उस्तरा पकड़ लिया. मगर जब वह बादशाह के पास आया, तो उसका ध्यान दीवार पर लिखी इबारत की ओर गया. नाई पढ़ा-लिखा था. उसने पढ़ा : “कोई भी काम सोच-समझकर करो; अगर सोचोगे नहीं, - तो पछताओगे...”
नाई ने अपना उस्तरा निकाला और बादशाह की हजामत बनाने लगा, और सोने का उस्तरा उसके सामने मेज़ पर रख दिया. बादशाह ने गुस्से से पूछा:
“सुन, नाई! शायद, तू सोच रहा है, कि सोने का उस्तरा मेरे लिए ठीक नहीं है? सोने के उस्तरे को मेरी आँखों के सामने रखा, और लकड़ी की मूठ वाले से मेरी हजामत करने लगा?”
“ओ हुज़ूर! आप ही ने तो लिखा है : “कोई भी काम सोच-समझकर करो; अगर सोचोगे नहीं – तो पछताओगे...” मैंने भी अपना ही उस्तरा इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया, क्योंकि ये सोने वाला तो मुझे वज़ीर ने दिया है, और मुझे उसके रहस्य के बारे में पता नहीं है.”
बादशाह ने वज़ीर को बुलवाया और बोला:
“फ़ौरन इस उस्तरे से अपनी हजामत बनवाओ!”
नाई ने सोने का उस्तरा उठाया और वज़ीर के सिर के बाल काटने लगा. जब तक वह बाल काटता रहा, वज़ीर की रूह ख़ुदा को प्यारी हो चुकी थी.         
पता चला, कि ये वज़ीर बादशाह से बेहद नफ़रत करता था. उसने सोने के उस्तरे को ज़हर में डुबोया और उसे नाई को दे दिया. अगर नाई ने दीवार पर लिखी सीख न पढ़ी होती, तो उसने ज़हर में लिपटे उस्तरे से बादशाह की हजामत कर दी होती.
बादशाह ने नाई की बुद्धिमानी और सूझबूझ के लिए उसका शुक्रिया अदा किया, उसे इनाम दिया और घर भेज दिया.
जब बादशाह अकल के सौदागर को ढूँढ़ने के लिए गया, तो वह वहाँ था ही नहीं: वह कहीं गायब हो गया था.
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