चुक और गेक
लेखक – अर्कादी गैदार
हिन्दी अनुवाद: आ. चारुमति
रामदास
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अनुवाद: आ. चारुमति रामदास, 2023
Cover & Illustrations: planetaskazok.ru
Vseskazki.su
दो शब्द
“चुक और
गेक” दो छोटे भाइयों की कहानी हैं. उनके पिता दूर तायगा में काम करते हैं, और ये दोनों भाई
उनसे मिलने माँ के साथ तायगा जाते है,
दोनों
भाइयों की शरारतें, उनका आपस में लड़ना, प्यार करना, मम्मा से डरना, हर नई चीज़ को
देखकर चकित होना – मन को मोह लेता है. चुक और गेक की मासूमियत और समझदारी अच्छी
लगती है.
आप भी
पढ़िए और कुछ समय के लिए अपने बचपन में वापस लौट जाइए.
चुक और गेक
1
जंगल में
नीले पहाड़ के पास एक आदमी रहता था. वह बहुत काम करता था, मगर काम था, कि ख़त्म ही नहीं होता था, और वह छुट्टी लेकर घर नहीं जा
सकता था.
आखिर में, जब सर्दियां आईं तो वह पूरी तरह
उकता गया और उसने सुपरवाइज़र से इजाज़त लेकर अपनी बीबी को ख़त लिखा कि वह बच्चों को
लेकर उसके पास आ जाए.
उसके दो
बेटे थे – चुक और गेक.
और वे
अपनी मम्मा के साथ बहुत दूर स्थित खूब बड़े
शहर में रहते थे, जिससे अच्छा कोई और शहर दुनिया में हो ही नहीं सकता था. दिन-रात
इस शहर के टॉवर्स के ऊपर लाल सितारे चमकते.
और, बेशक, इस शहर का नाम था – मॉस्को.
उस समय, जब पोस्टमैन ख़त लेकर सीढियां चढ़ रहा था, चुक और गेक के बीच युद्ध हो रहा
था. संक्षेप में कहें तो वे लड़ रहे थे और चीख रहे थे.
ये झगड़ा शुरू क्यों हुआ था, यह तो मैं भूल भी
गया. मगर मुझे याद आता है, कि या तो चुक ने गेक के हाथ से माचिस की खाली डिब्बी छीन
ली, या, इसके विपरीत गेक ने
चुक के हाथ से मोम का डिब्बा खींच लिया था.
अभी अभी
इन दोनों भाइयों ने एक दूसरे पर एक बार मुक्के बरसाये थे, और दूसरी बार बरसाने
ही वाले थे, कि घंटी बजी, और उन्होंने घबराकर एक दूसरे की ओर देखा.
उन्होंनें
सोचा कि उनकी मम्मा आई है! और इस मम्मा का अजीब स्वभाव था. वह झगड़ा करने पर गुस्सा नहीं
करती थी, ना ही चिल्लाती थी, बल्कि सिर्फ झगड़ा करने वालों को
अलग-अलग कमरों में एक-दो घंटे के लिए भेज देती और उन्हें एक दूसरे के साथ खेलने नहीं
देती. और एक घंटे में – ना कम, ना ज़्यादा – पूरे साठ मिनट होते हैं. और दो घंटों
में तो इससे भी ज़्यादा.
इसलिए, दोनों भाइयों ने फ़ौरन आँसू पोंछ
लिए और दरवाज़ा खोलने के लिए भागे.
मगर पता
चला कि, ये मम्मा नहीं थी, बल्कि पोस्टमैन था, जो ख़त लाया था.
तब वे
चिल्लाए:
ये पापा
का ख़त है! हाँ, हाँ, पापा का! और, शायद, वो जल्दी ही आयेंगे. अब तो वे
खुशी के मारे उछलने लगे, कूदने
लगे और स्प्रिंग के बिस्तर पर कलाबाजियां दिखाने लगे. क्योंकि, हालांकि मॉस्को सबसे बढ़िया शहर
है, मगर जब पापा पूरे साल भर से घर में
नहीं हैं, तब मॉस्को में भी बोरियत होने
लगती है.
और वे
इतने खुश हो गए, कि मम्मा
कब भीतर आई, इसका उन्हें पता ही नहीं चला.
उसे यह
देखकर बड़ा अचरज हुआ, कि उसके
दोनों ख़ूबसूरत बेटे, पीठ के
बल लेटे हुए चिल्ला रहे हैं, और दीवार पर एडियों से ठकठक कर
रहे हैं, और इतनी जोर से, कि दीवान के ऊपर लगी तस्वीरें
थरथरा रही हैं और दीवार घड़ी की स्प्रिंग भी गुनगुना रही है.
मगर जब मम्मा
को पता चला कि इतनी खुशी किसलिए है, तो उसने बच्चों को नहीं डांटा.
उसने
सिर्फ उन्हें दीवान से नीचे खीच लिया.
उसने किसी
तरह अपना ओवरकोट उतारा और बालों से बर्फ के कणों को झटके बिना, जो अब पिघल रहे थे, और उसकी काली भंवों के ऊपर
चिंगारियों की तरह चमक रहे थे, खत को
हाथ में लिया.
सब जानते
हैं, कि ख़त खुशी से भरे होते हैं, या दुःख देने वाले, और इसलिए, जब मम्मा पढ़ रही थी, चुक और गेक उसने चहरे के भावों
को देखते रहे.
पहले तो मम्मा
ने नाक-भों चढ़ाई, और उन्होंने भी मुँह बनाया. मगर बाद में वह मुस्कुराने लगी, और वे समझ गए कि ये
खुशी से भरा ख़त है. “पापा नहीं आयेंगे,” ख़त को रखते हुए मम्मा ने कहा. “उनके पास ढेर सारा काम है, और उन्हें मॉस्को
नहीं आने देंगे.
धोखा खाए
हुए चुक और गेक ने परेशानी से एक दूसरे की ओर देखा. ख़त बेहद दुःख भरा लग रहा
था.
उन्होंने
फ़ौरन अपने मुँह फुला लिए और गुस्से से मम्मा की ओर देखने लगे, जो न जाने क्यों
मुस्कुरा रही थी.
“वो नहीं
आयेंगे,” मम्मा ने आगे कहा, “मगर उन्होंने हम सब
को कुछ दिनों के लिए अपने पास बुलाया है.”
चुक और
गेक दीवान से कूदे.
“वह बहुत अजीब इन्सान हैं,” मम्मा ने आह भरी. “ आसान है कहना कि कुछ दिनों के लिए
आ जाओ! जैसे वो हमें ट्राम में बिठाकर ले जायेंगे....”
हाँ,” चुक ने फ़ौरन कहा, “जब वो बुला रहे हैं, तो हम ट्राम में बैठेंगे और चल पड़ेंगे.”
“तुम
बेवकूफ हो,” मम्मा ने कहा.
“वहाँ रेल से हज़ारों किलोमीटर सफ़र करके जाना पड़ता है. और फिर घोड़ों वाली बर्फ की
स्लेज में तायगा से गुज़रना पड़ता है. और तायगा में भालू या रीछ से टकराओगे. और ये कितना
अजीब ख़याल है! तुम लोग खुद ही सोचो!”
“हेय!-हेय!”
चुक और गेक ने आधा सेकण्ड भी नहीं सोचा, और एक सुर में ऐलान कर दिया, कि वे एक हज़ार तो
क्या, सौ हज़ार
किलोमीटर भी जायेंगे. उन्हें किसी बात का डर नहीं लगता. वे बहादुर हैं. कल
उन्होंने कम्पाउंड में आये हुए अनजान कुत्ते को पत्थर मार-मार के भगा दिया
था.
और वे
काफी देर हाथ हिला-हिला कर, पाँव पटक कर, उछल-उछल कर बात करते रहे, और मम्मा चुपचाप बैठी
उनकी बातें सुनती रही, सुनती रही. आखिर में वह हँस पडी, दोनों के हाथ पकड़ कर
उन्हें घुमाया और दीवान पर पटक दिया.
पता है, वह कब से ऐसे ख़त का इंतज़ार कर रही थी, और वह जानबूझकर चुक और गेक को चिढा रही
थी, क्योंकि वह
खुशमिजाज़ तबियत की थी.
2.
सफ़र की तैयारी
करते-करते एक सप्ताह बीत गया,
चुक और गेक ने भी समय बरबाद नहीं किया,
चुक ने किचन के चाकू से खंजर बनाया,
और गेक ने एक चिकनी डंडी ढूंढी,
उसमें एक कील ठोंकी, और इस तरह एक
भाला बन गया, इतना मज़बूत
कि अगर भालू की चमड़ी में किसी चीज़ से छेद किया जाए और फिर उसके दिल में यह भाला
घुसा दिया जाए, तो , बेशक, भालू फ़ौरन मर जाएगा.
आखिरकार सारे
काम पूरे हो गए. सामान पैक कर लिया गया. दरवाज़े के लिए दूसरा ताला बनाया गया, ताकि क्वार्टर में चोर न घुस आयें. अलमारी से
डबल रोटी के बचे-खुचे टुकडे,
मैदा और रवा झटक दिया गया, जिससे
चूहे न घुस आयें. और मम्मा अगले दिन वाली शाम की ट्रेन के टिकट खरीदने स्टेशन चली
गई.
मगर उसके जाने
के बाद चुक और गेक में झगड़ा हो गया.
अगर वे जानते कि इस झगड़े का कितना बुरा परिणाम होने वाला है, तो कम से कम उस दिन तो वे झगड़ा नहीं करते!
मितव्ययी चुक
के पास एक चपटा धातु का डिब्बा था,
जिसमें वह चाय के पैकेट के चमकीले कागज़, चॉकलेट के रैपर्स, (अगर उन पर टैंक, हवाई जहाज़,
या रेड आर्मी का फ़ौजी होता), बाणों के लिए चिड़ियों के पंख, चाइनीज़ ट्रिक के लिए
घोड़े का बाल और अनेक प्रकार की ज़रुरत की चीज़ें, रखता था.
गेक के पास डिब्बा नहीं था.
और, वैसे भी गेक सीधा-सादा था,
मगर वह गाने गा सकता था.
और ठीक तभी, जब चुक छुपाने की जगह पर अपना बहुमूल्य डिब्बा
लेने गया, और गेक
कमरे में गाने गा रहा था, पोस्टमैन
ने आकर चुक को मम्मा के लिए टेलीग्राम दिया.
चुक ने टेलीग्राम को अपने
डिब्बे में छुपा दिया और यह पता करने के लिए गया कि गेक गाना क्यों नहीं गा रहा है, बल्कि चीख रहा है:
र-र्रे!
र-र्रे! हुर्रे!
ऐय! बेय!
तुर्रुमबेय!
चुक ने उत्सुकता से दरवाज़ा
थोड़ा सा खोला और उसने ऐसे ‘तुर्रुमबेय’ को देखा कि कड़वाहट के मारे उसके हाथ
थरथराने लगे.
कमरे के बीच में एक कुर्सी
थी, और उसकी पीठ पर भाले से छेदा गया, चिथड़ा बन गया
अखबार टंगा था. और इसमें तो कोई ख़ास बात नहीं थी. मगर नासपीटा गेक, इस बात की
कल्पना करते हुए कि उसके सामने भालू का शव है, तैश से मम्मा के
जूतों वाले पीले बॉक्स में तैश से भाला चुभाए जा रहा था. मगर उस बॉक्स में चुक ने
टीन का सिग्नल पाईप, अक्टूबर समारोह के तीन रंगीन बैज और
पैसे – छियालीस कोपेक रखे थे, जिन्हें उसने गेक की तरह, कई तरह की बेवकूफियों पर खर्च नहीं किया था, बल्कि
सफ़र के लिए बचा कर रखा था.
और छेदे गए बॉक्स को देखकर
चुक ने गेक के हाथ से भाला छीन लिया, घुटने पर रखकर उसके दो टुकड़े कर दिए और फर्श
पर फेंक दिया.
बाज़ की तरह गेक चुक पर झपटा
और उसके हाथों से धातु का डिब्बा छीन लिया. एक झटके में खिड़की की सिल के पास भागा
और खुले हुए वेंटिलेटर से बाहर फेंक दिया.
अपमानित चुक ज़ोर से बिलखने
लगा और “टेलिग्राम! टेलीग्राम!” चीखते हुए सिर्फ एक ही कोट में, बिना
दस्तानों और कैप के दरवाज़े बाहर भागा.
यह महसूस करके कि कुछ गड़बड़
हो गई है, गेक चुक के पीछे लपका.
मगर वे बेकार ही में धातु के
डिब्बे को ढूँढते रहे, जिसमें अभी तक किसी के भी द्वारा
नहीं पढ़ा गया टेलीग्राम था.
या तो वह बर्फ के टीले के
नीचे दब गया और अब बर्फ में गहरे दबा पडा है, या फिर पगडंडी पर
गिर गया और वहाँ से गुज़रते हुए किसी ने उसे उठा लिया है, मगर, बात ये थी कि अपनी दौलत और न खोले गए टेलीग्राम के साथ डिब्बा हमेशा के
लिए खो गया है.
घर वापस आकर चुक और गेक बड़ी
देर तक खामोश रहे. उन्होंने सुलह कर ली थी, क्योंकि वे जानते
थे, कि मम्मा उन
दोनों पर ही गुस्सा करेगी. मगर चूंकि चुक गेक से पूरे एक साल बड़ा था, तो उसे ज़्यादा देर तक घबराहट नहीं हुई, उसने सोच
लिया:
“गेक, अगर हम मम्मा से टेलीग्राम के
बारे में कुछ भी न कहें तो? सोचो – टेलीग्राम! हमें तो बिना
टेलीग्राम के भी अच्छा लगता है.”
“झूठ नहीं बोलना चाहिए,” गेक ने गहरी सांस ली. “ झूठ बोलने पर मम्मा और ज़्यादा गुस्सा करती है.”
“मगर हम झूठ नहीं बोलेंगे!”
चुक खुशी से चहका. “अगर वह पूछेगी कि टेलीग्राम कहाँ है, - तो हम बता देंगे. अगर नहीं पूछेगी, हम पहले से ही
क्यों कूदें? हम कोई बेवकूफ तो नहीं हैं.”
“ठीक है,” गेक सहमत हो गया. “अगर झूठ बोलने की ज़रुरत नहीं है, तो ऐसा ही करेंगे. ये तूने अच्छा सोचा, चुक.”
और जैसे ही उन्होंने ये
फैसला किया, मम्मा वापस आई. वह खुश थी कि ट्रेन में अच्छी टिकट्स
मिल गई थीं, मगर फिर भी वह फ़ौरन समझ गई कि उसके प्यारे बच्चो के चहरे उतरे हुए हैं, और आंखें रोई हुई लग रही हैं.
“जवाब दो, नागरिकों,” उसने बर्फ झटकते हुए पूछा, “ मेरी गैरहाज़िरी में किस बात पर झगड़ा हुआ था?”
“झगड़ा नहीं हुआ था,” चुक ने इनकार किया.
“नहीं हुआ था,” गेक ने ज़ोर देकर कहा. “हम सिर्फ झगड़ा करना चाहते थे, मगर हमने फ़ौरन इरादा बदल दिया.”
“मुझे ये ख़याल अच्छा लगा,” मम्मा ने कहा.
उसने कपडे बदले, दीवान पर बैठी और उन्हें मज़बूत हरे-हरे टिकट्स दिखाए: एक टिकट बड़ा था, और दो छोटे थे. उन्होंने जल्दी से खाना खा लिया, और
फिर सब हलचल बंद हो गई, लाईट बंद हो गई और वे सब सो गए.
और टेलीग्राम के बारे में
मम्मा को कुछ भी मालूम नहीं था, इसलिए उसने उनसे कुछ भी नहीं पूछा.
अगले दिन वे चल पड़े. मगर चूंकि ट्रेन
रात में बड़ी देर से छूटती थी, तो निकलते हुए काली खिड़कियों के पार चुक और गेक
कोई दिलचस्प नज़ारा नहीं देख पाए.
रात में गेक की नींद खुल गई. छत का
बल्ब बुझा दिया गया था, मगर
गेक के चारों ओर की हर चीज़ नीले प्रकाश से चमक रही थी: टिशू पेपर से ढंकी छोटी-सी
मेज़ पर थरथराता हुआ गिलास, और
पीला संतरा, जो अब
कुछ हरा लग रहा था, और
मम्मा का चेहरा, जो
हिलते-डुलतेहुए गहरी नींद में सो रही थी. बर्फ का डिज़ाइन बनी खिड़की के पार गेक ने चाँद को
देखा, इत्ता
बड़ा चाँद, जैसा
मॉस्को में नहीं होता. और तब उसने सोचा कि ट्रेन ऊंचे पहाड़ों से गुज़र रही है, जहाँ से चाँद
नज़दीक है.
उसने मम्मा को हिलाया और पीने के लिए
पानी माँगा. मगर उसने एक कारण से पानी नहीं दिया, बल्कि उससे संतरा छीलकर एक फांक
खाने को कहा.
गेक को संतरे की फांक छीलना बड़ा
अपमानजनक लग रहा था, मगर
अब सोने का मन नहीं था. उसने चुक को धक्का दिया – शायद जाग जाए. चुक गुस्से से
फुरफुराया मगर उठा नहीं.
तब गेक ने जूते पहने, दरवाज़ा थोड़ा
सा खोला और कॉरीडोर में निकल आया.
कम्पार्टमेंट का कॉरीडोर लंबा और
तंग था. उसकी बाहर वाली दीवार पर फोल्डिंग बेंचें बनी हुई थीं, जिन पर से यदि नीचे उतरो, तो वे अपने आप बंद हो जाती थीं. यहीं, कॉरीडोर में दस और दरवाज़े खुलते थे. सभी दरवाज़े चमक
रहे थे, लाल,
पीले-सुनहरे हैंडल वाले.
गेक एक बेंच पर बैठा, फिर दूसरी पर, तीसरी पर
और इस तरह करीब-करीब कंपार्टमेंट के अंत तक पहुँच गया. मगर तभी लालटेन लिए कंडक्टर
आया और उसने गेक को डांटा, कि लोग सो
रहे हैं, और वह बेंचें भड़भड़ा रहा है.
कंडक्टर चला गया, और गेक जल्दी-जल्दी अपने कुपे की ओर चला. उसने मुश्किल
से दरवाज़ा खोला. सावधानी से, ताकि
मम्मा न जाग जाए, फिर उसने दरवाज़ा बंद किया और नरम बिस्तर पर चढ़ गया.
और, चूंकि मोटा चुक पूरा पसर कर पडा था, तो गेक ने मुट्ठी से उसे धकेला, जिससे वह सरक जाए.
बालों और गोल सिर वाले चुक के बदले गेक की ओर देख रहा था किसी अंकल का मूँछोंवाला, गुस्सैल चेहरा, जो कठोरता से पूछ रहा था:
“ये कौन धक्का दे रहा है?’
सभी बर्थों से डरे हुए मुसाफिर
उछले, बल्ब जला, और ये
देखकर कि वह अपने नहीं, बल्कि
किसी और कुपे में घुस गया है, गेक जोर
से रोने लगा.
मगर सभी लोग फ़ौरन समझ गए कि बात
क्या है और हंसने लगे. मूंछों वाले अंकल ने पतलून पहनी, फ़ौजी जैकेट पहना और गेक को उसकी जगह पर ले गया.
गेक अपने कंबल के नीचे घुस गया
और शांत हो गया. कम्पार्टमेंट हिल रहा था, हवा शोर
मचा रही थी.
अभूतपूर्व विशाल चाँद फिर से
थरथराते हुए गिलास, सफ़ेद टिश्यू पेपर पर पड़े नारंगी संतरे और मम्मा के चहरे को
नीली रोशनी से चमका रहा था, जो सपने
में किसी बात पर मुस्कुरा रही थी और इस बात से बिलकुल बेखबर थी कि उसके बेटे पर
कैसी मुसीबत आई थी.
आखिर में गेक भी सो गया.
...और गेक को सपना आया अजीब
जैसे पूरा कम्पार्टमेंट हो उठा सजीव,
जैसे आवाज़ें सुनाई दे रही हों,
एक पहिये से दूसरे पहिये तक
भागते हैं कम्पार्टमेंट्स - लम्बी कतार में-
और बतियाते हैं इंजिन से.
पहला:
आगे बढ़ो, कॉम्रेड!
रास्ता है लंबा
सामने तुम्हारे अंधेरे में दबा।
दूसरा:
चमको प्रखरता से, लालटेनों
सुबह की लाली तक!
तीसरा:
जलो, आग! पाईप,
सीटी!
घूमो पहियों, पूरब की ओर!
चौथा;
तब पूरी करेंगे बातचीत,
जब पहुंचेगे नीले पहाड़ों पर.
4
जब
गेक जागा, तो पहिये खामोशी से, बिना बातें किये
कम्पार्टमेंट के फर्श के नीचे टक -टक कर रहे थे. बर्फ जमी खिड़कियों से सूरज चमक
रहा था. बिस्तर ठीक कर दिए गए थे. नहाया-धोया चुक सेब खा रहा था. और मम्मा और
मूंछों वाले अंकल खुले हुए दरवाजों के सामने गेक के रात के कारनामों के बारे में
बातें करते हुए ठहाके लगा रहे थे. चुक ने फ़ौरन गेक को पीले कारतूस की नोक वाली
पेन्सिल दिखाई जो फ़ौजी अंकल ने उसे गिफ़्ट में दी थी.
मगर
गेक को चीज़ों से कोई लगाव नहीं है और वह लालची भी नहीं है. वह बेशक, भुलक्कड़ और बुद्धू था. न सिर्फ वह रात को औरों के कुपे में घुस गया था –
अभी भी उसे याद नहीं आ रहा था कि उसने अपनी पतलून कहाँ घुसेड़ दी थी. मगर वह गाने
गा सकता था.
हाथ-मुँह
धोकर और मम्मा को नमस्ते करके वह ठन्डे कांच से माथा सटाकर बैठ गया और देखने लगा, कि यह कैसा प्रदेश है, यहाँ लोग कैसे रहते हैं और
क्या करते हैं.
और
जब चुक एक दरवाज़े से दूसरे दरवाज़े पर जाकर मुसाफिरों से मिल रहा था, जो उसे खुशी-खुशी कोई न कोई चीज़ गिफ़्ट में दे रहे थे – कोई रबर का कॉर्क ,
कोई कील, कोई मुड़ी हुई सुतली का टुकड़ा – गेक ने खिड़की से बाहर काफी कुछ देख लिया
था.
ये
रहा जंगल का छोटा सा घर. बड़े-बड़े नमदे के जूतों में, एक कमीज़ पहने और हाथों में
बिल्ली लिए एक लड़का उछल कर पोर्च में आया. त्राख!- बिल्ली फूले-फूले बर्फ के ढेर
में गिरी और, अटपटेपन से ऊपर चढते हुए,
नरम बर्फ पर कूद गई. मज़ेदार बात है, उसने बिल्ली को क्यों फेंक
दिया? शायद, उसने मेज़ से कोई चीज़ खींच
ली थी.
मगर...अब न तो वह घर है, न ही लड़का, ना बिल्ली – मैदान में एक कारखाना खडा है. मैदान सफ़ेद है, पाईप लाल. धुँआ काला और प्रकाश- पीला. दिलचस्प बात है, इस कारखाने में करते क्या हैं? ये है बूथ, और है भेड़ की खाल के ओवरकोट में लिपटा हुआ संतरी. भेड़ की खाल वाले ओवरकोट में संतरी है भारी-भरकम, और उसकी राइफल घास के तिनके जैसी पतली दिखाई दे रही है. मगर घुसने की कोशिश तो करके देखो!
फिर
आया जंगल, नाचता हुआ. पेड़, जो बहुत नज़दीक थे, जल्दी-जल्दी उछल रहे थे, मगर दूर वाले पेड़ धीरे-धीरे
हिल रहे थे, जैसे बर्फ की प्यारी नदी ने चुपचाप उन्हें घेर लिया हो.
गेक
ने चुक को आवाज़ दी, जो काफी सारे गिफ़्ट्स लेकर
कुपे में लौट आया था, और वे दोनों मिलकर बाहर का नज़ारा देखने लगे.
रास्ते
में बड़े स्टेशन्स भी मिलते, जो प्रकाशमान थे, जिन पर एक साथ करीब सौ इंजिन फुसफुसा रहे थे और फुफ़कार रहे थे; बेहद छोटे
स्टेशन्स भी मिलते – मगर, उस छोटे से स्टाल से बड़े
नहीं थे, जो उनके मॉस्को वाले घर के पास, नुक्कड़ पर, छोटा-मोटा
सामान बेचता था.
कच्ची
धातुओं, कोयले और मोटे-मोटे लकड़ी के लट्ठों से लदी रेलगाड़ियाँ
भी मिलतीं.
उन्होंने
गायों और बैलों से भरी एक रेलगाड़ी को पकड़ा. इस गाडी का इंजिन तो बेहद मामूली था और
उसकी सीटी बहुत पतली थी, चीख जैसी, और तभी एक बैल ज़ोर से चिल्लाया: मू-ऊ! इंजिन
ड्राइवर ने भी पीछे मुड़कर देखा, शायद, उसने सोचा, कि कोई बड़ा इंजिन उसके पास
आ रहा है.
और
एक जंक्शन पर तो वे शक्तिशाली, लोहे की बख्तरबंद ट्रेन के
समीप रुके. तिरपालों में लिपटे हथियार खतरनाक तरीके से टॉवर्स से झांक रहे थे. रेड
आर्मी के सैनिक खुशी से झूम रहे थे, हँस रहे थे और, तालियाँ बजाते हुए अपने हाथ गरम कर रहे थे.
मगर
चमड़े की जैकेट पहने एक आदमी बख्तरबंद ट्रेन के पास चुपचाप सोच में डूबा खडा था.
चुक और गेक ने फैसला कर लिया कि ये, बेशक, कमांडर है, जो वराशिलोव से हुक्म का
इंतज़ार कर रहा है, कि क्या दुश्मन के खिलाफ
युद्ध छेड़ दिया जाए.
हाँ, उन्होंने रास्ते में काफी कुछ देखा. अफ़सोस इस बात का था, कि बाहर बर्फ का तूफ़ान गरज रहा था और कम्पार्टमेंट की खिड़कियाँ अक्सर बर्फ
से ढँक जाती थीं.
और
आखिरकार, सुबह, ट्रेन एक छोटे से स्टेशन पर
पहुँची.
मम्मा
ने चुक और गेक को नीचे उतारकर फ़ौजी से अपना सामान लिया ही था कि ट्रेन चल पडी.
सूटकेस
बर्फ पर पड़े थे. लकड़ी का प्लेटफ़ॉर्म जल्दी ही खाली हो गया, मगर पापा तो उन्हें लेने आये ही नहीं.
तब
मम्मा पापा पर गुस्सा करने लगी और बच्चों को सामान के पास छोड़कर गाड़ीवानों के पास
ये पूछने के लिए गई कि पापा ने उनके लिए कौन सी स्लेज भेजी है, क्योंकि उस जगह तक, जहाँ वो रहते थे, तायगा में और सौ किलोमीटर
जाना था.
मम्मा
को बड़ी देर लग रही थी, और यहाँ, कुछ ही दूरी पर एक खतरनाक बकरा प्रकट हुआ. पहले तो उसने बर्फ से ढंके लट्ठे
की छाल खाई, मगर बाद में बड़े घिनौने तरीके से मिमियाया और एकटक चुक
और गेक की ओर देखने लगा.
तब
चुक और गेक फ़ौरन सूटकेसों के पीछे दुबक गए, क्योंकि, क्या पता इस इलाके में बकरों को क्या चाहिए.
मगर
तभी मम्मा आ गई. वह बहुत दु:खी नज़र आ रही थी और उसने बताया कि ,शायद, पापा को उनके निकलने के बारे में टेलीग्राम नहीं मिला और इसीलिये उन्होंने
स्टेशन पर बच्चों के लिए घोड़े नहीं भेजे.
तब
उन्होंने एक गाडीवान को बुलाया. गाडीवान ने बकरे को पीठ पर लम्बा चाबुक मारा,
सामान लिया और उन्हें स्टेशन के बुफे में ले गया.
बुफे
छोटा-सा था. काउंटर के पीछे, मोटा, चुक जितना ऊंचा समोवार भाप छोड़ रहा था. वह थरथरा रहा था, सीटी बजा रहा था, और उसकी घनी भाप, बादल के समान लकड़ी के तख्तों की सीलिंग तक जा रही थी, जिसके नीचे गरमाने के लिए आई गौरैया चहचहा रही थीं.
जब
तक चुक और गेक चाय पी रहे थे, मम्मा गाडीवान से भाव तय कर
रही थी : जंगल में उनकी जगह तक ले जाने का वह कितना लेगा. गाडीवान बहुत मांग रहा
था – पूरे सौ रुबल्स. वैसे भी क्या कह सकते हैं: रास्ता तो वाकई में छोटा नहीं था.
आखिरकार वे सहमत हो गए, और गाडीवान घर भागा – ब्रेड, घास और भेड़ की खाल के कोट लाने.
“पापा
को मालूम ही नहीं है कि हम आ चुके हैं,” मम्मा ने कहा. “वो तो चौंक
जायेंगे और खुश भी हो जायेंगे.”
“और
मैं भी,” गेक सहमत हो गया, “हम चुपके से जायेंगे, और अगर पापा घर से बाहर गए हैं, तो हम सूटकेसें छुपा देंगे
और खुद पलंग के नीचे छुप जायेंगे. अब ये पापा आये. बैठे. सोचने लगे. और हम खामोश, खामोश, खामोश हैं, और अचानक चिल्लायेंगे!”
“मैं
पलंग के नीचे नहीं जाऊंगी,” मम्मा ने इनकार कर दिया, “और आवाज़ भी नहीं निकालूंगी. खुद ही लेटो, और चिल्लाओ...चुक, तू ये जेब में शक्कर क्यों छुपा रहा है? वैसे भी तेरी जेबें पूरी
भरी हैं, जैसे कचरे का डिब्बा...”
“मैं
घोड़े चराऊंगा,” चुक ने शान्ति से कहा. “गेक, ये ले, तू भी चीज़-केक का टुकड़ा ले ले, वरना तो तेरे पास कभी भी
कुछ भी नहीं होता. सिर्फ मुझसे छीनना आता है.”
जल्दी
ही गाडीवान आ गया. चौड़ी स्लेज में सामान रखा, घास फूस बिछा दी; कंबलों में, भेड़ की खाल के कोट में दुबक गए.
अलबिदा, बड़े शहरों, फैक्टरियों, स्टेशन्स, गाँव, देहात! अब आगे है सिर्फ जंगल, पहाड़ और फिर घना, अन्धेरा जंगल.
5
लगभग शाम होते-होते, आह-उह करते, ऊंघते हुए
तायगा से हैरान होते हुए, बिना किसी
की नज़रों में पड़े, वे जा रहे थे. मगर चुक को, जिसे गाडीवान की पीठ के पीछे से रास्ता अच्छी तरह नज़र
नहीं आ रहा था, बोरियत महसूस होने लगी. उसने मम्मा से
पेस्ट्री या ‘बन’ के लिए पूछा. मगर मम्मा ने न तो उसे पेस्ट्री दी, ना ही ‘बन’. तब उसने मुँह बना लिया और कुछ भी न कर
सकने के कारण गेक को धक्का देना और किनारे की तरफ दबाना शुरू कर दिया.
पहले तो गेक धीरज से सरकता रहा, मगर फिर उसे गुस्सा आ गया और उसने चुक पर थूक दिया.
चुक को बहुत गुस्सा आया और वह लड़ाई पर उतर आया. मगर,
चूंकि उनके हाथ भेड़ की खाल के फ़र वाले ओवरकोटों में बंधे हुए थे, इसलिए वे कुछ नहीं कर सके, सिवाय टोपियों से ढंके सिरों से एक दूसरे को धक्का
देने के.
मम्मा ने उनके तरफ देखा और
हंसने लगी. और तभी गाडीवान ने घोड़ों पर चाबुक बरसाया – और घोड़े तीर की तरह भागे.
दो झबरे, सफ़ेद खरगोश रास्ते पर उछले और नाचने लगे. गाडीवान
चिल्लाया:
“ ओय, ओय! ...संभलना: दब जाओगे!”
शरारती खरगोश खुशी खुशी जंगल की
तरफ भाग गए. चेहरे पर ताज़ी हवा बह रही थी. और, मजबूरन एक
दूसरे से चिपक कर चुक और गेक स्लेज में पहाड़ के नीचे तायगा से और चाँद से मिलने जा
रहे थे, जो अब पास ही स्थित नीले पहाड़ों के पीछे से ऊपर आ रहा
था.
बिना किसी आदेश के घोड़े एक
छोटी-सी बर्फ से ढंकी कॉटेज के पास खड़े हो
गए.
“रात यहाँ बिताएंगे,” गाडीवान ने बर्फ में कूदते हुए कहा, “ये हमारा स्टेशन है.”
कॉटेज छोटी थी, मगर मज़बूत
थी.
गाडीवान ने जल्दी से चाय की
केतली गरम की: स्लेज से खाने-पीने के सामान वाली बैग लाये.
सॉसेज तो इतना जम गया था और कड़ा
हो गया था, कि उससे कील भी ठोंकी जा सकती थी. सॉसेज को उबलते पानी
से अच्छी तरह गरम किया गया, और ब्रेड
के टुकड़ों को गरम स्टोव पर रखा गया.
चुक को भट्टी के पीछे एक
टेढ़ी-मेढ़ी स्प्रिंग मिली, और गाडीवान ने उसे बताया कि यह स्प्रिंग जाल की है, जिससे हर तरह के जंगली जानवर को पकड़ा जाता है.
स्प्रिंग पर जंग लगी थी और वह यूं ही बेकार पडी थी. ये बात चुक फ़ौरन समझ गया.
कुछ खाकर, चाय पीकर सो गए.
दीवार के पास लकड़ी का चौड़ा पलंग था. गद्दे के बदले उस पर सूखे पत्ते बिछाए गए थे.
गेक को न तो दीवार के पास सोना
अच्छा लगता था, न ही बीच में, उसे किनारे पर सोना अच्छा लगता था. और हालांकि वह बचपन
से गाना सुनता आ रहा था : “बाय-बाय-लाडले, सोना नहीं
किनारे”, मगर फिर भी गेक हमेशा किनारे पर ही सोता था.
अगर उसे बीच में सुलाया जाता, तो वह नींद में सबके कंबल खीच लेता, कुहनियाँ मारता और चुक के पेट पर घुटना मारता रहता.
बिना कपड़े उतारे और भेड़ की खाल
वाले ओवरकोटों से खुद को ढंककर, वे सो गए. चुक दीवार के किनारे, मम्मा बीच में, और गेक किनारे पर.
गाडीवान से मोमबत्ती बुझाई और
भट्टी के ऊपर चढ़ गया. सभी फ़ौरन सो गए. मगर, बेशक, जैसा हमेशा होता है,
गेक को प्यास लगी और वह जाग गया.
ऊंघते हुए उसने नमदे के जूते
पहने, मेज़ के पास आया, केतली से
पानी पिया और खिड़की के सामने स्टूल पर बैठ गया.
चाँद बादलों के पीछे था और, छोटी सी खिड़की से बर्फ के ढेर काले-नीले प्रतीत हो रहे
थे.
“इत्ती दूर आये हैं हमारे
पापा!” गेक को अचरज हुआ. और उसने सोचा कि शायद, इस जगह से
आगे दुनिया में कोई और जगह नहीं है.
गेक ने ध्यान से सुना. उसे लगा, कि खिड़की के बाहर कोई खटखटा रहा है. ये खटखटाहट भी
नहीं थी, बल्कि किसी के भारी-भारी कदमों के नीचे बर्फ चरमरा रही
थी. ऐसा ही था! अँधेरे में किसी ने गहरी सांस ली, सरसराया, मुड़ गया, और गेक
समझ गया कि खिड़की के पास से रीछ गुज़रा है.
“दुष्ट रीछ, तुझे क्या चाहिए? हम इतनी देर से पापा के पास जा रहे हैं, और तू हमें खाना चाहता है, ताकि हम उन्हें कभी भी न देखें?...नहीं, भाग जा, वरना लोग
तुझे किसी बढ़िया बन्दूक या तेज़ धार वाली तलवार से मार डालेंगे!”
गेक यह सब सोच रहा था और बडबड़ा
रहा था और उत्सुकता से तंग खिड़की के बर्फ जमे कांच से माथा सटा रहा था.
मगर तेज़ी से भागते हुए बादलों
के पीछे से चाँद तेज़ी से बाहर आया. काले-नीले बर्फ के टीले नर्म मटमैली आभा से
चमकने लगे, और गेक ने देखा कि रीछ तो वास्तव में रीछ नहीं है, बल्कि उनका खोला गया घोड़ा स्लेज के चारों ओर घूम रहा
है और चारा खा रहा है.
चिड़चिड़ाहट हो रही थी. गेक पलंग
पर चढ़ कर ओवरकोट के नीचे दुबक गया, और चूंकि
उसने अभी-अभी बुरी बातों के बारे में सोचा था, इसलिए उसे
सपना भी निराशाभरा ही आया.
गेक को आया
अजीब सपना!
मानो भयानक
तुर्वारोन
उगल रहा है, उबलता थूक,
धमका रहा
है फौलादी मुट्ठी से.
चारों और
है आग! बर्फ पर हैं निशान .
जा रही हैं
फ़ौजी टुकड़ियां.
खींच रही
हैं दूर से
टेढा-मेढा
फासिस्ट झंडा और सलीब.
“रुको!” गेक ने चिल्लाकर उनसे
कहा. “आप गलत जगह जा रहे हैं! यहाँ आना मना है!”
मगर कोई नहीं रुका, और किसी ने भी गेक की बात नहीं सुनी,
तब गेक ने गुस्से से टीन का सिग्नल-पाईप उठाया, वो, जो चुक के
जूतों के डिब्बे में पड़ा था, और उसे इतने ज़ोर से बजाया कि लोहे की बख्तरबंद ट्रेन
के विचारमग्न कमांडर ने सिर उठाया, तैश में हाथ हिलाया – और उसके भारी और भयानक
हथियार फ़ौरन आग उगलने लगे.
“अच्छा है!” गेक ने तारीफ़ की. “सिर्फ और फायर कीजिये, वरना एक ही बार फायर करना उनके लिए कम होगा....”
मम्मा की नींद इसलिए टूटी, क्योंकि उसके दोनों
प्यारे बेटे दोनों तरफ से बेचैनी से उसे धकेल रहे थे और करवटें बदल रहे थे.
वह चुक की ओर मुडी और उसे महसूस
हुआ कि किनारे से उसके बदन में कोई कड़ी और नुकीली चीज़ चुभ रही है. उसने कंबल के
नीचे हाथ से टटोला और जाल वाली स्प्रिंग बाहर निकाली, जिसे किफ़ायती चुक चुपके से
अपने साथ बिस्तर में ले आया था.
मम्मा ने स्प्रिंग को पलंग के
पीछे फेंक दिया. चाँद की रोशनी में उसने गेक के चहरे की ओर देखा और समझ गई कि उसे परेशान
करने वाला सपना आ रहा है.
सपना कोई स्प्रिंग तो नहीं है, और उसे बाहर नहीं फेंक सकते. मगर उसे शांत किया जा
सकता है. मम्मा ने गेक को पीठ से एक करवट लिटा दिया और, हिलाते हुए हौले से उसके गरम माथे पर फूंक मारी.
गेक ने जल्दी ही गहरी सांस ली, मुस्कुराया, और इसका
मतलब यह था कि बुरा सपना ख़त्म हो गया था.
तब मम्मा उठी और स्टॉकिंग्स
में, बिना फेल्ट के जूतों के, खिड़की के पास आई.
अभी उजाला नहीं हुआ था, और आसमान सितारों से भरा था. कुछ तारे काफी ऊंचे चमक
रहे थे, और कुछ अँधेरे तायगा के पीछे की ओर, काफी नीचे चमक रहे
थे.
और – अचरज की बात थी – वहीं और
उसी तरह, नन्हें गेक की तरह, वह सोच
रही थी, कि इस जगह से आगे, जहाँ उसका
बेचैन पति खिंचा चला आया था, दुनिया
में कम ही जगहें होंगी.
अगले पूरे दिन रास्ता जंगल और
पहाड़ों से होकर जा रहा था. चढ़ावों पर गाडीवान स्लेज से नीचे कूद जाता और बर्फ पर
बगल में चलने लगता. मगर खड़ी ढलानों पर स्लेज इतनी तेज़ी से भागती, कि चुक और गेक को लगता जैसे वे घोड़ों और स्लेज समेत
आसमान से सीधे धरती पर गिर रहे हैं.
आखिरकार, शाम को, जब लोग और
घोड़े पूरी तरह थक चुके थे, गाडीवान
ने कहा:
“तो, लो, आ गए! इस टापू
के पीछे मोड़ है. यहाँ, खुले
मैदान में उनकी ‘बेस’ है...एय,
हो-ओ...! चलो!”
खुशी से चीखते हुए चुक और गेक
उछाले, मगर स्लेज ने झटका लिया और वे धम् से फूस में गिर गए.
मुस्कुराती हुई मम्मा ने ऊनी
स्कार्फ निकाल दिया और सिर्फ रोएंदार हैट में रह गई.
ये रहा मोड़. स्लेज हौले से मुडी
और तीन छोटे-छोटे घरों तक आई, जो हवा से
सुरक्षित छोटे से किनारे पर थे.
बड़ी अजीब बात है! ना तो कुत्ते
भौंके, ना ही कोई लोग दिखाई दिए. भट्टी के पाइपों से धुआँ भी नहीं निकल रहा था. सारे रास्ते गहरी बर्फ से
ढंके थे, और चारों और खामोशी थी, जैसे कब्रिस्तान में सर्दियों में होती है. सिर्फ सफ़ेद किनारी वाले
मैगपाई एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर फुदक रहे थे.
“तू हमें कहाँ ले आया है?” मम्मा ने घबराहट से गाडीवान से पूछा. “क्या हमें
यहाँ आना था?”
“जहाँ आना चाहते थे, वहीं लाया हूँ,” गाडीवान ने
जवाब दिया. “ये घर कहलाते हैं “एक्सप्लोरेशन- जिओलोजिकल बेस – 3”. खम्भे पर बोर्ड भी लगा है...पढ़िए. हो सकता है
आपको बेस – 4 पर जाना है? तो करीब दो
सौ किलोमीटर्स एकदम अलग दिशा में जाना होगा.”
“नहीं, नहीं!” बोर्ड की ओर देखकर मम्मा ने जवाब दिया. “हमें
यही ‘बेस’ चाहिए. मगर तुम देखो: दरवाजों पर ताले लगे हैं,
पोर्च बर्फ से ढंकी है, मगर लोग कहाँ चले गए?”
“मुझे मालूम नहीं कि वे
कहाँ जा सकते हैं,” गाडीवान भी हैरान था.
“पिछले हफ्ते हम यहाँ सामान लाये थे : आटा, प्याज़, आलू, सभी लोग यहीं थे: आठ आदमी, नौंवा लीडर, वाचमैन समेत कुल दस...ये हुई न फ़िक्र
की बात! कहीं भेडिये तो सब को नहीं खा गए...आप रुकिए, मैं
वाचमैन के पास जाता हूँ.”
और भेड़ की खाल का ओवरकोट
उतारकर गाडीवान बर्फ के टीले पार करते हुए सबसे अंतिम कॉटेज की तरफ गया.
जल्दी ही वह वापस लौट आया:
“कॉटेज खाली है, मगर भट्टी गरम है. मतलब, यहाँ वाचमैन है, मगर, लगता है कि शिकार पर निकल गया है. खैर, रात तक आयेगा और आपको सब बताएगा.”
“वो मुझे क्या बताएगा!”
मम्मा ने आह भरी. “मैं खुद ही देख रही हूँ, लोग यहाँ काफी समय से नहीं हैं.”
“ये तो मुझे नहीं पता, कि वो क्या बताएगा,” गाडीवान ने
जवाब दिया. “मगर कुछ न कुछ तो बताएगा, इसीलिये तो वह वाचमैन
है.”
बड़ी मुश्किल से वे वाचमैन
वाले पोर्च तक आये, जहाँ से एक संकरी पगडंडी जंगल को जाती थी.
वे दालान में आये और फावड़ों, झाडुओं, कुल्हाड़ियों, डंडों, जमी हुई भालू की खाल के करीब से, जो लोहे के
हुक से लटक रही थी, कॉटेज में गए. उनके पीछे-पीछे गाडीवान उनका सामान
खींचकर ला रहा था.
कॉटेज में गर्माहट थी.
गाडीवान घोड़ों को चारा देने गया, और मम्मा
चुपचाप बेहद डरे हुए बच्चो के कपडे उतारने लगी.
“जा रहे थे पापा के पास, जा रहे थे – लो, आ गए!”
मम्मा बेंच पर बैठकर सोचने
लगी. क्या हो गया है, ‘बेस’ खाली क्यों है और अब करना क्या चाहिए? क्या वापस
जाएँ? मगर उसके पास तो पैसे सिर्फ इतने ही थे कि गाडीवान का
किराया दे सके. मतलब, वाचमैन के वापस आने तक इंतज़ार करना
होगा. मगर गाडीवान तो तीन घंटे बाद वापस चला जाएगा, और अगर
वाचमैन भी जल्दी वापस न आया तो? तब क्या होगा? और यहाँ से सबसे नज़दीक के स्टेशन तक और टेलीग्राफ ऑफिस तक करीब सौ
किलोमीटर्स की दूरी है!
गाडीवान भीतर आया, कॉटेज पर नज़र डालकर उसने नाक से गहरी सांस ली, भट्टी के पास गया और फ्लैप खोल दिया.
“वाचमैन रात तक वापस आयेगा,” उसने उन्हें धीरज बंधाया. “भट्टी में गोभी के सूप का
बर्तन है. अगर वह लम्बे समय के लिए गया होता, तो वह अपने साथ
सूप भी ले जाता...अगर आप कहें तो,” गाडीवान ने सुझाव दिया, “अगर बात ऐसी है, तो मैं कोई ठस-दिमाग़ नहीं हूँ.
मैं आपको बिना किराए के स्टेशन तक पहुँचा दूँगा.”
“नहीं,” मम्मा ने मना कर दिया. “स्टेशन पर हमें कुछ नहीं
करना है.”
फिर से चाय की केतली गरम की
गई, सॉसेज गरम किया गया, खाया, पिया, और, जब तक मम्मा सामान संभालती रही, चुक और गेक गर्माहट
भरी भट्टी पर चढ़ गए. यहाँ बर्च की झाड़ियों, गर्म भेड़ की खाल
की और चीड़ की छिपटियों की खुशबू आ रही थी. और क्योंकि परेशान मम्मा खामोश थी,
तो चुक और गेक भी खामोश ही रहे. मगर देर तक तो खामोश नहीं रह सकते, इसलिए कोई काम न होने के कारण चुक और गेक फ़ौरन गहरी नींद में सो गए.
7
उन्होंने नहीं सुना कि
गाडीवान कैसे निकल गया और कैसे मम्मा भट्टी पर चढ़कर उनके पास लेट गई. उनकी आंख तब
खुली जब कॉटेज में पूरी तरह अन्धेरा हो गया था. सभी फ़ौरन उठे, क्योंकि पोर्च में पैरों की आवाज़ सुनाई दी, फिर दालान में गड़गड़ाहट हुई – हो सकता है, कि कोई
फावड़ा गिर गया हो. दरवाज़ा खुला, और हाथ में लालटेन लिए वाचमैन
भीतर आया, और उसके साथ बड़ा, झबरा कुत्ता.
उसने कंधे से राईफल उतारी, मारे हुए हिरन को बेंच पर फेंका
और भट्टी की तरफ लालटेन उठाकर पूछा:
“क्या यहाँ मेहमान आये हैं?”
“मैं जिओलोगिकल टीम के
प्रमुख सिर्योगिन की पत्नी हूँ,” मम्मा ने
भट्टी से नीचे उतरते हुए कहा, “और ये हैं उनके बच्चे. अगर
चाहो, तो डॉक्यूमेंट्स देख लो.”
“ये रहे डॉक्यूमेंट्स :
भट्टी पर बैठे हैं,” वाचमैन चहका और उसने
उत्तेजित चुक और गेक के चेहरों पर लालटेन की रोशनी डाली. “बिलकुल बाप पर गए हैं –
एकदम कॉपी! खासकर ये मोटू.” और उसने चुक के बदन में उंगली गड़ाई.
चुक और गेक बुरा मान गए:
चुक – क्योंकि उसे ‘मोटू’ कहा गया था, और गेक – इसलिए कि वह हमेशा चुक की अपेक्षा खुद को पापा से ज़्यादा
मिलता-जुलता समझता था.
“बताइये, आप किसलिए आई हैं?” मम्मा की
तरफ देखकर वाचमैन ने पूछा. “आपसे कहा गया था कि ना आयें.”
“कैसे ना आयें? किसे कहा गया था कि ना आयें?”
“हाँ, ऐसा ही कहा गया था कि ना आयें. मैं खुद सिर्योगिन से
टेलीग्राम लेकर स्टेशन गया था, और टेलीग्राम में साफ़-साफ़
लिखा गया था “दो सप्ताह रुक जाओ. हमारी टीम फ़ौरन तायगा जा रही है”. जब सिर्योगिन
लिखता है, “रुको” – मतलब रुकना चाहिए था, और आप अपनी मन मर्ज़ी से चल पडीं.”
“कैसा टेलीग्राम?” – मम्मा ने पलट कर पूछा. “हमें कोई टेलीग्राम नहीं
मिला. – और, जैसे सहारे की तलाश में,
उसने परेशानी से चुक और गेक की ओर देखा.
मगर उसकी नज़र से चुक और गेक
डर के मारे आंखें फाड़ कर एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे, और फ़ौरन भट्टी में और भी गहरे घुस गए.
“बच्चों,” मम्मा ने संदेह से उनकी तरफ़ देखते हुए पूछा, - “तुम लोगों को मेरी गैरहाज़िरी में कोई टेलीग्राम मिला था?”
भट्टी के ऊपर सूखी छिपटियाँ,
झाडू चरमराने लगे, मगर सवाल का जवाब नहीं
आया.
“जवाब दो, दुखदायी!” तब मम्मा ने कहा. “आप लोगों को, शायद, मेरी गैरहाज़िरी में टेलीग्राम मिला था, और आप लोगों
ने मुझे नहीं दिया?”
कुछ और पल बीते, और फिर भट्टी से एक सुर में दोस्ताना बिसूरने की आवाज़
सुनाई दी. चुक नीची आवाज़ में, एक सुर में रो रहा था, और गेक
पतली आवाज़ में आँसू बहाते हुए.
“तो, ये है, मेरा दुर्भाग्य!” मम्मा
चीखी. “यही हैं, जो मुझे कब्र में ले जायेंगे! अब आप भोंपू
बजाना बंद करो और साफ़-साफ़ बताओ कि हुआ क्या था.”
मगर, यह सुनकर कि माँ कब्र में जाने की तैयारी कर रही है, चुक और गेक और ज़ोर से बिसूरने लगे, और कुछ ही देर में, एक दूसरे को मारते हुए, और एक दूसरे पर दोष लगाते
हुए, उनहोंने अपनी दर्द भरी कहानी बता दी.
8
तो, ऐसे लोगों के साथ क्या किया जाए? डंडे से मारोगे? जेल में डाल दोगे? बेड़ियाँ पहनाकर लेबर कैम्प
भेजोगे? नहीं, मम्मा ने ऐसा कुछ भी
नहीं किया. उसने गहरी सांस ली, बेटों को भट्टी से नीचे उतरने
का हुक्म दिया, नाक पोंछ कर मुँह हाथ धोने को कहा, और खुद वाचमैन से पूछने लगी कि अब वह क्या करे.
वाचमैन ने बताया कि खोजी
टीम अर्जेंट आदेश के अनुसार अल्कराश तंग घाटी में गई है और दस दिनों से पहले नहीं
लौटेगी.
“फिर ये दस दिन हम कैसे
रहेंगे?” मम्मा ने पूछा. “हमारे
पास तो खाने-पीने का कोई सामान भी नहीं है.”
“ऐसे ही रहोगे,” वाचमैन ने जवाब दिया. “ब्रेड मैं आपको दूंगा, ये खरगोश भी दे दूँगा – छीलकर पका लीजिये. और मैं कल दो दिनों के लिए
तायगा जा रहा हूँ, मुझे जालियाँ देखना है.”
“ये तो अच्छा नहीं है,” मम्मा ने कहा. “हम अकेले कैसे रहेंगे? हम तो यहाँ कुछ भी नहीं जानते. और यहाँ जंगल, जंगली
जानवर हैं...”
“मैं दूसरी बन्दूक छोड़ जाता
हूँ,” वाचमैन ने कहा,
“शामियाने के नीचे जलाऊ लकड़ी है, पानी पहाड़ी के पीछे झरने
में. अनाज बैग में, नमक डिब्बे में. और मेरे पास – मैं आपसे
साफ़-साफ़ कहता हूँ, आपकी देखभाल करने का समय नहीं है...”
“कितना दुष्ट अंकल है!” गेक
फुसफुसाया. “चल, चुक,
हम और तुम उससे कुछ कहते हैं!”
“और लो!” चुक ने इनकार कर
दिया. “तब तो वह हमें एकदम घर के बाहर ही निकाल देगा. तू ठहर जा, पापा आयेंगे, हम उन्हें सब कुछ बता देंगे.”
“कहाँ के पापा! पापा को अभी
बहुत देर है...”
गेक मम्मा के पास गया, उसके घुटने पर बैठा और, भंवे
चढ़ाकर, कठोरता से बदतमीज़ वाचमैन के चहरे की ओर देखने लगा.
वाचमैन ने अपना फ़र का चोगा
उतार दिया और मेज़ के पास, रोशनी की ओर गया. और तब गेक ने देखा कि चोगे का कंधे से
पीठ तक का बहुत बड़ा हिस्सा कट गया था.
“भट्टी से सब्जियों का सूप
निकाल लो,” वाचमैन ने मम्मा से कहा.
“शेल्फ पर चम्मच और कटोरे हैं, बैठो और खाओ. और मैं अपना
चोगे की मरम्मत करता हूँ.”
“तुम मेज़बान हो,” मम्मा ने कहा. “तुम निकालो,
तुम ही परोसो. और चोगा मुझे दो, मैं तुमसे ज़्यादा अच्छी तरह
पैबंद लगा दूंगी.”
वाचमैन ने उसकी ओर देखा और
उसकी नज़र गेक की गंभीर नज़र से टकराई.
“एहे! देख रहा हूँ कि आप
जिद्दी हैं,” वह बुदबुदाया, मम्मा की
तरफ चोगा बढाया और शेल्फ पर चढ़ गया क्रॉकरी निकालने.
“ये कहाँ पर फट गया?” चुक ने चोगे के छेद की तरफ इशारा करते हुए पूछा.
“भालू के साथ हाथापाई हो
गई. उसने मुझे नोंच लिया,” वाचमैन ने बेमन से जवाब
दिया और सूप का बड़ा बर्तन दन् से रख दिया.
“सुन रहे हो, गेक?” जब वाचमैन बाहर दालान में
चला गया, तो चुक ने कहा. “उसने भालू से लड़ाई की है, और शायद, इसीलिये वह आज इतने गुस्से में है.”
गेक ने भी सब कुछ सुना था.
मगर उसकी मम्मा का कोई अपमान करे, यह उसे
अच्छा नहीं लगता था, हाँलाकि ये ऐसा इंसान था, जो खुद भालू से भी झगड़ा कर सकता था, उससे लड़ाई कर
सकता था.
9
सुबह, पौ फटते ही, वाचमैन ने अपनी थैली उठाई, बन्दूक ली, कुत्ते को साथ में लिया, स्की पर चढ़ा और जंगल में चला गया. अब सब कुछ खुद ही करना था. तीनों मिलकर पानी लाने गए. खड़ी चट्टान वाली पहाडी के पीछे बर्फ के बीच झरना था. पानी से घनी भाप निकल रही थी, जैसे चाय की केतली से निकलती है, मगर जब चुक ने धार के नीचे उँगली रखी, तो पता चला कि पानी तो खुद बर्फ से भी ज़्यादा ठंडा है.
फिर
वे ईंधन के लिए लकडियाँ घसीटते हुए लाये. मम्मा को रूसी भट्टी जलाना नहीं आता था, इसलिए लकडियाँ बड़ी देर तक नहीं जलीं. मगर
जब वे जल उठीं, तो लौ इतनी गरम
थी, कि सामने वाली दीवार की
खिड़की पर जमी बर्फ फ़ौरन पिघल गई. और अब कांच से जंगल की सारी किनार पेड़ों समेत
दिखाई दे रही थी जिस पर मैगपाई फुदक रहे थे, और नीले पहाड़ों की चोटियाँ भी नज़र आ रही थीं.
मम्मा
को मुर्गियां छीलना तो आता था, मगर खरगोश को
छीलने की नौबत अब तक नहीं आई थी, और उसने इस काम में इतना समय लगाया, कि उतने में बैल या गाय को भी खाल निकालकर
काटना संभव था.
गेक
को यह खाल निकालने का काम बिल्कुल पसंद नहीं आया, मगर चुक ने खुशी-खुशी मम्मा की मदद की, और इसके लिए उसे खरगोश की पूंछ इनाम में मिली, इतनी हल्की और रोएंदार कि अगर उसे भट्टी से फेंको, तो वह आराम से पैराशूट की तरह तैरते हुए
फर्श पर गिर जाती.
खाने
के बाद वे तीनों घूमने के लिए निकले.
चुक
मम्मा को मना रहा था कि वह साथ में बदूक ले ले, या कम से कम बन्दूक की गोलियां ही रख ले, मगर मम्मा ने बन्दूक नहीं ली.
बल्कि, उसने जानबूझकर बन्दूक को एक ऊंचे हुक से
टांग दिया, फिर स्टूल पर चढ़ गई, बन्दूक की गोलियों को शेल्फ के सबसे ऊपर
वाले खाने पर घुसा दिया और चुक को चेतावनी दी, कि अगर उसने एक भी कारतूस को हाथ लगाया, तो फिर कभी अच्छी ज़िंदगी की उम्मीद न रखे.
चुक
का चेहरा लाल हो गया और वह फ़ौरन वहाँ से दूर हो गया, क्योंकि उसकी जेब में एक कारतूस पहले से ही पड़ा था.
आश्चर्यजनक
थी यह सैर! वे एक के पीछे एक, संकरे रास्ते से झरने की ओर चले. उनके ऊपर ठंडा, नीला आसमान चमक रहा था; परी कथाओं के महलों और टॉवर्स की तरह, नीले पहाड़ों की नुकीली चट्टानें आसमान को
छू रही थीं, बर्फीली खामोशी में उत्सुक
मैगपाई तीखी आवाज़ में चहचहा रहे थे. देवदार की घनी शाखाओं के बीच भूरी, फुर्तीली गिलहरियाँ फुदक रही थीं. पेड़ों
के नीचे, नरम, सफ़ेद बर्फ पर अनजाने
जानवरों और पंछियों के पैरों के विचित्र निशान थे.
तायगा
में कुछ कराहा, गुनगुनाया, और टूट गया. हो सकता है कि टहनियों को
तोड़ते हुए पेड़ की चोटी से जमी हुई बर्फ का पहाड़ गिर पडा हो.
पहले, जब गेक मॉस्को में रहता था, तो उसे ऐसा लगता था, कि पूरी धरती बस मॉस्को से ही बनी है, मतलब, रास्तों से, बिल्डिंगों से, ट्रामों से और बसों से.
मगर
अब तो उसे ऐसा लग रहा था, कि सारी धरती
ऊंचे, ऊंघते हुए जंगल से बनी है.
और
वैसे, अगर गेक के ऊपर सूरज चमक
रहा होता, तो उसे यकीन हो जाता कि
पूरी धरती पर न कहीं बारिश है, ना बादल.
और
अगर वह खुश होता, तो वह सोचता, कि दुनिया में सभी अच्छे हैं, और खुश है.
10
दो दिन बीत गए, तीसरा आ गया, मगर वाचमैन जंगल
से नहीं लौटा, और उस छोटे-से, बर्फ से
ढंके घर को भय ने घेर लिया.
खासकर शाम को और रात में
बहुत डर लगता था. वे दालान, दरवाज़े पक्के बंद कर लेते
और, ताकि रोशनी से जानवरों को आकर्षित न करें, खिड़कियों को कम्बल से पूरी तरह ढांक देते, हाँलाकि
इससे बिल्कुल विपरीत करना चाहिए था, क्योंकि जानवर – इन्सान
नहीं है और वह आग से डरता है. भट्टी के पाईप के ऊपर, जैसा कि स्वाभाविक था, हवा शोर मचा रही थी, और जब बर्फीला तूफ़ान दीवारों
और खिड़कियों पर नुकीले बर्फ के टुकड़ों की मार करता, तो सबको
ऐसा लगता, मानो बाहर से कोई धकेल रहा है और खुरच रहा है.
वे भट्टी के ऊपर सोने के
लिए चढ़ गये, और वहाँ मम्मा ने उन्हें कई सारी कहानियां और परीकथाएँ सुनाईं.
आखिरकार वह ऊंघने लगी.
“चुक,” गेक ने पूछा, “अलग अलग
कहानियों और परीकथाओं में जादूगर क्यों होते हैं? और, यदि वे असली ज़िंदगी में भी होते तो क्या होता?”
“और जादूगरनियाँ और चुड़ैलें
भी होतीं, तो?”
चुक ने पूछा.
“अरे नहीं,” गेक ने तैश से हाथ हिलाए,
“चुड़ैलों की ज़रुरत नहीं है. उनका क्या फ़ायदा है? हम जादूगर
से कहते कि वह उड़कर पापा के पास जाए और उनसे कहे, कि हम कब
के आ चुके हैं.”
“और वह किस पर बैठकर उड़ता, गेक?”
“अरे, किस पर...हाथ हिलाते हुए जाता या किसी और तरह से. वो
खुद ही जानता है.”
“आजकल हाथों को हिलाने से
ठंड लगती है,” चुक ने कहा. “मेरे पास
देख, कैसे हाथमोज़े और दस्ताने हैं, मगर
फिर भी, जब मैं लट्ठा घसीट रहा था, तो
मेरी उंगलियाँ पूरी तरह जम गईं थीं.”
“नहीं, तुम बताओ, चुक, फिर भी अच्छा ही होता ना?”
“मैं नहीं
जानता,” चुक हिचकिचाया. “याद है, हमारे कम्पाऊंड में, नीचे बेसमेंट में, जहाँ मीश्का क्र्यूकव रहता है, कोई अपाहिज आदमी
रहता था. कभी वह गोल ब्रेड बेचता, कभी उसके पास हर तरह की
औरतें, बूढ़ियाँ आतीं, और वह उन्हें
भविष्य बताता, किसका जीवन सुखी होगा और किसका दुःख भरा.”
“क्या वह सही
बताता था?”
“मुझे नहीं
पता. मुझे सिर्फ इतना मालूम है कि बाद में पुलिस आई, उसे पकड़ कर ले गई और उसके
क्वार्टर से काफ़ी सारा औरों का माल ले गई.”
“अच्छा, तो, वह जादूगर नहीं, बल्कि बदमाश था. तू क्या सोचता है?”
“बेशक, बदमाश था,” चुक ने सहमति
दर्शाई. “और, मैं ये सोचता हूँ, कि सभी जादूगर बदमाश होते
हैं. अच्छा, बता, उसे काम करने की क्या
ज़रुरत है, जबकि वह हर छेद में घुस सकता है? उतना ही लो, जितने की ज़रुरत हो...अच्छा है, कि तुम सो जाओ, गेक, वैसे भी
मैं तुमसे अब बातें नहीं करूंगा.”
“क्यों?”
“क्योंकि तुम
हर बेवकूफी वाली बात करते हो, और रात को
तुम्हें उसके सपने आते हैं, तुम कुहनियों से और घुटनों से मारने
लगते हो. क्या ख़याल है, क्या कल तुमने मेरे पेट में अच्छी
तरह मुक्का मारा था? चल, मैं भी तुझ पर
मुक्के बरसाता हूँ...”
11
चौथे दिन सुबह
मम्मा को खुद ही लकडियाँ तोड़नी पडीं. खरगोश तो कब का ख़त्म हो गया था, और उसकी हड्डियां मैगपाई उठा ले गए थे. खाने के लिए
उन्होंने सिर्फ तेल और प्याज डालकर दलिया बनाया. ब्रेड भी ख़तम हो रही थी, मगर मम्मा ने आटा ढूंढा और केक बना लिया.
ऐसे खाने के
बाद गेक उदास हो गया, और मम्मा को ऐसा लगा कि
उसे बुखार हो गया है.
मम्मा ने उसे घर
में बैठने के लिए कहा और चुक को गरम कपडे पहना कर बाल्टियां, और स्लेज लेकर वे बाहर निकले,
ताकि पानी लायें, और साथ ही जंगल के किनारे से टहनियां लायें, जिससे सुबह भट्टी गरमाना आसान रहेगा.
गेक अकेला रह
गया. उसने बहुत देर इंतज़ार किया. उसे बोरियत होने लगी, वह कुछ सोचने लगा.
...और मम्मा और
चुक को देर हो गई. घर वापस लौटते हुए स्लेज उलट गई, बाल्टियां गिर गईं, और दुबारा झरने पर जाना पडा.
फिर पता चला कि जंगल के किनारे पर चुक अपने गरम दस्ताने भूल आया है, और, आधे रास्ते से वापस लौटना पडा. जब तक दस्ताने
ढूंढे, कुछ-कुछ करते रहे, शाम हो गई.
जब वे घर
पहुंचे, गेक कॉटेज में नहीं था,
पहले उन्होंने सोचा, कि गेक भेड़ की खाल वाले
ओवरकोटों के पीछे छुप गया है. मगर, वो वहाँ नहीं था.
तब चुक चालाकी
से मुस्कुराया और मम्मा से फ़ुसफ़ुसाकर बोला, कि गेक, बेशक, भट्टी के नीचे छुप गया है.
मम्मा को
गुस्सा आ गया, और उसने गेक को हुक्म दिया
कि बाहर आये. गेक ने कोई जवाब नहीं दिया.
तब चुक ने लंबा
चिमटा लिया और उसे भट्टी के नीचे घुमाने लगा, मगर भट्टी के नीचे गेक नहीं था.
मम्मा परेशान
हो गई, उसने दीवार के पास वाली
खूंटी की ओर देखा. खूंटी पर न तो गेक का छोटा फ़र कोट था, ना
ही उसकी टोपी.
मम्मा आँगन में
आई, कॉटेज का चक्कर लगाया. दालान में आई, लालटेन जलाई. अँधेरे स्टोर रूम में देखा, ईंधन वाले
शेड में देखा...
उसने गेक को
आवाज़ दी, उस पर गुस्सा किया, उसे मनाया, मगर किसी ने भी जवाब नहीं दिया. बर्फ़ के
ढेरों पर तेज़ी से अन्धेरा छा रहा था.
तब मम्मा
झोंपड़ी में लपकी, उसने दीवार से बन्दूक
खींची, कारतूस लिए, लालटेन पकड़ी और चुक
को चिल्लाकर यह हुक्म देकर कि वह अपनी जगह से हिलने की हिम्मत न करे, वह भागकर आँगन में गई.
पिछले चार
दिनों में काफ़ी पैरों के निशान कुचले गए थे.
मम्मा नहीं
जानती थी कि गेक को कहाँ ढूंढे, मगर वह
रास्ते की ओर भागी, क्योंकि उसे यकीन नहीं था कि गेक अकेला
जंगल में जाने की हिम्मत करेगा.
रास्ते पर कोई
नहीं था.
उसने बन्दूक
में कारतूस भरी और चला दी. ध्यान से सुनती रही, और बार-बार गोलियां चलाती रही.
अचानक बिलकुल
पास से जवाबी फ़ायर हुआ. कोई भागता हुआ उसकी सहायता के लिए आया.
वह भी मिलने के
लिए भागना चाहती थी, मगर उसके फ़ेल्ट बूट बर्फ
के ढेर में फंस गए. लालटेन बर्फ पर गिर गई, कांच टूट गया, और रोशनी बुझ गई.
वाचमैन के
पोर्च से चुक की तेज़ चीख़ सुनाई दी.
ये, गोलियों की आवाज़ सुनकर चुक ने फैसला कर लिया, कि जो भेड़िये गेक को खा गए हैं, उन्होंने मम्मा पर
हमला कर दिया है.
मम्मा ने लालटेन फेंक दी
और, तेज़-तेज़ सांस लेते हुए घर की ओर भागी. उसने चुक को कॉटेज के भीतर धकेला, बंदूक
कोने में फेंक दी और, डोंगे से बर्फ जैसा ठंडा पानी पी गई.
पोर्च के पास शोर होने लगा
और खटखटाने की आवाज़ आई. दरवाज़ा पूरा खुल गया. कॉटेज में भागता हुआ कुत्ता आया, और उसके पीछे भाप में लिपटा वाचमैन आया.
“क्या मुसीबत हो गई? कैसी
गोलीबारी है?” उसने बगैर अभिवादन किये
और बगैर गरम कपडे उतारे पूछा.
“बच्चा खो गया,” मम्मा ने कहा. उसकी आंखों से आंसुओं की धार बहने लगी
और वह आगे एक भी शब्द न कह सकी.
“ठहरो, रोओ नहीं.” वाचमैन गुर्राया. “कब खो गया? क्या बहुत देर हुई? थोड़ी देर पहले? ...वापस, स्मेली!” उसने चिल्लाकर कुत्ते से कहा.
“बताइये भी, या मैं वापस जाऊँ?”
“एक घंटा पहले,” मम्मा ने जवाब दिया. “हम पानी लाने गए थे. वापस आकर
देखा तो वो नहीं है. उसने गर्म कपडे पहने और कहीं...”
“खैर, एक घंटे में ज़्यादा दूर नहीं जा सकता, और गर्म कपड़ों में फ़ौरन जम नहीं जाएगा...मेरे पास, स्मेली!
ले, सूंघ! ”
वाचमैन ने खूंटी से हुड
खींचा और कुत्ते की नाक के पास गेक के गलोश सरकाए.
कुत्ते ने ध्यान से चीज़ों
को सूंघा और समझदार आंखों से मालिक की तरफ देखा.
“मेरे पीछे!” दरवाज़ा खोलकर
वाचमैन ने कहा. “चल, ढूंढ, स्मेली!”
कुत्ते ने अपनी पूंछ हिलाई
और अपनी जगह पर खड़ा रहा,
“आगे बढ़!” वाचमैन ने सख्ती
से दुहराया. “ढूंढ, स्मेली, ढूंढ!”
कुत्ते ने बेचैनी से नाक
घुमाई, एक पैर से दूसरे पैर पर
आया और हिला नहीं.
“ये क्या हरकत है?” वाचमैन को गुस्सा आ गया. और,
दुबारा कुत्ते की नाक के नीचे गेक का हुड और गलोश लाकर उसने पट्टे से उसे खीचा.
मगर स्मेली वाचमैन के पीछे
नहीं गया; वह गोल गोल घूमा, वापस मुडा और कॉटेज के दरवाजे के सामने वाले कोने की तरफ़ गया.
यहाँ वह लकड़ी के बड़े संदूक
के पास रुका, अपने रोएंदार पंजे से उसके
ढक्कन को खुरचने लगा और, मालिक की ओर मुड़कर, तीन बार जोर से और अलसाई हुई आवाज़ में भौंका.
तब वाचमैन ने बेचैन मम्मा
के हाथ में बन्दूक थमाई, और पास जाकर संदूक का
ढक्कन खोला.
संदूक में, हर तरह के चीथड़ों, भेड़ की खालों
और थैलों के ढेर पर अपने कोट से ढंका और सिर के नीचे टोपी रखे, शांत, गहरी नींद में गेक सो रहा था.
जब उसे बाहर खींच कर जगाया
गया, तो, अपनी उनींदी
आंखों को फडफडाते हुए, वह समझ ही नहीं पाया कि उसके चारों और
ये शोर और ये तूफानी खुशी किसलिए है. मम्मा उसे चूम रही थी और रो रही थी. चेक उसके
हाथ-पैर खीच रहा था, उछल रहा था और चीख रहा था:
“एय-ल्या! एय-ली-ल्या!...”
झबरा कुत्ता स्मेली, जिसका मुँह चुक ने चूमा था,
परेशानी से मुड़ा और, कुछ भी न समझ पाते हुए, हसरत से मेज़ पर पड़े हुए ब्रेड के तुकडे को देखते हुए हौले से अपनी भूरी
पूंछ हिलाने लगा.
शायद, जब मम्मा और चुक पानी लाने के लिए गए थे, तो बोरियत के कारण गेक ने शरारत करने की सोची. उसने अपना कोट और टोपी ली
और संदूक के भीतर घुस गया. उसने सोचा कि जब वे वापस आकर उसे ढूंढेंगे, तो वह संदूक के भीतर से भयानक आवाज़ में चिल्लाएगा.
मगर चूंकि मम्मा और चुक को
बहुत देर हो गई, तो संदूक में पड़े-पड़े उसकी
आंख लग गई.
वाचमैन अचानक उठा, और उसने मेज़ के पास आकर एक भारी चाभी और मुड़ा-तुड़ा
नीला लिफाफा रख दिया.
“ये लीजिये,” उसने कहा. “ये आपके लिए कमरे की और स्टोर रूम की
चाभी है और सुपरवाईज़र सिर्योगिन का ख़त है. वह अपने लोगों के साथ चार दिन बाद, नए
साल तक, यहाँ पहुँच जाएगा.”
तो, वह वहाँ गया था, ये खूसट, गंवार बूढा! कहा था, कि शिकार पर जा रहा हूँ, मगर स्की पर सवार होकर दूर स्थित अलकराश गया था.
लिफ़ाफ़ा बिना खोले, मम्मा उठी और कृतज्ञतापूर्वक बूढ़े के कंधे पर हाथ
रखा.
उसने कोई जवाब नहीं दिया और
गेक पर भुनभुनाने लगा कि उसने संदूक में स्की का डिब्बा गिरा दिया था, साथ ही मम्मा पर भी क्योंकि उसने लालटेन का कांच तोड़
दिया था. वह बड़ी देर तक जिद्दीपन से भुनभुनाता रहा, मगर अब
कोई भी इस भले बूढ़े से नहीं डर रहा था. इस पूरी शाम मम्मा गेक के पास से नहीं हिली
और ज़रा-ज़रा सी बात पर उसका हाथ पकड़ती रही, जैसे डर रही हो,
कि वह कहीं फिर से गायब न हो जाए. और उसकी इतनी फ़िक्र करती रही कि चुक बुरा मान गया, उसे अफ़सोस भी हुआ कि वह भी क्यों नहीं संदूक में घुस गया.
12
अब खुशी का माहौल छा गया.
अगली सुबह वाचमैन ने वह कमरा खोला, जहाँ उनके पापा रहते थे. उसने भट्टी खूब गरमाई और उनका सामान ले आया.
कमरा बड़ा था, खूब रोशनी आ रही थी, मगर
सब चीज़ें बेतरतीबी से बिखरी पड़ी थीं.
मम्मा फौरन कमरे को ठीक
करने में लग गई. पूरे दिन वह चीज़ों को सही जगह पर रखती रही, घिसती रही, धोती रही, साफ़ करती रही.
और जब शाम को वाचमैन ईंधन
का गट्ठा लाया, तो,
कमरे के बदले हुए रूप और सफाई को देखकर वह रुक गया और दरवाज़े के भीतर नहीं घुसा.
मगर कुत्ता स्मेली भीतर आ
गया.
वह सीधे अभी-अभी धुले फर्श
पर चलकर गेक के पास गया और उसके शरीर में अपनी ठंडी नाक गड़ाई : जैसे, कह रहा हो, बेवकूफ, तुझे मैंने ढूंढा था, और इसके लिए तू मुझे खाने के
लिए दे.
मम्मा खुश हो गई और उसने
स्मेली को सॉसेज का एक टुकड़ा दिया. तब वाचमैन भुनभुनाया और बोला कि अगर तायगा में
कुत्तों को सॉसेज खिलाया गया तो मैगपाई को हंसी आयेगी.
मम्मा ने उसके लिए भी आधा
टुकड़ा काटा. उसने कहा, “धन्यवाद” और चला गया, किसी बात पर अचरज करते हुए और सिर हिलाते हुए.
ये तय किया गया कि अगले दिन
नए साल के लिए क्रिसमस ट्री सजायेंगे.
कैसी-कैसी चीज़ों से
उन्होंने खिलौने बनाए!
उन्होंने पुरानी पत्रिकाओं
से रंगीन तस्वीरें काटीं. चिंधियों औए रुई से गुडिया और जानवर बनाए. पापा की दराज़
से पूरा टिशू पेपर निकाला और हरे-भरे फूलों का ढेर लगा दिया.
नकचढ़ा और उदास चौकीदार भी, जब ईंधन लेकर आया, तो बड़ी देर
तक दरवाज़े पर रुककर उनकी नई नई तरकीबों पर अचरज करने लगा. वह उनके लिए चाय के
पैकेट की चांदी की चमकदार पन्नी और मोम का एक बड़ा टुकड़ा लाया, जो जूतों के काम के बाद उसके पास बच गया था.
ये तो ग़ज़ब हो गया! और अब
खिलौनों की फैक्ट्री मोमबत्तियों के कारखाने में बदल गई. मोमबत्तियां बेढब, असमान थीं. मगर वे वैसी ही प्रखरता से जल रही थीं, जैसे खरीदी हुई, सजीधजी मोमबत्तियां जलती हैं.
अब सवाल था क्रिसमस ट्री
का. मम्मा ने वाचमैन से कुल्हाड़ी मांगी, मगर उसने इस पर कोई जवाब भी नहीं
दिया, और स्की पर सवार होकर जंगल में चला गया.
आधे घंटे बाद वह वापस लौटा.
ठीक है. चलो, चाहे खिलौने इतने ख़ूबसूरत न हों, चाहे चीथड़ों से सिले खरगोश बिल्लियों की तरह लग रहे हों, चाहे सारी गुड़ियों का चेहरा एक जैसा हो – सीधी नाक और तिरछी आंखों वाला,
और चाहे क्रिसमस ट्री के चमकीले कागज़ में लिपटे हुए शंकु, नाज़ुक और कांच के खिलौनों
जैसे न चमक रहे हों, मगर ऐसी क्रिसमस ट्री तो मॉस्को में
किसी के भी यहाँ नहीं थी. ये थी तायगा की असली खूबसूरती – ऊँची, घनी, सीधी और जिसकी टहनियां सिरों पर सितारों जैसी
बिखर रही थीं.
देखते-देखते इस काम में चार
दिन पलक झपकते बीत गए. और आई नए साल की पूर्व संध्या. सुबह से ही चुक और गेक को घर
भेजना मुश्किल हो गया था. नीली पड़ गई नाक लिए वे बर्फ में खड़े हो जाते, इस उम्मीद में कि अभी-अभी जंगल से पापा और उनके सभी
लोग बाहर आयेंगे.
मगर वाचमैन, जो स्नानगृह गरम कर रहा था,
उनसे बोला कि वे बेकार ही में बर्फ में सर्दी न खा जाएँ. क्योंकि पूरी टीम सिर्फ
खाने के समय तक ही वापस लौटेगी.
और, सचमुच, जैसे ही वे मेज़
पर बैठे, वाचमैन ने खिड़की खटखटाई.
किसी तरह गरम कपडे पहनकर, तीनों बाहर पोर्च में आये.
“अब देखो,” वाचमैन ने कहा, “वे अभी उस
पहाड़ की ढलान पर दिखाई देंगे, जो बड़ी चोटी के दाहिनी और है, फिर वे वापस तायगा में चले जायेंगे, और तब आधे घंटे
बाद सब घर में होंगे.”
और वैसा ही हुआ. पहले
कुत्तों की टीम बाहर उछली, जो स्लेजों से लदी हुई
गाडी खींच रही थी, और उसके पीछे तेज़ी से भागते हुए स्की-सवार
लपके. पहाड़ों की विशालता की तुलना में वे हास्यास्पद ढंग से बेहद छोटे नज़र आ रहे
थे, हालांकि यहाँ से उनके हाथ, पैर और
सिर साफ़ नज़र आ रहे थे.
वे खुली ढलान पर नज़र आये और
जंगल में गायब हो गए.
ठीक आधे घंटे बाद कुत्तों
का भौंकना, शोर,
चरमराहट, चीखें सुनाई दीं.
घर को महसूस करते हुए, भूखे कुत्ते तेज़ी से जंगल से बाहर लपके. और उनके पीछे, बिना रुके, ढलान पर नौ स्की-सवार बाहर आये. और, पोर्च में मम्मा को, चुक को और गेक को देखकर, उन्होंने भागते हुए ही स्की के डंडे उठाये और जोर से चिल्लाए: “हुर्रे!”
तब गेक अपने आप को रोक न
सका, वह पोर्च से उछला और, नमदे के जूतों से बर्फ पर दनदन करते हुए ऊंचे, बढ़ी
हुई दाढ़ी वाले आदमी के पास भागा, जो सबसे आगे भाग रहा था और
सबसे ऊँची आवाज़ में “हुर्रे!” चिल्ला रहा था.
13
दिन में साफ़ सफाई की, दाढी बनाई, नहाए.
और शाम को सबके लिए क्रिसमस
ट्री की पार्टी थी, और सबने एक साथ मिलकर नए
साल का स्वागत किया.
जब मेज़ सज गई तो लैम्प बुझा
दिए गए और मोमबत्तियां जलाई गईं. मगर चूंकि चुक और गेक को छोड़कर बाकी सब लोग बड़े
थे, तो वे , बेशक,
नहीं जानते थे कि अब क्या किया जाए.
ये तो अच्छी बात थी कि एक
आदमी के पास एकोर्डियन था और वह मस्ती भरी नृत्य की धुन बजाने लगा. तब सब उछल पड़े, और सबका मन डांस करने के लिए मचल उठा. और सबने बहुत
खूबसूरती से डांस किया, ख़ास कर तब, जब मम्मा को डांस के लिए
बुलाया गया.
मगर पापा को तो डांस करना
आता नहीं था. वे बहुत भारी बदन के, अच्छे दिल के इंसान थे, और जब वे बिना डांस के फर्श
पर चलते, अलमारी में सारे बर्तन झनझनाने लगते.
उन्होंने चुक और गेक को
घुटनों पर बिठा लिया और वे जोर जोर से सबके लिए तालियाँ बजाने लगे.
फिर डांस ख़त्म हुआ, और लोगों ने फरमाइश की कि गेक कोई गाना गाये. गेक ने
नखरे नहीं दिखाए. वह जानता था कि वह गाने गा सकता है, और उसे
इस बात पर गर्व था.
14
एकोर्डियन
वाले अंकल उसका साथ दे रहे थे, और उसने सबके
लिए गाना गाया. कौन सा – ये तो मुझे अब याद नहीं है. इतना याद है, कि ये बहुत अच्छा गाना था, क्योंकि उसे सुनते हुए सारे लोग शांत हो
गए थे. और जब गेक रुका, ताकि सांस ले
सके, तो सुनाई से रहा था कि कैसे
मोमबत्तियां चटचटा रही हैं, और खिड़की के
पीछे हवा गरज रही है.
और
जब गेक ने गाना ख़त्म कि या तो सब लोग शोर मचाने लगे, चिल्लाने लगे, गेक को हाथों
में उठाकर उसे उछालने लगे. मगर मम्मा ने फ़ौरन गेक को उनसे छुडा लिया, क्योंकि वह डर रही थी कि मस्ती में उसे
गर्म छत से न टकरा दें.
“अब
बैठिये,” घड़ी देखते हुए पापा ने
कहा. “अब सबसे महत्वपूर्ण बात होने वाली है. उन्होंने रेडियो चालू किया. सब बैठ गए
और खामोश हो गए. पहले तो खामोशी थी. मगर फिर शोर , हो-हल्ला, बीप-बीप सुनाई दी. फिर कहीं कुछ खटखट हुई, फुसफुसाहट हुई और कहीं दूर से सुरीली आवाज़
सुनाई दी.
छोटी
और बड़ी घंटियाँ इस तरह बज रही थीं:
त्रि-लील्-लीली-डॉन !
त्रि-लील्-लीली-डॉन !
चुक और गेक ने एक दूसरे को देखा. वे समझ गए कि ये
क्या है. ये दूर-बहुत दूर मॉस्को में स्पास्काया टॉवर पर क्रेमलिन की सुनहरी घड़ी घंटे बजा रही थी.
और
ये गूँज – नए साल से पहले – इस समय लोग सुन रहे थे – शहरों में, और पहाड़ों में, स्टेपी में, तायगा में, नीले समुन्दर में.
और, बेशक, बख्तरबंद ट्रेन का संजीदा कमांडर भी, वही, जो बिना थके दुश्मनों पर
हमला करने के लिए वरशिलोव की कमांड की प्रतीक्षा कर रहा था, यह धुन सुन रहा था.
और
तब सब लोग उठ गए, एक दूसरे को नए
साल की बधाइयां देने लगे और सबके लिए खुशहाली की कामना करने लगे.
खुशी
क्या है – ये हर कोई अपने-अपने तरीके से समझ रहा था. मगर सभी लोग एक साथ ये जानते
थे और समझते थे, कि ईमानदारी से
जीना चाहिए, खूब मेहनत करना चाहिए और
शिद्दत से प्यार करना चाहिए और इस महान, खुशहाल धरती की हिफाज़त करना चाहिए, जिसे सोवियत देश कहते हैं.
अर्कादी गैदार
गैदार (मूल
नाम- गोलिकोव)
अर्कादी पेत्रोविच (9
फ़रवरी 1904 - 26 अक्टूबर 1941) प्रसिद्ध रूसी लेखक जिनकी कहानियाँ सोवियत बच्चों में बहुत प्रसिद्ध
हैं.
गैदार 14 वर्ष की आयु में लाल सेना में स्वयंसेवक बनकर आए. 17 वर्ष की आयु में रेजिमेंट के कमांडर हुए. अस्वस्थता
के कारण 1924 में सेना से छुट्टी मिली और साहित्यिक कार्य
प्रारंभ किया. महान देशभक्तिपूर्ण युद्ध के समय गैदार
मोर्चों पर गए वहीं फासिस्टों ने उन्हें मार डाला.
गैदार ने किशोरोपयोगी साहित्य को बड़ी देन दी. उन्होंने अनेक उपन्यासों और
कहानियों की रचना की, जिनमें मुख्य है : स्कूल (1930), दूरवर्ती देश (1932),
सैनिक रहस्य (1935), नीला
प्याला (1936), चुक और गेक (1935), तिमूर और उसका दल (1940).
इन रचनाओं में मैत्री, साहस तथा देशभक्ति की भावनाएं
परिपूर्ण हैं जिनके कारण ये रचनाएँ अति लोकप्रिय हैं. इनके आधार पर अनेक फिल्में
भी बनी हैं. गैदार की रचनाएं अनेक भाषाओं में, जिनमें हिन्दी
भी सम्मिलित है, अनूदित हैं.