डरपोक वास्या
लेखक: मिखाईल जोशेन्का
अनु: आ. चारुमति रामदास
वास्का के पिता लुहार थे.
वे अपने कारखाने में काम किया करते. वहाँ
वे नालें, हँसिए और कुल्हाडियाँ बनाते.
और वे हर रोज़ अपने घोड़े पर कारखाने जाते.
उनके पास एक अच्छा-ख़ासा, काला घोड़ा था. वे उसे गाड़ी में जोतते और निकल जाते. शाम
को वापस घर लौट आते.
और उनके छह साल के बेटे वास्या को थोड़ा
बहुत घूमना-फिरना अच्छा लगता.
मिसाल के तौर पर, जैसे ही पिता घर लौटते,
गाड़ी से उतरते, और वास्या फ़ौरन उसमें चढ़ जाता और सीधे जंगल तक जाकर आता.
पिता, ज़ाहिर है, उसे ऐसा करने की इजाज़त
नहीं देते थे.
घोड़ा भी खुशी से इजाज़त नहीं देता था. और
जब वास्या गाड़ी में चढ़ता, घोड़ा तिरछी नज़र से उसकी ओर देखता. पूँछ भी ज़ोर-ज़ोर से
हिलाता – जैसे कह रहा हो, ‘उतर जा बच्चे, मेरी गाड़ी से.’ मगर वास्या हमेशा घोड़े को
चाबुक मारा करता, और तब उसे थोड़ा दर्द होता और वह चुपचाप भागने लगता.
एक बार शाम को पिता घर लौटे. वास्या गाड़ी
में चढ़ गया, घोड़े पर चाबुक बरसाए और आँगन से बाहर निकला सैर-सपाटा करने के लिए.
आज वह बड़े ख़तरनाक मूड में था – वह और आगे
जाना चाहता था.
तो, वह जंगल से होकर जा रहा है और अपने
काले घोड़े पर चाबुक बरसा रहा है, जिससे कि वह तेज़ भागे.
अचानक, मालूम है क्या हुआ, ऐसा लगा कि
किसी ने कस के वास्या पीठ पर डंडा मारा!
वास्या हैरानी से उछल पड़ा. उसने सोचा कि
ये उसके पिता हैं जिन्होंने उसे पकड़ लिया है और चाबुक से मारा है – कि बिना पूछे
क्यों चला गया.
वास्या ने इधर-उधर देखा. देखा – कोई भी
नहीं है.
तब उसने फिर से घोड़े पर चाबुक बरसाया. मगर
लो, दुबारा किसी ने जम कर पीठ पर मारा.
वास्या ने फिर से इधर-उधर देखा. नहीं, कोई
भी तो नहीं है. ये क्या अजीब बात हो रही है?
वास्या सोचने लगा, ‘ओय, अगर आसपास कोई
नहीं तो मेरी पीठ पर कौन मार रहा है?’
हाँ, आपको बताना पड़ेगा कि जब वास्या जंगल
से होकर जा रहा था, तो पेड़ से एक बड़ी सी डाल गिरकर पहिए पर गिरी. उसने पहिए को कस
कर पकड़ लिया. और जैसे ही पहिया घूमता, डाल भी, ज़ाहिर है, वास्या की पीठ से टकराती.
वास्या को यह नहीं दिखाई दे रहा है. क्योंकि
अंधेरा हो चुका है. और ऊपर से, वह थोड़ा डर भी गया था और किनारों पर देखना नहीं
चाहता था.
वह सोचने लगा, ‘ ओय, हो सकता है, ये घोड़ा
ही मुझे मार रहा हो. हो सकता है कि उसने मुँह से चाबुक पकड़ लिया हो और अब उसकी
बारी है मुझ पर चाबुक बरसाने की.’
अब वह घोड़े से थोड़ा दूर भी हटा.
मगर जैसे ही वह पीछे हटा, डाल वास्का की
पीठ पर नहीं बल्कि सिर पर बरसी.
वास्का ने लगाम छोड़ दी और डर के मारे लगा
चिल्लाने.
और घोड़ा, चूँकि बेवकूफ़ नहीं था, मुड़ा और
पूरी रफ़्तार से घर की ओर भागा.
अब पहिया तो और भी तेज़ घूमने लगा. और डाल
दनादन् वास्का को मारने लगी...
ऐसे में तो न सिर्फ छोटा बच्चा बल्कि बड़ा
आदमी भी घबरा जाए!
तो, घोड़ा भाग रहा है. और वास्या गाड़ी में
लेटा पूरी ताक़त से चिल्ला रहा है. और डाल उसे धुनक रही है – कभी पीठ पर, तो कभी
पैरों पर, तो कभी सिर पर.
वास्या चिल्ला रहा है:
“ओय, पापा! ओय मामा! घोड़ा मुझे मार रहा है!”
मगर घोड़ा अचानक घर के पास आया और आँगन में
रुक गया.
मगर वास्या गाड़ी में पड़ा है और नीचे उतरने
से डर रहा है. पड़ा है, जानते हैं, और खाना भी नहीं खाना चाहता.
पिता आये घोड़े को खोलने. तब कहीं जाकर वास्या
गाड़ी से उतरा. और तब अचानक उसने पहिये में देखी वो डाल जो उसे मार रही थी.
वास्या ने डाल को पहिए से अलग किया और इस
डाल से घोड़े को मारने ही वाला था कि पिता ने कहा:
“ये घोड़े को मारने की बेवकूफ़ी भरी आदत छोड़ दे.
वह तुझसे ज़्यादा होशियार है और ख़ुद ही जानता है कि उसे क्या करना चाहिए.”
तब वास्या, अपनी पीठ सहलाते हुए, घर में
गया और लेट गया. और रात को उसे सपना आया, कि जैसे घोड़ा उसके पास आता है और कहता
है, “तो, डरपोक लड़के, कर लिया सैर-सपाटा?”
सुबह वास्या उठा और नदी पर मछली पकड़ने चला
गया.
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