जासूस गाद्यूकिन की मौत
लेखक: विक्टर
द्रागून्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति
रामदास
ऐसा लगता है कि जब तक मैं बीमार रहा, बाहर
मौसम काफ़ी गरम हो गया और हमारी बसंत की छुट्टियों में बस दो-तीन दिन ही बचे थे. जब
मैं स्कूल आया, तो सब लोग चिल्ला उठे:
“डेनिस्का आ गया, हुर्रे!”
मैं भी बहुत ख़ुश था कि वापस आ गया हूँ, और
सारे लड़के अपनी अपनी जगह पे बैठे हैं – कात्या तोचीलिना, और मीश्का, और वालेर्का,
- फ्लॉवरपॉट्स में फूल हैं, और ब्लैक-बोर्ड भी वैसा ही चमचमाता हुआ है, और रईसा
इवानोव्ना वैसी ही हँसमुख है, और हर चीज़, हर चीज़ वैसी ही है जैसी हमेशा होती है.
इन्टरवल में मैं लड़कों के साथ घूमता रहा, हँसता रहा, मगर फिर मीश्का ने बड़ी अकड़
दिखाते हुए कहा:
“अपनी बसंत की कॉन्सर्ट होने वाली है!”
मैंने कहा:
“अच्छा?”
मीश्का ने कहा:
“सही में! हम स्टेज पर प्रोग्राम पेश करेंगे. और
चौथी क्लास के लड़के हमें अपना ’शो’ दिखाएँगे. उन्होंने ख़ुद ही लिखा है. बड़ा मज़ेदार
है!...”
मैंने कहा:
“मीश्का, क्या तू कुछ कर रहा है?”
“थोड़ा बड़ा हो जा – सब पता चल जाएगा.”
मैं बड़ी बेसब्री से कॉन्सर्ट का इंतज़ार
करने लगा. घर पे मैंने मम्मा को ये सब बताया, और फिर कहा:
“मैं भी कुछ करना चाहता हूँ...”
मम्मा मुस्कुराई और बोली:
“तू क्या कर सकता है?”
मैंने कहा:
“क्या, मम्मा! क्या तुम्हें मालूम नहीं
है? मैं ज़ोर से गा सकता हूँ, मैं गाता तो अच्छा ही हूँ ना? तुम ये मत देखो कि मुझे
म्यूज़िक में ‘तीन’ नम्बर मिले हैं. मगर, फिर भी, मैं अच्छा ही गाता हूँ.”
मम्मा ने अलमारी खोली और वहाँ से, कहीं ‘ड्रेसों’
के पीछे से कहा:
“तू अगली बार गा लेना. अभी तो बीमारी से उठा है
ना...इस बार तू सिर्फ दर्शक बनना.” वो अलमारी के पीछे से बाहर आई, “कितना अच्छा
लगता है – दर्शक बनना. बैठे हो, देख रहे हो कि आर्टिस्ट कैसे अपना-अपना ‘रोल’ करते
हैं...बहुत अच्छा होता है! और अगली बार तू ‘आर्टिस्ट’ बनना, और वो जो पहले ही
कार्यक्रम पेश कर चुके हैं, वो बनेंगे दर्शक. ठीक है?”
मैंने कहा:
“ठीक है. तो मैं दर्शक बनूँगा.”
और दूसरे दिन मैं कॉन्सर्ट देखने गया.
मम्मा मेरे साथ नहीं आ सकी क्योंकि उसकी इन्स्टीट्यूट में ड्यूटी लगी थी, - पापा
युराल की किसी फैक्टरी में गए हुए थे, और मैं अकेला ही कॉन्सर्ट देखने गया.
हमारे बड़े हॉल में खूब सारी कुर्सियाँ लगी
हुई थीं और एक स्टेज भी बनाया गया था, और उस पर परदा लटक रहा था. और नीचे पियानो
के पीछे बैठे थे बोरिस सेर्गेयेविच. हम सब बैठ गए और बगल वाली साईड पर हमारी क्लास
की दादियाँ-नानियाँ खड़ी हो गईं. इस बीच मैं ऍपल खाता रहा.
अचानक परदा खुला और हमारी लीडर ल्यूस्या
प्रकट हुई. उसने ऊँची आवाज़ में कहा, मानो रेडियो पर कह रही हो:
“तो, हमारी बसंत-कॉन्सर्ट की शुरूआत करते हैं!
अब आपके सामने पहली क्लास के ‘सी’ सेक्शन का विद्यार्थी मीशा स्लोनोव अपनी ख़ुद की
कविता पेश करेगा! बुलाते हैं मीशा स्लोनोव को!”
अब सब लोग तालियाँ बजाने लगे और मीश्का
स्टेज पर आया. वो बड़ी बहादुरी से निकला, स्टेज के बीचोंबीच आया और रुक गया. वहाँ
वो कुछ देर खड़ा रहा और अपने हाथ पीठ के पीछे कर लिए. फिर कुछ देर खड़ा रहा. फिर
उसने बायाँ पैर आगे किया. सारे लड़के ख़ामोश बैठे थे और मीश्का को देख रहे थे. मगर,
अब उसने बायाँ पैर हटा लिया और दायाँ पैर आगे कर दिया. फिर वह अचानक कुछ खाँसने
लगा:
“अखँ! अखँ! ... ख्म...!!”
मैंने कहा:
“ये क्या, मीश्का, क्या गले में कुछ अटक गया
क्या?”
उसने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे अजनबी की ओर
देख रहा हो. फिर उसने छत की ओर आँखें उठाईं और कहा:
“कविता.
गुज़र जाएँगे साल, आ
जाएगा बुढ़ापा!
छा जाएँगी चेहरे पर झुर्रियाँ!
देता हूँ शुभ
कामनाएँ!
कि आगे भी करें सब
खूब तरक्कियाँ!”
...बस!”
और मीश्का ने झुक कर अभिवादन किया और स्टेज से उतर गया. सबने उसके लिए
ज़ोरदार तालियाँ बजाईं, क्योंकि, पहली बात तो ये थी कि कविता बहुत अच्छी थी, और
दूसरी बात ये कि, ज़रा सोचिए: मीश्का ने ख़ुद लिखी थी! शाबाश!
अब फिर से ल्यूस्या बाहर आई और बोली:
“अब आपके सामने आते हैं पहली ‘सी’ के विद्यार्थी
वालेरी तगीलोव!”
सबने
और ज़्यादा ज़ोर से तालियाँ बजाईं, और ल्यूस्या ने बिल्कुल बीचोंबीच में एक कुर्सी
रख दी. अब बाहर निकला हमारा वालेर्का अपने छोटे से एकॉर्डियन के साथ और कुर्सी पर
बैठ गया, और ऍकॉर्डियन का खोल अपने पैरों के नीचे रख लिया जिससे कि वे हवा में न
लटकते रहें. वो बैठ गया और वाल्ट्ज़ - ‘अमूर की लहरें’ बजाने लगा. सब सुन रहे थे,
मैं भी सुन रहा था और पूरे समय सोच रहा था: ‘ये वालेर्का इतनी तेज़ी से ऊँगलियाँ
कैसे चला रहा है?’ मैं भी हवा में उतनी ही तेज़ी से अपनी ऊँगलियाँ चलाने लगा, मगर
वालेर्का के साथ-साथ नहीं चला पा रहा था. और बगल में, किनारे वाली दीवार के पास
वालेर्का की दादी खड़ी थी, और जब वालेर्का बजा रहा था तो वो थोड़ा-थोड़ा डाइरेक्शन
करती जा रही थी. वो बहुत अच्छा बजा रहा था, ज़ोर से, मुझे बहुत अच्छा लगा. मगर
अचानक एक जगह पे वो चूक गया. उसकी ऊँगलियाँ ठहर गईं. वालेर्का थोड़ा-सा लाल हो गया,
मगर उसने फिर से ऊँगलियाँ हिलाईं, जैसे कि उन्हें भागने दे रहा हो, मगर ऊँगलियाँ
किसी एक जगह पर आकर फिर से ठहर गईं, जैसे लड़खड़ा गईं हों. वालेर्का पूरा लाल हो गया
और फिर से ऊँगलियाँ चलाने लगा, मगर अब ऊँगलियाँ डर-डर के चल रही थीं, जैसे उन्हें
मालूम था कि वे फिर से लड़खड़ा जाएँगी, और मैं दुष्टता के मारे ठहाका लगाने ही वाला
था, मगर तभी, उसी जगह पे, जहाँ वालेर्का दो बार लड़खड़ाया था, उसकी दादी ने अचानक
गर्दन बाहर निकाली, पूरी आगे को झुकी और गाने लगी:
...चमचमाती हैं
लहरें,
चमचमाती हैं
लहरें...
और वालेर्का ने एकदम पकड़ ले ली, और उसकी
ऊँगलियाँ मानो किसी बुरी सीढ़ी से कूद कर आगे की ओर भागने लगीं, आगे, आगे, तेज़ी से,
सफ़ाई से, बिल्कुल अंत तक. उसके लिए तालियाँ बजती रहीं, बजती रहीं!
इसके बाद स्टेज पर उछलते हुए आए पहली “ए”
की छह लड़कियाँ और पहली “बी” के छह लड़के. लड़कियों के बालों में थे रंगबिरंगे फीते,
लड़कों के बालों में कुछ भी नहीं था. वे युक्रेन का डान्स करने लगे. फिर बोरिस
सेर्गेयेविच ने ज़ोर से पियानो की पट्टियों पर मारा और बजाना ख़त्म किया.
मगर लड़के और लड़कियाँ अपने आप स्टेज पर पैर
पटकते रहे, बिना म्यूज़िक के, जो जैसे चाहे वैसे, और यह बहुत अच्छा लग रहा था, मैं
तो बस स्टेज पर कूद कर उनके पास जाने को तैयार था, मगर वे अचानक भाग गए. ल्यूस्या
बाहर निकली और बोली:
”अब पन्द्रह मिनट का इन्टरवल है. इन्टरवल
के बाद चौथी क्लास के विद्यार्थी एक नाटक पेश करेंगे, जिसे उनकी क्लास ने ख़ुद लिखा
है, नाटक का शीर्षक है ‘ कुत्ते को – कुत्ते की मौत' ”.
सब लोग कुर्सियाँ खिसका-खिसकाकर कहीं-कहीं
चले गए, और मैंने जेब से अपना ऍपल निकाला और उसे खाने लगा.
हमारी ऑक्टोबर-ग्रुप की लीडर ल्यूस्या
वहीं, पास ही में खड़ी थी.
अचानक उसके पास एक काफ़ी ऊँची, लाल बालों
वाली लड़की भागते हुए आई और बोली:
“ल्यूस्या, क्या तुम यक़ीन कर सकती हो - ईगोरोव
नहीं आया!”
ल्यूस्या हाथ नचाते हुए बोली:
“ये नहीं हो सकता! अब क्या करेंगे? अब कौन घण्टी
बजाएगा और फ़ायर करेगा?”
लड़की ने कहा:
”फ़ौरन किसी होशियार लड़के को ढूँढ़ना पड़ेगा,
हम उसे सिखा देंगे, और क्या कर सकते हैं.”
तब ल्यूस्या इधर-उधर देखने लगी और उसने
मुझे ऍपल खाते हुए देख लिया. वो एकदम ख़ुश हो गई.
“लो,” उसने कहा. “डेनिस्का! इससे अच्छी बात और
क्या हो सकती है! वो हमारी मदद करेगा! डेनिस्का, यहाँ आ!”
मैं उनके पास गया. लाल बालों वाली लड़की ने
मेरी ओर देखा और कहा:
“क्या ये वाक़ई में होशियार है?”
ल्यूस्या ने कहा:
“मेरे ख़याल से तो - है!”
मगर लाल बालों वाली लड़की बोली:
“वैसे, पहली नज़र में, कह नहीं सकते.”
मैंने कहा:
“तुम इत्मीनान रखो! मैं होशियार हूँ.”
अब वो और ल्यूस्या हँसने लगीं, और लाल
बालों लड़की मुझे खींचकर स्टेज के पीछे ले गई.
वहाँ चौथी क्लास का एक लड़का खड़ा था. उसने
काला सूट पहना था, उसके बालों पर चॉक बिखरा था, जैसे उसके बाल सफ़ेद हों; उसके
हाथों में पिस्तौल थी, और पास ही में दूसरा लड़का खड़ा था, वो भी चौथी क्लास का ही
था.
इस लड़के को दाढ़ी चिपकाई गई थी, उसकी नाक
पर नीला-नीला चश्मा था, और वह रबड़ के रेनकोट में था जिसकी कॉलर ऊपर उठी हुई थी.
वहीं पर कुछ और लड़के और लड़कियाँ भी थे,
किसी के हाथों में बैग थी, किसी के हाथों में कुछ और, और एक लड़की सिर पर रूमाल
बांधे थी, उसने गाऊन पहना था और हाथ में झाडू पकड़ा था.
जैसे ही मैंने काले सूट वाले लड़के के
हाथों में पिस्तौल देखा, फ़ौरन उससे पूछ लिया:
“क्या ये सचमुच का है?”
मगर लाल बालों वाली लड़की ने मेरी बात काट दी.
“सुन, डेनिस्का!” उसने कहा, “तू हमारी मदद
करेगा. वहाँ कॉर्नर में खड़ा हो जा और स्टेज पर देखता रह. जब ये लड़का बोलेगा: ‘ये
आप मुझसे ना पा सकेंगे, नागरिक गाद्यूकिन!’ तू फ़ौरन ये घण्टी बजा देना. समझ गया?
और उसने मेरी ओर साइकिल की घण्टी बढ़ा दी.
मैंने उसे ले लिया.
लड़की ने कहा:
“तू घण्टी बजाएगा, मानो वो टेलिफ़ोन हो, और ये
लड़का रिसीवर उठाएगा, टेलिफ़ोन पर बात करेगा और स्टेज से चला जाएगा. मगर तू खड़ा
रहेगा और ख़ामोश रहेगा. समझ गया?
मैंने कहा:
“समझ गया, समझ गया....इसमें समझ में ना आने वाली
कौन सी बात है? मगर क्या उसकी पिस्तौल सचमुच की है? क्या ऑटोमैटिक है?”
“तू अपने पिस्तौल के बारे में ज़रा इंतज़ार कर
ले...वो सचमुच की नहीं है! सुन: फ़ायर तू यहाँ करेगा, स्टेज के पीछे. जब ये, दाढ़ी
वाला, अकेला रह जाएगा, वो मेज़ से फ़ाईल उठा लेगा और खिड़की की ओर लपकेगा, मगर ये
लड़का, काले सूट वाला, उस पर निशाना लगाएगा, तब तू ये बोर्ड लेना और पूरी ताक़त से
कुर्सी पर मार देना. बस इतना ही, मगर ख़ूब ताक़त से मारना!”
और लाल बालों वाली लड़की ने कुर्सी पर
बोर्ड दे मारा. बहुत बढ़िया आवाज़ आई, जैसे सचमुच की गोली चली हो. मुझे अच्छा लगा.
“बढ़िया!” मैंने कहा. “और फिर?”
“बस, इतना ही,” लड़की ने कहा. “अगर समझ गया है,
तो ज़रा दुहरा दे!”
मैंने सब कुछ दुहरा दिया. एक-एक शब्द.
उसने कहा:
“देख, शर्मिन्दा ना करना!”
“इत्मीनान रखो. शर्मिन्दा नहीं करूँगा.”
तभी हमारी स्कूल वाली घण्टी बजी, जैसे कि
‘क्लास’ के वक़्त बजती है.
मैंने साइकिल की घण्टी ‘हीटिंग पाईप्स’ पर
रख दी, बोर्ड को कुर्सी से टिकाकर रख दिया, और ख़ुद परदे की झिरी से देखने लगा.
मैंने देखा कि कैसे रईसा इवानोव्ना और ल्यूस्या आईं, लड़के कैसे बैठ गए, और कैसे
दादियाँ और नानियाँ फिर से छोटी वाली दीवारों के पास खड़ी हो गईं, और पीछे से न
जाने किसके पापा स्टूल पर चढ़ गए और स्टेज पर कैमेरा लगाने लगे. यहाँ से वहाँ देखना
ज़्यादा दिलचस्प लग रहा था, बजाय वहाँ से यहाँ देखने के. धीरे-धीरे सब शांत हो गए,
और वो लड़की जो मुझे यहाँ लाई थी, स्टेज के दूसरी ओर भागी और रस्सी खींचने लगी. और
परदा खुल गया, और ये लड़की हॉल में कूद गई. स्टेज पर रखी थी एक मेज़, और उसके पीछे
बैठा था काले सूट वाला लड़का, और मैं जानता था कि उसकी जेब में पिस्तौल है. इस लड़के
के सामने टहल रहा था दाढ़ी वाला लड़का. पहले उसने बताया कि वो काफ़ी समय तक विदेश में
रह चुका है, और अब वापस आ गया है, और फिर बड़ी ‘बोरिंग’ आवाज़ में काले सूट वाले
लड़के से ज़िद करने लगा कि वो उसे हवाई अड्डे का प्लान दिखाए.
मगर उसने कहा:
“ये आप मुझसे हासिल नहीं कर पाएँगे, नागरिक
गाद्यूकिन!”
यहाँ मुझे अचानक घण्टी की याद आई और मैंने
अपना हाथ बढ़ाया. मगर घण्टी वहाँ नहीं थी. मैंने सोचा कि वो फर्श पर गिर गई है, और
मैं झुक कर देखने लगा. मगर वो तो फर्श पर भी नहीं थी. मैं तो पूरी तरह सुन्न हो गया.
फिर मैंने स्टेज पर नज़र दौड़ाई. वहाँ ख़ामोशी थी. मगर, फिर काले सूट वाले लड़के ने
कुछ देर सोचा और कहा:
“ये आप मुझसे हासिल नहीं कर पाएँगे,
नागरिक गाद्यूकिन!”
मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि करूँ तो
क्या करूँ. घण्टी आख़िर है कहाँ? अभी तो यहीं थी! अपने आप तो वह मेंढक की तरह उछल
कर भाग नहीं सकती थी! हो सकता है, वो लुढ़ककर बैटरी के पीछे चली गई हो. घण्टी वहाँ
भी नहीं थी! नहीं!...भले आदमियों, अब मैं क्या करूँ?!”
और स्टेज पर दाढ़ी वाला लड़का अपनी ऊँगलियाँ
चटख़ाने लगा और चिल्लाने लगा:
“मैं पाँचवी बार आपसे प्रार्थना कर रहा हूँ!
मुझे हवाई अड्डे का प्लान दिखाईये!”
और काले सूट वाला लड़का मेरी ओर मुँह फेर
कर भयानक आवाज़ में चीखा:
“ये आप मुझसे हासिल नहीं कर पाएँगे,
नागरिक गाद्यूकिन!”
और वो मुक्का दिखाकर मुझे धमकाने लगा. और
दाढ़ीवाला भी मुझे मुक्का दिखाकर धमकाने लगा. वे दोनों मुझे धमका रहे थे!
मैंने सोचा कि वो मुझे मार ही डालेंगे.
मगर मैं क्या करता, घण्टी जो नहीं थी! घण्टी ही नहीं थी! वो तो खो गई थी!
तब काले सूट वाले लड़के ने अपने बाल खींचना शुरू कर दिया और चेहरे पर विनती के भाव लाकर मेरी तरफ़ देखते हुए कहा:
”अब, शायद, टेलिफोन बजेगा! आप देखना, अब टेलिफोन बजेगा! अभ्भी बजेगा!”
मेरे दिमाग का बल्ब एकदम जल गया. मैंने अपना मुँह स्टेज पर निकाला और फ़ौरन कहा:
”ट्रिंग-ट्रिंग-ट्रिंग!”
हॉल में सब लोग बेतहाशा ठहाके लगाने लगे. मगर काले सूट वाला लड़का बहुत ख़ुश हो गया और उसने फ़ौरन रिसीवर पकड़ लिया. वह ख़ुशी—ख़ुशी बोला:
“सुन रहा हूँ!” और उसने माथे से पसीना पोंछा.
आगे सब कुछ अपने आप हो गया. काले सूट वाले लड़के ने दाढ़ी वाले से कहा:
“मुझे बुला रहे हैं. मैं, बस, थोड़ी देर में आता हूँ.”
और वो स्टेज से चला गया. और दूसरे कोने में खड़ा हो गया. अब दाढ़ी वाला लड़का पंजों के बल चलते हुए उसकी मेज़ तक पहुँचा और वहाँ कुछ ढूँढ़ने लगा. वह बार-बार कनखियों से इधर-उधर देख रहा था. फिर वह दुष्टतापूर्वक हँसा, उसने कोई फ़ाईल ले ली और पीछे की दीवार की ओर भागा, जिस पर गत्ते की खिड़की चिपकाई गई थी. इसी समय दूसरा लड़का भागते हुए बाहर आया और उस पर पिस्तौल से निशाना साधने लगा. मैंने फ़ौरन बोर्ड उठा लिया और पूरी ताक़त से कुर्सी पर दे मारा. मगर कुर्सी पर कोई अनजान बिल्ली बैठी थी. वह वहशियत से चीख़ी, क्योंकि मैंने उसकी पूँछ पर दे मारा था. गोली छूटने की आवाज़ तो आई नहीं, मगर बिल्ली उछल कर स्टेज पर आ गई. काले सूट वाला दाढ़ी वाले पर लपका और उसका गला दबाने लगा. बिल्ली उनके बीच में दौड़ती रही. जब लड़के लड़ रहे थे तो दाढ़ी वाले की दाढ़ी नीचे गिर गई. बिल्ली ने सोचा कि ये चूहा है, उसने दाढ़ी को मुँह में दबा लिया और भाग गई. जैसे ही उस लड़के ने देखा कि वह बिना दाढ़ी के रह गया है, तो वो फ़ौरन फ़र्श पर लेट गया – जैसे मर गया हो. अब स्टेज पर चौथी क्लास के बाकी के बच्चे भागते हुए आए, किसीके हाथ में बैग था, किसी के हाथ में झाडू, और वो सब पूछने लगे:
“गोली किसने चलाई? ये कैसी फ़ायरिंग थी?”
मगर गोली तो किसीने भी नहीं चलाई थी. बस, बिल्ली आ गई थी और गड़बड़ करने लगी थी. मगर काले सूट वाले लड़के ने कहा:
“ये मैंने जासूस गाद्यूकिन को मार डाला!”
तभी लाल बालों वाली लड़की ने परदा बन्द कर दिया. हॉल में बैठे सब लोगों ने इतनी ज़ोर से तालियाँ बजाईं कि मेरा सिर दुखने लगा. मैं फ़ौरन क्लोक-रूम में आया, अपना कोट पहना और घर भागा. मगर जब मैं भाग रहा था, तो कोई चीज़ मुझे बार-बार तंग कर रही थी. मैं रुक गया, जेब में हाथ डाला और वहाँ से निकाली...साइकिल की घण्टी!
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