जादुई अंगूठी
(रूसी लोककथा)
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
किसी एक राज्य के किसी एक
प्रदेश में एक बूढ़ा अपनी बुढ़िया के साथ रहता था और उनका एक बेटा था जिसका नाम
मार्तिन्का था. बूढ़ा ज़िंदगी भर शिकार में व्यस्त रहा, वह
जानवरों और पंछियों को मारता और इसीसे अपना और अपने परिवार का पेट पालता था. जब
उसका समय आया, तो बूढ़ा बीमार हो गया और मर गया. मार्तिन्का
माँ के साथ रह गया, वे अफ़सोस करते रहे- रोते रहे, मगर कुछ भी तो नहीं किया जा सकता था: मरे हुए इन्सान को वापस तो नहीं ला
सकते. एक सप्ताह गुज़र गया, उन्होंने बचाकर रखी हुई सारी
ब्रेड खा ली.
बुढ़िया ने देखा कि अब खाने
के लिये कुछ भी नहीं बचा है, पैसों का इंतज़ाम करना पड़ेगा, बूढ़ा उनके लिये दो सौ रूबल्स छोड़ गया था. उसका दिल उस घड़े को छूना नहीं
चाह रहा था, जिसमें पैसे रखे हुए थे, मगर
चाहे कितना ही उसने अपने आप को रोका, मगर घड़े को खोलना ही
पड़ा – भूख से मरने में तो कोई अक्लमंदी नहीं है! उसने सौ रूबल्स गिने और बेटे से
कहा:
“चल, मार्तिन्का,
ये रहे सौ रूबल्स, पड़ोसियों से घोड़ा मांग ले,
शहर में जा और ब्रेड खरीद ला. किसी तरह सर्दियाँ गुज़ार लेंगे और
बसन्त में काम ढूँढेंगे.”
मार्तिन्का ने पड़ोसियों से
घोड़ा-गाड़ी मांगी और शहर की ओर चल पड़ा. वह कसाईयों की दुकानों के सामने से गुज़र रहा
था – देखा, कि हल्ला-गुल्ला, गाली-गलौज, लोगों
की भीड़ जमा है. क्या बात है? कसाईयों ने एक शिकारी कुत्ते को
पकड़ लिया था, उसे खंभे से बांध दिया था और उसे लाठियों से
मार रहे थे – कुत्ता, छिटक रहा था, रो
रहा था, काटने को दौड़ रहा था...मार्तिन्का कसाईयों के पास
भागा और पूछने लगा:
“भाईयों, आप इस
बेचारे कुत्ते को इतनी बेरहमी से क्यों मार रहे हो?”
“क्यों न
मारें, इस नासपीटे को,” कसाईयों ने
जवाब दिया, “गाय का पूरा धड़ बर्बाद कर दिया!”
“बस हो गया, भाईयों!
इसे न मारिये, बेहतर है, मुझे बेच
दीजिये.”
“ठीक है, ख़रीद ले,”
एक कसाई ने मज़ाक में कहा, “सौ रूबल्स दे.”
मार्तिन्का ने कमीज़ के भीतर
से सौ का नोट निकाला,
कसाईयों को दिया, कुत्ते को खोला और अपने साथ
ले चला. कुत्ता उसके प्रति प्यार दिखाने लगा, पूँछ हिलाता
रहा : मतलब, समझ गया कि किसने उसे मौत के मुँह से बचाया है.
मार्तिन्का घर पहुँचा, माँ फ़ौरन
पूछने लगी:
“क्या-क्या ख़रीदा, बेटा?”
“अपने लिये पहली ख़ुशी
ख़रीदी है.”
“ये बात को घुमा-फ़िरा कर
क्यों कह रहा है! कहाँ है ख़ुशी?”
“ये रहा – झूर्का!” और
उसने माँ को कुत्ता दिखाया.
“इसके अलावा कुछ और नहीं
ख़रीदा?”
‘अगर पैसे
बचते, तो शायद ख़रीद लेता, मगर कुत्ते
पर पूरे सौ खर्च हो गये.”
बुढ़िया गुस्सा हो गई.
“हमारे पास ख़ुद के लिये ही
कुछ खाने को नहीं है,
आज आख़िरी बचा-खुचा आटा खुरच कर निकाला और केक बनाया, मगर कल तो वह भी नहीं होगा!”
दूसरे दिन बुढ़िया ने और सौ
रूबल्स निकाले,
मार्तिन्का को दिये और उसे हुक्म दिया:
“देख, बेटा! शहर
में जा, ब्रेड खरीद, और बेकार ही में
पैसे खर्च न कर.”
मार्तिन्का शहर पहुँचा, सड़कों पर
घूमने लगा और हर चीज़ देखने लगा और तभी उसकी नज़र एक दुष्ट लड़के पर पड़ी : लड़के ने एक
बिल्ली पकड़कर उसकी गर्दन में रस्सी बांध दी थी और उसे खींचते हुए नदी की तरफ़ ले जा
रहा था.
“रुक!” मार्तिन्का
चिल्लाया. “ये, तू वास्का को खींचते हुए कहाँ ले जा रहा है?”
“इस कमीने को डुबा देना
चाहता हूँ!”
“किस कुसूर
के लिये?”
“मेज़ से केक चुरा लिया.”
“उसे मत डुबा, बेहतर है
मुझे बेच दे.”
“ठीक है, ख़रीद ले.
चल, सौ रूबल्स दे.”
मार्तिन्का ने सोचने में
देर नहीं लगाई,
सीने के पास हाथ ले गया, पैसे निकाले और बच्चे
को दे दिये, और बिल्ली को बोरे में रखकर घर ले आया.
“क्या खरीदा, बेटे?”
बुढ़िया ने उससे पूछा.
“वास्का बिल्ला.”
“इसके अलावा कुछ और नहीं
ख़रीदा?”
“अगर पैसे बचते, तो शायद
कुछ और भी ख़रीद लेता.”
“आह, कैसा
बेवकूफ़ है तू!” बुढ़िया उस पर चिल्लाई. “फ़ौरन घर से निकल जा, पराये
लोगों के घरों में काम करके अपने लिये रोटी कमा!”
मार्तिन्का काम ढूँढ़ने के
लिये पड़ोस के गाँव गया,
रास्ते पर जा रहा है और उसके पीछे-पीछे झूर्का और वास्का भी भागते
हुए आ रहे हैं. रास्ते में उसे पादरी मिला:
“ये सुबह-सुबह कहाँ जा रहा
है?”
“खेतों पर मज़दूरी करने जा
रहा हूँ.”
“मेरे पास आ जा. मगर मैं
सिर्फ बिना रैंक के मज़दूरों को ही लेता हूँ: जो मेरे पास तीन साल काम करेगा, उसकी वैसे
भी बेइज़्ज़ती नहीं करूँगा.”
मार्तिन्का राज़ी हो गया और
बिना थके पादरी के पास तीन सर्दियों और तीन गर्मियों में काम किया. मज़दूरी देने का
समय आया, मालिक के उसे बुलाया:
“चल. मार्तिन्का, अपने काम
की मज़दूरी ले ले.” वह उसे खलिहान में लाया, दो भरे हुए बोरे
दिखाये और कहा:
“जो चाहे, वह बोरा
ले ले.”
मार्तिन्का ने देखा – एक
बोरे में चाँदी के सिक्के हैं, और दूसरे में रेत है, और
वह सोचने लगा.
“ये कोई मामूली बात नहीं
है! चाहे मेरी मेहनत बेकार चली जाये, मगर मैं आज़मा के देखूँगा, रेत ले लेता हूँ – देखता हूँ कि इससे क्या होगा?”
वह मालिक से बोला:
“मैं, मालिक,
रेत वाला बोरा ले लेता हूँ.”
“अच्छी बात है, बच्चे,
तेरी मर्ज़ी. अगर चाँदी पसंद नहीं है तो ले ले.”
मार्तिन्का ने पीठ पर बोरा
लादा और दूसरी जगह मज़दूरी ढूँढ़ने निकल पड़ा. चलता रहा, चलता रहा
और चलते-चलते एक अँधेरे, ऊँघते हुए जंगल में पहुँचा. देखता
क्या है - जंगल के बीच में है मैदान और मैदान में जल रही है आग, और आग में बैठी है एक लड़की, इत्ती सुन्दर, इत्ती सुंदर, जैसी सिर्फ परी कथाओं में होती है.
सुंदर लड़की बोली:
“मार्तिन, बेवा के
बेटे! अगर अपने लिये सुख पाना चाहता है, तो मुझे बचा: लपटों
पर रेत छिड़क दे, जिसके लिये तू तीन साल तक काम करता रहा.”
‘सही है,’
मार्तिन्का ने सोचा, ‘इस बोझ को हर जगह क्यों
घसीटता फिरूँ, इससे बेहतर है इन्सान की मदद करना. रेत - कोई
ज़्यादा दौलत तो नहीं है, यह भलाई उसके मुकाबले में बहुत
ज़्यादा है!’
उसने बोरा खोला और रेत
छिड़कने लगा. आग फ़ौरन बुझ गई, सुन्दर लड़की धरती पर धम् से गिरी, एक साँप में बदल गई, भले नौजवान के सीने पर उछली और
उसकी गर्दन के चारों ओर अंगूठी की तरह लिपट गई.
मार्तिन्का डर गया.
“डरो नहीं!” साँप ने उससे
कहा. “अब तू सबसे दूर के देस में, सबसे आख़िर के प्रदेश में, धरती के नीचे वाले राज्य में जा, वहाँ मेरे अब्बा
राज करते हैं. जब उसके महल में जायेगा तो वह तुझे ख़ूब सारा सोना देगा, चाँदी देगा और हीरे-मोती देगा – तू कुछ भी न लेना, बल्कि
उसकी छोटी ऊँगली से अंगूठी मांग लेना. वह अंगूठी मामूली नहीं है : अगर उसे एक हाथ
से दूसरे में उछालेगा – फ़ौरन बारह नौजवान प्रकट हो जायेंगे, और
उन्हें जो भी हुक्म दो, एक ही रात में पूरा कर देंगे.”
भला नौजवान रास्ते पर चल
पड़ा. धीरे-धीरे धरती के छोर तक पहुँच गया और उसने एक विशाल पत्थर देखा. साँप उसकी
गर्दन से उछला,
गीली धरती से टकराया और फ़िर से पहले की तरह सुंदर लड़की में बदल गया.
“मेरे पीछे-पीछे आओ,” सुंदर
लड़की ने कहा और उसे पत्थर के नीचे ले गई.
वे बड़ी देर तक ज़मीन के
नीचे चलते रहे,
अचानक प्रकाश दिखाई दिया – अधिकाधिक रोशनी होने लगी, और वे साफ़ आसमान के नीचे, एक लम्बे-चौड़े खेत में
पहुँचे. उस खेत में एक शानदार महल बना हुआ था, महल में सुंदर लड़की का बाप रहता था, जो धरती के नीचे
वाले राज्य का सम्राट था.
मुसाफ़िर सफ़ेद पत्थरों वाले
दालानों में आये,
सम्राट ने प्यार से उनका स्वागत किया.
“नमस्ते,” उसने कहा,
“मेरी प्यारी बच्ची! इतने सालों तक तू कहाँ छुपी थी?”
“बाबा, तुम मेरी
रोशनी हो! मैं तो ख़त्म ही हो जाती, अगर यह आदमी नहीं होता :
इसने मुझे दुर्दैवी, अवश्यंभावी मृत्यु से आज़ाद किया और यहाँ,
मेरे अपने देस ले आया.”
“तेरा बहुत-बहुत शुक्रिया, बहादुर
नौजवान!” सम्राट ने कहा. “तेरे इस अच्छे काम के लिये तुझे इनाम देना ज़रूरी है.
अपने लिये सोना, चांदी और जितने चाहे उतने बहुमूल्य हीरे ले
लो.”
बेवा के बेटे मार्तिन ने
उसे जवाब दिया:
“महान सम्राट! मुझे न तो
सोने की ज़रूरत है,
न चांदी की, न ही हीरे-मोतियों की! अगर मुझ पर
मेहेरबानी करना ही चाहते हो तो अपने हाथ की अंगूठी मेझे दे दो – छोटी वाली ऊँगली
की. मैं कुँआरा आदमी हूँ, अक्सर अंगूठी की तरफ़ देखता रहूँगा,
अपनी दुल्हन के बारे में सोचूँगा, और इस तरह
अपनी उकताहट दूर भगाऊँगा.”
सम्राट ने फ़ौरन अंगूठी
निकाली, मार्तिन्का को दे दी:
“चल, ख़ुशी से
पहन ले! मगर देख – किसी को भी अंगूठी के बारे में मत बताना, वर्ना
तू बहुत बड़ी मुसीबत में पड़ जायेगा!”
बेवा के बेटे मार्तिन ने
सम्राट को धन्यवाद दिया,
अंगूठी और रास्ते के लिये थोड़े से पैसे लिये और वापस उसी रास्ते पर
निकल पड़ा, जिससे पहले आया था. देर से - सबेर से, पास से – दूर से – अपनी मातृभूमि की ओर मुड़ा, अपनी
बूढ़ी माँ को ढूँढ़ा और वे दोनों बिना किसी दुख और कमी के रहने लगे.
मार्तिन्का का दिल चाहा कि
शादी कर ले; माँ के पास आया, उसे रिश्ता लेकर भेजा.
“सीधे राजा के पास जा,” उसने कहा, “और
मेरे लिये सुंदर राजकुमारी का हाथ मांग ले.”
“अरे, बेटा,”
बुढ़िया ने जवाब दिया, “अगर
तू कोई पेड़ काटता,
तो बेहतर होता! वर्ना, समझ रहा है कि तू क्या सोच
रहा है! मैं राजा के पास क्यों जाने लगी? सबको पता है, वह
मुझ पर गुस्सा करेगा और तुझे मौत के घाट उतार देगा.”
“कोई
बात नहीं, माँ! आख़िर,
जब मैं भेज रहा हूँ, मतलब, हिम्मत
से जा. राजा क्या जवाब देता है, वह मुझे बताना, मगर
बिना किसी जवाब के घर मत लौटना.”
बुढ़िया
तैयार हुई और राजा के महल की ओर चल पड़ी. आँगन में आई और सीधे प्रमुख सीढ़ियों पर, बिना
कुछ कहे आगे बढ़ती गई. चौकीदारों ने उसे पकड़ लिया:
“रुक
जा, बूढ़ी चुडैल! ये शैतान तुझे कहाँ ले जा रहा है? यहाँ तो जनरल लोग भी
बिना सूचना के आने की हिम्मत नहीं करते हैं...”
“आह, तुम ऐरे-ग़ैरे!”
बुढ़िया चिल्लाई. ”मैं राजा के पास अच्छे काम से आई हूँ, उसकी
बेटी-राजकुमारी के लिये अपने बेटे का रिश्ता लाई हूँ, और
तुम लोग मुझे पकड़ रहे हो!”
इतना
हो-हल्ला मचाया! राजा ने उसकी चीख़ सुनी, खिड़की से देखा और बुढ़िया को
अपने पास भेजने के लिये कहा. वह कमरे में आई और झुककर राजा का अभिवादन किया.
“क्या
कहना है, बुढ़िया?”
राजा ने पूछा.
“मेहेरबान, मैं आपके
पास आई हूँ. तुझसे कहने में कोई बुराई नहीं है: मेरे पास व्यापारी है, तेरे पास माल है. व्यापारी है – मेरा बेटा मार्तिन्का, बेहद अकलमन्द, और माल है – तेरी बेटी, ख़ूबसूरत राजकुमारी. क्या मेरे मार्तिन्का से उसका ब्याह कर दोगे? बढ़िया जोड़ी रहेगी!”
“क्या कह रही है! क्या
पागल हो गई है?”
राजा उस पर चिल्लाया.
“बिल्कुल नहीं, महान
राजा! जवाब देने का कष्ट करें.”
राजा ने फ़ौरन उसी समय अपने
सभी मंत्रियों को बुलाया और वे विचार-विमर्श करने लगे कि बुढ़िया को क्या जवाब दिया
जाये. और उन्होंने यह फ़ैसला किया: मार्तिन्का चौबीस घण्टे में सबसे कीमती महल
बनाये, और उस महल से राजा के महल तक क्रिस्टल का पुल बनाया जाये. और पुल के दोनों
तरफ़ ऐसे पेड़ हों, जिन पर सोने और चांदी के सेब लगे हों,
उन्हीं पेड़ों पर तरह-तरह के पंछी गा रहे हों. और पाँच गुम्बदों वाला
चर्च भी बनाये : जहाँ मुकुट पहनाया जाये, जहाँ शादी रचाई
जाये. अगर बुढ़िया का बेटा यह सब कर दे, तो उसे राजकुमारी दी
जा सकती है : मतलब, वह बेहद अक्लमन्द है. और अगर वह ये न कर
सका, तो उसका और बुढ़िया का सिर काट दिया जाये.”
इस जवाब के साथ बुढ़िया को
छोड़ दिया गया. वह घर की ओर चल पड़ी – लड़खड़ा रही है, दुख के आँसुओं से नहा गई
है. मार्तिन्का को देखते ही उससे लिपट गई.
“देख,” बोली,
“मैंने तुझसे कहा था, बेकार की हसरत न पाल,
मगर तू अपनी ही बात पर अड़ा रहा! अब हमारे ग़रीब-बेचारे सिरों की ख़ैर
नहीं, कल ही हमें मार डालेंगे.”
“बस करो, माँ! ख़ुदा
ने चाहा तो ज़िंदा रहेंगे. अब सो जा – सुबह, लगता है, शाम से बेहतर होगी.”
ठीक आधी रात को मार्तिन्का
पलंग से उठा,
विशाल आंगन में आया, एक हाथ से दूसरे में
अंगूठी को उछाला – और उसके सामने फ़ौरन बारह नौजवान प्रकट हो गये, सब एक जैसे थे, चेहरा, बाल,
आवाज़....
“तुझे क्या चाहिये, बेवा के
बेटे मार्तिन?”
“मुझे ये चाहिये! सुबह से
पहले इस जगह पर मेरे लिये सबसे शानदार महल बना दो और इस महल से राजा के महल तक
क्रिस्टल का पुल हो,
पुल के दोनों तरफ़ सोने और चांदी के सेबों वाले पेड़ लग जायें,
उन पेड़ों पर गा रहे हों विभिन्न प्रकार के पंछी. हाँ, और पाँच गुम्बदों वाला चर्च भी बना दो: जहाँ मुकुट लिये जायें और शादी की
जा सके.”
बारह नौजवानों ने जवाब
दिया:
“कल तक सब तैयार हो
जायेगा!”
वे अलग-अलग जगहों पर लपके, हर कोने
से कारीगरों को, पुल बनाने वालों को खदेड़ा और काम पर लग गये
: उनके हाथों में काम दनादन हो रहा था.
सुबह मार्तिन्का साधारण
झोंपड़ी में नहीं,
बल्कि शानदार कमरे में उठा; ऊपर वाली छत पर
आया, देखा – सब कुछ तैयार है: महल भी, और
चर्च भी, और क्रिस्टल का पुल भी, और
सोने-चांदी के सेबों वाले पेड़ भी. इसी समय राजा भी बाल्कनी में आया, उसने दूरबीन में देखा और उसे बड़ा अचरज हुआ : सब कुछ हुक्म के मुताबिक किया
गया था! उसने ख़ूबसूरत राजकुमारी को अपने पास बुलाया और शादी के लिये तैयार होने को
कहा.
“ख़ैर,” उसने कहा,
“मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि किसान के बेटे से तेरा
ब्याह करूँगा, मगर अब इसे बदलना मुमकिन नहीं है.”
जब तक राजकुमारी बदन को
मल-मल कर नहाई,
महंगे वस्त्रों से सजी, बेवा का बेटा मार्तिन
विस्तीर्ण आँगन में गया और अपनी अंगूठी को एक हाथ से दूसरे हाथ में उछालने लफा –
अचानक बारह नौजवान मानो धरती से प्रकट हो गये:
“क्या चाहिये, क्या करना
है?”
“भाईयों, मुझे
सामंतों का कफ़्तान पहनाओ और मेरे लिये रंगबिरंगे चित्रों वाली गाड़ी तैयार करो छह
घोड़ों वाली.”
“अभी हो जाता है!”
मार्तिन्का तीन बार पलक भी
नहीं झपका पाया,
फ़ौरन उसके लिये कफ़्तान आ गया; उसने कफ़्तान
पहना – कफ़्तान जैसे उसीके माप का बना था. उसने इधर-उधर देखा – प्रवेशद्वार के पास
गाड़ी खड़ी है, गाड़ी में काले घोडे जुते हैं – एक के रोंए
चांदी जैसे हैं, और दूसरे के सुनहरे. वह गाड़ी में बैठा और
चर्च की ओर चल पड़ा. वहाँ कब से प्रार्थना के घण्टे बज रहे थे, और लोगों की अभूतपूर्व भीड़ थी. दूल्हे के पीछे-पीछे दुल्हन भी आई अपनी
सेविकाओं और माताओं के साथ और राजा आया अपने मंत्रियों के साथ. प्रार्थना पूरी हुई,
और उसके बाद बेवा के बेटे मार्तिन ने सुंदर राजकुमारी का हाथ पकड़ा
और उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया. राजा ने बेटी को ख़ूब सारा दहेज़ दिया,
दामाद को ऊचे ओहदे से सम्मानित किया और पूरी दुनिया को दावत दी.
नौजवान एक साथ रहने लगे, एक महीना
बीता, दूसरा और तीसरा भी बीत गया, मार्तिन्का
हर रोज़ नये-नये महल बनाता और बाग़ भी लगाता.
सिर्फ राजकुमारी ही नाख़ुश
थी, कि उसका ब्याह किसी राजकुमार से नहीं, बल्कि
सीधे-सादे किसान से हुआ है. वह सोचने लगी कि कैसे दुनिया से उसका नामो-निशान मिटा
दे. वह लोमड़ी की तरह पेश आती, उस पर बेहद प्यार निछावर करती.
पति की ख़ूब आवभगत करती, उसकी सेवा करती और उसकी अक्लमंदी का
राज़ पूछती. मार्तिन्का पक्का था, वह कुछ भी न बताता.
एक बार मार्तिन्का सम्राट
के यहाँ गया,
देर से घर वापस लौटा और आराम करने के लिये लेट गया. राजकुमारी उसके
पास आ गई, उससे प्यार जताने लगी, चूमने
लगी, प्यार भरी बातों से ख़ुशामद करने लगी – और उसे पूरी तरह
मक्खन लगा ही दिया : मार्तिन्का से रहा न गया, उसने अपनी
जादुई अंगूठी के बारे में राजकुमारी को बता ही दिया.
‘ठीक है,’
राजकुमारी ने सोचा, ‘अब मैं तेरा पत्ता साफ़
करूँगी!’
जैसे ही वह गहरी नींद
में डूब गया, राजकुमारी ने उसका हाथ पकड़ा, छोटी उँगली से अँगूठी उतार ली और बाहर
आई चौड़े आँगन में और अँगूठी को एक हाथ से दूसरे में उछालने लगी.
उसके सामने फ़ौरन
बारह नौजवान प्रकट हो गये:
“क्या चाहिये,
क्या करना है, सुंदर राजकुमारी?”
“सुनों, लड़कों :
ऐसा करो कि सुबह तक यहाँ न महल रहे, न चर्च, न क्रिस्टल का पुल, और पहले ही की तरह पुरानी झोंपड़ी
बनी रहे. मेरा पति ग़रीबी में रहे, और मुझे ले चलो धरती के उस
छोर पर, चूहों के राज्य में. शर्म के मारे मैं यहाँ नहीं रह
सकती!””
“हमें कोशिश करने
में ख़ुशी होगी,
सब कुछ हो जायेगा!”
फ़ौरन तेज़ हवा उसे
धरती के छोर पर,
चूहों के राज्य में ले गई.
सुबह राजा उठा, अपनी
दूरबीन से देखने के लिये बाल्कनी में आया – वहाँ न तो क्रिस्टल के पुल वाला महल था,
न पाँच गुम्बदों वाला चर्च, सिर्फ पुरानी
झोंपड़ी खड़ी थी.
‘इसका क्या
मतलब हो सकता है?’ राजा ने सोचा.’सब
कुछ कहाँ ग़ायब हो गया?’
और उसने फ़ौरन अपने
एडज्युटेन्ट को सारी बात का पता लगाने के लिये भेजा : ऐसा क्या हो गया है? एड्ज्युटेन्ट
घोड़े पर सवार होकर गया और वापस आकर उसने राजा को सूचना दी:
“महामहिम! जहाँ
सबसे कीमती महल था,
वहाँ पहले की तरह जीर्ण-शीर्ण झोंपड़ी खड़ी है, उस
झोंपड़ी में आपका दामाद अपनी माँ के साथ रहता है, और सुंदर
राजकुमारी का नामोनिशान नहीं है, और पता नहीं कि अभी वह कहाँ
है.”
राजा ने बड़ी सभा
बुलाई और अपने दामाद पर मुकदमा चलाने की आज्ञा दी, कि उसने उसे जादू से क्यों
फ़ुसलाया और सुंदर राजकुमारी को क्यों मार डाला. यह फ़ैसला किया गया कि मार्तिन्का
को पत्थर के ऊँचे स्तम्भ में कैद किया जाये और खाने-पीने को कुछ भी न दिया जाये –
उसे भूख से मर जाने दो. कारीगर आये, उन्होंने स्तम्भ बनाया
और मार्तिन्का को उसमें चुन दिया, सिर्फ रोशनी के लिये एक छोटी-सी
खिड़की रख दी गई. वह बेचारा कैद में बैठा है भूखा-प्यासा, न
कुछ खाता है और न पीता है, दो दिन बीत गये, और तीसरे दिन वह आँसुओं से नहा गया.
इस दुर्घटना के
बारे में कुत्ते झूर्का को पता चला, वह भाग कर झोंपड़ी में आया, और बिल्ला वास्का तो भट्टी के ऊपर लेटा है, म्याऊँ-म्याऊँ
कर रहा है. झूर्का उस पर झपटा:
“आह, तू कमीने,
वास्का! सिर्फ टाँगें फ़ैलाकर भट्टी पर लेटना ही आता है तुझे,
और यह नहीं देख रहा है कि हमारे मालिक को पत्थर के स्तंभ में चुन
दिया गया है. लगता है, तू पुराने एहसान को भूल गया कि कैसे
उसने सौ रूबल्स देकर तुझे मौत से बचाया था. अगर वह न होता तो तुझ पापी को कबके
कीड़े खा गये होते. उठ जल्दी! पूरी ताकत से उसकी मदद करनी चाहिये.”
वास्का भट्टी से
उछला और झूर्का के साथ मालिक को ढूँढ़ने निकल पड़ा. स्तम्भ के पास आया, ऊपर चढ़ा
और खिड़की के भीतर घुस गया:
“नमस्ते, मालिक!
ज़िंदा तो है?”
“मुश्किल से ज़िंदा
हूँ,” मार्तिन्का ने जवाब दिया. “खाने के बगैर बेहद कमज़ोर हो गया हूँ, भूखी-मौत मरना पड़ेगा.”
“ठहरो, हिम्मत न
हारो! हम तुझे खाना भी खिलायेंगे और पानी भी पिलायेंगे,” वास्का
ने कहा, वह खिड़की से बाहर कूदा और ज़मीन पर आ गया. “भाई,
झूर्का, मालिक भूख से मर रहा है. हम उसकी मदद
कैसे करें?”
“बेवकूफ़ कहीं का!
इतना भी नहीं सोच सकता. शहर में जायेंगे. जैसे ही नानबाई टोकरा लिये दिखाई देगा, मैं उसके
पैरों के नीचे कड़मड़ाऊँगा और उसका टोकरा गिरा दूँगा. तब तू गड़बड़ न कर देना! फ़ौरन
डबल रोटियाँ और रोल्स लपक ले और मालिक के पास ले जा.”
वे मुख्य रास्ते
पर आये, एखा, सामने से ही ब्रेड़ का टोकरा लिये नानबाई आ रहा
था. झूर्का उसके पैरों में कड़मड़ाया, नानबाई लड़खडाया,
उसने टोकरा गिरा दिया, सारी डबलरोटियाँ गिरा
दीं और डर के मारे एक ओर को भाग गया : उसे डर लग रहा था कि कहीं कुत्ता पागल न हो – वर्ना मुसीबत हो जायेगी! और
वास्का बिल्ले ने मुँह में डबलरोटी पकड़ी और खींचकर मार्तिन्का के पास ले गया;
उसे एक डबलरोटी दी – दूसरी के लिये भागा, दूसरी
भी दी – तीसरी के लिये लपका.
इसके बाद वास्का
बिल्ले और कुत्ते झूर्का ने दूर के चूहों राज्य में जाने का विचार किया – जिससे
जादुई अँगूठी वापस ला सकें. रास्ता लम्बा था, काफ़ी समय लग जायेगा. वे मार्तिन्का
के लिये टोस्ट, और पूरे साल के लिये खाने-पीने का सामान ले
गये और बोले:
“देख, मालिक!
खा-पी, मगर इस बात का ध्यान रख कि हमारे वापस लौटने तक तेरे
पास खाने-पीने का सामान रहे.”
बिदा लेकर वे
रास्ते पर निकल पड़े.
देर-सबेर वे नीले
समुंदर के पास पहुँच गये.
झूर्का ने वास्का
बिल्ले से कहा:
“मुझे लगता है कि
मैं तैर कर उस पार पहुँच जाऊँगा/ तेरा क्या ख़याल है?”
वास्का ने जवाब
दिया:
“मैं तो तैरना नहीं
जानता, फ़ौरन डूब जाऊँगा.”
“ख़ैर, चल,
मेरी पीठ पर बैठ जा!”
बिल्ला वास्का
कुत्ते की पीठ पर बैठ गया,
उसके रोंओं को पंजों से पकड़ लिया, ताकि गिर न
जाये, और वे समुन्दर पर तैरने लगे. दूसरे किनारे पर पहुँचे
और दूर-दराज़ के, चूहों के राज्य में पहुँचे.
उस राज्य में इन्सान
का नामो-निशान नहीं था,
मगर इत्ते सारे चूहे थे कि उन्हें गिनना भी नामुमकिन था : जहाँ भी
देखो, चूहों के झुण्ड के झुण्ड चले जा रहे हैं!
झूर्का ने वास्का
बिल्ले से कहा:
“चल, भाई,
लग जा शिकार पे, इन चूहों को दबा दे, उनका गला घोंट दे, और मैं उन्हें एक ढेर में रखता
जाऊँगा.”
वास्का को तो इस
खेल की आदत थी;
वह फ़ौरन चूहों की ओर लपका, जिसे भी मुँह में
दबाता – उसका दम निकल जाता! झूर्का मुश्किल से उनका ढेर बना पा रहा था, और एक हफ़्ते में उसने एक बड़ा ढेर लगा दिया.
पूरे राज्य में
बड़ी दहशत फ़ैल गई. चूहों के सम्राट ने देखा कि उसकी प्रजा में घबराहट है, बहुत सारे
विश्वासपात्र सेवक बुरी मौत मरे हैं, वह बिल से बाहर आया और
झूर्का और वास्का से विनती करने लगा:
“आपके सामने सिर
झुकाता हूँ, महान शक्तिशाली योद्धाओं! मेरी प्रजा पर रहम कीजिये, उन्हें एक-एक करके न मारिये. बेहतर है कि आप बताएँ कि आपको क्या चाहिये?
जो भी मेरे बस में है, आपके लिये करूँगा.”
झूर्का ने उसे
जवाब दिया:
“तुम्हारे राज्य
में एक महल है,
उस महल में सुंदर राजकुमारी रहती है. वह हमारे मालिक की जादुई
अँगूठी लेकर भागी है. अगर तुम हमें वह अँगूठी ढूँढ़ कर नहीं दोएगे, तो ख़ुद भी मारे जाओगे और तुम्हारा राज्य भी नष्ट हो जायेगा, हम सब कुछ वीरान कर देंगे.”
“रुकिये,” चूहों के
सम्राट ने कहा, “मैं अपने विश्वासपात्र सेवकों को इकट्ठा
करता हूँ और उनसे पूछता हूँ.”
उसने फ़ौरन चूहों
को इकट्ठा किया,
बड़े चूहों को और छोटे चूहों को, और पूछने लगा
: क्या उनमें से कोई महल में राजकुमारी के पास जाकर जादुई अँगूठी ढूँढ़ने के लिये
तैयार है?
एक चूहा आगे आया.
“मैं,” उसने कहा,
“अक्सर उस महल में जाता हूँ : दिन में राजकुमारी अपनी छोटी उँगली
में अँगूठी पहनती है, और रात को, जब
सोने के लिये लेटती है तो उसे मुँह में रख लेती है.”
“अच्छा, उसे पाने
की कोशिश कर. अगर तू ये काम कर देगा, तो मैं आगे-पीछे नहीं
देखूँगा, सम्राट की तरह बढ़िया इनाम दूँगा.”
छोटे चूहे ने रात
होने का इंतज़ार किया,
वह महल के भीतर घुसा और चुपचाप शयनकक्ष में घुस गया. देखा कि
राजकुमारी गहरी नींद में है. वह पलंग पर चढ़ गया, राजकुमारी
की नाक में अपनी पूँछ घुसा दी और लगा उसके नथुनों में गुदगुदी करने. वह छींकी –
अँगूठी मुँह से बाहर उछली और कालीन पर गिर गई. नन्हा चूहा पलंग से कूदा, दाँतों में अँगूठी दबाई और ले जाकर अपने सम्राट को दे दी. चूहों के सम्राट
ने अँगूठा महान बलशाली योद्धाओं – बिल्ले वास्का और कुत्ते झूर्का को दे दी,
उन्होंने सम्राट को धन्यवाद दिया और एक दूसरे से सलाह करने लगे :
उनमें से कौन अँगूठी की बेहतर हिफ़ाज़त कर सकेगा?
वास्का बिल्ले ने
कहा:
"चल, मैं कर
लूँगा, मैं उसे किसी भी हालत में नहीं खोऊँगा!"
"ठीक है," झूर्का
ने कहा. "उसकी अपनी आँख से भी ज़्यादा हिफ़ाज़त करना."
बिल्ले ने अँगूठी
मुँह में रख ली,
और वे वापसी के रास्ते पर चल पड़े.
नीले समुंदर तक
पहुँचे. वास्का उछल कर झूर्का की पीठ पर चढ़ गया, जितना हो सकता था, उतना कस कर उसकी खाल से चिपक गया, और झूर्का चल पड़ा
पानी में - और समुंदर में तैरने लगा.
तैरते-तैरते एक
घण्टा गुज़रा,
दूसरा भी गुज़रने लगा. अचानक, न जाने कहाँ से
काला कौआ उड़ता हुआ आया और लगा वास्का के सिर पर चोंच मारने. बेचारा बिल्ला समझ
नहीं पा रहा था कि उसे क्या करना चाहिये, कैसे दुश्मन से दूर
हटना चाहिये. अगर पंजों का इस्तेमाल करता है - तो समुंदर में गिर जायेगा और उसके
तल में डूब जायेगा; अगर कौए को दाँत दिखाता है - तो अँगूठी
गिरा देगा. मुसीबत ही मुसीबत है! वह बड़ी देर तक बर्दाश्त करता रहा, मगर आख़िर में उससे बर्दाश्त नहीं हो पाया - कौए ने चोंच मार-मार कर उसका
सिर लहू-लुहान कर दिया था. वास्का को गुस्सा आ गया, वह
दाँतों से अपनी हिफ़ाज़त करने लगा - और अँगूठी नीले समुंदर में गिरा दी. काला कौआ
ऊपर को उठा और अंधेरे जंगलों में उड़ गया.
और झूर्का ने
किनारे पर आते ही अँगूठी के बारे में पूछा.
वास्का ने सिर
लटका लिया.
"माफ़ करना," उसने
कहा, "तेरा गुनहगार हूँ, भाई:
मैंने अँगूठी समुंदर में गिरा दी!"
झूर्का उस पर झपट
पड़ा;
"आह, तू
बेवकूफ़! तू ख़ुशनसीब है कि मुझे पहले पता नहीं चला, वर्ना मैं
तो तुझे समुंदर में डुबा देता! अब हम मालिक के पास क्या लेकर जायेंगे? अभी फ़ौरन पानी में घुस: या तो अँगूठी ढूँढ या ख़ुद डूब जा!"
"अगर मैं डूब
गया तो इससे क्या फ़ायदा होगा? बेहतर है कि चालाकी से काम लें : जैसे पहले
चूहों का शिकार किया था, वैसे ही अब केंकड़ों का शिकार करेंगे;
अगर हम ख़ुशकिस्मत हुए तो वे अँगूठी ढूँढ़ने में हमारी मदद
करेंगे."
झूर्का ने उसकी
बात मान ली; वे समुंदर के किनारे पर चलने लगे, केंकड़ों को पकड़कर
उनका ढेर बनाने लगे, बहुत बड़ा ढेर बना दिया! उसी समय एक बहुत
बड़ा केंकड़ा समुंदर से बाहर आया, वह साफ़ हवा में घूमना चाहता
था. झूर्का और वास्का ने उसे थप्पड़ मारना और सभी दिशाओं में झकझोरने लगे!
"मुझे न दबाओ, महान
शक्तिशाली योद्धाओं. मैं - सभी केंकड़ों का सम्राट हूँ. जो भी
हुक्म देंगे, आपके लिये करूँगा."
"हमने समुंदर
में अँगूठी गिरा दी है,
अगर चाहते हो कि तुम पर दया करें, तो उसे
ढूँढ़कर हमारे पास लाओ, वर्ना हम तुम्हारे साम्राज्य का सफ़ाया
कर देंगे!"
केंकड़ा-सम्राट ने
फ़ौरन अपने विश्वासपात्रों को बुलाया और अँगूठी के बारे में पूछने लगा. एक नन्हा
केंकड़ा बोला:
"मुझे पता है
कि अँगूठी कहाँ है. जैसे ही अँगूठी नीले समुंदर में गिरी, उसे
बेलूगा-मछली ने पकड़ लिया और मेरी आँखों के सामने ही उसे निगल गई."
अब सारे केंकड़े
बेलूगा-मछली को ढूढ़ने के लिये लपके, उसे चबाने लगे, बेचारी को अपने चिमटों से मारने लगे; भगाते रहे-
भगाते रहे - एक भी मिनट के लिये चैन नहीं लेने देते. मछली इधर-उधर भागती रही,
घूमती रही - पलटती रही और उछल कर किनारे पर आ गई.
केंकड़ा-सम्राट
पानी से बाहर आया और उसने वास्का बिल्ले और कुत्ते झूर्का से कहा:
"महान
योद्धाओं, ये रही आपकी बेलूगा-मछली, उसे खूब सताओ : वह आपकी
अँगूठी निगल गई है."
झूर्का मछली पर
झपटा और उसे पूँछ से पटकने लगा. "अब भर पेट खायेंगे!" उसने सोचा.
मगर चालाक बिल्ला
जानता था कि अँगूठी कहाँ मिल सकती है, उसने मछली का पेट पकड़ा और फ़ौरन
अँगूठी पर लपका. अँगूठी को दाँतों में पकड़ा और पूरी रफ़्तार से भागा – मतलब पूरी
ताकत से, और दिमाग़ में यह ख़याल था : “भाग कर मालिक के पास
जाता हूँ, उसे अँगूठी दूँगा और शेख़ी मारूँगा, कि मैंने अकेले ने ही यह सब किया है. मालिक मुझसे झूर्का के मुकाबले
ज़्यादा प्यार करेगा!”
इस बीच झूर्का ने
भरपेट खा लिया,
देखा – वास्का कहाँ है? और वह समझ गया कि उसका
दोस्त चालाकी कर रहा है : झूठ बोलकर मालिक का प्यार पाना चाहता है, - झूठ बोलता है, जोकर वास्का! मैं तुझे अभी पकड़ता हूँ,
तेरे छोटे-छोटे टुकड़े करता हूँ!”
झूर्का पीछा करने
लगा, उसने कुछ देर में बिल्ले वास्का को पकड़ लिया और उसे भयानक परिणाम से डराने
लगा. वास्का ने खेत में बर्च का पेड़ देखा उस पर चढ़ गया और सबसे ऊँची टहनी पर बैठ
गया.
“ठीक है,” झूर्का
ने कहा, “पूरी ज़िंदगी तो पेड़ पर नहीं बैठा रहेगा, कभी न कभी नीचे उतरने का मन होगा, और मैं तो यहाँ से
एक कदम भी दूर नहीं हटूँगा.”
वास्का बिल्ला तीन
दिन बर्च के पेड़ पर बैठा रहा, तीन दिनों तक झूर्का बिना आँख हटाये उसकी
चौकीदारी करता रहा; दोनों को भूख लग आई और उन्होंने समझौता
करने की ठानी. समझौता कर लिया और दोनों मिलकर अपने मालिक के पास चले. स्तम्भ के
पास आये. वास्का खिड़की पर चढ़ गया पूछने लगा:
“तू ज़िंदा तो है, मालिक?”
“नमस्ते, वास्का!
मैंने तो सोच लिया था कि तुम लोग वापस नहीं आओगे. तीन दिनों से बिना खाये-पिये
बैठा हूँ.”
बिल्ले ने उसे
जादुई अँगूठी दी. मार्तिन्का गहरी रात होने का इंतज़ार करने लगा, उसने
अँगूठी को एक हाथ से दूसरे में उछाला – फ़ौरन बारह नौजवान उसके सामने प्रकट हो गये:
“क्या चाहिये, क्या करना
है?”
नौजवानों, मेरा पहले
वाला महल फ़िर से बना दो, और क्रिस्टल का पुल, और पाँच गुम्बदों वाला चर्च और मेरी बेवफ़ा बीबी को यहाँ ले आओ. सुबह तक सब
हो जाना चाहिये.”
“जैसा कहा
था- वैसा ही हो गया. सुबह राजा जागा, बाल्कनी में आया,
दूरबीन से देखा; जहाँ झोंपड़ी थी, वहाँ ऊँचा महल है, उस महल से राजा के महल तक
क्रिस्टल का पुल है, पुल के दोनों तरफ़ सोने और चांदी के
सेबों वाले पेड़ हैं. राजा ने गाड़ी तैयार करने का हुक्म दिया और चल पड़ा यह देखने के
लिये कि क्या वाकई में सब कुछ पहले जैसा हो गया है या उसे सिर्फ सपना आया है.
मार्तिन्का उसे द्वार के पास मिला.
“ऐसा-ऐसा हुआ,” उसने सब
कुछ बताया, “राजकुमारी ने मेरे साथ ऐसा किया!”
राजा ने राजकुमारी
को सज़ा देने का हुक्म दिया. और मार्तिन्का अब आराम से रहता है, बैठे-बैठे
रोटी खाता है.
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