पर्यावरण-संरक्षण दिवस
लेखिका: इरीना पिववारवा
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
“क्या नई ख़बर है?” कात्या ने कोस्त्या पाल्किन से पूछा, जब कोस्त्या पाल्किन हाथों में अख़बार पकड़े कम्पाऊण्ड में आया.
कोस्त्या हमेशा अख़बार लेकर ही कम्पाऊण्ड में निकलता था. कम उम्र का होने के
बावजूद उसे अख़बार पढ़ना अच्छा लगता था.
और वह फ़ौरन कात्या और मान्या को उसका सारांश बताने लगा:
“हाँ, ये,
पर्यावरण की सुरक्षा के बारे में लिख रहे हैं,” कोस्त्या ने कहा. “आजकल सभी अच्छे आदमी पर्यावरण की रक्षा कर रहे है. और
बुरे आदमी पर्यावरण को बिगाड़ रहे हैं. पेड़ काटते हैं, जंगलों की हिफ़ाज़त नहीं करते, नदियों को गंदा करते हैं. अगर ऐसा ही चलता रहा तो कोई पर्यावरण बचेगा ही नहीं!”
“मगर हम पर्यावरण की हिफ़ाज़त क्यों
नहीं करते?” कात्या
ने कहा. “चलो, हम भी पर्यावरण की रक्षा करें!”
“चलो! चलो!” मानेच्का चिल्लाई. “हे, मैं पहला नम्बर!”
“मगर हम उसकी रक्षा कहाँ करेंगे?” कोस्त्या ने कहा. “क्या कम्पाऊण्ड में?”
“क्या हमारे कम्पाऊण्ड में पर्यावरण नहीं है?” कात्या ने कहा. “कितना बढ़िया है! चलो, हमारे कम्पाऊण्ड में पर्यावरण-संरक्षण दिवस की घोषणा करें!”
उन्होंने फ़ैसला भी कर लिया. उनके कम्पाऊण्ड में पर्यावरण-संरक्षण दिवस की
घोषणा करने का. वे कुछ जल्दी ही कम्पाऊण्ड में निकले और पहरा देने लगे कि कोई भी
लॉन्स पर न भागे.
मगर कोई नहीं भागा.
उन्होंने यह भी देखा कि कोई पेड़ तो नहीं तोड़ रहा है.
मगर कोई भी पेड़ नहीं तोड़ रहा था.
“और हो सकता है, अचानक कोई क्यारी से फूल तोड़ने लगे?” कात्या ने कहा. “दोनों क्यारियों पर नज़र रखनी होगी.”
देखते रहे, देखते रहे...अचानक एक छोटा-सा कुत्ता क्यारी में कैसी उछल-कूद करने लगा! और
फूलों को सूंघने लगा.
“छू-छू!” कात्या और मान्या हाथ हिलाने लगीं. “क्यारी से भाग जा!”
मगर कुत्ते ने उनकी ओर देखा, अपनी पूँछ हिलाई और लगा फ़िर से फूल सूंघने!
“मत सूंघ!” कात्या और मान्या चिल्ला रही थीं. “क्यारी से बाहर भाग! फूल तोड़
देगा!”
और कुत्ते ने उनकी तरफ़ देखा और कोई घास की पत्ती चबाने लगा.
“छि!” तू क्यों पर्यावरण को बिगाड़
रहा है?” कात्या
और मान्या चिल्ला रही थीं और क्यारी के चारों ओर भाग रही थीं, वे कुत्ते को भगाना
चाहती थीं.
मगर कुत्ता क्यारी में ही खड़ा रहा और घास की दूसरी पत्ती भी चबाने लगा, वह कात्या और मानेच्का
पर ज़रा भी ध्यान नहीं दे रहा था!
तब कात्या और मानेच्का से रहा नहीं गया और वे क्यारी में घुस गईं. मानेच्का
कुत्ते को पकड़ना चाहती थी, मगर वह मुँह के बल गिरी. सीधे डहलिया पर, डहलिया के दो फूल तोड़ दिये. कुत्ता भाग गया, और खिड़की से वाचमैन – सीमा आण्टी चिल्लाई:
“ऐ, फ़िर
से क्यारी में घुस गये! फ़िर से बदमाशी करने लगे?! मैं तुम्हें दिखाऊँगी, कैसे फूल तोड़ते हैं!”
तो, ऐसा
रहा पर्यावरण-संरक्षण दिवस!
“कोई बात नहीं,” कोस्त्या पाल्किन ने कहा. “तुम लोग बुरा न मानो. जानवर भी पर्यावरण का हिस्सा होते हैं. चलो, अपने कम्पाऊण्ड में प्राणियों
की रक्षा करें.”
“चलो!” कात्या ख़ुश हो गई.
“चलो! चलो!” मानेच्का चिल्लाई. “चलो, अपने मीश्किन की रक्षा करें!”
“तुम्हारे मीश्किन को कोई नहीं सताता,” कोस्त्या ने कहा, “बल्कि हमें यह देखना होगा कि हमारे कम्पाऊण्ड में कोई प्राणियों के साथ बुरा
बर्ताव तो नहीं कर रहा है?”
“मगर हम इस बात की जाँच कैसे करेंगे,” कात्या ने कहा.
“हर क्वार्टर में जाना होगा,” कोस्त्या ने कहा, “तुम लोग इस प्रवेश द्वार से जाओ. और मैं उस वाले से जाता हूँ. और अगर तुम
देखो कि कोई प्राणियों को मार रहा है, या उन्हें खाना नहीं दे रहा है, या किसी और तरह से उनका अपमान कर रहा है, तो हम “पर्यावरण-मित्र” पत्रिका को ख़त लिखेंगे.”
“ठीक है,” कात्या ने कहा, “चल, मान्”.
और वे एक के बाद एक सभी क्वार्टर्स में घंटी बजाने लगीं, भीतर जाकर पूछने लगीं:
“प्लीज़, बताइये, क्या आपके यहाँ कोई पालतू-प्राणी हैं?”
“हैं,” पाँचवें
क्वार्टर वालों ने कहा, “हमारे यहाँ कैनरी है, तो क्या?”
“और आप उसे ठीक से खिलाते तो हैं?” कात्या और मानेच्का ने पूछा.
“बेशक.”
“और आप उसे मारते तो नहीं हैं?”
“ये भी क्या बात हुई?! क्या कोई कैनरी को मारता है? सुनो इनकी बात!”
“क्या आप उसे घुमाने ले जाते हैं?”
“बेशक, हम उसे जंज़ीर बांध कर ले जाते हैं,” पाँचवें क्वार्टर के लोग हँसने लगे. “लड़कियों, लगता है कि तुम्हारे पास कोई काम नहीं है – तुम हर तरह के बेवकूफ़ी भरे सवाल
पूछ रही हो!”
“ऐसी कोई बात नहीं है! हम सिर्फ प्राणियों की रक्षा कर रहे हैं! अगर आप अपनी
कैनरी का अपमान करेंगे तो हम आपके बारे में “पर्यावरण-मित्र” पत्रिका में पत्र लिख
देंगे!”
“तुम लोग तो पीछे ही पड़ गईं? हम कैनरी का अपमान करने के बारे में सोचते भी नहीं हैं! ये कहाँ से तुम लोग हमारे
सिर पे चढ़ गईं!”
तेरह नंबर के क्वार्टर में एक बड़े लड़के ने दरवाज़ा खोला, जो देखने में पाँचवीं
क्लास का लगता था. पता चला कि इस क्वार्टर में एक बिल्ली रहती है अपने बिलौटों के
साथ.
“तू अपनी बिल्ली को ठीक से खिलाता तो है?” कात्या और मान्या ने उस पाँचवीं क्लास वाले से पूछा.
“तो क्या?”
“कैसे – क्या? पूछ रहे हैं कि तू अपनी बिल्ली को ठीक से खिलाता तो है?”
“आपसे मतलब?”
“बहुत बड़ा मतलब है! बिल्लियों को ठीक से खिलाना चाहिये, समझा? और बिलौटों को भी.”
“क्या वाकई में?” पाँचवीं क्लास वाले को अचरज हुआ. “मुझे तो पता ही नहीं था! बताने के लिये शुक्रिया!”
“ठीक है! और क्ता तू उन्हें मारता है?”
“किसे?”
“बिल्ली को और बिलौटों को.”
“मारता हूँ. डंडे से. सुबह-सुबह,” पाँचवीं क्लास वाले लड़के ने कहा और उसने कात्या और मानेच्का को दरवाज़े से
बाहर धकेल दिया.
“बेवकूफ़,” मानेच्का ने कहा. ज़रा सोच, कैसा है वो! और ऊपर से चश्मा भी पहनता है.”
इकतीस नंबर के क्वार्टर में दरवाज़े के पीछे कुत्ता विलाप कर रहा था, मगर मालिकों ने दरवाज़ा
नहीं खोला.
“घर में कोई नहीं है,” कात्या ने कहा. “बेचारा कुत्ता! शायद वह भूखा है! यहाँ फिर से आना पड़ेगा, उसे खिलाना पड़ेगा...”
चालीस नंबर के क्वार्टर में एक जर्मन-शेफ़र्ड रहता था. जब कात्या और और
मानेच्का के लिये दरवाज़ा खुला, तो वह उछला और उन्हें सूंघने के लिये लपका.
“ऑय!” मानेच्का डर गई. “इसे हटाइये, प्लीज़, नहीं तो काट लेगा!”
“तुम्हें क्या चाहिये, बच्चियों?”
“कुछ नहीं, शुक्रिया, हमने गलती से घंटी बजा दी! अच्छा, ये बताइये, कि आप अपने कुत्ते का अपमान तो नहीं करते?”
“हम उसका अपमान क्यों करने लगे? वह बेहद होशियार है, दो मेडल्स जीते हैं उसने.”
“बहुत-बहुत शुक्रिया.”
“तो?” जब
वे प्रवेश द्वारों से निकलकर कम्पाऊण्ड में मिले तो कोस्त्या पाल्किन ने पूछा.
“किसी की सुरक्षा की?”
“नहीं” कात्या और मानेच्का ने कहा. “दूसरे प्रवेश द्वार में जाना होगा.”
“और मैंने भी किसी की रक्षा नहीं की,” कोस्त्या ने कहा. “बात कुछ बनी नहीं...हो सकता है, कल थोड़ी सफ़लता मिले!”
“का-आ-त्या! मा-आ-ने-च्का!” वेरोनिका
व्लदिमीरव्ना ने खिड़की से पुकारा. “घर चलो!”
“कहाँ थीं तुम? मैं घंटे भर से चिल्ला रही हूँ!” जब बेटियाँ वापस आईं तो उसने गुस्से से
कहा. “जैसे ही बाहर निकलती हो, तुम्हारा दिमाग़ ख़राब हो जाता है. अपनी ज़िम्मेदारियों के बारे में भी भूल
जाती हो! सुबह से शाम तक घूमने को तैयार, और तुम्हारे हैम्स्टर्स बेचारे भूखे बैठे हैं. और उनका पिंजरा गंदा है! और
मछलियों का पानी कितने दिनों से नहीं बदला है! और क्या मीश्किन के लिये रेत लाने
फ़िर मैं ही भागूँ? तीन दिनों से तुमसे कह रही हूँ – मगर तुम लोग हो कि सुनती ही नहीं हो!!!
क्या तुम लोगों को प्राणियों पर दया नहीं आती! कैसे बेदर्द बच्चे हैं!”
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