पावेल अंकल
लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनु.: आ. चारुमति रामदास
जब मारिया पेत्रोव्ना हमारे कमरे में
भागती हुई आई, तो वह पहचानी नहीं जा रही थी. वह पूरी लाल हो रही थी, बिल्कुल
मिस्टर टमाटर की तरह. वह तेज़-तेज़ साँस ले रही थी. उसे देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे
वह पूरी उबल रही हो, बर्तन में उबलते सूप की तरह. जैसे ही वह तीर की तरह हमारे घर
में घुसी, फ़ौरन चीख़ी:
“लो, हो गई छुट्टी!” और दीवान पर ढेर हो गई.
मैंने कहा, “नमस्ते, मारिया पेत्रोव्ना!”
उसने जवाब दिया, “हाँ, हाँ.”
“क्या हुआ है?” मम्मा ने पूछा, “चेहरा कैसा तो
हो रहा है!”
“आप सोच सकती हैं? मरम्मत!” मारिया पेत्रोव्ना
फूट पड़ी और मम्मा की ओर देखने लगी. वो बिल्कुल रोने-रोने को हो रही थी.
मम्मा मारिया पेत्रोव्ना की ओर देख रही थी,
मारिया पेत्रोव्ना मम्मा की ओर, और मैं उन दोनों की ओर देख रहा था. आख़िर में मम्मा
ने बड़ी सावधानी से पूछा, “मरम्मत....कहाँ?”
“हमारे यहाँ! मारिया पेत्रोव्ना ने कहा. “पूरे
घर की मरम्मत कर रहे हैं! आप समझ रही हैं, उनकी छतें टपक रही हैं, बस, वो उन्हीं
की मरम्मत कर रहे हैं.”
“बड़ी अच्छी बात है,” मम्मा ने कहा, “ये तो बहुत
बढ़िया बात है!”
“पूरे घर में बस, मचान ही मचान,” बदहवासी से
मारिया पेत्रोव्ना बोली. पूरा घर मचानों से भरा है, और मेरी बाल्कनी भी मचानों से
अटी पड़ी है. उसे बन्द कर दिया है! दरवाज़े को कीलें ठोंककर बन्द कर दिया! और ये कोई
एक दिन की बात नहीं है, न ही दो दिनों की बात है, ये तीन महीने से कम की बात नहीं
है. पूरी तरह पागल कर दिया है! भयानक!”
“ भयानक किसलिए?” मम्मा ने कहा. “ज़ाहिर है
कि ऐसा ही होना चाहिए!”
“अच्छा?” मारिया पेत्रोव्ना फिर चीख़ी. “आपके
हिसाब से ऐसा ही होना चाहिए? तो फिर, मुलाहिज़ा फ़रमाइए, मेरा मोप्स्या कहाँ घूमेगा?
हाँ? मेरे मोप्स्या पूरे पाँच साल से बाल्कनी में टहलता है. उसे बाल्कनी में घूमने
की आदत हो गई है!”
“बर्दाश्त कर लेगा आपका मोप्स्या,” ज़िन्दादिली
से मम्मा ने कहा, “यहाँ इन्सानों की ख़ातिर मरम्मत कर रहे हैं, उनकी छतें सूखी
रहेंगी, क्या आपके कुत्ते की वजह से सदियों तक छतें गीली ही रहें?”
“ये मेरा सिरदर्द नहीं है!” मारिया पेत्रोव्ना
ने बात काटते हुए कहा. “रहें गीली, अगर हमारी हाउसिंग कमिटी ही ऐसी है...”
वो शांत ही नहीं हो रही थी और
ज़्यादा-ज़्यादा उबल रही थी, ऐसा लग रहा था कि वो ख़ूब ज़्यादा उबल जाएगी, जिससे ढक्कन
उछलने लगेगा, और बर्तन का सूप किनारों से बाहर उफ़न जाएगा.
“कुत्ते की वजह से!” उसने दुहराया, “हाँ, मेरा
मोप्स्या किसी भी इन्सान के मुक़ाबले में ज़्यादा होशियार और बढ़िया है! वो पिछले
पंजों पर चल सकता है, वो तेज़ रफ़्तार से पोलिश डान्स कर सकता है, मैं उसे प्लेट में
खिलाती हूँ. आप समझ रही हैं कि इसका क्या मतलब है?”
“इन्सानों
की भलाई दुनिया में हर चीज़ से ज़्यादा महत्वपूर्ण है!” मम्मा ने शांति से कहा.
मगर मारिया पेत्रोव्ना ने मम्मा पर
बिल्कुल ध्यान नहीं दिया.
“मैं उनको सीधा कर दूँगी,” उसने धमकी दे डाली,
“मैं मॉससोवियत में शिकायत करूँगी!”
मम्मा ख़ामोश हो गई. वो, शायद, मारिया
पेत्रोव्ना से झगड़ा करना नहीं चाहती थी, उसे मारिया पेत्रोव्ना की कर्कश आवाज़ से
तकलीफ़ हो रही थी. मम्मा के जवाब का इंतज़ार किए बग़ैर ही मारिया पेत्रोव्ना थोड़ी
शांत हो गई और अपने भारी-भरकम पर्स में कुछ ढूँढ़ने लगी.
“क्या आपने ‘आर्तेक’ सूजी ख़रीद ली है?” उसने
व्यस्तता के अन्दाज़ में पूछा.
“नहीं,” मम्मा ने कहा.
“बेकार
में,” मारिया पेत्रोव्ना ने ताना दिया. “ ‘आर्तेक’ सूजी से बहुत फ़ायदेमन्द पॉरिज
बनाते हैं. आपके डेनिस्का को, मिसाल के तौर पर, थोड़ा तन्दुरुस्त होना बुरा नहीं
होगा. मैंने तो तीन-तीन पैकेट ख़रीद लिए!”
“आपको
इतने पैकेट्स किसलिए चाहिए,” मम्मा ने पूछा, “आपके घर में तो बच्चे ही नहीं हैं
ना?”
मारिया पेत्रोव्ना ने अचरज से आँखें फाड़ीं.
उसने मम्मा की ओर इस तरह देखा, जैसे मम्मा ने कोई भयानक बेवकूफ़ी भरी बात कह दी हो,
क्योंकि वो कुछ समझ ही नहीं पा रही है, साधारण सी बात भी!
“और मोप्स्या?” थरथराते हुए मारिया पेत्रोव्ना
चीख़ी. “और मेरा मोप्स्या? उसके लिए तो ‘आर्तेक’ बहुत फ़ायदेमन्द है, ख़ासकर जब उसे खुजली
हो जाती है. वह हर रोज़ लंच के समय दो प्लेटें खा जाता है, और फिर भी उसे कुछ और
चाहिए होता है!”
“वो
इसलिए आपसे मांगता है,” मैंने कहा, “क्योंकि उसकी चर्बी बढ़ रही है.”
“बड़े
लोगों की बातों में नाक मत घुसेड़,” कटुता से मारिया पेत्रोव्ना ने कहा. “बस इसी
बात की कमी थी! जा, जाकर सो जा!”
“बिल्कुल
नहीं,” मैंने कहा, “ ’सोने-वोने’ का अभी सव्वाल ही नहीं है. इतनी जल्दी तो कोई सो
ही नहीं सकता!”
“देखो,”
मारिया पेत्रोव्ना ने कहा और अपना मोर्चा मम्मा की ओर मोड़ दिया, “देखिए! मुलाहिज़ा
फ़रमाइए, कैसे होते हैं बच्चे! वो बहस भी करता है! उसे तो चुपचाप बात माननी चाहिए!
जब कहा है, ‘सो जा’ – मतलब ‘सो जाना’ चाहिए. मैं तो जैसे ही अपने मोप्स्या से कहती
हूँ :’सो जा!’ वो फ़ौरन कुर्सी के नीचे रेंग जाता है और एक ही सेकंड में खर् र्
र्...ख र् र् र्... बस, सो जाता है! मगर बच्चा! वो, देख रही हैं ना, बहस भी करता
है!”
मम्मा अचानक लाल-लाल हो गई : उसे, ज़ाहिर
है, मारिया पेत्रोव्ना पर बड़ा गुस्सा आ रहा था, मगर वो मेहमान के साथ झगड़ा नहीं
करना चाह्ती थी. मम्मा तो शराफ़त के मारे कोई भी बेवकूफ़ी बर्दाश्त कर सकती है, मगर
मैं ऐसा नहीं कर सकता. मुझे मारिया पेत्रोव्ना पर बेहद गुस्सा आया, कि वो मेरा
मुक़ाबला अपने मोप्स्या से कर रही है. मैं उससे कहना चाहता था, कि वो बेवकूफ़ औरत
है, मगर मैंने अपने आप पर क़ाबू कर लिया, जिससे कि बात और न बढ़ जाए. मैंने अपना
ओवरकोट उठाया, कैप ली और कम्पाउण्ड में भागा. वहाँ कोई भी नहीं था. सिर्फ हवा चल
रही थी. तब मैं बॉयलर-रूम में भागा. वहाँ हमारा पावेल अंकल रहता है और काम करता
है, वह बड़ा ख़ुशमिजाज़ है, उसके दांत एकदम सफ़ेद, और बाल घुंघराले हैं. मुझे वो अच्छा
लगता है. मुझे अच्छा लगता है जब वो मेरी तरफ़ झुकता है, एकदम मेरे चेहरे तक, और
मेरा छोटा सा हाथ अपने बड़े और गर्माहट भरे हाथ में लेता है, और मुस्कुराता है, और अपनी
भारी आवाज़ में प्यार से कहता है:
“नमस्ते,
इन्सान!”
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