शरारती चूज़े
लेखक – मरीना
द्रुझीनिना
अनुवाद: आ. चारुमति
रामदास
म्यूज़िक की क्लास में
ग्लफ़ीरा पित्रोव्ना ने कठोरता से कहा:
“बच्चों! आज मैं तुम्हें
नये गाने का डिक्टेशन देती हूँ. और आप अच्छी तरह उसे लिख लो, एक भी
शब्द मत छोड़ना! तो, शुरू करें! “त्सिप, त्सिप, मेरे चूज़ों...”
इसी समय पेत्का रेद्किन ने
व्लादिक गूसेव को गुदगुदी करने की ठान ली. व्लादिक चीखा और उछला. पेत्का खिलखिला
रहा था.
“ये क्या कर रहे हो तुम
लोग? बदतमीज़!” ग्लफ़ीरा पित्रोव्ना को गुस्सा आ गया. “अच्छी डाँट पिलाऊँगी!” और
उसने डिक्टेशन जारी रखा. “त्सिप, त्सिप, मेरी व्हेलों, रूई के फ़ाहों...”
अब व्लादिक गूसेव ने रेद्किन
से बदला लेने का फ़ैसला किया. और उसने भी गुदगुदी की. और अब पेत्का चीखा और उछला.
ग्लफ़ीरा पित्रोव्ना को और ज़्यादा गुस्सा आया और वह चिल्लाई:
“बिल्कुल बेशरम हो गये हो!
हाथ से निकल गये हो! अगर सुधरे नहीं, तो आपका कुछ भी अच्छा नहीं
हो सकता! सिर्फ बदमाश और डाकू! अपने बर्ताव पर फ़ौरन ग़ौर करो!”
और वह चूज़ों के बारे में
आगे लिखवाने लगी:
और पेत्का रेद्किन अपने बर्ताव के बारे में सोचता
रहा, सोचता रहा और उसने अपने आप को सुधारने का फ़ैसला किया. मतलब, उसने व्लादिक को गुदगुदी करना बंद कर दिया और सीधे उसकी नाक के नीचे से
नोटबुक छीन ली. दोनों उस बेचारी नोटबुक को अपनी-अपनी तरफ़ खींचने लगे, और आख़िरकार वह फ़ट गई. और पेत्का और व्लादिक धडाम् से अपनी अपनी कुर्सियों
से गिर गये.
अब तो ग्लफ़ीरा पित्रोव्ना
के सब्र का बांध टूट गया.
“क्लास से बाहर जाओ!: वह
भयानक आवाज़ में चिल्लाई. “और कल ही अपने माँ-बाप को लेकर आओ!”
पेत्का और व्लादिक आज्ञाकारिता
से बाहर चले गये. ग्लफ़ीरा पित्रोव्ना को फिर किसी ने परेशान नहीं किया. मगर वह शांत
नहीं हो पा रही थी और लगातार दुहरा रही थी:
“सज़ा दूँगी! सज़ा दूंगी शैतान
बच्चों को! हमेशा याद रखेंगे!”
आख़िरकार हमने गाना लिख लिया, और ग्लफीरा
पित्रोव्ना ने कहा;
“आज रूच्किन बहुत अच्छी तरह
बर्ताव कर रहा है. और, शायद, उसने सारे शब्द लिख लिये हैं.”
उसने मेरी नोटबुक ली. और ज़ोर
से पढ़ने लगी. और उसका चेहरा धीरे-धीरे लम्बा होने लगा, और आँखें गोल-गोल
घूमने लगीं.
“त्सिप, त्सिप,
मेरे चूज़ों. अच्छी डाँट पिलाऊँगी! त्सिप, त्सिप,
मेरी व्हेलों! बेशरम, कैसा
बर्ताव कर रहे हो? आप, रूई के फ़ाहों,
बिल्कुल बेशरम हो गये हो! मेरी भावी मुर्गियों! तुम जैसे लोगों से निकलते
हैं डाकू और बदमाश! पानी पीने आओ और अपने बर्ताव के बारे में सोचो! तुम्हें दाने दूँगी
और पानी दूँगी, और कल ही अपने माँ-बाप को लेकर आना! ऊह,
अच्छी सज़ा दूँगी इन शैतानों को! हमेशा याद रखेंगे!”
पूरी क्लास मुँह दबाये रही
और फिर ठहाके फूट पड़े.
मगर ग्लफ़ीरा पित्रोव्ना मुस्कुराई
तक नहीं.
“तो..ओ..रूच्किन,” उसने खनखनाती
आवाज़ में कहा: “और तू भी बिना माँ-बाप के स्कूल में मत आना. और आज की क्लास के लिये
तुझे – दो नंबर. (दो नंबर का अर्थ है – अनुत्तीर्ण).
“...मगर दो नम्बर किसलिये? माँ-बाप को
स्कूल में क्यों लाना? मैंने तो वही सब लिखा जो ग्लफ़ीरा पित्रोव्ना
कह रही थी! एक भी शब्द नहीं छोडा था!”
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