शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

Luka-Chhipee

लुका-छिपी
लेखक: निकोलाय नोसोव
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
वीत्या और स्लाविक - पड़ोसी हैं. वे अक्सर एक दूसरे के घर जाते हैं. एक बार वीत्या स्लाविक के घर आया. स्लाविक ने उससे कहा:
 “चल, लुका-छिपी का खेल खेलते हैं!”
 “चल,” वीत्या मान गया. “मगर पहले मैं छुपूँगा!”
 “अच्छा, ठीक है, मैं ढूंढूंगा,” स्लाविक ने कहा और कॉरीडोर में चला गया.
वीत्या भाग कर कमरे में आया, पलंग के नीचे रेंग गया और चिल्लाया:
 “रेडी!”
स्लाविक आया, उसने पलंग के नीचे झाँका और फ़ौरन उसे ढूंढ़ लिया. वीत्या पलंग के नीचे से बाहर निकला और बोला:
 “ये गलत है! मैं अच्छे से नहीं छुपा था! अगर मैं अच्छे से छुपता तो तू मुझे ढूंढ़ नहीं पाता. मैं फिर से छुपता हूँ.”
 “ठीक है, छुप जा फिर से, प्लीज़,” स्लाविक मान गया और फिर से कॉरीडोर में गया.
वीत्या कम्पाऊण्ड में गया और ढूंढ़ने लगा कि कहाँ छुपा जाए. देखता है कि गोदाम के पास कुत्ता-घर है, और उसमें बोबिक बैठा है. उसने फ़ौरन कुत्ता-घर से बोबिक को भगा दिया, ख़ुद उसकी जगह पे रेंग गया और फिर से चिल्लाया:
 “रेडी!”
स्लाविक कम्पाऊण्ड में आया और वीत्या को ढूंढ़ने लगा. ढूंढ़ता रहा, ढूंढ़ता रहा , मगर वो मिला ही नहीं.
मगर वीत्या कुत्ता-घर में बैठे बैठे बोर हो गया, वो बाहर झाँकने लगा. तभी स्लाविक ने उसे देख लिया और वो चिल्लाया:
 “ओह, तू भी कहाँ जाकर छुप गया! बाहर निकल!”
 वीत्या कुत्ता-घर से बाहर निकला और बोला:
 “ये सही नहीं है! तूने मुझे नहीं ढूंढ़ा. मैं ख़ुद ही बाहर झाँक रहा था.”
 “तू बाहर क्यों झाँक रहा था?”
”कुता-घर में गुड़ी-मुड़ी बनकर बैठने से मैं उकता गया. अगर मैं गुड़ी-मुड़ी नहीं बना होता, तो तू मुझे ढूंढ़ ही नहीं सकता था. मैं फिर से छुपूँगा.”
 “नहीं अब छुपने की बारी मेरी है,” स्लाविक ने कहा.
 “तो, फिर मैं बिल्कुल नहीं खेलूँगा!” वीत्या बुरा मान गया.
 “ठीक है, फिर से छुप जा, तू ऐसा ही है,” स्लाविक मान गया.
वीत्या कमरे में भागा, उसने दरवाज़ा बन्द किया, और ख़ुद हैंगर्स के पास जाकर ओवरकोट के नीचे छुप गया. स्लाविक फिर से उसे ढूंढ़ने लगा. उसने दरवाज़ खोला, मगर बोबिक भीतर घुस गया, सीधा हैंगर्स के पास भागा और वीत्या से प्यार जताने लगा. वीत्या गुस्सा हो गया और वो बोबिक को पैर से धकेलने लगा. स्लाविक ने देख लिया और वो चिल्लाया:
 “आह, ये रहा तू! हैंगर्स के पीछे! बाहर निकल!”
 वीत्या बाहर निकला और कहने लगा:
 “ये सही नहीं है! तूने मुझे नहीं ढूंढ़ा! बोबिक ने मुझे ढूंढ़ा है. मैं फिर से छुपूँगा.”
 “ये क्या हो रहा है?” स्लाविक ने कहा. “तू हर बार छुपेगा और मैं हर बार तुझे ढूंढूंगा?”
 “बस, एक और बार मुझे ढूंढ़ ले, तब तू छुप जाना,” वीत्या ने कहा.
  स्लाविक ने फिर से आँखें भींच लीं, और वीत्या किचन में भागा, बर्तनों की अलमारी से सारे बर्तन निकाले, ख़ुद अलमारी में घुस गया और चिल्लाया:
 “रेडी!”
स्लाविक किचन में गया, देखा – अलमारी से सारे बर्तन निकले पड़े हैं, और वो फ़ौरन समझ गया, कि वीत्या कहाँ है.
वो दबे पाँव अलमारी के पास आया, उसे बन्द करके ताला लटका दिया, और ख़ुद कम्पाऊण्ड में भागा और बोबिक के साथ लुका-छिपी खेलने लगा. वो छुप जाता, और बोबिक उसे ढूंढ़ निकालता.
 “ये बढ़िया है!” स्लाविक ने सोचा. “वीत्या के मुक़ाबले बोबिक से खेलना कहीं ज़्यादा अच्छा है.”
और वीत्या अलमारी में बैठा है, बैठा है, बैठे-बैठे बोर हो गया. वो बाहर निकलना चाहता था, मगर दरवाज़ा ही नहीं खुल रहा था. वो डर गया और लगा चिल्लाने:
 “स्लाविक! स्लाविक!” स्लाविक ने सुन लिया और भागकर आया.
 “मुझे यहाँ से बाहर निकाल!” वीत्या चिल्लाया. न जाने क्यों दरवाज़ा ही नहीं खुल रहा है.”
 “तो फिर, तू मुझे ढूंढ़ेगा? तभी मैं तुझे बाहर निकालूँगा.”
 “मैं क्यों तुझे ढूंढ़ने लगा, जब तूने मुझे ढूँढ़ा ही नहीं.”
 “मैंने तो ढूंढ़ लिया था.”
 “ये तूने मुझे नहीं ढूंढ़ा! मैं ख़ुद ही चिल्लाया था. अगर मैं चिल्लाया न होता, तो तू मुझे ढूँढ़ नहीं सकता था!”
 “अच्छा, तो फिर बैठा रह अलमारी में, और मैं जा रहा हूँ घूमने,” स्लाविक ने जवाब दिया.
 “ऐसा करने का तुझे कोई हक़ नहीं है!” वीत्या चीख़ा. “ये दोस्तों वाली बात नहीं है!”
 “और, पूरे टाईम मुझे ही ढूंढ़ने पर मजबूर करना – क्या ये दोस्तों वाली बात है?”
 “दोस्तों वाली ही बात है.”
 “तो फिर शाम तक अलमारी में ही बैठा रह.”
 “ठीक है, अब मैं तुझे ढूंढूंगा, बस मुझे बाहर निकाल,” वीत्या मनाने लगा.
स्लाविक ने ताला हटाया. वीत्या अलमारी से बाहर आया, उसने ताला देखा और बोला:
 “ये तूने जानबूझ कर मुझे बन्द किया था? अब मैं तुझे नहीं ढूंढूंगा!”
 “ज़रूरत भी नहीं है,” स्लाविक ने कहा. “इससे अच्छा तो मैं बोबिक के साथ खेलूँगा.”
 “क्या बोबिक ढूंढ़ सकता है?
 “ओहो! तुझसे ज़्यादा अच्छा!”
“चल, फिर हम मिलकर बोबिक से छुप जाते हैं.”
वीत्या और स्लाविक कम्पाऊण्ड में गए और बोबिक से छुपने लगे. बोबिक को लुका-छिपी का खेल बहुत अच्छी तरह आता था, सिर्फ वो आँखें नहीं मींच सकता था.
                 

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