गेना के बारे में
लेखक: निकोलाय
नोसोव
अनु.: आ. चारुमति
रामदास
आम तौर से देखा जाए तो, गेना एक अच्छा बच्चा था.
ठीक-ठाक लड़का था. मतलब, दूसरे बच्चों से बुरा नहीं था. बिल्कुल तन्दुरुस्त,
लाल-लाल, चेहरा गोल-गोल, नाक भी गोल-गोल, मतलब - पूरा सिर ही गोल-गोल था. मगर उसकी
गर्दन छोटी थी. जैसे कि, गर्दन बिल्कुल थी ही नहीं. मतलब, बेशक, गर्दन थी तो सही,
मगर वह सिर्फ गर्मियों में ही दिखाई देती थी, जब गेना खुली कॉलर वाली कमीज़ या
स्पोर्ट्स-शर्ट में घूमता था. और सर्दियों
में, जब वह गरम जैकेट या ओवरकोट पहनता, गर्दन नहीं दिखाई देती थी, और ऐसा लगता था
कि उसका गोल सिर सीधे कंधों पर लेटा है, जैसे प्लेट में कोई तरबूज़ रखा हो. मगर,
बेशक, ये कोई ज़्यादा अफ़सोस की बात नहीं है, क्योंकि कई लड़कों की गर्दन, जब वे
बिल्कुल छोटे होते हैं, एकदम छोटी होती है, मगर जब वे थोड़े बड़े हो जाते हैं तब वह
लम्बी हो जाती है.
याने कि ये कोई बहुत बड़ी ख़ामी नहीं थी.
गेना की बहुत बड़ी ख़ामी ये थी कि उसे कभी
कभी थोड़ा-सा झूठ बोलना अच्छा लगता था. मगर ऐसा नहीं था कि वह धड़ाधड़ झूठ बोलता था.
नहीं, ऐसा वह नहीं करता था. ठीक ठीक कहें तो, ये नहीं कह सकते थे कि वह हमेशा सच
ही बोलता है.
ख़ैर, ऐसा किसके साथ नहीं होता! कभी-कभी तो
इच्छा न होते हुए भी झूठ बोल जाते हो, और तुम्हें ख़ुद को भी पता नहीं चलता कि ऐसा
कैसे हो गया.
पढ़ाई में गेना ठीक-ठाक ही था. मतलब ये कि
औरों से बुरा नहीं था. सच कहें तो, पढ़ाई में बस यूँ ही था. उसकी डायरी में ‘तीन’
होते, कभी कभी ‘दो’ भी आ जाते (ग्रेड पाँच में से दी जाती है; पाँच का मतलब है-
अति उत्तम; चार – अच्छा; तीन का मतलब – संतोषजनक; दो का मतलब – फेल, एक तो बहुत ही
बुरी ग्रेड है.). मगर, बेशक, ऐसा उन्हीं दिनों में होता था, जब मम्मा और पापा
उसकी तरफ़ से थोड़े बेख़बर हो जाते और इस बात पर ध्यान न देते कि उसने होम-वर्क समय पर
किया है या नहीं.
मगर, ख़ास बात, जैसा कि हम बता चुके हैं,
ये थी कि वह कभी-कभी झूठ बोल देता था, मतलब, कभी-कभी इस तरह से झूठ बोल देता था कि
उसे कुछ ख़याल ही नहीं रहता था. इसके लिए उसे एक बार कड़ी सज़ा भी मिली थी.
ये हुआ था सर्दियों में, जब उसके स्कूल
में रद्दी-धातु इकट्ठा की जा रही थी. लड़कों ने सोचा कि सरकार की मदद की जाए, और
कारख़ानों के लिए रद्दी-धातु इकट्ठा की जाए. उन्होंने, बल्कि, इस पर एक प्रतियोगिता
भी आयोजित की, कि कौन सबसे ज़्यादा इकट्ठा करता है, और विजेताओं के नाम स्कूल के
‘बोर्ड ऑफ ऑनर’ पर लिखे जाने वाले थे.
गेना ने भी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने
का फ़ैसला किया. मगर पहले दिन, जब वह रद्दी-धातु इकट्ठा करने के लिए निकला, तो उसे कम्पाऊण्ड
में अपना दोस्त गोशा मिल गया.
ये गोशा दुबला-पतला, छोटा सा लड़का था,
गेना से क़रीब साल भर छोटा था. मगर गेना की उससे बड़ी दोस्ती थी, क्योंकि गोशा बहुत
होशियार था और हमेशा कोई मज़ेदार बात सोचा करता था.
ऐसा ही इस बार भी हुआ. गेना को देखकर गोशा
ने पूछा:
“तू कहाँ भाग रहा है?”
“रद्दी-धातु इकट्ठा करने जा रहा हूँ,” गेना ने
कहा.
“इससे अच्छा तो बर्फ के पहाड़ पर स्केटिंग करते
हैं. बगल वाले कम्पाऊण्ड में लड़कों ने बढ़िया पहाड़ बनाया है.”
वे बगल वाले कम्पाऊण्ड में गए और लगे पहाड़
पर स्केटिंग करने. स्लेज तो उनके पास थी नहीं, इसलिए वे पैदल ही नीचे की ओर
फिसलते. मगर ये ज़रा भी आरामदेह नहीं था, क्योंकि हर बार पहले तो खड़े-खड़े चढ़ना
पड़ता, और फिर पेट के बल या पीठ के बल नीचे फिसलते. आख़िर में गोशा ने कहा:
“इस तरह से स्केटिंग करने में कोई फ़ायदा नहीं
है. नाक पे चोट लग सकती है. इससे तो अच्छा है कि तू घर जाकर स्लेज ले आ. तेरे पास
तो स्लेज है ही.”
गेना घर गया, किचन में पहुँचा और स्लेज
लेने लगा. मम्मा ने देखा और पूछा:
“स्लेज क्यों चाहिए? तू तो रद्दी-धातु इकट्ठा
करने गया था.”
“मगर मैं स्लेज पर रद्दी-धातु लाऊँगा,” गेना ने
समझाया, “वो भारी होती है ना. हाथों में ज़्यादा नहीं ला सकते हो, मगर स्लेज में
आसान रहेगा.”
“ओह,” मम्मा ने कहा. “ठीक है, जा.”
पूरे दिन गेना गोशा के साथ स्लेज पर
स्केटिंग करता रहा और शाम को ही घर लौटा. उसके पूरे कोट पर बर्फ थी.
“इतनी देर तू कहाँ रह गया था?” मम्मा ने पूछा.
“रद्दी-धातु जमा कर रहा था.”
“क्या उसके लिए बर्फ में लोटपोट होना पड़ा?”
“अरे, वो तो वापस आते समय लड़कों के साथ बर्फ पर
थोड़ा खेल लिया,” गेना ने स्पष्ट किया.
“अच्छा है ये - - थोड़ा सा!” मम्मा ने सिर हिलाया.
“और क्या तूने काफ़ी सारी रद्दी-धातु
इकट्ठा की?” पापा ने गेना से पूछा.
“तैंतालीस किलोग्राम,” बिना सोचे-समझे गेना ने
झूठ बोल दिया.
“शाबाश!” पापा ने तारीफ़ की और हिसाब लगाने लगे
कि ये कितने ‘पूद’ होगा. (पूद – रूस में वज़न का पुराना पैमाना; एक पूद – 16.3
किलोग्राम).
“आजकल कौन पूद में गिनता है?” मम्मा ने कहा. “अब
तो सब लोग किलोग्राम में ही गिनते हैं.”
“मगर मुझे पूद में गिनना अच्छा लगता है,” पापा
ने जवाब दिया, “मैं कभी पोर्ट पर कुली का काम करता था. कॉड-मछलियों के बैरल्स
उठाने पड़ते थे. हर बैरल में छः-छः पूद. तो, तैंतालीस किलोग्राम हुए – क़रीब तीन
पूद. तूने इतना वज़न खींचा कैसे?”
“मैंने थोड़े ना उठाया, मैं स्लेज पर ले गया.”
गेना ने जवाब दिया.
“हाँ, स्लेज पर, बेशक, आसान है,” पापा ने सहमत
होते हुए कहा. “और दूसरे लड़कों ने कितना जमा किया?”
“मुझसे कम,” गेना ने जवाब दिया. “किसी ने पैंतीस
किलोग्राम्स, किसीने तीस. सिर्फ एक लड़के ने पचास किलोग्राम्स जमा किया, और एक और
लड़के ने बावन किलोग्राम्स.”
“ऐख!” पापा को अचरज हुआ. “तुझसे नौ किलोग्राम
ज़्यादा.”
“कोई बात नहीं,” गेना ने कहा. “कल मैं भी पहला
नंबर लाऊँगा.”
“ठीक है, मगर तू इस पर ज़्यादा मेहनत मत कर,”
मम्मा ने कहा.
“ज़्यादा – क्यों! जैसे सब करते हैं, वैसे ही मैं
भी करूँगा.”
रात को गेना ने भरपेट खाना खाया. उसकी ओर
देखकर पापा और मम्मा ख़ुश हो रहे थे. उन्हें, न जाने क्यों, हमेशा ऐसा लगता था कि
गेना बहुत कम खाता है और इस वजह से वह दुबला हो सकता है और बीमार पड़ सकता है. यह
देखकर कि वह कितने चाव से कोटु का पॉरिज खा रहा है, पापा ने उसके सिर को सहलाया और
कहा:
“पसीना आने तक काम करोगे, तो ऐसे ही ख़ूब खाओगे!
है ना, बेटा?”
“बेशक, पापा,” गेना सहमत था.
पूरी शाम मम्मा और पापा इस बारे में बात
करते रहे, कि कितना अच्छा है, जो आजकल बच्चों को शारीरिक श्रम करना सिखाया जाता
है. पापा ने कहा:
“
जो बचपन से मेहनत करना सीखता है, वह बड़ा होकर अच्छा आदमी बनता है और वह कभी भी
दूसरों की गर्दन पर नहीं बैठता.”
“और मैं दूसरों की गर्दन पर नहीं बैठूँगा,” गेना
ने कहा. “मैं अपनी ही गर्दन पर बैठूँगा.”
“क्या बात है, क्या बात है!” पापा हँस पड़े. “तू
तो हमारा अच्छा बच्चा है.”
आख़िरकार गेना सो गया, और पापा ने मम्मा से
कहा:
“जानती हो, हमारे बेटे की जो बात मुझे सबसे
ज़्यादा अच्छी लगती है, वो ये है कि वह बहुत ईमानदार है. वह झूठ भी बोल सकता था, कह
सकता था कि उसीने सबसे ज़्यादा रद्दी-धातु जमा की है, मगर उसने साफ़-साफ़ मान लिया कि
दो लड़कों ने उससे ज़्यादा जमा की है.”
“हाँ, हमारा बेटा ईमानदार है,” मम्मा ने कहा.
“मेरे ख़याल में, बच्चों को ईमानदारी सिखाना,
सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है,” पापा कहते रहे. “ईमानदार आदमी झूठ नहीं बोलेगा, धोखा
नहीं देगा, अपने दोस्त को नीचा नहीं दिखाएगा, ग़ैरों की चीज़ नहीं लेगा और दिल लगाकर
मेहनत करेगा, जब दूसरे लोग काम कर रहे हों तब हाथ पे हाथ रखकर बैठा नहीं रहेगा,
क्योंकि उसका मतलब है पैरासाईट बनना, दूसरे की मेहनत पर ऐश करना.
दूसरे दिन गेना स्कूल पहुँचा, और टीचर ने
पूछा कि कल वह रद्दी-धातु इकट्ठा करने क्यों नहीं आया. बिना पलक झपकाए गेना ने
जवाब दिया कि मम्मा ने उसे इजाज़त नहीं दी, क्योंकि उसकी छोटी बहन को निमोनिया हो
गया था, और उसे बहन के लिए सेब लेकर अस्पताल जाना था, शायद बिना सेब के वह अच्छी
नहीं हो सकती. उसके दिमाग़ में अस्पताल के बारे में, बहन के बारे में – जो उसकी थी
ही नहीं, और ऊपर से सेब के बारे में झूठ बोलने का ख़याल आया कैसे – ये किसी को नहीं
मालूम.
स्कूल से घर वापस आकर पहले उसने खाना
खाया, फिर स्लेज ली, मम्मा से कहा कि रद्दी-धातु इकट्ठा करने जा रहा है, और ख़ुद
फिर से बर्फ के पहाड़ पर स्केटिंग करने चला गया. शाम को घर लौटने पर, वह फिर से
बातें बनाने लगा कि किस लड़के ने कितनी रद्दी-धातु इकट्ठा की, कौन पहले नम्बर पर
रहा, किसका फिसड्डी नम्बर आया, कौन सबसे बढ़िया रहा, कौन बढ़िया और कौन सिर्फ
ठीक-ठाक रहा.
अब तो ये हर रोज़ होने लगा. गेना ने
होम-वर्क करना तो बिल्कुल बन्द कर दिया. उसके पास समय ही नहीं था. डायरी में उसके
‘दो’ नम्बर आने लगे. मम्मा को गुस्सा आ गया और वह बोली:
“ये सब उस रद्दी-धातु के कारण हो रहा है! क्या
बच्चों से इतनी मेहनत करवानी चाहिए? बच्चे के पास पढ़ाई करने के लिए समय ही नहीं
है! स्कूल जाकर टीचर से बात करनी पड़ेगी. वे लोग क्या सोचते हैं? दो में से एक ही
बात हो सकती है : या तो पढ़ाई करने दो या फिर रद्दी-धातु इकट्ठा करने दो! वर्ना तो
कुछ भी हासिल नहीं होगा.
मगर उसके पास बिल्कुल समय नहीं था, और वह
स्कूल जा ही नहीं पाई. पापा से गेना के बुरे ग्रेड्स के बारे में बताने से वह डर
रही थी, क्योंकि जब पापा को पता चलता है कि बेटा अच्छी तरह से पढ़ाई नहीं कर रहा है
तो वे बहुत परेशान हो जाते हैं. बगैर किसी संदेह के, वो हर रोज़ बड़ी दिलचस्पी से
गेना के शारिरिक श्रम की प्रगति के बारे में पूछते और अपनी नोट-बुक में लिख भी
लेते कि उस दिन गेना ने कितनी रद्दी-धातु इकट्ठा की. गेना हर तरह की गप्पें मारता –
इस तरह, कि वो सच लगें. उसने यह भी ठोंक दिया कि टीचर अन्तोनिना इवानोव्ना ने पूरी
क्लास में उसे एक आदर्श बालक बताया और उसका नाम ‘बोर्ड ऑफ ऑनर’ पर लिख दिया.
आख़िरकार वो दिन आया, जब गेना को दुनिया
में जो सबसे ख़राब हो सकती है, वह ग्रेड मिली, याने कि ‘एक’ नम्बर मिला, और वह भी
‘रूसी भाषा’ जैसे महत्वपूर्ण विषय में. उसने, बेशक, मम्मा को कुछ भी नहीं बताया,
बल्कि सिर्फ स्लेज लेकर ‘रद्दी-धातु’ इकट्ठा करने के लिए निकल पड़ा, मगर असल में तो
वह हमेशा की तरह स्केटिंग करने गया था.
जब वह चला गया तो मम्मा को याद आया कि
उसने गेना की ग्रेड्स ‘चेक’ ही नहीं की हैं. उसने बैग से डायरी निकाली और देखा कि
उसे तो सिर्फ ‘एक’ नम्बर मिला है.
“ऐहे!” उसने नाराज़गी से कहा, “ ये तो बिल्कुल
दादागिरी है! ये स्कूल वाले सोचते क्या हैं! बच्चा ‘एक’ नम्बर लाता है, और उनके
दिमाग में बस रद्दी-धातु ही भरी है!”
अपना सब काम छोड़कर, वह लपक कर स्कूल
पहुँची. सौभाग्य से अन्तोनिना इवानोव्ना अभी तक गई नहीं थी.
गेना की मम्मा को देखकर उसने कहा:
“अच्छा हुआ कि आप आ गईं. मैंने आपको इसलिए
बुलाया था कि गेना की प्रगति के बारे में बात कर सकूँ.”
“आपने कहाँ मुझे बुलाया?” गेना की मम्मा चौंक
गई. “मुझे किसीने नहीं बुलाया. मैं तो ख़ुद ही आई हूँ.”
“क्या आपको मेरी चिट्ठी नहीं मिली?” टीचर ने
पूछा.
“नहीं.”
“अजीब बात है!” अन्तोनिना इवानोव्ना ने कहा.
“मैंने तो गेना को परसों ही आपको चिट्ठी देने को कहा था.”
“हो सकता है, आपसे भूल हो गई हो? आपने, शायद,
किसी और से कहा हो, न कि गेना से.”
“नहीं. मैं ऐसे कैसे गलती कर सकती हूँ?”
“तो फिर गेना ने मुझे क्यों नहीं दी?”
“ये तो उसीसे पूछना पड़ेगा,” अन्तोनिना इवानोव्ना
ने कहा. “और अब मैं यह जानना चाहती हूँ कि गेना ठीक से पढ़ाई क्यों नहीं कर रहा है.
मुझे समझ में नहीं आता, कि वह होम-वर्क क्यों नहीं करता है.”
“इसमें समझ में ना आनेवाली क्या बात है?” गेना
की मम्मा हँस पड़ी. “आप लोग ख़ुद ही तो बच्चों को रद्दी-धातु इकट्ठा करने के लिए
मजबूर करते हो, और फिर ख़ुद ही हैरान होते हो, कि बच्चे होम-वर्क क्यों नहीं करते
हैं.”
“यहाँ रद्दी-धातु कहाँ से आ गई?” टीचर हैरान रह
गई.
“कैसे – कहाँ से? अगर उन्हें रद्दी-धातु इकट्ठा
करना पड़े, तो वे होम-वर्क कब करेंगे? आप को ख़ुद ही सोचना चाहिए.”
“मैं आपको ठीक से समझ नहीं पा रही हूँ. हम
बच्चों पर इस काम का बोझ नहीं डालते हैं. धातु इकट्ठा करने का काम वे साल भर में
सिर्फ एक या दो बार करते हैं. यह उनकी पढ़ाई को नुक्सान नहीं पहुँचा सकता.”
“हा-हा-हा! साल भर में एक या दो बार,” गेना की
मम्मा हँसने लगी. “नहीं, वे तो हर रोज़ इकट्ठा करते हैं. गेना ने तो क़रीब एक टन
इकट्ठा कर ली है.”
“आपसे किसने कहा?”
“गेना ने.”
“आह, ऐसी बात है! अगर जानना चाहती हैं, तो सुनिए
कि आपके गेना ने एक टन तो क्या, एक किलोग्राम, एक ग्राम, यहाँ तक कि एक मिलिग्राम
धातु तक इकट्ठा नहीं की है!’” उत्तेजना से टीचर ने कहा.
“ये आप कैसे कह सकती हैं!” गेना की मम्मा भड़क
गई. “वो ईमानदार बच्चा है, वह धोखा नहीं देगा. आपने ख़ुद ही तो उसे क्लास में
आदर्श-बालक बताया और ‘बोर्ड ऑफ ऑनर’ पे उसका नाम लिखा था.
“’बोर्ड ऑफ ऑनर’ पे?!” अन्तोनिना इवानोव्ना
चीख़ी. “मैं गेना का नाम ‘बोर्डऑफ ऑनर’ पे कैसे लगा सकती थी, जब उसने रद्दी-धातु
इकट्ठा करने के काम में एक भी दिन हिस्सा नहीं लिया?! पहली बार उसने कहा, कि उसकी
बहन को निमोनिया हो गया है...क्या आपकी बेटी को निमोनिया हो गया था?”
“कौन
सी बेटी? मेरी तो कोई बेटी ही नहीं है!”
“देखा! और गेना ने कहा था – छोटी बहन को
निमोनिया हुआ है और मम्मा ने अस्पताल भेजा था उसे सेब देने के लिए.”
“ओह, ज़रा सोचिए!” मम्मा ने कहा. “न जाने किस सेब
की बात सोच बैठा. मतलब, वह पूरे समय मुझे धोखा देता रहा! शायद, और आज भी वो
रद्दी-धातु इकट्ठा करने नहीं गया है?”
“आज कौन रद्दी-धातु इकट्ठा कर रहा है!” टीचर ने
जवाब दिया. “आज गुरुवार है, और ये रद्दी-धातु इकट्ठा करने का काम होता है शनिवार
को. शनिवार को हम जानबूझकर बच्चों को जल्दी छोड़ते हैं.”
परेशानी के मारे गेना की मम्मा टीचर से
बिदा लेना भी भूल गई और फ़ौरन घर भागी. वह नहीं जानती थी कि क्या सोचे, क्या करे.
दुख के कारण उसका सिर भी दर्द करने लगा. जब गेना के पापा काम से वापस लौटे, तो
मम्मा ने उन्हें फ़ौरन पूरी बात बता दी. ऐसी ख़बर सुनकर पापा बेहद परेशान हो गए और
गुस्सा हो गए.
मम्मा उन्हें शांत करने लगी, मगर वह शांत
होना ही नहीं चाहते थे, बस बिफ़रे हुए शेर की तरह कमरे में इधर से उधर घूमते रहे.
“ज़रा सोचिए,” हाथों से अपना सिर पकड़ कर वो बोले.
“मतलब, वो सिर्फ स्केटिंग करता रहा, और हमसे कहता रहा कि रद्दी-धातु इकट्ठा करने
जा रहा है. इतना झूठ! हमने अच्छी शिक्षा दी हमारे बेटे को! क्या कहने!”
“मगर हमने उसे धोखा देना तो नहीं ना सिखाया!”
मम्मा ने कहा.
“बस, इसी की कमी थी!” पापा ने जवाब दिया. “आने
दो उसे वापस, मैं उसे दिखाऊँगा!”
मगर गेना बड़ी देर तक नहीं लौटा. उस दिन वह
अपने दोस्त गोशा के साथ दूर, कल्चरल-पार्क, गया था, और वहाँ वे नदी के किनारे पर
स्केटिंग करते रहे थे. ये बेहद मनोरंजक था, और उनका दिल ही नहीं भर रहा था.
जब गेना घर लौटा तो काफ़ी देर हो गई थी. वह
सिर से पैर तक बर्फ में लिपटा था और थकान के मारे घोड़े की तरह हाँफ़ रहा था. उसके
गोल-गोल चेहरे से जैसे आग निकल रही थी, हैट आँखों पर फिसल आई थी, और किसी को देखने
के लिए भी उसे सिर को पीछे की ओर झटका देना पड़ रहा था.
मम्मा और पापा उसकी ओर भागे और उसे कोट
उतारने में मदद करने लगे, और जब कोट उतार दिया, तो गेना के शरीर से ऊपर तक भाप
निकल रही थी.
“बेच्चारा! देखो तो कितनी मेहनत करके आया है!”
पापा ने कहा. “उसकी पूरी कमीज़ गीली हो गई है!”
“हाँ,” गेना ने कहा. “आज मैंने एक सौ पचास
किलोग्राम्स लोहा इकट्ठा किया.”
“कितना, कितना?”
“एक सौ पचास.”
“वाह, हीरो!” पिता ने हाथ नचाते हुए कहा. “गिनना
पड़ेगा कि तेरी कुल कितनी रद्दी-धातु जमा हुई है.”
पापा ने अपनी नोट-बुक निकाली और गिनने
लगे:
“पहले दिन तूने तैंतालीस किलोग्राम्स जमा की,
अगले दिन और पचास - - सब मिलाकर हुए तेरानवें, तीसरे दिन चौंसठ - - तो हुए, एक सौ
सत्तावन, फिर और उनहत्तर - - ये हो गए - - ये हो गए...”
“दो सौ छब्बीस,” गेना ने जोड़ा.
“सही है!” पापा ने कहा. “आगे गिनते हैं...”
वो इस तरह से गिनते रहे, गिनते रहे, और
उनका टोटल हुआ पूरा एक टन, और थोड़ा और.
“देख,” उन्होंने आश्चर्य से कहा. “पूरा एक टन
लोहा इकट्ठा कर लिया तूने! ऐसे ही होना चाहिए! तो, अब तू कौन हुआ?”
“शायद, बहुत बढ़िया या फिर सर्वश्रेष्ठ, ठीक से
मालूम नहीं,” गेना ने जवाब दिया.
“मालूम नहीं? मगर मुझे मालूम है!” अचानक पापा
चिल्लाए और उन्होंने मेज़ पर मुक्का मारा. “तू बेईमान है! बदमाश है! निठल्ला है तू,
वो ही है तू! पैरासाईट!”
“कैसा पै-पैरासाईट?” डर के मारे गेना की घिग्घी
बन्ध गई.
“मालूम नहीं है कि पैरासाईट कैसे होते हैं?”
“न-न-न-नहीं मालूम.”
“ये, वो होते हैं जो ख़ुद कुछ काम नहीं करते, मगर
कुछ ऐसी तरकीब निकालते हैं कि दूसरे उनके लिए काम करें.”
“मैं तकीब...तरकीब...नहीं निकालता,” गेना
मिनमिनाया.
“तरकीब नहीं निकालता?” पापा भयानक आवाज़ में
चिल्लाए. “और कौन हर रोज़ स्लेज पर स्केटिंग करता है, और घर में झूठ बोलता है कि
रद्दी-धातु इकट्ठा करता हूँ? टीचर की चिट्ठी कहाँ है? क़बूल कर, निकम्मे!”
“कैसे चि-चि-चिट्ठी?”
“जैसे कि मालूम ही नहीं है! चिट्ठी जो तुझे
अन्तोनिना इवानोव्ना ने दी थी.”
“मेरे पास नहीं है.”
“तो फिर कहाँ गई?”
“मैंने उसे कचरे के पाईप में फेंक दिया.”
“आह, कचरे के पाईप में!” पिता गरजे और उन्होंने
मेज़ पर इतनी ज़ोर से मुक्का मारा कि प्लेटें झनझना उठीं. “तुझे इसलिए चिट्ठी दी थी
कि तू उसे कचरे के पाईप में फेंक दे?”
“ओह, शांत हो जाओ, प्लीज़,” मम्मा मनाने लगी.
“बच्चे को कितना डरा रहे हो!”
“मैं इसे डरा रहा हूँ! कैसे! वह जिसे चाहे उसे
डरा सकता है. ज़रा सोचो - - इतना झूठ! एक टन लोहा इकट्ठा किया! ‘बोर्ड ऑफ ऑनर’ पे
उसका नाम लिखा गया! ये शर्म की बात है. मैं लोगों को क्या मुँह दिखाऊँगा!”
“चिल्लाने की क्या ज़रूरत है? उसे सज़ा देनी
चाहिए, मगर चिल्लाना शिक्षा के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है. बच्चे की भूख मिट सकती
है,” मम्मा ने कहा.
“मेरा ख़याल है कि इसकी कोई भूख-वूख नहीं मिटने
वाली,” पापा ने कहा, “मगर उसे सज़ा मिलनी चाहिए, यह मुझे भी मालूम है.”
पापा बड़ी देर तक गेना को शर्मिन्दा करते
रहे. गेना ने उनसे माफ़ी मांगी, क़सम खाई कि अब वह किसी हालत में स्लेज पर स्केटिंग
नहीं करेगा और हमेशा रद्दी-धातु इकट्ठा करेगा. मगर पापा उसे माफ़ करने के लिए तैयार
ही नहीं थे. बात इस तरह ख़तम हुई कि गेना को कड़ी सज़ा मिली. सज़ा कैसे दी गई, ये
बताने से कोई फ़ायदा नहीं है. हर कोई जानता है कि कौन-कौन सी सज़ाएँ होती हैं. मतलब,
उसे सज़ा दी गई, और बस.
और इस साल गेना ने वाक़ई में स्लेज पर
स्केटिंग नहीं की, क्योंकि जल्दी ही सर्दियाँ ख़त्म हो गईं और बर्फ पिघल गई. और
रद्दी-लोहा इकट्ठा करने भी उसे जाना नहीं पड़ा, क्योंकि शिक्षा-सत्र ख़तम हो रहा था
और अच्छे नम्बरों से अगली क्लास में जाने के लिए बच्चों को जम के पढ़ाई करनी थी.
उनके स्कूल में इसके बाद किसी ने भी रद्दी-लोहा इकट्ठा नहीं किया.
*****
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.