शुक्रवार, 28 मार्च 2014

Jasoos ki Maut

जासूस गाद्यूकिन की मौत  
लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

ऐसा लगता है कि जब तक मैं बीमार रहा, बाहर मौसम काफ़ी गरम हो गया और हमारी बसंत की छुट्टियों में बस दो-तीन दिन ही बचे थे. जब मैं स्कूल आया, तो सब लोग चिल्ला उठे:
 “डेनिस्का आ गया, हुर्रे!”
मैं भी बहुत ख़ुश था कि वापस आ गया हूँ, और सारे लड़के अपनी अपनी जगह पे बैठे हैं – कात्या तोचीलिना, और मीश्का, और वालेर्का, - फ्लॉवरपॉट्स में फूल हैं, और ब्लैक-बोर्ड भी वैसा ही चमचमाता हुआ है, और रईसा इवानोव्ना वैसी ही हँसमुख है, और हर चीज़, हर चीज़ वैसी ही है जैसी हमेशा होती है. इन्टरवल में मैं लड़कों के साथ घूमता रहा, हँसता रहा, मगर फिर मीश्का ने बड़ी अकड़ दिखाते हुए कहा:
 “अपनी बसंत की कॉन्सर्ट होने वाली है!”
मैंने कहा:
 “अच्छा?”
मीश्का ने कहा:
 “सही में! हम स्टेज पर प्रोग्राम पेश करेंगे. और चौथी क्लास के लड़के हमें अपना ’शो’ दिखाएँगे. उन्होंने ख़ुद ही लिखा है. बड़ा मज़ेदार है!...”
मैंने कहा:
 “मीश्का, क्या तू कुछ कर रहा है?”
 “थोड़ा बड़ा हो जा – सब पता चल जाएगा.”
मैं बड़ी बेसब्री से कॉन्सर्ट का इंतज़ार करने लगा. घर पे मैंने मम्मा को ये सब बताया, और फिर कहा:
 “मैं भी कुछ करना चाहता हूँ...”
मम्मा मुस्कुराई और बोली:
 “तू क्या कर सकता है?”
मैंने कहा:
“क्या, मम्मा! क्या तुम्हें मालूम नहीं है? मैं ज़ोर से गा सकता हूँ, मैं गाता तो अच्छा ही हूँ ना? तुम ये मत देखो कि मुझे म्यूज़िक में ‘तीन’ नम्बर मिले हैं. मगर, फिर भी, मैं अच्छा ही गाता हूँ.”
मम्मा ने अलमारी खोली और वहाँ से, कहीं ‘ड्रेसों’ के पीछे से कहा:
 “तू अगली बार गा लेना. अभी तो बीमारी से उठा है ना...इस बार तू सिर्फ दर्शक बनना.” वो अलमारी के पीछे से बाहर आई, “कितना अच्छा लगता है – दर्शक बनना. बैठे हो, देख रहे हो कि आर्टिस्ट कैसे अपना-अपना ‘रोल’ करते हैं...बहुत अच्छा होता है! और अगली बार तू ‘आर्टिस्ट’ बनना, और वो जो पहले ही कार्यक्रम पेश कर चुके हैं, वो बनेंगे दर्शक. ठीक है?”
मैंने कहा:
 “ठीक है. तो मैं दर्शक बनूँगा.”
और दूसरे दिन मैं कॉन्सर्ट देखने गया. मम्मा मेरे साथ नहीं आ सकी क्योंकि उसकी इन्स्टीट्यूट में ड्यूटी लगी थी, - पापा युराल की किसी फैक्टरी में गए हुए थे, और मैं अकेला ही कॉन्सर्ट देखने गया.
हमारे बड़े हॉल में खूब सारी कुर्सियाँ लगी हुई थीं और एक स्टेज भी बनाया गया था, और उस पर परदा लटक रहा था. और नीचे पियानो के पीछे बैठे थे बोरिस सेर्गेयेविच. हम सब बैठ गए और बगल वाली साईड पर हमारी क्लास की दादियाँ-नानियाँ खड़ी हो गईं. इस बीच मैं ऍपल खाता रहा.
अचानक परदा खुला और हमारी लीडर ल्यूस्या प्रकट हुई. उसने ऊँची आवाज़ में कहा, मानो रेडियो पर कह रही हो:
 “तो, हमारी बसंत-कॉन्सर्ट की शुरूआत करते हैं! अब आपके सामने पहली क्लास के ‘सी’ सेक्शन का विद्यार्थी मीशा स्लोनोव अपनी ख़ुद की कविता पेश करेगा! बुलाते हैं मीशा स्लोनोव को!”
अब सब लोग तालियाँ बजाने लगे और मीश्का स्टेज पर आया. वो बड़ी बहादुरी से निकला, स्टेज के बीचोंबीच आया और रुक गया. वहाँ वो कुछ देर खड़ा रहा और अपने हाथ पीठ के पीछे कर लिए. फिर कुछ देर खड़ा रहा. फिर उसने बायाँ पैर आगे किया. सारे लड़के ख़ामोश बैठे थे और मीश्का को देख रहे थे. मगर, अब उसने बायाँ पैर हटा लिया और दायाँ पैर आगे कर दिया. फिर वह अचानक कुछ खाँसने लगा:
 “अखँ! अखँ! ... ख्म...!!”
मैंने कहा:
 “ये क्या, मीश्का, क्या गले में कुछ अटक गया क्या?”
उसने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे अजनबी की ओर देख रहा हो. फिर उसने छत की ओर आँखें उठाईं और कहा:
 “कविता.
  
गुज़र जाएँगे साल, आ जाएगा बुढ़ापा!
 छा जाएँगी चेहरे पर झुर्रियाँ!
देता हूँ शुभ कामनाएँ!
कि आगे भी करें सब खूब तरक्कियाँ!”
...बस!”
और मीश्का ने झुक कर अभिवादन किया और स्टेज से उतर गया. सबने उसके लिए ज़ोरदार तालियाँ बजाईं, क्योंकि, पहली बात तो ये थी कि कविता बहुत अच्छी थी, और दूसरी बात ये कि, ज़रा सोचिए: मीश्का ने ख़ुद लिखी थी! शाबाश!
अब फिर से ल्यूस्या बाहर आई और बोली:
 “अब आपके सामने आते हैं पहली ‘सी’ के विद्यार्थी वालेरी तगीलोव!”
 सबने और ज़्यादा ज़ोर से तालियाँ बजाईं, और ल्यूस्या ने बिल्कुल बीचोंबीच में एक कुर्सी रख दी. अब बाहर निकला हमारा वालेर्का अपने छोटे से एकॉर्डियन के साथ और कुर्सी पर बैठ गया, और ऍकॉर्डियन का खोल अपने पैरों के नीचे रख लिया जिससे कि वे हवा में न लटकते रहें. वो बैठ गया और वाल्ट्ज़ - ‘अमूर की लहरें’ बजाने लगा. सब सुन रहे थे, मैं भी सुन रहा था और पूरे समय सोच रहा था: ‘ये वालेर्का इतनी तेज़ी से ऊँगलियाँ कैसे चला रहा है?’ मैं भी हवा में उतनी ही तेज़ी से अपनी ऊँगलियाँ चलाने लगा, मगर वालेर्का के साथ-साथ नहीं चला पा रहा था. और बगल में, किनारे वाली दीवार के पास वालेर्का की दादी खड़ी थी, और जब वालेर्का बजा रहा था तो वो थोड़ा-थोड़ा डाइरेक्शन करती जा रही थी. वो बहुत अच्छा बजा रहा था, ज़ोर से, मुझे बहुत अच्छा लगा. मगर अचानक एक जगह पे वो चूक गया. उसकी ऊँगलियाँ ठहर गईं. वालेर्का थोड़ा-सा लाल हो गया, मगर उसने फिर से ऊँगलियाँ हिलाईं, जैसे कि उन्हें भागने दे रहा हो, मगर ऊँगलियाँ किसी एक जगह पर आकर फिर से ठहर गईं, जैसे लड़खड़ा गईं हों. वालेर्का पूरा लाल हो गया और फिर से ऊँगलियाँ चलाने लगा, मगर अब ऊँगलियाँ डर-डर के चल रही थीं, जैसे उन्हें मालूम था कि वे फिर से लड़खड़ा जाएँगी, और मैं दुष्टता के मारे ठहाका लगाने ही वाला था, मगर तभी, उसी जगह पे, जहाँ वालेर्का दो बार लड़खड़ाया था, उसकी दादी ने अचानक गर्दन बाहर निकाली, पूरी आगे को झुकी और गाने लगी:
...चमचमाती हैं लहरें,
चमचमाती हैं लहरें...
और वालेर्का ने एकदम पकड़ ले ली, और उसकी ऊँगलियाँ मानो किसी बुरी सीढ़ी से कूद कर आगे की ओर भागने लगीं, आगे, आगे, तेज़ी से, सफ़ाई से, बिल्कुल अंत तक. उसके लिए तालियाँ बजती रहीं, बजती रहीं!
इसके बाद स्टेज पर उछलते हुए आए पहली “ए” की छह लड़कियाँ और पहली “बी” के छह लड़के. लड़कियों के बालों में थे रंगबिरंगे फीते, लड़कों के बालों में कुछ भी नहीं था. वे युक्रेन का डान्स करने लगे. फिर बोरिस सेर्गेयेविच ने ज़ोर से पियानो की पट्टियों पर मारा और बजाना ख़त्म किया.
मगर लड़के और लड़कियाँ अपने आप स्टेज पर पैर पटकते रहे, बिना म्यूज़िक के, जो जैसे चाहे वैसे, और यह बहुत अच्छा लग रहा था, मैं तो बस स्टेज पर कूद कर उनके पास जाने को तैयार था, मगर वे अचानक भाग गए. ल्यूस्या बाहर निकली और बोली:
”अब पन्द्रह मिनट का इन्टरवल है. इन्टरवल के बाद चौथी क्लास के विद्यार्थी एक नाटक पेश करेंगे, जिसे उनकी क्लास ने ख़ुद लिखा है, नाटक का शीर्षक है ‘ कुत्ते को – कुत्ते की मौत' ”.   
सब लोग कुर्सियाँ खिसका-खिसकाकर कहीं-कहीं चले गए, और मैंने जेब से अपना ऍपल निकाला और उसे खाने लगा.
हमारी ऑक्टोबर-ग्रुप की लीडर ल्यूस्या वहीं, पास ही में खड़ी थी.
अचानक उसके पास एक काफ़ी ऊँची, लाल बालों वाली लड़की भागते हुए आई और बोली:
 “ल्यूस्या, क्या तुम यक़ीन कर सकती हो - ईगोरोव नहीं आया!”
ल्यूस्या हाथ नचाते हुए बोली:
 “ये नहीं हो सकता! अब क्या करेंगे? अब कौन घण्टी बजाएगा और फ़ायर करेगा?”
लड़की ने कहा:
”फ़ौरन किसी होशियार लड़के को ढूँढ़ना पड़ेगा, हम उसे सिखा देंगे, और क्या कर सकते हैं.”
तब ल्यूस्या इधर-उधर देखने लगी और उसने मुझे ऍपल खाते हुए देख लिया. वो एकदम ख़ुश हो गई.
 “लो,” उसने कहा. “डेनिस्का! इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है! वो हमारी मदद करेगा! डेनिस्का, यहाँ आ!”
मैं उनके पास गया. लाल बालों वाली लड़की ने मेरी ओर देखा और कहा:
 “क्या ये वाक़ई में होशियार है?”
ल्यूस्या ने कहा:
 “मेरे ख़याल से तो - है!”
मगर लाल बालों वाली लड़की बोली:
 “वैसे, पहली नज़र में, कह नहीं सकते.”
मैंने कहा:
 “तुम इत्मीनान रखो! मैं होशियार हूँ.”
अब वो और ल्यूस्या हँसने लगीं, और लाल बालों लड़की मुझे खींचकर स्टेज के पीछे ले गई.
वहाँ चौथी क्लास का एक लड़का खड़ा था. उसने काला सूट पहना था, उसके बालों पर चॉक बिखरा था, जैसे उसके बाल सफ़ेद हों; उसके हाथों में पिस्तौल थी, और पास ही में दूसरा लड़का खड़ा था, वो भी चौथी क्लास का ही था.
इस लड़के को दाढ़ी चिपकाई गई थी, उसकी नाक पर नीला-नीला चश्मा था, और वह रबड़ के रेनकोट में था जिसकी कॉलर ऊपर उठी हुई थी.
वहीं पर कुछ और लड़के और लड़कियाँ भी थे, किसी के हाथों में बैग थी, किसी के हाथों में कुछ और, और एक लड़की सिर पर रूमाल बांधे थी, उसने गाऊन पहना था और हाथ में झाडू पकड़ा था.
जैसे ही मैंने काले सूट वाले लड़के के हाथों में पिस्तौल देखा, फ़ौरन उससे पूछ लिया:
 “क्या ये सचमुच का है?”
 मगर लाल बालों वाली लड़की ने मेरी बात काट दी.
 “सुन, डेनिस्का!” उसने कहा, “तू हमारी मदद करेगा. वहाँ कॉर्नर में खड़ा हो जा और स्टेज पर देखता रह. जब ये लड़का बोलेगा: ‘ये आप मुझसे ना पा सकेंगे, नागरिक गाद्यूकिन!’ तू फ़ौरन ये घण्टी बजा देना. समझ गया?
और उसने मेरी ओर साइकिल की घण्टी बढ़ा दी. मैंने उसे ले लिया.
लड़की ने कहा:
 “तू घण्टी बजाएगा, मानो वो टेलिफ़ोन हो, और ये लड़का रिसीवर उठाएगा, टेलिफ़ोन पर बात करेगा और स्टेज से चला जाएगा. मगर तू खड़ा रहेगा और ख़ामोश रहेगा. समझ गया?
मैंने कहा:
 “समझ गया, समझ गया....इसमें समझ में ना आने वाली कौन सी बात है? मगर क्या उसकी पिस्तौल सचमुच की है? क्या ऑटोमैटिक है?”
 “तू अपने पिस्तौल के बारे में ज़रा इंतज़ार कर ले...वो सचमुच की नहीं है! सुन: फ़ायर तू यहाँ करेगा, स्टेज के पीछे. जब ये, दाढ़ी वाला, अकेला रह जाएगा, वो मेज़ से फ़ाईल उठा लेगा और खिड़की की ओर लपकेगा, मगर ये लड़का, काले सूट वाला, उस पर निशाना लगाएगा, तब तू ये बोर्ड लेना और पूरी ताक़त से कुर्सी पर मार देना. बस इतना ही, मगर ख़ूब ताक़त से मारना!”
और लाल बालों वाली लड़की ने कुर्सी पर बोर्ड दे मारा. बहुत बढ़िया आवाज़ आई, जैसे सचमुच की गोली चली हो. मुझे अच्छा लगा.
 “बढ़िया!” मैंने कहा. “और फिर?”
 “बस, इतना ही,” लड़की ने कहा. “अगर समझ गया है, तो ज़रा दुहरा दे!”
मैंने सब कुछ दुहरा दिया. एक-एक शब्द. उसने कहा:
 “देख, शर्मिन्दा ना करना!”
 “इत्मीनान रखो. शर्मिन्दा नहीं करूँगा.”
तभी हमारी स्कूल वाली घण्टी बजी, जैसे कि ‘क्लास’ के वक़्त बजती है.
मैंने साइकिल की घण्टी ‘हीटिंग पाईप्स’ पर रख दी, बोर्ड को कुर्सी से टिकाकर रख दिया, और ख़ुद परदे की झिरी से देखने लगा. मैंने देखा कि कैसे रईसा इवानोव्ना और ल्यूस्या आईं, लड़के कैसे बैठ गए, और कैसे दादियाँ और नानियाँ फिर से छोटी वाली दीवारों के पास खड़ी हो गईं, और पीछे से न जाने किसके पापा स्टूल पर चढ़ गए और स्टेज पर कैमेरा लगाने लगे. यहाँ से वहाँ देखना ज़्यादा दिलचस्प लग रहा था, बजाय वहाँ से यहाँ देखने के. धीरे-धीरे सब शांत हो गए, और वो लड़की जो मुझे यहाँ लाई थी, स्टेज के दूसरी ओर भागी और रस्सी खींचने लगी. और परदा खुल गया, और ये लड़की हॉल में कूद गई. स्टेज पर रखी थी एक मेज़, और उसके पीछे बैठा था काले सूट वाला लड़का, और मैं जानता था कि उसकी जेब में पिस्तौल है. इस लड़के के सामने टहल रहा था दाढ़ी वाला लड़का. पहले उसने बताया कि वो काफ़ी समय तक विदेश में रह चुका है, और अब वापस आ गया है, और फिर बड़ी ‘बोरिंग’ आवाज़ में काले सूट वाले लड़के से ज़िद करने लगा कि वो उसे हवाई अड्डे का प्लान दिखाए.
मगर उसने कहा:
 “ये आप मुझसे हासिल नहीं कर पाएँगे, नागरिक गाद्यूकिन!”
यहाँ मुझे अचानक घण्टी की याद आई और मैंने अपना हाथ बढ़ाया. मगर घण्टी वहाँ नहीं थी. मैंने सोचा कि वो फर्श पर गिर गई है, और मैं झुक कर देखने लगा. मगर वो तो फर्श पर भी नहीं थी. मैं तो पूरी तरह सुन्न हो गया. फिर मैंने स्टेज पर नज़र दौड़ाई. वहाँ ख़ामोशी थी. मगर, फिर काले सूट वाले लड़के ने कुछ देर सोचा और कहा:
“ये आप मुझसे हासिल नहीं कर पाएँगे, नागरिक गाद्यूकिन!”
मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि करूँ तो क्या करूँ. घण्टी आख़िर है कहाँ? अभी तो यहीं थी! अपने आप तो वह मेंढक की तरह उछल कर भाग नहीं सकती थी! हो सकता है, वो लुढ़ककर बैटरी के पीछे चली गई हो. घण्टी वहाँ भी नहीं थी! नहीं!...भले आदमियों, अब मैं क्या करूँ?!”
और स्टेज पर दाढ़ी वाला लड़का अपनी ऊँगलियाँ चटख़ाने लगा और चिल्लाने लगा:
 “मैं पाँचवी बार आपसे प्रार्थना कर रहा हूँ! मुझे हवाई अड्डे का प्लान दिखाईये!”
और काले सूट वाला लड़का मेरी ओर मुँह फेर कर भयानक आवाज़ में चीखा:
“ये आप मुझसे हासिल नहीं कर पाएँगे, नागरिक गाद्यूकिन!”
और वो मुक्का दिखाकर मुझे धमकाने लगा. और दाढ़ीवाला भी मुझे मुक्का दिखाकर धमकाने लगा. वे दोनों मुझे धमका रहे थे!
मैंने सोचा कि वो मुझे मार ही डालेंगे. मगर मैं क्या करता, घण्टी जो नहीं थी! घण्टी ही नहीं थी! वो तो खो गई थी!
तब काले सूट वाले लड़के ने अपने बाल खींचना शुरू कर दिया और चेहरे पर विनती के भाव लाकर मेरी तरफ़ देखते हुए कहा:

अब, शायद, टेलिफोन बजेगा! आप देखना, अब टेलिफोन बजेगा! अभ्भी बजेगा!
मेरे दिमाग का बल्ब एकदम जल गया. मैंने अपना मुँह स्टेज पर निकाला और फ़ौरन कहा:
ट्रिंग-ट्रिंग-ट्रिंग!
हॉल में सब लोग बेतहाशा ठहाके लगाने लगे. मगर काले सूट वाला लड़का बहुत ख़ुश हो गया और उसने फ़ौरन रिसीवर पकड़ लिया. वह ख़ुशीख़ुशी बोला:
सुन रहा हूँ! और उसने माथे से पसीना पोंछा.
आगे सब कुछ अपने आप हो गया. काले सूट वाले लड़के ने दाढ़ी वाले से कहा:
मुझे बुला रहे हैं. मैं, बस, थोड़ी देर में आता हूँ.
और वो स्टेज से चला गया. और दूसरे कोने में खड़ा हो गया. अब दाढ़ी वाला लड़का पंजों के बल चलते हुए उसकी मेज़ तक पहुँचा और वहाँ कुछ ढूँढ़ने लगा. वह बार-बार कनखियों से इधर-उधर देख रहा था. फिर वह दुष्टतापूर्वक हँसा, उसने कोई फ़ाईल ले ली और पीछे की दीवार की ओर भागा, जिस पर गत्ते की खिड़की चिपकाई गई थी. इसी समय दूसरा लड़का भागते हुए बाहर आया और उस पर पिस्तौल से निशाना साधने लगा. मैंने फ़ौरन बोर्ड उठा लिया और पूरी ताक़त से कुर्सी पर दे मारा. मगर कुर्सी पर कोई अनजान बिल्ली बैठी थी. वह वहशियत से चीख़ी, क्योंकि मैंने उसकी पूँछ पर दे मारा था. गोली छूटने की आवाज़ तो आई नहीं, मगर बिल्ली उछल कर स्टेज पर आई. काले सूट वाला दाढ़ी वाले पर लपका और उसका गला दबाने लगा. बिल्ली उनके बीच में दौड़ती रही. जब लड़के लड़ रहे थे तो दाढ़ी वाले की दाढ़ी नीचे गिर गई. बिल्ली ने सोचा कि ये चूहा है, उसने दाढ़ी को मुँह में दबा लिया और भाग गई. जैसे ही उस लड़के ने देखा कि वह बिना दाढ़ी के रह गया है, तो वो फ़ौरन फ़र्श पर लेट गया जैसे मर गया हो. अब स्टेज पर चौथी क्लास के बाकी के बच्चे भागते हुए आए, किसीके हाथ में बैग था, किसी के हाथ में झाडू, और वो सब पूछने लगे:
गोली किसने चलाई? ये कैसी फ़ायरिंग थी?
मगर गोली तो किसीने भी नहीं चलाई थी. बस, बिल्ली आ गई थी और गड़बड़ करने लगी थी. मगर काले सूट वाले लड़के ने कहा:
ये मैंने जासूस गाद्यूकिन को मार डाला!
तभी लाल बालों वाली लड़की ने परदा बन्द कर दिया. हॉल में बैठे सब लोगों ने इतनी ज़ोर से तालियाँ बजाईं कि मेरा सिर दुखने लगा. मैं फ़ौरन क्लोक-रूम में आया, अपना कोट पहना और घर भागा. मगर जब मैं भाग रहा था, तो कोई चीज़ मुझे बार-बार तंग कर रही थी. मैं रुक गया, जेब में हाथ डाला और वहाँ से निकाली...साइकिल की घण्टी!
****

सोमवार, 24 मार्च 2014

Main Rivers

प्रमुख नदियाँ
लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

हालाँकि ये मेरा नौवाँ साल चल रहा है, मगर मुझे सिर्फ कल ही इस बात का एहसास हुआ कि होम-वर्क करना ज़रूरी है. चाहे तुम्हें पसन्द हो या ना हो, तुम्हारा मन हो या ना हो, चाहे आलस आ रहा हो या ना आ रहा हो, मगर होम-वर्क तो करना ही पड़ेगा. ये नियम है. वर्ना तो तुम्हारा वो हाल होगा कि अपनों को भी न पहचान पाओगे. मैं, मिसाल के तौर पर, कल होम-वर्क नहीं कर पाया. हमें नेक्रासोव की कविता का एक पद मुँह-ज़ुबानी याद करना था और अमेरिका की प्रमुख नदियों के बारे में याद करना था. मगर मैं, पढ़ाई करने के बदले, कम्पाऊण्ड से पतंग को अंतरिक्ष में भेजने लगा. ख़ैर, वो तो अंतरिक्ष पहुँची ही नहीं, क्योंकि उसकी पूँछ बेहद हल्की थी, और इसकी वजह से वह गोता खा रही थी, भौंरे की तरह. ये हुई पहली बात. और दूसरी बात ये, कि मेरे पास बहुत कम माँजा था, मैंने पूरा घर छान मारा और जितने भी मिले उतने सारे डोरे इकट्ठे कर लिए; मम्मा की सिलाई मशीन तक से निकाल लिया, मगर वो भी कम ही पड़ा. पतंग स्टोर-रूम की छत तक गई और वहीं अटक गई, अंतरिक्ष तो अभी काफ़ी दूर था.
और, मैं इस पतंग और अंतरिक्ष में इतना खो गया कि दुनिया की हर चीज़ के बारे में बिल्कुल भूल गया. मुझे खेलने में इतना मज़ा आ रहा था कि मैंने होम-वर्क के बारे में सोचना भी बन्द कर दिया. दिमाग़ से बिल्कुल उतर गया. मगर ऐसा लगा कि अपने काम के बारे में भूलना नहीं चाहिए था, क्योंकि मुझे बड़ी शर्मिन्दगी उठानी पड़ी.
सुबह मैं देर से उठा, और, जब मैं उछल कर बिस्तर से बाहर आया, तो समय बहुत कम बचा था... मगर मैंने पढ़ रखा था कि आग बुझाने वाले लोग कितने फटा-फट् कपड़े पहनते हैं – एक भी बेकार की हरकत वे नहीं करते, और ये मुझे इतना अच्छा लगा कि आधी-गर्मियाँ मैं फटा-फट् कपड़े पहनने की प्रैक्टिस करता रहा. और आज, जैसे ही मैं उछलकर उठा और घड़ी पर नज़र डाली, तो फ़ौरन समझ गया कि आग बुझाने वालों की तरह फटा-फट् तैयार होना है. और मैं एक मिनट अडतालीस सेकण्ड में पूरी तरह तैयार हो गया, बस जूतों की लेस दो-दो छेदों के बाद डाल दी. मतलब, स्कूल में मैं बिल्कुल समय पर पहुँच गया और अपनी क्लास में भी रईसा इवानोव्ना से एक सेकण्ड पहले पहुँच गया. मतलब, वो आराम से कॉरीडोर में चलती हुई जा रही थीं, और मैं क्लोक-रूम से भागा (लड़के वहाँ थे ही नहीं). जब मैंने दूर से रईसा इवानोव्ना को देखा, तो मैं पूरी रफ़्तार से दौड़ पड़ा, और क्लास से पाँच कदम की दूरी पर मैंने रईसा इवानोव्ना को पीछे छोड़ दिया और कूद कर क्लास में घुस गया. मतलब, मैंने उन्हें क़रीब डेढ़ सेकण्ड से हरा दिया, और, जब वो अन्दर आईं, मेरी किताबें डेस्क पर थीं, और मैं मीश्का के साथ ऐसे बैठा था जैसे कुछ हुआ ही ना हो. रईसा इवानोव्ना अन्दर आईं, हम खड़े हो गए और उन्हें ‘नमस्ते’ कहा, और सबसे ज़्यादा ज़ोर से मैंने ‘नमस्ते’ किया, जिससे कि वो देख लें कि मैं कितना शरीफ़ हूँ. मगर उन्होंने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और फ़ौरन कहा:
 “कोराब्ल्येव, ब्लैक-बोर्ड पे आओ!”
मेरा तो मूड ही ख़राब हो गया, क्योंकि मुझे याद आ गया कि मैं होम-वर्क करना भूल गया था. मेरा अपने प्यारे डेस्क से बाहर निकलने का ज़रा भी मन नहीं था. जैसे मैं उससे चिपक गया था. मगर रईसा इवानोव्ना जल्दी मचाने लगीं:
 “कोराब्ल्येव! क्या कर रहा है? सुना नहीं, मैं तुझे बुला रही हूँ?”
और मैं ब्लैक-बोर्ड के पास पहुँचा. रईसा इवानोव्ना ने कहा:
 “कविता!”
मतलब, मैं वो कविता सुनाऊँ, जो होम-वर्क में मिली थी. मगर मुझे तो वो आती ही नहीं थी. मुझे ये भी अच्छी तरह से मालूम नहीं था कि कौन सी कविता याद करने के लिए दी गई थी.  इसलिए, एक पल को मैंने सोचा कि हो सकता है, रईसा इवानोव्ना भी भूल गई हों, कि होम-वर्क में क्या दिया था, और इस बात पर ध्यान नहीं देंगी कि मैं क्या पढ़ रहा हूँ. और मैंने बड़ी हिम्मत से शुरू कर दिया:
सर्दियाँ!...ख़ुशी-ख़ुशी जाता किसान,
गाड़ी में बनाता नई राह:
बर्फ सूँघते, घोड़ा उसका,
चले मगर अलसाई चाल...
 “ये पूश्किन है,” रईसा इवानोव्ना ने कहा.
 “हाँ,” मैंने कहा,” ये पूश्किन है. अलेक्सान्द्र सेर्गेयेविच.”
 “और मैंने क्या दिया था?” उन्होंने कहा.
 “हाँ!” मैंने कहा.
 “क्या ‘हाँ’? मैंने क्या दिया था, मैं तुझसे पूछ रही हूँ? कोराब्ल्येव!”
 “क्या?” मैंने कहा.
 “क्या ‘क्या’? मैं तुझसे पूछ रही हूँ : मैंने क्या दिया था?”
अब मीश्का ने मासूम चेहरा बनाते हुए कहा:
” वो क्या, नहीं जानता क्या, कि आपने नेक्रासोव दिया था? ये तो वो आपका सवाल नहीं समझ पाया, रईसा इवानोव्ना.”
ये होता है सच्चा दोस्त. मीश्का ने चालाकी से प्रॉम्प्ट करके मुझे बता दिया कि होम-वर्क में क्या मिला था. मगर अब  रईसा इवानोव्ना को गुस्सा आ गया था:
 “स्लोनोव! प्रॉम्प्ट करने की हिम्मत न करना!”
 “हाँ!” मैंने कहा. “तू, मीश्का, बीच में क्यों नाक घुसेड़ता है? क्या तेरे बिना मैं नहीं जानता कि रईसा इवानोव्ना ने नेक्रासोव दिया था! वो तो मैं कुछ और सोचने लगा था, और तू है कि घुसे चला आता है, कन्फ्यूज़ कर देता है.”
मीश्का लाल हो गया और उसने मुँह फेर लिया. मैं फिर से अकेला रह गया रईसा इवानोव्ना का सामना करने के लिए.
 “तो?” उन्होंने कहा.
 “क्या?” मैंने कहा.
 “ये हर घड़ी ‘क्या-क्या’ करना बन्द कर!”
मैंने देखा कि अब उन्हें वाक़ई में गुस्सा आ गया था.
 “सुना. मुँह ज़ुबानी!”
 “क्या?”
 “बेशक, कविता!” उन्होंने कहा.
 “आहा, समझ गया. कविता, मतलब, सुनानी है?” मैंने कहा. “अभी सुनाता हूँ.” और मैंने ज़ोर से शुरूआत की: “ नेक्रासोव की कविता. कवि की. महान कवि की.”
 “आगे!” रईसा इवानोव्ना ने कहा.
 “क्या?” मैंने कहा.
 “सुना, फ़ौरन!” रईसा इवानोव्ना चिल्ला पड़ी. “फ़ौरन सुना, तुझसे ही कह रही हूँ! शीर्षक!”
जब तक वो चिल्ला रही थीं, मीश्का ने प्रॉम्प्ट करके मुझे पहला शब्द बता दिया. वह फुसफुसाया, बिना मुँह खोले. मगर मैं उसे अच्छी तरह समझ गया. इसलिए मैंने बहादुरी से एक पैर आगे किया और ऐलान कर दिया:
 “छोटा-सा किसान!”
सब ख़ामोश हो गए, और रईसा इवानोव्ना भी. उन्होंने ग़ौर से मेरी ओर देखा, मगर मैं इससे भी ज़्यादा ग़ौर से मीश्का की ओर देख रहा था. मीश्का ने अपने अँगूठे की ओर इशारा किया और न जाने क्यों उसके नाखून पर टक्-टक् करने लगा.
मुझे फ़ौरन शीर्षक याद आ गया और मैंने कहा:
 “नाखून वाला!”
और मैंने पूरा शीर्षक फिर से दुहरा दिया:
 “छोटा-सा किसान नाखून वाला!” (असल में कविता का शीर्षक है – नाखून जितना किसान –अनु.)
सब हँसने लगे. रईसा इवानोव्ना ने कहा:
 “बस हो गया, कोराब्ल्येव!...कोशिश मत कर, तुझसे नहीं होगा. अगर जानता नहीं है, तो शर्मिन्दगी तो ना उठा.” फिर उन्होंने कहा: “और जनरल नॉलेज का क्या हाल है? याद है, कल हमारी क्लास ने ये तय किया था कि कोर्स के अलावा हम दूसरी दिलचस्प किताबें भी पढ़ेंगे? कल हमने तय किया था कि अमेरिका की सभी नदियों के नाम याद करेंगे. तूने याद किए?”
बेशक, मैंने याद नहीं किए थे. ये पतंग, इसने गड़बड़ कर दी, मेरी पूरी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी. मैंने सोचा कि रईसा इवानोव्ना के सामने सब कुछ स्वीकार कर लूँगा, मगर इसके बदले अचानक मेरे मुँह से निकला:
 “बिल्कुल, याद किए हैं. कैसे नहीं करता?”
“ठीक है, नेक्रासोव की कविता सुनाकर तूने जैसा डरावना प्रभाव डाला था, उसे अब दूर कर दे. अमेरिका की सबसे बड़ी नदी का नाम बता दे, और मैं तुझे छोड़ दूँगी.
अब तो मेरी हालत ख़राब हो गई. मेरा पेट भी दुखने लगा, क़सम से. क्लास में ग़ज़ब की ख़ामोशी थी. और मैं छत की ओर देखने लगा. और मैं सोच रहा था कि अब, शायद, मैं मर जाऊँगा. अलबिदा, सबको! और तभी मैंने देखा कि बाईं ओर की आख़िरी लाईन में पेत्का गोर्बूश्किन मुझे अख़बार की लम्बी रिबन दिखा रहा है, और उस पर स्याही से कुछ लिखा है, शायद, उसने ऊँगली से लिखा था. मैं इन अक्षरों को देखने लगा और आख़िरकार मैंने पहला अक्षर पढ़ ही लिया.
रईसा इवानोव्ना ने फिर से कहा:
 “तो, कोराब्ल्येव? अमेरिका की प्रमुख नदी कौन सी है?”
मेरा आत्मविश्वास फ़ौरन जाग उठा, और मैंने कहा:
 “मिसी-पिसी.”
आगे मैं नहीं बताऊँगा. बस हो गया. और हालाँकि रईसा इवानोव्ना की आँखों में हँसते-हँसते आँसू आ गए, मगर उन्होंने ‘दो’ नम्बर दे ही दिए.
अब मैंने क़सम खा ली है, कि हमेशा होम-वर्क पूरा करूँगा. बुढ़ापे तक.


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सोमवार, 17 मार्च 2014

Hum bhi...

हम भी!...      
लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

हमें जैसे ही पता चला कि हमारे अभूतपूर्व हीरो अंतरिक्ष में एक दूसरे को सोकोल और बेर्कूत (बाज़ और उकाब – हम इन्हीं नामों का इस्तेमाल करेंगे जिससे कि आपको दो रूसी शब्दों का ज्ञान हो जाए! – अनु.) के नाम से पुकारते हैं, तो हमने फ़ौरन फ़ैसला कर लिया कि अब मैं बनूँगा बेर्कूत(उकाब), और मीश्का – सोकोल(बाज़). चूँकि हमें भी अंतरिक्षयात्रियों के बारे में पढ़ना ही था, और सोकोल और बेर्कूत कितने प्यारे नाम हैं! और, मैंने और मीश्का ने यह भी तय कर लिया कि जब तक हमें अंतरिक्ष स्कूल में प्रवेश मिलेगा, हम दोनों धीरे धीरे अपने आप को फ़ौलाद की तरह मज़बूत बनाते रहेंगे. और जैसे ही हमने ये तय कर लिया, मैं घर चला गया और अपने आप को मज़बूत बनाने में लग गया.

मैं शॉवर के नीचे खड़ा हो गया और पहले गुनगुने पानी का फ़व्वारा छोड़ा, और इसके बाद, इसका उलटा, यानी, ठण्डे पानी वाला फ़व्वारा चला दिया. मैं बड़े आराम से उसे बर्दाश्त करता रहा. तब मैंने सोचा कि जब ये सब इतना बढ़िया चल रहा है, तो, फिर ज़्यादा अच्छी तरह से ही मज़बूत होना चाहिए, और मैंने बर्फीले पानी का फ़व्वारा चालू कर दिया. ओहो-हो! मेरा पेट एकदम सिकुड़ गया, और पूरे बदन पे रोंगटे खड़े हो गए. 
तो, इस तरह मैं क़रीब आधे घण्टे या पाँच मिनट खड़ा रहा और अच्छे से फ़ौलाद की तरह मज़बूत हो गया! और फिर, इसके बाद, जब मैं कपड़े पहन रहा था, तो मुझे याद आ गया कि कैसे दादी ने एक लड़के के बारे में कविता पढ़ी थी, जो ठण्ड से नीला पड़ गया था और थरथर काँप रहा था.
खाने के बाद मेरी नाक बहने लगी और मैं दनादन छींकने लगा.
मम्मा ने कहा:
”एस्प्रो ले लो, कल बिल्कुल ठीक हो जाओगे. सो-जाओ! अब आज के लिए बस हो गया!”.
मेरा तो एकदम मूड ख़राब हो गया. मैं बस बिसूरने ही वाला था, मगर तभी खिड़की के नीचे से चीख़ सुनाई दी:
 “बे-एर्कूत!... ओ बेर्कूत!...अरे, बेर्कूत रे!...”
मैं खिड़की की ओर भागा, सिर बाहर निकाल कर देखा, और वहाँ था मीश्का!”
मैंने कहा:
 “तुझे क्या चाहिए, सोकोल?”
और वह बोला:
 “चल, ऑर्बिट में निकल!”
इसका मतलब था: कम्पाऊण्ड में. मगर मैंने उससे कहा:
 “मम्मा नहीं जाने देगी. मुझे ज़ुकाम हो गया है!”
 मम्मा ने टाँग पकड़ कर मुझे खींचा और कहा:
 “इतना आगे सिर ना निकाल! गिर जाएगा! ये तू किससे बात कर रहा है?”
मैंने कहा:
 “मेरा दोस्त आया है. आसमानी भाई. जुड़वाँ भाई! और तुम डिस्टर्ब कर रही हो!”
मगर मामा ने कड़ी आवाज़ में कहा:
 “सिर बाहर मत निकाल!”
मैंने मीश्का से कहा:
 “मम्मा मुझे सिर बाहर निकालने की इजाज़त नहीं देती...”
मीश्का ने थोड़ी देर सोचा, और फिर ख़ुश होकर बोला:
 “सिर बाहर निकालने की इजाज़त नहीं देती, ठीक ही तो है. ये तेरी ट्रेनिंग होगी बा-ह-र-नि-क-ल-ही-नता की!”
तब मैंने सिर थोड़ा सा बाहर निकाल ही लिया और शांति से उससे बोला:
 “ऐह, मेरे अच्छे सोकोल, सोकोल प्यारे! शायद मुझे चौबीस घण्टे घर में ही रहना पड़े!”  
मगर मीश्का ने इस बात को भी अपने ढंग से तोड़-मरोड़ दिया: “ये तो बहुत अच्छी बात हैं! बढ़िया ट्रेनिंग! आँखें बन्द कर और ऐसे लेट जा, जैसे कि तू क्वारेंटीन में हो!”      
मैंने कहा:
 “शाम को मैं तेरे साथ टेलिफोनिक कॉन्टेक्ट स्थापित करूँगा.”
 “ ठीक है,” मीश्का ने कहा, “तू मुझसे स्थापित कर, और मैं – तुझसे.”
और वो चला गया.
मैं पापा के दीवान पर लेट गया और आँखें बन्द कर लीं और चुप रहने की प्रैक्टिस करने लगा. फिर मैं उठा और एक्सरसाईज़ कर ली. फिर इल्युमिनेटर (यहाँ खिड़की से तात्पर्य है – अनु.) अनजान दुनिया को देखता रहा, और फिर पापा आ गए, और मैंने खाने में सिर्फ प्राकृतिक पदार्थ ही लिए. मेरा मूड बहुत अच्छा था. मैंने अपनी कॉट लाकर बिछा दी.
पापा ने कहा:
”इतनी जल्दी क्यों?”
और मैंने अर्थपूर्ण अंदाज़ में कहा:
”आप जैसा चाहें कीजिए, मगर मैं सोऊँगा.”
मम्मा ने मेरे माथे पर हाथ रखा और कहा:
 “बच्चा बीमार हो गया!”
मगर मैंने उससे कुछ नहीं कहा. अगर वे नहीं समझते हैं कि ये सब अंतरिक्ष-यात्री बनने की ट्रेनिंग है, तो मैं ही क्यों समझाऊँ? कोई फ़ायदा नहीं. बाद में ख़ुद ही जान जाएँगे, अख़बारों से, जब उन्हें इस बात के लिए धन्यवाद दिया जाएगा, कि उन्होंने मेरे जैसे बेटे का लालन-पालन किया!
जब तक मैं ये सब सोचता रहा, काफ़ी समय गुज़र गया, और मुझे याद आया कि मीश्का से टेलिफोन पर संपर्क स्थापित करना है.
मैं कॉरीडोर में गया और उसका नम्बर घुमाया. मीश्का फ़ौरन फोन के पास आया, मगर न जाने क्यों उसकी आवाज़ बेहद मोटी आ रही थी:
 “हुँ-हुँ! बोलिए!”
मैंने कहा:
 “सोकोल, क्या ये तुम हो?”
और वह बोला:
 “क्या-क्या?”
 मैंने फिर से कहा:
 “सोकोल ये तू ही है या नहीं है? ये बेर्कूत बोल रहा है! क्या हाल है?”
वह हँसने लगा, नकियाया और बोला:
 “वेरी इंटेलिजेन्ट! तो, बहुत हो गया मज़ाक. सोनेच्का, ये तुम हो ना?”
मैंने कहा:
ये सोनेच्का कहाँ से आ गई, मैं बेर्कूत हूँ! तू क्या, पगला गया है?”
मगर उसने कहा:
 “ये कौन है? ये कैसी बातें कर रहा है? गुण्डागर्दी! कौन बोल रहा है?”
मैंने कहा:
 “ये कोई नहीं बोल रहा है.”
मैंने रिसीवर लटका दिया. शायद मैंने गलत नम्बर डायल कर दिया था. इतने में पापा ने मुझे बुलाया, और मैं कमरे में वापस आ गया, कपड़े उतार दिए और लेट गया. मैं बस ऊँघने ही लगा था कि अचानक:
”ज़् ज़् ज़् ज़् ज़् ! फोन! पापा उछले और कॉरीडोर में भागे, और, जब तक मैं पैरों से अपने स्लीपर्स ढूँढ रहा था, मैंने उनकी गंभीर आवाज़ सुनी:
 “बेर्कूत को? कौन से बेर्कूत को? यहाँ ऐसा कोई नहीं है! ध्यान से नम्बर घुमाईये!”
मैं फ़ौरन समझ गया, कि ये मीश्का है! ये है टेलिफोनिक-कनेक्शन! मैं वैसे ही, सिर्फ कच्छे में, कॉरीडोर की ओर भागा.
 “ये मेरे लिए है! मैं हूँ बेर्कूत!”
पापा ने फ़ौरन रिसीवर मुझे दे दिया, और मैं चिल्लाया:
 “ये सोकोल है? मैं बेर्कूत! सुन रहा हूँ!”
और मीश्का बोला:
“रिपोर्ट दो, कि क्या कर रहे हो!”
मैंने कहा:
 “मैं सो रहा हूँ!”
और मीश्का:
 “मैं भी! मैं तो बिल्कुल सो ही गया था, मगर एक महत्वपूर्ण बात याद आ गई! बेर्कूत, सुनो! सोने से पहले गाना चाहिए! दोनों को मिलकर! युगल गीत! जिससे कि हमारा अंतरिक्ष-गीत बन जाए!”
मैं सीधे उछल पड़ा:
 “शाबाश! सोकोल! चल, अपना पसन्दीदा अंतरिक्ष-गीत गाएँ! मेरे साथ-साथ गा!”
और मैं पूरी ताक़त से गाने लगा. मैं अच्छा गाता हूँ, ख़ूब ज़ोर से! मुझसे ज़्यादा ज़ोर से कोई और नहीं गा सकता. ज़ोर से गाने में मैं हमारे कोरस-ग्रुप  में अव्वल हूँ. मगर जैसे ही मैंने गाना शुरू किया, फ़ौरन  सारे पड़ोसी अपने-अपने दरवाज़ों से बाहर निकलने लगे, वो चिल्ला रहे थे: “ये क्या बेहूदगी है...क्या हो गया...इतनी देर हो गई है...पगला गए हैं...ये कम्युनिटी फ्लैट है...मैंने सोचा कि सुअर को काट रहे हैं...”, मगर पापा ने उनसे कहा:
 “ये अंतरिक्षी-जुडवाँ भाई हैं, सोकोल और बेर्कूत, सोने से पहले गा रहे हैं!”
तब सब लोग चुप हो गए.
और मैंने और मीश्का ने आख़िर तक गाया:
...दूर के ग्रहों की धूल-भरी पगडंडियों पर
रह जाएँगे पैरों के हमारे निशान!

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रविवार, 2 मार्च 2014

Exact 25 Kg

 एक्ज़ेक्ट 25 किलो
लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनु.: आ. चारुमति रामदास

हुर्रे! मुझे और मीश्का को ‘मेटलिस्ट’ क्लब में ‘चिल्ड्रेंस फेस्टिवल’ का इन्विटेशन-कार्ड मिला. दूस्या आण्टी ने इसके लिए कोशिश की थी: वह इस क्लब में सफ़ाई-विभाग की प्रमुख है. कार्ड तो उसने हमें एक ही दिया, मगर उस पर लिखा था: ‘दो व्यक्तियों के लिए’! मतलब – मेरे लिए और मीश्का के लिए. हम बहुत ख़ुश हो गए, ऊपर से ये क्लब हमारे घर के पास ही, बस, मोड़ पर ही था. मम्मा ने कहा:
“तुम लोग, बस, वहाँ पे शरारत मत करना.”
और उसने हम दोनों को पन्द्रह-पन्द्रह कोपेक दिए.
मैं और मीश्का निकल पड़े.
वहाँ, क्लोक-रूम में खूब धक्का-मुक्की हो रही थी और खूब लम्बी लाईन लगी थी. मैं और मीश्का लाईन के आख़िर में खड़े हो गए. लाईन बड़े धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी. मगर, अचानक ऊपर से म्यूज़िक बजने लगा, और मैं और मीश्का एक ओर से दूसरी ओर भागने लगे, जिससे कि जल्दी से अपने कोट उतार सकें, और बहुत सारे दूसरे बच्चे भी इस म्यूज़िक को सुनते ही, इधर-उधर भागने लगे, जैसे किसी ने उन पर गोली चला दी हो, और वे चीख़ने भी लगे, कि वे सबसे दिलचस्प प्रोग्राम के लिए ‘लेट’ हो रहे हैं.
मगर तभी अचानक न जाने कहाँ से दूस्या आण्टी टपक पड़ी:
 “डेनिस, मीश्का के साथ! तुम लोग यहाँ क्यों परेशान हो रहे हो? मेरे साथ आओ!”
और हम उसके पीछे भागे, उसके पास सीढ़ियों के नीचे एक अलग कमरा है, वहाँ बहुत सारे ब्रश खड़े हैं और बाल्टियाँ भी हैं. दूस्या आण्टी ने हमारी चीज़ें ले लीं और कहा:
”वापस यहीं आकर अपने-अपने कोट पहन लेना, शैतानों!”
मीश्का और मैं भीड़ के साथ सीढ़ियों से ऊपर धकेले गए. मगर, वहाँ वाक़ई में इतना ख़ूबसूरत था! बताना मुश्किल है! सभी छतों को रंगबिरंगे कागज़ की रिबन्स से और लैम्पों से सजाया गया था, चारों ओर शीशों के टुकड़ों से बनाए गए ख़ूबसूरत लैम्प जल रहे थे, म्यूज़िक बज रहा था, और भीड़ में सजे-धजे आर्टिस्ट्स घूम रहे थे: एक बिगुल बजा रहा था, दूसरा – ड्रम. एक आण्टी ने घोड़े जैसी ड्रेस पहनी थी, और खरगोश भी थे, और टेढ़े-मेढ़े आईने थे, और पेत्रूश्का था.
हॉल के अंत में एक और दरवाज़ा था, और उस पर लिखा था: “मनोरंजन-कक्ष”.
मैंने पूछा:
“ये क्या है?”
“ये अलग-अलग तरह के मनोरंजक खेल हैं.”
और, सही में, वहाँ मनोरंजन के कई सारे खेल थे. मिसाल के तौर पर, वहाँ डोरी से बंधा हुआ एक ऍपल था, और पीठ के पीछे हाथ रखना था, और इस तरह, हाथों के बिना इस ऍपल को कुतरना था. मगर वो तो डोरी पर लगातार घूम रहा था और किसी भी तरह पकड़ में नहीं आ रहा था. ये बड़ा मुश्किल काम था, और अपमानजनक भी. मैंने दो बार इस ऍपल को हाथों से पकड़ लिया और कुतरने लगा. मगर मुझे उसे खाने नहीं दिया गया, बल्कि बस, हँसकर हाथ से छुड़ा लिया. वहाँ पर तीर-कमान भी था, और  तीर के सिरे पर नोक नहीं थी, बल्कि रबर का छोटा सा स्टिकर था, जो कस के चिपक जाता था. जिसका निशाना बोर्ड पर, केन्द्र पर, लगेगा, जहाँ एक बन्दर बना हुआ था, उसे प्राईज़ मिलने वाला था – एक सीक्रेट पटाखा.
मीश्का ने पहले निशाना लगाया, वह बड़ी देर तक निशाना साधता रहा, मगर जब उसने तीर चलाया, तो दूर के एक लैम्प को तोड़ दिया, मगर बन्दर तक नहीं पहुँचा...
मैंने कहा:
 “ऐख तू, तीरंदाज़!”
 “ये तो मैं अभी रेंज तक गया ही नहीं! अगर पाँच तीर दिए जाते, तो मैं बन्दर को मार देता. मगर उन्होंने एक ही दिया – निशाना कैसे लगता!”
मैंने फिर से कहा:
 “चल, चल, रहने दे! देख लेना, मैं अभ्भी बन्दर पर पहुँचता हूँ!”
और उस अंकल ने जो ये सब इंतज़ाम कर रहा था, मुझे एक तीर दिया और कहा:
 “तो, चला तीर, शार्प-शूटर!”
और वह ख़ुद बन्दर को ठीक करने के लिए गया, क्योंकि वह कुछ टेढ़ा हो गया था. मैंने निशाना साध लिया था और बस, इंतज़ार कर रहा था कि वह कब बन्दर को सही करता है, मगर कमान बहुत टाईट थी, और मैं पूरे समय अपने आप से कहे जा रहा था: ‘अब मैं इस बन्दर को मार गिराऊँगा’, - और अचानक तीर छूट गया और खप्! अंकल के कंधे के नीचे जा लगा. और वहाँ, कंधे के नीचे चिपक कर फड़फड़ाने लगा.
चारों ओर खड़े सब लोगों ने तालियाँ बजाईं और हँसने लगे, मगर अंकल ऐसे मुड़े जैसे उन्हें डंक लगा हो और चिल्लाने लगे:
 “इसमें हँसने की क्या बात है? समझ में नहीं आता! भाग जा, शैतान, तुझे अब और तीर नहीं मिलेगा!”
मैंने कहा:
 “मैंने जानबूझ कर नहीं किया!” और वहाँ से चला गया.
ताज्जुब की बात है कि हमसे कुछ भी नहीं हो पा रहा था, और मैं बहुत गुस्सा हो गया, और, बेशक, मीश्का भी.
और, अचानक हम देखते हैं – तराज़ू. उसके पास छोटी सी, प्रसन्न-सी लाईन, जो बड़ी जल्दी-जल्दी आगे बढ़ रही थी, और वहाँ सब लोग मज़ाक कर रहे थे और ठहाके लगा रहे थे. तराज़ू के पास था एक जोकर.
मैंने पूछा:
 “ये कैसी तराज़ू है?”
उन्होंने मुझे बताया:
 “खड़ा हो जा, अपना वज़न करवा. अगर तेरा वज़न पच्चीस किलो है, तो तू भाग्यशाली होगा. इनाम मिलेगा: साल भर के लिए मैगज़ीन ‘मूर्ज़िल्का’ फ्री में मिलेगी.”
मैंने कहा:
 “मीश्का, चल, कोशिश करेंगे?”
देखता क्या हूँ कि वहाँ मीश्का नहीं है. कहाँ चला गया, मालूम नहीं. मैंने तय कर लिया कि अकेला ही कोशिश करूँगा. हो सकता है, मेरा वज़न बिल्कुल पच्चीस किलो ही हो? तब मिलेगी सफ़लता!...
लाईन आगे बढ़ती ही जा रही थी, और टोपी वाला जोकर इतनी सफ़ाई से लीवर खट्-खट् कर रहा था और मज़ाक पे मज़ाक किए जा रहा था:
 “आपका वज़न सात किलो ज़्यादा है – आलू की चीज़ें कम खाईये!- खट्-खट्! – और आप, आदरणीय कॉम्रेड, अभी आपने बहुत कम पॉरिज खाया है, इसलिए मुश्किल से उन्नीस किलो तक पहुँच रहे हैं! साल भर बाद आईये. – खट्-खट्!”  
 और इसी तरह की बातचीत हो रही थी, और सब हँस रहे थे, और दूर हटते जा रहे थे, लाईन आगे बढ़ती जा रही थी, और किसी का वज़न एक्ज़ेक्ट पच्चीस किलो नहीं आ रहा था, और तभी मेरी बारी आ गई.
मैं तराज़ू पर चढ़ा – लीवर की खट्-खट्, और जोकर ने कहा:
 “ओहो! धूप-छाँव का खेल मालूम है?”
मैंने कहा:
 “वो कौन नहीं जानता!”
 “तेरा मामला काफ़ी गरम है. तेरा वज़न चौबीस किलो पाँच सौ ग्राम है, बस आधा किलो की कमी है. अफ़सोस. तन्दुरुस्त रहो!”
ज़रा सोचो, सिर्फ आधा किलो की कमी है!
मेरा मूड बहुत ख़राब हो गया. कैसा मनहूस दिन निकला है आज!
और तभी मीश्का प्रकट हुआ.
मैंने कहा:
 “आप की सवारी कहाँ ग़ायब हो जाती है?”
मीश्का ने कहा:
 “सिट्रो पी रहा था.”
मैंने कहा:
 “बहुत अच्छे, क्या कहने! यहाँ मैं कोशिश किए जा रहा हूँ कि “मूर्ज़िल्का ” जीत जाऊँ, और वो सिट्रो पी रहा है.
और मैंने उसे सारी बात बताई. मीश्का ने कहा:
 “ओह, ये-बात-है!”
और जोकर ने लीवर से खट्-खट् किया और ठहाके लगाने लगा:
 “थोड़ी सी गड़बड़ है! पच्चीस किलो पाँच सौ ग्राम. आपको थोड़ा दुबला होना पड़ेगा. आगे!
मीश्का तराज़ू से उतरा और बोला:
 “ऐख़! मैंने बेकार ही में सिट्रो पिया...”
मैंने कहा:
 “यहाँ सिट्रो क्यों आ गया?”
और मीश्का बोला:
 “मैंने पूरी बोतल पी ली! समझ रहा है?”
मैंने कहा:
 “तो फिर?”
अब मीश्का ने फुसफुसाते हुए साफ़-साफ़ कहा:
 “अरे आधा लिटर पानी – ये ही तो हुआ ना आधा किलो. पाँच सौ ग्राम! अगर मैं न पीता, तो मेरा वज़न एक्ज़ेक्ट पच्चीस किलो निकलता!”
मैंने कहा:
”ओह, तो?”
मीश्का ने कहा:
 “बस, यही तो बात है!”
और तभी मेरे दिमाग में बिजली कौंध गई.”
 “मीश्का,” मैंने कहा, “ओ, मीश्का! “मूर्ज़िल्का” हमारी हुई!”
मीश्का ने पूछा:
“कैसे?”
 “वो ऐसे. मेरा भी सिट्रो पीने सा टाईम आ गया है. मेरे बस पाँच सौ ग्राम ही तो कम हैं!”
मीश्का उछल पड़ा:
 “समझ गया, चल बुफे भागते हैं!”
और हमने जल्दी से पानी की बोतल खरीदी, सेल्सगर्ल ने उसका कॉर्क खोला, और मीश्का ने पूछा:
 “आण्टी, क्या बोतल में हमेशा एक्ज़ेक्ट आधा-लीटर रहता है, कम तो नहीं होता?”
सेल्सगर्ल लाल हो गई.
 “ऐसी बेवकूफ़ी भरी बातें मुझसे कहने के लिए तू अभी छोटा है!”
मैंने बोतल ली, मेज़ पर बैठ गया, और लगा पीने. मीश्का बगल में खड़ा होकर देखे जा रहा था. पानी बेहद ठण्डा था. मगर मैंने एक ही दम में पूरा गिलास पी लिया. मीश्का ने फ़ौरन दूसरा गिलास भी भर दिया, मगर उसके बाद भी बोतल में काफ़ी पानी बचा था, और मेरा दिल तो और पानी पीने को नहीं चाह रहा था.
मीश्का ने कहा:
 “चल, देर मत कर.”
मैंने कहा:
 “बहुत ही ठण्डा है. कहीं फ्लू ना हो जाए.”
मीश्का ने कहा:
 “तू ज़्यादा नखरे मत कर. बोल, डर गया है, हाँ?”
मैंने कहा:
 “तू ही डर गया होगा.”
और मैं दूसरा गिलास पीने लगा.
वह बड़ी मुश्किल से पिया जा रहा था. जैसे ही मैंने इस दूसरे गिलास का तीन-चौथाई भाग पिया, तो समझ गया कि मेरा पेट पूरा भर गया है. बिल्कुल ऊपर तक.”
मैंने कहा:
 “स्टॉप, मीश्का! अब और अन्दर नहीं जाएगा!”
 “जाएगा, जाएगा. तुझे सिर्फ ऐसा लग रहा है! पी!”
 “मैंने कोशिश की. नहीं जा रहा है.”
मीश्का ने कहा:
”ये तू बैठा क्या है राजा की तरह! तू उठ, तब जाएगा!”
मैं उठ कर खड़ा हो गया. और सच में, आश्चर्यजनक ढंग से गिलास में बचा हुआ पानी पी गया. मगर मीश्का ने फ़ौरन बोतल में बचा हुआ पूरा पानी गिलास में डाल दिया. आधे गिलास से भी कुछ ज़्यादा ही था.
मैंने कहा:
”मेरा पेट फूट जाएगा.”
मीश्का ने कहा:
”तो फिर मेरा पेट कैसे नहीं फूटा? मैं भी सोच रहा था कि फूट जाएगा. चल, गटक ले.”
 “मीश्का. अगर. पेट फूट गया. तू. होगा. ज़िम्मेदार.”
वो बोला:
“अच्छा-अच्छा. चल, पी ले.”
और मैं फिर से पीने लगा. और पूरा पी गया. बड़े ताज्जुब की बात हो गई! बस, मैं बोल नहीं पा रहा था. क्योंकि पानी मेरे गले के ऊपर तक भर गया था और मुँह में डब्-डब् कर रहा था. और थोड़ा-थोड़ा नाक से भी निकल रहा था.
और मैं तराज़ू की ओर भागा. जोकर ने मुझे नहीं पहचाना. उसने खट्-खट् किया और अचानक ज़ोर से चिल्लाया:
 “हुर्रे! है! एक्ज़ेक्ट!!! पॉइंट-टू-पॉइंट. “मूर्ज़िल्का” की एक साल की मेम्बरशिप जीत ली गई है. वो मिलती है इस बच्चे को, जिसका वज़न एक्ज़ेक्टली पच्चीस किलोग्राम है. ये रहा हॉर्म, अभ्भी मैं उसे भरता हूँ. तालियाँ!”
उसने मेरा दायाँ हाथ पकड़कर ऊपर उठाया, और सब लोग तालियाँ बजाने लगे, और जोकर विजय-गीत गाने लगा! फिर उसने बॉल-पेन लिया और कहा:
“तो, तेरा नाम क्या है? नाम और सरनेम? जवाब दे!”
मगर मैं चुप ही था. मैं पानी से लबालब भरा था और बोल नहीं पा रहा था.
अब मीश्का चीख़ा:
 “उसका नाम है डेनिस. सरनेम है कोराब्ल्येव! लिखिए, मैं उसे जानता हूँ!”
जोकर ने भरा हुआ फॉर्म मेरी तरफ़ बढ़ा दिया और कहा:
 “कम से कम थैन्क्स तो कहो!”
मैंने सिर हिला दिया, और मीश्का फिर से चिल्लाया:
 “ये वो ‘थैन्क्स’ कह रहा है. मैं उसे जानता हूँ!”
और जोकर ने कहा:
 “क्या बच्चा है! ‘मूर्ज़िल्का’ जीत लिया और ख़ुद ऐसे चुप है जैसे उसके मुँह में पानी भरा हो!”
और मीश्का ने कहा:
 “ध्यान मत दीजिए, वो बड़ा शर्मीला है, मैं उसे जानता हूँ!”
और उसने मेरा हाथ पकड़ा और खींचते हुए मुझे नीचे ले गया.
बाहर आकर मैंने थोड़ी साँस ली. मैंने कहा:
 “मीश्का, न जाने क्यों मुझे ये मेम्बरशिप घर ले जाना अच्छा नहीं लग रह है, जब मेरा वज़न सिर्फ साढ़े चौबीस किलो है.”
मगर मीश्का ने कहा:
”तो मुझे दे दे. मेरा तो एक्ज़ेक्ट पच्चीस किलो है ना. अगर मैं सिट्रो न पीता, तो ये फ़ौरन मुझे ही मिलता. ला, इधर दे.”
“तो मैं क्या बेकार ही में तकलीफ़ सहता रहा? नहीं, चल, ये हमारी दोनों की रही – आधी-आधी!”
तब मीश्का ने कहा:
 “सही है!”
      
*****