एक्ज़ेक्ट 25 किलो
लेखक: विक्टर
द्रागून्स्की
अनु.: आ. चारुमति
रामदास
हुर्रे! मुझे और मीश्का को ‘मेटलिस्ट’
क्लब में ‘चिल्ड्रेंस फेस्टिवल’ का इन्विटेशन-कार्ड मिला. दूस्या आण्टी ने इसके
लिए कोशिश की थी: वह इस क्लब में सफ़ाई-विभाग की प्रमुख है. कार्ड तो उसने हमें एक
ही दिया, मगर उस पर लिखा था: ‘दो व्यक्तियों के लिए’! मतलब – मेरे लिए और मीश्का
के लिए. हम बहुत ख़ुश हो गए, ऊपर से ये क्लब हमारे घर के पास ही, बस, मोड़ पर ही था.
मम्मा ने कहा:
“तुम लोग, बस, वहाँ पे शरारत मत करना.”
और उसने हम दोनों को पन्द्रह-पन्द्रह
कोपेक दिए.
मैं और मीश्का निकल पड़े.
वहाँ, क्लोक-रूम में खूब धक्का-मुक्की हो
रही थी और खूब लम्बी लाईन लगी थी. मैं और मीश्का लाईन के आख़िर में खड़े हो गए. लाईन
बड़े धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी. मगर, अचानक ऊपर से म्यूज़िक बजने लगा, और मैं और
मीश्का एक ओर से दूसरी ओर भागने लगे, जिससे कि जल्दी से अपने कोट उतार सकें, और
बहुत सारे दूसरे बच्चे भी इस म्यूज़िक को सुनते ही, इधर-उधर भागने लगे, जैसे किसी
ने उन पर गोली चला दी हो, और वे चीख़ने भी लगे, कि वे सबसे दिलचस्प प्रोग्राम के
लिए ‘लेट’ हो रहे हैं.
मगर तभी अचानक न जाने कहाँ से दूस्या
आण्टी टपक पड़ी:
“डेनिस, मीश्का के साथ! तुम लोग यहाँ क्यों
परेशान हो रहे हो? मेरे साथ आओ!”
और हम उसके पीछे भागे, उसके पास सीढ़ियों
के नीचे एक अलग कमरा है, वहाँ बहुत सारे ब्रश खड़े हैं और बाल्टियाँ भी हैं. दूस्या
आण्टी ने हमारी चीज़ें ले लीं और कहा:
”वापस यहीं आकर अपने-अपने कोट पहन लेना,
शैतानों!”
मीश्का और मैं भीड़ के साथ सीढ़ियों से ऊपर
धकेले गए. मगर, वहाँ वाक़ई में इतना ख़ूबसूरत था! बताना मुश्किल है! सभी छतों को
रंगबिरंगे कागज़ की रिबन्स से और लैम्पों से सजाया गया था, चारों ओर शीशों के
टुकड़ों से बनाए गए ख़ूबसूरत लैम्प जल रहे थे, म्यूज़िक बज रहा था, और भीड़ में
सजे-धजे आर्टिस्ट्स घूम रहे थे: एक बिगुल बजा रहा था, दूसरा – ड्रम. एक आण्टी ने
घोड़े जैसी ड्रेस पहनी थी, और खरगोश भी थे, और टेढ़े-मेढ़े आईने थे, और पेत्रूश्का
था.
हॉल के अंत में एक और दरवाज़ा था, और उस पर
लिखा था: “मनोरंजन-कक्ष”.
मैंने पूछा:
“ये क्या है?”
“ये अलग-अलग तरह के मनोरंजक खेल हैं.”
और, सही में, वहाँ मनोरंजन के कई सारे खेल
थे. मिसाल के तौर पर, वहाँ डोरी से बंधा हुआ एक ऍपल था, और पीठ के पीछे हाथ रखना
था, और इस तरह, हाथों के बिना इस ऍपल को कुतरना था. मगर वो तो डोरी पर लगातार घूम
रहा था और किसी भी तरह पकड़ में नहीं आ रहा था. ये बड़ा मुश्किल काम था, और अपमानजनक
भी. मैंने दो बार इस ऍपल को हाथों से पकड़ लिया और कुतरने लगा. मगर मुझे उसे खाने
नहीं दिया गया, बल्कि बस, हँसकर हाथ से छुड़ा लिया. वहाँ पर तीर-कमान भी था, और तीर के सिरे पर नोक नहीं थी, बल्कि रबर का छोटा
सा स्टिकर था, जो कस के चिपक जाता था. जिसका निशाना बोर्ड पर, केन्द्र पर, लगेगा,
जहाँ एक बन्दर बना हुआ था, उसे प्राईज़ मिलने वाला था – एक सीक्रेट पटाखा.
मीश्का ने पहले निशाना लगाया, वह बड़ी देर
तक निशाना साधता रहा, मगर जब उसने तीर चलाया, तो दूर के एक लैम्प को तोड़ दिया, मगर
बन्दर तक नहीं पहुँचा...
मैंने कहा:
“ऐख तू, तीरंदाज़!”
“ये तो मैं अभी रेंज तक गया ही नहीं! अगर पाँच
तीर दिए जाते, तो मैं बन्दर को मार देता. मगर उन्होंने एक ही दिया – निशाना कैसे
लगता!”
मैंने फिर से कहा:
“चल, चल, रहने दे! देख लेना, मैं अभ्भी बन्दर पर
पहुँचता हूँ!”
और उस अंकल ने जो ये सब इंतज़ाम कर रहा था,
मुझे एक तीर दिया और कहा:
“तो, चला तीर, शार्प-शूटर!”
और वह ख़ुद बन्दर को ठीक करने के लिए गया,
क्योंकि वह कुछ टेढ़ा हो गया था. मैंने निशाना साध लिया था और बस, इंतज़ार कर रहा था
कि वह कब बन्दर को सही करता है, मगर कमान बहुत टाईट थी, और मैं पूरे समय अपने आप
से कहे जा रहा था: ‘अब मैं इस बन्दर को मार गिराऊँगा’, - और अचानक तीर छूट गया और
खप्! अंकल के कंधे के नीचे जा लगा. और वहाँ, कंधे के नीचे चिपक कर फड़फड़ाने लगा.
चारों ओर खड़े सब लोगों ने तालियाँ बजाईं
और हँसने लगे, मगर अंकल ऐसे मुड़े जैसे उन्हें डंक लगा हो और चिल्लाने लगे:
“इसमें हँसने की क्या बात है? समझ में नहीं आता!
भाग जा, शैतान, तुझे अब और तीर नहीं मिलेगा!”
मैंने कहा:
“मैंने जानबूझ कर नहीं किया!” और वहाँ से चला
गया.
ताज्जुब की बात है कि हमसे कुछ भी नहीं हो
पा रहा था, और मैं बहुत गुस्सा हो गया, और, बेशक, मीश्का भी.
और, अचानक हम देखते हैं – तराज़ू. उसके पास
छोटी सी, प्रसन्न-सी लाईन, जो बड़ी जल्दी-जल्दी आगे बढ़ रही थी, और वहाँ सब लोग मज़ाक
कर रहे थे और ठहाके लगा रहे थे. तराज़ू के पास था एक जोकर.
मैंने पूछा:
“ये कैसी तराज़ू है?”
उन्होंने मुझे बताया:
“खड़ा हो जा, अपना वज़न करवा. अगर तेरा वज़न पच्चीस
किलो है, तो तू भाग्यशाली होगा. इनाम मिलेगा: साल भर के लिए मैगज़ीन ‘मूर्ज़िल्का’
फ्री में मिलेगी.”
मैंने कहा:
“मीश्का, चल, कोशिश करेंगे?”
देखता क्या हूँ कि वहाँ मीश्का नहीं है.
कहाँ चला गया, मालूम नहीं. मैंने तय कर लिया कि अकेला ही कोशिश करूँगा. हो सकता
है, मेरा वज़न बिल्कुल पच्चीस किलो ही हो? तब मिलेगी सफ़लता!...
लाईन आगे बढ़ती ही जा रही थी, और टोपी वाला
जोकर इतनी सफ़ाई से लीवर खट्-खट् कर रहा था और मज़ाक पे मज़ाक किए जा रहा था:
“आपका
वज़न सात किलो ज़्यादा है – आलू की चीज़ें कम खाईये!- खट्-खट्! – और आप, आदरणीय कॉम्रेड,
अभी आपने बहुत कम पॉरिज खाया है, इसलिए मुश्किल से उन्नीस किलो तक पहुँच रहे हैं!
साल भर बाद आईये. – खट्-खट्!”
और
इसी तरह की बातचीत हो रही थी, और सब हँस रहे थे, और दूर हटते जा रहे थे, लाईन आगे
बढ़ती जा रही थी, और किसी का वज़न एक्ज़ेक्ट पच्चीस किलो नहीं आ रहा था, और तभी मेरी
बारी आ गई.
मैं तराज़ू पर चढ़ा – लीवर की खट्-खट्, और
जोकर ने कहा:
“ओहो!
धूप-छाँव का खेल मालूम है?”
मैंने कहा:
“वो
कौन नहीं जानता!”
“तेरा
मामला काफ़ी गरम है. तेरा वज़न चौबीस किलो पाँच सौ ग्राम है, बस आधा किलो की कमी है.
अफ़सोस. तन्दुरुस्त रहो!”
ज़रा सोचो, सिर्फ आधा किलो की कमी है!
मेरा मूड बहुत ख़राब हो गया. कैसा मनहूस
दिन निकला है आज!
और तभी मीश्का प्रकट हुआ.
मैंने कहा:
“आप
की सवारी कहाँ ग़ायब हो जाती है?”
मीश्का ने कहा:
“सिट्रो
पी रहा था.”
मैंने कहा:
“बहुत
अच्छे, क्या कहने! यहाँ मैं कोशिश किए जा रहा हूँ कि “मूर्ज़िल्का ” जीत जाऊँ, और
वो सिट्रो पी रहा है.
और मैंने उसे सारी बात बताई. मीश्का ने
कहा:
“ओह,
ये-बात-है!”
और जोकर ने लीवर से खट्-खट् किया और ठहाके
लगाने लगा:
“थोड़ी
सी गड़बड़ है! पच्चीस किलो पाँच सौ ग्राम. आपको थोड़ा दुबला होना पड़ेगा. आगे!
मीश्का तराज़ू से उतरा और बोला:
“ऐख़!
मैंने बेकार ही में सिट्रो पिया...”
मैंने कहा:
“यहाँ
सिट्रो क्यों आ गया?”
और मीश्का बोला:
“मैंने
पूरी बोतल पी ली! समझ रहा है?”
मैंने कहा:
“तो
फिर?”
अब मीश्का ने फुसफुसाते हुए साफ़-साफ़ कहा:
“अरे
आधा लिटर पानी – ये ही तो हुआ ना आधा किलो. पाँच सौ ग्राम! अगर मैं न पीता, तो
मेरा वज़न एक्ज़ेक्ट पच्चीस किलो निकलता!”
मैंने कहा:
”ओह, तो?”
मीश्का ने कहा:
“बस,
यही तो बात है!”
और तभी मेरे दिमाग में बिजली कौंध गई.”
“मीश्का,”
मैंने कहा, “ओ, मीश्का! “मूर्ज़िल्का” हमारी हुई!”
मीश्का ने पूछा:
“कैसे?”
“वो
ऐसे. मेरा भी सिट्रो पीने सा टाईम आ गया है. मेरे बस पाँच सौ ग्राम ही तो कम हैं!”
मीश्का उछल पड़ा:
“समझ
गया, चल बुफे भागते हैं!”
और हमने जल्दी से पानी की बोतल खरीदी,
सेल्सगर्ल ने उसका कॉर्क खोला, और मीश्का ने पूछा:
“आण्टी,
क्या बोतल में हमेशा एक्ज़ेक्ट आधा-लीटर रहता है, कम तो नहीं होता?”
सेल्सगर्ल लाल हो गई.
“ऐसी
बेवकूफ़ी भरी बातें मुझसे कहने के लिए तू अभी छोटा है!”
मैंने बोतल ली, मेज़ पर बैठ गया, और लगा
पीने. मीश्का बगल में खड़ा होकर देखे जा रहा था. पानी बेहद ठण्डा था. मगर मैंने एक
ही दम में पूरा गिलास पी लिया. मीश्का ने फ़ौरन दूसरा गिलास भी भर दिया, मगर उसके
बाद भी बोतल में काफ़ी पानी बचा था, और मेरा दिल तो और पानी पीने को नहीं चाह रहा
था.
मीश्का ने कहा:
“चल,
देर मत कर.”
मैंने कहा:
“बहुत
ही ठण्डा है. कहीं फ्लू ना हो जाए.”
मीश्का ने कहा:
“तू
ज़्यादा नखरे मत कर. बोल, डर गया है, हाँ?”
मैंने कहा:
“तू
ही डर गया होगा.”
और मैं दूसरा गिलास पीने लगा.
वह बड़ी मुश्किल से पिया जा रहा था. जैसे
ही मैंने इस दूसरे गिलास का तीन-चौथाई भाग पिया, तो समझ गया कि मेरा पेट पूरा भर
गया है. बिल्कुल ऊपर तक.”
मैंने कहा:
“स्टॉप,
मीश्का! अब और अन्दर नहीं जाएगा!”
“जाएगा,
जाएगा. तुझे सिर्फ ऐसा लग रहा है! पी!”
“मैंने
कोशिश की. नहीं जा रहा है.”
मीश्का ने कहा:
”ये तू बैठा क्या है राजा की तरह! तू उठ,
तब जाएगा!”
मैं उठ कर खड़ा हो गया. और सच में,
आश्चर्यजनक ढंग से गिलास में बचा हुआ पानी पी गया. मगर मीश्का ने फ़ौरन बोतल में बचा
हुआ पूरा पानी गिलास में डाल दिया. आधे गिलास से भी कुछ ज़्यादा ही था.
मैंने कहा:
”मेरा पेट फूट जाएगा.”
मीश्का ने कहा:
”तो फिर मेरा पेट कैसे नहीं फूटा? मैं भी
सोच रहा था कि फूट जाएगा. चल, गटक ले.”
“मीश्का.
अगर. पेट फूट गया. तू. होगा. ज़िम्मेदार.”
वो बोला:
“अच्छा-अच्छा. चल, पी ले.”
और मैं फिर से पीने लगा. और पूरा पी गया.
बड़े ताज्जुब की बात हो गई! बस, मैं बोल नहीं पा रहा था. क्योंकि पानी मेरे गले के
ऊपर तक भर गया था और मुँह में डब्-डब् कर रहा था. और थोड़ा-थोड़ा नाक से भी निकल रहा
था.
और मैं तराज़ू की ओर भागा. जोकर ने मुझे
नहीं पहचाना. उसने खट्-खट् किया और अचानक ज़ोर से चिल्लाया:
“हुर्रे!
है! एक्ज़ेक्ट!!! पॉइंट-टू-पॉइंट. “मूर्ज़िल्का” की एक साल की मेम्बरशिप जीत ली गई
है. वो मिलती है इस बच्चे को, जिसका वज़न एक्ज़ेक्टली पच्चीस किलोग्राम है. ये रहा
हॉर्म, अभ्भी मैं उसे भरता हूँ. तालियाँ!”
उसने मेरा दायाँ हाथ पकड़कर ऊपर उठाया, और
सब लोग तालियाँ बजाने लगे, और जोकर विजय-गीत गाने लगा! फिर उसने बॉल-पेन लिया और
कहा:
“तो, तेरा नाम क्या है? नाम और सरनेम? जवाब
दे!”
मगर मैं चुप ही था. मैं पानी से लबालब भरा
था और बोल नहीं पा रहा था.
अब मीश्का चीख़ा:
“उसका
नाम है डेनिस. सरनेम है कोराब्ल्येव! लिखिए, मैं उसे जानता हूँ!”
जोकर ने भरा हुआ फॉर्म मेरी तरफ़ बढ़ा दिया
और कहा:
“कम
से कम थैन्क्स तो कहो!”
मैंने सिर हिला दिया, और मीश्का फिर से
चिल्लाया:
“ये
वो ‘थैन्क्स’ कह रहा है. मैं उसे जानता हूँ!”
और जोकर ने कहा:
“क्या
बच्चा है! ‘मूर्ज़िल्का’ जीत लिया और ख़ुद ऐसे चुप है जैसे उसके मुँह में पानी भरा
हो!”
और मीश्का ने कहा:
“ध्यान
मत दीजिए, वो बड़ा शर्मीला है, मैं उसे जानता हूँ!”
और उसने मेरा हाथ पकड़ा और खींचते हुए मुझे
नीचे ले गया.
बाहर आकर मैंने थोड़ी साँस ली. मैंने कहा:
“मीश्का,
न जाने क्यों मुझे ये मेम्बरशिप घर ले जाना अच्छा नहीं लग रह है, जब मेरा वज़न
सिर्फ साढ़े चौबीस किलो है.”
मगर मीश्का ने कहा:
”तो मुझे दे दे. मेरा तो एक्ज़ेक्ट पच्चीस
किलो है ना. अगर मैं सिट्रो न पीता, तो ये फ़ौरन मुझे ही मिलता. ला, इधर दे.”
“तो मैं क्या बेकार ही में तकलीफ़ सहता
रहा? नहीं, चल, ये हमारी दोनों की रही – आधी-आधी!”
तब मीश्का ने कहा:
“सही
है!”
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