पिंग-पिंग
लेखिका: मारिया
किसेल्योवा
अनुवाद: आ. चारुमति
रामदास
ठण्डे-ठण्डे अन्टार्क्टिका में, जो
नीली-नीली हिम-शिलाओं से और सफ़ेद-सफ़ेद बर्फ से ढँका था, जवान मादा- पेन्ग्विन ने
अण्डा दिया.
“आख़िरकार हो ही गया,” पेन्ग्विन ने उत्तेजना
से कहा, वह काफ़ी समय से इंतज़ार कर रहा था, कि ये कब होता है. “बधाई हो, तुझको.”
उसने ख़ुशी से अपने पंख फ़ड़फडाए और छोटी सी पूँछ हिलाई.
इसके बाद मादा-पेन्ग्विन ने बहुत संभाल
कर, जिससे कि वह बर्फ़ पर न गिर जाए, अण्डा अपने पति को दिया, और उसने उसे पेट के
नीचे बनी गरम तह में अपनी हथेलियों पर ले लिया. अब बीबी से बिदा लेने का समय हो
गया था, क्योंकि वो अन्य मादा-पेन्ग्विनों के साथ महासागर में जाने वाली थी.
“होशियार रहना,” पेन्ग्विन ने कहा, “याद रखना कि
मैं तेरी राह देख रहा हूँ.”
उसे आराम करना होगा, तन्दुरुस्त होना होगा
और अपने पहले बच्चे के लिए मछलियाँ इकट्ठा करना होगा, जो तब तक पैदा हो चुका होगा.
“तुम भी तन्दुरुस्त रहना, अपनी हिफ़ाज़त करना.”
“मैं तेरा बहुत इंतज़ार करूंगा,” पेन्ग्विन ने
फिर से कहा और झुककर बीबी का अभिवादन किया.
वह भी उसके सामने झुकी : आख़िर वे उतनी
जल्दी तो नहीं न मिलने वाले थे.
मादा-पेन्ग्विनों ने अपने पतियों को
पिल्ले सेने के लिए किनारे पर छोड़ दिया और कन्धे से कन्धा मिलाकर जल्दी-जल्दी
महासागर की ओर चल पड़ीं.
जब पेन्ग्विन अकेले रह गए तो किनारा कितना
ख़ाली-ख़ाली लगने लगा! वे बहुत सारे थे, मगर फिर भी उन्हें ख़ालीपन महसूस हो रहा था.
बर्फबारी तेज़ हो गई, और पेन्ग्विन एक दूसरे से चिपक गए जिससे कि कुछ गर्माहट महसूस
कर सकें और सो जाएँ. जब वे जागे तो उन्होंने एक दूसरे का हाल-चाल पूछा, इधर-उधर की
बातें कीं, एक ही जगह पर झुण्ड बनाए रहे. नाश्ता करना अच्छा होता, मगर इसके लिए
ठण्डे पानी में मछली पकड़ना होगा, मगर, फिर अण्डे का क्या? जम जाएगा, मर
जाएगा...नहीं, बिना नाश्ते के और खाने के ही रहना होगा जब तक पिल्ला बाहर नहीं आ जाता
और कुछ ताक़तवर नहीं हो जाता.
एक लम्बा महीना बीता, उसके बाद दूसरा...
“क्या तुम्हारा हुआ?” पेन्ग्विन ने अपने पड़ोसी
से पूछा, “मेरा भी अभी नहीं हुआ.”
और एक दिन...
“हो गया नन्हा-पिल्ला!” एक चीख़ सुनाई दी. “हो
गया नन्हा-पेन्ग्विन!”
पूरा झुण्ड उत्तेजित हो गया, मतलब...समय
हो गया, समय आ गया.
“और एक!”
“और!”
‘अब मेरा वाला भी जल्दी ही आएगा,’ पेन्ग्विन ने
सोचा. ‘शायद बेटा होगा.’
और फिर अचानक ‘टुक्-टुक्’ - अण्डे के आवरण
के भीतर हौले से हुई ’टुक्-टुक्!’ – छोटी सी नाक बाहर आई. अब अण्डा दो हिस्सों में
टूट गया और पेन्ग्विन की हथेलियों में नन्हा पिल्ला दिखाई दिया.
“बेटा! स्वागत है, बेटा!” नौजवान पिता ने
प्रसन्नता से कहा.
“ये तुमने मुझसे कहा?” पेन्ग्विन-पिल्ले ने
पूछा.
“...तुझसे. तू मेरा बेटा है, मेरा पहला बच्चा.
मगर, अपनी नाक अन्दर कर, वर्ना जम जाएगा.”
“अभ्भी. मुझे, बस, तुमसे कुछ कहना है.”
“बोल.”
“मुझे भूख लगी है. तूने खाना खा लिया?”
“आह, हाँ. मैंने खा लिया...सही में, बहुत पहले खा
लिया. मगर तुझे मैं अभ्भी खिलाता हूँ.”
और पापा-पेन्ग्विन ने अपनी चोंच से पिल्ले
को पिलाया दूध, जिसे उसने कब से उसके लिए संभाल के रखा था.
“मुझे भूख लगी है,” पिल्ले ने थोड़ी देर में फिर
कहा. और पापा ने उसे फिर से खिलाया.
“कितना अच्छा है तू, कितना गर्माहट भरा! मैं
तुझसे प्यार करता हूँ!”
“मैं भी तुझसे प्यार करता हूँ,” पेन्ग्विन ने
जवाब दिया.
दूसरे दिन पिल्ले ने कहा:
“और तू अकेला क्यों है?”
“मैं अकेला नहीं हूँ, तू क्या कह रहा है, क्या
कह रहा है! हम अकेले नहीं हैं, हमारे पास मम्मी है. वो महासागर में गई है, जल्दी
ही लौट आएगी.”
“क्या वो भी ऐसी ही अच्छी और गर्माहट भरी है?”
“वो और भी ज़्यादा अच्छी और ज़्यादा गर्माहट वाली
है.”
“मैं उससे भी प्यार करता हूँ.”
पिता ने बेटे का नाम रखा ‘पिंग-पिंग’.
पिंग-पिंग हर चीज़ जानने के लिए उत्सुक था, वो अक्सर अपनी नाक बर्फ में बाहर
निकालता, वो ये जानना चाहता था कि चारों तरफ़ क्या है, पापा की आरामदेह हथेलियों से
आगे क्या-क्या है. पिता, हिलते-डुलते, धीरे-धीरे - जिससे कि पिल्ला गिर न जाए -
किनारे पर टहलते, पड़ोसियों से बतियाते, मगर बात घूम फिर कर वहीं आ जाती : जल्दी ही
मादा-पेन्ग्विनें लौट आएंगी अपने पतियों के पास, अपने पिल्लों के पास, जिन्हें
उन्होंने अब तक देखा नहीं है. काश, जल्दी...जल्दी आ जातीं...
पिंग-पिंग कुछ बड़ा हो गया और बाहर घूमने
लगा. वह अपने ही जैसे नन्हे-नन्हे पेन्ग्विनों के साथ खेलता, और जब हथेलियाँ जमने
लगतीं तो फिर से पिता की रोएँदार जेब में घुस जाता. मगर, मम्मा कब आएगी?
और, ये लो! आख़िरकार पूरा किनारा सजीव हो
उठा:
“तैर रही हैं, तैर रही हैं! वापस लौट रही हैं मादा-पेन्ग्विनें!”
पापा-पेन्ग्विन बहुत चिंतित थे. उन्हें
याद आ गया कि वे काफ़ी दुबले हो गए हैं, पीले पड़ गए हैं: ठीक ही तो है, लम्बे समय
से उन्होंने कुछ भी तो नहीं खाया था, सिवाय बर्फ के. वे जल्दी-जल्दी अपने आप को
ठीक-ठाक करने लगे: बीबी के सामने ऐसी दयनीय हालत में जाना अच्छा नहीं लगता!
तैर रही हैं, तैर रही हैं! बड़ा भूरा झुण्ड
किनारे की ओर आ रहा है. ये रहीं पहली पेन्ग्विनें, उछल कर कड़ी बर्फ पर कूदीं. उनका
ज़ोरदार ध्वनि से, झुक-झुक कर स्वागत किया गया.
“स्वागत
है, स्वागत है! शुभागमन!”
वे जो अपनी अपनी पेंग्विनों से मिले, ख़ुशी
से गुटुर-गूँ कर रहे थे, उन्हें पिल्ले दिखा रहे थे. बाकी के उत्सुकता से गर्दनें
ऊँची कर रहे थे : कहाँ है, कहाँ? आख़िरकार सारे परिवार इकट्ठे हो गए. किनारा ख़ाली
हो गया, और सिर्फ पिंग-पिंग के पिता निराशा से दूर पर निगाहें लगाए थे.
“अरे,
कहाँ है मम्मा?” पिंग-पिंग लगातार पूछे जा रहा था. “क्या हुआ?”
पेन्ग्विन को मालूम नहीं था, मगर कुछ तो
हुआ था. वह दुख में पूरी तरह डूब गया और उसने ध्यान ही नहीं दिया कि पिल्ला एक ओर
को जाकर बड़ी हिम-शिला के पीछे छिप गया है.
और पिंग-पिंग चलता रहा और पूछता रहा कि
क्या किसीने उसकी माँ को देखा है? वो कहाँ है? अचानक एक विशाल समुद्री-पक्षी उसके
ऊपर मंडराने लगा. मगर पिंग-पिंग चलता ही रहा.
“तू
मुझसे डरता क्यों नहीं है?” उस पक्षी ने पूछा. “मैं तो तुझे खा जाऊँगा.”
“मुझे
कोई फ़रक नहीं पड़ता. मेरी मम्मा खो गई है.”
“मगर,
देख, मेरे पंजे कैसे नुकीले हैं!”
“पंजे
तो पंजे. मगर, मैं तुझे आगाह किए देता हूँ : मैं सबसे गंदे स्वाद वाला हूँ.”
“क्यों?”
“क्योंकि
मैं पूरे समय रोता रहता हूँ. मेरी मम्मा खो गई है.”
समुद्री-पक्षी ने मंडराना बन्द कर दिया और
पिंग-पिंग के पास आकर बैठ गया.
“हूँ,
तू अजीब पिल्ला-पेन्ग्विन है. हो सकता है कि तू स्वादिष्ट ना हो. तेरी मम्मा क्या
महासागर में खो गई है? तो, थोड़ा रुक, मैं देखकर आता हूँ.”
और वह फिर से ऊपर उठा और किनारे से दूर
उड़ने लगा. फिर वो वापस आया और बोला:
“वो
जम कर बर्फ़ की शिला से चिपक गई है. उसकी ताक़त ख़त्म हो गई और वह आगे तैर नहीं सकी.
उस शिला पर कुछ आराम करने के लिए रुकी, और तभी पाला गिरने लगा और उसे जमा दिया.”
“मुझे
मम्मा के पास जाना है!” पिंग-पिंग चीख़ा. “मैं उसे बचाऊँगा!”
समुद्री-पक्षी ने यक़ीन दिलाया कि ये
नामुमकिन है, अब कोई भी उसकी मदद नहीं कर सकता.”
“मैं
बचाऊँगा, मैं बचाऊँगा! मुझे मम्मा के पास ले चलो!”
समुद्री-पक्षी ने पिंग-पिंग को अपने बड़े-बड़े
पंजों में उठाया और ले चला.
“और,
तू कर क्या सकता है?” जब उसने पिल्ले-पेन्ग्विन को हिम शिला पर उतारा तो पूछा.
पिंग-पिंग रोने लगा और मम्मा को घर चलने
के लिए कहने लगा. उसके आँसू कड़ी बर्फ पर गिर रहे थे, और वह पिघल गई, और माद-पेन्ग्विन
के जमे हुए पंजे आज़ाद हो गए. उसने आँखें खोलीं.
“ये
मेरा बेटा है?”
“बस,
तू ऐसा न सोचना, कि मैं इतना रोतला हूँ: आँसुओं से बर्फ़ीली-चट्टान को पिघला दिया.”
“तूने
अपने प्यार से बर्फीली-शिला को पिघला दिया, मेरे बच्चे. मगर अभी तू बहुत छोटा है
और तुझे तो तैरना भी नहीं आता. तू यहाँ आया कैसे और अब वापस कैसे जाएगा?”
“मुझे
तो समुद्री-पक्षी लाया है. वो ही वापस भी ले जाएगा. और पिंग-पिंग जल्दी ही किनारे
पर लौट आया, उसके पीछे-पीछे उसकी मम्मा तैर रही थी. पापा-पेन्ग्विन की ख़ुशी की कोई
सीमा ही नहीं थी. मगर उनकी मुलाक़ात बस थोड़ी ही देर के लिए थी. अब पेन्ग्विनों को समुद्र
में जाना था शिकार के लिए. और मादा-पेन्ग्विनें और पिल्ले-पेन्ग्विन उनका इंतज़ार
करने के लिए किनारे पर रह गए.
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