होशियार बंदर
लेखक : मिखाइल
ज़ोशेन्का
अनुवाद : आ.
चारुमति रामदास
एक जोकर के पास एक बहुत होशियार बन्दर था.
उसकी बुद्धि बहुत विकसित थी और समझ बड़ी पैनी थी. जोकर ने उसे गिनना सिखाया. और वह, न केवल गिनता था, बल्कि
अपनी पूँछ से मनचाहा अंक भी बनाता था. जोकर बन्दर से कहता :
“प्यारे जैको, बताओ
तो तुम्हें कितने हाथी दिखाई दे रहे हैं.”
और हमारा छोटा-सा
बन्दर एक हाथी की ओर देखकर अपनी पूँछ इस तरह मोड़ता कि वह एक के अंक के समान हो जाती.
फिर जोकर कहता :
“अब तुझे अपने सामने
चार छोटे से पंछी दिखाई दे रहे हैं, मुर्गी के और शुतुरमुर्ग के. अपने दिमाग
में सोचो कि वे कुल कितने हैं.
हर बच्चा, पूँछ
की ओर देखकर फ़ौरन समझ जाता कि कितने पंछी हैं. इसके बाद जोकर कहता :
“अच्छा, जैको,
गिनो तो, कितने पंछी और जानवर देख रहे हो.”
और हमारा होशियार
बन्दर पूँछ से आवश्यक अंक दिखाता.
“और यहाँ कितने चूहे
हैं?”
जोकर पूछता है.
मगर चूहे तो वहाँ
इतने ज़्यादा थे,
कि हमारा बन्दर सोच में पड़ गया. फिर उसने उन्हें गिना और देखा कि इतनी
बड़ी संख्या दिखाने के लिए उसकी पूँछ मुड़ ही नहीं रही है. और तब वह दूसरे बन्दर को बुलाता
है.
“आह, शायद
उन्होंने गलत नहीं बताया है! गिनो तो, बच्चों.”
अंत में जोकर कहता
है :
“बताओ, कि
इस डलिया में कितने सेब हैं. अगर सही-सही गिने, तो सारे के सारे
सेब तुझे इनाम में दे दूँगा.”
डलिया में बीस सेब
थे. हमारा बन्दर दूसरे बन्दर को बुलाना चाहता था, ताकि दोनों मिलकर बीस का अंक
दिखा सकें. मगर फिर यह सोचकर कि दूसरे बन्दर से सेब क्यों बाँटे, उसने ख़ुद ही चालाकी से आवश्यक अंक दिखा दिया. इसके लिए उसे सारे सेब मिल गए.
और अगर अब उसे भूख नहीं लग रही है, तो ये बड़े अचरज की बात होती.
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