याश्का
लेखक: येव्गेनी चारुशिन
अनु: आ. चारुमति रामदास
मैं ज़ू-पार्क में घूम रहा था, थक कर एक
बेंच पर सुस्ताने के लिए बैठ गया. मेरे सामने एक जाली वाला पिंजरा था, जिसमें दो
बड़े पहाड़ी कौए रहते थे. – नर और मादा कौए. मैं बैठा था, आराम कर रहा था और सिगरेट
पी रहा था. और अचानक एक कौआ उछल कर ठीक जाली के बिल्कुल पास आया, उसने मेरी ओर
देखा और इन्सान की आवाज़ में बोला:
“
याश्का को चना दे!”
पहले तो मैं डर गया और फिर परेशान हो गया.
“क्या,” मैंने कहा, “तुझे क्या चाहिए?”
“चना! चना!” कौआ फिर से चिल्लाया. “याश्का को
चना दे!”
मेरी जेब में कोई चना-वना नहीं था, बल्कि एक
कागज़ में लिपटा हुआ पूरा केक था, और नया चमचमाता हुआ एक कोपेक का सिक्का था. मैंने
जाली से उसके पास सिक्का फेंका. याश्का ने अपनी मोटी चोंच से सिक्का पकड़ा, उसे
लेकर एक कोने में गया और उसे एक झिरी में घुसा दिया. मैंने उसे केक भी दिया.
याश्का ने केक पहले मादा कौए को खिलाया और बाद में आधा बचा हुआ केक खुद खाया.
कितना दिलचस्प और होशियार पक्षी है! और
मैं तो सोचता था कि सिर्फ तोते ही इन्सान के शब्द बोल सकते हैं. मगर, यहाँ,
ज़ू-पार्क में, मुझे पता चला कि मैग्पाई को, कौए को, छोटे कौए को, और नन्हे
स्टार्लिंग को भी बोलना सिखाया जा सकता है.
उन्हें बोलना इस तरह से सिखाते हैं:
पंछी को एक छोटे से पिंजरे में रखा जाता
है, और पिंजरे को एक रूमाल से ज़रूर ढाँक देना चाहिए जिससे पंछी का ध्यान इधर-उधर न
जाए. फिर, बिना जल्दी मचाए, एकसुर में एक ही वाक्य को दुहराते हैं – कभी बीस-बीस
बार या कभी कभी तीस भी बार. इस पाठ के बाद पंछी को कोई स्वादिष्ट खाने की चीज़ देते
हैं और फिर उसे अन्य पंछियों वाले पिंजरे में छोड़ देते हैं, जहाँ वह हमेशा रहता
है. बस, यही सारी ट्रिक है.
इस कौए याशा को इसी तरह से बोलना सिखाया
गया था. और अपनी ट्रेनिंग के बीसवें दिन, जैसे ही उसे छोटॆ पिंजरे में रखकर पिंजरे
को रूमाल से ढाँका गया, वह रूमाल के नीचे से अपनी भर्राई आवाज़ में इन्सान की तरह
बोला: ‘याश्का को चना दे! याश्का को चना दे! ‘ तब उसे चना दिया गया – खा याशेन्का,
प्रेम से खा.
शायद ऐसे बोलने वाली पंछी को पालना बहुत
दिलचस्प होगा. मैं अपने लिए स्टर्लिंग या छोटा कौआ खरीदूँगा और उसे बोलना
सिखाऊँगा.
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