गुरुवार, 19 सितंबर 2013

Dhabba

धब्बा

लेखक: निकोलाय नोसोव
अनु. : आ. चारुमति रामदास

मैं आपको फ़ेद्या रीब्किन के बारे में बताऊँगा, उस बारे में कि उसने कैसे पूरी क्लास को हँसाया था. लड़कों को हँसाना उसकी आदत ही थी. और उसे इस बात से भी कोई फ़रक नहीं पड़ता था कि क्लास चल रही है या शॉर्ट ब्रेक है.

तो बात ऐसी है.

 शुरुआत इस तरह हुई कि स्याही की बोतल के पीछे फ़ेद्या ग्रीशा कोपेय्किन से लड़ पड़ा. अगर सही
कहा जाए तो कोई हाथापाई नहीं हुई थी. किसी ने किसी को नहीं मारा. वे सिर्फ एक दूसरे के हाथों से दवात छीन रहे थे, मगर उसमें से स्याही उछली, और एक बूंद फ़ेद्या के माथे पर गिरी. इससे उसके माथे पर पाँच कोपेक के सिक्के जितना बड़ा काला धब्बा बन गया.

पहले तो फ़ेद्या गुस्सा हो गया, मगर जब उसने देखा कि लड़के उसके धब्बे को देखकर हँस रहे हैं, तो उसने सोचा कि ये तो और भी अच्छा हुआ है. और उसने धब्बे को धोया भी नहीं.
जल्दी ही घंटी बजी, ज़िनाइदा इवानोव्ना आईं और क्लास शुरू हो गई. सारे बच्चे मुड़-मुड़कर फ़ेद्या को देख रहे थे और चुपके-चुपके उसके धब्बे पर हँस रहे थे. फ़ेद्या को बहुत अच्छा लगा कि वह सिर्फ अपनी शकल ही से लड़कों को हँसा रहा है. उसने जानबूझकर दवात में उँगली डुबोई और नाक पर भी स्याही पोत ली. अब तो बगैर हँसे कोई उसकी ओर देख ही नहीं सकता था. क्लास में शोर होने लगा.

पहले तो ज़िनाइदा इवानोव्ना कुछ समझ ही नहीं पाईं कि बात क्या है, मगर उनकी नज़र फ़ौरन फ़ेद्या के धब्बे पर पड़ी और अचरज से वह रुक गईं.
 “ये तूने चेहरे पर किससे धब्बे बनाए हैं, स्याही से?”
 “हुम् ,” फ़ेद्या ने सिर हिलाया.
 “कौन सी स्याही से? इस वाली से? ” ज़िनाइदा इवानोव्ना ने दवात की ओर इशारा किया जो डेस्क पर रखी थी
 “इसीसे,” फ़ेद्या ने पुष्टि की, और उसने बत्तीसी दिखा दी.
ज़िनाइदा इवानोव्ना ने नाक पर चश्मा चढ़ाया और बड़ी गंभीरता से फ़ेद्या के चेहरे के काले धब्बों की ओर देखा, फिर थोड़ा सा सिर हिला दिया.
 “ये बेकार में ही किया तूने, बिल्कुल बेकार में!” उन्होंने कहा.
 “क्या हुआ?” फ़ेद्या परेशान हो गय.
 “देख, ये स्याही एक रसायन है, ज़हरीला रसायन. वह चमड़ी को खा जाता है. इससे, पहले तो चमड़ी पर खुजली होने लगती है, फिर उस पर दाने निकल आते हैं, और इसके बाद पूरे चेहरे पर रैश आ जाती है, छाले पड़ जाते हैं.”
फ़ेद्या बहुत घबरा गया. उसका चेहरा लंबा हो गया, मुँह अपने आप खुल गया.
 “आगे से मैं कभी भी मैं स्याही नहीं पोतूँगा,” वह मिमियाया.
 “मेरा भी यही ख़याल है कि आगे से ऐसा नहीं करोगे! ” ज़िनाइदा इवानोव्ना मुस्कुराईं और उन्होंने अपना पाठ जारी रखा.  

फ़ेद्या फ़ौरन रूमाल से स्याही के धब्बे पोंछने लगा, फिर उसने अपना घबराया हुआ चेहरा ग्रीशा कोपेय्किन की ओर मोड़ा और पूछा, “ हैं ?”
 “हैं ,” ग्रीशा फुसफुसाया. फ़ेद्या ने दुबारा रूमाल से चेहरा पोंछना शुरू किया, मगर काले धब्बे चमड़ी में गहरे बैठ गए थे और वो मिट नहीं रहे थे. ग्रीशा ने फ़ेद्या की ओर एक रबड़ का टुकड़ा बढ़ाया और कहा, “ ये ले. मेरे पास एक बढ़िया रबड़ है. इससे मिटा, कोशिश कर. अगर इससे कुछ नहीं हुआ तो समझ ले कि अब कुछ नहीं हो सकता.”
फ़ेद्या ग्रीशा के रबड़ से चेहरा घिसने लगा, मगर इससे भी कुछ नहीं हुआ. तब उसने भाग कर मुँह धोने का फ़ैसला किया और अपना हाथ ऊपर उठाया. मगर ज़िनाइदा इवानोव्ना ने, जैसे जानबूझकर, उसकी ओर नहीं देखा. वह कभी उठता, कभी बैठ जाता, कभी पंजों के बल थोड़ा सा उठ कर कोशिश करता कि हाथ ज़्यादा से ज़्यादा ऊँचा उठा सके. आख़िर में ज़िनाइदा इवानोव्ना ने पूछ ही लिया कि उसे क्या चाहिए.
 “ प्लीज़, मुझे मुँह धोने के लिए जाने दीजिए,” दयनीय स्वर में फ़ेद्या ने विनती की.
 “क्या, चेहरा खुजाने भी लगा?”
 “न-नहीं,” फ़ेद्या ने मरियल आवाज़ में कहा. “ऐसा लगता है कि अभी नहीं खुजा रहा.”
 “तो, फिर थोड़ी देर बैठा रह. शॉर्ट- ब्रेक में जाकर धो लेना.”
फ़ेद्या अपनी जगह पर बैठ गया और फिर से ब्लॉटिंगपेपर से चेहरा मलने लगा.
 “क्या खुजा रहा है?” ग्रीशा ने चिंता से पूछा.
 “न-नहीं, लगता है कि नहीं खुजा रहा...नहीं, लगता है कि खुजा रहा है. समझ में नहीं आ रहा है कि खुजा रहा है या नहीं खुजा रहा. शायद, खुजाने लगा! ओह, हाँ, देख, कहीं छाले तो नहीं आ गए?”
 “छाले तो अभी तक नहीं है, मगर चारों ओर लाल-लाल हो गया है,” ग्रीशा फुसफुसाया.
 “लाल हो गया?” फ़ेद्या डर गया. “लाल क्यों हो गया? हो सकता है कि या तो छाले आने वाले हैं या  फ़ुन्सियाँ?”
फ़ेद्या फिर से बार बार हाथ उठाकर ज़िनाइदा इवानोव्ना से विनती करने लगा कि उसे मुँह धोने के लिए जाने दें.
 “खुजा रहा है!” वह रिरियाते हुए बोला.
अब उसे मज़ाक तो सूझ भी नहीं रहा था. मगर ज़िनाइदा इवानोव्ना ने कहा, “कोई बात नहीं. खुजाने दो. अब दूसरी बार तू हरेक चीज़ मुँह पे नहीं पोतेगा.”

फ़ेद्या मानो काँटों पे बैठा रहा और पूरे समय अपना चेहरा हाथों में पकड़े रहा. उसे लगने लगा कि मुँह पर सचमुच में खुजली होने लगी है, और धब्बों की जगह पे बड़े बड़े फ़फ़ोले उठने लगे हैं.
 “तू ऐसे मल मत,” ग्रीशा ने सलाह दी. आख़िर में घंटी बजी. फ़ेद्या सबसे पहले क्लास से उछला और तीर की तरह बेसिन की ओर भागा. वहाँ पूरे शॉर्ट-ब्रेक में वो साबुन से मुँह धोता रहा, और पूरी क्लास उस पर हँसती रही. आख़िर में उसने स्याही के धब्बों को पूरी तरह साफ़ कर दिया और पूरे हफ़्ते बड़ा गंभीर बना रहा. इंतज़ार करता रहा कि चेहरे पर फुन्सियाँ तो नहीं हो रही हैं. मगर फुन्सियाँ-वुन्सियाँ नहीं निकलीं, और इस हफ़्ते में वो क्लास के दौरान हँसना बिल्कुल भूल गया. अब वह सिर्फ शॉर्ट-ब्रेक में ही हँसता है, और वो भी हमेशा नहीं.

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