शुक्रवार, 28 जून 2024

बत्तख और हंस

 

 

बत्तख और हंस


कभी किसी गाँव में एक किसान और उसकी बीबी रहते थे. उनकी एक बेटी थी और छोटा बेटा था.

“बच्ची,” माँ ने कहा, “हम काम पे जा रहे हैं, भाई का ख़याल रखेगी? आँगन से बाहर मत जाना, होशियार बन – हम तेरे लिए रूमाल खरीदेंगे.”

माँ-बाप चले गए, मगर बच्ची भूल गई की उससे क्या कहा गया था: उसने भाई को खिड़की के नीचे घास पर बिठाया, खुद बाहर सड़क पर निकल गयी, खूब खेली, खूब घूमी. बत्तख-हंस उड़ाते हुए आये, बच्चे को पकड़ा, और अपने पंखों पर ले गए.

बच्ची वापस आई, देखती है – भाई नहीं है! आह भरके इधर-उधर देखा, नहीं है! उसने उसे पुकारा, आंसुओं से नहा गई, कहा, कि माँ-बाप बहुत बुरी सज़ा देंगे – भाई ने कोई जवाब नहीं दिया.

वह भागकर बाहर खुले मैदान में गयी और देखा; दूर बत्तखें-हंस मंडरा रहे थे और काले जंगल के पीछे ओझल हो गए. अब वह समझ गई कि वे उसके नन्हे भाई को उठा ले गए हैं: बत्तखों-हंसों के बारे में कब से लोग कहते हैं कि वे शरारत करते हैं, नन्हे बच्चों को उठाकर ले जाते हैं.

लड़की उन्हें पकड़ने के लिए भागी. भागती रही, भागती रही, देखा कि एक भट्टी खड़ी है.

“भट्टी, भट्टी, बता तो, बत्तख-हंस उड़कर किस दिशा में गए हैं?

भट्टी ने जवाब दिया:

“मेरा रई का समोसा, खाओ – तब बताऊंगी.”

“मैं रई का समोसा खाऊँगी! मेरे अब्बा के यहाँ तो गेंहू वाला भी नहीं खाते...”

भट्टी ने उसे नहीं बताया.

लड़की आगे भागी – रास्ते में एक सेब का पेड़ था.

“सेब के पेड़, ऐ सेब के पेड़, बता तो, बत्तख-हंस उड़कर किधर गए हैं?

“मेरे जंगली सेब खाओ – तब बताऊंगी.”

“मेरे अब्बा के यहाँ तो बाग़ के सेब भी नहीं खाते हैं”...सेब के पेड़ ने उसे नहीं बताया.

लड़की आगे भागी. जैली के किनारों में दूध की नदी बह रही थी.

“दूध की नदी, जैली के किनारों, बत्तख-हंस उड़कर किधर गये हैं?

“मेरी दूध-जैली खाओगी तो बताऊंगी.”

“मेरे अब्बा के यहाँ तो मलाई वाली भी नहीं खाते हैं...”

वह बड़ी देर तक भागती रही, खेतों से, जंगलों से होते हुए. शाम हो रही थी, कुछ नहीं किया जा सकता – घर जाना चाहिए. अचानक क्या देखती है – मुर्गी की टांग पर एक झोंपड़ी खड़ी है, एक खिड़की वाली, चारों ओर गोल-गोल घूम रही है.  

झोंपड़ी में एक बूढ़ी औरत सूत कात रही है. और बेंच पर भाई बैठा है, चांदी के सेबों से खेल रहा है. लड़की झोंपड़ी के भीतर गई:

“नमस्ते, दादी!”

“नमस्ते, बच्ची! नज़रों के सामने क्यों आई है?

“मैं काई से, दलदल से होकर जा रही थी, कपड़े गीले कर लिए, गरमाने के लिए आई हूँ.”

“बैठ, थोड़ा सूत कात. जादूगरनी ने उसे चरखा दिया, और खुद चली गयी. लड़की कातने लगी – अचानक भट्टी के नीचे से भागकर एक चूहा आया और उससे बोला:

“लड़की, लड़की, मुझे खीर दे, मैं तुझे भलाई की बात बताऊंगा.”

लड़की ने उसे खीर दी, चूहे ने उससे कहा:

“जादूगरनी हम्माम गरमाने गई है. वह तुझे नहलायेगी, भाप देगी, भट्टी में रखेगी, भूनेगी और खा जायेगी, खुद तेरी हड्डियों पर सवार होकर घूमेगी.”

लड़की बैठी है, न ज़िंदा , न मुर्दा, रो रही है, और चूहे ने उससे फिर कहा:

“देर न कर, भाई को उठा, भाग जा, और मैं तेरे बदले सूत कातूंगा.”

लड़की ने भाई को उठाया और भागी. जादूगरनी खिड़की के पास आई और पूछने लगी:

“बच्ची, कात रही है ना?”

“कात रही हूँ, दादी...”

जादूगरनी ने हम्माम गरमाया और लड़की को लाने चली. मगर झोंपड़ी में तो कोई था ही नहीं. जादूगरनी चिल्लाई:

“बत्तखों- हंसों! पीछा करो! बहन भाई को ले गई है!...”

बहन भाई को लिये हुए दूध की नदी तक आई. देखती है – बत्तख-हंस उड़ रहे हैं.

“नदी, माँ, मुझे छुपा ले!”

“मेरी जैली खाओ.”

लड़की ने जैली खाई और शुक्रिया कहा. नदी ने उसे जैली के किनारे के नीचे छुपा दिया.

बत्तखों-हंसों ने उसे नहीं देखा, वे आगे उड़ गए. लड़की भाई को लेकर फिर से भागी. मगर बत्तख-हंस उड़कर वापस आ रहे थे, बस देख ही लेते. क्या करे? मुसीबत! सेब का पेड़ खडा है...

“सेब के पेड़, माँ, मुझे छुपा ले!”

“मेरा जंगली सेब खा. लड़की ने जल्दी से जंगली सेब खाया और शुक्रिया कहा. सेब के पेड़ ने उसे टहनियों से, पत्तों से ढांक दिया.

बत्तखों-हंसों ने नहीं देखा, आगे उड़ गए. लड़की फिर से भागने लगी. भागते रही, भागती रही, बस थोड़ी ही दूरी रह गई है. अब बत्तखों-हंसों ने उसे देख लिया, ठहाके लगाने लगे – उस पर हमला करने लगे, पंखों से मारने लगे. बस, भाई को हाथों से छीनने ही वाले हैं. लड़की भागते हुए भट्टी के पास आई:

“भट्टी, माँ, मुझे छुपा ले!”

“मेरी रई का समोसा खा.”

लड़की ने फ़ौरन – समोसा मुँह में डाला और खुद भाई के साथ भट्टी में घुस गयी, मुहाने में बैठ गई.

बत्तख-हंस उड़ते रहे-उड़ते रहे, चिल्लाए-चिल्लाए और खाली हाथ जादूगरनी के पास लौट गए.

लड़की ने भट्टी से शुक्रिया कहा और भाई के साथ घर भागी.

और तभी माँ-बाप वापस आये.  

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