मंगलवार, 22 अक्टूबर 2024

जादूगरनी और छोटू-नाटू

  

जादूगरनी और छोटू-नाटू


(रूसी परी कथा)

आ. चारुमति रामदास

 

एक समय की बात है कि किसी गाँव में एक बूढ़ा और बुढ़िया रहते थे; उनके कोई बच्चे नहीं थे. उन्होंने सारे उपाय कर लिए, भगवान से कितनी ही प्रार्थना की, मगर बुढ़िया ने किसी बच्चे को जन्म नहीं दिया.

एक बार बूढ़ा जंगल गया मशरूम लेने; रास्ते में उसे बूढ़ा दद्दू मिला. कहने लगा: “मुझे मालूम है कि तू क्या सोच रहा है: तू, बस, बच्चों के बारे में सोचता रहता है. जा – गाँव में जा, हर घर से एक-एक अंडा इकट्ठा कर और उन अण्डों पर एक छड़ी रख दे; खुद ही देखना कि आगे क्या होगा!” बूढ़ा गाँव लौट आया; उनके गाँव में इकतालीस घर थे; वह सभी घरों में गया, हर घर से एक-एक अंडा इकट्ठा किया और इकतालीस अण्डों पर एक छड़ी रख दी. दो सप्ताह बीत गए, बूढ़ा देखता है, बुढ़िया भी देखती है, - और उन अण्डों से लडके पैदा हुए; चालीस हट्टे-कट्टे, तंदुरुस्त, मगर एक – मरियल और कमजोर रह गया!

बूढ़ा सब लड़कों के नाम रखने लगा; सबके नाम रख दिए, मगर आख़िरी बच्चे के लिए कोई नाम ही न मिला. “ठीक है,” उसने कहा, “तेरा नाम होगा “छोटू-नाटू”!

बूढ़े-बुढ़िया के घर में बच्चे बड़े होने लगे, दिनों से नहीं, बल्कि घंटों से बड़े होने लगे; बड़े हो गए और काम करने लगे, अम्मी-अब्बू की मदद करने लगे: चालीस जवान खेतों में जाते, और छोटू-नाटू घर का इंतज़ाम देखता.

घास काटने का समय आया; भाइयों ने घास काटी, ढेर बनाए, एक सप्ताह काम किया और गाँव वापस लौटे; जो भी खुदा ने भेजा वह खाया, और सो गए. बूढा उनकी ओर देखता है और कहता है : “जवान हैं – अनुभवहीन हैं! खूब खाते हैं, गहरी नींद सोते हैं, मगर काम, शायद, कुछ नहीं किया है!”

“तुम पहले देख तो लो, अब्बू!” छोटू-नाटू ने कहा.

बूढा तैयार होकर घास के मैदान में गया; देखता क्या है – चालीस ढेर बने हुए हैं: “शाबाश, बच्चों! एक हफ़्ते में कितनी घास काटी और ढेर भी बना दिए!”

अगले दिन बूढ़ा फिर से चरागाह की ओर गया, अपनी दौलत देखकर खुश होना चाहता था; आया – मगर एक ढेर नहीं था!

घर आया और कहने लगा: “आह, बच्चों! एक ढेर – गायब हो गया है”,

“कोई बात नहीं, अब्बू!” छोटू-नाटू ने जवाब दिया. “हम इस चोर को पकड़ लेंगे; मुझे सौ रूबल्स दो, और मैं ये काम कर लूंगा”.

उसने अब्बू से सौ रुबल्स लिए और लुहार के पास गया: “क्या तू मुझे ऐसी जंज़ीर बना कर दे सकता है, जो इन्सान को सिर से पैर तक बाँध सके?

“क्यों नहीं बना सकता!”

“देख, खूब मज़बूत बनाना; अगर जंजीर पक्की हुई – तो सौ रुबल्स दूंगा, और अगर टूट गयी – तो, समझो, तुम्हारी मेहनत बेकार गई!”

लुहार ने लोहे की जंजीर बनाई, छोटू-नाटू ने उसे अपने बदन के चारों ओर लपेटा, खींचा – वह टूट गयी. लुहार ने दोगुना मज़बूत जंजीर बनाई; तो, वह ठीक-ठाक रही. छोटू-नाटू ने वह जंजीर ले ली, लुहार को सौ रुबल्स दे दिए और चला घास की रखवाली करने; ढेर के नीचे बैठ गया और इंतज़ार करने लगा.

ठीक आधी रात को मौसम गर्म हो गया, समुद्र की सतह हिलने लगी, और सागर की गहराई से एक अद्भुत घोडी बाहर निकली, भाग कर पहले ढेर के पास आई और घास खाने लगी. छोटू-नाटू उछला, उसने घोड़ी को लोहे की जंज़ीर से लपेट दिया और उस पर सवार हो गया. घोड़ी उसे घुमाती रही, पहाड़ों पर, घाटियों में; नहीं, सवार को नीचे नहीं गिरा सकी! वह रुक गयी और उससे कहने लगी: “अच्छा, भले नौजवान, जब तुम मुझ पर सवारी करने में कामयाब हो गए, तो मेरे बछेडों को ले लो”.

घोड़ी नीले समुद्र के पास गयी और जोर से हिनहिनाई : तब नीला समुद्र हिलने लगा, और उसमें से घोड़ी के इकतालीस बछेड़े बाहर निकल कर किनारे पर आ गए; सभी एक से बढ़कर एक थे! पूरी दुनिया छान मारो, मगर ऐसे बछेड़े कहीं नहीं मिलेंगे! सुबह बूढ़े ने आँगन में हिनहिनाहट, टापों की आवाज़ सुनी; बात क्या है? और ये तो उसका बेटा छोटू-नाटू पूरा झुण्ड लेकर आया है.

“ अच्छा,” वह बोला, “भाईयों! अब हम सबके पास एक-एक घोड़ा है, चलो, अपने-अपने लिए दुल्हन ढूंढें”.

“चलो!”

अम्मी-अब्बू ने उन्हें दुआएं दीं, और चल पड़े भाई दूर की राह पर.

वे बड़ी देर तक चलते रहे, आखिर इतनी सारी दुल्हनें कहाँ ढूंढें? अलग-अलग शादी नहीं करना चाहते थे, ताकि किसी को बुरा न लगे; और ऐसी कौन सी माँ है, जो गर्व से कहेगी की उसकी इकतालीस बेटियाँ हैं?

नौजवान हजारों मील का सफ़र कर चुके; देखते क्या हैं, कि एक खड़ी पहाड़ी पर सफ़ेद पत्थर के कमरे हैं, पत्थर की ऊंची दीवार से घिरे हुए हैं, फाटकों के निकट लोहे के स्तम्भ हैं. गिना – इकतालीस स्तम्भ थे. उन्होंने इन स्तंभों से अपने शानदार घोड़ों को बाँध दिया और आँगन में गए. उन्हें मिली जादूगरनी: “आह तुम, बिन बुलाये मेहमानों! तुमने बिना पूछे अपने घोड़ों को बांधने की हिम्मत कैसे की?

“आह, बुढ़िया, चिल्ला क्यों रही है? पहले पानी पिला, खाना खिला, हम्माम में ले चल, बाद में सवाल पूछना.”

जादूगरनी ने उन्हें खाना खिलाया, पानी पिलाया, हम्माम में ले गयी और पूछने लगी:

“क्या नौजवानों, काम पर आये हो, या काम से दूर भाग रहे हो?

“काम पर आये हैं, दादी!”

“तुम्हें क्या चाहिए?

“अपने लिए दुल्हन ढूँढ रहे हैं”.

“मेरी लड़कियां हैं”, जादूगरनी बोली, ऊंचे कमरों में गयी और इकतालीस लड़कियों को बाहर लाई.

उन्होंने फ़ौरन सगाई कर ली, खाने-पीने लगे, घूमने लगे, शादी का जश्न मनाने लगे.

रात में छोटू-नाटू अपने घोड़े को देखने गया. शानदार घोड़े ने उसे देखा और मनुष्य की आवाज़ में बोला: “देख, मालिक! जब आप जवान बीबियों के साथ सोने जाओ, तो उन्हें अपने कपड़े पहना देना और खुद बीबियों के कपड़े पहन लेना; वर्ना हम सब ख़त्म हो जायेंगे!”

छोटू-नाटू ने अपने भाईयों से ये सब कह दिया; उन्होंने जवान बीबियों को अपने कपड़े पहना दिए, खुद बीबियों के कपडे पहन लिए और सो गए.

सब गहरी नींद में सो गए, सिर्फ छोटू-नाटू पलक नहीं झपका रहा था.

ठीक आधी रात को जादूगरनी गरजती हुई आवाज़ में बोली: “ऐ, मेरे वफादार नौकरों! बिन बुलाए मेहमानों के घमंडी सिर काट दो”.

वफादार नौकर भागते हुए आए और जादूगरनी की बेटियों के घमंडी सिर काट दिए.

छोटू-नाटू ने अपने भाइयों को जगाया और जो हुआ था, सब बताया. उन्होंने कटे हुए सिर लिए और दीवार के चारों ओर लगी लोहे की छड़ों पर रख दिए, फिर अपने घोड़े जोते और फ़ौरन वहां से निकल गए.

सुबह जादूगरनी उठी, खिड़की से देखा – दीवार के चारों ओर छड़ों से बेटियों के सिर झाँक रहे हैं; उसे बेहद गुस्सा आया, उसने अपनी अग्नि-ढाल मंगवाई, उनका पीछा करने लगी और अग्नि-ढाल से चारों ओर आग लगाने लगी. नौजवान कहाँ छुपें?

सामने नीला समुन्दर, पीछे जादूगरनी – और चारों तरफ़ आग लगा रही है, झुलसा रही है!

सभी को मरना ही था, मगर छोटू-नाटू पहले ही समझ गया था: वह अपने साथ जादूगरनी का रूमाल लाना नहीं भूला था, उसने अपने सामने उस रूमाल को हिलाया – और अचानक नीले समुन्दर में आर-पार एक पुल बन गया; शानदार नौजवान पुल पार करके दूसरी ओर चले गए. छोटू-नाटू ने दूसरी दिशा में रूमाल हिलाया – पुल गायब हो गया, जादूगरनी वापस लौट गई और भाई अपने घर चले गए.

 

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बुधवार, 16 अक्टूबर 2024

थम्ब बॉय

 थम्ब बॉय

    (रूसी परीकथा)

अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

 

एक बूढा और बुढ़िया थे. एक बार बुढ़िया पत्तागोभी काट रही थी और असावधानीवश अपनी ऊँगली काट बैठी. उसने उसे एक कपड़े के टुकड़े में लपेटा और बेंच पर रख दिया.

अचानक उसने सुना की बेंच पर कोई रो रहा है. उसने कपड़ा खोला, और देखा की उसमें ऊँगली के आकार का बच्चा पड़ा है.

बुढ़िया चकित हो गयी, घबरा गई :

“तू कौन है, रे?

“मैं तेरा बेटा हूँ, तुम्हारी छोटी ऊँगली से पैदा हुआ हूँ.”

बुढ़िया ने उसे लिया, देखती है – बच्चा छोटा – बिल्कुल छोटा है, ज़मीन से मुश्किल से दिखाई देता है. और उसने उसका नाम रखा – ‘थम्ब बॉय.

वह उनके पास बड़ा होने लगा. ऊंचाई में तो बच्चा बड़ा नहीं हुआ, मगर बुद्धि में बड़ों से भी होशियार निकला.

एक बार उसने पूछा:

“मेरे अब्बा कहाँ हैं?”  

“खेत जोतने गए हैं. ”

“मैं उनके पास जाऊंगा, मदद करूंगा.”

 “जा, बच्चे.”

वह खेत पर आया:

“नमस्ते, अब्बा!”

बूढ़े ने चारों ओर देखा:

“क्या आश्चर्य है! आवाज़ तो सुन रहा हूँ, मगर देख किसी को नहीं रहा हूँ. ये मुझसे कौन बात कर रहा है?

“मैं – तुम्हारा बेटा. तुम्हें खेत जोतने में मदद करने आया हूँ. बैठो, अब्बा, थोड़ा कुछ खा लो, थोड़ा सुस्ता लो!”

बूढा ख़ुश हो गया, खाना खाने लगा. और ‘थम्ब बॉय’ घोड़े के कान में घुस गया और लगा जोतने, और अब्बा से बोला:

“अगर कोई मुझे खरीदना चाहे, तो बेझिझक दे देना: शर्त लगाता हूँ! - ग़ायब नहीं होऊँगा, वापस घर लौट आऊँगा.”

बगल से एक अमीर आदमी जा रहा था, देखता है और अचरज करता है: घोड़ा तो चल रहा है, हल तो चिंघाड़ रहा है, मगर आदमी नहीं है!

‘ऐसा तो ना कभी देखा, ना सुना, कि घोड़ा अपने आप खेत जोत रहा हो!’

बूढ़े ने अमीर आदमी से कहा:

“क्या तू अंधा हो गया है? ये मेरा बेटा खेत जोत रहा है.”

“उसे मुझे बेच दे!”

“नहीं, नहीं बेचूंगा: हम बुड्ढे-बुढ़िया के लिए सिर्फ़ वही तो एक खुशी है, वही तो तसल्ली है, कि हमारे पास ‘थम्ब बॉय’ है.”

“बेच दे, दद्दू!”

“अच्छा, एक हज़ार रूबल दे.”

“इतना महंगा क्यों?

“खुद ही देख रहे हो: बच्चा छोटा है, मगर होशियार है, फ़ुर्तीला है, ले जाने में हल्का है!”

अमीर आदमी ने एक हज़ार रूबल दे दिए, बच्चे को ले लिया, अपनी जेब में रखा और घर की ओर चल पडा.

और ‘थम्ब बॉय’ ने जेब को कुतर कर एक छेद बना दिया और अमीर आदमी को छोड़कर भाग गया.

वह चलता रहा, चलता रहा, और अंधेरी रात हो गयी. वह रास्ते के निकट घास के पत्ते के नीचे छुप गया और उसकी आंख लग गई.

एक भूखा भेड़िया दौड़ता हुआ आया और उसे निगल गया. बैठा है ज़िंदा ‘थम्ब बॉय भेड़िये के पेट में, मगर परेशान नहीं हो रहा था!

भूरे भेड़िये का बुरा हाल था: वह भेड़ों का झुण्ड देखता है, भेड़ें चर रही हैं, चरवाहा सो रहा है, मगर जैसे ही वह भेड़ को उठाने के लिए दबे पाँव आगे बढ़ता है – ‘थम्ब बॉय पूरी ताकत से चिल्लाता है:

“चरवाहे, चरवाहे, भेड़ की रूह! तू सो रहा है – और भेड़िया भेड़ को खींच रहा है!”

चरवाहा जाग जाता है, डंडा लेकर भेड़िये के पीछे भागता है, और उसके पीछे कुत्ते भी छोड़ दिए, और कुत्ते उसे फाड़ने लगे – सिर्फ टुकड़े उड़ रहे थे! भूरा भेड़िया मुश्किल से जान बचाकर भागा!

भेड़िया पूरी तरह पस्त हो गया, भूखे मरने की नौबत आ गयी.

उसने ‘थम्ब बॉय’ से कहा:  
“बाहर निकल!”

“मुझे घर ले चल, अब्बा के पास, अम्मी के पास, तभी बाहर निकलूँगा.”  

कुछ भी किया नहीं जा सकता था. भेड़िया गाँव की ओर भागा, उछल कर सीधे बूढ़े की झोंपड़ी में पहुंचा.

‘थम्ब बॉय’ फ़ौरन भेड़िये के पेट से उछल कर बाहर आया:

“मारो भेड़िये को, मारो भूरे को!”

बूढ़े ने डंडा उठाया, बुढ़िया ने चिमटा लिया – और लग मारने भेड़िये को. उसे फ़ौरन मार डाला, चमड़ी उतारी और बेटे के लिए उसका कोट बना दिया.

 

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गुरुवार, 4 जुलाई 2024

बहन अल्योनुश्का और भाई इवानुश्का

 बहन अल्योनुश्का और भाई इवानुश्का

                              (रूसी लोककथा)

अनुवाद: आ. चारुमति रामदास  

बहुत पहले एक बूढा और बुढ़िया रहते थे, उनकी एक बेटी थी – अल्योनुश्का, और एक बेटा – इवानुश्का.

बूढा और बुढ़िया मर गए. अल्योनुश्का और इवानुश्का बिल्कुल अकेले रह गए.

अल्योनुश्का काम करने जाती और भाई को साथ ले जाती. वे लम्बे रास्ते पर जा रहे थे, चौड़े खेत से होकर, और इवानुश्का को प्यास लगी.

“बहना, अक्योनुश्का, मुझे प्यास लगी है.”

“थोड़ा ठहर, भाई, कुएं तक जायेंगे.”

चलते रहे- चलते रहे – सूरज ऊपर आ गया, कुआं दूर है, गर्मी बढ़ती जा रही है, पसीना आ रहा है. देखता है, कि गाय के खुर के आकार का पानी से भरा गढ़ा है.

“बहना, अल्योनुश्का, मैं इस गढ़े से पानी पी लेता हूँ!”

“न पी, भाई, बछड़ा बन जाएगा!”

भाई ने उसकी बात मान ली, आगे चल पड़े.

सूरज ऊंचा चढ़ चुका, कुंआ अभी दूर है, गर्मी परेशान कर रही है, पसीना आ रहा है. घोड़ों के पानी पीने का गढ़ा देखते हैं.

“बहना, अल्योनुश्का, मैं इस गढ़े से पानी पी लेता हूँ!”

“न पी, भाई, बछड़ा बन जाएगा!”

इवानुश्का ने गहरी सांस ली, फिर से आगे चल पड़े.

जा रहे हैं, जा रहे हैं, - सूरज ऊंचा, कुंआ दूर, गर्मी बढ़ती जा रही है, पसीना आ रहा है. बकरी के पानी पीने का पूरा भरा हुआ गढ़ा देखते हैं.

इवानुश्का कहता है, “ बहना, अल्योनुश्का, अब ताकत नहीं है. मैं इस गढ़े से पानी पी लेता हूँ!”

“न पी, भाई, मेमना बन जाएगा!”

इवानुश्का ने नहीं सूना और बकरी वाले गढ़े से भरपेट पानी पी लिया.

पी लिया और बन गया मेमना... अल्योनुश्का भाई को बुला रही है, मगर इवानुश्का के बदले उसके पीछे-पीछे सफ़ेद मेमना भागा चला आ रहा है.

अल्योनुश्का आंसुओं से नहा गई, घास के ढेर के पास बैठ गई – रो रही है, और मेमना उसके पास फुदक रहा है.

उसी समय पास से एक व्यापारी गुज़र रहा था:

“ऐ, ख़ूबसूरत लड़की, तू क्यों रो रही है?

अल्योनुश्का ने उसे अपने दुःख के बारे में बताया. व्यापारी ने उससे कहा:

“मुझसे शादी कर ले. मैं तुझे सोने-चांदी से मढ़ दूंगा, और मेमना हमारे साथ रहेगा. ”

अल्योनुश्का ने सोचा, सोचा, और फिर उसने व्यापारी से शादी कर ली.

वे एक साथ रहने लगे, और मेमना भी उनके साथ रहता है, अल्योनुश्का के साथ एक ही थाली में खाता है और पीता है. एक बार व्यापारी घर पर नहीं था. न जाने कहाँ से एक चुड़ैल आ गयी, अल्योनुश्का की खिड़की के नीचे खड़ी हो गयी और बड़े प्यार से उसे नदी पर नहाने के लिए बुलाने लगी. चुड़ैल अल्योनुश्का को ले आई. उस पर झपट पडी, अल्योनुश्का की गर्दन में पत्थर बाँध दिया और उसे पानी में फेंक दिया.

और खुद अल्योनुश्का में बदल गयी, उसकी पोषाक पहन ली और हवेली में आ गयी. किसी ने भी चुड़ैल को नहीं पहचाना. व्यापारी वापस लौटा – उसने भी नहीं पहचाना. सिर्फ मेमने को सब पता था. उसने सिर लटका लिया, न खाता है, न पीता है. सुबह-शाम नदी के किनारे पर जाता है और पुकारता है:

“अल्योनुश्का, मेरी बहना!...बाहर आ जा, तैर कर बाहर आ...”

चुड़ैल को इस बारे में पता चल गया और वह पति से कहने लगी – इस मेमने को काट डालो...”

व्यापारी को मेमने पर दया आ गयी, उसे मेमने की आदत हो गई थी. मगर चुड़ैल इतनी ज़िद कर रही थी, इतना मना रही थी, - कुछ नहीं किया जा सकता था, व्यापारी सहमत हो गया:

“अरे, काट उसे...”

चुड़ैल ने अलाव जलाने, लोहे की हांडियां गरम करने और चाकू तेज़ करने का हुक्म दिया.

मेमने ने देखा कि अब उसका अंत निकट है, और वह अपने मुंहबोले बाप से बोला:

“मरने से पहले मुझे एक बार नदी पर जाने दो, जी भर के पानी पीने दो, अपनी आँतों को धोने दो.”

“अच्छा, जा!”

मेमना नदी पर भागा, किनारे पर खडा रहा और दयनीय आवाज़ में चिल्लाने लगा:

“अल्योनुश्का, मेरी बहना!

तैर कर बाहर आ, बाहर किनारे पर आ जा.

अलाव ऊंचा दहक रहा है,

लोहे की हांडियाँ उबल रही हैं,

चाकू हो रहे हैं तेज़,

काटना चाहते हैं मुझे!”

नदी के भीतर से अल्योनुश्का ने उसे जवाब दिया:

“आह, भाई मेरे, इवानुश्का!

भारी पत्थर खींच रहा है मुझे तल की ओर,

उलझी है पैरों में रेशम जैसी घास,

सीने पर पड़े हैं पीली बालू के ढेर.”

इधर चुड़ैल मेमने को ढूँढती है, उसे न पाकर नौकर को भेजती है:

“जाकर मेमने को ढूँढ, उसे मेरे पास ला. नौकर नदी पर गया और देखता है : किनारे पर मेमना भाग रहा है और दयनीय आवाज़ में पुकार रहा है:

 “अल्योनुश्का, मेरी बहना!

तैर कर बाहर आ, बाहर किनारे पर आ जा.

अलाव ऊंचा दहक रहा है,

लोहे की हांडियाँ उबल रही हैं,

चाकू हो रहे हैं तेज़,

काटना चाहते हैं मुझे!”

और नदी के भीतर से जवाब आता है:

“आह, भाई मेरे, इवानुश्का!

भारी पत्थर खींच रहा है मुझे तल की ओर,

उलझी है पैरों में रेशम जैसी घास,

सीने पर पड़े हैं पीली बालू के ढेर.”

नौकर भागकर घर जाता है और नदी के किनारे पर जो सुना था वह सब व्यापारी को बताता है. व्यापारी ने लोगों को इकट्ठा किया, नदी पर गए, रेशमी जालियां नदी में फेंकी और अल्योनुश्का को खींच कर किनारे पर ले आये. गर्दन से पत्थर हटाया, उसे झरने के पानी से नहलाया, सुन्दर पोषाक पहनाई. अल्योनुश्का में जान आ गयी और वह पहले से भी ज़्यादा सुन्दर हो गयी.

और मेमने ने तीन बार सिर के बल कुलांटे मारी और फिर से बालक इवानुश्का में बदल गया.

चुड़ैल को घोड़े की पूंछ से बांधकर खेत में छोड़ दिया गया.   

 

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