अध्याय 17
प्रस्थान का दिन
जाने का दिन आ गया.
एक उदास दिन. बगैर सूरज का, बगैर बर्फ़ का. बर्फ़ तो
ज़मीन पर रात भर में पिघल गई, सिर्फ़ उसकी पतली सतह छतों पर पड़ी थी. भूरा आसमान.
पानी के डबरे. कहाँ की स्लेज : आंगन में निकलना भी जान पर आ रहा है.
और ऐसे मौसम में किसी भी चीज़ की उम्मीद नहीं कर
सकते. मुश्किल से ही कोई अच्छी चीज़ हो सकती है...
मगर फिर भी कोरोस्तेल्योव ने स्लेज को नई डोरी बांध
दी थी – सिर्योझा ने ड्योढ़ी में झाँक कर देखा – डोरी बांध दी गई थी.
मगर ख़ुद कोरोस्तेल्योव जल्दी जल्दी कहीं भागा.
मम्मा बैठी थी और ल्योन्या को खिला रही थी. वह बस
उसे खिलाती ही रहती है, खिलाती ही रहती है...मुस्कुराते हुए उसने सिर्योझा से कहा:
“देख, कैसी
मज़ेदार नाक है इसकी!”
सिर्योझा ने देखा : नाक जैसी तो नाक है. ‘उसे इसकी
नाक इसलिए अच्छी लगती है,’ सिर्योझा ने सोचा, ‘क्योंकि वह इससे प्यार करती है.
पहले वह मुझे प्यार करती थी, मगर अब इसे प्यार करती है.’
और वह पाशा बुआ के पास चला गया. चाहे वह कितनी ही
अंधविश्वासी हो, मगर वह उसके साथ रहेगी और उसे प्यार करती रहेगी.
“तुम क्या
कर रही हो?” उसने उकताई हुई आवाज़ में पूछा.
“क्या देख
नहीं रहे हो,” पाशा बुआ ने तर्कपूर्ण उत्तर दिया, “कि मैं कटलेट्स बना रही हूँ?”
“इतने सारे
क्यों?”
किचन की
पूरी मेज़ पर कच्चे गीले कटलेट्स बिखरे पड़े थे, ब्रेड के चूरे में लिपटे हुए.
“क्योंकि
हम सब को खाने के लिए चाहिए और जाने वालों को रास्ते के लिए.”
“वे जल्दी
चले जाएँगे?” सिर्योझा ने पूछा.
“इतनी
जल्दी नहीं. शाम को.”
“कितने
घंटे बाद?”
“अभी बहुत
सारे घंटों के बाद. अंधेरा हो जाएगा, तब ही जाएँगे. और जब तक उजाला है – नहीं
जाएँगे.”
वह कटलेट्स बनाती रही, और वह खड़ा था, माथा मेज़ की
किनार पर टिकाए, सोच रहा था.
’लुक्यानिच भी मुझे प्यार करता है, और वह और भी
प्यार करने लगेगा, खूब खूब प्यार करेगा....मैं लुक्यानिच के साथ नाव में जाऊँगा और
डूब जाऊँगा. मुझे धरती में गाड़ देंगे, जैसे परदादी को किया था. कोरोस्तेल्योव को
और मम्मा को पता चलेगा और वे रोएँगे, और कहेंगे: हम उसे अपने साथ क्यों नहीं लाए,
वह कितना समझदार, कितना आज्ञाकारी लड़का था; रोता नहीं था, दिमाग़ नहीं चाटता था,
ल्योन्या तो उसके सामने – छिः नहीं, ऐसा नहीं होना चाहिए कि मुझे धरती में गाड़
दें, ये बड़ा डरावना होगा : अकेले पड़े रहो वहाँ...हम तो यहीं अच्छे से रहेंगे,
लुक्यानिच मेरे लिए सेब और चॉकलेट लाया करेगा; मैं बड़ा हो जाऊँगा और दूर के जहाज़
का कप्तान बनूँगा, और कोरोस्तेल्योव और मम्मा बड़ी बुरी तरह रहेंगे, और फिर एक
ख़ूबसूरत दिन वे आएँगे और कहेंगे : प्लीज़, लकड़ी काटने की इजाज़त दीजिए. और मैं
कहूँगा पाशा बुआ से : इन्हें कल का सूप दे दो...’
यहाँ सिर्योझा को इतना दुख हुआ, कोरोस्तेल्योव और
मम्मा पर इतनी दया आई कि वह आँसुओं से नहा गया. मगर जैसे ही पाशा बुआ चहकी, ‘हे
मेरे भगवान!’ उसे अपना वादा याद आ गया जो उसके कोरोस्तेल्योव से किया था:
“मैं फिर
नहीं रोऊँगा!”
नास्त्या दादी आई अपने काले थैले के साथ और उसने
पूछा, “मीत्या घर पर है?”
“गाड़ी का
इंतज़ाम करने गया है,” पाशा बुआ ने जवाब दिया. “अवेर्किएव दे ही नहीं रहा है, ऐसा
बदमाश है.”
“वो क्यों
बदमाश होने लगा,” नास्त्या दादी ने कहा. “उसे ख़ुद को अपने काम के लिए कार की ज़रूरत
है, ये हुई पहली बात. और दूसरी बात यह कि वह लॉरी तो दे रहा है न. सामान के साथ –
इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है.”
“सामान –
बेशक,” पाशा बुआ ने कहा, “मगर मार्याशा को बच्चे के साथ कार में ज़्यादा अच्छा
रहता.”
“सिर पर चढ़
गए हैं, बहुत ज़्यादा,” नास्त्या दादी ने कहा. “हम तो बच्चों को कभी किसी गाड़ी-वाड़ी
में नहीं ले गए, न तो कारों में, न लॉरियों में, और ऐसे ही उन्हें बड़ा कर दिया.
बच्चे को लेकर कैबिन में बैठ जाएगी, और बस.”
सिर्योझा धीरे धीरे आँखें मिचकाते हुए सुन रहा था.
वह जुदाई के ख़ौफ़ में डूबा हुआ था, जो अटल थी. उसके भीतर की हर चीज़ इकट्ठा हो रही
थी, तन गई थी, जिससे कि इस आने वाले दुख का सामना कर सके. चाहे कैसे भी जाएँ, मगर
वे जल्दी ही चले जाएँगे, उसे छोड़कर, मगर वह उन्हें प्यार करता है.
“ये मीत्या
क्या कर रहा है,” नास्त्या दादी ने कहा, “ मैं बिदा लेना चाहती थी.”
“आप उन्हें
छोड़ने नहीं जाएँगी?” पाशा बुआ ने पूछा.
“मुझे एक
कॉन्फ्रेंस में जाना है,” नास्त्या दादी ने जवाब दिया और वह मम्मा के पास गई. और
ख़ामोशी छा गई. और आँगन में सब कुछ धूसर हो गया, और हवा चलने लगी. हवा से खिड़की की
काँच थरथराते हुए झंकार कर रही थी. पानी के डबरे बर्फ़ की पतली सफ़ॆद चादर में बदल
रहे थे.. और फिर से बर्फ़ गिरने लगी, हवा में तेज़ी से गोल-गोल घूमते हुए.
“और अब
कितने बचे हैं घंटे?” सिर्योझा ने पूछा.
“अब कुछ कम
हैं,” पाशा बुआ ने जवाब दिया, “मगर फिर भी अभी काफ़ी हैं.”
...नास्त्या दादी और मम्मा डाईनिंग रूम में,
फ़र्नीचर के ढेर के बीच खड़े होकर बातें कर रही थीं.
“ओह, कहाँ
है वो,” नास्त्या दादी ने कहा, “ कहीं बिना मिले ही तो नहीं चला जाएगा, क्योंकि
मालूम नहीं है कि उसे फिर से देख सकूँगी या नहीं.”
‘वह भी
डरती है,’ सिर्योझा ने सोचा, ‘कि वे हमेशा के लिए चले जाएँगे और कभी वापस नहीं
लौटेंगे.’
और उसने ग़ौर किया कि बिल्कुल अंधेरा हो चुका है,
जल्दी ही लैम्प जलाना पड़ेगा.
ल्योन्या रोने लगा. मम्मा उसके पास भागी, सिर्योझा
से क़रीब क़रीब टकराते टकराते बची और प्यार से उससे बोली, “तुम किसी चीज़ से अपना दिल
बहलाओ, सिर्योझेन्का.”
वह तो ख़ुद ही अपना दिल बहलाना चाहरहा था और
ईमानदारी से उसने कोशिश की पहले बंदरिया से, फिर क्यूब्स से खेलने की, मगर कुछ
नहीं हुआ : बिल्कुल दिल नहीं लग रहा था और सब कुछ बड़ा नीरस लग रहा था. किचन का
दरवाज़ा धड़ाम् से खुला, पैरों की दन् दन् आवाज़ें सुनाई दीं और कोरोस्तेल्योव की
ज़ोरदार आवाज़ सुनाई दी:
“चलो, खाना
खा लें. एक घंटे बाद गाड़ी आएगी.”
“क्या
‘मस्क्विच’ कार मिली?” नास्त्या दादी ने पूछा.
कोरोस्तेल्योव ने जवाब दिया, “ओह, नहीं. नहीं दे
रहे हैं. भाड़ में जाएँ. लॉरी में ही जाना पड़ेगा.”
सिर्योझा आदत के मुताबिक इस आवाज़ को सुनकर ख़ुश होने
ही वाला था और उछलने वाला था, मगर तभी उसने सोचा : ‘जल्दी ही यह नहीं रहेगी’ और
फिर से वह फ़र्श पर बेमतलब क्यूब्स घुमाता रहा. कोरोस्तेल्योव भीतर आया, बर्फ़ के
कारण वह लाल हो गया था, ऊपर से उसने सिर्योझा की ओर देखा और अपराध की भावना से
पूछा, “क्या हाल है, सिर्गेई?”
...जल्दी जल्दी खाना खाया. नास्त्या दादी चली गई.
बिल्कुल अंधेरा हो गया. कोरोस्तेल्योव ने टेलिफोन किया और किसी से बिदा ली.
सिर्योझा उसके घुटनों से चिपक कर खड़ा था और बिल्कुल
हिल डुल नहीं रहा था – और कोरोस्तेल्योव, बातें करते हुए अपनी लंबी लंबी उँगलियाँ
उसके बालों में फेर रहा था...
ड्राईवर तिमोखिन आया और उसने पूछा,
“तो, सब
तैयार है? फ़ावड़ा दीजिए, बर्फ़ साफ़ करना होगा, वर्ना फाटक नहीं खुलेगा.”
लुक्यानिच उसके साथ फाटक खोलने गया. मम्मा ने
ल्योन्या को पकड़ा और उसे कंबल में लपेटने लगी.
कोरोस्तेल्योव ने कहा,
“जल्दी मत
करो. उसे पसीना आ जाएगा. आराम से कर लेना.”
तिमोखिन और लुक्यानिच के साथ मिलकर वह बंधी हुई
चीज़ें बाहर ले जाने लगा. दरवाज़े बार-बार खुल रहे थे, कमरों में ठंडक हो गई. सबके
जूतों पर बर्फ़ थी, कोई भी पैर नहीं पोंछ रहा था, और पाशा बुआ भी कुछ कह नहीं रही
थी – वह समझ रही थी कि अब पैर पोंछने से भी कोई फ़ायदा नहीं है! फ़र्श पर पानी के
डबरे बन गए थे, वह गंदा और गीला हो गया था. बर्फ़ की, टाट की, तंबाकू की और तिमोखिन
के भेड़ की खाल के कोट से कुत्ते की गंध आ रही थी. पाशा बुआ भाग भाग कर हिदायतें दे
रही थी. मम्मा ल्योन्या को हाथों में लिए सिर्योझा के पास आई, एक हाथ में उसने
सिर्योझा का सिर लिया और उसे अपने पास चिमटा लिया; वह दूर हो गया : वह उसे अपनी
बाँहों में क्यों ले रही है, जबकि वह उससे दूर जाना चाहती है.
सारा सामान बाहर ले जाया गया : फ़र्नीचर, सूटकेस,
खाने की थैलियाँ, और ल्योन्या के लंगोटों की बैग. कितना खाली खाली लग रहा है कमरों
में! सिर्फ़ थोड़े बहुत कागज़ पड़े हैं. और दिखाई दे रहा है कि घर पुराना है, कि फ़र्श
का रंग उड़ गया है और वह सिर्फ़ उसी जगह बचा है जहाँ अलमारी और छोटी मेज़ रखी थी.
“पहन लो,
बाहर आँगन में ठंड है,” लुक्यानिच ने पाशा बुआ को कोट देते हुए कहा. सिर्योझा एकदम
चौंक गया और चीख़ते हुए उनकी ओर भागा, “मैं भी आँगन में जाऊँगा! मैं भी आँगन में
जाऊँगा!”
“अरे, ऐसे
कैसे, ऐसे कैसे! तू भी चलेगा, तू भी!” पाशा बुआ ने उसे शांत करते हुए कहा और उसे
गरम कपड़े पहनाए. तब तक मम्मा ने और कोरोस्तेल्योव ने भी कोट पहन लिए.
कोरोस्तेल्योव ने सिर्योझा को एक हाथ से उठाया, कस कर उसे चूमा और फिर निर्णयातमक
आवाज़ में कहा, “ फिर मिलेंगे, दोस्त. तंदुरुस्त रहना और याद रखना कि हमने किस बारे
में फ़ैसला किया था.”
मम्मा सिर्योझा को चूमने लगी और रो पड़ी,
“सिर्योझेन्का! मुझसे दस्विदानिया (फिर मिलेंगे)
कहो!”
“दस्विदानिया, दस्विदानिया!” उसने जल्दी जल्दी
कहा, वह परेशानी से और इस जल्दबाज़ी से हाँफ रहा था, और उसने कोरोस्तेल्योव की ओर
देखा. और उसे इनाम मिल गया – कोरोस्तेल्योव ने कहा, “तुम मेरे बहादुर बेटे हो,
सिर्योझ्का!”
और लुक्यानिच और पाशा बुआ से मम्मा ने रोते हुए
कहा, “आपका बहुत बहुत धन्यवाद, हर चीज़ के लिए.”
“कोई बात
नहीं,” दुखी होकर पाशा बुआ ने जवाब दिया.
“सिर्योझ्का का ध्यान रखना.”
“इस बारे
में बिल्कुल बेफिक्र रहो,” पाशा बुआ ने जवाब दिया और और भी अधिक दुखी होकर अचानक
चीखी:
“हम कुछ
देर बैठना भूल गए! बैठना ज़रूरी है!” (सफ़र पर जाने वाले और उन्हें बिदा करने
वाले कुछ पल ख़ामोश बैठते हैं. यह सफ़र को सुखद बनाने की भावना से किया जाता है –
अनु.)
“मगर
कहाँ?” लुक्यानिच ने आँखें पोंछते हुए पूछा.
” हे मेरे भगवान!” पाशा बुआ ने कहा. “चलो, हमारे
कमरे में चलो!”
सब वहाँ गए, इधर उधर बैठे और न जाने क्यों, कुछ देर
बैठे रहे – ख़ामोश, एक पल के लिए. पाशा बुआ सबसे पहले उठी और बोली,
“भगवान
आपकी रक्षा करे.”
वे बाहर ड्योढ़ी में आए. बर्फ गिर रही थी, सब कुछ
सफ़ेद था. फाटक पूरा खुला था. शेड की दीवार पर मोमबत्ती वाली लालटेन लटक रही थी, वह
रोशनी बिखेर रही थी., बर्फ़ के गुच्छे उसकी रोशनी में गिरते हुए दिखाई दे रहे थे.
सामान से भरी लॉरी आंगन के बीचोंबीच खड़ी थी. तिमोखिन ने सामान पर तिरपाल डाल दिया,
शूरिक उसकी मदद कर रहा था. चारों ओर लोग जमा हो गए थे : वास्का की माँ, लीदा और
कुछ और भी लोग जो मम्मा और कोरोस्तेल्योव को बिदा करने आए थे. और वे सब – और अपने
चारों ओर की हर चीज़ सिर्योझा को पराई लग रही थी, जैसे उसने उन्हें कभी देखा ही न
हो. आवाज़ें भी अनजान लग रही थीं. पराया था यह आँगन...जैसे कि उसने इस शेड को कभी
देखा ही नहीं था. जैसे इन बच्चों के साथ वह कभी खेला ही नहीं था. जैसे इस चाचा ने
इस लॉरी में उसे कभी घुमाया ही नहीं था. जैसे कि उसका, जिसे फेंक दिया गया हो,
अपना कुछ भी नहीं था और हो भी नहीं सकता था.
“जान पे आ
रह है गाड़ी चलाना,” अनजान आवाज़ में तिमोखिन ने कहा. “बहुत फ़िसलन है.”
कोरोस्तेल्योव ने मम्मा और ल्योन्या को कैबिन में
बिठाया और शॉल से लपेट दिया : वह उन्हें सबसे ज़्यादा प्यार करता था, वह इस बात की
फ़िक्र करता था कि वे ठीक ठाक रहें ..और वह ख़ुद लॉरी में ऊपर चढ़ गया और वहाँ खड़ा
रहा, बड़ा, जैसे कोई स्मारक हो.
“तुम
तिरपाल के नीचे जाओ मीत्या! तिरपाल के नीचे!” पाशा बुआ चीखी, “वर्ना बर्फ़ की मार
लगेगी!”
उसने उसकी बात नहीं सुनी, और बोला,
“सिर्गेई,
एक ओर को सरक जाओ. कहीं गाड़ी तुम पर न चढ़ जाए.”
लॉरी घरघराने लगी. तिमोखिन कैबिन में चढ़ गया. लॉरी
और ज़ोर से घरघराने लगी, अपनी जगह से हिलने की कोशिश करते हुए...ये सरकी : पीछे गई,
फिर आगे और फिर पीछे. अब वो चली जाएगी, फाटक बन्द कर देंगे, लालटेन बुझा देंगे, और
सब कुछ ख़त्म हो जाएगा.
सिर्योझा एक ओर को, बर्फ के नीचे खड़ा था. वह पूरी
ताक़त से अपने वचन को याद कर रहा था और सिर्फ कभी कभी लंबी, आशाहीन सिसकियाँ ले रहा
था. और एक – इकलौता आँसू उसकी बरौनियों पर फिसला और लालटेन की रोशनी में चमकने लगा
– एक कठिन आँसू, बच्चे का नहीं, बल्कि लड़के का, कड़वा, तीखा और स्वाभिमानी आँसू...
और अधिक वहाँ रुकने में असमर्थ, वह मुड़ा और घर की
ओर चल पड़ा, दुख से झुका हुआ.
“रुको!”
बदहवासी से कोरोस्तेल्योव चिल्लाया और तिमोखिन के ऊपर की छत पर ज़ोर ज़ोर से खटखटाने
लगा. “सिर्गेई! जल्दी! फ़ौरन! सामान इकट्ठा कर! तू चलेगा!”
और वह ज़मीन पर कूदा.
“जल्दी!
क्या क्या है? कपड़े वगैरह. खिलौने. एक दम में इकट्ठा कर. जल्दी!”
“मीत्या,
तू क्या कर रहा है! मीत्या, सोचो! मीत्या, तुम पागल हो गए हो!” पाशा बुआ और कैबिन
से बाहर देखते हुए मम्मा कह रही थीं. उसने उत्तेजना और गुस्से से जवाब दिया:
“बस हो
गया. ये क्या हो रहा है, समझ रहे हैं? ये बच्चे को दो भागों में चीरना हो रहा है.
आप चाहे जो करें, मैं नहीं कर सकता. बस.”
“हे भगवान!
वह वहाँ मर जाएगा!” पाशा बुआ चीखी.
“चुप,”
कोरोस्तेल्योव ने कहा. “मैं हर चीज़ के लिए ज़िम्मेदार हूँ, समझ में आया? कुछ नहीं
मरेगा वो. बेवकूफ़ी है आपकी. चल, चल, सिर्योझा!”
और वह घर के अन्दर भागा.
पहले तो सिर्योझा अपनी जगह पर जम गया : उसे विश्वास
नहीं हो रहा था, वह डर गया था.....दिल इतनी ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था कि उसकी आवाज़
सिर तक पहुँच रही थी...फिर सिर्योझा घर में भागा, सारे कमरों में दौड़ लगा ली,
हाँफ़ते हुए, भागते भागते बंदरिया को उठाया – और अचानक निराश हो गया, यह तय करके कि
शायद कोरोस्तेल्योव ने अपना इरादा बदल दिया हो, मम्मा और पाशा बुआ ने उसका मन बदल
दिया हो – और वह फिर से उनके पास भागा. मगर कोरोस्तेल्योव उसके सामने से भाग कर
आते हुए कह रहा था, “ चल, जल्दी कर!” उन्होंने मिलकर सिर्योझा की चीज़ें इकट्ठा
कीं. पाशा बुआ और लुक्यानिच मदद कर रहे थे. लुक्यानिच ने सिर्योझा का पलंग फोल्ड
करते हुए कहा, “मीत्या – ये तुमने बिल्कुल सही किया! शाबाश!”
और सिर्योझा अपनी दौलत में से जो भी हाथ लगता, उत्तेजना से उठाकर डिब्बे
में डाल लेता, जो उसे पाशा बुआ ने दिया था. जल्दी! जल्दी! वर्ना अचानक वे चले
जाएँगे! वैसे भी यह सही सही जानना बड़ा मुश्किल है कि वे कब क्या करेंगे...दिल तो
गले तक आकर धड़क रहा था, साँस लेने और सुनने में भी तकलीफ़ हो रही थी.
“जल्दी! जल्दी!” वह चिल्लाया, जब
पाशा बुआ उसे गरम कपड़ों में लपेट रही थी. और, उसके हाथों से छूटकर वह आँखों से
कोरोस्तेल्योव को ढूँढ़ रहा था. मगर लॉरी अपनी जगह पर ही थी, और कोरोस्तेल्योव अभी
बैठा भी नहीं था और सिर्योझा को सबसे बिदा लेने को कह रहा था.
और अब, उसने सिर्योझा को उठाया और कैबिन में ठूँस दिया, मम्मा के पास और
ल्योन्या के पास, मम्मा की शॉल के नीचे. लॉरी चल पड़ी, और आख़िरकार अब सुकून से बैठा
जा सकता था.
कैबिन में भीड़ हो गई थी : एक, दो, तीन – चार आदमी, ओहो! भेड़ के कोट की
तेज़ बू आ रही है. तिमोखिन सिगरेट पी रहा है. सिर्योझा खाँस रहा है. वह तिमोखिन और
मम्मा के बीच में दबा हुआ बैठा था, कैप उसकी एक आँख पर खिसक गई थी, स्कार्फ़ गला
दबा रहा है, और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है, छोटी सी खिड़की को छोड़कर, जिसके बाहर
बर्फ़ गिर रही है, हेडलाईट की रोशनी में चमकती बर्फ़. बहुत मुश्किल हो रही है, मगर
हमें इसकी परवाह नहीं है : हम जा रहे हैं. सब एक साथ जा रहे हैं, हमारी गाड़ी में,
हमारा तिमोखिन हमें ले जा रहा है, और बाहर से, हमारे ऊपर कोरोस्तेल्योव जा रहा है,
वह हमें प्यार करता है, वह हमारे लिए ज़िम्मेदार है, उस पर बर्फ़ की मार पड़ रही है,
मगर उसने हमें कैबिन में बिठाया है, वह हम सब को खल्मागोरी ले जा रहा है. हे
भगवान! हम खल्मागोरी जा रहे हैं. कितनी ख़ुशी की बात है! वहाँ क्या है – यह तो पता
नहीं, मगर, शायद बड़ा ख़ूबसूरत ही होगा, क्योंकि हम वहाँ जा रहे हैं! तिमोखिन के
हॉर्न की ज़ोरदार आवाज़ आ रही है, और चमकती हुई बर्फ़ खिड़की से सीधे सिर्योझा की ओर आ
रही है...
***
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