गुरुवार, 5 अगस्त 2021

फ़ेद्या के बारे में...

 

फ़ेद्या के बारे में, फ़ेद्या की माँ के और किसी और के बारे में

लेखिका: मरीना द्रुझीनिना

अनुवाद: आ. चारुमति रामदास



बहुत-बहुत पहले एक बेहद-बेहद ग़लीज़ जोड़ी रहती थी – सुड़सुड़-छींक और आण्टी खाँसी. और यह जोड़ी हरेक पर ज़्यादा-ज़्यादा छींकने और खाँसने की कोशिश करते. ख़ासकर सुड़सुड़-छींक और आण्टी खाँसी को बच्चों पर टूट पड़ना बहुत अच्छा लगता था. अचानक. और ये यह बड़ी आसानी से कर सकते थे क्योंकि वे अदृश्य जो थे – उन्हें न तो कोई देख सकता था और न ही सुन सकता था. जैसे वह बच्चे पर हमला करते वह फ़ौरन छींकना और खाँसना शुरू कर देता. छींकना और खाँसना. मतलब, बीमार हो जाता. और सुड़सुड़-छींक और आण्टी खाँसी बेहद ख़ुश हो जाते और ठहाके लगाते! और एक दूसरे का कंधा थपथपाते! बच्चा छींक रहा है, और वे डान्स कर रहे हैं और गा रहे हैं : “ईह, एक बार, फिर एक बार, और बहुत-बहुत बार!” और बच्चा जितना ज़्यादा बीमार होता, उसकी माँ उतनी ही ज़्यादा दुखी होती, उतने ही ज़्यादा सुड़सुड़-छींक और आण्टी खाँसी ख़ुश होते. मगर जब बच्चा बीमारी को दूर भगा देता और ठीक होने लगता और माँ दुखी होना बंद कर देती, सुड़सुड़-छींक और आण्टी खाँसी इतने परेशान हो जाते कि ख़ुद ही कमज़ोर और सूखे होने लगते. और वे फ़ौरन किसी और जगह भाग जाते, जहाँ फ़िर से बच्चों को बीमार बनाते और ख़ुश होते.

ऐसी ख़तरनाक थी यह जोड़ी.

तो, एक बार सुड़सुड़-छींक और आण्टी खाँसी ने फ़ैसला किया कि छोटे बच्चे फ़ेद्या पर हमला करेंगे. दुबला-पतला, मरियल-सा बच्चा.

जैसे ही वे उसके पास पहुँचे, फ़ेद्या – “एक!” - और फ़ेद्या बारपर चढ़ गया. जैसे ही वे कोशिश करके उसके ऊपर उछले, फ़ेद्या – “एक! दो!” – और कैसे कलाबाज़ी खाने लगा! पैर इस तरह पटकने लगा कि उसे पकड़ना मुश्किल हो गया! सिर्फ खरोंचे और खरोंचे!

और फ़ेद्या कलाबाज़ियाँ खाता रहा, खाता रहा और बार से कूदा. और ज़ाहिर है उसे पता भी नहीं चला कि उसने बिन बुलाये मेहमानों को चारों ओर फेंक दिया है.

सुड़सुड़-छींक और आण्टी खाँसी ने अपने आप को झटका, सीधा किया और फिर से चुपचाप फ़ेद्या की ओर बढ़ने लगे. बिल्कुल पास आ गये, बस, अब कूदने ही वाले हैं, मगर फ़ेद्या – “एक!” – और उसने बाथरूम में फ़व्वारा चला दिया. वह हमेशा कसरत के बाद फ़व्वारे के नीचे खड़ा हो जाता था. तेज़ धार कैसे सुड़सुड़ छींक और आण्टी खाँसी को मारने लगी! कैसे उन्हें चौंका रही थी और बहरा बना रही थी! और वे फ़िर से अलग–अलग दिशाओं में उड़ गये. फ़ेद्या पर हमला कर ही नहीं पाये!  

“कोई बात नहीं, आण्टीगीली खाँसी आण्टी को निचोड़ते हुए सुड़सुड़ छींक ने नकीली आवाज़ में कहा, “हम उसे और दिखायेंगे! हम इस बच्चे को सबक सिखायेंगे! वर्ना मैं नाम का सुड़सुड़ छींक नहीं!”

और फ़ेद्या ने नाश्ता किया और घूमने निकल गया. कम्पाऊण्ड में उसे अपना दोस्त मिला. और वे एक दूसरे से कुश्ती खेलने लगे. बेशक, मज़ाक में, दोस्ताना अंदाज़ में. पहले फ़ेद्या ने अपने दोस्त को कंधे की दोनों हड्डियों के बल लिटा दिया. फ़िर दोस्त ने फ़ेद्या को कंधे की दोनों हड्डियों के बल गिरा दिया. उसने भी, बेशक, दोस्ताना अंदाज़ में ही किया. और फ़ेद्या को अपने दोनों कंधों के बल लेटना इतना अच्छा लगा कि उसने कुछ देर ऐसे ही लेटे रहने और सुस्ताने का फ़ैसला कर लिया.

तभी तो सुड़सुड़ छींक और खाँसी आण्टी उस पर झपटे! और उन्होंने फ़ेद्या पर ज़ुकाम छोड़ दिया. फ़ेद्या उठा, घर आया और कैसे छींकने और खाँसने लगा! उसका तापमान भी बढ़ गया. बीमार हो गया फ़ेद्या. और मम्मा फ़ौरन दुखी हो गई. जब भी बच्चे बीमार होते हैं मम्मा हमेशा दुखी हो ही जाती है...

और सुड़सुड़ छींक और खाँसी आण्टी का तो हाल ही ना पूछो – बेहद ख़ुश हो गये! नाचने लगे! और, बेशक, एक दूसरे के कंधों को थपथपाते हुए गाने लगे: “ऐह, एक बार! और एक बार! और कई-कई बार!”

मगर फ़ेद्या, हालाँकि बीमार हो गया था, मगर बहुत परेशान नहीं हुआ. अगर ईमानदारी से कहें, तो वह ख़ुश ही हुआ कि मम्मा काम पर नहीं गई और घर पर ही रही. मम्मा ने उसे किताबें पढ़ कर सुनाईं और रशभरी-जॅम तथा औषधीय जड़ी-बूटियों वाली चाय पिलाई. और शाम को मम्मा ने फ़ेद्या को अपने घुटनों पर बिठाया, कस कर उसे गले लगाया और कहा:

“ऐह, काश तेरी बीमारी मुझ पर आ जाती, और तुझे चैन से रहने देती! मैं तो फ़ौरन उसे भगा देती! और तू फ़ौरन अच्छा हो जाता!”

मगर फ़ेद्या ने जवाब दिया:

“तू क्या कह रही है! मैं नहीं चाहता कि तू बीमार हो जाये! अपनी बीमारी मैं तुझे नहीं दूंगा! किसी हालत में नहीं! मम्मा, तो दुखी न हो. मैं जल्दी से अच्छा हो जाऊँगा!”

खाँसी आण्टी और सुड़सुड़ नाक फ़ेद्या की बात सुनकर बुरी तरह चौंक गये.

“कैसा बदमाश है!” खाँसी आण्टी गुस्से से खाँसने लगी. “उसे कैसे मालूम कि जल्दी अच्छा हो जायेगा?! हम उसे इसकी इजाज़त नहीं देंगे!”

और सुड़सुड़ छींक शिकायत के अंदाज़ में बोला:

“ये बहुत ही ख़ुश है, हाँलाकि बीमार है! मुझे यह अच्छा नहीं लग रहा है, प्यारी आण्टी! हो सकता है इसे हमारे ख़िलाफ़ कोई भेद मालूम हो?”

और फ़ेद्या और मम्मा ने जितनी जल्दी हो सके, बीमारी को भगाने का फ़ैसला कर लिया. वे फ़ेद्या के पैरों को गर्म पानी की भाप देने लगे. मगर सिर्फ यूँ ही बैठे-बैठे भाप से पैर सेंकना बेहद बोरिंगहै. और फ़ेद्या कविताएँ बनाने लगा:

“शुक्र ख़ुदा का, आख़िरकार.

सेंक रहा मैं अपना पाँव!”

मम्मा मुस्कुराई:

“बढ़िया! आगे चल!”

और सुड़सुड़ नाक और आण्टी खाँसी गुस्से से तन गये और परेशानी से अपने नाख़ून काटने लगे. उनके लिये तो सबसे प्यारी बात यही होती है, जब मम्मा दुखी होती है, और बच्चा बीमार और चिड़चिड़ा हो जाता है! मगर यहाँ – मुलाहिज़ा फ़रमाईये!

बच्चा कविता बना रहा है, और मम्मा मुस्कुरा रही है! बेहूदगी!

और फ़ेद्या कहता रहा:

“भाप ले रहा मेरा पाँव,

बैठा मैं, हल्के-हल्के मुस्काता!”

“तू सुन रहा है, ये बदमाश अभी भी मुस्कुरा रहा है!” सुड़सुड़ छींक ने आण्टी खाँसी को धकेलते हुए कहा.

“कोई बात नहीं, सुड़सुड़ छींक, ये तो अच्छा है कि हौले-हौले मुस्कुरा रहा है,” आण्टी खाँसी ने उसे शांत किया. मगर बिना आत्मविश्वास के.

वाकई में, यह एक मामूली-सी सांत्वना थी. दोनों महसूस कर रहे थे, कि सब कुछ वैसे नहीं हो रहा है, जैसे होना चाहिये.

और फ़ेद्या ने सोचा-सोचा और हिम्मत से मम्मा से कहा:

“ख़ुश हो जाओ, उदास न हो!

उबलता पानी और डालो!”

और वे खिलखिला पड़े. और वह भी हल्के से नहीं, बल्कि ज़ोर से और ख़ुशी से.

अब सुड़सुड़ छींक और खाँसी आण्टी से और बर्दाश्त नहीं हुआ.

“चलो, फ़ौरन भागते हैं इस ख़तरनाक घर से!” सुड़सुड़ छींक चीख़ा. “यहाँ तो बीमार होने, रोने और निराश होने के बदले सिर्फ उबला हुआ पानी उंडेलते हैं और ठहाके लगाते हैं!

“सुड़सुड़ छींक, फ़ौरन भागते हैं!” खाँसी आण्टी ने उसका समर्थन किया. “वर्ना तो हम ख़ुद ही बीमार हो जायेंगे और ऐसे ख़तरनाक ख़ुशनुमा माहौल में बर्बाद हो जायेंगे!”

उन्होंने एक दूसरे का हाथ पकड़ा, खिड़की से बाहर कूदे और बिना कोई रास्ता ढूँढे चल पड़े, वहाँ जहाँ उनके लिये माहौल ठीक-ठाक हो...

और फ़ेद्या एक और बार छींका, खाँसा और अचानक उसे महसूस हुआ कि उसकी बीमारी दूर हो गई है.

“मम्मा, मैं ठीक हो गया!” वह चहका.

“सच?! मैं कितनी ख़ुश हूँ!...” मम्मा ने ख़ुशी से गहरी सांस ली.

 

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सोमवार, 2 अगस्त 2021

उलटे दिमाग़ वाली लड़की

 

 

उलटे दिमाग़ वाली लड़की

लेखिका: मरीना द्रुझीनिना

अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

 

हमारी बिल्डिंग में एक लड़की रहती है. न सिर्फ दाशा, बल्कि उल्टे दिमाग़ वाली दाशा!

मिसाल के तौर पर, अगर उससे कहो, “दाशा, डान्स कर ना, प्लीज़!” और वह फ़ौरन गाने लगेगी! “ल्या-ल्या-ल्या!”

और अगर उससे कहो, “दाशा, प्लीज़ गाना गाओ!” वह, सोचिये, फ़ौरन डान्स करना शुरू कर देती है! उछलती है, बैलेरीना की तरह पैर हिलाती है, और गोल-गोल घूमती है!

ऐसी आश्चर्यजनक है वह लड़की.

एक दिन मम्मा ने उससे कहा:

“दाशेन्का! अपने खिलौने समेट ले. और धूल झटक दे.”

और दाशा ने फ़ौरन बड़े जोश से अपने खिलौने कमरे में फेंकना शुरू कर दिया! और धूल फ़ैलाने लगी!”

तब मम्मा ने कहा:

“दाशेन्का! तुझसे विनती करती हूँ! किसी भी हालत में अपने खिलौने नहीं समेटना! और तेरी मिन्नत करती हूँ, कि धूल मत झाड़ना. किसी भी हालत में नहीं! कभी नहीं!”

और दाशा को सफ़ाई करनी पड़ी. अपने खिलौने सही जगह पर रखने पड़े और धूल भी झाड़नी पड़ी. हालाँकि उसका मन नहीं – बिल्कुल नहीं चाह रहा था यह सब करने के लिये.

मगर क्या कर सकते हो! सब कुछ ईमानदारी से होना चाहिये.

क्योंकि वह उल्टे दिमाग़ वाली लड़की जो है.

 

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