किस्सा बेवकूफ़ी का
लेखक: मिखाईल
ज़ोशेन्का
अनु. : आ. चारुमति
रामदास
अब पेत्या कोई उतना छोटा बच्चा नहीं था.
वह चार साल का था. मगर मम्मा उसे बिल्कुल नन्हा बच्चा ही समझती थी. वह उसे चम्मच
से खिलाती, हाथ पकड़ कर घुमाने ले जाती और सुबह ख़ुद ही उसे कपड़े पहनाती. तो, उसने
पेत्या को कपड़े पहनाए और उसे पलंग के पास खड़ा किया. मगर पेत्या अचानक गिर गया.
मम्मा ने सोचा कि वो शरारत कर रहा है, और उसने दुबारा उसे खड़ा किया. मगर वह फिर से
गिर गया. मम्मा को बड़ा अचरज हुआ और उसने तीसरी बार उसे पलंग के पास खड़ा किया. मगर
बच्चा फिर से गिर गया.
मम्मा बहुत डर गई और उसने पापा को ऑफ़िस
में फोन किया.
उसने पापा से कहा, “फ़ौरन घर आओ. हमारे
नन्हे को कुछ हो गया है – वो पैरों पर खड़ा नहीं हो पा रहा है.”
पापा आए और बोले, “ये सब बेवकूफ़ी है.
हमारा बच्चा अच्छी तरह चलता है और दौड़ता है, और ये हो ही नहीं सकता कि वह गिर
जाए.”
और उन्होंने फ़ौरन बच्चे को कार्पेट पर खड़ा
कर दिया. बच्चा अपने खिलौनों के पास जाना चाहता है, मगर फिर, चौथी बार, गिर जाता
है.
पापा बोले, “डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा. शायद
हमारा बच्चा बीमार हो गया है. शायद उसने कल ज़्यादा चॉकलेट्स खा ली हैं.”
डॉक्टर को बुलाया गया.
डॉक्टर आते हैं, चश्मा पहने, स्टेथोस्कोप
लगाए. डॉक्टर पेत्या से कहते हैं:
“
ये क्या बात हुई! तू गिर क्यों रहा है?”
पेत्या ने कहा, “मालूम नहीं क्यों, मगर
थोड़ा थोड़ा गिर जाता हूँ.”
डॉक्टर मम्मा से कहते हैं:
“बच्चे के कपड़े उतारिए, मैं अभी इसे देख लेता हूँ.”
मम्मा ने पेत्या के कपड़े उतार दिए, और
डॉक्टर स्टेथोस्कोप से उसके दिल की धड़कन सुनने लगे.
डॉक्टर ने अपनी ट्यूब से उसकी धड़कन सुनी
और बोले:
“बच्चा बिल्कुल तन्दुरुस्त है. अचरज की बात है
कि ये गिर क्यों रहा है. इसे फिर से कपड़े पहनाइए और खड़ा कर दीजिए.
मम्मा ने जल्दी जल्दी उसे कपड़े पहनाए और
फर्श पर खड़ा कर दिया. और डॉक्टर ने फ़ौरन चश्मा पहन लिया जिससे अच्छी तरह देख सके
कि बच्चा कैसे गिरता है.
मगर जैसे ही बच्चे को खड़ा किया गया – वह
फ़ौरन फिर से गिर पड़ा.
डॉक्टर को बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने कहा,
“प्रोफेसर को बुलाइए. हो सकता है कि प्रोफेसर ही कुछ अन्दाज़ लगा सकें, कि ये बच्चा
गिर क्यों रहा है.”
पापा प्रोफेसर को फोन करने गए, और तभी
पेत्या के पास उसका दोस्त छोटू कोल्या आया.
कोल्या ने पेत्या को देखा, वह हँसने लगा और बोला:
“मुझे मालूम है कि आपका पेत्या बारबार क्यों गिर
रहा है.”
डॉक्टर बोले:
“देखिए, कैसा छोटा सा वैज्ञानिक मिला है – ये
मुझ से बेहतर जानता है कि बच्चे क्यों गिरते हैं.”
कोल्या ने कहा:
“ज़रा देखिए तो सही, पेत्या ने कपड़े कैसे पहने
हैं. पतलून का एक पाँव झूल रहा है, और दूसरे में दोनों पैर घुसे हुए हैं. इसीलिए
वह गिर रहा है.”
अब तो सभी ‘आह!, आह!! और ‘ओह, ओह!!’ करने
लगे. पेत्या बोला:
“ये मम्मा ने मुझे कपड़े पहनाए हैं.”
डॉक्टर ने कहा:
“प्रोफेसर को बुलाने की ज़रूरत नहीं है. अब समझ
में आ गया है कि बच्चा क्यों बार बार गिर रहा है.”
मम्मा ने कहा, “सुबह मैं बहुत जल्दी में
थी, उसके लिए पॉरिज जो बनाना था; और इस समय मैं बेहद परेशान थी, और इसीलिए मैंने
उसको पतलून गलत पहना दी.”
कोल्या ने कहा, “मैं हमेशा ख़ुद ही कपड़े
पहनता हूँ, और मेरे पैरों के साथ ऐसी बेवकूफ़ी कभी नहीं होती. बड़े लोग हमेशा कुछ न
कुछ गड़बड़ करते ही रहते हैं.”
पेत्या ने कहा, “अब से मैं भी ख़ुद ही अपनी
ड्रेस पहना करूँगा.”
सब हँसने लगे. और डॉक्टर भी हँसने लगे.
उन्होंने सबसे बिदा ली, और कोल्या से भी बिदा ली.. और वे अपने काम पर चले गए. पापा
ऑफ़िस चले गए. मम्मा किचन में चली गई. और कमरे में कोल्या और पेत्या रह गए. वे खिलौनों से खेलने लगे.
दूसरे दिन पेत्या ने ख़ुद ही पतलून पहनी,
और इसके बाद उसके साथ कभी भी कोई बेवकूफ़ी नहीं हुई.
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