झूठ मत बोलो
लेखक: मिखाईल
जोशेन्का
अनु: आ. चारुमति
रामदास
बहुत पहले की बात है जब मैं पढ़ता था. उस
समय जिम्नेशियम्स हुआ करते थे. और टीचर्स हमारी डायरी में हर पाठ पर ग्रेड दिया
करते थे. वे कोई एक अंक लिख दिया करते – पाँच से लेकर एक तक. और मैं तो तब बहुत ही
छोटा था, जब मुझे जिम्नेशियम में डाला गया था. और मुझे कुछ भी मालूम नहीं था कि
जिम्नेशियम में होता क्या है. पहले तीन महीने तो मैं मानो धुंध में ही रहा. और एक
दिन टीचर ने हमें ये कविता याद करने के लिए कहा:
गाँव के ऊपर चान्द
चमकता ख़ुशी-ख़ुशी,
चमक रही है बर्फ़
सफ़ेद नीली लपटों में...
मगर मैंने ये कविता याद ही नहीं की. मैंने
सुना ही नहीं था कि टीचर ने क्या कहा था. मैंने इसलिए नहीं सुना, क्योंकि लड़के जो
मेरे पीछे बैठते थे, कभी किताब मेरे सिर पर मार रहे थे, कभी मेरे कान पर स्याही
पोत रहे थे, तो कभी मेरे बाल खींच रहे थे, और जब मैं इस अचानक हमले के कारण उछलता
- तो वे मेरे नीचे पेंसिल या कोई और चीज़
रख देते. इसलिए मैं क्लास में सहमा सहमा बैठा रहता, बल्कि बिल्कुल बेवकूफ़ जैसा
बैठा रहता और पूरे समय सुनने की कोशिश करता रहता कि पीछे वाले लड़के अब मेरे ख़िलाफ़
क्या प्लान बना रहे हैं.
और दूसरे दिन टीचर ने जैसे जानबूझ कर मुझे
पुकारा और वह कविता सुनाने के लिए कहा.
मुझे न तो सिर्फ वह कविता याद नहीं थी,
बल्कि इस बात का भी पता नहीं था कि ऐसी कोई कविता भी दुनिया में है. मगर सकुचाहट के मारे मैं टीचर
से कह नहीं पाया कि मुझे ये कविता याद नहीं है. पूरी तरह बौखलाया हुआ, मैं अपनी
डेस्क के पीछे खड़ा था, एक भी शब्द बोले बिना!
मगर लड़कों ने फुसफुसाते हुए मुझे कविता प्रॉम्प्ट
करना शुरू कर दिया. इसकी बदौलत मैं वो बड़बडाने लगा जो वे फुसफुसा रहे थे.
और उन दिनों मुझे हमेशा ज़ुकाम रहता था, और
मुझे एक कान से कुछ कम भी सुनाई देता था. मैं बड़ी मुश्किल से सुन पा रहा था कि वे
क्या फुसफुसा रहे हैं. पहली पंक्तियाँ तो मैंने किसी तरह सुना दीं, मगर जब हम
“बादलों के नीचे सलीब जल रही है मोमबत्ती जैसी ”, तो मैंने कहा, “पागलों के नीचे
कमीज़ दुख रही है मोमबत्ती जैसी”.
अब तो बच्चे ठहाका मारकर हंस पड़े. और टीचर
भी हँसने लगे. उन्होंने कहा, “अच्छी बात है, अपनी डायरी लाओ! मैं उसमें ‘एक’ लिख
देता हूँ.”
मैं रोने लगा, क्योंकि ये मेरा पहला ‘एक’
था और अभी मुझे मालूम नहीं था कि इसके बाद क्या होता है.
क्लासेस ख़तम होने के बाद मेरी बहन लेल्या
मुझे लेने के लिए आई, जिससे हम साथ साथ घर जा सकें.
रास्ते में मैंने स्कूल बैग से डायरी
निकाली, उसे खोलकर लेल्या को वह पेज दिखाया जिस पर ‘एक’ लिखा था, और उससे कहा,
“लेल्या, देख, ये क्या है? ये मुझे टीचर ने गाँव के ऊपर चान्द चमकता ख़ुशी-ख़ुशी,
के लिए दिया है. लेल्या ने देखा और
हँसने लगी. उसने कहा, “मीन्का, ये तो बुरी बात है! ये टीचर ने रूसी भाषा के लिए
तुझे ‘एक’ दिया है. ये इतनी बुरी बात है कि मुझे तो शक है कि पापा तुझे तेरे
जनम-दिन पर, जो दो हफ़्ते बाद है, कैमेरा देंगे.
मैंने कहा, “तो फिर क्या किया जाए?”
लेल्या ने कहा, “हमारी क्लास की एक स्टुडेंट
ने अपनी डायरी के दो पन्ने, जहाँ उसे ‘एक’ मिला था, गोंद से चिपका दिए. उसके पापा ने उँगलियों में
थूक लगाकर पन्ने अलग कराना चाहा, मगर वे अलग नहीं हुए और वह देख ही नहीं पाए कि
वहाँ कौन सी ग्रेड लिखी है.”
मैंने कहा, “ये ठीक नहीं है – मम्मा-पापा
को धोखा देना!”
लेल्या हँसने लगी और घर चली गई और मैं
बहुत उदास मूड में पार्क में घुस गया, वहाँ बेंच पर बैठा और, डायरी खोलकर बड़े ख़ौफ़
से ‘एक’ की ओर देखने लगा. मैं काफ़ी देर तक पार्क में बैठा रहा. फिर घर गया. मगर जब
मैं घर की ओर जा रह था तो अचानक मुझे याद आया कि अपनी डायरी तो मैं पार्क में बेंच
पर ही छोड़ आया. मैं वापस भागा. मगर पार्क में डायरी थी ही नहीं. पहले तो मुझे डर
लगा, मगर बाद में मैं ख़ुश हो गया कि अब मेरे पास इस डरावने ‘एक’ वाली डायरी ही
नहीं है. घर आकर मैंने पापा को बताया कि मेरी डायरी खो गई है. जब लेल्या ने यह
सुना तो हँस पड़ी और उसने मुझे आँख मारी. दूसरे दिन, जब टीचर को पता चला कि मेरी
डायरी गुम हो गई है तो उन्होंने मुझे नई डायरी दी. मैंने नई डायरी इस उम्मीद के
साथ खोली कि अब उसमें कुछ भी बुरा नहीं है, मगर वहाँ ‘रूसी भाषा’ के सामने फिर से ‘एक’
खड़ा था, पहले वाले से और भी मोटा.
और तब मुझे इतना अफ़सोस हुआ और इतना गुस्सा
आया कि मैंने डायरी को क्लास में रखी किताबों वाली अलमारी के पीछे फेंक दिया.
दो दिन बाद, यह जानकर कि मेरी ये डायरी भी
खो गई है, टीचर ने मुझे नई डायरी बनाकर दी. और उसमें ‘रूसी भाषा’ के लिए ‘एक’ के
अलावा क्लास में मेरे आचरण के लिए ‘दो’ भी लिख दिया. और उन्होंने कहा कि मेरे पापा
को मेरी डायरी ज़रूर देखनी चाहिए.
जब क्लास के बाद मैं लेल्या से मिला, तो
उसने मुझसे कहा, “अगर हम कुछ दिनों के लिए पन्नों को चिपका दें तो इसे झूठ नहीं
कहा जाएगा. और एक हफ़्ते बाद जब तुझे कैमेरा मिल जाएगा तो हम पन्ने वापस खोलकर दिखा
देंगे कि उनमें क्या लिखा था.”
मैं तो कैमेरा पाने के लिए बेताब हो रहा
था, और मैंने लेल्या के साथ मिलकर डायरी के उस डरावने पन्ने के कोने चिपका दिए.
शाम को पापा ने कहा, “चल अपनी डायरी दिखा.
ज़रा देखूँ , तो सही, कहीं तुझे ‘एक’ तो नहीं मिला है?”
पापा डायरी देखने लगे, मगर उन्हें उसमें
कोई बुरी बात नज़र नहीं आई, क्योंकि पन्ना तो चिपकाया गया था.
और जब पापा मेरी डायरी देख रहे थे तो
सीढ़ियों पर किसी ने घंटी बजाई. कोई औरत आई और बोली, “कुछ दिन पहले मैं पार्क में
घूम रही थे और वहाँ बेंच पर ये डायरी मिली. नाम देखकर मैंने पता मालूम किया और इसे
आपके पास ले आई. कहीं ये आपके बेटे की डायरी तो नहीं है.”
पापा ने डायरी देखी और वहाँ ‘एक’ देखकर,
सब समझ गए. वो मुझ पर चिल्लाए नहीं बल्कि बड़ी शांति से बोले, “वे लोग जो झूठ बोलते
हैं और धोखा देते हैं, हँसी के पात्र बन जाते हिं, क्योंकि देर-सबेर उनका झूठ खुल
ही जाता है. ऐसा कभी भी नहीं हुआ है कि झूठ छुपा हुआ रह जाए.”
मैं, केंकडे की तरह लाल होकर पापा के
सामने खड़ा था, और मुझे उनके शांति से कहे गए शब्दों को सुनकर शर्म आ रही थी.
मैंने कहा, “मैं ये बताना चाहता हूँ कि मेरी एक तीसरी
डायरी, जिसमें ‘एक’ था, मैंने स्कूल में किताबों वाली अलमारी के पीछे फेंक दी है.”
मुझ पर और ज़्यादा गुस्सा होने के बदले
पापा मुस्कुराए और उनका चेहरा खिल गया. उन्होंने मेरे हाथ पकड़े और मेरी पप्पी लेने
लगे.
उन्होंने कहा, “मुझे बहुत ख़ुशी हुई है कि तूने
अपनी गलती मान ली है. तूने वो बात मान ली है जो, हो सकता है, कि काफ़ी समय तक किसी
को पता नहीं चलती. इससे मुझे उम्मीद बंधी है कि आगे से तू झूठ नहीं बोलेगा. इसके लिए
मैं तुझे कैमेरा दूंगा.”
जब लेल्या ने ये बात सुनी तो वह सोचने लगी
कि हो सकता है पापा का दिमाग ख़राब हो गया है जो अब सबको ‘पांच’ के लिए नहीं, बल्कि
‘एक’ के लिए ‘गिफ्ट’ देने लगे हैं.
और तब लेल्या पापा के पास गई और बोली, “पापा, आज मुझे
भी भौतिक शास्त्र में ‘दो’ मिला है क्योंकि मैंने पाठ याद नहीं किया था.”
मगर लेल्या की उम्मीद सही नहीं निकली.
पापा उस पर गुस्सा हो गए, उसे कमरे से बाहर निकाल दिया और पढ़ाई के लिए बैठने को कहा.
और शाम को जब हम सोने चले गए तो अचानक
घंटी बजी. पापा के पास मेरे टीचर आए थे.. उन्होंने कहा, “आज हमारे क्लास-रूम में
सफ़ाई हो रही थी, और किताबों की अलमारी के पीछे हमें आपके बेटे की डायरी मिली. आपको
ये छोटा-सा झूठा और धोखेबाज़ बच्चा कैसा लगता है, जिसने अपनी डायरी इसलिए फेंक दी
ताकि आप उसे देख न सकें?”
पापा ने कहा, “इस डायरी के बारे में वह
ख़ुद मुझे बता चुका है. उसने इस बात को ख़ुद ही क़ुबूल कर लिया है. इसलिए ये सोचने की
कोई वजह नहीं है कि मेरा बेटा इतना झूठा और धोखेबाज़ है कि उसे सुधारा नहीं जा सकता.”
टीचर ने पापा से कहा, “आह, ऐसी बात है.
आपको इस बारे में पहले ही मालूम है. तो, मतलब, - यहाँ ग़लतफ़हमी हो गई है. माफ़ कीजिए.
गुड नाईट.”
और मैंने अपने बिस्तर में लेटे हुए ये
बातें सुनीं और फूट-फूटकर रो पड़ा. मैंने निश्चय कर लिया कि हमेशा सच ही बोला
करूंगा.
और वाक़ई में, मैं आज भी हमेशा ऐसा ही करता
हूँ. आह, ये कभी कभी बड़ा मुश्किल हो जाता है, मगर मेरे दिल में हमेशा शांति और
प्रसन्नता बनी रहती है.
बहुत बेहतरीन अनुवाद :) मुझे तो लगता है कि आपके पोते-पोतियाँ तो हमेशा आपके पास ही रहना चाहते होंगे, क्योंकि इतनी प्यारी-प्यारी कहानियां सुनने को जो मिलेगी .... :)
जवाब देंहटाएंThanks, Gautam!
जवाब देंहटाएंI hope you will enjoy narrating them to kids!
Charumati