शनिवार, 10 अगस्त 2013

Bhediye ka Pilla

भेड़िए का पिल्ला

लेखक: येव्गेनी चारुशिन
अनु.: आ. चारुमति रामदास

भेड़िए का पिल्ला जंगल में अपनी माँ के साथ रहता था.
एक बार माँ शिकार पर गई.
और पिल्ले को एक आदमी ने पकड़ लिया, उसे एक थैले में डाला और शहर ले आया. कमरे के बीचोंबीच थैला रखा.
थैले में बड़ी देर तक कोई हलचल नहीं हुई. फिर उसमें बैठा भेड़िए का पिल्ला हाथ-पैर मारने लगा और बाहर आ गया. एक ओर को देखा – डर गया : एक आदमी बैठा है और उसकी ओर देख रहा है.
दूसरी ओर देखा – काली बिल्ली गुरगुरा रही है, अकड़ दिखा रही है, उससे भी दुगनी मोटी है वो, मुश्किल से खड़ी हो पा रही है. और बगल में है कुत्ता- दाँत निकाल रहा है.
भेड़िए का पिल्ला बेचारा एकदम डर गया. थैले में वापस जाने लगा, मगर जा ही नहीं पाया – खाली थैला फर्श पर पड़ा है, चीथड़े जैसा.
और बिल्ली तो अकड़ दिखाए जा रही थी, दिखाए जा रही थी! ओह, कैसे अकड रही थी!. वह मेज़ पर कूदी, प्लेट गिरा दी. चूर चूर हो गई प्लेट.
कुत्ता भौंकने लगा.
आदमी ज़ोर से चीखा : “हा! हा! हा! हा!”
भेड़िए का पिल्ला कुर्सी के नीचे दुबक गया और वहीं ठहर गया – थरथराने लगा.
कुर्सी रखी है कमरे के बीच में.
कुर्सी की पीठ से बिल्ली नीचे की ओर देख रही है.
कुत्ता कुर्सी के चारों ओर दौड़ रहा है.  
कुर्सी पर बैठा आदमी – धुँआ छोड़ रहा है.
और भेड़िए का पिल्ला कुर्सी के नीचे अधमरा हो रहा है.
रात में आदमी सो गया, और कुत्ता भी सो गया, और बिल्ली ने आँखें बन्द कर लीं.
बिल्लियाँ – वो सोती नहीं हैं, सिर्फ ऊँघती रहती हैं.
बाहर निकला भेड़िए का पिल्ला चारों ओर का जायज़ा लेने के लिए.
चला, थोड़ा चला, सूँघा, फिर बैठ गया और चिल्लाया.
कुत्ता भौंकने लगा.
बिल्ली मेज़ पर कूदी.
आदमी पलंग पर बैठ गया. उसने हाथ झटके, चिल्लाया. और पिल्ला फिर से कुर्सी के नीचे खिसक गया.. हौले से वहीं ठहर गया.
सुबह आदमी बाहर चला गया. तश्तरी में दूध डालकर गया. कुत्ता और बिल्ली दूध चाटने लगे.
भेड़िए का पिल्ला कुर्सी के नीचे से बाहर रेंगा, दरवाज़े की ओर आया, और...दरवाज़ा तो खुला है!!!!
दरवाज़े से सीढ़ियों पर, सीढ़ियों से सड़क पर, सड़क से पुल पर, पुल से शहर में, शहर से खेत में.
और खेत के पार है जंगल!
और जंगल में है उसकी माँ.
उन्होंने एक दूसरे को सूंघा, ख़ुश हो गए और अपने जंगल में भाग गए.
और अब वो भेड़िए का बच्चा कैसा हट्टा कट्टा भेड़िया बन गया है!

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