पहचानो !
लेखक: डैनियल चार्म्स
अनु. : आ. चारुमति रामदास
“
तू ज़ू-पार्क गया था?”
“गया था.”
“सिंह को देखा?”
“वो, जो सूंड वाला है?”
“नहीं, वो तो हाथी है, सिंह ऐसा थोड़े ना होता
है.”
“आह, दो कूबड़ वाला.”
“
अरे, नहीं! अयाल वाला!”
“आ-आ! हाँ, हाँ, अयाल वाला, ऐसा चोंच वाला.”
“कहाँ की चोंच! नुकीले दाँतों वाला.”
“ओह, हाँ, नुकीले दाँतों वाला और पंखों वाला.”
“नहीं, वो सिंह नहीं है.”
“तो कौन है?”
“वो मुझे नहीं मालूम. सिंह पीला होता है.”
“ओह, हाँ, पीला, क़रीब-क़रीब धूसर रंग का.”
“नहीं, क़रीब-क़रीब लाल.”
“हाँ, हाँ, हाँ, पूँछ वाला.”
“हाँ, पूँछ वाला और तीखे नाख़ूनों वाला.”
“
“मालूम है! तीखे नाखूनों वाला और दवात जैसा बड़ा.”
“वो कहाँ का सिंह हुआ. वो, शायद चूहा है.”
“क्या कहता है! चूहे के कहीं पंख होते हैं?”
“आह, ये पंखों वाला था?”
“
बिल्कुल!”
“तो फिर ये कोई पंछी था.”
“वो ही, वो ही. मैं भी सोच रहा हूँ कि वो कोई
पंछी ही था.”
“मैं तुझे सिंह के बारे में बता रहाथा.”
“और
मैं भी, पंछी-सिंह के बारे में.”
“क्या सिंह – पंछी होता है?”
“मेरे ख़याल से तो पंछी ही होता है. वो पूरे समय
चिरकता रहता है : तिर्ली – तिर्ली, त्यूत्-त्यूत्-त्यूत् .”
“ रुक! ऐसा धूसर और पीला-सा?”
“बिल्कुल-बिल्कुल. धूसर और पीला.”
“गोल सिर वाला?”
“हाँ, गोल सिर वाला.”
“और, वो उड़ता है?”
“उड़ता है.”
“ओह, तो मैं पक्का कहता हूँ : ये सीस्किन*
है!”
“ओह, हाँ! सही कहा, ये सीस्किन है!”
“मगर मैं तो सिंह के बारे में पूछ रहा था.”
“तो, सिंह को मैंने नहीं देखा.”
.......
* गहरी धारियों वाला हरे-पीले रंग का गाने
वाला पंछी. रूसी में इसे ‘चीझ’ कहते हैं.
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