सोमवार, 9 सितंबर 2013

Jaadui Akshar

जादुई अक्षर

लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनु. : आ. चारुमति रामदास

कुछ दिन पहले हम कम्पाऊण्ड में घूम रहे थे : अल्योन्का, मीश्का और मैं.. अचानक कम्पाऊण्ड में एक ट्रक आया. और उसमें पड़ी है क्रिसमस-ट्री. हम ट्रक के पीछे भागे. वो केयर-टेकर के पास गया, रुक गया, और हमारे चौकीदार के साथ ड्राइवर क्रिसमस ट्री को उतारने लगे. वे एक दूसरे पर चिल्ला रहे थे.:
 “धीरे! उठा! उठा! दाएँ! बाएँ! उसे आधार पे रख! आराम से, वर्ना पूरा सिरा तोड़ देगा.”
और जब उसे उतार लिया गया, तो ड्राइवर ने कहा:
 “अब इस क्रिसमस ट्री को सजाना चाहिए,” और चला गया.
और हम क्रिसमस ट्री के पास रुक गए.
वह ज़मीन पर पड़ा था, – बहुत बड़ा, खुरदुरा, और उसमें से बर्फ की इतनी प्यारी ख़ुशबू आ रही थी, कि हम बेवकूफ़ों के समान खड़े रहे और मुस्कुराते रहे. फिर अल्क्योन्का ने एक टहनी पकड़ी और कहा:
 “देखो, क्रिसमस ट्री पर ‘सीस्की’*  लटक रही हैं.”
 “सीस्की!” ये उसने गलत बोला था! मैं और मीश्का ज़ोर से हँस पड़े. हम दोनों एक जैसा हँस रहे थे, मगर फिर मीश्का और भी ज़ोर से हँसने लगा, जिससे कि मुझे हरा सके.
तो, मैंने भी ज़ोर-ज़ोर से हँसना शुरू किया, जिससे कि वो ये न समझे कि मैं हार मान गया हूँ. मीश्का ने हाथों से पेट पकड़ लिया, जैसे उसे बहुत दर्द हो रहा हो, और चिल्लाया:
 “ओय, ओय, हँसी के मारे मर जाऊँगा! सीस्की!”
 और मैंने भी जोश में आकर कहा:
 “पाँच साल की हो गई है लड़की, और कहती है “सीस्की”...हा-हा-हा!
फिर मीशा हँसते हँसते अपने होश खो बैठा और कराहते हुए बोला:
 “आह, मेरी तबियत बिगड़ रही है! सीस्की...”
और वो हिचकियाँ लेने लगा:
 “ईक्!...सीस्की. ईक्! ईक्! मर जाऊँगा हँसी के मारे! ईक्!”
तब मैंने बर्फ का एक गोला उठाया और उसे अपने माथे पर रखने लगा, मानो मेरा दिमाग़ सुलग रहा हो और मैं पागल हो गया हूँ. मैं गरजा:
 “लड़की पाँच साल की है, जल्दी ही उसकी शादी करनी पड़ेगी! और वो कहती है – सीस्की!”
अल्योन्का का निचला होंठ इस तरह से मुड़ा कि वह कान के पीछे चला गया.
 “मैंने ठीक ही बोला था! वो तो मेरा दाँत टूट गया है और उसमें से हवा निकल जाती है. मैं कहना चाहती हूँ ‘सीस्की’ , और मेरे मुँह से सीटी की तरह निकलता है ‘सीस्की’...”
 मीश्का ने कहा:
 “ऐख़, ऐसा कहीं होता है! उसका दाँत गिर गया है! मेरे तो पूरे तीन गिर गए हैं, और दो हिल रहे हैं, मगर मैं फिर भी सही-सही बोलता हूँ! सुन” “ख़ीख़्की!” क्या? सही में, ज़ोर से बोल – ख़ीख़ख़- कीई! देख, मेरा कैसा बढ़िया निकलता है : ख़ीख़्की! “
मगर अल्योन्का ज़ोर से चीख़ती है. वह अकेली हम दोनों से ज़्यादा ज़ोर से चिल्लाती है:
 “गलत! गलत! हुर्रे! तू कह रहा है ख़ीख़्की, और कहना चाहिए सीस्की!”
और मीश्का अपनी ही बात पर अड़ा है:
 “सही में, सीस्की नहीं, बल्कि ख़ीख्की कहना चाहिए.”
और वो दोनों बस चिल्लाए जा रहे हैं.  ‘सीस्की! – ‘ख़ीख्की!’ – ‘सीस्की!’ बस इतना ही सुनाई दे रहा है.
उनकी ओर देखते हुए मैं इतने ठहाके लग रहा था, कि मुझे भूख भी लग आई. मैं घर की ओर चलने लगा और पूरे समय मैं सोच रहा था : ‘ वे इतनी बहस क्यों कर रहे थे, जबकि वे दोनों ही गलत बोल रहे हैं? ये तो बड़ा आसान शब्द है. मैं रुक गया और ज़ोर से बोला:
 “कोई सीस्की नहीं है. कोई ख़ीख्की भी नहीं है, बल्कि छोटा सा, साफ़ ‘फ़ीफ़्की!’ है.
बस, यही फ़ाइनल है!

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  • असल में सही शब्द है ‘शीश्की’ जिसका मतलब है – छोटे छोटे फल. ये तीनों बच्चे 5-8 वर्ष की आयु के हैं, तीनों के दूध के दाँत टूट गए हैं इसलिए वे ‘श’ का उच्चारण नहीं कर पाते . उसी शब्द को सीस्की, ख़ीख्की और फ़ीफ़्की कहते हैं. तो ‘श’ जादुई अक्षर हुआ जो हरेक को अलग अलग प्रतीत होता है. – अनु.      

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