ज़ीरो-क्लास
लेखक: यूरी कवाल
अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
हमारे गाँव में एक नई टीचर आई, उसका नाम था मारिया सिम्योनव्ना.
और हमारे पुराने टीचर – अलेक्सेइ स्तिपानविच भी थे ही.
नई टीचर ने पुराने टीचर से दोस्ती कर ली. वे गाँव साथ-साथ घूमते, सब का हालचाल पूछते.
एक हफ़्ते तक उनकी दोस्ती रही, फिर उनमें झगड़ा हो गया. सारे स्टूडेन्ट्स अलेक्सेइ
स्तिपानविच की ओर भागते, और मारिया सिम्योनव्ना एक तरफ़ खड़ी रहती. उसके पास कोई
भी नहीं जाता – बड़ा अपमानजनक लगता.
अलेक्सेइ स्तिपानविच कहता:
“मारिया सिम्योनव्ना के पास जाओ.”
मगर स्टूडेन्ट्स नहीं जाते, पुराने टीचर से चिपक जाते. और वाकई में, इतना चिपकते, उसके दोनों ओर कस
के चिपट जाते.
“हमें उससे डर लगता है,” माखव भाई कहते. “वह करौंदे भी धोती है.”
मारिया सिम्योनव्ना कहती:
“हर तरह के फलों को धो लेना चाहिए, जिससे इन्फ़ेक्शन न हो.”
ये सुनते ही स्टूडेन्ट्स अलेक्सेइ स्तिपानविच से और भी लिपट जाते.
अलेक्सेइ स्तिपानविच कहता:
“क्या कर सकते हैं, मारिया सिम्योनव्ना, मुझे ही बच्चों
को आगे पढ़ाना होगा, और आप “ज़ीरो-क्लास” लीजिए.”
“ऐसा कैसे?”
“ऐसा ऐसे. हमारा न्यूरा पहली कक्षा में है, फ़ेद्यूशा – दूसरी में, माखव भाई – तीसरी में, और चौथी कक्षा में, जैसा कि सबको मालूम है, कोई भी नहीं है. मगर “ज़ीरो-क्लास” में स्टूडन्ट्स
आयेंगे.”
“क्या बहुत सारे आयेंगे?” मारिया सिम्योनव्ना ख़ुश हो गई.
“ज़्यादा आयेंगे या कम आयेंगे, मगर एक – वो रहा, बाहर है, पोखर में खड़ा है.”
और सही में, गाँव के बीचोंबीच, रास्ते पर पोखर में एक व्यक्ति खड़ा था. ये वानेच्का
कलाचोव था. वह रबड़ के जूतों से मिट्टी गूँध रहा था, पानी के चारों ओर बाँध बना रहा था. वह नहीं चाहता था, कि पोखर का पानी
बह जाए.
“हाँ, वह बिल्कुल छोटा है,” मारिया सिम्योनव्ना ने कहा, “अभी तो वह मिट्टी गूँध रहा है.”
“गूँधने दो,” अलेक्सेइ स्तिपानविच ने जवाब दिया. “और, आप “ज़ीरो-क्लास”
में कैसे स्टूडेन्ट्स चाहती हैं? क्या ट्रैक्टर चलाने वाले चाहिए? वैसे, वे भी मिट्टी
गूँधते हैं.”
मारिया सिम्योनव्ना वानेच्का के पास आकर बोली:
“आ जा, वान्या, स्कूल में, “ज़ीरो-क्लास” में.”
“आज मेरे पास टाइम नहीं है,” वानेच्का ने कहा. “मुँडेर बनानी है.”
“कल आ जा, सबह – जल्दी.”
“कह नहीं सकता,” वान्या ने कहा, “कहीं सुबह मुँडेर टूट न जाए.”
“नहीं टूटेगी,” अलेक्सेइ स्तिपानविच ने अपने जूते से मुँडेर को ठीक
करते हुए कहा, “और तू “ज़ीरो-क्लास” में थोड़ा-सा पढ़ लेना, और अगले साल मैं
तुझे पहली क्लास में ले लूँगा. मारिया सिम्योनव्ना तुझे अक्षर दिखाएगी.”
“कौनसे अक्षर – कैपिटल या प्रिन्टेड?”
“प्रिन्टेड.”
“ये अच्छी बात है. मुझे
प्रिन्टेड अक्षर अच्छे लगते हैं, क्योंकि वे ज़्यादा समझ में आते हैं.”
दूसरे दिन मारिया सिम्योनव्ना ज़रा जल्दी ही स्कूल में आ गई, उसने मेज़ पर
प्रिन्टेड अक्षरों के मॉडेल्स रखे, पेन्सिलें रखीं, कागज़ रखा. इंतज़ार करने लगी, मगर वानेच्का आया ही नहीं. तब उसे महसूस हुआ कि मुँडेर
टूट गई है, और वह चल पड़ी. वानेच्का पोखर में खड़ा था और जूते से मुँडेर बना रहा था.
“गाड़ी गुज़री थी,” उसने बताया. “दुरुस्त करना ही पड़ेगा.”
“ठीक है,” मारिया सिम्योनव्ना ने कहा, “चल, दोनों मिलकर मुँडेर बनाएँगे, और साथ ही अक्षर
भी सीखेंगे.”
और उसने अपने जूते से मिट्टी पे बनाया अक्षर “A”
और कहा:
“वान्या, यह है अक्षर “A”
. अब तू ऐसा ही बना.”
वान्या को जूते से अक्षर बनाना अच्छा लगा. उसने जूते की नोक से अक्षर “A” बनाया और पढ़ा:
“A”
मारिया सिम्योनव्ना हँसने लगी और बोली:
“दुहराने से पाठ
पक्का होता है. दूसरा “A” भी बनाओ.”
और वान्या एक के बाद एक अक्षर लिखने लगा, और उसने इतनी बार लिखा कि मुँडेर फिर से गिर गई.
“चल, अब दूसरा अक्षर बनाते हैं,” मारिया सिम्योनव्ना ने कहा. “ये हे अक्षर “B”.
और उसने अक्षर “B”
बनाया.
तभी सामूहिक फ़ार्म के प्रेसिडेंट अपनी कार में आए. उन्होंने हॉर्न बजाया.
मारिया सिम्योनव्ना और वान्या दूर हट गए, और प्रेसिडेंट ने अपने पहियों से न सिर्फ मुँडेर तोड़
दी, बल्कि मिट्टी से बने सारे अक्षर भी मिटा दिए. उन्हें, असल में पता नहीं
था, कि यहाँ “ज़ीरो-क्लास” हो रही है.
पानी पोखर से उछल कर रास्ते पर बहने लगा, नीचे-नीचे, दूसरे पोखर में, फिर खाई में, खाई से झरने में, झरने से नदी में, और नदी से चल पड़ा दूर समुंदर की ओर.
“इस असफ़लता को रोकना मुश्किल है,” मारिया सिम्योनव्ना ने कहा, “मगर कोशिश की जा सकती है. हमारे पास ये आख़िरी मौका बचा
है – अक्षर “C”. देख उसे कैसे बनाते हैं.
और मारिया सिम्योनव्ना ने फिंकी हुई मिट्टी इकट्ठा की, उसे रुकावट की
तरह रखा. और न सिर्फ जूतों से, बल्कि हाथों से भी रास्ते पर अक्षर “C” बना ही दिया.
ख़ूबसूरत बना अक्षर, किले जैसा. मगर, अफ़सोस, उसके बनाए अक्षर से पानी उछल उछल कर बाहर आता रहा.
हमारे यहाँ सितम्बर में भारी बारिश हो गई.
“मैं, मारिया सिम्योनव्ना, कह रहा हूँ,”
वान्या बोला, “
कि आपके “C”. के साथ कोई और मज़बूत अक्षर चिपकाना होगा. जो कुछ ऊँचा
भी हो. क्या हम अक्षर “D” बनाएँ, जिसे मैं पहले से जानता हूँ?”
मारिया सिम्योनव्ना को बहुत ख़ुशी हुई, कि वान्या इतना समझदार है, और उन्होंने मिलकर अक्षर “D”
बना दिया. आप यकीन नहीं करेंगे कि इन दोनों - “C” और “D” - ने मिलकर पूरी
तरह से पोखर के पानी को रोक दिया.
अगली सुबह हमें फिर से वानेच्का और मारिया सिम्योनव्ना को रास्ते पर देखा.
“E” “F”, वे चिल्ला रहे थे और जूतों से अक्षर बना रहे थे. “G” “H” “I” !”
उनके पैरों के नीचे थी एक नई और अब तक अनदेखी किताब पड़ी थी, और सारे गाँव
वाले सावधानी से उसकी बगल से होकर जा रहे थे, गाड़ी भी किनारे से ले जाते, जिससे “ज़ीरो-क्लास” की पढ़ाई में बाधा न पहुँचे.
प्रेसिडेंट भी अपनी कार को इतनी संभाल कर ले गए, कि एक भी अक्षर को पहिये से नहीं दबाया.
गर्म दिन जल्दी ही ख़तम हो गए. उत्तरी हवा चलने लगी, रास्ते के पोखर
जम गए.
एक बार शाम को मैंने वानेच्का और मारिया सिम्योनव्ना को देखा. वे नदी के
किनारे एक ठूँठ पर बैठे थे और गिन रहे थे:
“पाँच, छह, सात, आठ...”
शायद वे साउथ की ओर उड़ते हुए बगुलों को गिन रहे थे.
और बगुले वाकई में उड़ गए, और “ज़ीरो-क्लास” पर छाया हुआ आसमान काला हो गया, उस “ज़ीरो क्लास”
को ढाँक रहा आसमान, जिसमें, दोस्तों, हम अभी तक पढ़ रहे हैं.
*******