बुधवार, 16 अक्टूबर 2024

थम्ब बॉय

 थम्ब बॉय

    (रूसी परीकथा)

अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

 

एक बूढा और बुढ़िया थे. एक बार बुढ़िया पत्तागोभी काट रही थी और असावधानीवश अपनी ऊँगली काट बैठी. उसने उसे एक कपड़े के टुकड़े में लपेटा और बेंच पर रख दिया.

अचानक उसने सुना की बेंच पर कोई रो रहा है. उसने कपड़ा खोला, और देखा की उसमें ऊँगली के आकार का बच्चा पड़ा है.

बुढ़िया चकित हो गयी, घबरा गई :

“तू कौन है, रे?

“मैं तेरा बेटा हूँ, तुम्हारी छोटी ऊँगली से पैदा हुआ हूँ.”

बुढ़िया ने उसे लिया, देखती है – बच्चा छोटा – बिल्कुल छोटा है, ज़मीन से मुश्किल से दिखाई देता है. और उसने उसका नाम रखा – ‘थम्ब बॉय.

वह उनके पास बड़ा होने लगा. ऊंचाई में तो बच्चा बड़ा नहीं हुआ, मगर बुद्धि में बड़ों से भी होशियार निकला.

एक बार उसने पूछा:

“मेरे अब्बा कहाँ हैं?”  

“खेत जोतने गए हैं. ”

“मैं उनके पास जाऊंगा, मदद करूंगा.”

 “जा, बच्चे.”

वह खेत पर आया:

“नमस्ते, अब्बा!”

बूढ़े ने चारों ओर देखा:

“क्या आश्चर्य है! आवाज़ तो सुन रहा हूँ, मगर देख किसी को नहीं रहा हूँ. ये मुझसे कौन बात कर रहा है?

“मैं – तुम्हारा बेटा. तुम्हें खेत जोतने में मदद करने आया हूँ. बैठो, अब्बा, थोड़ा कुछ खा लो, थोड़ा सुस्ता लो!”

बूढा ख़ुश हो गया, खाना खाने लगा. और ‘थम्ब बॉय’ घोड़े के कान में घुस गया और लगा जोतने, और अब्बा से बोला:

“अगर कोई मुझे खरीदना चाहे, तो बेझिझक दे देना: शर्त लगाता हूँ! - ग़ायब नहीं होऊँगा, वापस घर लौट आऊँगा.”

बगल से एक अमीर आदमी जा रहा था, देखता है और अचरज करता है: घोड़ा तो चल रहा है, हल तो चिंघाड़ रहा है, मगर आदमी नहीं है!

‘ऐसा तो ना कभी देखा, ना सुना, कि घोड़ा अपने आप खेत जोत रहा हो!’

बूढ़े ने अमीर आदमी से कहा:

“क्या तू अंधा हो गया है? ये मेरा बेटा खेत जोत रहा है.”

“उसे मुझे बेच दे!”

“नहीं, नहीं बेचूंगा: हम बुड्ढे-बुढ़िया के लिए सिर्फ़ वही तो एक खुशी है, वही तो तसल्ली है, कि हमारे पास ‘थम्ब बॉय’ है.”

“बेच दे, दद्दू!”

“अच्छा, एक हज़ार रूबल दे.”

“इतना महंगा क्यों?

“खुद ही देख रहे हो: बच्चा छोटा है, मगर होशियार है, फ़ुर्तीला है, ले जाने में हल्का है!”

अमीर आदमी ने एक हज़ार रूबल दे दिए, बच्चे को ले लिया, अपनी जेब में रखा और घर की ओर चल पडा.

और ‘थम्ब बॉय’ ने जेब को कुतर कर एक छेद बना दिया और अमीर आदमी को छोड़कर भाग गया.

वह चलता रहा, चलता रहा, और अंधेरी रात हो गयी. वह रास्ते के निकट घास के पत्ते के नीचे छुप गया और उसकी आंख लग गई.

एक भूखा भेड़िया दौड़ता हुआ आया और उसे निगल गया. बैठा है ज़िंदा ‘थम्ब बॉय भेड़िये के पेट में, मगर परेशान नहीं हो रहा था!

भूरे भेड़िये का बुरा हाल था: वह भेड़ों का झुण्ड देखता है, भेड़ें चर रही हैं, चरवाहा सो रहा है, मगर जैसे ही वह भेड़ को उठाने के लिए दबे पाँव आगे बढ़ता है – ‘थम्ब बॉय पूरी ताकत से चिल्लाता है:

“चरवाहे, चरवाहे, भेड़ की रूह! तू सो रहा है – और भेड़िया भेड़ को खींच रहा है!”

चरवाहा जाग जाता है, डंडा लेकर भेड़िये के पीछे भागता है, और उसके पीछे कुत्ते भी छोड़ दिए, और कुत्ते उसे फाड़ने लगे – सिर्फ टुकड़े उड़ रहे थे! भूरा भेड़िया मुश्किल से जान बचाकर भागा!

भेड़िया पूरी तरह पस्त हो गया, भूखे मरने की नौबत आ गयी.

उसने ‘थम्ब बॉय’ से कहा:  
“बाहर निकल!”

“मुझे घर ले चल, अब्बा के पास, अम्मी के पास, तभी बाहर निकलूँगा.”  

कुछ भी किया नहीं जा सकता था. भेड़िया गाँव की ओर भागा, उछल कर सीधे बूढ़े की झोंपड़ी में पहुंचा.

‘थम्ब बॉय’ फ़ौरन भेड़िये के पेट से उछल कर बाहर आया:

“मारो भेड़िये को, मारो भूरे को!”

बूढ़े ने डंडा उठाया, बुढ़िया ने चिमटा लिया – और लग मारने भेड़िये को. उसे फ़ौरन मार डाला, चमड़ी उतारी और बेटे के लिए उसका कोट बना दिया.

 

****

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.