बेटे
लेखिका :
वलेन्तीना असेयेवा
अनुवाद : आ.
चारुमति रामदास
दो औरतें कुएँ से पानी निकाल रही थीं.
उनके पास तीसरी औरत आई. और एक बूढ़ा पास ही पड़े पत्थर पर सुस्ताने के लिए बैठ गया.
उनमें से एक औरत ने दूसरी से कहा:
“मेरा बेटा होशियार और ताकतवर है, कोई उसका मुकाबला नहीं कर सकता.”
“और मेरा बेटा कोयल की तरह गाता है. वैसी
आवाज़ किसी की भी नहीं है,” दूसरी औरत ने
कहा. मगर तीसरी ख़ामोश रही.
“तुम अपने बेटे के बारे में कुछ कहती
क्यों नहीं हो?” पडोसनों ने उससे पूछा.
“क्या कहूँ?” तीसरी औरत बोली. “उसमें कोई ख़ास बात नहीं है.”
औरतों ने भरी हुई
बाल्टियाँ उठाईं और चल पड़ीं. बूढ़ा भी उनके पीछे-पीछे चलने लगा.
औरतें चल रही हैं, हाथ
दर्द करते हैं, रुक जाती हैं. हाथ दर्द करते हैं, पानी छलकता है, पीठ में टूटन हो रही है.
अचानक सामने से तीन
लड़के भागते हुए आए.
एक कुलांटें भरते
हुए,
पहिए की तरह भागता है – औरतें उसे देखकर ख़ुश होती हैं.
दूसरा गाना गा रहा
है,
कोयल की आवाज़ जैसी आवाज़ – औरतें उसका गाना सुनती रहीं.
मगर तीसरा बेटा माँ
के पास भाग कर आया, उसके हाथों से भारी बाल्टियाँ लीं और ले चला.
औरतें बूढ़े से पूछती
हैं :
“तो, कैसे
हैं हमारे बेटे?”
“मगर वो हैं कहाँ?” बूढ़े ने जवाब दिया. “मैं तो सिर्फ एक ही बेटे को देख रहा हूँ.”
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