गुरुवार, 7 मार्च 2019

Anton (Hindi)



अन्तोन
लेखिका : नीना गर्लानोवा
अनुवाद : आ. चारुमति रामदास

दूसरी कक्षा के अन्तोन ने मई में तीसरी कक्षा के लिए आऊटलाइन नक्शे खरीदे, क्योंकि रईसा कन्स्तान्तीनव्ना ने कहा था, “मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि तुममें से कई बच्चे गली-गली घूमते रहेंगे मगर आऊटलाइन मैप्स नहीं खरीदेंगे!”
मम्मा ने अन्तोन के पास ये नक्शे देखे और चहकी:
“हे भगवान! कितना पसन्द था मुझे इन आऊटलाइन मैप्स को भरना! अच्छा है कि बच्चे हैं, वर्ना मैं अपना बचपन कभी भी याद न कर पाती – घण्टों तक मैं बैठी रहती, उन्हें भरती रहती...”
अन्तोन समझ गया कि मम्मा के भावुक होने का बिरला क्षण आ पहुँचा है.
“आज मुझे दुग्गी* मिली है – गणित में!” उसने ख़ुशी-ख़ुशी बताया.
“एक बार मुझे भी दुग्गी मिली थी. ओह, कितनी गन्दी निक्कर है तुम्हारी!” मम्मा ने बात बदल दी.
“यह पी.टी. में हुआ है.”
“पी.टी. में क्या हुआ?”
“कलाबाज़ियाँ खा रहे थे.”
“चलो, उतारो जल्दी से अपनी पी.टी. की निक्कर और धो डालो!” पापा ने कहा और मानो जैसे कुछ हुआ ही न हो, बहनों को कविताएँ पढ़कर सुनाने लगे.
वे हर रोज़ शाम को या तो कविताएँ पढ़ते या कहानियाँ, और आज भी कोई “एटॉमिक परीकथा” पढ़ रहे थे – मेंढ़की के बारे में और इवानूश्का के बारे में, मगर अन्तोन को किचन में साफ़ सुनाई नहीं दे रहा था. उसने निक्कर को तसले में भिगोया और कहानी सुनने के लिए बाहर गया.
चीरा उसका सफ़ेद शाही बदन
और प्रवाहित किया बिजली का करंट
और बड़ी पीड़ा से मर रही थी वह,
हर नस में धड़क रहा था जीवन
और पहचान की मुस्कुराहट
खेल रही थी मूरख के प्रसन्न चेहरे पर.
सोनेच्का बोली :
“अगर उसने एक मेंढक को देखा तो कुछ ज़्यादा अक्लमन्द हो गया. और एक को देखा – और अक्लमन्द हो गया. मगर बिजली का करंट क्यों छोड़ा जाए? बेवकूफ़ कहीं का...”
“पहली कक्षा के लिए यह अच्छा विश्लेषण है,” पापा ने कहा.  
अन्तोन समझ गया कि फिर से गणित वाली बात छेड़ी जा सकती है.
“और साइकिल से भी अक्लमन्द हो जाते हैं. हाँ! उससे मैथ्स में तेज़ हो जाते हैं – मैंने ऐसा पढ़ा था.”
“हाँ, मगर तेरे तो छक्के आते हैं....मैथ्स में, और रईसा कन्स्तान्तीनव्ना सिर्फ सबसे अक्लमन्द बच्चों को ही छक्के देती हैं!”
“हाँ SSS, मगर आज तो मुझे दुग्गी मिली है!”
मम्मा फ़ौरन सब समझ गई और चिल्लाई :
“डिप्लोमेट! आप देखिए ज़रा इसकी तरफ़! उसने जान-बूझ कर दुग्गी पाई है, जिससे कि साइकिल माँग सके! डिप्लोमेट कहीं का, और मैं अपने लिए एक पर्स नहीं ख़रीद सकती; देखो, मैं कैसा पर्स लेकर घूमती हूँ!” अब उसने अपना पर्स झटका, जिसमें से कई सारे पर्चे निकले जाँच के और एम्बुलेन्स भेजने के. (मम्मा उनके मुताबिक हमेशा “धन्यवाद” लिखा करती थी).
सोन्या वे पर्चे उठाने लगी और मम्मा की हिमायत करने लगी.
“हाँ, मम्मा ऐसा पर्स लिए घूमती हैं कि मेरी सहेली ने उससे नए साल पर कहा, “मैं बुढ़िया शापोक्ल्याक के लिए सूट बना रही हूँ – मुझे बस आपके लिए पर्स और बनाना है, और बस!” और तू साइकिल, साइकिल कर रहा है! वह बड़ी महँगी होती है.”
पदरस्तोक इतनी महँगी नहीं होती, मगर वे तो आजकल हैं ही नहीं,” बहन नताशा ने पुश्ती जोड़ी.
“और, गर्मियों में मेरे दोस्त भी नहीं रहेंगे – वे सब साइकिलों पर चले जाएँगे. मेरे तो, वैसे भी, कम ही दोस्त हैं,” अलसाए सुर में अन्तोन बोला.
“दोस्त कोई मक्खियाँ तो नहीं हैं, कि झुण्ड बनाकर मंडराएँ,” पापा ने बीच ही में बात काट दी.
“फिर से एक हफ़्ते के लिए किराए पर ले लेंगे,” मम्मा ने कहा. “वर्ना तो; म्यूज़िक क्लास के लिए पैसे दें – माँ-बाप! साइकिल खरीदें – माँ-बाप! सब कुछ चाहिए इन्हें, और हम क्या – बरबाद हो जाएँ? मेरे चार बच्चे हैं, तुम चारों को मै हर चीज़ नहीं दे सकती...ताकत कहाँ है मेरे पास?”
“ओह, मम्मा, शायद, अपनी ताकत के बारे में सोच लेना चाहिए था, चौथे बच्चे को पैदा करने से पहले!”
“आSSह! मैंने सोचा ही था, यही सोचा था कि तुम मेरी मदद करोगे! मगर तुम तो उसके बदले में अपनी चालाकियों से मुझे पागल किए दे रहे हो, डिप्लोमेट कहीं का! चलो, प्याज़ छीलने में मेरी मदद करो.”
“प्याज़ क्यों?”
पाइ** में डालूँगी – और किसलिए! मैं बस पकाती रहती हूँ, सारे दिन पकाती रहती हूँ, जिससे कि तुम लोगों को खिला सकूँ, जिससे कि पूरा पड़े. ओवन में सेब की पाइ बन रही है, उसके बाद प्याज़ की रखूँगी, और तुम हो कि सताते रहते हो मुझे अपनी दुग्गियों से, चालाकियों से और लालचीपन से. मैं तुम्हारी मैगज़ीन कॅक्टुसोनक*** में लिखूँगी!”
कॅक्टुसोनक  सोन्या की मैगज़ीन है. अन्तोन की है गर्चीच्निक***”*“ पापा बोले जो पैरेन्ट्स की सभी मीटिंग्स में जाया करते थे.
गर्चीच्निक हमारी है”, नताशा बोली.”इसकी है झाला*****.”
“ठीक है, मैं झाला में लिखूँगी,” अब शांति से मम्मा ने कहा, यह देखकर अन्तोन ने आँखों पर चश्मा चढ़ा लिया है और वह दनादन् प्याज़ पे प्याज़ छीले जा रहा है.
“मॉस्को टाइम – रात के आठ बजे हैं,” रेडियो पर अनाउन्सर ने कहा.
अन्तोन समझ गया कि अब उसे सोने के लिए भेजेंगे, बहनों को भी. यहाँ तो दस बज चुके हैं और मॉस्को में सिर्फ आठ. उसकी सोने की इच्छा नहीं थी, इसलिए उसने प्याज़ धीरे-धीरे छीलना शुरू कर दिया, साथ ही वह गाता भी जा रहा था :
मॉस्को का समय है बैठा
अपनी ख़ूबसूरती में दमखम
पेट में पड़ गया गड्ढ़ा
और गैस की ओर भागे हम.
अक्सर उसकी कविताओं की तारीफ़ हुआ करती थी, मगर आज मम्मा फिर ताव खा गई:
“गैस की ओर, तुम! जैसे ही सोने का समय होता है तुम्हें सूझता है खाना, पीना, पढ़ना! मैं तुझे खूब अच्छी तरह जानती हूँ – सोने जाओ, बस.”
“ओह, मुझे एक सेब दे दो, फिर मैं सोने चला जाऊँगा.”
“अन्तोन, जाओ! कोई सेब-वेब नहीं मिलेगा,” पापा बीच में टपक पड़े.
“ओह, बस, आप भी! मैं भी आपको बुढ़ापे में सेब नहीं दिया करूँगा!” बेटा चीख़ा.
“एकदम बेशरम हो गया है!” मम्मा चीखी, “दुग्गी लाया है, उसी के सिर पे मारो दुग्गी! डिप्लोमेट कहीं का – हमें उल्लू बनाने चला था! और धमकी देता है कि बुढ़ापे में सेब नहीं देगा.”
“ओह, डियर, बस करो, बच्चों पर तुम्हारी चीख़ों का कोई असर नहीं होता,” पापा बीच में बोले.
“मेरी चीख़ें – ठीक है, मुझे यह सताता है – ठीक है : शायद मुझसे कहीं कुछ छूट गया है. मगर यह रईसा कन्स्तान्तीनव्ना को क्यों सताता है अपनी दुग्गियों से?”
“अन्तोन, बस हो गया, सोने जाओ, और हम अपने बुढ़ापे के लिए सेब बचाकर रखेंगे.”
जब बच्चे शांत हो गए, तो पापा ने गत्तेवाले सेब के डब्बे पर बड़े-बड़े अक्षरों में काले स्केचपेन से लिखा – सेब, बुढ़ापे के लिए. और सुबह जब बच्चे स्कूल के लिए तैयार हो रहे थे, पापा इस डिब्बे के पास खड़े होकर सफ़ाई से सेब काट रहे थे, पास ही रखे दूसरे डिब्बे पर जमाते जा रहे थे और मम्मा से पूछ रहे थे कि उन्हें कैसे सुखाना बेहतर होगा – ओवन में या बाल्कनी में.
लड़कियाँ चिल्लाईं : “ये क्या पागलपन है, अगर अन्तोन सेब नहीं देगा तो वे तो देंगी ही देंगी, और वे तो हैं तीन. मगर पापा ने जवाब दिया, “न जाने ज़िंदगी किस करवट बैठती है, अगर बेटियाँ अचानक दूसरे शहर में रहने चली जाएँ तो, और अन्तोन तो सेब देगा ही नहीं…”
“मैं तो सिर्फ मज़ाक कर रहा था!” अन्तोन पापा के हाथ से चाकू छीनते हुए चीख़ा; मैं आपको सेब, नासपाती, आलूबुखारे खिलाऊँगा!”
“हो सकता है, कि तुम अभी मज़ाक कर रहे हो? किस बात पर भरोसा किया जाए?”
“ओह, पापा!”
“क्या, अन्तोशा?”
“पापा!”
“क्या?”
“चाकू दो ना!”
“नहीं, नहीं दूँगा,” पापा सेब काटते रहे, मगर अब मम्मा ने उन्हें झूला हिलाने को कहा.
इस बीच अन्तोन ने सेब बुढ़ापे के लिए वाली इबारत को काट दिया था और वहाँ लिखा, पापा, तुम ये आदत छोड़ दो – बुढ़ापे के लिए सेब बचाने की!”
पापा किचन में वापस आए और उन्होंने अन्त्तोन की लिखाई काटकर दुबारा पहले वाली इबारत लिख दी. अन्तोन रो पड़ा.
“चलो, उसे माफ़ कर देते हैं,” मम्मा ने कहा. “देखो, वह बड़े-बड़े आँसुओं से रो पड़ा है, सेब जैसे आँसुओं से.”
“उन सेबों जैसे जो हमें बुढ़ापे में नहीं मिलेंगे,” पापा ने कहा और वे काम पर चले गए.
तब अन्तोन ने सेबों के कटे हुए टुकड़े ले-लेकर मुँह में ठूँसना शुरू कर दिया. इतने सारे सेब खाना कोई आसान बात नहीं थी – पेट में गुड़गुड़ होने लगी. फिर भी उसने पूरे खा लिए, फिर पापा की लिखाई वाला डिब्बा फाड़ दिया और बहनों के पीछे-पीछे स्कूल भागा.
क्लास में बच्चों ने च्युइंग गम मारने की सोची, ट्यूब में भर-भरके. मगर अन्तोन का जी बुढ़ापे के लिए बचाए गए सेबों के कारण मिचला रहा था, इसलिए उसने च्युइंग गम नहीं मारा.
क्लास में तिमोशिन ने च्युइंग गम फ़ायर किया, जो सीधा रईसा कन्स्तान्तीनव्ना को जाकर लगा. वह अजीब सी हालत में जम गई : जैसे कि पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर रही हो. हाथ ऊपर, आँखें बाहर को निकलती हुईं. जब वह आँखें इस तरह से निकालती है, तो क्लास में एकदम चिड़ीचुप छा जाती है.
“अन्तोन, इधर आओ!” रईसा कन्स्तान्तीनव्ना ने कहा, “मुझे लकवा मार गया है, मैं अपनी जगह से हिल नहीं सक रही हूँ. मेरी ओर से प्रार्थना पत्र लिखो.”
अन्तोन ने हाथ में पेन लिया.
प्रार्थना पत्र स्कूल के डाइरेक्टर को,रईसा कन्स्तान्तीनव्ना लिखवाने लगी. “प्रार्थना करती हूँ, कि मुझे पेन्शन पर भेज दिया जाए, क्योंकि बच्चे मुझ पर अज्ञात प्रकार के हथियारों से फ़ायर करते हैं. लिखा?  अब यह प्रार्थना पत्र डाइरेक्टर के पास ले जाओ!”
रईसा कन्स्तान्तीनव्ना पिछले साल भर से पेन्शन पर ही थी, मगर सिर्फ पालकों की प्रार्थना पर काम कर रही थी. बच्चे समझ गए कि बात बिगड़ चुकी है. वे बिसूरने लगे, कुछ बच्चों ने रईसा कन्स्तान्तीनव्ना को हाथ से पकड़ लिया और कक्षा में रुक जाने की विनती करने लगे. तब उसने धीरे-धीरे हाथ नीचे करने शुरू किए, धीरे-धीरे अपनी कुर्सी पर बैठने लगी.
“लगता है, लकवा गुज़र गया,” उसने कहा, और फ़ौरन सख़्ती से आगे बोली, “अपनी नोटबुक्स दो!”
क्लास के बाद तिमोशिन अन्तोन के पास आया :
“मेरे पास नई साइकिल कामाहै!”
“ख़ुश रहो पेन्शन पाने तक,” अलसाए सुर में अन्तोन ने जवाब दिया.
“अगर चाहो, तो मैं तुम्हें अपनी पुरानी पदरस्तोकदे सकता हूँ – गिफ्ट में?”
“चाहता हूँ! और मैं...मैं तुम्हारे बर्थडे पर ऐसी गिफ्ट दूँगा कि उँगलियाँ चाटते रह जाओगे, पीठ पर बर्फ रेंग जाएगी, बाल खड़े हो जाएँगे!”
और पूरे दिन अन्तोन पूँछ बना तिमोशिन के पीछे-पीछे घूमता रहा – मानो वे बस पक्के दोस्त हों. तिमोशिन बहुत ख़ुश था. वह अन्तोन को चुटकुला सुनाने लगा :
“जर्मन और रूसी राजा एक बार मिले...”
आगे अन्तोन ने कुछ नहीं सुना, मगर फिर भी वह दोस्ताना अंदाज़ में मुस्कुराता रहा (इससे पता चलता है कि वह डिप्लोमेट था : उसने इस जोड़ी की बकवास को भाँप लिया – राजा, जर्मन और रूसी’, - मगर वह चुप ही रहा).
और लो, शाम को तिमोशिन अन्तोन के घर साइकिल ले आया, और अपने पापा की हिदायत देने लगा :
“अगर सावधानी से चलाई जाए, तो खूब चलेगी.”
अन्तोन ने सोचा कि बहनें, हमेशा की तरह, माँ-बेटियों का खेल खेलेंगी, और वह साइकिल पर घूमेगा. मगर बहनों को भी साइकिल चलानी थी. और नताशा तो बहुत तेज़ चला रही थी, साथ ही अपनी सहेलियों को भी चलाने दे रही थी; और सोन्या तो बार-बार गिरती ही रही. इस तरह साइकिल बस एक घण्टे में टूट गई. मगर मम्मा ने वादा किया कि वह कोल्या द्योमिन को बुलाएगी, जिसे सब कुछ आता है और जो साइकिल ठीक कर देगा. पूरी रात अन्तोन को साइकिल-रेस के सपने आते रहे.
सुबह उसने अपनी डेस्क पर साथ बैठने वाले मीशा ग्लाद्कोव से कहा :
“मुझे तिमोशिन ने साइकिल दी है!”
“अच्छा? चलो, पेन्शन तक ख़ुश रहो,” ग्लाद्कोव ने जवाब दिया मगर वह ख़ुद तिमोशिन के पास इस बात का जवाब माँगने गया. बेवकूफ़ हूँ – बेकार में शेखी मार गया,’ अन्तोन ने सोचा. और वह ठीक ही सोच रहा था. दस ही मिनट बाद अन्तोन ने सुना :
“लो, तिमोशिन तुमसे वापस लेकर मुझे देने वाला है!”
“लेने दो! ले ले अपनी टूटी-फूटी साइकिल! किसे चाहिए ऐसी साइकिल!”
पूरे दिन ग्लाद्कोव तिमोशिन के पीछे-पीछे उसके पक्के दोस्त की तरह चलता रहा. उसके जोक्स सुनता रहा. हँसता रहा. और अपनी रशियन की नोटबुक से उसे नकल भी करने दी.
मम्मा ने भाँप लिया कि अन्तोन उदास लौटा है. वह बोली, “अभी कोल्या द्योमिन को फ़ोन करती हूँ.”
“ज़रूरत नहीं है. तिमोशिन तो बाइक वापस ले रहा है, उसने ग्लाद्कोव को गिफ्ट देने का वादा किया है.”
“क्यों?”
“मेरी ही गलती है. मैंने ग्लाद्कोव को बता दिया साइकिल के बारे में, और उसने फ़ौरन तिमोशिन से माँग ली.”
“ओह, बड़ा डिप्लोमेट है यह तिमोशिन! अब क्लास में अपनी साइकिल से अपनी पोज़ीशन पक्की करना चाहता है!”
और तभी दरवाज़े की घण्टी बजी – तिमोशिन और ग्लाद्कोव साइकिल के लिए आ पहुँचे.
“तुम अपने मम्मी-पापा की इजाज़त से ले जा रहे हो न?” मम्मा ने पूछा.
तिमोशिन के चेहरे से साफ़ नज़र आ रहा था कि उसे अप्रिय बातों के बारे में सोचना अच्छा नहीं लग रहा था, और उसने कोई जवाब भी तैयार नहीं किए थे.
“ए-ए, आप क्या कह रही हैं?” उसने वक्त को घसीटने के लिए पूछा.
“मैं कह रही हूँ, कि हम साइकिल देंगे तो सही, मगर तुम्हें नहीं, बल्कि तुम्हारे मम्मी-पापा को. कल गिफ्ट देते हैं – आज वापस ले लेते हैं!”
“कौन वापस ले रहा है? हम तो सिर्फ चलाने के लिए पूछ रहे थे.”
“तो यह बात है, मीशा?” अन्तोन की मम्मा ने पूछा.
मीशा ने मालिकों के अंदाज़ में साइकिल का हैण्डिल पकड़ लिया, “मुझे तिमोशिन ने यह गिफ्ट दी है. इसके बदले में मैं इसे अपने नोट्स की नकल करने देता हूँ.”
बच्चे नीचे भाग गए, सुनाई दे रहा था, कि तिमोशिन कैसे मीशा पर चिल्ला रहा है :
“ओह, मैं तेरे सिर पर इतनी ज़ोर से मारूँगा कि दो घण्टे तक कुलाँटे मारता रहे! सारी बात क्यों बता दी? क्यों?”
और मम्मा तिमोशिन के घर गई.
तिमोशिन की मम्मी सलाद बना रही थी. गाजर वेजिटेबल कटर में काट रही थी, लहसुन गार्लिक प्रेस में पीस रही थी. चारों ओर कई फ्रूट-जूसर पड़े थे. तिमोशिन की मम्मी स्वागत करते हुए मुस्कुराई : “बेटे के स्कूल में लिखा है : ज़्यादा विटामिन खाओ – सभी पेंग्विनों से मोटे हो जाओ.
“मेरे ख़याल में आपका बेटा वैसे भी मोटा ही है”, अन्तोन की मम्मा ने कहा. “आप क्या साइकिल वापस माँग रही हैं?”
“उसने मुझे अभी-अभी बताया...हम तो कुछ भी नहीं चाह रहे थे, मगर यदि वह मीशेन्का को देना चाहता है, तो वो कोर्टियर्स हैं.”
“कौन हैं?”
“कोर्टियर्स. एक ही कोर्टयार्ड के. बस इतनी सी बात है. आप ज़रा भी बुरा न मानिए. वे आख़िर बच्चे ही तो हैं.”
“फिर मिलेंगे,” अन्तोन की मम्मा ने कहा.
गर्मियाँ तो अच्छी बीतीं. अन्तोन को बच्चों की लॉजिक की मशीन ख़रीद कर दी गई और वह उसकी सहायता से कभी अपनी बहनों का स्वभाव जानता, तो कभी सोची गई संख्या बूझता. साथ ही मम्मा की घर के काम में मदद करता, क्योंकि वह उसकी सहायता पर निर्भर रहती थी. और अगस्त में पूरे हफ़्ते के लिए साइकिल किराए पर ली गई.
पहली सितम्बर को अन्तोन तीसरी कक्षा में गया.
“क्या मैं तिमोशिन के घर जा सकता हूँ?” उसने मम्मा से पूछा.
“क्या ???” मम्मा तैश में आ गई, “तूने उसे माफ़ कर दिया?”
“मम्मा, तुम्हीं ने तो सिखाया है कि हमारे पास अच्छाई के सिवा कुछ नहीं बचता...हमें दयालु बनना चाहिए...धरती पर हथियार इतने बिखरे पड़े हैं कि दूसरा कोई रास्ता ही नहीं है. बुरे आदमी तो बड़े होकर लड़ाई शुरू कर देंगे.”
“हाँ, अगर इस दृष्टि से देखा जाए तो...जाओ. मगर मैं यह भी पूछना चाह रही थी कि उसने तुमसे किसी भी चीज़ का वादा नहीं किया? मतलब, कोई गिफ्ट?”
“उसने अपनी रूबिक क्यूब खेलने के लिए देने का वादा किया है. मैं भी इसके बदले में कुछ न कुछ ज़रूर दूँगा. उसने ऐसा कहा है.”
“डिप्लोमेSSट!” मम्मा चहकी. “यह तो राजनेता बनेगा!”
अन्तोन ने जवाब दिया कि ऐसा होना मुश्किल है, क्योंकि तिमोशिन लिखते समय बेहद गलतियाँ करता है और बड़े बुरे वाक्य बनाता है. इतना कहकर वह तिमोशिन के घर चला गया.
तिमोशिन की मम्मी ने बच्चों को तरबूज़ खिलाया, मगर अपने बेटे को बिल्कुल बीच का हिस्सा दिया.
अन्तोन ने कहा :
“हमारे पापा कभी भी बच्चों को बीच वाला हिस्सा नहीं देते. कहते हैं, कि अगर बच्चों को तरबूज़ का बीच वाला हिस्सा दिया जाए, तो वे ऐसा सोचेंगे कि ज़िंदगी – तरबूज़ का घना वाला, बीच का हिस्सा है.”
“अगर तेरे पापा इतने अक्लमन्द हैं, तो वह साइकिल क्यों नहीं दुरुस्त कर सकते?” तिमोशिन की मम्मी ने जवाब दिया.
अन्तोन ख़ामोश रहा. तिमोशिन ने उसे वैसे भी दुरुस्त की गई साइकिल लौटाई नहीं थी.

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* पाँच में से अंक देने की प्रथा है. दो या दुग्गी का मतलब है – अनुत्तीर्ण.
** पाइ – भरवाँ पकोड़े जैसा खाद्य पदार्थ      
*** कॅक्टुसोनक  - नन्हा कॅक्टस
**** गर्चीच्निक – सरसों का प्लास्टर
***** झाला – डंक   

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