बूढ़ा हिमराज और जवान हिम कुमार
लिथुआनिया की परी-कथा
अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
एक बार की बात है कि एक बूढ़ा ‘हिम’राज (यहाँ ‘हिम’ का अर्थ बर्फीली हवा से है – अनु.) रहता था और उसका एक बेटा था – नौजवान ‘हिम’कुमार. और इतना
शेखीबाज़ था ये बेटा, कि बता नहीं सकते! अगर उसकी बातें सुनो, तो ऐसा लगता कि
उससे ज़्यादा होशियार और शक्तिशाली दुनिया में कोई नहीं है. एक बार इस बेटे ने, नौजवान ‘हिम’कुमार ने सोचा :
“मेरा बाप बूढ़ा
हो गया है! अपना काम अच्छी तरह नहीं कर सकता. मैं तो जवान भी हूँ और शक्तिशाली भी
हूँ – लोगों को उससे ज़्यादा ठण्ड से जमा सकता हूँ! मुझसे कोई बच नहीं सकता, मेरा मुकाबला कोई
नहीं कर सकता : सबको पछाड़ दूँगा!”
चल पड़ा ‘हिम’कुमार, ढूँढ़ने लगा कि
किसको ठण्ड से जमाए. उड़ चला रास्ते पर और देखा – एक गाड़ी में ज़मीन्दार जा रहा है.
घोड़ा तंदुरुस्त, खाया-पिया है – ज़मीन्दार ख़ुद भी मोटा है, उसका ओवरकोट ‘फ़र’ का है, खूब गर्म है, पैर कालीन में
दुबके हैं.
‘हिम’कुमार ने
ज़मीन्दार को अच्छी तरह से देखा, हँस पड़ा.
“”ऐख,- उसने सोचा, - “तू गरम कपड़ों में कितना ही क्यों न दुबके, फिर भी मुझसे
नहीं बच सकता! मेरा बूढ़ा बाप, हो सकता है, इतना अन्दर नहीं घुस पाता, मगर ठहर, मैं इत्ता तेरे भीतर घुसूँगा कि देखता रह जाएगा! ना ही
ओवरकोट, ना ही कालीन तुझे बचा पायेंगे!”
‘हिम’कुमार ज़मीन्दार
की ओर लपका और लगा उसे पकड़ने: कालीन के नीचे घुसा, और दस्तानों में घुसा, और कॉलर में घुसा, और नाक पर वार करने लगा.
ज़मीन्दार ने अपने नौकर को हुक्म दिया कि घोड़े को ज़ोर से भगाए.
“वर्ना तो”, वह चिल्लाया, “मैं जम जाऊँगा!”
और ‘हिम’कुमार और ज़्यादा ताकत से उस पर हमला करने लगा, नाक पर और ज़ोर से वार करने लगा, हाथों और पैरों
की उँगलियों को बर्फ बना दिया, साँस लेना मुश्किल कर दिया.
ज़मीन्दार – इधर से उधर, उधर से इधर – और सिकुड़ने लगा, गठरी बन गया, अपनी ही जगह पर
गोल-गोल घूमने लगा.
“भगा,” वह चिल्लाया, “और जल्दी भगा!”
इसके बाद तो उसका चिल्लाना भी बन्द हो गया : उसकी आवाज़ ही खो गई.
ज़मीन्दार अपनी हवेली में आया, उसे अधमरी हालत में गाड़ी से उतारा गया.
भागा ‘हिम’कुमार बाप के पास, बूढ़े ‘हिम’राज के पास. उसके सामने शेखी मारने लगा:
“देखा, मेरा कमाल! देखा मेरा कमाल! तुम कहाँ मेरा मुकाबला कर
सकते हो, बाप! देखा, कैसे मैंने ज़मीन्दार को बर्फ बना दिया! देखा, कैसे गर्म ओवरकोट
से मैं भीतर घुस गया! तुम तो ऐसे ओवरकोट से नहीं घुस सकते! तुम ऐसे ज़मीन्दार को
किसी हालत में बर्फ नहीं बना सकते!”
बूढ़ा ‘हिम’राज हँस पड़ा और बोला:
“शेखीबाज़ है तू! अपनी ताकत को पहले आज़मा लेता, फिर शेखी मारता. ये सही है : तूने मोटे ज़मीन्दार को
ठण्ड से जमा दिया, उसके गर्म ओवरकोट के भीतर घुस गया. क्या ये कोई बड़ा
काम है? ये देखो – ये दुबला-पतला मज़दूर फटे-पुराने कोट में जा रहा है, मरियल घोड़े पर.
देख रहे हो?”
“देख रहा हूँ.”
“ये आदमी लकड़ियाँ काटने के लिए जंगल में जा रहा है. तुम उसे ठण्ड से जमाने
की कोशिश करो. अगर जमा दिया – तो, यकीन कर लूँगा
कि तुम वाकई में ताकतवर हो!”
“ये है नमूना!” जवान ‘हिम’कुमार ने जवाब दिया. “ अभ्भी एक पल में मैं उसे जमा
दूँगा!”
‘हिम’कुमार चिंघाड़ा, मज़दूर को पकड़ने
लपका. पकड़ लिया, उस पर टूट पड़ा और लगा दबाने : कभी एक ओर से हमला करता, कभी दूसरी ओर से, मगर मज़दूर चलता
ही रहा. ‘हिम’कुमार ने उसके पैर पकड़ने की कोशिश की. मगर मज़दूर अपनी स्लेज से उछला और घोड़े
की बगल में दौड़ने लगा.
“अच्छा,” ‘हिम’कुमार ने सोचा, “ठहर जा! मैं जंगल में तुझे जमा दूँगा!”
मज़दूर जंगल में आया, उसने कुल्हाड़ी निकाली और लगा पेड़ काटने – चारों ओर
छिपटियाँ उड़ने लगीं!
मगर जवान ‘हिम’कुमार उसे चैन ही नहीं लेने दे रहा था : हाथों को, पैरों को पकड़ता
है, और कॉलर में से भीतर घुसता है...
‘हिम’कुमार जितनी
ज़्यादा कोशिश करता, मज़दूर उतनी ही ज़ोर से कुल्हाड़ी चलाता, उतनी ही ताकत से
लकड़ियाँ काटता.
वह इतना गर्म हो गया, कि उसने अपने दस्ताने भी उतार दिए.
‘हिम’कुमार बड़ी देर तक
मज़दूर पर हमला करता रहा, आख़िरकार वह थक गया.
“कोई बात नहीं,” उसने सोचा, “मैं फिर भी तुझे हरा ही दूँगा! जब तू घर पहुँच जाएगा
तो मैं तेरी हड्डियों तक घुस जाऊँगा!”
स्लेज के पास भागा, दस्ताने देखे और उनके भीतर घुस गया. बैठा है और
मुस्कुरा रहा है :
“देखूँगा, कि ये मज़दूर अपने दस्ताने कैसे पहनता है : वे तो इतने
सख़्त हो गये हैं, कि उनके भीतर उँगलियाँ घुसाना असंभव है!”
‘हिम’कुमार मज़दूर के
दस्तानों के भीतर बैठा है, मगर मज़दूर लकड़ियाँ काटे ही जा रहा है.
तब तक काटता रहा, जब तक कि उसकी गाड़ी लकड़ियों से ऊपर तक भर न गई.
“अब,” बोला, “घर जा सकता हूँ!”
मज़दूर ने अपने दस्ताने उठाए, उन्हें पहनने लगा, मगर वे तो जैसे लोहे के हो गए थे.
“अब क्या करेगा?” जवान ‘हिम’कुमार अपने आप ही मुस्कुरा रहा था.
मगर जब मज़दूर ने देखा, कि दस्तानों को पहनना नामुमकिन है, तो उसने कुल्हाड़ी
उठाई और उन पर वार करने लगा.
मज़दूर दस्तानों पर वार किए जा रहा है, और ‘हिम’कुमार भीतर बैठा “आह-ओह!’ किए जा रहा है.
और मज़दूर ने इतनी ताकत से ‘हिम’कुमार की कमर पे वार किए कि वह मुश्किल से जान बचाकर
भागा.
मज़दूर जा रहा है, लकड़ियाँ ले जा रहा है, अपने घोड़े पर चिल्ला रहा है. और जवान ‘हिम’कुमार अपने बाप
के पास कराहता हुआ आया. बूढ़े ‘हिम’राज ने उसे देखा और हँसने लगा :
“क्या हुआ, बेटा, इतनी मुश्किल से क्यों चल रहे हो?”
“जब तक मज़दूर को जमाता रहा, ख़ुद ही मर गया.”
“और तू, बेटा, जवान ‘हिम’कुमार, इतने दर्द से क्यों कराह रहा है?”
“मज़दूर ने बड़ी बेदर्दी से कमर तोड़ दी!”
“ये, बेटा, जवान ‘हिम’कुमार, तेरे लिए सबक है: निठल्ले-ज़मीन्दारों से मुकाबला करना
कोई होशियारी का काम नहीं है, मगर मज़दूर को कभी भी, कोई भी हरा नहीं सकता! ये बात याद रखो!”
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