लड़के
लेखक: अंतोन चेखव
अनु.: आ. चारुमति
रामदास
“ वोलोद्या आ गया!” आँगन में कोई
चिल्लाया.
“वोलोदिच्का आ गए!” डाईनिंग हॉल में भाग कर आते
हुए नतालिया चीखने लगी, “आह, या ख़ुदा!”
कई घण्टों से अपने वोलोद्या का इंतज़ार कर
रहा कोरोल्येव परिवार खिड़कियों की ओर लपका. प्रवेश-द्वार के पास चौड़ी नीची
त्रोयका- स्लेज खड़ी थी, और तीनों सफ़ेद घोड़ों से घना कोहरा निकल रहा था. स्लेज खाली
थी, क्योंकि वोलोद्या पोर्च में आ गया था और अपनी लाल, ठण्ड के मारे अकड़ी हुई
उँगलियों से अपना लम्बे कानों वाला शिरस्त्राण निकाल रहा था. उसके स्कूली-ओवर कोट,
कैप, कलोश (जूतों के ऊपर पहनने के रबड़ के जूते), और कनपटियों के बालों पर
बर्फ़ की पतली तह जमी थी, और सिर से पैर तक उसके पूरे बदन से बर्फ की ऐसी प्यारी
ख़ुशबू आ रही थी; उसकी ओर देखने भर से ठण्ड से जम जाने और ‘बुर्र-र् र्!’ कहने को
जी चाहता था. मम्मा और आण्टी उसे अपनी बाँहों में भरने और चूमने के लिए लपकीं,
नतालिया उसके पैरों पर गिर पड़ी और खींच कर उसके ऊनी जूते उतारने लगी, बहनें चीखने
लगीं, दरवाज़े चरमराने लगे, भड़भड़ाने लगे, और वोलोद्या के पापा, सिर्फ जैकेट पहने और
हाथों में कैंची लिए प्रवेश-कक्ष में भागते हुए आए और भयभीत होकर चिल्लाने लगे:
“और हम तो कल से तुम्हारी राह देख रहे हैं! सफ़र
तो अच्छा रहा? ख़ैरियत से? ऐ ख़ुदा, उसे पापा के गले तो मिलने दो! क्या मैं उसका बाप
नहीं हूँ?”
“भौ!
भौ!” अपनी पूँछ दीवारों और फर्नीचर से टकराते हुए गहरी आवाज़ में विशाल काला कुत्ता,
मीलॉर्ड, गरजा.
हर चीज़ एक प्रसन्नता भरी चीख में
गड्ड-मड्ड हो गई, जो क़रीब दो मिनट तक जारी रही. जब ख़ुशी का पहला दौर गुज़र गया, तो
कोरोल्येवों ने गौर किया कि वोलोद्या के अलावा प्रवेश-कक्ष में एक छोटा लड़का और भी
है, जो मफ़लरों में, शॉलों में, और शिरस्त्राण में, और बर्फ की पतली सतह में लिपटा
हुआ है; वह एक कोने में, लोमड़ी की खाल वाले बड़े ओवर कोट से पड़ती छाया में निश्चल
खड़ा था.
“वोलोदिच्का, और ये कौन है?” मम्मा ने फुसफुसाते
हुए पूछा.
“आह!” वोलोद्या को जैसे अचानक याद आया, “ये,
आपसे परिचय कराने में गर्व का अनुभव कर रहा हूँ, मेरा कॉम्रेड चेचेवीत्सिन है,
दूसरी क्लास में पढ़ता है...मैं उसे अपने साथ कुछ दिन रहने के लिए ले आया.”
“बड़ी ख़ुशी हुई, स्वागत है आपका!” पापा ने
प्रसन्नता से कहा. “ माफ़ कीजिए, मैं घर की ही ड्रेस में हूँ, बिना फ्रॉक-कोट
के...आईये! नतालिया, चेरेपीत्सिन महाशय को कपड़े उतारने में मदद कर! या ख़ुदा, और इस
कुत्ते को यहाँ से भगाओ! ये एक सज़ा है!”
कुछ देर बाद, इस शोर-शरावे वाले स्वागत से
भौंचक्के, और अभी तक ठण्ड के कारण गुलाबी-गुलाबी, वोलोद्या और उसका दोस्त
चेचेवीत्सिन मेज़ पर बैठकर चाय पी रहे थे. सर्दियों का सूरज, बर्फ से और खिड़कियों
पर बने डिज़ाईनों से होते हुए समोवार पर थरथरा रहा था और अपनी साफ़-सुथरी किरणें हाथ
धोने वाले प्याले में डुबो रहा था. कमरे में गर्माहट थी, और लड़कों को महसूस हो रहा
था ठण्ड से जम चुके उनके शरीरों में, बिना एक दूसरे से हार माने, ठण्डक और गर्माहट
गुदगुदी मचा रहे हैं.
“तो, जल्दी ही क्रिसमस है!” काली-लाल तम्बाकू से
सिगरेट बनाते हुए पापा ने मानो गाते हुए कहा, “और, क्या गर्मियाँ हुए बहुत दिन बीत
गए, जब तुझे बिदा करते समय मम्मा रो रही थी? और देख, तू आ भी गया... समय, भाई,
जल्दी बीत जाता है! ‘आह’ भी नहीं कर पाओगे, कि बुढ़ापा आ जाएगा, चिबिसोव महाशय, खाईये, प्लीज़, शरमाईये नहीं!
हमारे यहाँ सब कुछ सीधा-सादा है.”
वोलोद्या की तीनों बहनें, कात्या, सोन्या
और माशा – सबसे बड़ी थी ग्यारह साल की – मेज़ पर बैठी थीं, और नये मेहमान से नज़र
नहीं हटा रही थीं. चेचेवीत्सिन की उम्र और उसका क़द वोलोद्या जैसा ही था, मगर वो
उतना सफ़ेद और भरा-भरा नहीं था, बल्कि साँवला और दुबला-पतला था, चेहरे पर लाल-लाल
चकत्ते थे. उसके बाल ब्रश जैसे थे, आँखें छोटी-छोटी, होंठ मोटे-मोटे, संक्षेप में,
वह बेहद बदसूरत था, और अगर उसने स्कूली-जैकेट न पहना होता तो शक्ल देखकर कोई भी
उसे रसोईये का बेटा समझ लेता. वह बड़ा गंभीर था, पूरे समय चुप रहा, और एक भी बार
नहीं मुस्कुराया. लड़कियाँ उसे देखकर यह सोचने लगीं कि शायद वो बहुत होशियार और
वैज्ञानिक किस्म का व्यक्ति है. पूरे समय वह किसी चीज़ के बारे में सोच रहा था और
अपने ख़यालों में इतना खो गया था कि जब उससे किसी बारे में पूछा जाता, तो वो थरथरा
जाता, सिर को झटका देता और सवाल दुहराने की प्रार्थना करता.
लड़कियों ने इस बात पर भी गौर किया कि
वोलोद्या भी, जो हमेशा ख़ुश रहता था और बातूनी था, इस बार बहुत कम बोल रहा था, ज़रा
भी मुस्कुरा नहीं रहा था और जैसे कि उसे घर आकर ख़ुशी नहीं हो रही थी. जब तक वे चाय
पीते रहे, वह अपनी बहनों से बस एक बार मुख़ातिब हुआ, और वो भी किन्हीं अजीब शब्दों
के साथ. उसने समोवार की ओर ऊँगली से इशारा करते हुए कहा:
“कैलिफोर्निया में चाय के बदले ‘जिन’ पीते हैं.”
वह भी किन्हीं ख़यालों में खोया हुआ था, और
जिस तरह वह अपने दोस्त चेचेवीत्सिन पर कभी-कभी नज़र डाल लेता, उससे यह प्रकट हो रहा
था कि दोनों लड़के एक ही बात के बारे में सोच रहे हैं.
चाय के बाद सब बच्चों के कमरे में गए.
पापा और लड़कियाँ मेज़ पर बैठकर अपना काम करने लगे, जो लड़कों के आने से बीच ही में
रुक गया था. वे क्रिसमस ट्री को सजाने के लिए रंगबिरंगे कागज़ से फूल और झालर बना
रहे थे. ये बड़ा दिलचस्प और शोर-गुल वाला काम था. हर नए फूल का स्वागत लड़कियाँ
उत्तेजना भरी किलकारियों से कर रही थीं, कभी-कभी तो ख़ौफ़नाक चीखें भी निकल रही थीं,
मानो ये फूल आसमान से गिरा हो; पापा भी उत्तेजित थे, और कभी-कभी वे इस बात पर
गुस्सा होकर कैंची मेज़ पर फेंक देते कि उसकी धार तेज़ नहीं है. मम्मा भाग कर बच्चों
के कमरे में आई और उसने चिंतित स्वर में पूछा:
“मेरी
कैंची किसने ली है? इवान निकोलाईच, क्या तुमने फिर से मेरी कैंची ले ली?”
“माई
गॉड! कैंची तक नहीं देते!” रोनी आवाज़ में इवान निकोलाईच ने जवाब दिया और, कुर्सी
की पीठ से टिककर, एक अपमानित आदमी की तरह बैठ गए, मगर एक मिनट बाद फिर से चहकने
लगे.
इससे
पहले जब भी वोलोद्या घर आता, तो वो भी क्रिसमस ट्री की तैयारियों में लग जाता या
फिर भाग कर कम्पाऊण्ड में जाता, यह देखने के लिए कि गाड़ीवान ने और गडरिए ने कैसा
बर्फ का पहाड़ बनाया है, मगर अब उसने और चेचेवीत्सिन ने रंगबिरंगे कागज़ की ओर कोई
ध्यान नहीं दिया और एक भी बार अस्तबल में नहीं गए, बल्कि खिड़की के पास बैठकर
फुसफुसाहट से किसी बारे में बातें करते रहे; फिर उन दोनों ने एटलस खोला और कोई नक्शा देखने लगे.
“पहले पेर्म,” हौले से चेचेवीत्सिन ने
कहा... “उसके बाद त्यूमेन...फिर तोम्स्क...फिर...फिर...फिर कमचात्का...यहाँ से स्थानीय
निवासी नौकाओं में बेरिंग-जलडमरूमध्य से ले जाते हैं...बस, आ जाता है
अमेरिका...यहाँ काफ़ी सारे रोएँदार जानवर पाए जाते हैं.”
“और कैलिफोर्निया?” वोलोद्या ने पूछा.
“कैलिफोर्निया नीचे है...बस, हम अमेरिका पहुँच
भर जाएँ, और कैलिफोर्निया बस, पहाड़ों के उस पार. खाने पीने का इंतज़ाम शिकार करके
और लूट-पाट करके हो जाएगा.”
चेचेवीत्सिन पूरे दिन लड़कियों से दूर-दूर
रहा और कनखियों से उनकी ओर देख लेता. शाम की चाय के बाद ऐसा हुआ कि उसे क़रीब पाँच
मिनट लड़कियों के साथ अकेला छोड़ दिया गया. चुप रहना बड़ा अटपटा लगता. वह गंभीरता से
खाँसा, दाहिनी हथेली बाएँ हाथ पर फेरी, उदासी से कात्या की ओर देखा और पूछा:
“क्या आपने ‘माइन-रीड’ को पढ़ा है?”
“नहीं, नहीं पढ़ा...सुनिए, क्या आपको स्केटिंग
करना आता है?”
अपने ख़यालों में डूबे हुए चेचेवीत्सिन ने
इस सवाल का जवाब नहीं दिया, बस, कस के गाल फुला लिए और ऐसी साँस निकाली जैसे उसे
बहुत गर्मी हो रही हो. उसने फिर से आँखें उठाकर कात्या की ओर देखा और कहा:
“जब जंगली भैंसों का झुण्ड विशाल मैदानों से
होकर भागता है, तो ज़मीन थरथराने लगती है, और उस समय जंगली घोड़े दुलत्ती झाड़ते हुए
हिनहिनाने लगते हैं.”
चेचेवीत्सिन उदासी से मुस्कुराया और आगे
बोला:
“और रेड-इंडियन्स भी रेलगाड़ियों पर हमला कर देते
हैं. मगर सबसे ख़तरनाक होते हैं मच्छर और दीमक.”
“वो क्या होता है?”
“
ये चींटियों जैसे होते हैं, बस, उनके पंख होते हैं. खूब तेज़ काटते हैं. मालूम है,
मैं कौन हूँ?”
“चेचेवीत्सिन महाशय.”
“नहीं. मैं हूँ मोन्तिगोमो, बाज़ का पंजा, अपराजितों
का सरदार.”
माशा ने, जो सबसे छोटी थी, उसकी ओर देखा,
फिर खिड़की की ओर देखा जिसके बाहर शाम उतर आई थी, और सोच में डूबकर कहा:
“
और हमारे यहाँ कल चेचेवित्सा (चेचेवित्सा शब्द का मतलब है - मसूर की दाल)
बनाई थी.”
चेचेवीत्सिन की ज़रा भी समझ में न आने वाली
बातें, और यह भी कि वह लगातार वोलोद्या के साथ फुसफुसाता रहता था, और यह भी कि
वोलोद्या खेल नहीं रहा था, बल्कि किसी चीज़ के बारे में सोचता रहता था – यह सब
रहस्यमय, और अजीब था. और दोनों बड़ी लड़कियाँ, कात्या और सोन्या, लड़कों पर पैनी नज़र
रखने लगीं. शाम को, जब लड़के सोने के लिए चले गए, तो वे दबे पाँव दरवाज़े तक आईं और
छुप कर उनकी बातें सुनने लगीं. ओह, कैसी बातें पता चली उन्हें! लड़के, कहीं अमेरिका
भागने की तैयारी कर रहे थे, सोना ढूँढ़ने के लिए; उनके सफ़र की पूरी तैयारी हो चुकी
थी : पिस्तौल, दो चाकू, सूखे टोस्ट, आग जलाने के लिए मैग्निफायिंग ग्लास, कम्पास
और चार रूबल्स. उन्हें यह पता चला
कि लड़कों को कई हज़ार मील पैदल चलना पड़ेगा, और रास्ते में शेरों से और जंगली
इन्सानों से लड़ना पड़ेगा, फिर सोना और हाथी-दाँत खोजना पड़ेगा, दुश्मनों को ख़त्म
करना पड़ेगा, समुद्री डाकुओं की टोली में शामिल होना पड़ेगा, ‘जिन’ पीनी पड़ेगी और
अंत में सुन्दर लड़कियों से शादी करनी होगी और अपने बगान बनाने पड़ेंगे. वोलोद्या और
चेचेवीत्सिन बातें कर रहे थे और जोश में आकर एक दूसरे की बात काट रहे थे. बातें
करते हुए चेचेवीत्सिन अपने आप को - ‘मोन्तिगोमो, बाज़ का पंजा’ और वोलोद्या को -
‘मेरा बदरंग मुँह वाला भाई’ कह रहा था.
“तू ध्यान रखना, मम्मा को इस बारे में मत
बताना,” जब वे सोने जा रही थीं तो कात्या ने सोन्या से कहा. “वोलोद्या हमारे लिए
अमेरिका से सोना और हाथी-दाँत लाएगा, और अगर तूने मम्मा को बता दिया, तो उसे जाने
नहीं देंगे.”
क्रिसमस के दो दिन पहले चेचेवीत्सिन पूरे
दिन एशिया का नक्शा देखता रहा और कुछ-कुछ लिखता रहा, और वोलोद्या, बेजान-सा,
सूजा-सूजा सा चेहरा लिए, जैसे उसे मधुमक्खियों ने काटा हो, उदासी से कमरों में
घूमता रहा, उसने कुछ भी नहीं खाया. और एक बार तो बच्चों के कमरे में वह
देव-प्रतिमा के सामने रुका भी, और सलीब बनकर बोला:
“ओ गॉड, मुझ पापी को माफ़ कर! गॉड, मेरी ग़रीब,
दुखियारी मम्मा की हिफ़ाज़त कर!”
शाम तक वह रो पड़ा. सोने के लिए जाते समय,
उसने बड़ी देर तक मम्मा, पापा और बहनों का आलिंगन किया. कात्या और सोन्या समझ रही
थीं कि बात क्या है, मगर छोटी माशा को, कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, बिल्कुल कुछ
भी नहीं, बस सिर्फ चेचेवीत्सिन की ओर देखकर वह कुछ सोचने लगी और एक आह लेकर बोली:
“जब उपवास होता है, तो आया-माँ कहती है कि चना
और मसूर खाना चाहिए.”
क्रिसमस के एक दिन पहले, सुबह-सुबह कात्या
और सोन्या हौले से अपने अपने पलंग से उठीं और ये देखने के लिए चल दीं कि लड़के
अमेरिका कैसे भागते हैं. दरवाज़े के पास छिप गईं.
“तू नहीं जाएगा?” चेचेवीत्सिन गुस्से से पूछ रहा
था. “बोल : नहीं जाएगा?”
“ओह माई गॉड!” वोलोद्या धीमे से रो रहा था. “मैं
कैसे जाऊँगा? मुझे मम्मा पर दया आ रही है.”
“
मेरे बदरंग मुँह वाले भाई, मैं तुझसे विनती करता हूँ, हम जाएँगे! तूने तो वादा
किया था कि जाएगा, ख़ुद ही मुझे फुसलाया, और जब जाने का समय आया, तो डर गया.”
“मैं...मैं नहीं डरा, मगर मुझे...मुझे मम्मा का
ख़याल आता है.”
“तू बोल, चलेगा या नहीं?”
“मैं चलूँगा, बस...बस, थोड़ा रुक जा. मुझे घर में
थोड़े दिन बिताने की ख़्वाहिश है.”
“तो फिर, मैं अकेला ही जाऊँगा!” चेचेवीत्सिन ने
फैसला कर लिया. “तेरे बगैर भी काम चला लूँगा. और शेरों का शिकार करने चला था, लड़ना
चाहता था! जब ऐसी बात है, तो मेरी कैप्स दे दे!”
वोलोद्या इतनी ज़ोर से रो पड़ा, कि बहनें भी
अपने आप को न रोक पाईं और धीमे-धीमे रोने लगीं. ख़ामोशी छा गई.
“तो, तू नहीं जाएगा?” चेचेवीत्सिन ने फिर से
पूछा.
“जा...जाऊँगा.”
“तो कपड़े पहन ले!”
और चेचेवीत्सिन ने वोलोद्या को मनाने के
लिए अमेरिका की तारीफ़ शुरू कर दी, वह शेर की तरह गरजा, इंजिन की तस्वीर बनाई,
गालियाँ दीं, वोलोद्या को सारे के सारे हाथी-दाँत और सिंहों और शेरों की सारी
खालें देने का वादा किया.
और, ब्रश जैसे बालों वाला, चेहरे पर लाल
धब्बों वाला, दुबला-पतला साँवला लड़का लड़कियों को असाधारण, लाजवाब प्रतीत हुआ. ये
‘हीरो’ था, निर्णय लेने वाला, निडर आदमी, और वह इस तरह गरज रहा था कि दरवाज़े के
पीछे से भी ऐसा लग रहा था कि ये वाक़ई में शेर या सिंह ही है.
जब लड़कियाँ वापस अपने कमरे में आईं और
कपड़े पहन कर तैयार हो गईं तो कात्या ने आँखों में आँसू भरकर कहा:
“आह, मुझे कितना डर लग रहा है!”
दो बजे तक, जब वे खाना खाने बैठे, तो सब
कुछ ठीक-ठाक था, मगर खाने की मेज़ पर अचानक पता चला कि लड़के घर में नहीं हैं. उन्हें
बुलाने के लिए नौकर को सर्वेन्ट्स क्वार्टर में भेजा गया, अस्तबल में भेजा गया,
कारिंदे के घर भेजा गया – वे कहीं भी नहीं थे. गाँव में भी नौकर को भेजा – वे वहाँ
भी नहीं मिले. बाद में चाय भी लड़कों के बगैर ही पी गई, मगर जब रात का खाना खाने
बैठे, तब मम्मा बहुत परेशान थी, वो रो भी रही थी. और रात को दुबारा गाँव में गए,
ढूँढते रहे, लालटेन लेकर नदी पर भी गए. माई गॉड, कैसी आफ़त मची थी!
दूसरे दिन पुलिस अफ़सर आया, डाईनिंग हॉल
में बैठकर कोई कागज़ लिखते रहे. मम्मा रो रही थी. मगर, तभी प्रवेश-द्वार के पास
चौड़ी नीची त्रोयका- स्लेज खड़ी थी, और तीनों सफ़ेद घोड़ों से घना कोहरा निकल रहा था.
“
वोलोद्या आ गया!” आँगन में कोई चिल्लाया.
“वोलोदिच्का आ गए!” डाईनिंग हॉल में भाग कर आते
हुए नतालिया चीखने लगी.
और मीलॉर्ड गहरी आवाज़ में भौंका :“भौ!
भौ!” पता चला कि लड़कों को शहर में रोक लिया गया था, ढाबे के कम्पाऊण्ड में (वे वहाँ घूम रहे थे और पूछते
जा रहे थे कि बारूद कहाँ मिलती है). वोलोद्या, जैसे ही प्रवेश-कक्ष में आया, उसने
बिसूरना शुरू कर दिया और मम्मा की गर्दन से लिपट गया. लड़कियाँ, डर से काँपते हुए
सोच रही थीं कि अब आगे क्या होगा, उन्होंने सुना कि पप्पा वोलोद्या और चेचेवीत्सिन
को अपने साथ स्टडी-रूम में ले गए और वहाँ काफ़ी देर तक उनसे बात करते रहे, और मम्मा
भी बात कर रही थी और रो रही थी.
“क्या कोई ऐसा करता है?” पप्पा ने पूछा. “ख़ुदा
न करे, अगर स्कूल में पता चल गया तो, तो तुम्हें निकाल देंगे. और आपको शरम आनी चाहिए,
चेचेवीत्सिन महाशय! बहुत बुरी बात है! आपने उकसाने का काम किया है, और, उम्मीद
करता हूँ कि आपके माता-पिता आपको सज़ा देंगे. क्या कोई ऐसा करता है? रात में आप लोग
कहाँ रुके थे?”
“रेल्वे स्टेशन पर!” चेचेवीत्सिन ने बड़ी
अकड़ से जवाब दिया.
इसके बाद वोलोद्या सो गया, और उसके माथे
पर सिरके में भीगा हुआ तौलिया रखा गया. कहीं टेलिग्राम भेजा गया और दूसरे दिन एक
महिला, चेचेवीत्सिन की मम्मा आईं, और अपने बेटे को ले गईं.
जब चेचेवीत्सिन जा रहा था, तो उसका चेहरा
बड़ा गंभीर, अहंकारयुक्त था, और लड़कियों से बिदा लेते हुए उसने एक भी शब्द नहीं
कहा; सिर्फ कात्या के हाथ से नोटबुक ली और यादगार के तौर पर लिखा:
‘‘मोन्तिगोमो
बाज़ का पंजा’
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.