फ़ेद्या का होमवर्क
लेखक: निकोलाय नोसोव
अनु. : आ. चारुमति रामदास
सर्दियों में एक बार फ़ेद्या रीब्किन स्केटिंग-हॉल से लौटा. घर में कोई भी नहीं था.
फ़ेद्या की छोटी बहन, रीना, अपना होम वर्क ख़तम करके सहेलियों के साथ खेलने के लिए
जा चुकी थी. मम्मा भी कहीं बाहर गई थी.
“कितनी अच्छी बात है!” फ़ेद्या ने कहा, “कम से कम
होम वर्क करते समय कोई डिस्टर्ब तो नहीं करेगा.”
उसने टेलिविजन चालू किया, बैग में से अपनी
स्कूल-डायरी निकाली और होम वर्क के प्रश्न ढूँढ़ने लगा. टेलिविजन के स्क्रीन पर
अनाउन्सर प्रगट हुआ.
“आपकी फ़रमाइश पर कॉन्सर्ट पेश करते हैं,” उसने
घोषणा की.
“कॉन्सर्ट! – ये तो बढ़िया बात हुई,” फ़ेद्या ने
कहा, “होमवर्क करने में मज़ा आएगा.”
उसने टेलिविजन का वॉल्यूम बढ़ाया, जिससे
अच्छी तरह सुनाई दे, और मेज़ पे बैठ गया.
“तो, हमें क्या मिला है होम-वर्क? एक्सरसाइज़ नम्बर 639? ठीक है... मिल में राइ
के (एक विशेष प्रकार का अनाज – अनु.) 450 बोरे लाए गए, हर बोरे में 80 किलोग्राम
राइ थी...”
अनाऊन्सर की जगह स्क्रीन पर काले सूट में
एक गायक प्रकट हुआ और गहरी, गरजदार आवाज़ में गाने लगा:
कभी रहता था एक राजा,
पिस्सू रहता उसके साथ.
सगे भाई से भी ज़्यादा,
पिस्सू था उसको प्यारा.
“छिः, कितना गलीज राजा है!” फ़ेद्या ने कहा,
“पिस्सू, देखो तो, उसे सगे भाई से भी ज़्यादा प्यारा है!”
उसने नाक का सिरा खुजाया और शुरू से सवाल
पढ़ने लगा:
...
“ मिल में राइ के 450 बोरे लाए गए, हर बोरे में 80 किलोग्राम राइ थी. राइ को
पीसा गया, इससे छह किलोग्राम बीजों से पाँच किलोग्राम आटा निकला...”
पिस्सू को! हा-हा! ...
गायक हँसने लगा और आगे गाता रहा:
राजा ने बुलाया दर्ज़ी को:
...सुन, तू, ऐ मूरख!
प्यारे मित्र को
सी दे मखमल का कफ़्तान.
...”छिः, अब ये भी सोच लिया!...”
फ़ेद्या चीख़ा, “ कफ़्तान! अजीब बात है, दर्ज़ी उसे सिएगा कैसे? पिस्सू तो बेहद छोटा
होता है!”
उसने गाने को आख़िर तक सुना, मगर समझ ही
नहीं पाया कि दर्ज़ी ने अपना काम कैसे पूरा किया. गाने में इस बारे में कुछ भी नहीं
बताया गया.
“बुरा गाना है,” फ़ेद्या ने अपनी राय ज़ाहिर कर दी
और फिर से अपना सवाल पढ़ने लगा : ... मिल में राइ के 450 बोरे लाए गए, हर बोरे
में 80 किलोग्राम राइ थी. राइ को पीसा गया, तब छह किलोग्राम बीजों से...”
“ वह था एक सरकारी अफ़सर,
और वो...जनरल की बेटी,...”
गायक ने फिर से गाना शुरू किया.
... “मज़ेदार है, ये सरकारी अफ़सर कौन होता
है?” फ़ेद्या ने कहा. “हुम्!”
उसने दोनों हाथों से अपने कान मले, मानो
वे जम गए हों, और गाने की ओर ध्यान न देने की कोशिश करते हुए सवाल आगे पढ़ने लगा:
“तो ऐसा है. छह किलोग्राम बीजों से निकला
पाँच किलोग्राम आटा. पूरे आटे को ले जाने के लिए कितनी
गाड़ियों की ज़रूरत पड़ेगी, अगर हर गाड़ी में
तीन टन आटा रख जा सकता हो?”
जब तक फ़ेद्या ने अपना सवाल पढ़ा, सरकारी
अफ़सर वाला गाना ख़त्म हो गया था और दूसरा गाना शुरू हो गया:
दिल को सुकून देता है ख़ुशी भरा एक गीत,
कभी न उकताता वो दिल को,
पसन्द उसे करते हैं सारे कस्बे, सारे गाँव,
बड़े बड़े शहर भी करते इसे पसन्द!
ये गाना फ़ेद्या को बहुत अच्छा लगा. वह
अपने सवाल के बारे में भी भूल गया और पेन्सिल से मेज़ पर ताल देने लगा.
“बहुत बढ़िया गाना है!” जब गाना ख़तम हो गया तो
उसने कहा, ...”तो, हमारे सवाल में क्या लिखा है? ‘मिल में 450 बोरे राइ के लाए
गए...”
एकसुर में बजती है घण्टी,...
टेलिविजन पर आदमी की ऊँची आवाज़ सुनाई दी.
“ठीक है, बजती है तो बजती रहे...,” फ़ेद्या ने
कहा, “हमें क्या करना है? हमें तो अपना सवाल हल करना है. तो, हम कहाँ रुके थे? ठीक
है...रेस्ट हाउस के लिए बीस कम्बल और एक सौ पैंतीस चादरें ख़रीदी गईं दो सौ
छप्पन रूबल्स में. तो कम्बलों और चादरों के लिए अलग अलग कितना पैसा दिया गया... माफ़
कीजिए! ये कम्बल और चादरें कहाँ से टपक पड़ीं? क्या हम कम्बलों के बारे में बात कर
रहे थे? फूः, भाड़ में जाए! अरे, ये वो वाला सवाल नहीं है! वो है कहाँ? ...ओ, ये
रहा! मिल में राइ के 450 बोरे लाए गए...”
सर्दियों के उकताए रास्ते पर
भाग रही शिकारी कुत्तों की त्रोयका,
घण्टी
जिसकी एकसार,
गूंज रही थकावट से....
“...अरे! फिर से घण्टी के बारे में!...” फ़ेद्या
चहका. “ घण्टियों पर ही अटक गए! तो...गूंज रही थकावट से......हर बोरे
में ....राइ को पीसा गया, जिससे छह किलोग्राम आटे से पाँच किलोग्राम बीज निकले...मतलब,
आटा निकला, न कि बीज! बिल्कुल उलझा दिया!”
स्तेपी
के मेरे प्यारे, घण्टी जैसे फूलों!
क्यों
देखते हो मुझको, तुम गहरी गुलाबी आभा से?
“फूः!”
फ़ेद्या ने थूका. “इन घण्टियों से तो बचना मुश्किल है! चाहे
घर से ही क्यों न भाग जाओ, पागल कर देंगी!... छह किलोग्राम बीजों से पाँच
किलोग्राम आटा निकला और पूछते हैं कि पूरे आटे को ले जाने के लिए कितनी गड़ियों की
ज़रूरत पड़ेगी...
पत्थर की गुफ़ाओं में हैं
अनगिनत हीरे,
दोपहर के समन्दर में –अथाह मोती.
“ बड़ी ज़रूरत है हमें हीरे
गिनने की! यहाँ तो आटे के बोरे ही गिनना मुश्किल हो रहा है! बिल्कुल पनिशमेन्ट है!
बीस बार सवाल पढ़ चुका हूँ...मगर कुछ भी समझ में नहीं आया! इससे तो अच्छा है कि मैं
यूरा सोरोकिन के पास चला जाऊँ, उससे कहूँगा कि इसका मतलब समझा दे.”
फ़ेद्या रीब्किन ने अपनी स्कूल-डायरी
बगल में दबाई, टीवी बन्द किया और अपने दोस्त सोरोकिन के पास
चल पड़ा.
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