कौआ
लेखक :
व्लादीमिर दाल्
अनुवाद :
आ. चारुमति रामदास
एक समय की बात है, कि जंगल में एक कौआ रहता था, वह अकेला नहीं,, बल्कि नानियों, अम्माओं, छोटे बच्चों, नज़दीकी
और दूर के पड़ोसियों समेत रहता था. समुन्दर के किनारे से पक्षी उड़कर आते - बड़े और
छोटे, बत्तखें और हंस, छोटे और नन्हे
पंछी; और पहाड़ों पर, घाटियों में,
जंगलों में, चरागाहों में घोंसले बनाते और
अण्डे देते. कौए ने ये देखा और चला मुसाफ़िर पक्षियों की बेइज़्ज़ती करने और उनके
अण्डे छीनने. उल्लू उड़ रहा था और उड़ते हुए उसने देखा कि कौआ छोटे और बड़े पंछियों
की बेइज़्ज़ती कर रहा है, अण्डे खींच रहा है.
“रुक,” वह बोला, “फ़ालतू कौए, तुझ पर
मुकदमा चलाएँगे और तुझे सज़ा दिलवाएँगे!”
और उड़ गया – दूर, बहुत दूर, पथरीले पहाड़ों पर, भूरे
गरुड़ के पास. उड़ कर पहुँचा और विनती करने लगा :
“ माई-बाप, भूरे
गरुड़, गुनहगार कौए के ख़िलाफ़ हमें न्याय दो! उसकी वजह से
छोटे-बड़े पंछियों का जीना मुश्किल हो रहा है : हमारे घोंसले तोड़ देता है, पिल्ले चुराता है, अण्डे घसीट कर ले जाता है और
उन्हें अपने कौओं के पिल्लों को खिलाता है!
भूरे गरुड़ ने सिर हिलाया और अपने हल्के, छोटे से दूत, नन्ही
चिड़िया को कौए को बुलाने के लिए भेजा. चिड़िया ने पंख फड़फड़ाए और कौए को बुलाने के
लिए उड़ गई. कौआ इनकार करने लगा, मगर सारे पंछियों की ताकत
उसके ख़िलाफ़ हो गई, सभी पंछी उसे काटने लगे, चोंच गड़ाने लगे, गरुड़ के पास इन्साफ़ के लिए खदेड़ने लगे.
कोई चारा नहीं था – उसने काँव-काँव किया और उड़ने लगा, और
सारे पंछी आसमान में उठकर उसके पीछे-पीछे उड़ने लगे.
वे गरुड़ के निवास पर पहुँचे और उसे घेर कर बैठ गए, और कौआ बैठा बीच में और गरुड़ के सामने
बदमाशी करने लगा, होशियारी दिखाने लगा.
गरुड़ ने कौए से पूछना शुरू किया :
“कौए, तुम्हारे
बारे में शिकायत है, कि तुम दूसरों का माल खा जाते हो,
बड़े और छोटे पंछियों के पिल्ले और अण्डे घसीट कर ले जाते हो!”
“बकवास, माई-बाप
भूरे गरुड़, कोरी बकवास, मैं सिर्फ छिलके
ही चुनता हूँ!”
“तुम्हारे बारे में मेरे पास ये शिकायत भी आई है, कि जैसे ही किसान बीज बोने के लिए खेत में आता
है, तुम अपने सभी कौए भाई-बंधुओं समेत झपटते हो और बीजों में
चोंच मारने लगते हो!
“ बकवास, माई-बाप
भूरे गरुड़, कोरी बकवास! मैं अपने दोस्तों के साथ, बड़े बच्चों के साथ, छोटे बच्चों के साथ, घर के लोगों के साथ सिर्फ ताज़ी जोती गई भूमि से कीड़े घसीटता हूँ!”
“और चारों ओर लोग शिकायत करते हैं, कि जैसे ही वे फसल काट कर ढेर बनाते हैं,
तुम अपने कौओं के झुण्ड समेत हल्ला बोल देते हो और पूलियाँ उलट-पुलट
कर देते हो, और ढेर बिखेर देते हो!”
“बकवास, माई-बाप
भूरे गरुड़, कोरी बकवास! ये तो हम अच्छे काम में मदद करते हैं
– पूलियाँ बिखेर देते हैं, जिससे कि सूरज और हवा को आने दें,
जिससे फफूँद न लगे और अनाज सूख जाए!”
गरुड़ को बूढ़े झूठे-कौए पर बहुत गुस्सा आया, उसने उसे जेल के, लोहे
की सलाखों वाले एक कमरे में बंद करके लोहे के ताले लगाने का हुक्म दिया. वहीं पर वह
कौआ आज तक बैठा है!
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